jin khojaa tin paaiyaaN

Autor Osho |  Premchand |  Maple Press

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जन खोजा तन पाइयां ान साधना श वर, नारगोल म ई सीरीज के अंतगत कुंड लनी-योग पर दी ग छह OSHO Talks तथा ान- योग एवं मुंबई म साधना-गो ी के दौरान साधक के साथ ई तेरह OSHO Talks का सं ह

ISBN: 978-0-88050-823-0

Copyright © 1970, 2016 OSHO International Foundation www.osho.com/copyrights Images and cover design © OSHO International Foundation All rights reserved. No part of this book may be reproduced or transmitted in any form or by any means, electronic or mechanical, including photocopying, recording, or by any information storage and retrieval system, without prior written permission from the publisher. OSHO is a registered trademark of OSHO International Foundation www.osho.com/trademarks This book is a series of original talks by Osho, given to a live audience. All of Osho’s talks have been published in full as books, and are also available as original audio recordings. Audio recordings and the complete text archive can be found via the online OSHO Library at www.osho.com/Library OSHO MEDIA INTERNATIONAL www.osho.com/oshointernational ISBN- 978-0-88050-823-0

:1 या ा कुंड लनी क मेरे य आ न्! This Book is requested from Request Hoarder मुझे पता नह क आप कस लए यहां आए ह। शायद आपको भी ठीक से पता न हो, क हम सारे लोग जदगी म इस भां त ही जीते ह क हम यह भी पता नह होता क जी रहे ह, यह भी पता नह होता क कहां जा रहे ह, और यह भी पता नह होता क जा रहे ह। मू ा और जागरण जदगी ही जब बना पूछे बीत जाती हो तो आ य नह होगा क आपम से ब त लोग बना पूछे यहां आ गए ह क जा रहे ह। शायद कुछ लोग जानकर आए ह , संभावना ब त कम है। हम सब ऐसी मू ा म चलते ह, ऐसी मू ा म सुनते ह, ऐसी मू ा म देखते ह क न तो हम वह दखाई पड़ता जो है, न वह सुनाई पड़ता जो कहा जाता है, और न उसका श अनुभव हो पाता जो सब ओर से बाहर और भीतर हम घेरे ए है। मू ा म ही यहां भी आ गए ह गे। ात भी नह है; हमारे कदम का भी हम कुछ पता नह है; हमारी ास का भी हम कुछ पता नह है। ले कन म आया ं , यह मुझे ज र पता है; वह म आपसे कहना चा ं गा। ब तज से खोज चलती है आदमी क । न मालूम कतने ज क खोज के बाद उसक झलक मलती है-- जसे हम आनंद कह, शां त कह, स कह, परमा ा कह, मो कह, नवाण कह--जो भी श ठीक मालूम पड़े, कह। ऐसे कोई भी श उसे कहने म ठीक नह ह, समथ नह ह। ज -ज के बाद उसका मलना होता है। और जो लोग भी उसे खोजते ह, वे सोचते ह, पाकर व ाम मल जाएगा। ले कन ज भी वह मलता है, मलकर पता चलता है क एक नये म क शु आत है, व ाम नह । कल तक पाने के लए दौड़ थी और फर बांटने के लए दौड़ शु हो जाती है। अ था बु हमारे ार पर आकर खड़े न ह , और न महावीर हमारी सांकल को खटखटाएं , और न जीसस हम पुकार। उसे पा लेने के बाद एक नया म। सच यह है क जीवन म जो भी मह पूण है, उसे पाने म जतना आनंद है, उससे अनंत गुना आनंद उसे बांटने म है। जो उसे पा लेता है, फर वह उसे बांटने को वैसे ही ाकुल हो जाता है, जैसे कोई फूल खलता है और सुगंध लुटती है, कोई बादल आता है और बरसता है, या सागर क कोई लहर आती है और तट से टकराती है। ठीक ऐसे ही, जब कुछ मलता है तो बंटने के लए, बखरने के लए, फैलने के लए ाण आतुर हो जाते ह। मेरा मुझे पता है क म यहां आया ं । और अगर मेरा और आपका कह मलन हो

जाए, और जस लए म आया ं अगर उस लए ही आपका भी आना आ हो, तो हमारी यह मौजूदगी साथक हो सकती है। अ था अ र ऐसा होता है, हम पास से गुजरते ह, ले कन मल नह पाते। अब म जस लए आया ं , अगर उसी लए आप नह आए ह, तो हम पास ह गे, नकट रहगे, ले कन मल नह पाएं गे। स को देखने क आंख कुछ जो मुझे दखाई पड़ता है, चाहता ं , आपको भी दखाई पड़े। और मजा यह है क वह इतने नकट है क आ य ही होता है क वह आपको दखाई नह पड़ता! और कई बार तो संदेह होता है क जैसे जानकर ही आप आंख बंद कए बैठे ह; देखना ही नह चाहते ह; अ था इतने जो नकट है वह आपके देखने से कैसे चूक जाता! जीसस ने ब त बार कहा है क लोग के पास आंख ह, ले कन वे देखते नह ; कान ह, ले कन वे सुनते नह । बहरे ही बहरे नह ह और अंधे ही अंधे नह ह। जनके पास आंख और कान ह वे भी अंधे और बहरे ह। इतने नकट है, दखाई नह पड़ता! इतने पास है, सुनाई नह पड़ता! चार तरफ घेरे ए है, श नह होता! ा बात है? कह कुछ कोई छोटा सा अटकाव होगा, बड़ा अटकाव नह है। ऐसा ही है, जैसे आंख म एक तनका पड़ जाए और पहाड़ दखाई न पड़े फर, आंख बंद हो जाए। तक तो यही कहेगा क पहाड़ को जसने ढांक लया, वह तनका ब त बड़ा होगा। तक तो ठीक ही कहता है। ग णत तो यही कहेगा, इतने बड़े पहाड़ को जसने ढांक लया, वह तनका पहाड़ से बड़ा होना चा हए। ले कन तनका ब त छोटा है; आंख बड़ी छोटी है। तनका आंख को ढं क लेता है, पहाड़ ढं क जाता है। हमारी भीतर क आंख पर भी कोई ब त बड़े पहाड़ नह ह, छोटे तनके ह। उनसे जीवन के सारे स छपे रह जाते ह। और वह आंख. न त ही, जन आंख से हम देखते ह उस आंख क म बात नह कर रहा ं । इससे बड़ी ां त पैदा होती है। यह ठीक से खयाल म आ जाना चा हए क इस जगत म हमारे लए वही स साथक होता है, जसे पकड़ने क , जसे हण करने क , जसे ीकार कर लेने क , भोग लेने क रसे वटी, ाहकता हमम पैदा हो जाती है। सागर का इतना जोर का गजन है, ले कन मेरे पास कान नह ह तो सागर अनंत-अनंत काल तक भी च ाता रहे, पुकारता रहे, मुझे कुछ सुनाई नह पड़ेगा। जरा से मेरे कान न ह क सागर का इतना बड़ा गजन थ हो गया; आंख न ह , सूय ार पर खड़ा रहे, बेकार हो गया; हाथ न ह और म कसी को श करना चा ं , तो कैसे क ं ? परमा ा क इतनी बात है, आनंद क इतनी चचा है, इतने शा ह, इतने लोग ाथनाएं कर रहे, मं दर म भजन-क तन कर रहे, ले कन लगता नह क परमा ा को हम श कर पाते ह; लगता नह क वह हम दखाई पड़ता है; लगता नह क हम उसे सुनते ह; लगता नह क हमारे ाण के पास उसक कोई धड़कन हम सुनाई पड़ती है। ऐसा लगता है, सब बातचीत है, सब बातचीत है। ई र क हम बात कए चले जाते ह। और शायद इतनी बात हम इसी लए करते ह क शायद हम सोचते ह: बातचीत करके अनुभव को झुठला दगे; बातचीत करके ही पा लगे। अब बहरे ज -ज तक बात कर र क , संगीत क , और अंधे बात कर काश क , तो ज तक कर बात तो भी कुछ होगा नह ।

हां, एक ां त हो सकती है क अंधे काश क बात करते-करते यह भूल जाएं क हम अंधे ह; क काश क ब त बात करने से उ लगने लगे क हम काश को जानते ह। जमीन पर बने ए परमा ा के मं दर और म द इस तरह का ही धोखा देने म सफल हो पाए ह। उनके आसपास उनके भीतर बैठे ए लोग को म के अ त र कुछ और पैदा नह होता। ादा से ादा हम परमा ा को मान पाते ह, जान नह पाते। और मान लेना बातचीत से ादा नह है; कन वन सग बातचीत है तो मान लेते ह; कोई जोर से तक करता है और स करता है तो मान लेते ह; हार जाते ह, नह स कर पाते ह क नह है, तो मान लेते ह। ले कन मान लेना जान लेना नह है। अंधे को हम कतना ही मना द क काश है, तो भी काश को जानना नह होता है। म तो यहां इसी खयाल से आया ं क जानना हो सकता है। न त ही हमारे भीतर कुछ और भी क है जो न य पड़ा है-- जसे कभी कोई कृ जान लेता है और नाचता है; और कभी कोई जीसस जान लेता है और सूली पर लटक कर भी कह पाता है लोग से क माफ कर देना इ , क इ पता नह क ये ा कर रहे ह। न त ही कोई महावीर पहचान लेता है, और कसी बु के भीतर वह फूल खल जाता है। कोई क है हमारे भीतर--कोई आंख, कोई कान--जो बंद पड़ा है। म तो इसी लए आया ं क वह जो बंद पड़ा आ क है, कैसे स य हो जाए। यह ब लटका आ है। तो उससे रोशनी नकल रही है। तार काट द हम, तो ब कुछ भी नह बदला, ले कन रोशनी बंद हो जाएगी। व ुत क धारा न मले, ब तक न आए, तो ब अंधेरा हो जाएगा और जहां काश गर रहा है वहां सफ अंधेरा गरे गा। ब वही है, ले कन न य हो गया; वह जो धारा श क दौड़ती थी, अब नह दौड़ती है। और श क धारा न दौड़ती हो तो ब ा करे ? द के जागरण का क हमारे भीतर भी कोई क है जससे वह जाना जाता है, जसे हम परमा ा कह। ले कन उस तक हमारी जीवन-धारा नह दौड़ती तो वह क न य पड़ रह जाता है। आंख ह ठीक बलकुल, और आंख तक जीवन क धारा न दौड़े, तो आंख बेकार हो जाएं । एक लड़क को मेरे पास लाए थे कुछ म । उस युवती का कसी से ेम था और घर के लोग को पता चला और ेम के बीच दीवाल उ ने खड़ी क । अब तक हम इतनी अ ी नया नह बना पाए जहां ेम के लए दीवाल न बनानी पड़। उ ने दीवाल खड़ी कर दी, उस युवती को और उस युवक को मलने का ार बंद कर दया। बड़े घर क युवती थी, बीच से छत से दीवाल उठा दी, आर-पार देखना न हो सके। जस दन वह दीवाल उठी, उसी दन वह लड़क अचानक अंधी हो गई। उसे डा र के पास ले गए। उ ने कहा, आंख तो बलकुल ठीक है, ले कन लड़क को दखाई कुछ भी नह पड़ता है! पहले तो शक आ, मां-बाप ने डांटा-डपटा, मारने-पीटने क धमक दी। ले कन डांटने-डपटने से अंधेपन तो ठीक नह होते। डा र को दखाया। डा र ने कहा, आंख बलकुल ठीक है। ले कन फर भी डा र ने कहा क लड़क झूठ नह बोलती है, उसे दखाई नह पड़ रहा है। साइकोला जकल ाइं डनेस, उ ने कहा क मान सक अंधापन आ गया। तो उ ने कहा, हम कुछ न कर सकगे। लड़क क जीवन-धारा आंख तक जानी बंद हो गई है; वह

जो ऊजा आंख तक जाती है, वह बंद हो गई है, वह धारा अव हो गई है। आंख ठीक है, ले कन जीवन-धारा आंख तक नह प ं चती है। उस लड़क को मेरे पास लाए, मने सारी बात समझी। मने उस लड़क को पूछा क ा आ? तेरे मन म ा आ है? उसने कहा क मेरे मन म यह आ है क जसे देखने के लए मेरे पास आंख ह, अगर उसे न देख सकूं तो आंख क ा ज रत है? बेहतर है क अंधी हो जाऊं। कल रात भर मेरे मन म एक ही खयाल चलता रहा। रात मने सपना भी देखा क म अंधी हो गई ं । और यह जानकर मेरा मन स आ क अंधी हो गई ं । क जसे देखने के लए आंख आनं दत होती, अब उसे देख नह सकूंगी तो आंख क ा ज रत है, अंधा ही हो जाना अ ा है। उसका मन अंधा होने के लए राजी हो गया, जीवन-धारा आंख तक जानी बंद हो गई है। आंख ठीक है, आंख देख सकती है, ले कन जस श से देख सकती थी वह आंख तक नह आती है। हमारे म छपा आ कोई क है जहां से परमा ा पहचाना, जाना जाता है; जहां से स क झलक मलती है; जहां से जीवन क मूल ऊजा से हम संबं धत होते ह; जहां से पहली बार संगीत उठता है वह जो कसी वा से नह उठ सकता; जहां से पहली बार वे सुगंध उपल होती ह जो अ नवचनीय ह; और जहां से उस सबका ार खुलता है जसे हम मु कह; जहां कोई बंधन नह , जहां परम तं ता है; जहां कोई सीमा नह और असीम का व ार है; जहां कोई ख नह और जहां आनंद, और आनंद, और आनंद, और आनंद के अ त र और कुछ भी नह है। ले कन उस क तक हमारी जीवन-धारा नह जाती, एनज नह जाती, ऊजा नह जाती, कह नीचे ही अटककर रह जाती है। इस बात को थोड़ा ठीक से समझ ल। क तीन दन जसे म ान कह रहा ं , इस ऊजा को, इस श को उस क तक प ं चाने का ही यास करना है, जहां वह फूल खल जाए, वह दीया जल जाए, वह आंख मल जाए--वह तीसरी आंख, वह सुपर सस, वह अत य इं य खुल जाए--जहां से कुछ लोग ने देखा है, और जहां से सारे लोग देखने के अ धकारी ह। ले कन बीज होने से ही ज री नह क कोई वृ हो जाए। हर बीज अ धकारी है वृ होने का, ले कन सभी बीज वृ नह हो पाते। क बीज क संभावना तो है, पोट शय लटी तो है क वृ हो जाए, ले कन खाद भी जुटानी पड़ती है, जमीन म बीज को दबना भी पड़ता, मरना भी पड़ता, टूटना पड़ता, बखरना पड़ता। जो बीज टूटने, बखरने को, मटने को राजी हो जाता है वह वृ हो जाता है। और अगर वृ के पास हम बीज को रखकर देख तो पहचानना ब त मु ल होगा क यह बीज इतना बड़ा वृ बन सकता है! असंभव! असंभव मालूम पड़ेगा। इतना सा बीज इतना बड़ा वृ कैसे बनेगा! ऐसा ही लगा है सदा। जब कृ के पास हम खड़े ए ह, तो ऐसा ही लगा है क हम कहां बन सकगे! तो हमने कहा: तुम भगवान हो; हम साधारणजन, हम कहां बन सकगे! तुम अवतार हो; हम साधारणजन, हम तो जमीन पर ही रगते रहगे; हमारी यह साम नह । जब कोई बु और कोई महावीर हमारे पास से गुजरा है, तो हमने उसके चरण म नम ार कर लए ह--और कहा क तीथकर हो, अवतार हो, ई र के पु हो, हम

साधारणजन! अगर बीज कह सकता, तो वृ के पास वह भी कहता क भगवान हो, तीथकर हो, अवतार हो; हम साधारण बीज, हम कहां ऐसे हो सकगे! बीज को कैसे भरोसा आएगा क इतना बड़ा वृ उसम छपा हो सकता है? ले कन यह बड़ा वृ कभी बीज था, और जो आज बीज है वह कभी बड़ा वृ हो सकता है। अनंत संभावनाओं का जागरण हम सबके भीतर अनंत संभावना छपी है। ले कन उन अनंत संभावनाओं का बोध जब तक हम भीतर से न होने लगे, तब तक कोई शा माण नह बनेगा। और कोई भी च ाकर कहे क पा लया, तो भी माण नह बनेगा। क जसे हम नह जान लेते ह, उस पर हम कभी व ास नह कर पाते ह। और ठीक भी है, क जसे हम नह जानते उस पर व ास करना वंचना है, डसे शन है। अ ा है क हम कह क हम पता नह क ई र है। ले कन क को पता आ है, और क को केवल पता ही नह आ है, ब उनक सारी जदगी बदल गई, उनके चार तरफ हमने फूल खलते देखे ह अलौ कक। ले कन उनक पूजा करने से वह हमारे भीतर नह हो जाएगा। सारा धम पूजा पर क गया है। फूल क पूजा करने से नये बीज कैसे फूल बन जाएं गे? और नदी कतनी ही सागर क पूजा करे तो सागर न हो जाएगी। और अंडा प य क कतनी ही पूजा करे तो भी आकाश म पंख नह फैला सकता। अंडे को टूटना पड़ेगा। और पहली बार जब कोई प ी अंडे के बाहर टूटकर नकलता है तो उसे भरोसा नह आता; उड़ते ए प य को देखकर वह व ास भी नह कर सकता क यह म भी कर सकूंगा। वृ के कनार पर बैठकर वह ह त जुटाता है। उसक मां उड़ती है, उसका बाप उड़ता है, वे उसे ध े भी देते ह, फर भी उसके हाथ-पैर कंपते ह। वह जो कभी नह उड़ा, कैसे व ास करे क ये पंख उड़गे? आकाश म खुल जाएं गे, अनंत क , र क या ा पर नकल जाएगा। म जानता ं क इन तीन दन म आप भी वृ के कनारे पर बैठगे, म कतना ही च ाऊंगा क छलांग लगाएं , कूद जाएं , उड़ जाएं -- व ास नह पड़ेगा, भरोसा नह होगा। जो पंख उड़े नह , वे कैसे मान क उड़ना हो सकता है? ले कन कोई उपाय भी तो नह है, एक बार तो बना जाने छलांग लेनी ही पड़ती है। कोई पानी म तैरना सीखने जाता है। अगर वह कहे क जब तक म तैरना न सीख लूं तब तक उत ं गा नह , तो गलत नह कहता है, ठीक कहता है, उ चत कहता है, एकदम कानूनी बात कहता है। क जब तक तैरना न सीखूं तो पानी म कैसे उत ं ! ले कन सखानेवाला कहेगा क जब तक उतरोगे नह , सीख नह पाओगे। और तब तट पर खड़े होकर ववाद अंतहीन चल सकता है। हल ा है? सखानेवाला कहेगा, उतरो! कूदो! क बना उतरे सीख न पाओगे। असल म, सीखना उतर जाने से ही शु होता है। सब लोग तैरना जानते ह, सीखना नह पड़ता है तैरना। अगर आप तैरना सीखे ह तो आपको पता होगा, तैरना सीखना नह पड़ता। सारे लोग तैरना जानते ह, ढं ग से नह जानते ह-- गर जाते ह पानी म तो ढं ग आ जाता है; हाथ-पैर बेढंगे फकते ह, फर ढं ग से फकने लगते ह। हाथ-पैर फकना सभी को मालूम है।

एक बार पानी म उतरे तो ढं ग से फकना आ जाता है। इस लए जो जानते ह, वे कहगे क तैरना सीखना नह है, रमब रग है--एक याद है; पुन रण है। इस लए परमा ा क जो अनुभू त है, जाननेवाले कहते ह, वह रण है। वह कोई ऐसी अनुभू त नह है जसे हम आज सीख लगे। जस दन हम जानगे, हम कहगे, अरे ! यही था तैरना! ये हाथ-पैर तो हम कभी भी फक सकते थे। ले कन इन हाथ-पैर के फकने का इस नदी से, इस सागर से कभी मलन नह आ। ह त नह जुटाई, कनारे पर खड़े रहे। उतरना पड़े, कूदना पड़े। ले कन कूदते ही काम शु हो जाता है। वह जस क क म बात कर रहा ं वह हमारे म म छपा आ पड़ा है। अगर आप जाकर म वद से पूछ, तो वे कहगे, म का ब त थोड़ा सा ह ा काम कर रहा है; बड़ा ह ा न य है, इनए व है। उस बड़े ह े म ा- ा छपा है, कहना क ठन है। बड़े से बड़ी तभा और जी नयस का भी ब त थोड़ा सा म काम करता है। इसी म म वह क है जसे हम सुपर-सस, अत य-इं य कह, जसे हम छठव इं य कह, या जसे हम तीसरी आंख, थड आई कह। वह क छपा है जो खुल जाए तो हम जीवन को ब त नये अथ म देखगे--पदाथ वलीन हो जाएगा और परमा ा कट होगा; आकार खो जाएगा और नराकार कट होगा; प मट जाएगा और अ प आ जाएगा; मृ ु नह हो जाएगी और अमृत के ार खुल जाएं गे। ले कन वह देखने का क हमारा न य है। वह क कैसे स य हो? मने कहा, जैसे ब तक अगर व ुत क धारा न प ं च,े तो ब न य पड़ा रहेगा; धारा प ं चाएं और ब जाग उठे गा। ब सदा ती ा कर रहा है क कब धारा आए। ले कन अकेली धारा भी कट न हो सकेगी। बहती रहे, ले कन कट न हो सकेगी; कट होने के लए ब चा हए। और कट होने के लए धारा भी चा हए। हमारे भीतर जीवन-धारा है, ले कन वह कट नह हो पाती; क जब तक वह वहां न प ं च जाए, उस क पर जहां से कट होने क संभावना है, तब तक अ कट रह जाती है। हम जी वत ह नाम मा को। सांस लेने का नाम जीवन है? भोजन पचा लेने का नाम जीवन है? रात सो जाने का नाम, सुबह जग जाने का नाम जीवन है? ब े से जवान, जवान से बूढ़े हो जाने का नाम जीवन है? ज ने और मर जाने का नाम जीवन है? और अपने पीछे ब े छोड़ जाने का नाम जीवन है? नह , यह तो यं भी कर सकता है। और आज नह कल कर लेगा; ब े टे - ूब म पैदा हो जाएं गे। और बचपन, जवानी और बुढ़ापा बड़ी मैके नकल, बड़ी यां क याएं ह। जब कोई भी यं थकता है, तो जवानी भी आती है यं क , बुढ़ापा भी आता है। सभी यं बचपन म होते ह, जवान होते ह, बूढ़े होते ह। घड़ी भी खरीदते ह तो गारं टी होती है क दस साल चलेगी। वह जवान भी होगी घड़ी, बूढ़ी भी होगी, मरे गी भी। सभी यं ज ते ह, जीते ह, मरते ह। जसे हम जीवन कहते ह, वह यां कता, मैके नकल होने से कुछ और ादा नह है। जीवन कुछ और है। उपल अ नवचनीय है अगर इस ब को पता न चले व ुत क धारा का तो ब जैसा है उसी को जीवन समझ लेगा। हवा के ध े उसे ध े दगे तो ब कहेगा म जी वत ं , क ध े मुझे

लगते ह। ब उसी को जीवन समझ लेगा। और जस दन व ुत क धारा पहली दफा ब म आती होगी, और अगर ब कह सके तो ा कहेगा? कहेगा, अ नवचनीय है! नह कह सकता ा हो गया! अब तक अंधेरे से भरा था, अब अचानक--अचानक सब काश हो गया है। और करण बही जाती ह, सब तरफ फैली चली जाती ह। बीज ा कहेगा जस दन वृ हो जाएगा? कहेगा, पता नह यह ा आ? कहने जैसा नह है! म तो छोटा सा बीज था, यह ा हो गया? यह मुझसे आ है, यह भी कहना क ठन है। इस लए जनको भी परमा ा मलता है, वे यह नह कह पाते क हमने पा लया है। वे तो यही कहते ह क हम.हम सोचते ह क जो हम थे, उससे, जो हम मल गया है कोई भी संबंध नह दखाई पड़ता। कहां हम अंधकार थे, कहां काश हो गया है! कहां हम कांटे थे, कहां फूल हो गए ह! कहां हम मृ ु थे ठोस, कहां हम तरल जीवन हो गए ह! नह -नह , हम नह मल गया है। वे कहगे, हम नह मल गया है। जो जानगे, वे कहगे, नह , उसक कृपा से हो गया है--उसक ेस से, उसके साद से-- यास से नह । ले कन इसका मतलब यह नह है क यास नह है। जब उपल होता है तो ऐसा ही लगता है, उसके साद से मला है, ेस से। ले कन उसके साद तक प ं चने के लए बड़े यास क या ा है। और वह यास ा है? वह एक छोटा सा यास है एक अथ म, बड़ा भी है सरे अथ म। इस अथ म छोटा है क वे क ब त र नह ह। जहां श क ऊजा, जहां ऊजा संगृहीत है, वह ान, रजवायर, और वह जगह जहां से जीवन को देखने क आंख खुलेगी, उनम फासला ब त नह है। मु ल से दो फ ट का फासला है, तीन फ ट का फासला है, इससे ादा फासला नह है। क हम आदमी ही पांच-छह फ ट के ह, हमारी पूरी जीवन- व ा पांच-छह फ ट क है। उस पांच-छह फ ट म सारा इं तजाम है। जीवन-ऊजा का कुंड जस जगह जीवन क ऊजा इक ी है, वह जनन य के पास कुंड क भां त है। इस लए उस ऊजा का नाम कुंड लनी पड़ गया, जैसे कोई पानी का छोटा सा कुंड। और इस लए भी उस ऊजा का नाम कुंड लनी पड़ गया क जैसे कोई सांप कुंडल मारकर सो गया हो। सोए ए सांप को कभी देखा हो, कुंडल पर कुंडल मारकर फन को रखकर सोया आ है। ले कन सोए ए सांप को जरा छेड़ दो, फन ऊपर उठ जाता है, कुंडल टूट जाते ह। इस लए भी उसे कुंड लनी नाम मल गया क हमारे ठीक से सटर के पास हमारे जीवन क ऊजा का कुंड है--बीज, सीड है, जहां से सब फैलता है। यह उपयु होगा खयाल म ले लेना क यौन से, काम से, से से जो थोड़ा सा सुख मलता है, वह सुख भी यौन का सुख नह है, वह सुख भी यौन के साथ वह जो कुंड है हमारी जीवन-ऊजा का, उसम आए ए कंपन का सुख है। थोड़ा सा वहां सोया सांप हल जाता है। और उसी सुख को हम सारे जीवन का सुख मान लेते ह। जब वह पूरा सांप जागता है और उसका फन पूरे को पार करके म तक प ं च जाता है, तब जो हम मलता है, उसका हम कुछ भी पता नह । हम जीवन क पहली ही सीढ़ी पर जीते ह। बड़ी सीढ़ी है जो परमा ा तक जाती है। वह जो हमारे भीतर तीन फ ट या दो फ ट का फासला है, वह फासला एक अथ म ब त बड़ा है;

वह कृ त से परमा ा तक का फासला है; वह पदाथ से आ ा तक का फासला है; वह न ा से जागरण तक का फासला है; वह मृ ु से अमृत तक का फासला है। वह बड़ा फासला भी है। ऐसे छोटा फासला भी है। हमारे भीतर हम या ा कर सकते ह। ऊजा जागरण से आ ां त यह जो ऊजा हमारे भीतर सोई पड़ी है, अगर इसे जगाना हो, तो सांप को छेड़ने से कम खतरनाक काम नह है। ब सांप को छेड़ना ब त खतरनाक नह है। इस लए खतरनाक नह है क एक तो सौ म से स ानबे सांप म कोई जहर नह होता। तो सौ म से स ानबे सांप तो आप मजे से छेड़ सकते ह, उनम कुछ होता ही नह । और अगर कभी उनके काटने से कोई मरता है तो सांप के काटने से नह मरता, सांप ने काटा है, इस खयाल से मरता है; क उनम तो जहर होता नह । स ानबे तशत सांप तो कसी को मारते नह । हालां क ब त लोग मरते ह, उनके काटने से भी मरते ह; वे सफ खयाल से मरते ह क सांप ने काटा, अब मरना ही पड़ेगा। और जब खयाल पकड़ लेता है तो घटना घट जाती है। फर जन सांप म जहर है उनको छेड़ना भी ब त खतरनाक नह है, क ादा से ादा वे आपके शरीर को छीन सकते ह। ले कन जस कुंड लनी श क म बात कर रहा ं , उसको छेड़ना ब त खतरनाक है; उससे ादा खतरनाक कोई बात ही नह है; उससे बड़ा कोई डजर ही नह है। खतरा ा है? वह भी एक तरह क मृ ु है। जब आपके भीतर क ऊजा जगती है तो आप तो मर जाएं गे जो आप जगने के पहले थे और आपके भीतर एक बलकुल नये का ज होगा जो आप कभी भी नह थे। यही भय लोग को धा मक बनने से रोकता है। वही भय--जो बीज अगर डर जाए तो बीज रह जाए। अब बीज के लए सबसे बड़ा खतरा है जमीन म गरना, खाद पाना, पानी पाना। सबसे बड़ा खतरा है, क बीज मरे गा। अंडे के लए सबसे बड़ा खतरा यही है क प ी बड़ा हो भीतर और उड़े, तोड़ दे अंडे को। अंडा तो मरे गा। हम भी कसी के ज क पूव अव ा ह। हम भी एक अंडे क तरह ह, जससे कसी का ज हो सकता है। ले कन हमने अंडे को ही सब कुछ मान रखा है। अब हम अंडे को स ाले बैठे ह। यह श उठे गी तो आप तो जाएं गे, आप के बचने का कोई उपाय नह । और अगर आप डरे , तो जैसा कबीर ने कहा है, कबीर के बड़े.दो पं य म उ ने बड़ी ब ढ़या बात कही है। कबीर ने कहा है: जन खोजा तन पाइयां, गहरे पानी पैठ। म बौरी खोजन गई, रही कनारे बैठ।। कोई पास बैठा था, उसने कबीर से कहा, आप कनारे बैठे रहे? कबीर कहते ह, म पागल खोजने गया, कनारे ही बैठ गया। कसी ने पूछा, आप बैठ गए कनारे ? तो कबीर ने कहा: जन खोजा तन पाइयां, गहरे पानी पैठ। म बौरी डूबन डरी, रही कनारे बैठ।। म डर गई डूबने से, इस लए कनारे बैठ गई। और ज ने खोजा उ ने तो गहरे जाकर खोजा।

डूबने क तैयारी चा हए, मटने क तैयारी चा हए। एक श म कह--श ब त अ ा नह --मरने क तैयारी चा हए। और जो डर जाएगा डूबने से वह बच तो जाएगा, ले कन अंडा ही बचेगा, प ी नह , जो आकाश म उड़ सके। जो डूबने से डरे गा वह बच तो जाएगा, ले कन बीज ही बचेगा, वृ नह , जसके नीचे हजार लोग छाया म व ाम कर सक। और बीज क तरह बचना कोई बचना है? बीज क तरह बचने से ादा मरना और ा होगा! इस लए ब त खतरा है। खतरा यह है क हमारा जो कल तक था वह अब नह होगा; अगर ऊजा जगेगी तो हम पूरे बदल जाएं गे--नये क जा त ह गे, नया उठे गा, नया अनुभव होगा, नया सब हो जाएगा। नये होने क तैयारी हो तो पुराने को जरा छोड़ने क ह त करना। और पुराना हम इतने जोर से पकड़े ए है, चार तरफ से कसे ए है, जंजीर क तरह बांधे ए है क वह ऊजा नह उठ पाती। परमा ा क या ा पर जाना न त ही असुर ा क या ा है, इन स ो रटी क । ले कन जीवन के, स दय के सभी फूल असुर ा म ही खलते ह। बाजी पूरी लगानी होगी तो इस या ा के लए दो-चार खास बात आपसे कह ं , और दो-चार गैर-खास बात भी। पहली बात तो यह क कल सुबह जब हम यहां मलगे, और कल इस ऊजा को जगाने क दशा म चलगे, तो म आपसे आशा रखूं क आप अपने भीतर कुछ भी नह छोड़ रखगे जो आपने दांव पर न लगा दया हो। यह कोई छोटा जुआ नह है। यहां जो लगाएगा पूरा, वही पा सकेगा। इं च भर भी बचाया तो चूक सकते ह। क ऐसा नह हो सकता क बीज कहे क थोड़ा सा म बच जाऊं और बाक वृ हो जाए। ऐसा नह हो सकता। बीज मरे गा तो पूरा मरे गा और बचेगा तो पूरा बचेगा। पा शयल डेथ जैसी कोई चीज नह होती, आं शक मृ ु नह होती। तो आपने अगर अपने को थोड़ा भी बचाया तो थ मेहनत हो जाएगी। पूरा ही छोड़ देना। कई बार, थोड़े से बचाव से सब खो जाता है। मने सुना है क कोलरे डो म जब सबसे पहली दफा सोने क खदान मल , तो सारा अमे रका दौड़ पड़ा कोलरे डो क तरफ। खबर आ क जरा सा खेत खरीद लो और सोना मल जाए। लोग ने जमीन खरीद डाल । एक करोड़प त ने अपनी सारी संप लगाकर एक पूरी पहाड़ी ही खरीद ली। बड़े यं लगाए। छोटे -छोटे लोग छोटे -छोटे खेत म सोना खोद रहे थे, तो पहाड़ी खरीदी थी, बड़े यं लाया था, बड़ी खुदाई क , बड़ी खुदाई क । ले कन सोने का कोई पता न चला। फर घबड़ाहट फैलनी शु हो गई। सारा दांव पर लगा दया था। फर वह ब त घबड़ा गया। फर उसने घर के लोग से कहा क यह तो हम मर गए, सारी संप दांव पर लगा दी है और सोने क कोई खबर नह है! फर उसने इ हार नकाला क म पूरी पहाड़ी बेचना चाहता ं मय यं के, खुदाई का सारा सामान साथ है। घर के लोग ने कहा, कौन खरीदेगा? सबम खबर हो गई है क वह पहाड़ बलकुल खाली है, और उसम लाख पए खराब हो गए ह; अब कौन पागल होगा? ले कन उस आदमी ने कहा क कोई न कोई हो भी सकता है। एक खरीददार मल गया। बेचनेवाले को बेचते व भी मन म आ क उससे कह द क पागलपन मत करो; क म मर गया ं । ले कन ह त भी न जुटा पाया कहने क ,

क अगर वह चूक जाए, न खरीदे, तो फर ा होगा? बेच दया। बेचने के बाद कहा क आप भी अजीब पागल मालूम होते ह; हम बरबाद होकर बेच रहे ह! पर उस आदमी ने कहा, जदगी का कोई भरोसा नह ; जहां तक तुमने खोदा है वहां तक सोना न हो, ले कन आगे हो सकता है। और जहां तुमने नह खोदा है, वहां नह होगा, यह तो तुम भी नह कह सकते। उसने कहा, यह तो म भी नह कह सकता। और आ य--कभी-कभी ऐसे आ य घटते ह--पहले दन ही, सफ एक फ ट क गहराई पर सोने क खदान शु हो गई। वह आदमी जसने पहले खरीदी थी पहाड़ी, छाती पीटकर पहले भी रोता रहा और फर बाद म तो और भी ादा छाती पीटकर रोया, क पूरे पहाड़ पर सोना ही सोना था। वह उस आदमी से मलने भी गया। और उसने कहा, देखो भा ! उस आदमी ने कहा, भा नह , तुमने दांव पूरा न लगाया, तुम पूरा खोदने के पहले ही लौट गए। एक फ ट और खोद लेते! हमारी जदगी म ऐसा रोज होता है। न मालूम कतने लोग ह ज म जानता ं क जो खोदते ह परमा ा को, ले कन पूरा नह खोदते, अधूरा खोदते ह; ऊपर-ऊपर खोदते ह और लौटे जाते ह। कई बार तो इं च भर पहले से लौट जाते ह, बस इं च भर का फासला रह जाता है और वे वापस लौटने लगते ह। और कई बार तो मुझे साफ दखाई पड़ता है क यह आदमी वापस लौट चला, यह तो अब करीब प ं चा था, अभी बात घट जाती; यह तो वापस लौट पड़ा! तो अपने भीतर एक बात खयाल म ले ल क आप कुछ भी बचा न रख, अपना पूरा लगा द। और परमा ा को खरीदने चले ह तो हमारे पास लगाने को ादा है भी ा! उसम भी कंजूसी कर जाते ह। कंजूसी नह चलेगी। कम से कम परमा ा के दरवाजे पर कंजूस के लए कोई जगह नह । वहां पूरा ही लगाना पड़ेगा। नह , ऐसा नह है क ब त कुछ है हमारे पास लगाने को। यह सवाल नह है क ा है, सवाल यह है क पूरा लगाया या नह ! क पूरा लगाते ही हम उस ब पर प ं च जाते ह जहां ऊजा का नवास है, और जहां से ऊजा उठनी शु होती है। असल म, पूरे का जोर है? जब हम अपनी पूरी ताकत लगा देते ह, तभी उस ताकत को उठने क ज रत पड़ती है, जो रजवायर है; तब तक उसक ज रत नह पड़ती। जब तक हमारे पास ताकत बची रहती है तब तक उससे ही काम चलता है। तो जो रजव फोसज ह हमारे भीतर, उनक ज रत तो तब पड़ती है जब हमारे पास कोई ताकत नह होती। तब उनक ज रत पड़ती है। तो जब हम पूरी ताकत लगा देते ह तब वह क स य होता है। अब वहां से श लेने क ज रत आ जाती है। अ था नह पड़ती ज रत। अब म आपसे दौड़ने को क ं , आप दौड़। क ं पूरी ताकत से दौड़, आप पूरी ताकत से दौड़। आप समझते ह क पूरी ताकत से दौड़ रहे ह, ले कन आप पूरी ताकत से नह दौड़ रहे। कल आपको कसी से तयो गता करनी है, का टीशन म दौड़ रहे ह, तब आप पाते ह क आपक दौड़ बढ़ गई है। ा आ? यह श कहां से आई? कल तो आप कहते थे, म पूरी ताकत से दौड़ रहा ं । आज त धा म आप ादा दौड़ रहे ह--पूरी ताकत लगा रहे ह। ले कन यह भी पूरी ताकत नह है। कल एक आदमी आपके पीछे बं क लेकर लग गया है। अब आप जतनी ताकत से दौड़ रहे ह यह ताकत से आप कभी भी नह दौड़े थे।

आपको भी पता नह था क इतना म दौड़ सकता ं । यह ताकत कहां से आ गई है? यह भी ताकत आपके भीतर सोई पड़ी थी। ले कन इतने से भी काम नह होगा। जब कोई आदमी बं क लेकर आपके पीछे पड़ता है तब भी आप जतना दौड़ते ह, वह भी पूरा दौड़ना नह है। ान म तो उसने भी ादा दांव पर लगा देना पड़ेगा। जहां तक, जहां तक आपको हो, पूरा लगा देना है। और जस ण आप उस ब पर प ं चगे जहां आपक पूरी ताकत लग गई, उसी ण आप पाएं गे क कोई सरी ताकत से आपका संबंध हो गया; कोई ताकत आपके भीतर से जगनी शु हो गई। न त ही उसके जागने का पूरा अनुभव होगा। जैसे कभी बजली छु ई हो तो अनुभव आ होगा, वैसा ही अनुभव होगा क जैसे भीतर से, नीचे से, यौन-क से कोई श ऊपर क तरफ दौड़नी शु हो गई। गरम उबलती ई आग, ले कन शीतल भी। जैसे कांटे चुभने लगे चार तरफ, ले कन फूल जैसी कोमल भी। और कोई चीज ऊपर जाने लगी। और जब कोई चीज ऊपर जाती है तो ब त कुछ होगा। उस सब म कसी भी ब पर आपको रोकना नह है, अपने को पूरा छोड़ देना है, जो भी हो। जैसे कोई आदमी नदी म बहता है, ऐसा अपने को छोड़ द। नये ज के लए साहस और धैय तो सरी बात--पहला, अपने को पूरा दांव पर लगा देना है-- सरी बात, जब दांव पर लग कर आपके भीतर कुछ होना शु हो जाए, तो आपको पूरी तरह अपने को छोड़ देना है-ज ो टग; अब जहां ले जाए यह धारा, हम जाने को राजी ह। एक सीमा तक हम पुकारना पड़ता है; और जब श जागती है तो फर हम अपने को छोड़ देना पड़ता है। बड़े हाथ ने हम स ाल लया, अब हम चता क ज रत नह है, अब हम बह जाना पड़ेगा। और तीसरी बात: यह जो श का उठना होगा भीतर, इसके साथ ब त कुछ घटनाएं घट जाएं गी तो घबड़ाइएगा नह ; क नये अनुभव घबड़ानेवाले होते ह। ब ा जब मां के पेट से ज ता है तो ब त घबड़ा जाता है। मनोवै ा नक तो कहते ह क वह ामै टक ए पी रएं स है, उससे फर कभी मु ही नह हो पाता। नये क घबड़ाहट ब े म मां के पेट से ज के साथ ही शु हो जाती है। क मां के पेट म वह बलकुल सुर त नया म था नौ महीने तक--न कोई चता, न कोई फ , न ास लेनी, न खाना खाना, न रोना, न गाना, न नया, न कुछ--एकदम व ाम म था। मां के पेट के बाहर नकल कर एकदम नई नया आती है। तो पहला ध ा जीवन का और घबड़ाहट वह से पकड़ जाती है। इस लए सारे लोग नई चीज से डरे रहते ह; पुराने को पकड़ने का मन रहता है, नये से डरे रह ते ह। वह हमारे बचपन का पहला अनुभव है क नये ने बड़ी मु ल म डाल दया; वह अ ा था मां का पेट। इस लए हमने ब त से इं तजाम ऐसे कए ह जो असल म मां के पेट जैसे ही ह--हमारी ग यां, हमारे सोफे, हमारी कार, हमारे कमरे , वे हमने सब मां के गभ क श म ढाले ह। उतने ही आरामदायक बनाने क को शश करते ह, ले कन वह बन नह पाता। मां के पेट से जो पहला अनुभव होता है वह नये क घबड़ाहट का। उससे भी बड़ा नया

अनुभव है यह, क मां के पेट से सफ शरीर के लए नया अनुभव होता है, यहां तो आ ा के तल पर नया अनुभव होगा। इस लए वह बलकुल ही नया ज है। इस लए उस तरह के लोग को हम ा ण कहते थे। ा ण उसे कहते थे जसका सरा ज हो गया-- वाइस बॉन। इस लए उसे ज कहते थे-- बारा जसका ज हो गया। तो जब वह श पूरी तरह उठे गी तो एक सरा ही ज होगा। उस ज म आप दोन ह--मां भी ह और बेटे भी ह; आप अकेले ही दोन ह। इस लए सव क पीड़ा भी होगी और नये क , असुर त क अनुभू त भी होगी। इस लए ब त घबड़ानेवाला, डरानेवाला अनुभव हो सकता है। मां को जैसे सव क पीड़ा होती है, उतनी पीड़ा भी आपको होगी, क यहां मां और बेटे दोन ही आप ह। यहां कोई सरी मां नह है, और यहां कोई सरा बेटा नह है; आपका ही ज हो रहा है और आपसे ही हो रहा है। इस लए सव क ब त ती वेदना भी हो सकती है। अब मुझे कतने ही लोग ने आकर कहा क कोई दहाड़ मारकर रोता है, च ाता है, आप रोकते नह ? रोएगा, च ाएगा। उसे रोने द, च ाने द। उसके भीतर जो हो रहा है, वह वही जानता है। अब एक मां रो रही हो और उसको ब ा पैदा हो रहा हो, और जस ी को कभी ब ा पैदा न आ हो, वह जाकर उसको कहे, फजूल परे शान होती हो? रोती हो? च ाती हो? ब ा हो रहा है तो होने दो, रोने क ा ज रत है? ठीक है, जसको ब ा नह आ वह कह सकती है, बलकुल कह सकती है। पु ष को कभी पता नह चल सकता न क कैसे, ज म ा तकलीफ ी को झेलनी पड़ती होगी! सोच भी नह सकते, कोई उपाय भी नह है क कैसे उसको पकड़, कैसे उसको सोच क ा होता होगा। साधना के अनुभव क गोपनीयता ले कन ान म तो ी और पु ष सब बराबर ह--सब मां बन जाते ह एक अथ म; क नया उनके भीतर ज होगा। तो पीड़ा को भी रोकने क ज रत नह है, रोने को रोकने क ज रत नह है; कोई गर पड़े और लोटने लगे और च ाने लगे, तो रोकने क ज रत नह है। जो जसको हो रहा हो उसे पूरा होने देना है; बह जाना है, उसे रोकना नह है। और भीतर ब त तरह के अनुभव हो सकते ह-- कसी को लग सकता है क जमीन से ऊपर उठ गए ह, कसी को लग सकता है क ब त बड़े हो गए ह, कसी को लग सकता है क ब त छोटे हो गए ह। नये अनुभव ब त तरह के हो सकते ह, म उन सबके नाम नह गनाऊंगा। पर ब त कुछ हो सकता है। कुछ भी नया हो--और हर एक को अलग हो सकता है--तो उसम कोई चता नह लेगा, भयभीत नह होगा। और अगर कसी को कहना भी हो तो मुझे आकर दोपहर म कह देगा। आपस म उसक बात मत क रएगा। न करने का कारण है। कारण यही है क जो आपको हो रहा है, ज री नह है क सरे को भी हो। और जब सरे को नह हो रहा होगा तो या तो वह हं सेगा, वह कहेगा-- ा पागलपन क बात है! मुझे तो ऐसा नह हो रहा है। और हर आदमी के लए खुद ही आदमी मापदं ड होता है। ठीक यानी वह, और गलत यानी सरा। तो वह या तो आप पर हं सेगा। नह हं सेगा

तो ब त अ व ासपूण ढं ग से कहेगा क भई हम तो नह हो रहा है। यह अनुभू त इतनी नजी और वैय क है क इसे सरे से बात न कर तो अ ा है। प त भी प ी से न कहे, क इस मामले म कोई नकट नह है। और इस मामले म कोई एक- सरे को इतनी आसानी से नह समझ सकता। इस संबंध म समझ ब त मु ल है। इस लए कोई भी आपको पागल कह देगा। लोग जीसस को भी पागल कहगे और महावीर को भी पागल कहगे। जस दन महावीर न खड़े हो गए ह गे रा पर, लोग ने पागल कहा होगा। अब महावीर जानते ह क न होने का उनके लए ा मतलब है। वे पागल हो जाएं गे। तो आप कसी और से न कह तो अ ा। फर जैसे ही आप कसी से कुछ कहते ह तो इतनी समझदारी तो नह है क सरा चुप रह जाए, कुछ न कुछ तो कहेगा ही। और वह जो कुछ भी कहेगा, वह आपक अनुभू त म बाधक हो सकता है। उसके सजेशंस काम कर सकते ह। वह आपको कुछ भी कह दे तो नई अनुभू त म बड़ी बाधा पड़ जाती है। इस लए म यह चौथी बात कहना चाहता ं क जो भी आपको हो, उसक आपस म बात कतई नह करनी है। इसी लए म यहां ं क आप मुझसे सीधे आकर बात कर लगे। ान म वेश के पूव सुबह जब हम ान के लए यहां आएं गे, तो कुछ भी ल ड, कुछ भी तरल लेकर आना है, ठोस कोई चीज भोजन म सुबह न ले ल। कोई ना ा न कर, चाय- ध कुछ भी तरल ले ल। जो बना चाय- ध के आ सकते ह , और अ ा। क उतनी ही सरलता से, शी ता से काम हो सकेगा। साढ़े सात बजे आने का मतलब है क पांच मनट पहले यहां आ जाएं । तो साढ़े सात से साढ़े आठ तक तो आपक कुछ भी बात होगी करने क तो कर लगे। इस लए मने यह बात करने का रखा है, क वचन ब त इ सनल है, अवैय क है। उसम कसी से नह बोलना पड़ता, हवाओं से बोलना पड़ता है। तो आप पास बैठगे मेरे, सुबह; र नह बैठगे, पास ही बैठगे। और कुछ भी, आज जो मने कहा है, उस संबंध म, कुछ और पूछना हो तो पूछ लगे। वह घंटे भर सुबह हम बात करगे। फर साढ़े आठ से साढ़े नौ ान पर बैठगे। तो सुबह एक तो कोई ठोस चीज लेकर न आएं । सरा, भूखे आ सक बलकुल तो और अ ा। ले कन जबरद ी भूखे भी न आएं । कसी को न आना अ ा लगता हो तो कुछ लेकर आए। ले कन चाय या ध, ऐसा कुछ लेकर आए। व ढीले से ढीले पहनकर आएं । ान करके तो आना ही है। बना ान कए कोई न आए। ान तो करके आएं ही। और व ढीले से ढीले पहनकर आएं , जतने ढीले व ह , शरीर पर कह बंधे न ह । तो जो भी बांधनेवाले व ह , कम पहन। जतना ढीला व पहन सक उतना अ ा। कमर पर तो कम से कम बांधने का दबाव हो। वह आप ान रखकर आएं । और जब यहां बैठ तो ढीला करके बैठ। शरीर के भीतर हमारे व ने भी ब त उप व कया आ है, ब त तरह क बाधाएं उ ने खड़ी क ई ह। और अगर कोई ऊजा उठनी शु हो तो अनेक तल पर कावट पड़नी शु हो जाती है। मौन का मह

यहां आने के आधा घंटे पहले से ही चुप हो जाएं । कुछ म जो तीन दन मौन रख सक, ब त अ ा है; वे बलकुल ही चुप हो जाएं । और कोई भी चुप होता हो, मौन रखता हो, तो सरे लोग उसे बाधा न द, सहयोगी बन। जतने लोग मौन रह, उतना अ ा। कोई तीन दन पूरा मौन रखे, सबसे बेहतर। उससे बेहतर कुछ भी नह होगा। अगर इतना न कर सकते ह तो कम से कम बोल--इतना कम, जतना ज री हो--टे ली ै फक। जैसे तारघर म टे ली ाम करने जाते ह तो देख लेते ह क अब दस अ र से ादा नह । अब तो आठ से भी ादा नह । तो एक दो अ र और काट देते ह, आठ पर बठा देते ह। तो टे ली ै फक! खयाल रख क एक-एक श क क मत चुकानी पड़ रही है। इस लए एकएक श ब त महं गा है; सच म महं गा है। इस लए कम से कम श का उपयोग कर; जो बलकुल मौन न रह सक वे कम से कम श का उपयोग कर। और इं य का भी कम से कम उपयोग कर। जैसे आंख का कम उपयोग कर, नीचे देख। सागर को देख, आकाश को देख, लोग को कम देख। क हमारे मन म सारे संबंध, एसो सएशंस लोग के चेहर से होते ह--वृ , बादल , समु से नह । वहां देख, वहां से कोई वचार नह उठता। लोग के चेहरे त ाल वचार उठाना शु कर देते ह। नीचे देख, चार फ ट पर नजर रख--चलते, घूमते, फरते। आधी आंख खुली रहे, नाक का अगला ह ा दखाई पड़े, इतना देख। और सर को भी सहयोग द क लोग कम देख, कम सुन। रे डयो, ां ज र सब बंद करके रख द; उनका कोई उपयोग न कर। अखबार बलकुल कपस म मत आने द। जतना ादा से ादा इं य को व ाम द, उतना शुभ है; उतनी श इक ी होगी; और उतनी श ान म लगाई जा सकेगी। अ था हम ए झा हो जाते ह। हम करीब-करीब ए झा ए लोग ह; जो चुक गए ह बलकुल, चली ई कारतूस जैसे हो गए ह। कुछ बचता नह , चौबीस घंटे म सब खच कर डालते ह। रात भर म सोकर थोड़ाब त बचता है, तो सुबह उठकर ही अखबार पढ़ना, रे डयो, और शु हो गया उसे खच करना। कंजरवेशन ऑफ एनज का हम कोई खयाल ही नह है क कतनी श बचाई जा सकती है। और ान म बड़ी श लगानी पड़ेगी। अगर आप बचाएं गे नह तो आप थक जाएं गे। श का संचय ान म सहयोगी कुछ लोग मुझे कहते ह क घंटे भर ान करने के बाद हम थक जाते ह। उसके थकने का कारण ान नह है, उसके थकने का कारण यह है क आप ए झा ाइं ट पर जीते ह, सब खच कए रहते ह। हम खयाल म नह है क जब आप आंख उठाकर भी देखते ह, तब भी श खच होती है; जब आप कान उठाकर सुनते ह, तब भी श खच होती है; जब आप भीतर वचार करते ह, तब भी श खच होती है; जब बोलते ह, तब भी श खच होती है। हम जो भी कर रहे ह उसम श खच हो रही है। रात म इसी लए थोड़ी सी बच जाती है क बाक काम बंद हो गए, इस लए थोड़ी बच जाती है। सपने वगैरह म जतना खच करते ह वह सरी बात, वैसे थोड़ी-ब त बच जाती है। इसी लए सुबह ताजा लगता है। तो श को तीन दन बचाएं , ता क पूरी श लगाई जा सके। दोपहर के--ये सारी

सूचनाएं इस लए दे दे रहा ं ता क फर तीन दन मुझे आपको कोई सूचना न देनी पड़े-दोपहर जो घंटे भर का मौन है, उसम कोई बात नह होगी। बातचीत से आपसे बात करता ं , उस घंटे भर मौन से ही बात क ं गा--तीन से चार। तो तीन बजे सारे लोग यहां उप त हो जाएं । तीन के बाद कोई न आए। क उसका आना फर नुकसान प ं चाता है। यहां म बैठा र ं गा। तीन से चार आप ा करगे? दो काम तीन से चार आप खयाल म रख ल। एक तो सारे लोग ऐसी जगह बैठ जहां से म दखाई पड़ता र ं । देखना नह है मुझ,े ले कन दखाई पड़ता र ं ऐसी जगह बैठ जाएं । फर आंख बंद कर लेनी है। खोलना चाह, खोल रख सकते ह; बंद करना चाह, बंद रख सकते ह। बंद रख, अ ा। मौन संवाद का रह और एक घंटे चुपचाप कसी अनजान ती ा म बैठना है--वे टग फॉर द अननोन। कुछ पता नह क कोई आनेवाला है, ले कन कोई आनेवाला है; कुछ पता नह क कुछ सुनाई पड़ेगा, ले कन कुछ सुनाई पड़ेगा; कुछ पता नह क कोई दखाई पड़ेगा, ले कन कोई दखाई पड़ेगा। ऐसा चुपचाप ज अवे टग! कोई अनजान, अप र चत अ त थ को, जससे कभी मले नह , देखा नह , सुना नह , उसक ती ा म घंटे भर बैठे रह। लेटना हो, लेट जाएं ; बैठना हो, बैठे रह। उस एक घंटे म सफ रसे वटी हो जाएं , आप एक हण करनेवाले, पै सव ह, जो कुछ होगा, आ जाए! बस ले कन अलट होकर ती ा करते रह। उस घंटे भर म जो मौन से मुझे आपसे कहना है वह म कहने क को शश क ं । श से समझ म न आ सके तो शायद नःश म समझ आ जाए। रा को फर घंटे भर कुछ पूछना होगा वह बात हो जाएगी। फर घंटे भर रा हम ान करगे। ऐसा तीन दन म नौ बैठक। और कल सुबह से ही आपको पूरी ताकत लगा देनी है, ता क नौव बैठक तक सच म पूरी ताकत लग जाए। बाक समय म आप ा करगे? मौन रहना है, बात नह करनी, तो बड़ा उप व तो कट जाता है। समु का तट है, उसके पास जाकर लेट जाएं , लहर को सुन। और रात भी अ ा होगा क जो लोग भी सो सक, चुपचाप अपने ब र को लेकर समु -तट चले जाएं ; वहां सो जाएं । सागर के पास सोएं ; रे त म सो जाएं ; वृ म सो जाएं । अकेले रह, म और मंड लयां न बनाएं । नह तो यहां भी मंड लयां बन जाएं गी, दो-चार लोग इक े घूमने लगगे, दो-चार म बन जाएं गे। अलग रह, अकेले रह; आप अकेले ह तीन दन यहां; क परमा ा से मलना हो तो कोई साथ नह जा सकता, बलकुल अकेले ही, लोनली। आपको अकेले ही जाना पड़े। तो अकेले रह-- ादा से ादा अकेले। ीकार से शां त और ान रख, अं तम सूचना: कसी तरह क शकायत न कर। तीन दन शकायत छोड़ द। खाना ठीक न मले, न मले; रात म र काट जाएं , काट जाएं । तीन दन जो भी हो, उसक टोटल ए े ब लटी। म र को तो थोड़ा-ब त फायदा होगा, आपको ब त हो सकता है। भोजन थोड़ा अ ा नह मलेगा तो थोड़ा-ब त नुकसान शरीर को होगा, ले कन आपको उसक शकायत से ब त नुकसान हो सकता है। उसके कारण ह। क

शकायत करनेवाला मन शांत नह हो पाता। शकायत ब त छोटी होती ह, जो हम गवां देते ह वह ब त ादा होता है। शकायत ही मत कर; तीन दन के लए मन म साफ कर ल क कोई शकायत नह --जो है, वह है; जैसा है, वैसा है। उसे बलकुल ीकार कर ल। ये तीन दन अदभुत हो जाएं गे। अगर तीन दन शकायत के बाहर रहे आप और सब ीकार कर लया जैसा है, और उसम ही आनं दत ए, तो आप तीन दन के बाद कभी शकायत न कर सकगे। क आपको पता चलेगा क बना शकायत के कैसी शां त, कैसा आनंद! तीन दन सब छोड़ द! और फर जो भी पूछना हो, वह आप कल सुबह से पूछगे। ान रखगे पूछते समय क सबके काम क बात हो, ऐसी कोई बात पूछगे। और जो भी दय म हो, मन म हो और ज री लगे, वह पूछ ले सकते ह। खाली झोली पसार म कस लए आया ं , वह मने आपसे कहा। मुझे पता नह , आप कस लए आए ह। ले कन कल सुबह म इसी आशा से आपको मलूंगा क जस लए म आया ं , उस लए आप भी आए ह। वैसे हमारी आदत बगड़ गई ह, अगर बु भी हमारे ार पर खड़े ह तो हमारा मन होता है क आगे जाओ! हम सोचते ह, सभी मांगने आते ह। इस लए हम भूल जाते ह, जब कोई देने आता है तो हम उससे भी कहते ह, आगे जाओ! और तब बड़ी भूल हो जाती है, बड़ी भूल हो जाती है। ऐसी भूल नह होगी, ऐसी आशा करता ं । तीन दन म यहां क पूरी हवा को ऐसा कर क कुछ हो सके। हो सकता है। और ेक पर नभर है यहां क हवा, यहां के वातावरण को बनाना। तीन दन म यह पूरा का पूरा स -वन चा हो सकता है--ब त अनजानी श य से, अनजानी ऊजाओं से। ये सारे वृ , ये सारे रे त के कण, ये हवाएं , यह सागर--यह सब का सब एक नई ाण-ऊजा से भर सकता है; हम सब उसे पैदा करने म सहयोगी हो सकते ह। कोई उसम बाधा न बने, यह ान रखे। कोई दशक न रहे यहां। कोई दशक क तरह बैठा न रहे। और कसी तरह का संकोच, भय, कोई ा कहेगा, कोई ा सोचेगा, सब छोड़ द! तो ही उस तक प ं चना हो सकता है। कबीर क तरह आपको न कहना पड़े। आप कह सक क नह , हम डरे नह और कूद गए। मेरी बात इतनी शां त और ेम से सुन , उससे अनुगृहीत ं । और आप सबके भीतर बैठे परमा ा को णाम करता ं , मेरे णाम ीकार कर। हमारी रात क बैठक पूरी ई।

#2 बुंद समानी समुंद म मेरे य आ न्! ऊजा का व ार है जगत और ऊजा का सघन हो जाना ही जीवन है। जो हम पदाथ क भां त दखाई पड़ता है, जो प र क भां त भी दखाई पड़ता है, वह भी ऊजा, श है। जो हम जीवन क भां त दखाई पड़ता है, जो वचार क भां त अनुभव होता है, जो चेतना क भां त तीत होता है, वह भी उसी ऊजा, उसी श का पांतरण है। सारा जगत--चाहे सागर क लहर, और चाहे स के वृ , और चाहे रे त के कण, और चाहे आकाश के तारे , और चाहे हमारे भीतर जो है वह, वह सब एक ही श का अनंत-अनंत प म गटन है। ऊजामय वराट जीवन हम कहां शु होते ह और कहां समा होते ह, कहना मु ल है। हमारा शरीर भी कहां समा होता है, यह भी कहना मु ल है। जस शरीर को हम अपनी सीमा मान लेते ह, वह भी हमारे शरीर क सीमा नह है। दस करोड़ मील र सूरज है, अगर ठं डा हो जाए, तो हम यहां अभी ठं डे हो जाएं गे। इसका मतलब यह आ क हमारे होने म सूरज पूरे समय मौजूद है, और हमारे शरीर का ह ा है; सूरज ठं डा आ क हम ठं डे ए; सूरज क गम हमारे शरीर क गम है। चार तरफ फैली ई हवाओं का सागर है, वहां से ाण हम उपल होता है। वह न उपल हो, हम अभी मृत हो जाएं । तो जो ास हम ले रहे ह, वह ास हम भीतर से भी जोड़े है, हम बाहर से भी जोड़े है। कहां हमारे शरीर का अंत है? य द पूरी खोज कर तो पूरा जगत ही हमारा शरीर है। अनंत, असीम हमारा शरीर है। और ठीक से खोज कर तो सब जगह हमारे जीवन का क है, और सब जगह व ार है। ले कन इसक ती त और इसके अनुभव के लए हम यं भी अ ंत जीवंत ऊजा, ल वग एनज बन जाना ज री है। बुंद समानी समुंद म जसे म ान कह रहा ं , वह हमारे भीतर ठहर गई, अव हो गई धाराओं को सब भां त मु कर देने का नाम है। जब आप ान म व ह गे, तो आपके भीतर जो ऊजा छपी है, जो एनज छपी है, वह इतने जोर से जागे क बाहर क ऊजा से उसका संबंध ा पत हो जाए। और जैसे ही बाहर क श य से उसका संबंध ा पत होता है, वैसे ही हम एक छोटे से प े रह जाते ह अनंत हवाओं म कंपते ए; हमारा अपना होना खो जाता है; हम वराट के साथ एक हो जाते ह। उस वराट के साथ एक होने पर ा जाना जाता है, अब तक मनु ने कहने क ब त

को शश क है, ले कन नह कहा जा सका। कबीर कहते ह, म खोजने गया था। खोजा ब त, खोजते-खोजते म खुद ही खो गया। और मला वह ज र, ले कन तब मला जब म खो गया। और इस लए अब कौन बताए क ा मला? कैसे बताए? पहली बार जब कबीर को अनुभू त ई तो उ ने जो कहा था, फर पीछे उसे बदल दया। पहली बार जब उ अनुभव आ तो उ ने कहा, ऐसा लगा क जैसे बूंद सागर म गर गई है। उनके वचन ह: हेरत-हेरत हे सखी, र ा कबीर हराई। बुंद समानी समुंद म, सो कत हेरी जाई।। खोजते-खोजते कबीर खो गया, बूंद सागर म गर गई, अब उसे कैसे वापस लौटाएं ? समुंद समाना बुंद म ले कन फर बाद म उ ने बदल दया। और बदलाहट बड़ी मू वान है। बाद म उ ने कहा क नह -नह , कुछ गलती हो गई; बूंद समु म नह गरी, समु ही बूंद म गर गया। और बूंद समु म गरी हो तो वापस भी लौटा ले कोई, ले कन अगर समु ही बूंद म गरा हो तब तो बड़ी क ठनाई है। और बूंद अगर समु म गरे तो बूंद कुछ बता भी सके, ले कन अगर बूंद म ही समु गरे तब तो ब त क ठनाई है। तो बाद म उ ने कहा: हेरत-हेरत हे सखी, र ा कबीर हराई। समुंद समाना बुंद म, सो कत हेरी जाई।। भूल हो गई थी पहली दफा क कहा क बूंद गर गई सागर म। ऊजा के सागर से मलन और जब हम ऊजा के ंदन मा रह जाते ह, तब ऐसा नह होता क हम सागर म गरते ह; जब हम कंपते ए जीवंत ंदन मा रह जाते ह, तो अनंत ऊजा का सागर हमम गर पड़ता है। न त ही, फर कहना मु ल है क ा होता है। ले कन इसका यह अथ नह क जो होता है वह हम पता नह चलता। ान रहे, कहने और पता चलने म सदा सामंज नह है। जो हम जान पाते ह, वह कह नह पाते। जानने क मता असीम है और श क मता ब त सी मत है। बड़े अनुभव र, छोटे अनुभव भी हम नह कह पाते। अगर मेरे सर म दद है, तो वह भी म नह कह पाता। और अगर मेरे दय म ेम क पीड़ा है, तो वह भी नह कह पाता ं । पर ये तो बड़े छोटे अनुभव ह। और जब परमा ा हम पर गर पड़ता है, तब जो होता है उसे तो कहना बलकुल ही क ठन है। ले कन जान हम ज र पाते ह। पर उस जानने के लए हम सब भां त श का एक ंदन मा रह जाना ज री है। जैसे एक आंधी, एक तूफान, ऐसा श का एक उबलता आ झरना भर हम हो जाएं । हम इतने जोर से ं दत ह --हमारा रोआं-रोआं, दय क धड़कन-धड़कन, ास- ास उसक ास, उसक ाथना, उसक ती ा से इस भां त भर जाए क हम ास ही रह जाएं , ती ा ही रह जाएं ; हमारा होना ही मट जाए। उस ण म ही उससे मलन है। और वह मलन कह बाहर घ टत नह होता। जैसा मने रात कहा, वह मलन हमारे भीतर ही घ टत होता है। हमारे भीतर ही सोए ए क ह। हमारे सोए क से ही श उठे गी और ऊपर फैल जाएगी।

एक बीज पड़ा है। फर एक फूल खलता है। फूल और बीज को जोड़ने के लए वृ को तना बनाना पड़ता है, शाखाएं फैलानी पड़ती ह। फूल छपा था बीज म ही, कह बाहर से नह आता। ले कन कट होने के लए बीज और फूल तक के बीच म जोड़नेवाला एक तना चा हए। वह तना भी बीज से नकलेगा, वह फूल भी बीज से नकलेगा। हमारे भीतर भी बीज-ऊजा, सीड-फोस पड़ी ई है। उठे गी। तने क ज रत है। वह तना भी हमारे भीतर उपल है। जसे हम रीढ़ क तरह जानते ह बाहर से, ठीक उसके नकट ही वह या ा-पथ है जहां से बीज-ऊजा उठे गी और फूल तक प ं च जाएगी। वह फूल ब त नाम से पुकारा गया है। हजार पंखु ड़य वाले कमल क तरह ज उसका अनुभव आ है, उ ने कहा है, हजार पंखु ड़य वाले कमल क तरह। जैसे हजार पंखु ड़य वाला कमल खल जाए, ऐसा हमारे म म कुछ खलता है, कुछ ावर होता है। ले कन उसके खलने के लए नीचे से श का ऊपर तक प ं च जाना ज री है। श जागरण का साहसपूवक ीकार और जब यह श ऊपर क तरफ उठना शु होगी, तो जैसे भूकंप आ जाएगा, जैसे अथ ेक हो गया हो, ऐसा पूरा कंप उठे गा। उस कंपन को रोकना नह है, उस कंपन म सहयोगी होना है, कोआपरे ट करना है। साधारणतः हम रोकना चाहगे। अब मुझे कई लोग आकर कहते ह क डर लगता है क पता नह ा हो जाए! अगर डरगे तो ग त न हो पाएगी। भय से ादा अधा मक और कोई वृ नह है। भय से बड़ा और कोई पाप नह है। फयर जो है, शायद वह सबसे गहरा है। नीचे रखने म हम, सबसे बड़ा प र वही है। और भय बड़े अजीब ह, और बड़े ु ह। कोई मुझे आकर कहता है क ऐसा लगता है पास-पड़ोस के बैठे लोग ा कहगे क यह मुझे ा हो रहा है! पास-पड़ोस के लोग का भय हम परमा ा से रोक ले सकता है। श और स मनु ने पूरी तरह हं सना बंद कर दया, पूरी तरह रोना बंद कर दया; ऐसी कोई वृ , ऐसा कोई भाव नह जसम वह पूरा डूबे। वह हर चीज के बाहर खड़ा रह जाता है। शंकु क तरह लटका रह जाता है। हं सते ह तो हम डरे ए, रोते ह तो हम डरे ए। पु ष ने तो जैसे रोना छोड़ ही दया। उनको खयाल ही नह है क रोना भी कुछ आयाम है, वह भी कोई दशा है। हमारे खयाल म नह है क जो नह रो सकता, उस म कुछ बु नयादी कमी हो गई; उस का कोई एक ह ा सदा के लए कुं ठत हो गया; और वह ह ा सदा प र के बोझ क तरह उसके ऊपर अटका रहेगा। ज ऊजा के जगत म वेश करना है, उस सु ीम एनज क या ा करनी है, उ सब भय छोड़ देने पड़गे। और सरल होकर, अगर शरीर कंपता हो, कं पत होता हो, गरता हो, नाचने लगता हो. आंत रक पांतरण क ानया: योग व ा का ोत यह जानकर आपको आ य होगा, ले कन जान लेना ज री है क जतने भी योगासन ह, वे सब ान क तय म आक क प से ही उपल ए ह। उ कसी ने बैठकर, सोचकर न मत नह कया। उ कसी ने बैठकर तैयार नह कया है। वह तो ान क त म शरीर ने वैसी तयां ले ली ह और तब पता चला क ये तयां ह। और तब धीरे -धीरे एसो सएशन भी पता चला क जब मन एक दशा म जाता है तो शरीर

इस दशा म चला जाता है। तब फर यह खयाल म आ गया क अगर शरीर को इस दशा म ले जाया जाए तो मन उस दशा म चला जाएगा। जैसे हम पता है क अगर भीतर रोना भर जाए तो आंख से आंसू आ जाते ह। अगर आंख से आंसू आ जाएं तो भीतर रोना भर जाएगा। ये एक ही चीज के दो छोर हो गए। जैसे हम ोध आता है तो कसी के सर के ऊपर हमारा हाथ उसे मारने को उठ जाता है। जैसे हम ोध आता है तो मु यां बंध जाती ह; जैसे हम ोध आता है तो दांत भच जाते ह; जैसे हम ोध आता है तो आंख लाल हो जाती ह। और जब ेम आता है तब तो मु यां नह भचत , तब तो दांत नह भचते, तब तो आंख लाल नह हो जात । जब ेम आता है तो कुछ और होता है--अगर मु यां भची भी ह तो खुल जाती ह, अगर दांत भचे भी ह तो खुल जाते ह, अगर आंख लाल भी हो तो शांत हो जाती है। ेम क अपनी व ा है। ऐसे ही ान क ेक त म भी शरीर क अपनी व ा है। इसको ऐसा समझ क अगर शरीर क उस व ा म आपने बाधा डाली तो भीतर च क व ा म बाधा पड़ जाएगी। जैसे अगर कोई आपसे कहे क ोध क रए, ले कन आंख लाल न ह ; ोध क रए, ले कन मु ी न भचे; ोध क रए, ले कन दांत न भच। तो आप ोध न कर पाएं गे; क शरीर का यह जो आनुषां गक ह ा है, इसके बना आप कैसे ोध कर पाएं गे? अगर कोई कहे क सफ ोध क रए, और शरीर पर कोई प रणाम न हो, तो आप ोध न कर पाएं गे। अगर कोई कहे क सफ ेम क रए, ले कन आपक आंख से अमृत न बरसे, और आपके हाथ म ेम क लहर न दौड़, और आपका दय न धड़कने लगे, और आपक ास और तरह से न चलने लगे--आप सफ ेम क रए, शरीर पर कुछ कट मत होने दी जए; तो आप कहगे, ब त मु ल है, यह नह हो सकता। योगासन का ज तो जब ान क तय म शरीर वशेष- वशेष प से मुड़ने लगे, घूमने लगे, तब अगर आप उसे रोकते ह , तो भीतर क त को भी आप पंगु कर दगे। वह त फर आगे नह बढ़ेगी। जतने योगासन ह वे सब ान क तय म ही उपल ए; मु ाओं का ब त व ार आ। अनेक कार क .आपने बु क मू तयां देखी ह गी ब त मु ाओं म। वे मु ाएं भी मन क क वशेष अव ाओं म पैदा । फर तो मु ाओं का एक शा बन गया। फर तो बाहर से देखकर कहा जा सकता है, अगर आप झूठ न कर रहे ह और ान म सीधे बह जाएं , तो आपक जो मु ा बनेगी उसे देखकर भी बाहर से कहा जा सकता है क भीतर आपके ा हो रहा है। उसको भी रोक नह लेना है। नृ का ज ान म मेरी अपनी समझ म तो नृ भी पहली बार ान म ही ज ा है। मेरी समझ म तो जीवन म जो भी मह पूण है उसके कह मूल ोत ान से संबं धत ह। मीरा कह नाचना सीखने नह गई। और लोग सोचते ह गे क मीरा ने नाच-नाचकर भगवान को पा लया, तो गलत सोचते ह। मीरा ने भगवान को पा लया इस लए नाच उठी। बात बलकुल सरी

है। नाच-नाचकर कोई भगवान को नह पाता। ले कन कोई भगवान को पा ले तो नाच सकता है। और जब समु गरे बूंद म, और बूंद नाचने न लगे तो ा करे ? और जब कसी भखारी के ार पर अनंत खजाना टूट पड़े, और भखारी न नाचे तो ा करे ? ान से द मत का वसजन ले कन स ता ने मनु को ऐसा जकड़ा है क वह नाच भी नह सकता। मेरी समझ म, नया को अगर वापस धा मक बनाना हो तो हम जीवन क सहजता को वापस लौटाना पड़े। तो यह हो सकता है क जब ान क ऊजा जगे आपके भीतर तो सारे ाण नाचने लग, उस व आप शरीर को मत रोक लेना। अ था बात वह ठहर जाएगी, क जाएगी; और कुछ होनेवाला था, वह नह हो पाएगा। ले कन हम बड़े डरे ए लोग ह। हम कहगे क अगर म नाचने लगू,ं मेरी प ी पास बैठी है, मेरा बेटा पास बैठा है, वे ा सोचगे, क पता जी और नाचते ह! अगर म नाचने लगूं तो प त पास बैठे ह, वे ा सोचगे, क मेरी प ी पागल तो नह हो गई! अगर ये भय रहे तो उस भीतर क या ा पर ग त नह हो पाएगी। और शरीर क मु ाओं, आसन के साथ-साथ और ब त कुछ भी कट होता है। एक बड़े वचारक ह। न मालूम कतने सं ासी, साधुओ,ं आ म , न मालूम कहां-कहां गए। इधर कोई छह महीने पहले मेरे पास आए। तो उ ने कहा, सब समझ म आता है, ले कन मुझे कुछ होता नह । फर, मने उनसे कहा, आप होने न देते ह गे। वे कुछ वचार म पड़ गए। उ ने कहा, यह मेरे खयाल म नह आया। शायद आप ठीक कहते ह। ले कन, एक बार आपके ान म आया था, वहां मने कसी को रोते देखा, तो म तो ब त स लकर बैठ गया क कह भूल-चूक से ऐसा मुझे न हो जाए, अ था लोग ा कहगे! लोग से योजन ा है? ये लोग कौन ह जो सबके पीछे पड़े ए ह? और लोग, जब मरगे तो बचाने न आएं गे; और लोग, जब आप ख म ह गे तो ख छीनने न आएं गे; और लोग, जब आप भटकगे अंधेरे म तो दीया न जलाएं गे। ले कन जब आपका दीया जलने को हो, तब अचानक लोग आपको रोक लगे। ये लोग कौन ह? कौन आपको रोकने आता है? आप ही अपने भय को लोग बना लेते ह; आप ही अपने भय को फैला लेते ह चार तरफ। वे मुझसे कहने लगे, हो सकता है; म तो डर गया जब मने कसी को रोते देखा और म स लकर बैठ गया क कह कुछ ऐसा मुझसे न हो जाए। मने उनसे कहा, आप एक महीने एकांत म चले जाएं ; और जो होता हो होने द। उ ने कहा, ा मतलब? मने कहा क अगर गा लयां बकने का मन होता हो तो बक; च ाने का मन होता हो तो च ाएं ; रोने का होता हो, रोएं ; नाचने का होता हो, नाच; दौड़ने का होता हो, दौड़; पागल होने का मन होता हो तो महीने भर के लए पागल हो जाएं । उ ने कहा, म न जा सकूंगा। मने कहा, ? उ ने कहा क आप जैसा कहते ह, मुझे कई बार डर लगता है क अगर म अपने को बलकुल छोड़ ं जैसा सहज आप कहते

ह, तो ठीक है क मुझम पागलपन कट हो जाएगा। तो मने उनसे कहा, आप दबाए रहगे, इससे कुछ फक तो नह पड़ता। कट होगा तो नकल जाएगा, दबा रहेगा तो सदा आपके साथ रह जाएगा। हम सबने ब त कुछ स ेस कया है, दबाया है। न हम रोए ह, न हम हं से ह, न हम नाचे ह, न हम खेले ह, न हम दौड़े ह। हमने सब दबा लया है; हमने अपने भीतर सब तरफ से ार बंद कर लए ह। और हर ार पर हम पहरे दार होकर बैठ गए ह। अब अगर हम परमा ा से मलने जाना हो तो ये दरवाजे खोलने पड़गे। तो डर लगेगा, क जो-जो हमने रोका है वह कट हो सकता है। अगर आपने रोना रोका है तो रोना बहेगा; हं सना रोका है, हं सना बहेगा। उस सबको बह जाने द, उस सबको नकल जाने द। यहां तो हम आए ही इस लए इस एकांत म ह क यहां लोग का भय न हो। और स के वृ , बलकुल ही उनका संकोच न कर, वे आपसे कुछ भी न कहगे, ब वे बड़े स ह गे। और सागर क लहर भी आपसे कुछ न कहगी। वे कसी से भयभीत नह ह। जब उ शोर करना होता है, वे शोर करती ह; जब उ सो जाना होता है, वे सो जाती ह। और आपके नीचे पड़े ए रे त के कण भी कुछ न कहगे। यहां कोई कुछ न कहेगा। ऊजा के साथ सहयोग करो आप अपने को पूरी तरह छोड़ द और जो आपके भीतर होता है उसे होने द--नाचना हो नाच, च ाना हो च ाएं , दौड़ना हो दौड़, गरना हो गर--छोड़ द सब भां त। और जब आप सब भां त छोड़गे तब आप अचानक पाएं गे क आपके भीतर वतुल बनाती ई कोई ऊजा उठने लगी; कोई श आपके भीतर जगने लगी; सब तरफ ार टूटने लगे। उस व भय मत करना। उस व सम प से उस आंदोलन म, उस मूवमट म, जो आपके भीतर पैदा होगा, वह जो श आपके भीतर वतुल बनाकर घूमने लगेगी, उसके साथ एक हो जाना, अपने को उसम छोड़ देना। तो घटना घट सकती है। घटना घटना ब त आसान है। ले कन हम अपने को छोड़ने को तैयार नह होते। और कैसी छोटी चीज हम रोकती ह, जस दन आप कह प ं चगे उस दन पीछे लौटकर ब त हं सगे क कैसी चीज ने मुझे रोका था! रोकनेवाली बड़ी चीज होत तो ठीक था, रोकनेवाली ब त छोटी चीज ह। कुछ पूछना हो, कुछ बात करनी हो, तो थोड़ी देर हम बात कर ल, और फर ान के लए बैठ। कुछ भी पूछना हो तो पूछ। जीना ही जीवन का उ े है : ओशो, आपने कल बताया था क जीवन म उ े होना चा हए। कृ त म सब कुछ न योजन है , न े है । तो फर हम ही उ े या योजन लेकर चल?



त ही! वे म पूछते ह क कृ त म सभी न े

है, तो हम ही

उ े

लेकर

चल? अगर सब उ े छोड़ सको तो इससे बड़ा कोई उ े नह हो सकता। अगर कृ त जैसे हो सको तो सब हो गया। ले कन आदमी अ ाकृ तक हो गया है, इस लए वापस लौटने के लए, उसे कृ त तक जाने के लए भी उ े बनाना पड़ता है। यह भा है। वही तो म कह रहा ं क सब छोड़ दो। ले कन अभी तो हमने इतना पकड़ लया है क छोड़ना भी हम एक उ े ही होगा। वह भी हम छोड़ना पड़ेगा। हमने इतने जोर से पकड़ा है क हम छोड़ने म भी मेहनत करनी पड़ेगी। हालां क छोड़ने म कोई मेहनत क ज रत नह है। छोड़ने म ा मेहनत करनी होगी! यह ठीक है क कह कोई उ े नह है। नह है ले कन? नह होने का कारण यह नह है क न े है कृ त; नह होने का कारण यह है क जो है, उसके बाहर कोई उ े नह है। एक फूल खला। वह कसी के लए नह खला है; और कसी बाजार म बकने के लए भी नह खला है; राह से कोई गुजरे और उसक सुगंध ले, इस लए भी नह खला है; कोई गो मेडल उसे मले, कोई महावीर च मले, कोई प ी मले, इस लए भी नह खला है। फूल बस खला है, क खलना आनंद है; खलना ही खलने का उ े है। इस लए ऐसा भी कह सकते ह क फूल न े खला है। और जब कोई न े खलेगा तभी पूरा खल सकता है, क जहां उ े है भीतर वहां थोड़ा अटकाव हो जाएगा। अगर फूल इस लए खला है क कोई नकले, उसके लए खला है, तो अगर वह आदमी अभी रा े से नह नकल रहा तो फूल अभी बंद रहेगा; जब वह आदमी आएगा तब खलेगा। ले कन जो फूल ब त देर बंद रहेगा, हो सकता है उस आदमी के पास आ जाने पर भी खल न पाए, क न खलने क आदत मजबूत हो जाएगी। नह , फूल इसी लए पूरा खल पाता है क कोई उ े नह है। ठीक ऐसा ही आदमी भी होना चा हए। ले कन आदमी के साथ क ठनाई यह है क वह सहज नह रहा है, वह असहज हो गया है। उसे सहज तक वापस लौटना है। और यह लौटना फर एक उ े ही होगा। तो म जब उ े क बात करता ं तो वह उसी अथ म जैसे पैर म कांटा लग गया हो, और सरे कांटे से उसे नकालना पड़े। अब कोई आकर कहे क मुझे कांटा लगा ही नह है तो म कांटे को नकालू?ं उससे म क ं गा, नकालने का सवाल ही नह है, तुम पूछने ही आए हो? कांटा नह लगा है, तब बात ही नह है। ले कन कांटा लगा है, तो फर सरे कांटे से नकालना पड़ेगा। वह म यह भी कह सकता है क एक कांटा तो वैसे ही मुझे परे शान कर रहा है, अब आप सरा कांटा और पैर म डालने को कहते हो! पहला कांटा परे शान कर रहा है, ले कन एक कांटे को सरे कांटे से ही नकालना पड़ेगा। हां, एक बात ान रखनी ज री है क सरे कांटे को घाव म वापस मत रख लेना- क इस कांटे ने बड़ी कृपा क , एक कांटे को नकाला; तो अब इस कांटे को हम अपने पैर म रख ल। तब नुकसान हो जाएगा। जब कांटा नकल जाए तो दोन कांटे फक देना। जब हमारा जो हमने अ ाकृ तक जीवन बना लया है, जब वह सहज हो जाए, तो

अ ाकृ तक को भी फक देना और सहज को भी फक देना; क जब सहज पूरा होना हो, तो सहज होने का खयाल भी बाधा देता है। फर तो जो होगा, होगा। नह , म नह कहता ं क उ े चा हए। इस लए कहना पड़ता है उ े क आपने उ े पकड़ रखे ह, कांटे लगा रखे ह, अब उन कांट को कांट से ही नकालना पड़ेगा। जड़ और चेतन : ओशो, मन, बु , च और अहं कार, ये पृथक-पृथक व ुएं ह, ए ाइटीज ह, या एक चीज है ? और आ ा इनसे भ है या इनके समूह को ही आ ा कहा जाता है ? और इनम से जड़ कौन सी चीज है और चेतन कौन सी चीज है ? और उनका व श ान कौन सा है शरीर म?

म पूछते ह क मन, बु , च और अहं कार, ये अलग-अलग ह, अलग-अलग ए ाइटीज ह, अलग-अलग व ुएं ह या एक ही ह? और वे यह भी पूछते ह क ये आ ा से अलग ह या आ ा के साथ ही एक ह? और वे यह भी पूछते ह क ये जड़ ह या चेतन ह, या ा जड़ है और ा चेतन है? और उनका व श ान कौन सा है शरीर म? पहली बात तो यह, इस जगत म जड़ और चेतन जैसी दो व ुएं नह ह। जसे हम जड़ कहते ह, वह सोया आ चेतन है; और जसे हम चेतन कहते ह, वह जागा आ जड़ है। असल म जड़ और चेतन जैसे दो पृथक अ नह ह, अ तो एक का ही है। उस एक का नाम ही परमा ा है, है--कोई और नाम द--और वह एक ही, जब सोया आ है तब जड़ मालूम होता है, और जब जागा आ है तब चेतन मालूम होता है। इस लए जड़ और चेतन के ऐसे दो भेद करके न चल; कामचलाऊ श ह, ले कन ऐसी कोई दो चीज नह ह। व ान भी इस नतीजे पर प ं च गया है क जड़ जैसी कोई चीज नह है, मैटर जैसी कोई चीज नह है। पदाथ और परमा ा यह बड़े मजे क बात है क आज से पचास-साठ साल पहले नी शे ने यह घोषणा क क ई र मर गया है। और पचास साल बाद व ान को यह घोषणा करनी पड़ी क ई र मरा हो या न मरा हो, ले कन मैटर ज र मर गया है, पदाथ अब नह है। क जैस-े जैसे पदाथ के भीतर व ान उतरा तो पाया क पदाथ के गहरे उतरो, गहरे उतरो--पदाथ खो जाता है और सफ एनज , ऊजा रह जाती है। अणु के व ोट पर जो बचता है--परमाणु, वह सफ ऊजा-कण है। परमाणु के व ोट पर जो इले ांस, पा ज ांस और ू ांस बचते ह, वे केवल व ुत-कण ह। उ कण कहना भी ठीक नह , क कण से पदाथ का बोध होता है। इस लए अं ेजी म एक नया श ही खोजना पड़ा है-- ांटा। ांटा का मतलब ही कुछ और होता है। ांटा का मतलब होता है जो दोन है--कण भी और लहर भी--एक साथ। समझना ही मु ल पड़ जाता है क कोई चीज कण और लहर एक साथ कैसे होगी? वह दोन एक साथ है। ये दोन उसके बहे वयर ह। वह कभी कण क तरह दखाई पड़ती है और कभी लहर क तरह। अब

लहर यानी ऊजा और कण यानी पदाथ। और वह दोन एक ही है। व ान गहरे गया तो उसने पाया क सफ ऊजा है, एनज है। और अ ा गहरे गया तो उसने पाया क सफ आ ा है। और आ ा एनज है, आ ा ऊजा है। इस लए ब त शी , ब त ज ी वह सथी सस, वह सम य उपल हो जाएगा जहां व ान और धम के बीच फासला तोड़ देना पड़ेगा। जब पदाथ और परमा ा के बीच का फासला झूठा स आ, तो कतने दन लगगे क व ान और धम के बीच के फासले को हम बचा सक? अगर जड़ और चेतन दो नह ह, तो धम और व ान भी दो नह रह सकते। वे उसी भेद पर दो थे। अ अ त ै है मेरी म, दो का अ नह है, एक ही है। तब फर यह सवाल नह उठता क कौन जड़ है, कौन चेतन है। अगर आपको जड़ क भाषा पसंद है तो आप क हए, सब जड़ है; अगर आपको चेतन क भाषा पसंद है तो क हए, सब चेतन है। ले कन मुझे चेतन क भाषा पसंद है। और पसंद है? क भाषा सदा ऊपर क चुननी चा हए, जसम संभावना ादा हो; नीचे क नह चुननी चा हए, उसम संभावना कम हो जाती है। जैसे क हम यह कह सकते ह क वृ ह ही नह , बस बीज ह। गलत नह है यह बात, क वृ सफ बीज का ही पांतरण है। हम कह सकते ह: बीज ही ह, वृ नह ह। ले कन खतरा है इसम। इसम खतरा यह है क कुछ बीज कह, जब बीज ही ह तो हम वृ बन? वे बीज ही रह जाएं । नह , ादा अ ा होगा क हम कह: वृ ही ह, बीज नह ह। तब बीज को वृ बनने क संभावना खुल जाती है। चेतन क भाषा मुझे पसंद है, वह इस लए क जो अभी सोया आ है वह जाग सके, वह संभावना का ार खोलती है। पदाथवादी और अ ा वादी म एक समानता है क वे एक को ही ीकार करते ह। असमानता एक है क पदाथवादी ब त ाथ मक चीज को मान लेता है, और इस लए अं तम से क सकता है। अ ा वादी अं तम को ीकार करता है, इस लए पहला तो उसम आ ही जाता है, वह कह जाता नह । मुझे अ ा क भाषा ी तकर है, और इस लए कहता ं क सब चेतन है--सोया आ चेतन जड़ है; जागा आ चेतन चेतन है। सम चेतना है। मन के व वध प: बु , च , अहं कार सरी बात उ ने पूछी है क मन, बु , च , अहं कार--ये ा अलग-अलग ह? ये अलग-अलग नह ह, ये मन के ही ब त चेहरे ह। जैसे कोई हमसे पूछे क बाप अलग है, बेटा अलग है, प त अलग है? तो हम कह क नह , वह आदमी तो एक ही है। ले कन कसी के सामने वह बाप है, और कसी के सामने वह बेटा है, और कसी के सामने वह प त है; और कसी के सामने म है और कसी के सामने श ु है; और कसी के सामने सुंदर है और कसी के सामने असुंदर है; और कसी के सामने मा लक है और कसी के सामने नौकर है। वह आदमी एक है। और अगर हम उस घर म न गए ह , और हम कभी कोई आकर खबर दे क आज मा लक मल गया था, और कभी कोई आकर खबर दे क आज नौकर मल गया था, और कभी कोई आकर कहे क आज पता से मुलाकात ई थी, और कभी कोई आकर कहे क आज प त घर म बैठा आ था, तो हम शायद सोच क ब त

लोग इस घर म रहते ह--कोई मा लक, कोई पता, कोई प त। हमारा मन ब त तरह से वहार करता है। हमारा मन जब अकड़ जाता है और कहता है: म ही सब कुछ ं और कोई कुछ नह , तब वह अहं कार क तरह तीत होता है। वह मन का एक ढं ग है; वह मन के वहार का एक प है। तब वह अहं कार, जब वह कहता है--म ही सब कुछ! जब मन घोषणा करता है क मेरे सामने और कोई कुछ भी नह , तब मन अहं कार है। और जब मन वचार करता है, सोचता है, तब वह बु है। और जब मन न सोचता, न वचार करता, सफ तरं ग म बहा चला जाता है, अन-डायरे े ड.। जब मन डायरे न लेकर सोचता है--एक वै ा नक बैठा है योगशाला म और सोच रहा है क अणु का व ोट कैसे हो--डायरे े ड थ कग, तब मन बु है। और जब मन न े , नल , सफ बहा जाता है--कभी सपना देखता है, कभी धन देखता है, कभी रा प त हो जाता है--तब वह च है; तब वह सफ तरं ग मा है। और तरं ग असंगत, असंब , तब वह च है। और जब वह सु न त एक माग पर बहता है, तब वह बु है। ये मन के ढं ग ह ब त, ले कन मन ही है। मन और आ ा: चेतना के दो प और वे पूछते ह क ये मन, बु , अहं कार, च और आ ा अलग ह या एक ह? सागर म तूफान आ जाए, तो तूफान और सागर एक होते ह या अलग? व ु जब हो जाता है सागर तो हम कहते ह, तूफान है। आ ा जब व ु हो जाती है तो हम कहते ह, मन है; और मन जब शांत हो जाता है तो हम कहते ह, आ ा है। मन जो है वह आ ा क व ु अव ा है; और आ ा जो है वह मन क शांत अव ा है। ऐसा समझ: चेतना जब हमारे भीतर व ु है, व है, तूफान से घरी है, तब हम इसे मन कहते ह। इस लए जब तक आपको मन का पता चलता है तब तक आ ा का पता न चलेगा। और इस लए ान म मन खो जाता है। खो जाता है इसका मतलब? इसका मतलब, वे जो लहर उठ रही थ आ ा पर, सो जाती ह, वापस शां त हो जाती है। तब आपको पता चलता है क म आ ा ं । जब तक व ु ह तब तक पता चलता है क मन है। व ु मन ब त प म कट होता है--कभी अहं कार क तरह, कभी बु क तरह, कभी च क तरह--वे व ु मन के अनेक चेहरे ह। आ ा और मन अलग नह , आ ा और शरीर भी अलग नह ; क त तो एक है, और उस एक के सारे के सारे पांतरण ह। और उस एक को जान ल तो फर कोई झगड़ा नह है--शरीर से भी नह , मन से भी नह । उस एक को एक बार पहचान ल तो फर वही है- फर रावण म भी वही है, फर राम म भी वही है। फर ऐसा नह है क राम को नम ार कर आएं गे और रावण को जला आएं गे; ऐसा नह । फर नम ार दोन को ही कर आएं गे, या दोन को ही जला आएं गे; क दोन म वही है। एक है त , अनंत ह अ भ यां; एक है स , अनेक ह प; एक है अ ,ब तह उसके चेहरे , मु ाएं । स वचारणा नह , अनुभू त है ले कन, इसे फलासफ क तरह समझगे तो नह समझ म आ सकेगा; इसे अनुभव क तरह समझगे तो समझ म आ सकता है। तो यह तो मने समझाने के खयाल से कहा,

ले कन जब आप ही उतरगे उस एक म तभी आप जानगे क अरे ! जसे जाना था शरीर क तरह, वह भी तू ही है! और जसे जाना था मन क तरह, वह भी तू ही है! और जसे जाना था आ ा क तरह, वह भी तू ही है! जब जानते ह तब सफ एक ही रह जाता है। इतना ादा एक रह जाता है क जाननेवाला, और जो जानता है, और जो जाना जाता है, इनम भी कोई फासला नह रह जाता। वहां जाननेवाला और जाना जानेवाला, दोन एक ही रह जाते ह। उप नषद का एक ऋ ष पूछता है: कौन है वहां जानता? कौन है वहां जो जाना जाता? कसने वहां देखा? कौन है जो वहां देखा गया? कौन था जसने अनुभव कया? कौन था जसका अनुभव आ? नह , वहां इतना भी दो नह रह जाता। वहां अनुभव करनेवाला भी नह बचता है। सब फासले गर जाते ह। ले कन वचार तो फासले बनाए बना नह चल सकता। वचार तो फासले बनाएगा; वह कहेगा--यह शरीर है, यह मन है, यह आ ा है, यह परमा ा है। वचार फासले बनाएगा। ? क वचार सम को एक साथ नह ले सकता, वचार ब त छोटी खड़क है; उससे हम टुकड़े-टुकड़े को ही देख पाते ह। जैसे एक बड़ा मकान हो और उसम एक छोटा छेद हो। और उस छोटे छेद से म देख।ूं तो कभी कुस दखाई पड़े, कभी टे बल दखाई पड़े, कभी मा लक दखाई पड़े, कभी फोटो दखाई पड़े, कभी घड़ी दखाई पड़े। छोटे छेद से सब टुकड़े-टुकड़े दखाई पड़, पूरा कमरा कभी दखाई न पड़े; क वह छेद ब त छोटा है। और फर दीवाल गराकर म भीतर प ं च जाऊं, तो पूरा कमरा एक साथ दखाई पड़े। वचार ब त छोटा छेद है जससे हम स को खोजते ह। उसम स खंड-खंड होकर दखाई पड़ता है। ले कन जब वचार को छोड़कर हम न वचार म प ं चते ह, ान म, तब सम , द टोटल दखाई पड़ता है। और जस दन वह पूरा दखाई पड़ता है, उस दन बड़ी हैरानी होती है क अरे ! एक ही था, अनंत होकर दखाई पड़ता था! पर वह अनुभव से ही। हां, क हए! : थोड़ा पसनल सवाल है ।

क हए-क हए! : आपको

ान म वेश करने म कतने साल लगे?

ान समयातीत है ये म पूछते ह क मुझे ान म वेश करने म कतने साल लगे? ान म वेश तो एक ण म हो जाता है। हां, दरवाजे के बाहर कतने ही ज घूम सकते ह। दरवाजे म वेश तो एक ही ण म हो जाता है। ण भी ठीक नह , क ण भी काफ बड़ा है, ण के भी हजारव ह े म हो जाता है। वह भी ठीक नह है, क ण

का हजारवां ह ा भी टाइम का ही ह ा है। असल म, ान तो वेश होता है टाइमलेसनेस म, समय रहता ही नह और वेश हो जाता है। इस लए अगर कोई कहे क ान म वेश म मुझे घंटा भर लगा, तो वह गलत कहता है; कहे क साल भर लगा, तो वह गलत कहता है; क जब ान म वेश होता है तो वहां समय नह होता। समय होता ही नह । हां, ान का जो मं दर है, उसके बाहर आप ज तक च र काटते रह। ले कन वह वेश नह है। तो च र तो मने भी ब त ज काटे , ले कन वह वेश नह है। ले कन जब वेश आ, तो वह वेश बना समय के ही हो गया, बना कसी समय के हो गया। इस लए यह सवाल बड़ा क ठन पूछ लया आपने। अगर उस सब का हसाब हम रख जो मं दर के बाहर घूमने मव बताया, तो वह अंतहीन हसाब है; वह अनंत ज का हसाब है। उसको भी बताना मु ल है, क ब त लंबा है। उसक भी कोई गणना नह क जा सकती। और अगर वेश को ही ान म रख सफ, तो उसे समय क भाषा म नह कहा जा सकता, क वह दो ण के बीच म घट जाती है घटना। एक ण गया, सरा अभी आया नह , और बीच म वह घटना घट जाती है। आपक घड़ी म एक बजा, और फर एक बजकर एक मनट बजा, और बीच म जो गैप छूट गया, उस गैप म होती है वह घटना। वह सदा गैप म, इं टरवल म, दो मोमट के बीच म जो खाली जगह है, वहां होती है। और इस लए उसको नह बताया जा सकता क कतना समय लगा। समय बलकुल नह लगता, समय लग ही नह सकता, क समय के ारा इटरनल म वेश नह हो सकता। जो समय से बाहर है, उसम समय के ारा जाना नह हो सकता। तो आपक बात म समझ गया ं । मं दर के बाहर जतना घूमना हो, घूम सकते ह। वह च र लगाना है। जैसे एक आदमी च र लगा रहा है। एक हमने गोल घेरा ख च दया है, एक स कल बना दया है, और स कल के बीच म एक सटर है, और एक आदमी स कल पर च र लगा रहा है। वह लगाता रहे, स कल पर अनंत ज तक च र लगाता रहे, तो भी सटर पर प ं चने वाला नह है। वह सोचे क और जोर से दौडूं, तो जोर से दौड़े; वह सोचे क हवाई जहाज ले आऊं, तो हवाई जहाज ले आए; उसे जो भी करना हो वह करे , जतनी ताकत लगानी हो लगाए, अगर वह स कल पर ही दौड़ता है तो दौड़ता रहे, दौड़ता रहे, दौड़ता रहे, वह सटर पर नह प ं च सकता। और स कल पर वह कह भी हो, सटर से री बराबर होगी। इस लए वह कतना दौड़ा, बेमानी है; कह भी खड़ा हो जाए, उसक सटर से री उतनी ही है जतनी दौड़ने के पहले थी। वह अनंत ज दौड़ता रहे। और अगर सटर पर प ं चना है तो स कल पर दौड़ना छोड़ना पड़े उसे; स कल ही छोड़ना पड़े; स कल को छोड़कर छलांग लगानी पड़े। अगर फर वह आदमी सटर पर प ं च जाए, तो आप उससे पूछ क स कल पर कतनी या ा करके तुम सटर पर प ं च?े तो वह आदमी ा कहे? वह आदमी कहे क स कल पर तो ब त या ा क , ले कन उससे प ं चे नह ; वह तो स कल पर ब त चले, ले कन उससे प ं चे ही नह । तो आप उससे पूछ, कतने मील चलकर प ं चे? वह कहे क नह , कतने ही मील चले, उससे प ं चे नह ; चले तो ब त, ले कन उससे प ं चना न आ। और जब प ं चे

तब स कल से छलांग लगाकर प ं च।े और वहां मील का सवाल नह है। ठीक ऐसी बात है। समय म नह घटना घटती है। और समय तो, हमने समय ब त गंवाया है। समय तो हम सबने ब त गंवाया है। जस दन आपको भी घटे गी उस दन आप भी न बता सकगे क कतनी देर म यह आ। नह , देरी का सवाल ही नह । जीसस से कसी ने पूछा है क तु ारे उस ग म कतनी देर हम क सकगे? तो जीसस ने कहा, तुम बड़ा क ठन सवाल पूछते हो। देयर शैल बी टाइम नो लांगर। तुम पूछते हो, तु ारे उस ग म कतनी देर हम क सकगे? बड़ी मु ल का सवाल पूछते हो, क वहां तो समय न होगा। इस लए देरी का हसाब कैसे लगेगा? समय मन क ती त है यह समझने जैसा है क समय जो है वह हमारे ख से जुड़ा है। आनंद म समय नह होता। आप जतने ख म ह, समय उतना बड़ा होता है। रात घर म कोई खाट पर पड़ा है मरने के लए, तो रात ब त लंबी हो जाती है। घड़ी म तो उतनी ही होगी, कैलडर म उतनी ही होगी, ले कन वह जो खाट के पास बैठा है, जसका यजन मर रहा है, उसके लए रात इतनी लंबी, इतनी लंबी हो जाती है क लगता है क चुकेगी क नह चुकेगी? यह रात ख होगी क नह होगी? सूरज उगेगा क नह उगेगा? यह रात कतनी लंबी होती चली जाती है! और घड़ी उतना ही कहती है। और तब देखनेवाले को लगेगा क घड़ी आज धीरे चलती है या क गई है! कैलडर क पंखुड़ी उखड़ने के करीब आ गई है, सुबह होने लगी है, ले कन ऐसा लगता है क लंबा, लंबा.। ब ड रसेल ने कह लखा है क मने अपनी जदगी म जतने पाप कए, अगर स से स ायाधीश के सामने भी मुझे मौजूद कर दया जाए, तो मने जो पाप कए वे, और जो म करना चाहता था और नह कर पाया, वे भी अगर जोड़ लए जाएं , तो भी मुझे चारपांच साल से ादा क सजा नह हो सकती। ले कन जीसस कहते ह क नरक म अनंत काल तक सजा भोगनी पड़ेगी। तो यह ाययु नह है। क, मने जो पाप कए, जो नह कए वे भी जोड़ ल, क मने सोचे, तो भी स से स अदालत मुझे चार-पांच साल क सजा दे सकती है, और यह जीसस क अदालत कहती है क अनंत काल तक, इटर नटी तक नरक म सड़ना पड़ेगा। यह जरा ादती मालूम पड़ती है। रसेल तो मर गए, अ था उनसे कहना चाहता था क आप समझे नह , जीसस का मतलब खयाल म नह आया आपके। जीसस यह कह रहे ह क नरक म अगर एक ण भी रहना पड़ा तो वह इटर नटी मालूम पड़ेगा; ख इतना ादा है वहां क उसका अंत ही नह मालूम पड़ेगा क वह कभी समा होगा, कभी समा होगा। ख समय को लंबाता है, सुख समय को छोटा करता है। इस लए तो हम कहते ह: सुख णक है। ज री नह है क सुख णक है, सुख क ती त णक होती है-- क वह आया और गया; क टाइम छोटा हो जाता है। सुख णक है, ऐसा नह है, क मोमटरी है। सुख क भी लंबाइयां ह। ले कन सुख सदा णक मालूम पड़ता है, क सुख म समय छोटा हो जाता है। यजन मला नह क वदाई का व आ गया; आए नह क गए; इधर फूल खला नह क कु लाया। वह सुख क ती त णक है, क सुख म समय छोटा हो जाता है। घड़ी फर भी वैसे ही चलती है, कैलडर वही खबर देता है, ले कन इधर

हमारे मन म सुख समय को छोटा कर देता है। आनंद म समय मट ही जाता है, छोटा-मोटा नह होता। आनंद म समय होता ही नह । जब आप आनंद म ह गे तब आपके पास समय नह होगा। असल म, समय और ख एक ही चीज के दो नाम ह। टाइम जो है वह ख का ही नाम है; समय जो है वह ख का ही नाम है। मान सक अथ म समय ही ख है। और इसी लए हम कहते ह--आनंद समयातीत, कालातीत, बयांड टाइम, समय के बाहर है। तो जो समय के बाहर है, उसे समय के ारा नह पाया जा सकता। मु अकाल है च र तो मने भी लगाए ह--उतने ही, जतने आपने। और मजा यह है क इतना लंबा है हमारा च र क उसम कसने कम लगाए, ादा लगाए, ब त मु ल है। महावीर प ीस सौ साल पहले पा गए उसे, बु पा गए, जीसस दो हजार साल पहले पा गए, शंकर हजार साल पहले उसे पा गए। ले कन अगर कोई कहे क शंकर ने हमसे हजार साल कम च र लगाए, तो गलत कह रहा है, क च र इतने अनंत ह.जैसे क उदाहरण के लए क आप बंबई थे, बंबई से आप नारगोल आए, तो सौ मील क आपने या ा क । ले कन जो तारा अंतहीन री पर हमसे है, उस तारे के खयाल से आपने कोई या ा ही नह क , आप वह के वह ह। कोई फक नह पड़ता क आप बंबई से सौ मील इधर आ गए। उस तारे को खयाल म रख तो आपने कोई या ा ही नह क । उस तारे से आपक री अब भी वही है, जो आपक बंबई म थी। तो आप पृ ी पर कह भी चले जाएं , उस तारे से आपक री वही है; क वह तारा इतनी री पर है क आपके ये फासले कोई अंतर नह लाते। हमारे ज क या ा इतनी लंबी है क कौन प ीस सौ साल पहले, कौन पांच सौ साल पहले, कोई पांच दन पहले, कोई पांच घंटे पहले, कोई फक नह पड़ता। जस दन हम उस क पर प ं चते ह, हम देखते ह, अरे ! अभी बु आ ही रहे ह, अभी महावीर घुस ही रहे ह, अभी जीसस का वेश ही आ है, और हम भी प ं च गए! मगर वह जरा समझना क ठन है, क हम जस नया म जीते ह, वहां समय ब त मह पूण है। वहां समय ब त मह पूण है। और इस लए भावतः हमारे मन म सवाल उठता है: कतनी देर? बाहर च र लगाना बंद कर ले कन मत उठाएं इस सवाल को; देरी क बात ही मत कर; च र लगाना बंद कर; च र म देरी लग जाएगी; मं दर के बाहर मत घूम, भीतर चले जाएं । ले कन डर लगता है मं दर के भीतर जाने म--पता नह , ा हो! मं दर के बाहर सब प र चत है-- म ह, यजन ह, प ी है, बेटा है, घर है, ार है, कान है--मं दर के बाहर सब अपना है। और मं दर म एक शत है क वहां अकेले ही भीतर वेश होता है; वहां दो आदमी दरवाजे से एकदम जा नह सकते। तो इस सब--मकान को, प ी को, ब े को, धन को, तजोड़ी को, यश को, पद- त ा को--इस सबको लेकर घुस नह सकते भीतर, यह सब बाहर छोड़ना पड़ता है। इस लए हम कहते ह क ठीक है, अभी थोड़ा बाहर और च र लगा ल। फर हम बाहर च र लगाते रह, हम उस ण क ती ा म ह क जब दरवाजा जरा ादा खुला हो, तब हम सब के सब एकदम से भीतर हो जाएं गे।

वह दरवाजा ादा कभी नह खुलता, वहां से एक ही वेश करता है। आप भी अपने पद को लेकर भी व नह हो सकते, क दो हो जाएं गे--आप और आपका पद। अपने नाम को लेकर भी वेश नह कर सकते, क दो हो जाएं गे--आप और आपका नाम। वहां कुछ भी लेकर.वहां तो बलकुल टोटली नैकेड, एकदम न और अकेले वहां वेश करना पड़ता है। इस लए हम बाहर घूमते रहते ह; हम मं दर के बाहर ही डेरा डाल देते ह। हम कहते ह क भगवान के पास ही तो ह, कोई ादा र तो नह । ले कन मं दर के बाहर आप गज भर क री पर ह, क हजार गज क री पर ह, क हजार मील क री पर ह, कोई फक नह पड़ता; मं दर के बाहर ह तो बस बाहर ह। और भीतर जाना हो, तो एक ण के हजारव ह े म म कह रहा ं , ठीक नह है वह कहना, बना ण के भी भीतर वेश हो सकता है। ान क उपल न वचार म : ओशो, ान ा न वचार अव

ा म ही रहता है ? वचार क अव

ाम

ान रहता है क नह रहता है ?

इसको अं तम मान ल, फर कोई और ह तो रात कर लगे। आप पूछते ह क जो ान है वह न वचार अव ा म ही रहता है और वचार म नह रहता ा? ान क उपल न वचार म होती है। और उपल हो जाए तो वह हर अव ा म रहता है। फर तो वचार क अव ा म भी रहता है। फर तो उसे खोने का कोई उपाय नह है। ले कन उपल न वचार म होती है। अ भ वचार से भी हो सकती है, ले कन उपल न वचार म होती है। उसे पाना हो तो न वचार होना पड़े। न वचार होना पड़े? क वचार क तरं ग मन को दपण नह बनने देत । जैसे समझ, एक च उतारना हो कैमरे से। तो उतारने म तो एक वशेष अव ा का ान रखना पड़े क कैमरे म काश न चला जाए, कैमरा न हल जाए। ले कन एक दफा च उतर गया, तो फर खूब हलाइए, और खूब काश म र खए। उससे कोई फर फक नह पड़ता। ले कन उतारने के ण म तो कैमरा हल जाए तो सब खराब हो जाए। एक दफा उतर जाए तो बात ख हो गई। फर खूब हलाइए और ना चए लेकर, तो कोई फक नह पड़ता। ान क उपल च क उस अव ा म होती है जब कुछ भी नह हलता, सब शांत और मौन है। तब तो ान का च पकड़ता है। ले कन पकड़ जाए एक दफे, तो फर खूब ना चए, खूब ह लए, कुछ भी क रए, फर कोई फक नह पड़ता। ान क उपल न वचार म है। और वचार फर कोई बाधा नह डालता। ले कन अगर सोचते ह क वचार से उपल कर लगे, तो कभी न होगी, वचार ब त बाधा डालेगा। उपल म ब त बाधा डालेगा, उपल के बाद वचार बलकुल नपुंसक है। फर उसक कोई ताकत नह है। फर वह कुछ भी नह कर सकता। यह ब त मजे क बात है क शां त क ज रत ाथ मक है, ान को पाने म। ान पा

लेने के बाद कसी चीज क कोई ज रत नह है। ले कन वे बाद क बात ह। और बाद क बात पहले कभी नह करनी चा हए, नह तो नुकसान होता है। नुकसान यह होता है क हम सोचने लगते ह क जब बाद म कोई फक नह पड़ेगा तो अभी भी ा हज है! तब नुकसान हो जाएगा। फर हम कैमरा हला दगे, सब गड़बड़ हो जाएगा। च तो हला आ कैमरा भी उतारता है, ले कन वह स च नह होता; वह ू नह होता। वह भी उतारता है; वचार म भी ान का ही पता चलता है, ले कन वह ठीक नह होता, क हलता रहता है मन पूरे समय, कंपता रहता है। इस लए कुछ का कुछ बन जाता है। जैसे चांद नकला हो और सागर म लहर ह , तो चांद का त बब तो बनेगा ही, ले कन सागर म हजार चांद के टुकड़े टूटकर फैल जाएं गे। और अगर कसी ने आकाश का चांद न देखा हो तो सागर म देखकर पता न लगा पाएगा क चांद कैसा है। हजार टुकड़े होकर चांद लहर पर फैल जाएगा; चांदी बखर जाएगी उसक , ले कन चांद का बब नह पकड़ म आएगा। एक दफा बब पकड़ म आ जाए क चांद कैसा है, फर तो सागर म बखरी ई लहर म भी हम पहचान लेते ह क तुम ही हो। ले कन एक बार हम उसे देख तो ल। एक बार उसक श हमारे खयाल म आ जाए, फर तो सभी श म वह मल जाता है। ले कन एक दफा पहचान ही न हो पाए, तो वह कह भी हम नह मलता है। मलता है रोज, ले कन हम रक ाइज नह कर पाते, हम पहचान नह पाते क यही है। एक छोटी सी घटना से म क ं , फर हम ान के लए बैठ। सा बाबा के पास एक ह सं ासी ब त दन तक था। ह सं ासी, और सा तो रहते थे म द म। सा बाबा का कुछ प ा नह क वे ह थे क मुसलमान। ऐसे आद मय का कभी कुछ प ा नह । लोग पूछते तो वे हं सते थे। अब हं सने से तो कुछ पता चलता नह ! एक ही बात पता चलती है क पूछनेवाला नासमझ है। ह सं ासी था, ले कन वह तो म द म कैसे के सा के पास! तो वह गांव के बाहर एक मं दर म कता था। लगाव उसका था, ेम उसका था, रोज खाना बनाकर लाता था। सा को खाना देता, फर जाकर खाना खाता। सा बाबा ने उससे कहा क तू इतनी र आता है? हम तो कई बार वह से नकलते ह, तब तू वह खला दया कर! उसने कहा, आप वहां से नकलते ह? कभी देखा नह ! तो सा ने कहा क जरा गौर से देखना; हम कई बार तेरे मं दर के पास से नकलते ह, वह खला देना। कल हम आ जाएं गे, तू मत आना। कल उस ह सं ासी ने बनाकर खाना रखा, अब देखता है, देखता है, देखता है। वे आते नह , आते नह , आते नह ! वह घबड़ा गया, दो बज गए, तो उसने कहा क बड़ी मु ल हो गई, वे भी भूखे ह गे और म भी भूखा बैठा ं । फर वह थाली लेकर भागा। सा के पास प ं चा, सा से उसने कहा क हम राह देखते रहे, आज आप आए नह । उ ने कहा क आज भी आया था, रोज आता ं , ले कन तूने तो ार दया। उसने कहा, कहां ारा? सफ एक कु ा आया था। तो सा ने कहा क वही म था। तब तो वह ह सं ासी ब त रोया, ब त खी आ। उसने कहा क आप आए और म पहचान न पाया! कल ज र पहचान जाऊंगा। अगर कु े क ही श म कल भी आते तो पहचान जाता। कल भी वे आए, ले कन एक

कोढ़ी था रा े पर मला। उस सं ासी ने कहा क जरा र से! र से! म भोजन लए ए ं सा का, जरा र से नकलो! वह कोढ़ी हं सा भी। फर दो बज गए, फर भागा आ म द आया, उसने कहा क आप आज आए नह , आज मने ब त रा ा देखा। तो सा ने कहा क म तो फर भी आया था। ले कन तेरे च म इतनी तरं ग ह क रोज म वही तो दखाई नह पड़ सकता! तू ही कंप जाता है। आज वह एक कोढ़ी आया था, तो तूने कहा, र हट। तो मने कहा, हद हो गई! म आता ं तो तू भगा देता है और यहां आकर कहता है क आप आए नह । तो वह सं ासी रोने लगा, उसने कहा क म आपको पहचान ही नह पाया। तो सा ने उससे कहा था क तू अभी मुझे ही नह पहचान पाया, इस लए सरी श म मुझे कैसे पहचान पाएगा? एक बार हम स क झलक पा ल, तो फर अस है ही नह । एक बार हम परमा ा को झांक ल, तो परमा ा के अ त र फर कुछ है ही नह । ले कन वह झांकना तब हो पाए जब हमारे भीतर सब शांत और मौन हो। फर इसके बाद तो कोई सवाल नह , फर तो वचार भी उसके ह, वृ यां भी उसक ह, वासनाएं भी उसक ह-- फर तो सब उसका है। ले कन ाथ मक चरण म उसे झांकने और पहचानने के लए सब का क जाना ज री है। योग: कुंड लनी जागरण और ान का अब हम ान के लए बैठ। फासले पर चले जाएं , र बैठ जाएं , ता क लेटना पड़े तो लेट भी सक। और कोई बात नह करे गा। चुपचाप हट जाएं । जसे जहां हटना हो, हट जाएं ।.बातचीत नह । बातचीत बलकुल नह करगे।.कोई कसी को छूता आ न बैठे, र हट जाएं । और इधर तो इतनी जगह है, इस लए कंजूसी न कर जगह क । नाहक बीच म कोई आपके ऊपर गर जाए, कुछ हो, तो सब खराब होगा। हट जाएं र- र.शी ता से बैठ जाएं या लेट जाएं , जसे जैसा करना हो वैसा कर ले। आंख बंद कर ल और जैसा म क ं वैसा कर। पहला चरण: ती व गहरी ास क चोट आंख बंद कर ल, गहरी ास लेना शु कर। जतनी गहरी ले सक ल और जतनी गहरी छोड़ सक छोड़। सारी श ास के लेने और छोड़ने म लगा देनी है। गहरी ास ल और गहरी ास छोड़। सफ ास ही रह जाए। सारी श लगा देनी है। जतनी गहरी ास लगे-छोड़गे, उतनी ही भीतर ऊजा के जगने क संभावना बढ़ेगी। गहरी ास ल और गहरी ास छोड़.गहरी ास ल और गहरी ास छोड़। गहरी ास ल और गहरी ास छोड़। दस मनट पूरी श से गहरी ास ल और गहरी ास छोड़। बस आप ास लेनेवाले एक यं ही रह जाएं , इससे ादा कुछ भी नह । सफ ास ले रहे ह, छोड़ रहे ह, दस मनट तक। फर म सरा सू क ं गा, पहले दस मनट पूरा म ास के साथ कर। गहरी ास ल और गहरी ास छोड़.पूरी श लगाएं । सफ ास लेने के एक यं मा रह जाएं --एक ध कनी, जो ास ले रही, छोड़ रही।.एक-एक रोआं कंपने लगे.पूरी गहरी ास ल, गहरी ास छोड़.गहरी ास ल, गहरी ास छोड़.गहरी ास ल, गहरी ास छोड़। बस ास लेने का एक यं मा रह जाएं .सारी श , सारा ान ास लेने म ही

लगा द.गहरी ास ल, गहरी ास छोड़। और भीतर देखते रह. ास भीतर गई, ास बाहर गई. ास भीतर गई, ास बाहर गई। सा ी रह जाएं , देखते रह-- ास भीतर जा रही, ास बाहर जा रही.सारा ान ास पर रख और सारी श लगा द। अब म दस मनट के लए चुप हो जाता ं । आप गहरी ास ल, गहरी ास छोड़ और भीतर ानपूवक देखते रह-- ास आई, ास गई। सरे क जरा भी फकर न कर, अपनी फकर कर.पूरी श लगा द और सरे पर कोई ान न द, सरे से कोई संबंध नह है। गहरी ास ल, गहरी ास छोड़.और भीतर देखते रह-- ास भीतर गई, ास बाहर गई। ास दखाई पड़ने लगेगी--यह ास भीतर गई, यह ास बाहर गई.पूरी श लगाएं , ता क जसे म श का कुंड कह रहा ं , वहां से ऊजा उठनी शु हो जाए.यह पूरा वातावरण ास लेता आ मालूम पड़ने लगे.गहरी ास ल, गहरी ास छोड़.और गहरी, और गहरी, और गहरी। सारा कंप जाए, तूफान क तरह गहरी ास ल, छोड़। गहरी ास ल और गहरी छोड़। गहरी ास ल और छोड़। गहरी ास.गहरी ास. (साधक को अनेक कार क शारी रक याएं होने लग और उनके मुंह से अनेक तरह क आवाज भी नकलने लग .कुछ लोग ऊंऽऽऽ ऊंऽऽऽ ऊंऽऽऽ करने लगे।) गहरी ास ल, गहरी ास छोड़। और भीतर देखते रह-- ास आई, ास गई. ास आई, ास गई.पूरी श लगाएं .पूरी श लगाएं .यह एक ही बात पर सारी श लगा द, गहरी ास ल, गहरी ास छोड़। और भीतर देखते रह-- ास आई, ास गई. ास आ रही, ास जा रही। अपने को जरा भी न बचाएं , पूरी श लगाएं . ास के गहरे कंपन भीतर कसी श को जगाने म शु आत करगे। गहरी ास ल, गहरी ास छोड़.भीतर कोई सोई ई ो त गहरी ास से जगेगी.गहरी ास ल, गहरी ास छोड़.गहरी ास ल, गहरी ास छोड़.एक यं मा . ास भीतर जा रही है, ास बाहर जा रही है.पूरी श लगा द.पूरी श लगा द.पूरी श लगा द. सरे सू पर जाने के पहले पूरी श लगाएं .गहरी से गहरी ास ल और छोड़.सारा शरीर कंप जाए, सारी जड़ कंप जाएं , सारा कंप जाए.एक आंधी क तरह हालत पैदा कर द. ास ही रह जाए। पूरी श लगा द. सरे सू पर वेश के पहले पूरी श लगाएं .आपक चरम त म ही सरे सू पर वेश होगा। (चार ओर साधक को अनेक तरह क यौ गक याएं हो रही ह.ती ता के साथ उ ब त से योगासन, ाणायाम, अनेक तरह क मु ाएं और बंध आप ही आप हो रहे ह.कई लोग के मुंह से व च तरह क आवाज नकल रही ह.आवाज ऊंऽऽऽ ऊंऽऽऽऽऽऽ.आ द। ओशो का ो ा हत करना जारी रहता है.) गहरी ताकत लगाएं .गहरी ास, गहरी ास, गहरी ास.अपने को बचाएं मत, पूरा लगा द.जरा भी न बचाएं । भीतर सोई ई श को जगाना है.पूरी श लगा द.गहरी ास ल, गहरी ास छोड़.गहरी ास ल, गहरी ास छोड़. छोड़ द.पूरी ताकत लगाएं , अपने को रोक नह । भीतर सोई ई व ुत के जागने के ि◌लए ज री है गहरी ास ल, गहरी ास छोड़.शरीर का रोआं-रोआं जीवंत हो जाए.शरीर का रोआं-रोआं कंपने लगे.पूरी ताकत लगाएं --गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.सारी ताकत लगा द.पूरी ताकत लगाएं । दो मनट पूरी

ताकत लगाएं तो हम सरे सू म वेश कर. यह पूरा वातावरण चा हो जाए.गहरी ास ल और छोड़। यह सारा वातावरण व ुत क लहर से भर जाएगा. गहरी ास ल और छोड़.गहरी ास ल और छोड़.गहरी ल, गहरी छोड़.पूरी श लगाएं .गहरी ास.और गहरी ास.और गहरी ास.और गहरी ास.और गहरी ास.और गहरी ास.और गहरी ास.और गहरी.और गहरी.और गहरी.और गहरी.और गहरी.और गहरी.और गहरी.और गहरी.और गहरी.और गहरी.और गहरी.और गहरी.और गहरी. (अनेक तरह क आवाज आ रही ह, लोग रो और चीख रहे ह.) गहरी से गहरी ास ल.गहरी से गहरी ास ल.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास. अब सरा सू जोड़ना है। एक मनट गहरी ास ल--पूरी गहरी ास.पूरी गहरी ास.पूरी गहरी ास.और गहरी.और गहरी.और गहरी. कसी सरे पर ान न द, अपने भीतर सारी ताकत लगाएं --और गहरी.और गहरी. और गहरी.और गहरी.और सरा सू जोड़ द। सरा चरण: ती ास के साथ शारी रक याएं सरा सू है, शरीर को पूरी तरह छोड़ देना है--गहरी ास ल और शरीर को छोड़ द.रोना आए, आने द.आंसू नकल, बहने द.हाथ-पैर कंपने लग, कंपने द.शरीर डोलने लगे, घूमने लगे, घूमने द.शरीर खड़ा हो जाए, नाचने लगे, नाचने द। पूरी गहरी ास ल और शरीर को छोड़ द.शरीर को जो होता हो, होने द--गहरी ास.गहरी ास. गहरी ास.अब दस मनट तक गहरी ास जारी रहेगी और शरीर को बलकुल ढीला छोड़ द--जो मु ाएं बनती ह , बन; जो आसन बनते ह , बन--शरीर लोटता हो लोटे , नाचता हो नाचे.शरीर को छोड़ द, सफ ा रह जाएं .शरीर को जरा भी रोक नह --गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.और शरीर को बलकुल छोड़ द.जो भी होता हो, होने द--शरीर को जरा भी रोक नह । अब दस मनट तक गहरी ास जारी रहेगी और शरीर को बलकुल ढीला छोड़ द-शरीर को जो होता है, होने द.कोई संकोच न ल.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.आंसू आएं , आने द.रोना नकले, नकले.जो भी होता हो, होने द। (चार ओर साधक का नाचना, कूदना, च ाना और अनेक तरह क आवाज नकालना। एक के मुंह से लंबे सायरन क सी आवाज नकलने लगी.ओशो का सुझाव देना जारी रहा.) शरीर को बलकुल छोड़ द। शरीर अपने आप डोलने लगेगा, च र खाने लगेगा। श भीतर उठे गी तो शरीर कंपेगा, कं पत होगा, डोलेगा। भीतर से श उठे गी तो शरीर आंदो लत होगा, उसे छोड़ द.शरीर को बलकुल छोड़ द. गहरी ास जारी रख और शरीर को छोड़ द। शरीर को जो होता हो, होने द.उसे जरा भी नह रोक.गहरी ास.और गहरी ास.और गहरी ास.और गहरी ास. (लोग का चीखना, च ाना, मुंह से अनेक तरह क आवाज नकालना तथा शरीर म व वध ग तय का होना.) गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.और शरीर को छोड़ द। ान रहे, शरीर पर कह कोई कावट न रहे। जो शरीर को होना है, होने द। उससे श के ऊपर प ं चने म माग

बनेगा। छोड़ द.शरीर को ढीला छोड़ द, गहरी ास जारी रख, उसे ढीला न कर. ास गहरी चले, शरीर को श थल छोड़ द.शरीर को जो होता है, होने द.बैठता हो बैठे, गरता हो गरे , खड़ा होता हो, हो जाए--जो होता है, होने द.गहरी ास जारी रख. (अनेक आवाज के साथ लोग का तेजी से उछलना, कूदना.) गहरी.और गहरी.और गहरी.और गहरी.और गहरी.और गहरी.और गहरी.और गहरी.और गहरी. (कुछ लोग का ती आवाज म ं कारना.अनेक शारी रक त याएं चलती रह .) कुछ बचाएं न, सब दांव पर लगा द.पूरी श दांव पर लगा द। देख, बचा रहे ह। ब त कुछ बचा लेते ह। पूरा दांव पर लगा द। गहरी ास, गहरी ास.शरीर को छोड़--जो होता है, होने द.छोड़.हं सना आ जाए, आ जाने द.रोना आए, आने द.आवाज नकले, नकल जाने द.उसक कोई चता न ल, जरा न रोक--बस आप गहरी ास ल और छोड़ द. (लोग का चीखना, च ाना, नाचना, कूदना, ं कार और ची ार करना.) छोड़.श उठ रही है.छोड़ शरीर को.गहरी ास ल.गहरी ास ल.गहरी ास ल और शरीर को छोड़ द। शरीर म कुछ जागेगा तो शरीर कं पत होगा, घूमेगा, नाच सकता है, रो सकता है, च ा सकता है--छोड़ द.शरीर को छोड़ द.शरीर को बलकुल छोड़ द.जरा संकोच न ल.शरीर को बलकुल छोड़ द. (अनेक साधक के मुंह से पशुओ ं क आवाज नकलना.रोना, च ाना, नाचना.मुंह से कु े क आवाज. सह क गजना.हाथ-पैर पीटना.छटपटाना.) गहरी ास.और गहरी.अपनी श ास पर लगाएं और छोड़ द--शरीर को जो होता है, होने द.जरा भी संकोच नह .जरा भी न रोक. सरे क फकर न कर.शरीर को छोड़। श जगेगी तो ब त कुछ होगा--रोना आ सकता है, शरीर कंपेगा, अंग हलगे, मु ाएं बनगी, शरीर खड़ा हो सकता है.छोड़ द--जो होता है, होने द.आप अकेले ह और कोई नह .छोड़.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.एक दो मनट पूरी मेहनत कर.तीसरे सू पर जाने के पहले पूरी मेहनत ल--गहरी ास ल.गहरी ास ल.गहरी ास ल.गहरी ास ल.गहरी ास ल.गहरी ास ल.गहरी ास ल.और शरीर को छोड़ द--जो होता है, होने द.शरीर को छोड़ द.जो होता है, होने द.जरा भी नह रोकगे। देख कुछ म रोक लेते ह, रोक मत, छोड़.पूरी श लगाएं और छोड़.छोड़.रोना है, पूरे मन से रोएं , रोक नह । आवाज नकलती है, दबाएं नह . नकल जाने द। शरीर खड़ा होता है, स ाल न, हो जाने द। नाचता है, नाचने द। शरीर को पूरी तरह छोड़ द, तभी सोई ई श अपना माग बना सकती है। छोड़.गहरी ास ल.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.और गहरी.और गहरी.और गहरी.और गहरी. और गहरी. (कुछ लोग का ती ं कार करना.अनेक लोग का रोना.चीखना.नाचना.आ द.) पूरी श लगाएं .पूरी श लगाएं .पूरी श लगाएं . ास गहरी.और गहरी.और गहरी.कंप जाने द पूरे को, हल जाने द.जो होता है, होने द.छोड़ द। गहरी श लगाएं , गहरी श लगाएं .और गहरी ास ल.और गहरी ास ल। पूरे शरीर म व ुत दौड़ने लगेगी.पूरे शरीर म व ुत दौड़ने लगेगी.छोड़.आ खरी एक मनट, जोर से ताकत लगाएं , तीसरे सू म जाने के लए--गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.और

गहरी.और गहरी.और गहरी.पूरी ताकत लगाएं , तीसरे चरण म ग त हो सके.और गहरी ास ल.पूरी श लगा द.और गहरी ास ल.और गहरी ास ल, और गहरा.और गहरा.और गहरा. तीसरा चरण: पूछ--म कौन ं ? और अब तीसरा सू जोड़ द! ास गहरी जारी रहेगी, शरीर क ग त जारी रहेगी.और तीसरा सू --भीतर पूरी श से पूछने लग.म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ?.भीतर पूछ. ास- ास म एक ही भर जाए--म कौन ं ? म कौन ं ?. ास तेजी से जारी रहे और भीतर पूछ--म कौन ं ? शरीर क कंपन और ग त जारी रहे और भीतर पूछ--म कौन ं ? म कौन ं ?.दो ‘म कौन ं ?’ के बीच म जगह न रहे। पूरी श लगाएं .म कौन ं ?.म कौन ं ?.एक दस मनट सारी श लगा द--म कौन ं ?.म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? पूरी ताकत लगाएं । ाण भीतर एक ही गूंज से भर जाएं --म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? ताकत से पूछ। भीतर सारे ाण म एक गूंज उठने लगे--म कौन ं ? गहरी ास जारी रहे, शरीर को जो होना है होने द। और पूछ, म कौन ं ? म कौन ं ? एक दस मनट पूरी श लगा ल, फर दस मनट के बाद हम व ाम करगे। लगाएं पूरी श .म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? (अनेक आवाज के साथ साधक क ती त याएं .) पूरी श लगाएं । जरा भी रोक नह । जोर से भीतर पूछ--म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? एक आंधी उठा द भीतर.म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं . ास गहरी रहे, सवाल गहरा रहे--म कौन ं ? शरीर को जो होना है, होने द.म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? यह पूरा वातावरण पूछने लगे, ये रे त के कण-कण पूछने लग, यह आकाश, ये वृ , ये सब पूछने लग--म कौन ं ? म कौन ं ?.पूरा वातावरण म कौन ं से भर जाए.म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ?. (चार ओर से रोने क आवाज.ती शारी रक हलचल.अनेक तरह क आवाज.) पूरी श लगाएं , फर व ाम करना है.और जतनी श लगाएं गे, उतने ही व ाम म वेश होगा। जतनी ऊंचाई पर आंधी उठे गी, उतनी ही गहरे ान म ग त होगी। चौथा सू ान का होगा। आप पूरी श लगाएं , ाइमे पर, जतना आप कर सकते ह , लगा द--कहने को न बचे क मेरे पास कोई ताकत शेष रह गई थी.म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? गहरी ास.गहरी ास.भीतर पूछ--म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? पूरी ताकत से पूछ, बाहर भी नकल जाए फकर न कर। पूछ भीतर--म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? पूरी ताकत लगाएं .पूरी ताकत लगाएं .पूरी ताकत लगाएं . शरीर को जो होता है, होने द.शरीर गरे , गर जाए.रोना नकले, नकले.पूरी ताकत लगाएं --म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ?. (रोने- च ाने क अनेक आवाज.)

पूरी लगाएं .जरा भी रोक नह .म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? पूरी लगाएं , पूरी ताकत लगाएं --म कौन ं ? म कौन ं ? रोक नह .रोक नह .म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? पूरी श लगा द. (कुछ लोग का क- ककर ं कार करना.अनेक आवाज.रोना, चीखना, च ाना, पशुओ ं क आवाज मुंह से नकालना.) म कौन ं ? पूरी श लगाएं । पांच मनट ही बचे ह, पूरी श लगा द.म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? शरीर का रोआं-रोआं पूछने लगे--म कौन ं ? दय क धड़कनधड़कन पूछने लगे--म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? पूरे ाइमे पर, चरम पर अपने को प ं चा द.आ खरी सीमा पर प ं चा द. बलकुल पागल हो जाएं .म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? बलकुल पागल हो जाएं पूछने म.सारी श लगा द.पूरी श लगाएं .आ खरी, पूरी श लगाएं . फर तो व ाम करना है.पूरी श लगाएं --म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ?.थका डाल अपने को.म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? आंधी उठा द.अब दो मनट ही बचे ह.पूरी श लगाएं .म कौन ं ? म कौन ं ? शरीर को जो होता है, होने द.श पूरी लगा द। दो मनट तूफान उठा द--म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? एक ही मनट बचा है, पूरी श लगाएं , फर व ाम करना है.म कौन ं ? म कौन ं ? शरीर को जो होता है, होने द। गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास. गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास. (अनेक लोग का ती ची ार करना.उछलना, कूदना आ द.) म कौन ं ?.म कौन ं ?.शरीर कंपता है, शरीर नाचता है--छोड़ द.म कौन ं ?.म कौन ं ?. (साधक पर चल रही त याएं बड़ी तेजी पर ह.) चौथे सू पर जाने के लए पूरी श लगा द.म कौन ं ?.म कौन ं ?.लगाएं पूरी श .लगाएं पूरी श .जब तक आप पूरी न लगाएं गे चौथे सू पर नह चलगे.म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? पूरा डूब जाएं .म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? पूरी श लगा द.म कौन ं ? फर हम चौथे पर चल.म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ?. (अनेक लोग का ं कार, ची ार आ द करना.) पूरी श लगाएं .छोड़ मत.जरा भी न बचाएं , पूरी श लगाएं .गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास. गहरी ास.गहरी ास.म कौन ं .म कौन ं .म कौन ं .म कौन ं .म कौन ं .म कौन ं . चौथा चरण: पूण व ाम--शांत, शू , जा त, मौन, ती ारत और अब सब छोड़ द.चौथे सू पर चले जाएं -- व ाम म। न पूछ, न गहरी ास ल--सब

छोड़ द। दस मनट के लए सफ पड़े रह जाएं --जैसे मर गए; जैसे ह ही नह ; सब छोड़ द। दस मनट सफ छोड़कर पड़े रह जाएं , उसक ती ा म। छोड़ द--न पूछ, न ास गहरी ल, बस पड़े रह जाएं । सागर का गजन सुनाई पड़े, सुनते रह; हवाएं वृ म आवाज कर, सुनते रह; कोई प ी शोर करे , सुनते रह--दस मनट मर गए.ह ही नह .दस मनट मर गए.ह ही नह । (समु का गजन है.प य क आवाज.हवा क सरसराहट.कह -कह कसी का कभीकभी सुबकना. हचक लेना.कराहना.शेष सब शांत है.साधक का मशः शांत तथा नःश होते चले जाना. कसी का बीच म दो-चार ती ास- ास लेना और शांत हो जाना. कसी साधक का शरीर क त म कुछ प रवतन करना. फर गहरी शां त तथा रता म चले जाना.) धीरे -धीरे अब आंख खोल ल। आंख न खुलती हो तो दोन आंख पर हाथ रख ल। जो लोग गर गए ह, उनसे उठते न बने तो धीरे -धीरे गहरी ास ल और फर उठ। ज ी कोई न उठे । झटके से न उठे । ब त आ ह ा से उठ आएं । फर भी कसी से उठते न बने तो थोड़ी देर लेटा रहे। धीरे -धीरे उठकर बैठ जाएं । आंख खोल ल। जससे उठते न बने वह थोड़ी गहरी ास ले, फर आ ह ा से उठे । दो एक छोटी सी सूचनाएं ह। दोपहर तीन से चार मौन म बैठगे। म यहां बैठूंगा। तीन के पांच मनट पहले ही आप सब आ जाएं । म ठीक तीन बजे आ जाऊंगा। बलकुल भी बात यहां न कर। एक श भी योग न कर। चुपचाप आकर बैठ जाएं । एक घंटे म चुपचाप यहां बैठूंगा। उस बीच कसी के भी मन म लगे क मेरे पास आना है, तो वह दो मनट के लए आकर चुपचाप बैठ जाए और फर अपनी जगह चला जाए। दो मनट के बाद न के, ता क सरे लोग को आना हो तो वे आ सक। एक घंटे चुपचाप बैठकर ती ा कर। इस बीच अगर आप कह भी घूमने जाते ह--सागर के तट पर या कह भी एकांत म--तो कह भी अकेले म बैठकर ान म ही रह। ये तीन दन सतत ान म ही बताने क को शश कर। हमारी सुबह क बैठक पूरी ई।

:3 ान है महामृ ु एक म पूछ रहे ह क ओशो, कुंड लनी जागरण म खतरा है तो कौन सा खतरा है ? और य द खतरा है तो फर उसे जा त ही कया जाए?

खतरा तो ब त है। असल म, जसे हमने जीवन समझ रखा है, उस पूरे जीवन को ही खोने का खतरा है। जैसे हम ह, वैसे ही हम कुंड लनी जा त होने पर न रह जाएं गे; सब कुछ बदलेगा--सब कुछ--हमारे संबंध, हमारी वृ यां, हमारा संसार; हमने कल तक जो जाना था वह सब बदलेगा। उस सबके बदलने का ही खतरा है। ले कन अगर कोयले को हीरा बनना हो, तो कोयले को कोयला होना तो मटना ही पड़ता है। खतरा ब त है। कोयले के लए खतरा है। अगर हीरा बनेगा तो कोयला मटे गा तो ही हीरा बनेगा। शायद यह आपको खयाल म न हो क हीरे और कोयले म जा तगत कोई फक नह है; कोयला और हीरा एक ही त ह। कोयला ही लंबे अरसे म हीरा बन जाता है। हीरे और कोयले म के मकली कोई ब त बु नयादी फक नह है। ले कन कोयला अगर हीरा बनना चाहे तो कोयला न रह सकेगा। कोयले को ब त खतरा है। और ऐसे ही मनु को भी खतरा है--परमा ा होने के रा े पर कोई जाए, तो मनु तो मटे गा। नदी सागर क तरफ दौड़ती है। सागर से मलने म बड़ा खतरा है। नदी मटे गी; नदी बचेगी नह । और खतरे का मतलब ा होता है? खतरे का मतलब होता है, मटना। तो जनक मटने क तैयारी है, वे ही केवल परमा ा क तरफ या ा कर सकते ह। मौत इस बुरी तरह नह मटाती जस बुरी तरह ान मटा देता है। क मौत तो सफ एक शरीर से छु ड़ाती है और सरे शरीर से जुड़ा देती है। आप नह बदलते मौत म। आप वही के वही होते ह जो थे, सफ व बदल जाते ह। इस लए मौत ब त बड़ा खतरा नह है। और हम सारे लोग तो मौत को बड़ा खतरा समझते ह। तो ान तो मृ ु से भी ादा बड़ा खतरा है; क मृ ु केवल व छीनती है, ान आपको ही छीन लेगा। ान महामृ ु है। पुराने दन म जो जानते थे, वे कहते ही यही थे: ान मृ ु है; टोटल डेथ। कपड़े ही नह बदलते, सब बदल जाता है। ले कन जसे सागर होना हो जस स रता को, उसे खतरा उठाना पड़ता है। खोती कुछ भी नह है, स रता जब सागर म गरती है तो खोती कुछ भी नह है, सागर हो जाती है। और कोयला जब हीरा बनता है तो खोता कुछ भी नह है, हीरा हो जाता है। ले कन कोयला जब तक कोयला है तब तक तो उसे डर है क कह खो न जाऊं; और नदी जब तक नदी है तब तक भयभीत है क कह खो न जाऊं। उसे ा पता

क सागर से मलकर खोएगी नह , सागर हो जाएगी। वही खतरा आदमी को भी है। और वे म पूछते ह क फर खतरा हो तो खतरा उठाया ही जाए? यह भी थोड़ा समझ लेना ज री है। जतना खतरा उठाते ह हम, उतने ही जी वत ह; और जतना खतरे से भयभीत होते ह, उतने ही मरे ए ह। असल म, मरे ए को कोई खतरा नह होता। एक तो बड़ा खतरा यह नह होता क मरा आ मर नह सकता है अब। जी वत जो है वह मर सकता है। और जतना ादा जी वत है, उतनी ही ती ता से मर सकता है। एक प र पड़ा है और पास म एक फूल खला है। प र कह सकता है फूल से क तू नासमझ है! खतरा उठाता है फूल बनने का? क सांझ न हो पाएगी और मुरझा जाएगा। फूल होने म बड़ा खतरा है, प र होने म खतरा नह है। प र सुबह भी पड़ा था, सांझ जब फूल गर जाएगा तब भी वह होगा। प र को ादा खतरा नह है, क प र को ादा जीवन नह है। जतना जीवन, उतना खतरा है। इस लए जो जतना जीवंत होगा, जतना ल वग होगा, उतना खतरे म है। ान सबसे बड़ा खतरा है, क ान सबसे गहरे जीवन क उपल म ले जाने का ार है। नह , वे म पूछते ह क खतरा है तो जाएं ही ? म कहता ं , खतरा है इस लए ही जाएं । खतरा न होता तो जाने क ब त ज रत न थी। जहां खतरा न हो वहां जाना ही मत, क वहां सवाय मौत के और कुछ भी नह है। जहां खतरा हो वहां ज र जाना, क वहां जीवन क संभावना है। ले कन हम सब सुर ा के ेमी ह, स ो रटी के ेमी ह। इन स ो रटी, असुर ा है, खतरा है, तो भागते ह भयभीत होकर, डरते ह, छप जाते ह। ऐसे-ऐसे हम जीवन खो देते ह। जीवन को बचाने म ब त लोग जीवन खो देते ह। जीवन को तो वे ही जी पाते ह जो जीवन को बचाते नह , ब उछालते ए चलते ह। खतरा तो है। इसी लए जाना, क खतरा है। और बड़े से बड़ा खतरा है। और गौरीशंकर क चोटी पर चढ़ने म इतना खतरा नह है। और न चांद पर जाने म इतना खतरा है। अभी या ी भटक गए थे, तो बड़ा खतरा है। ले कन खतरा व को ही था। शरीर ही बदल सकते थे। ले कन ान म खतरा बड़ा है, चांद पर जाने से बड़ा है। पर खतरे से हम डरते ह? यह कभी सोचा क खतरे से हम इतने डरते ह? सब तरह के खतरे से डरने के पीछे अ ान है। डर लगता है क कह मट न जाएं । डर लगता है कह खो न जाएं । डर लगता है कह समा न हो जाएं । तो बचाओ, सुर ा करो, दीवाल उठाओ, कला बनाओ, छप जाओ। अपने को बचा लो सब खतर से। मने सुनी है एक घटना। मने सुना है क एक स ाट ने एक महल बना लया। और उसम सफ एक ही ार रखा था क कह कोई खतरा न हो। कोई खड़क -दरवाजे से आ न जाए न। एक ही दरवाजा रखा था, सब ार-दरवाजे बंद कर दए थे। मकान तो ा था, क बन गई थी। एक थोड़ी सी कमी थी क एक दरवाजा था। उससे भीतर जाकर उससे बाहर नकल सकता था। उस दरवाजे पर भी उसने हजार सै नक रख छोड़े थे। पड़ोस का स ाट उसे देखने आया, उसके महल को। सुना उसने क सुर ा का कोई इं तजाम कर लया है म ने, और ऐसी सुर ा का इं तजाम कया है जैसा पहले कभी

कसी ने भी नह कया होगा। तो वह स ाट देखने आया। देखकर स आ। उसने कहा क न आ नह सकता, खतरा कोई हो नह सकता। ऐसा भवन म भी बना लूंगा। फर वे बाहर नकले। भवन के मा लक ने बड़ी खुशी वदा दी। और जब म स ाट अपने रथ पर बैठता था तो उसने फर बारा- बारा कहा: ब त सुंदर बनाया है, ब त सुर त बनाया है; म भी ऐसा ही बना लूंगा; ब त-ब त ध वाद। ले कन सड़क के कनारे बैठा एक भखारी जोर से हं सने लगा। तो उस भवनप त ने पूछा क पागल, तू हं स रहा है? तो उस भखारी ने कहा क मुझे आपके भवन म एक भूल दखाई पड़ रही है। म यहां बैठा रहता ं , यह भवन बन रहा था तब से। तब से म सोचता ं क कभी मौका मल जाए आपसे कहने का तो बता ं : एक भूल है। तो स ाट ने कहा, कौन सी भूल? उसने कहा, यह जो एक दरवाजा है, यह खतरा है। इससे और कोई भला न जा सके, कसी दन मौत भीतर चली जाएगी। तुम ऐसा करो क भीतर हो जाओ और यह दरवाजा भी बंद करवा लो, ट जुड़वा दो। तुम बलकुल सुर त हो जाओगे। फर मौत भी भीतर न आ सकेगी। उस स ाट ने कहा, पागल, आने क ज रत ही न रहेगी। क अगर यह दरवाजा बंद आ तो म मर ही गया; वह तो क बन जाएगी। उस भखारी ने कहा, क तो बन ही गई है, सफ एक दरवाजे क कमी रह गई है। तो तुम भी मानते हो, उस भखारी ने कहा क एक दरवाजा बंद हो जाएगा तो यह मकान क हो जाएगा? उस स ाट ने कहा, मानता ं । तो उसने कहा क जतने दरवाजे बंद हो गए, उतनी ही क हो गई है; एक ही दरवाजा और रह गया है। उस भखारी ने कहा, कभी हम भी मकान म छपकर रहते थे। फर हमने देखा क छपकर रहना यानी मरना। और जैसा तुम कहते हो क अगर एक दरवाजा और बंद करगे तो क हो जाएगी, तो मने अपनी सब दीवाल भी गरवा द , अब म खुले आकाश के नीचे रह रहा ं । अब--जैसा तुम कहते हो, सब बंद होने से मौत हो जाएगी--सब खुले होने से जीवन हो गया है। म तुमसे कहता ं क सब खुले होने से जीवन हो गया है। खतरा ब त है, ले कन सब जीवन हो गया है। खतरा है, इसी लए नमं ण है; इसी लए जाएं । और खतरा कोयले को है, हीरे को नह ; खतरा नदी को है, सागर को नह ; खतरा आपको है, आपके भीतर जो परमा ा है उसको नह । अब सोच ल: अपने को बचाना है तो परमा ा खोना पड़ता है; और परमा ा को पाना है तो अपने को खोना पड़ता है। जीसस से कसी ने एक रात जाकर पूछा था क म ा क ं क उस ई र को पा सकूं जसक तुम बात करते हो? तो जीसस ने कहा, तुम कुछ और मत करो, सफ अपने को खो दो, अपने को बचाओ मत। उसने कहा, कैसी बात कर रहे ह आप! खोने से मुझे ा मलेगा? तो जीसस ने कहा, जो खोता है, वह अपने को पा लेता है; और जो अपने को बचाता है, वह सदा के लए खो देता है। कोई और सवाल ह तो हम बात कर ल। संक क कमी से वकास अव

पूछा जा रहा है क ओशो, कुंड लनी जा त हो तो कभी-कभी क क पर अवरोध हो जाता है , क जाती है । तो उसके क जाने का कारण ा है ? और ग त दे ने का उपाय ा है ?

कारण कुछ और नह सफ एक है क हम पूरी श से नह पुकारते और पूरी श से नह जगाते। हम सदा ही अधूरे ह और आं शक ह। हम कुछ भी करते ह तो आधा-आधा, हाफ हाटडली करते ह। हम कुछ भी पूरा नह कर पाते। बस इसके अ त र और कोई बाधा नह है। अगर हम पूरा कर पाएं तो कोई बाधा नह है। ले कन हमारी पूरे जीवन म सब कुछ आधा करने क आदत है। हम ेम भी करते ह तो आधा करते ह। और जसे ेम करते ह उसे घृणा भी करते ह। ब त अजीब सा मालूम पड़ता है क जसे हम ेम करते ह, उसे घृणा भी करते ह। और जसे हम ेम करते ह और जसके लए जीते ह, उसे हम कभी मार डालना भी चाहते ह। ऐसा ेमी खोजना क ठन है जसने अपनी ेयसी के मरने का वचार न कया हो। ऐसा हमारा मन है, आधा-आधा। और वपरीत आधा चल रहा है। जैसे हमारे शरीर म बायां और दायां पैर है, वे दोन एक ही तरफ चलते ह, ले कन हमारे मन के बाएं -दाएं पैर उलटे चलते ह। वही हमारा तनाव है। हमारे जीवन क अशां त ा है? क हम हर जगह आधे ह। अब एक युवक मेरे पास आया, और उसने मुझे कहा क मुझे बीस साल से आ ह ा करने का वचार चल रहा है। तो मने कहा, पागल, कर नह लेते हो? बीस साल ब त लंबा व है। बीस साल से आ ह ा का वचार कर रहे हो तो कब करोगे? मर जाओगे पहले ही, फर करोगे? वह ब त च का। उसने कहा, आप ा कहते ह? म तो आया था क आप मुझे समझाएं गे क आ ह ा मत करो। मने कहा, मुझे समझाने क ज रत है? बीस साल से तुम कर ही नह रहे हो! और उसने कहा क जसके पास भी म गया वही मुझे समझाता है क ऐसा कभी मत करना। मने कहा, उन समझानेवाल क वजह से ही न तो तुम जी पा रहे हो और न तुम मर पा रहे हो; आधे-आधे हो गए हो। या तो मरो या जीओ। जीना हो तो फर आ ह ा का खयाल छोड़ो, और जी लो। और मरना हो तो मर जाओ, जीने का खयाल छोड़ दो। वह दो-तीन दन मेरे पास था। रोज म उससे यही कहता रहा क अब तू जीवन का खयाल मत कर, बीस साल से सोचा है मरने का तो मर ही जा। तीसरे दन उसने मुझसे कहा, आप कैसी बात कर रहे ह? म जीना चाहता ं । तो मने कहा, म कब कहता ं क तुम मरो। तुम ही पूछते थे क म बीस साल से मरना चाहता ं । अब यह थोड़ा सोचने जैसा मामला है: कोई आदमी बीस साल तक मरने का सोचे, तो यह आदमी मरा तो है ही नह , जी भी नह पाया है। क जो मरने का सोच रहा है, वह जीएगा कैसे? हम आधे-आधे ह। और हमारे पूरे जीवन म आधे-आधे होने क आदत है। न हम म बनते कसी के, न हम श ु बनते; हम कुछ भी पूरे नह हो पाते। और आ य है क अगर हम पूरे भी श ु ह तो आधे म होने से ादा आनंददायी है। असल म, पूरा होना कुछ भी आनंददायी है। क जब भी पूरा का पूरा उतरता है, तो म सोई ई सारी श यां साथ हो जाती ह। और जब

आपस म बंट जाता है, ि ट हो जाता है, दो टुकड़े हो जाता है, तब हम आपस म भीतर ही लड़ते रहते ह। अब जैसे कुंड लनी जा त न हो, बीच म अटक जाए, तो उसका केवल एक मतलब है क आपके भीतर जगाने का भी खयाल है, और जग जाए, इसका डर भी। आप चले भी जा रहे ह मं दर क तरफ, और मं दर म वेश क ह त भी नह है। दोन काम कर रहे ह। आप ान क तैयारी भी कर रहे ह और ान म उतरने का, ान म छलांग लगाने का साहस भी नह जुटा पाते ह। तैरने का मन है, नदी के कनारे प ं च गए ह, और तट पर खड़े होकर सोच रहे ह। तैरना भी चाहते ह, पानी म भी नह उतरना चाहते! इरादा कुछ ऐसा है क कह कमरे म ग ा-त कया लगाकर, उस पर लेटकर हाथ-पैर फड़फड़ाकर तैरने का मजा मल जाए तो ले ल। नह , पर ग े-त कए पर तैरने का मजा नह मल सकता। तैरने का मजा तो खतरे के साथ जुड़ा है। आधापन अगर है तो कुंड लनी म ब त बाधा पड़ेगी। इस लए अनेक म को अनुभव होगा क कह चीज जाकर क जाती है। क जाती है तो एक ही बात ान म रखना, और कोई बहाने मत खोजना। ब त तरह के बहाने हम खोजते ह-- क पछले ज का कम बाधा पड़ रहा होगा, भा बाधा पड़ रहा होगा, अभी समय नह आया होगा। ये हम सब बात सोचते ह, ये सब बात कोई भी सच नह ह। सच सफ एक बात है क आप पूरी तरह जगाने म नह लगे ह। अगर कह भी कोई अवरोध आता हो, तो समझना क छलांग पूरी नह ले रहे ह। और ताकत से कूदना, अपने को पूरा लगा देना, अपने को सम ीभूत छोड़ देना। तो कसी क पर, कसी च पर कुंड लनी केगी नह । वह तो एक ण म भी पार कर सकती है पूरी या ा, और वष भी लग सकते ह। हमारे अधूरेपन क बात है। अगर हमारा मन पूरा हो तो अभी एक ण म भी सब हो सकता है। कह भी के तो समझना क हम पूरे नह ह, तो पूरा साथ देना, और श लगा देना। और श क अनंत-अनंत साम हमारे भीतर है। हमने कभी कसी काम म कोई बड़ी श नह लगाई है। हम सब ऊपर-ऊपर जीते ह। हमने अपनी जड़ को कभी पुकारा ही नह । इसी लए बाधा पड़ सकती है। और ान रहे, और कोई बाधा नह है। कोई और सवाल हो तो पूछ। भु क ास का अभाव एक म पूछते ह क ओशो, ज होती!

के साथ ही भूख होती है , न द होती है ,

ास होती है , ले कन भु क

ास तो नह

इस बात को थोड़ा समझ लेना उपयोगी है। ास तो भु क भी ज के साथ ही होती है, ले कन पहचानने म बड़ा समय लग जाता है। जैसे उदाहरण के लए: ब े सभी से के साथ पैदा होते ह, ले कन पहचानने म चौदह साल लग जाते ह। काम क , से क भूख तो ज के साथ ही होती है, ले कन चौदह-पं ह साल लग जाते ह उसक पहचान आने म। और पहचान आने म चौदह-पं ह साल लग जाते ह? ास तो भीतर होती है,

ले कन शरीर तैयार नह होता। चौदह साल म शरीर तैयार होता है, तब ास जग पाती है। अ था सोई पड़ी रहती है। परमा ा क ास भी ज के साथ ही होती है, ले कन शरीर तैयार नह हो पाता। और जब भी शरीर तैयार हो जाता है तब त ाल जग जाती है। तो कुंड लनी शरीर क तैयारी है। ले कन आप कहगे क यह अपने आप नह होता? कभी-कभी अपने आप होता है। ले कन--इसे समझ ल--मनु के वकास म कुछ चीज पहले य को होती ह, फर समूह को होती ह। जैसे उदाहरण के लए, ऐसा तीत होता है क पूरे वेद को पढ़ जाएं , ऋ ेद को पूरा देख जाएं , तो ऐसा नह लगता क ऋ ेद म सुगंध का कोई बोध है। ऋ ेद के समय के जतने शा ह सारी नया म, उनम कह भी सुगंध का कोई भाव नह है। फूल क बात है, ले कन सुगंध क बात नह है। तो जो जानते ह, वे कहते ह क ऋ ेद के समय तक आदमी क सुगंध क जो ास है वह जाग नह पाई थी। फर कुछ लोग को जागी। अभी भी सुगंध मनु म ब त कम लोग को ही अथ रखती है, ब त कम लोग को। अभी सारे लोग म सुगंध क इं य पूरी तरह जाग नह पाई है। और जतनी वक सत कौम ह, उतनी ादा जाग गई है; जतनी अ वक सत कौम ह, उतनी कम जागी है। कुछ तो कबीले अभी भी नया म ऐसे ह जनके पास सुगंध के लए कोई श नह है। पहले कुछ लोग को सुगंध का भाव जागा, फर वह धीरे -धीरे ग त क और वह कले व माइं ड, सामू हक मन का ह ा बना। और भी ब त सी चीज धीरे -धीरे जागी ह, जो कभी नह थ , एक दन था क नह थ । रं ग का बोध भी ब त हैरान करनेवाला है। अर ू ने अपनी कताब म तीन रं ग क बात क है। अर ू के जमाने तक यूनान म लोग को तीन रं ग का ही बोध होता था। बाक रं ग का कोई बोध नह होता था। फर धीरे -धीरे बाक रं ग दखाई पड़ने शु ए। और अभी भी जतने रं ग हम दखाई पड़ते ह, उतने ही रं ग ह, ऐसा मत समझ लेना। रं ग और भी ह, ले कन अभी बोध नह जगा। इस लए कभी एल एस डी, या मे लीन, या भांग, या गांजा के भाव म ब त से और रं ग दखाई पड़ने शु हो जाते ह, जो हमने कभी भी नह देखे ह। और रं ग ह अनंत। उन रं ग का बोध भी धीरे -धीरे जाग रहा है। अभी भी ब त लोग ह जो कलर ाइं ड ह। यहां अगर हजार म आए ह , तो कम से कम पचास आदमी ऐसे नकल आएं गे जो कसी रं ग के त अंधे ह। उनको खुद पता नह होगा। उनको खयाल भी नह होगा। कुछ लोग को हरे और पीले रं ग म कोई फक नह दखाई पड़ता। साधारण लोग को नह , कभी-कभी बड़े असाधारण लोग को, बनाड शॉ को खुद कोई फक पता नह चलता था हरे और पीले रं ग म। और साठ साल क उ तक पता नह चला क उसको पता नह चलता है। वह तो पता चला साठव वषगांठ पर कसी ने एक सूट भट कया। वह हरे रं ग का था। सफ टाई देना भूल गया था, जसने भट कया था। तो बनाड शॉ बाजार टाई खरीदने गया। वह पीले रं ग क टाई खरीदने लगा। तो उस कानदार ने कहा क अ ा न मालूम पड़ेगा इस हरे रं ग म यह पीला। उसने कहा क ा कह रहे ह? बलकुल दोन एक से ह। उस कानदार ने कहा, एक से! आप मजाक तो नह

कर रहे? क बनाड शॉ आमतौर से मजाक करता था। सर, आप मजाक तो नह कर रहे? इन दोन को एक रं ग कह रहे ह आप! यह पीला है, यह हरा है। उसने कहा, दोन हरे ह। पीला यानी? तब बनाड शॉ ने आंख क जांच करवाई तो पता चला पीला रं ग उसे दखाई नह पड़ता; पीले रं ग के त वह अंधा है। एक जमाना था क पीला रं ग कसी को दखाई नह पड़ता था। पीला रं ग मनु क चेतना म नया रं ग है। तो ब त से रं ग नये आए ह मनु क चेतना म। संगीत सभी को अथपूण नह है, कुछ को अथपूण है। उसक बारी कय म कुछ लोग को बड़ी गहराइयां ह। कुछ के लए सफ सर पीटना है। अभी उनके लए र का बोध गहरा नह आ है। अभी मनु -जा त के लए संगीत सामू हक अनुभव नह बना। और परमा ा तो ब त ही र, आ खरी, अत य अनुभव है। इस लए ब त थोड़े से लोग जाग पाते ह। ले कन सबके भीतर जागने क मता ज के साथ है। ले कन जब भी हमारे बीच कोई एक आदमी जाग जाता है, तो उसके जागने के कारण भी हमम ब त क ास जो सोई हो वह जागना शु हो जाती है। जब कभी कोई एक कृ हमारे बीच उठ आता है, तो उसे देखकर भी, उसक मौजूदगी म भी, हमारे भीतर जो सोया है वह जागना शु हो जाता है। धम वरोधी मू त समाज हम सबके भीतर है ज के साथ ही वह ास भी, वह भूख भी, ले कन वह जाग नह पाती। ब त कारण ह। सबसे बड़ा कारण तो यही है.सबसे बड़ा कारण तो यही है क जो बड़ी भीड़ है हमारे चार तरफ, उस भीड़ म वह ास कह भी नह है। और अगर कसी म उठती भी है तो वह उसे दबा लेता है, क वह उसे पागलपन मालूम होती है। चार तरफ जहां सारे लोग धन क ास से भरे ह , यश क ास से भरे ह , वहां धम क ास पागलपन मालूम पड़ती है। और चार तरफ के लोग सं द हो जाते ह क कुछ दमाग तो नह खराब हो रहा है! आदमी अपने को दबा देता है। उठ नह पाती, जग नह पाती, सब तरफ से दमन हो जाता है। और जो हमने नया बनाई है, उस नया म हमने परमा ा को जगह नह छोड़ी, क जैसा मने कहा बड़ा खतरनाक है परमा ा को जगह छोड़ना, हमने वह जगह नह छोड़ी है। प ी डरती है क कह प त के जीवन म परमा ा न आ जाए। क परमा ा के आने से प ी तरो हत भी हो सकती है। प त डरता है, कह प ी के जीवन म परमा ा न आ जाए। क अगर परमा ा आ गया तो प त परमा ा का ा होगा? यह स ी ूट परमा ा कहां जाएगा? इसक जगह कहां होगी? हमने जो नया बनाई है, उसम परमा ा को जगह नह रखी है। और परमा ा वहां ड र बग सा बत होगा। वह अगर वहां आता है तो वहां गड़बड़ होगी। गड़बड़ सु न त है। वहां कुछ न कुछ अ होगा। वहां न द टूटे गी, कह कुछ होगा, कह कुछ चीज बदलनी पड़गी। हम ठीक वही तो नह रह जाएं गे जो हम थे। तो इस लए हमने उसे घर के बाहर छोड़ा है। ले कन कह वह जग ही न जाए उसक ास, इस लए हमने झूठे परमा ा अपने घर म बना लए-- क अगर कसी को जगे भी, तो यह रहे भगवान। एक प र क मू त खड़ी है, उसक पूजा करो। ता क असली भगवान क तरफ ास न चली जाए। तो

स ी ूट गॉ स हमने पैदा कए ए ह। यह आदमी क सबसे बड़ी क नगनेस, सबसे बड़ी चालाक , सबसे बड़ा ष यं है। परमा ा के खलाफ जो बड़े से बड़ा ष यं है, वह आदमी के बनाए ए परमा ा ह। इनक वजह से जो ास उसक खोज म जाती, वह उसक खोज म न जाकर मं दर और म द के आसपास भटकने लगती है, जहां कुछ भी नह है। और जब वहां कुछ भी नह मलता तो आदमी को लगता है क इससे तो अपना वह घर ही बेहतर; इस मं दर और म दम ा रखा आ है! तो मं दर-म द हो आता है, घर लौट आता है। उसे पता नह क मं दर-म द ब त धोखे क ईजाद ह। मने तो सुना है क एक दन शैतान ने लौटकर अपनी प ी को कहा क अब म बलकुल बेकार हो गया ं , अब मुझे कोई काम ही न रहा। उसक प ी ब त हैरान ई, जैसे क प यां हैरान होती ह अगर कोई बेकार हो जाए। उसक प ी ने कहा, आप और बेकार! ले कन आप कैसे बेकार हो गए? आपका काम तो शा त है! लोग को बगाड़ने का काम तो सदा चलेगा; यह बंद तो होनेवाला नह । यह कैसे बंद हो गया? आप कैसे बेकार हो गए? उस शैतान ने कहा, म बेकार बड़ी मु ल से हो गया, बड़े अजीब ढं ग से हो गया। अब मेरा जो काम था वह मं दर और म द, पं डत और पुजारी कर देते ह; मेरी कोई ज रत नह है। आ खर भगवान से ही लोग को भटकाता था। अब भगवान क तरफ कोई जाता ही नह ! बीच म मं दर खड़े ह, वह भटक जाता है। हम तक कोई आता ही नह मौका क हम भगवान से भटकाएं । परमा ा क ास तो है। और बचपन से ही हम परमा ा के संबंध म कुछ सखाना शु कर देते ह, उससे नुकसान होता है; जानने के पहले यह म पैदा होता है क जान लया। हर आदमी परमा ा को जानता है! ास पैदा ही नह हो पाती और हम पानी पला देते ह। उससे ऊब पैदा हो जाती है और घबड़ाहट पैदा हो जाती है। परमा ा अ चकर हो जाता है हमारी श ाओं के कारण; कोई च नह रह जाती। और इतना ठूंस देते ह, दमाग को ऐसा फ कर देते ह--गीता, कुरान, बाइ बल से; महा ाओं से, साधुओ-ं संत से, वा णय से इस बुरी तरह सर भर देते ह क मन यह होता है क कब इससे छु टकारा हो। तो परमा ा तक जाने का सवाल नह उठता। हमने जो व ा क है वह ई र- वरोधी है, इस लए ास बड़ी मु ल हो गई। और अगर कभी उठती है तो आदमी फौरन पागल मालूम होने लगता है। त ाल पता चलता है क यह आदमी पागल हो गया है, क वह हम सबसे भ हो जाता है। वह और ढं ग से जीने लगता है; वह और ढं ग से ास लेने लगता है; सब उसका तौर-तरीका बदल जाता है। वह हमारे बीच का आदमी नह रह जाता, वह जर हो जाता है, वह अजनबी हो जाता है। हमने जो नया बनाई है, वह ई र- वरोधी है। बड़ा प ा ष यं है। और अभी तक हम सफल ही रहे ह। अभी तक हम सफल ही ए चले जा रहे ह। हम ई र को बलकुल बाहर कर दए ह। उसक ही नया से हमने उसे बलकुल बाहर कया आ है। और हमने एक जाल बनाया है जसके भीतर उसके घुसने के लए हमने कोई दरवाजा नह छोड़ा है। तो ास कैसे जगे? ले कन, ास भला न जगे, ास का भला पता न चले, ले कन तड़पन

भीतर और गहरी घूमती रहती है जदगी भर। यश मल जाता है, फर भी लगता है कुछ खाली रह गया; धन मल जाता है और लगता है क कुछ अन मला रह गया; ेम मल जाता है और लगता है क कुछ छूट गया जो नह मला, नह पाया जा सका। वह ा है जो हर बार छूट गया मालूम पड़ता है? एक दशाहीन ास वह हमारे भीतर क एक ास है, जसको हमने पूरा होने से, बढ़ने से, जगने से सब तरह से रोका है। वह ास जगह-जगह खड़ी हो जाती है, हमारे हर रा े पर च बन जाती है। और वह कहती है: इतना धन पा लया, ले कन कुछ मला नह ; इतना यश पा लया, ले कन कुछ मला नह ; सब पा लया, ले कन खाली हो तुम। वह ास जगह-जगह से हम क चती है, कुरे दती है, जगह-जगह से छेदती है। ले कन हम उसको झुठलाकर फर अपने काम म और जोर से लग जाते ह, ता क यह आवाज सुनाई न पड़े। इस लए धन कमानेवाला और जोर से कमाने लगता है, और जोर से कमाने लगता है। यश क दौड़वाला और तेजी से दौड़ने लगता है। वह अपने कान बंद कर लेता है क सुनाई न पड़े क कुछ भी नह मला। हमारा सारा का सारा इं तजाम ास को जगने से रोकता है। अ था.एक दन ज र पृ ी पर ऐसा होगा क जैसे ब े भूख और ास लेकर, और से और यौन लेकर पैदा होते ह, ऐसे ही वे डवाइन थ , परमा ा क ास लेकर भी पैदा होते ए मालूम पड़गे। वह नया कभी बन सकती है; बनाने जैसी है। कौन बनाए उसे? ब त ासे लोग जो परमा ा को खोजते ह, उस नया को बना सकते ह। ले कन जैसा अब तक है, उस सारे ष यं को तोड़ देने क ज रत है, तब ऐसा हो सकता है। ास तो है। ले कन आदमी कृ म उपाय कर ले सकता है। अब चीन म हजार साल तक य के पैर म लोहे का जूता पहनाया जाता था, क पैर छोटा रहे। छोटा पैर स दय का च था। जतना छोटा पैर हो, उतने बड़े घर क लड़क थी। तो यां चल ही नह सकती थ , पैर इतने छोटे रह जाते थे। शरीर तो बड़े हो जाते, पैर छोटे रह जाते। वे चल ही न पात । जो ी बलकुल न चल पाती, वह उतने शाही खानदान क ी! क गरीब क ी तो अफोड नह कर सकती थी, उसको तो पैर बड़े ही रखना पड़ता था; उसको तो चलना पड़ता था, काम करना पड़ता था। सफ शाही यां चलने से बच सकती थ । तो कंध पर हाथ का सहारा लेकर चलती थ । अपंग हो जाती थ , ले कन समझा जाता था क स दय है। अपंग होना था वह। आज चीन क कोई लड़क तैयार न होगी; कहेगी: पागल थे वे लोग। ले कन हजार साल तक यह चला। जब कोई चीज चलती है तो पता नह चलता। जब हजार लोग, इक ी भीड़ करती है तो पता नह चलता। जब सारी भीड़ पैर म जूते पहना रही हो लोहे के, तो सारी लड़ कयां पहनती थ । जो नह पहनती, उसको लोग कहते क तू पागल है। उसे अ ा, सुंदर प त न मलता, संप प रवार न मलता, वह दीन और द र समझी जाती। और जहां भी उसका पैर दख जाता वह गंवार समझी जाती--अ श त, असं ृ त। क तेरा पैर इतना बड़ा! पैर सफ बड़े गंवार के ही चीन म होते थे, सुसं ृ त का पैर तो छोटा होता था।

तो हजार साल तक इस खयाल ने वहां क य को पंगु बनाए रखा। खयाल भी नह आया क हम यह ा पागलपन कर रहे ह! ले कन वह चला। जब टूटा तब पता चला क यह तो पागलपन था। ऐसे ही सारी मनु ता का म पंगु बनाया गया है, ई र क से। ई र क तरफ जाने क जो ास है, उसे सब तरफ से काट दया जाता है; उसको पनपने के मौके नह दए जाते। और अगर कभी उठती भी हो, तो झूठे स ी ूट खड़े कर दए जाते ह और बता दया जाता है--परमा ा चा हए? चले जाओ मं दर म! परमा ा चा हए? पढ़ लो गीता, पढ़ो कुरान, पढ़ो वेद-- मल जाएगा। वहां कुछ भी नह मलता, श मलते ह। मं दर म प र मलते ह। तब आदमी सोचता है क कुछ भी नह है, तो शायद अपनी ास ही झूठी रही होगी। और फर ास ऐसी चीज है क आई और गई। जब तक आप मं दर गए तब तक ास चली गई। जब तक आपने गीता पढ़ी तब तक ास चली गई। फर धीरे -धीरे ास कुं ठत हो जाती है। और जब कसी ास को तृ होने का मौका न मले तो वह मर जाती है। वह धीरे -धीरे मर जाती है। अगर आप तीन दन भूखे रह, तो ब त जोर से भूख लगेगी पहले दन; सरे दन और जोर से लगेगी; तीसरे दन और जोर से लगेगी; चौथे दन कम हो जाएगी, पांचव दन और कम हो जाएगी, छठव दन और कम हो जाएगी; पं ह दन के बाद भूख लगनी बंद हो जाएगी। महीने भर भूखे रह जाएं , फर पता ही नह चलेगा क भूख ा है। कमजोर होते चले जाएं गे, ीण होते चले जाएं गे, रोज वजन कम होता चला जाएगा, अपना मांस पचा जाएं गे, ले कन भूख लगनी बंद हो जाएगी; क अगर महीने भर तक भूख को मौका न दया बढ़ने का, तो मर जाएगी। मने सुना है, का का ने एक छोटी सी कहानी लखी है। उसने एक कहानी लखी है क एक बड़ा सकस है, और उस बड़े सकस म ब त तरह के लोग ह, और ब त तरह के खेल तमाशे ह। उस सकसवाले ने एक फा करनेवाले को, उपवास करनेवाले को भी इक ा कर लया है। वह उपवास करने का दशन करता है। उसका भी एक झोपड़ा है। सकस म और ब त चीज को लोग देखने आते ह--जंगली जानवर को देखते ह, अजीब-अजीब जानवर ह। इस अजीब आदमी को भी देखते ह। यह महीन बना खाने के रह जाता है। वह तीन-तीन महीने तक बना खाने के रहकर उसने दखलाया है। न त ही, उसको भी लोग देखने आते ह। ले कन कतनी बार देखने आएं ? एक गांव म सकस छह-सात महीने का। महीने-पं ह दन लोग उसको देखने आए। फर ठीक है, अब भूखा रहता है तो रहता है। कब तक लोग देखने आएं गे? सकस है, साधु-सं ासी ह, इस लए इनको गांव बदलते रहना चा हए। एक ही गांव म ादा दन रहे तो ब त मु ल हो। वे कतने दन तक लोग आएं गे? इस लए दो-तीन दन म गांव बदल लेने से ठीक रहता है। सरे गांव म फर लोग आ जाते ह। सरे गांव म फर लोग आ जाते ह। उस गांव म सकस ादा दन क गया। लोग उसको देखने आना बंद कर दए। उसक झोपड़ी क फकर ही भूल गए। वह इतना कमजोर हो गया था क मैनेजर को जाकर खबर भी नह कर पाया; उठ भी नह सकता था; पड़ा रहा, पड़ा रहा, पड़ा रहा--बड़ा

सकस था, लोग भूल ही गए। चार महीने, पांच महीने हो गए, तब अचानक एक दन पता चला क भई, उस आदमी का ा आ जो उपवास कया करता था? तो मैनेजर भागा क वह आदमी मर न गया हो। उसका तो पता ही नह है! जाकर देखा तो वह जस घास क गठरी म पड़ा रहता था वहां घास ही घास था, आदमी तो था नह । आवाज दी! उसक तो आवाज नह नकलती थी। घास को अलग कया तो वह बलकुल ह ी-ह ी रह गया था। आंख उसक ज र थ । मैनेजर ने पूछा क भई, हम भूल ही गए, मा करो! ले कन तुम कैसे पागल हो, अगर लोग नह आते थे, तो तु खाना लेना शु कर देना चा हए था! उसने कहा क ले कन अब खाना लेने क आदत ही छूट गई है; भूख ही नह लगती। अब म कोई खेल नह कर रहा ं , अब तो खेल करने म फंस गया ं । कोई खेल नह कर रहा, ले कन अब भूख ही नह है। अब म जानता ही नह क भूख ा है। भूख कैसी चीज है वह मेरे भीतर होती ही नह । ा हो गया इस आदमी को? लंबी भूख व ा से क जाए तो भूख मर जाती है। परमा ा क भूख को हम जगने नह देते। क परमा ा से ादा ड र बग फै र कुछ और नह हो सकता है। इस लए हमने इं तजाम कया आ है। हम बड़ी व ा से, ान से रोके ए ह सब तरफ से क वह कह से भीतर न आ जाए। अ था हर आदमी ास लेकर पैदा होता है। और अगर उसे जगाने क सु वधा दी जाए, तो धन क ास, यश क ास तरो हत हो जाएं , वही ास रह जाए। आ क ास से ां त और भी एक कारण है क या तो परमा ा क ास रहे और या फर सरी ास रह, सब साथ नह रह सकत । इस लए इन ास को--धन क , यश क , काम क --इन ास को बचाने के लए परमा ा क ास को रोकना पड़ा है। अगर उसक ास जगेगी, तो वह सभी को तरो हत कर लेगी, अपने म समा हत कर लेगी। वह अकेली ही रह जाएगी। परमा ा ब त ई ालु है। वह जब आता है तो बस अकेला ही रह जाता है; फर वह कसी को टकने नह देता वहां। जब वह आपको अपना मं दर बनाएगा तो वहां छोटे -मोटे देवी-देवता और न टकगे, क कई रखे ए ह: हनुमान जी भी वह वराजमान ह, और देवीदेवता भी वराजमान ह, ऐसा परमा ा न टकने देगा। जब वह आएगा तो सब देवीदेवताओं को बाहर कर देगा। वह अकेला ही वराजमान हो जाता है। ब त ई ालु है। कता होने का म : ओशो,

जो काय करता है , वह परमा

ा ही ारा नह होता है

ा?

यह सवाल ठीक पूछा है क जो काय करता है, वह परमा ा ही ारा नह होता है ा? जब तक करता है, तब तक नह होता। जब तक को लगता है--म कर रहा ं , तब तक नह होता। जस दन को लगता है--म ं ही नह , हो रहा है--उस दन परमा ा

का हो जाता है। जब तक डूइं ग का खयाल है क कर रहा ं , तब तक नह । जस दन हैप नग हो जाती है-- क हो रहा है। हवाओं से पूछ क बह रही हो? हवाएं कहगी, नह , बहाई जा रही ह। वृ से पूछो, बड़े हो रहे हो? वे कहगे, नह , बड़े कए जा रहे ह। सागर क लहर से पूछो, तु तट से टकरा रही हो? वे कहगी, नह , बस टकराना हो रहा है। तब तो परमा ा का हो गया। आदमी कहता है, म कर रहा ं ! बस वह से ार अलग हो जाता है; वह से आदमी का अहं कार घेर लेता है; वह से आदमी अपने को अलग मानकर खड़ा हो जाता है। जस दन आदमी को भी पता चलता है क जैसे हवाएं बह रही ह, और जैसे सागर क लहर चल रही ह, और वृ बड़े हो रहे ह, और फूल खल रहे ह, और आकाश म तारे चल रहे ह, ऐसा ही म चलाया जा रहा ं ; कोई है जो मेरे भीतर चलता है, और कोई है जो मेरे भीतर बोलता है; म अलग से कुछ भी नह ं ; बस उस दन परमा ा ही है। कता होने का हमारा म है। वही म हम ख देता है; वही म दीवाल बन जाता है। जस दन हम कता नह ह, उस दन कोई म शेष नह रह जाता; उस दन वही रह जाता है। अभी भी वही है। ऐसा नह है क आप कता ह तो आप कता हो गए ह। ऐसा म नह कह रहा ं । जब आप समझ रहे ह क म कता ं , तो सफ आपको म है। अभी भी वही है। ले कन आपको उसका कोई पता नह है। हालत बलकुल ऐसी है जैसे आप रात सो जाएं आज नारगोल म और रात सपना देख क कलक ा प ं च गए ह। कलक ा प ं च नह गए ह, कतना ही सपना देख, ह नारगोल म ही, ले कन सपने म कलक ा प ं च गए ह। और अब आप कलक े म पूछ रहे ह क मुझे नारगोल वापस जाना है, अब म कौन सी े न पकडूं? अब म हवाई जहाज से जाऊं, क रे लगाड़ी से जाऊं, क पैदल चला जाऊं? म कैसे प ं च पाऊंगा? रा ा कहां है? माग कहां है? कौन मुझे प ं चाएगा? गाइड कौन है? न े देख रहे ह, पता लगा रहे ह। और तभी आपक न द टूट गई है। और न द टूटकर आपको पता लगता है क म कह गया नह , म वह था। फर आप न े वगैरह नह खोजते। फर आप गाइड नह खोजते। फर अगर कोई आपसे कहे भी क ा इरादा है, कलक े से वापस न लौ टएगा? तो आप हं सते ह, आप कहते ह, कभी गया ही नह ; कलक ा कभी गया नह , सफ जाने का खयाल आ था। आदमी जब अपने को कता समझ रहा है तब भी कता है नह , तब भी खयाल ही है, सपना ही है क म कर रहा ं । सब हो रहा है। यह सपना ही टूट जाए, तो जसे ान कह, जसे जागरण कह, वह घ टत हो जाए। और जब हम ऐसा कहते ह क वह मुझसे करवा रहा है, तब भी म जारी है, क तब भी म फासला मान रहा ं --म मान रहा ं क म भी ं , वह भी है; वह करवानेवाला है, म करनेवाला ं । नह , जब आपको सच म ही आप जागगे, तो आप ऐसा नह कहगे क हां, म अभी-अभी कलक े से लौट आया ं । ऐसा नह कहगे; आप कहगे, म गया ही नह था। जस दन आप इस न द से जागगे जो कता होने क है, अहं ता क , ईगो क न द है, उस दन आप ऐसा नह कहगे क वह करवा रहा है और म करनेवाला ं । उस दन आप कहगे: वही है, म ं कहां! म कभी था ही नह ; एक देखा था जो टूट गया है।

और हम जीवन-जीवन तक देख सकते ह; अनंत ज तक देख सकते ह। के देखने का कोई अंत नह है। कतने ही देख सकते ह। और का बड़े से बड़ा मजा तो यह है क जब आप देखते ह तब वह बलकुल स मालूम होता है। आपने ब त बार सपने देखे ह। रोज रात देखते ह। और रोज सुबह जानते ह क सपना था, झूठा था। फर आज रात देखगे जब, तब खयाल न आएगा क सपना है, झूठा है। तब फर जंचेगा क बलकुल ठीक है। फर सुबह कल जागकर कहगे क झूठा था। कतनी कमजोर है ृ त! सुबह उठकर कहते ह, सब सपने झूठे थे! रात फर सपने देखते ह। और सपने म वे फर सच हो जाते ह। वह सारा बोध जो सुबह आ था, फर खो गया। न त ही वह कोई गहरा बोध न था, ऊपर-ऊपर आ था। गहरे म फर वही ां त चल रही है। ऐसे ऊपर-ऊपर हम बोध हो जाते ह। कोई कताब पढ़ लेता है, और उसम पढ़ लेता है क सब परमा ा करवा रहा है। तो एक ण को ऊपर से एक बोध हो जाता है क म करनेवाला नह ं , परमा ा करवा रहा है। ले कन अभी भी वह कहता है--म करनेवाला नह , परमा ा करवा रहा है। ले कन वह म अभी जारी है। वह अभी कह रहा है क म करनेवाला नह । वह एक ण म खो जाएगा। एक जोर से ध ा दे द उसे, और वह ोध से भर जाएगा और कहेगा क जानते नह म कौन ं ? वह भूल जाएगा क अभी वह कह रहा था क म करनेवाला नह ; म नह ं ; म कोई नह ं , परमा ा ही है। एक जोर से ध ा दे द, सब भूल जाएगा; एक ण म सब खो जाएगा। वह कहेगा, मुझे ध ा दया, जानते नह म कौन ं ? वह परमा ा वगैरह एकदम वदा हो जाएगा! म वापस लौट आएगा। मने सुना है, एक सं ासी हमालय रहा तीस वष तक। शां त म था, एकांत म था। भूल गया, अहं कार न रहा। अहं कार के लए सरे का होना ज री है। क वह द अदर अगर न हो तो अहं कार खड़ा कहां करो? तो सरे का होना ज री है। सरे क आंख म जब अकड़ से झांको, तब वह खड़ा होता है। अब सरा ही न हो तो कस क अकड़ से झांकोगे? कहां कहो क म ं ! क तू चा हए। म को खड़ा करने के लए एक और झूठ चा हए, वह तू है। उसके बना वह खड़ा नह होता। झूठ के लए एक स म चा हए पड़ती है ब त से झूठ क , तब एक झूठ खड़ा होता है। स अकेला खड़ा हो जाता है, झूठ कभी अकेला खड़ा नह होता। झूठ के लए और झूठ क ब यां लगानी पड़ती ह। म का झूठ खड़ा करना हो तो तू, वह, वे, इन सबके झूठ खड़े करने पड़ते ह, तब म बीच म खड़ा हो पाता है। वह आदमी अकेला था जंगल म, पहाड़ पर था, कोई तू न था, कोई वह न था, कोई वे न थे, कोई हम न था, भूल गया म। तीस साल लंबा व था, शांत हो गया। नीचे से लोग आने लगे। फर लोग ने ाथना क क एक मेला भर रहा है, पहाड़ ऊंचा है, ब त लोग यहां तक न आ सकगे, और ाथना हम करते ह क आप नीचे चलकर दशन दे द। सोचा क अब तो मेरा म रहा नह , अब चलने म हज ा है! ऐसा ब त बार मन धोखा देता है। अब तो मेरा म न रहा, अब चलने म हज ा है! आ गया। नीचे ब त भीड़ थी, लाख लोग का मेला था। अप र चत लोग थे, उसे कोई जानता न था। तीस साल पहले वह आदमी गया था। उसको लोग भूल भी चुके थे। जब वह भीड़ म चला, कसी का जूता उसके पैर पर पड़ गया। जूता पैर पर पड़ा, उसने उसक गरदन पकड़

ली और कहा क जानता नह म कौन ं ? वे तीस साल एकदम खो गए, जैसे एक सपना वदा हो गया। वे तीस साल--वह पहाड़, वह शां त, वह शू ता, वह म का न होना, वह परमा ा होना--सब वदा हो गया। एक सेकड म, वह था ही नह कभी, ऐसा वदा हो गया। गरदन पर हाथ कस गए और कहा क जानता नह म कौन ं ? तब अचानक उसे खयाल आया क यह म ा कह रहा ं ! म तो भूल गया था क म ं । यह वापस कैसे लौट आया? तब उसने लोग से मा मांगी, और उसने कहा क अब मुझे जाने दो। लोग ने कहा, कहां जा रहे ह? उसने कहा, अब पहाड़ न जाऊंगा, अब मैदान क तरफ जा रहा ं । उ ने कहा, ले कन यह ा हो गया? उसने कहा क जो तीस साल पहाड़ के एकांत म मुझे पता न चला, वह एक आदमी के संपक म पता चल गया। अब म मैदान क तरफ जा रहा ं ; वह र ं गा; वह पहचानूंगा क म है या नह है। सपना हो गया तीस साल; समझता था सब खो गया; सब वह के वह है, कह कुछ खोया नह है। तो ां तयां पैदा हो जाती ह। ले कन ां तय से काम नह चल सकता है। अब हम ान के लए बैठ, क कल से तो फक हो जाएगा। कल से सुबह सफ ान करगे और रात सफ चचा करगे। ले कन आज तो आज के हसाब से। थोड़े-थोड़े फासले पर हो जाएं , ले कन ब त फासले पर न जाएं ; क मने सुबह अनुभव कया क जो लोग ब त र चले गए, वह जो यहां एक साइ कक एटमॉसफइर होता है, उसके फायदे से वं चत रह गए। इस लए ब त र न जाएं । फासले पर हो जाएं , ले कन ब त र न जाएं , बीच म ब त जगह न छोड़। अ था यहां जो एक वातावरण न मत होता है, आप उसके बाहर पड़ जाते ह और उसका फायदा नह उठा पाते। तो ब त र से पास आ जाएं । बस फासला इतना कर ल। जनको लेटना हो वे अपनी जगह बना ल, लेट जाएं ; जनको बैठना हो वे बैठ; ले कन ब त र भी न जाएं । और बातचीत बलकुल न कर। बातचीत जरा भी न कर। बना बातचीत के जो काम हो सके, उसम बातचीत कर! ा बात है? प र मारा गया है। प र था वह? चलो कोई बात नह , स ालकर रखो, कसी ने ेम से फका होगा। हां, जो लोग इधर पीछे कुछ लोग बात कर रहे ह, वे बात न कर, या तो बैठते ह तो चुपचाप बैठ जाएं या फर चले जाएं । कोई भी दशक क है सयत से न बैठे। और दशक क है सयत से ही बैठे तो कम से कम चुप बैठे। कसी को कसी के ारा बाधा न हो। और कोई म , मालूम होता है, प र फकते ह। दो-तीन प र फके ह। तो प र फकने ह तो मेरी तरफ फकने चा हए, बाक कसी क तरफ नह फकने चा हए। ठीक है, बैठ जाएं । जो जहां है वह बैठ जाए। आंख बंद कर ल। पहला चरण: एक घंटे पूरी ताकत लगानी है। आंख बंद कर ल, आंख बंद कर ल। गहरी ास लेना शु कर। देख, सागर इतने जोर से, इतने जोर से ास लेता है, स वन इतने जोर से ास लेता है। जोर से ास ल। पूरी ास भीतर ले जाएं , पूरी ास बाहर नकाल। एक ही काम रह जाए दस मनट तक-- ास ले रहे, छोड़ रहे; ास ले रहे, छोड़ रहे। और भीतर सा ी बन जाएं , भीतर देखते रह-- ास भीतर आई, बाहर गई। दस मनट ास लेने क

या म गहरे उतर। शु कर! गहरी ास ल, गहरी ास छोड़.गहरी ास ल, गहरी ास छोड़.गहरी ास ल, गहरी ास छोड़.गहरी ास ल, गहरी ास छोड़। पूरी श लगाएं । यह रात हम मली, यह मौका हम मला-- फर मले, न मले। पूरी श लगाएं । कुछ हो सकता है तो पूरी श से होगा। एक इं च भी बचाएं गे, नह होगा।.पूरी गहरी ास ल.बस एक यं रह जाए शरीर, ास ले रहा है। यं क भां त ास ले रहा है। एक यं मा रह गए ह। और देख, संकोच न कर और सरे क फकर न कर, अपनी फकर कर.गहरी ास ल.एक यं मा रह जाएं । शरीर एक यं है। एक दस मनट तक गहरी से गहरी ास ल और गहरी ास छोड़, बस ास लेनेवाले ही रह जाएं . ास ले रहे ह, छोड़ रहे ह.ले रहे ह, छोड़ रहे ह। और देखते रह भीतर--सा ी मा । देख रहे ह-- ास भीतर आई, ास बाहर गई. ास भीतर आई, ास बाहर गई। लगाएं .श लगाएं । दस मनट म चुप होता ं , आप पूरी श लगाएं । ऐसा नह क म क ं तब आप एक-दो ास गहरी ल और फर धीमी लेने लग। दस मनट पूरी ताकत लगाएं . ास म पूरी श लगा द--गहरी ास ल, गहरी ास छोड़। सारा शरीर कंप जाए, रोआं-रोआं कंप जाए। सारे शरीर म व ुत जग जाएगी, भीतर कोई श उठने लगेगी, रोएं -रोएं म फैलने लगेगी.छोड़, पूरी ताकत लगाएं --गहरी ास ले रहे, छोड़ रहे.गहरी ास ले रहे, छोड़ रहे.गहरी ास ले रहे, छोड़ रहे.गहरी ास ले रहे, छोड़ रहे.गहरी ास ले रहे, छोड़ रहे.गहरी ास ले रहे, छोड़ रहे.गहरी से गहरी ल. गहरी ास ले रहे, गहरी ास छोड़ रहे.गहरी ास ले रहे, गहरी ास छोड़ रहे.पूरा एक यं रह जाए शरीर, सफ ास लेने का एक यं रह जाए.सागर के गजन म एक हो जाएं , हवाओं क लहर म एक हो जाएं . सफ ास ले रहे ह.और कुछ भी नह करना है--गहरी ास ले रहे, छोड़ रहे. गहरी ास ले रहे, छोड़ रहे.गहरी ास ले रहे, छोड़ रहे.गहरी ास ले रहे, छोड़ रहे.और भीतर सा ी बने रह. श पूरी लगाएं । रणपूवक गहरी ास ल, गहरी ास छोड़.गहरी ास ल, गहरी ास छोड़.गहरी ास ल, गहरी ास छोड़. रणपूवक गहरी ास ल, गहरी ास छोड़.भीतर जागकर देखते रह-- ास भीतर आई, ास बाहर गई. ास भीतर आई, ास बाहर गई.अपने को जरा भी बचाएं न.अपने को बचाएं न, पूरा लगा द--गहरी ास, और गहरी, और गहरी, और गहरी। ास लेने और छोड़ने के अ त र और कुछ भी न बचे. ास लेने-छोड़ने के अ त र और कुछ भी न बचे.गहरी ास, और गहरी.और गहरी.और गहरी.और गहरी.और गहरी. देख, कहने को न बचे क हमने कम कया, मुझसे कहने को न रहे क हम पूरा नह कए। कह बात के न, पूरी श लगाएं । सरे सू पर जाने के पहले अपने को थका डाल.पूरी ताकत लगाएं .गहरी ास, गहरी ास.गहरी ास. गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास. ास ही रह गई है, बस ास ही हो गए हम, ास ही ह सफ.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.और भीतर देखते रह-- ास आई, ास गई--सा ी बने रह। ास आती दखाई पड़ेगी, ास जाती दखाई पड़ेगी। भीतर देखते रह, देखते रह.ती .और

ती .और ती . (लोग का नाचना, कंपना, आवाज नकालना.) सरे सू पर जाने के लए और ती ! जब आप पूरी ती ता म ह गे, तब ही म सरे सू पर ले जाऊंगा.पूरी श लगाएं .पूरी श लगाएं .पूरी श लगाएं .सब तरह से अपनी सारी श लगा द.गहरी ास.गहरी ास. गहरी ास.गहरी ास.बस ास ही रह गई, ास ही है, और कुछ भी नह --सारी श लगा द.और गहरा. और गहरा.और गहरा.और गहरा.और गहरा. (रोने, च ाने क आवाज.) और गहरा लगा सकते ह, रोक मत। और गहरा.और गहरा.और गहरा.और गहरा लगा सकते ह.और गहरा.कंपने द शरीर.डोलता है, डोलने द.घूमता है, घूमने द.गहरी ास ल.गहरी से गहरी ास ल.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास। सरे सू म वेश करना है.गहरी ास.एक आ खरी मनट, गहरी ास. (अनेक तरह क आवाज.) गहरी ास.गहरी ास.आ खरी मनट, पूरी श लगाएं .गहरी ास, गहरी ास.पूरे ाइमे पर ही बदलाहट ठीक होती है.पूरी श लगाएं एक मनट.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.और गहरी.और गहरी.और गहरी.और गहरी.और गहरी.और गहरी. ास ही रह जाए, ास ही रह जाए। सारी श ास म डोलने लगे. ास ही रह गई. ास ही रह गई. सरा चरण: अब सरे सू म वेश करना है। ास गहरी रख और शरीर को जो करना हो--छोड़ द, करने द। शरीर मु ाएं बनाए, आसन बनाए, शरीर कंपने लगे, घूमने लगे, रोने लगे--छोड़ द शरीर को। शरीर को पूरी तरह छोड़ देना है-- ास गहरी रहेगी और शरीर को छोड़ देना है.शरीर गरे , गर जाए.उठे , उठ जाए.नाचने लगे, चता न कर--शरीर को छोड़ द। शरीर को पूरी तरह छोड़ द. ास गहरी रहेगी और शरीर को पूरी तरह छोड़ द.शरीर को जो करना हो, करने द.जरा भी रोकगे नह , सहयोग कर। शरीर जो करना चाहता है, कोआपरे ट कर, उसके साथ सहयोगी हो जाएं --शरीर घूमता है, घूमे.डोलता है, डोले. गरता है, गर जाए.रोता है, रोए.हं सता है, हं से--छोड़ द--जो भी होता है, होने द. ास गहरी रहे और शरीर को छोड़ द। ास गहरी रहे और शरीर को छोड़ द। (लोग का रोना, चीखना, च ाना, नाचना और शरीर क अनेक ती याएं करना जारी रहा.) एक दस मनट के लए शरीर को पूरी तरह छोड़ द। गहरी ास.गहरी ास.और शरीर को छोड़ द--रोता हो रोए, च ाता हो च ाए.आप कोई नयं ण न कर और शरीर को सहयोग कर--शरीर जो भी कर रहा है, करने द.जो भी हो रहा है, होने द--मु ाएं बनगी, शरीर च र लेगा.भीतर श जगेगी तो शरीर म ब त कुछ होगा--आवाज नकल सकती है, रोना नकल सकता है.कोई चता न कर.छोड़.शरीर को छोड़ द. आज पूरा थका डालना है। सोने के पहले पूरा म ले लेना है। शरीर को छोड़, सहयोग कर.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी

ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास. इसके बाद टे प रे कॉडर पर ध ा लगने से वह बंद हो गया, ले कन ओशो का सुझाव देना और ान- योग जारी रहा। सरे दस मनट साधक गहरी ास लेते रहे.तथा शरीर म हो रही त याओं को सहयोग देकर उसक ती ता बढ़ाते रहे। फर तीसरे चरण म दस मनट तक तेज ास जारी रही, शरीर नाचता- च ाता-गाता रहा, इसके साथ ही साधक को ती ता से मन म ‘म कौन ं ?’, ‘म कौन ं ?’ लगातार पूछते रहने का सुझाव दया गया। साधक को सहज ही हो रही अनेक यौ गक याओं म ती ता आती चली गई। उसका चरम ब आ गया। चौथे दस मनट म सब छोड़कर केवल व ाम करने को कहा गया। न गहरी ास, न ‘म कौन ं ?’ पूछना। बस व ाम, शां त, मौन, शू ता--जैसे मर गए, ह ही नह । सैकड़ साधक का गहरे ान म वेश हो गया, पूरा स वन ान क तरं ग से भर गया। सारे साधक जैसे वराट कृ त से एक हो गए ह , ऐसा लगने लगा। चालीस मनट पूरे होते ही ान क बैठक वस जत कर दी गई, फर भी अनेक साधक ब त देर तक अपने अंदर ही डूबे ए पड़े रहे-- कसी अ ात अंतजगत म उनक ग त होती रही। धीरे -धीरे लोग अपने नवास ान क ओर लौट पड़े--कई साधक आधे घंटे, एक घंटे, दो घंटे तक ान म ही पड़े रहे.बाद म उठकर धीरे -धीरे ान कया।

:4 ान पंथ ऐसो क ठन मेरे

य आ न्!

एक म ने पूछा है क ओशो,



ान भु क कृपा से उपल

होता है ?

इस बात को थोड़ा समझना उपयोगी है। इस बात से ब त भूल भी ई है। न मालूम कतने लोग यह सोचकर बैठ गए ह क भु क कृपा से उपल होगा तो हम कुछ भी नह करना है। य द भु-कृपा का ऐसा अथ लेते ह क आपको कुछ भी नह करना है, तो आप बड़ी ां त म ह। सरी और भी इसम ां त है क भु क कृपा सबके ऊपर समान नह है। ले कन भु-कृपा कसी पर कम और ादा नह हो सकती। भु के चहेत,े चूज़न कोई भी नह ह। और अगर भु के भी चहेते ह तो फर इस जगत म ाय का कोई उपाय न रह जाएगा। भु क कृपा का तो यह अथ आ क कसी पर कृपा करता है और कसी पर अकृपा भी रखता है। ऐसा अथ लया हो तो वैसा अथ गलत है। ले कन कसी और अथ म सही है। भु क कृपा से उपल होता है, यह उनका कथन नह है ज अभी नह मला, यह उनका कथन है ज मल गया है। और उनका कथन इस लए है क जब वह मलता है, तो अपने कए गए यास बलकुल ही इररे लेवट, असंगत मालूम पड़ते ह। जब वह मलता है, तो जो हमने कया था वह इतना ु और जो मलता है वह इतना वराट क हम कैसे कह क जो हमने कया था उसके कारण यह मला है? जब मलता है तब ऐसा लगता है: हमसे कैसे मलेगा? हमने कया ही ा था? हमने दया ही ा था? हमने सौदे म दांव ा लगाया था? हमारे पास था भी ा जो हम करते? था भी ा जो हम देते? जब उसक अनंत-अनंत आनंद क वषा होती है तो उस वषा के ण म ऐसा ही लगता है क तेरी कृपा से ही, तेरे साद से ही, तेरी ेस से ही उपल आ। हमारी ा साम , हमारा ा वश! ले कन यह बात उनक है जनको मला। यह बात अगर उ ने पकड़ ली जनको नह मला, तो वे सदा के लए भटक जाएं गे। यास करना ही होगा। न त ही, यास करने पर मलने क जो घटना घटती है वह ऐसी है, जैसे कसी का ार बंद है, सूरज नकला है, और घर म अंधेरा है। वे ार खोलकर ती ा कर, सूरज भीतर आ जाएगा। सूरज को गठ रय म बांधकर भीतर नह लाया जा सकता, वह अपनी ही कृपा से भीतर आता है। यह मजे क बात है, सूरज को हम भीतर नह ला सकते अपने यास से, ले कन अपने

यास से भीतर आने से रोक ज र सकते ह। ार बंद करके, आंख बंद करके बैठ सकते ह। तो सूरज क म हमा भी हमारी बंद आंख को पार न कर पाएगी। सूरज क करण को हम ार के बाहर रोक सकते ह। रोक सकने म समथ ह, ला सकने म समथ नह । ार खुल जाए, सूरज भीतर आ जाता है। सूरज जब भीतर आ जाए तो हम यह नह कह सकते क हम लाए; हम इतना ही कह सकते ह, उसक कृपा, वह आया। और हम इतना ही कह सकते ह क हमारी अपने पर कृपा क हमने ार बंद न कए। आदमी सफ एक ओप नग बन सकता है उसके आगमन के लए। हमारे यास सफ ार खोलते ह, आना तो उसक कृपा से ही होता है। ले कन उसक कृपा हर ार पर कट होती है। ले कन कुछ ार बंद ह, वह ा करे ? ब त ार पर ई र खटखटाता है और लौट जाता है; वे ार बंद ह। मजबूती से हमने बंद कए ह। और जब वह खटखटाता है, तब हम न मालूम कतनी ा ाएं करके अपने को समझा लेते ह। एक छोटी सी कहानी मुझे ी तकर है, वह म क ं । एक बड़ा मं दर, उस बड़े मं दर म सौ पुजारी, बड़े पुजारी ने एक रात देखा है क भु ने खबर क है म क कल म आ रहा ं । व ास तो न आ पुजारी को, क पुजा रय से ादा अ व ासी आदमी खोजना सदा ही क ठन है। व ास इस लए भी न आ क जो कान करते ह धम क , उ धम पर कभी व ास नह होता। धम से वे शोषण करते ह, धम उनक ा नह है। और जसने ा को शोषण बनाया, उससे ादा अ ालु कोई भी नह होता। पुजारी को भरोसा तो न आया क भगवान आएगा, कभी नह आया। वष से पुजारी है, वष से पूजा क है, भगवान कभी नह आया। भगवान को भोग भी लगाया है, वह भी अपने को ही लग गया है। भगवान के लए ाथनाएं भी क ह, वे भी खाली आकाश म--जानते ए क कोई नह सुनता--क ह। सपना मालूम होता है। समझाया अपने मन को क सपने कह सच होते ह! ले कन फर डरा भी, भयभीत भी आ क कह सच ही न हो जाए। कभीकभी सपने भी सच हो जाते ह; कभी-कभी जसे हम सच कहते ह, वह भी सपना हो जाता है; कभी-कभी जसे हम सपना कहते ह, वह सच हो जाता है। तो अपने नकट के पुजा रय को उसने कहा क सुनो, बड़ी मजाक मालूम पड़ती है, ले कन बता ं । रात सपना देखा क भगवान कहते ह क कल आता ं । सरे पुजारी भी हं स;े उ ने कहा, पागल हो गए! सपने क बात कसी और से मत कहना, नह तो लोग पागल समझगे। पर उस बड़े पुजारी ने कहा क कह अगर वह आ ही गया! तो कम से कम हम तैयारी तो कर ल! नह आया तो कोई हज नह , आया तो हम तैयार तो मलगे। तो मं दर धोया गया, प छा गया, साफ कया गया; फूल लगाए गए, दीये जलाए गए; सुगंध छड़क गई, धूप-दीप सब; भोग बना, भोजन बने। दन भर म पुजारी थक गए; कई बार देखा सड़क क तरफ, तो कोई आता आ दखाई न पड़ा। और हर बार जब देखा तब लौटकर कहा, सपना सपना है, कौन आता है! नाहक हम पागल बने। अ ा आ, गांव म खबर न क , अ था लोग हं सते। सांझ हो गई। फर उ ने कहा, अब भोग हम अपने को लगा ल। जैसे सदा भगवान के लए लगा भोग हमको मला, यह भी हम ही को लेना पड़ेगा। कभी कोई आता है! सपने के

च र म पड़े हम, पागल बने हम--जानते ए पागल बने। सरे पागल बनते ह न जानते ए, हम.हम जो जानते ह भलीभां त: कभी कोई भगवान नह आता। भगवान है कहां? बस यह मं दर क मू त है, ये हम पुजारी ह, यह हमारी पूजा है, यह वसाय है। फर सांझ उ ने भोग लगा लया, दन भर के थके ए वे ज ी ही सो गए। आधी रात गए कोई रथ मं दर के ार पर का। रथ के प हय क आवाज सुनाई पड़ी। कसी पुजारी को न द म लगा क मालूम होता है उसका रथ आ गया। उसने जोर से कहा, सुनते हो, जागो! मालूम होता है जसक हमने दन भर ती ा क , वह आ गया! रथ के प हय क जोर-जोर क आवाज सुनाई पड़ती है! सरे पुजा रय ने कहा, पागल, अब चुप भी रहो; दन भर पागल बनाया, अब रात ठीक से सो लेने दो। यह प हय क आवाज नह , बादल क गड़गड़ाहट है। और वे सो गए, उ ने ा ा कर ली। फर कोई मं दर क सी ढ़य पर चढ़ा, रथ ार पर का, फर कसी ने ार खटखटाया, फर कसी पुजारी क न द खुली, फर उसने कहा क मालूम होता है वह आ गया मेहमान जसक हमने ती ा क ! कोई ार खटखटाता है! ले कन सर ने कहा क कैसे पागल हो, रात भर सोने दोगे या नह ? हवा के थप़ेडे ह, कोई ार नह थपथपाता है। उ ने फर ा ा कर ली, फर वे सो गए। फर सुबह वे उठे , फर वे ार पर गए। कसी के पद- च थे, कोई सी ढ़यां चढ़ा था, और ऐसे पद- च थे जो बलकुल अ ात थे। और कसी ने ार ज र खटखटाया था। और राह तक कोई रथ भी आया था। रथ के चाक के च थे। वे छाती पीटकर रोने लगे। वे ार पर गरने लगे। गांव क भीड़ इक ी हो गई। वह उनसे पूछने लगी, ा हो गया है तु ? वे पुजारी कहने लगे, मत पूछो। हमने ा ा कर ली और हम मर गए। उसने ार खटखटाया, हमने समझा हवा के थपेड़े ह। उसका रथ आया, हमने समझी बादल क गड़गड़ाहट है। और सच यह है क हम कुछ भी न समझे थे, हम केवल सोना चाहते थे, और इस लए हम ा ा कर लेते थे। तो वह तो सभी के ार खटखटाता है। उसक कृपा तो सब ार पर आती है। ले कन हमारे ार ह बंद। और कभी हमारे ार पर द क भी दे तो हम कोई ा ा कर लेते ह। पुराने दन के लोग कहते थे, अ त थ देवता है। थोड़ा गलत कहते थे। देवता अ त थ है। देवता रोज ही अ त थ क तरह खड़ा है। ले कन ार तो खुला हो! उसक कृपा सब पर है। इस लए ऐसा मत पूछ क उसक कृपा से मलता है। ले कन उसक कृपा से ही मलता है, हमारे यास सफ ार खोल पाते ह, सफ माग क बाधाएं अलग कर पाते ह; जब वह आता है, अपने से आता है। थम तीन चरण म ान क तैयारी एक सरे म ने पूछा है, उ ओशो,

ने पूछा है:

ान क चार सी ढ़य क बात क है ; उन चार का पूरा-पूरा अथ बताएं ।

पहली बात तो यह समझ ल क तीन सफ सी ढ़यां ह,

ान नह ;

ान तो चौथा ही है।

ार तो चौथा ही है, तीन तो सफ सी ढ़यां ह। सी ढ़यां ार नह ह, सी ढ़यां ार तक प ं चाती ह। चौथा ही ार है-- व ाम, वराम, शू , समपण, मर जाना, मट जाना, ार तो वही है। और तीन जो सी ढ़यां ह वे उस ार तक प ं चाती ह। वे तीन सी ढ़य का मौ लक आधार एक है क य द व ाम म जाना हो तो पूरे तनाव म जाने के बाद ब त आसान हो जाता है। जैसे कोई आदमी दन भर म करता है तो रात सो पाता है। जतना म, उतनी गहरी न द। अब कोई पूछ सकता है क म करने से न द तो उलटी चीज है। तो जसने दन भर म कया है उसे तो न द आनी ही नह चा हए, क म और व ाम उलटी चीज ह। व ाम तो उसे आना चा हए जो दन भर ब र पर पड़ा रहा और व ाम करता रहा! ले कन दन भर जो ब र पर पड़ा रहा, वह रात सो ही न सकेगा। इस लए नया म जतनी सु वधा बढ़ती है, जतना क फट बढ़ता है, उतनी न द वदा होती जाती है। नया म जतना आराम बढ़ेगा, उतनी न द मु ल हो जाएगी। और मजा यह है क आराम हम इसी लए बढ़ा रहे ह क चैन से सो सक। न, आराम बढ़ा क न द गई। क न द के लए म ज री है। जतना म, उतनी गहरी न द। चरम तनाव से चरम व ाम ठीक ऐसे ही, जतना तनाव, अगर चरम हो सके, ाइमे हो सके, उतना गहरा व ाम! तो वे जो तीन सी ढ़यां ह, बलकुल उलटी ह। ऊपर से तो दखाई पड़ेगा क इन तीन म तो हम ब त म म पड़ रहे ह--श लगा रहे, ब त तनाव पैदा कर रहे, अपने को थका रहे, तूफान म डाल रहे, व ए जा रहे--और फर इनसे कैसे व ाम आएगा? इनसे ही आएगा। जतने ऊंचे पहाड़ से गरगे, उतनी गहरी खाई म चले जाएं गे। ान रहे, सब पहाड़ के पास गहरी खाइयां होती ह। असल म, पहाड़ बनता ही नह बना गहरी खाई को बनाए। जब पहाड़ उठता है तो नीचे गहरी खाई बन जाती है। जब आप तनाव म जाते ह तो उसी के कनारे व ाम क श इक ी होने लगती है। जतने ऊंचे उठते ह आप तनाव म.इस लए म कहता ं क पूरी ताकत लगा द, कुछ बचे न, पूरे चुक जाएं , सब भां त सब लगा द, सब हार जाएं , तो जब गरगे उस ऊंचाई से तो गहरी अतल खाई म डूब जाएं गे। वह वराम और व ाम होगा। उसी व ाम के ण म ान फ लत होता है। मूल आधार तो आपको पूरे तनाव म ले जाना और फर तनाव को एकदम से छोड़ देना है। मेरे पास लोग आते ह, वे कहते ह क अगर हम यह तनाव का काय न कर, तो सीधा व ाम नह हो सकता? नह होगा। नह होगा; और अगर होगा तो ब त शैलो, ब त उथला होगा। गहरे कूदना हो पानी म, तो ऊंचे चढ़ जाना चा हए। जतने ऊंचे तट से कूदगे, उतने पानी म गहरे चले जाएं गे। ये वृ ह स के, चालीस फ ट ऊंचे ह गे। इतनी ही इनक जड़ नीचे चली ग । जतना ऊपर जाना हो वृ को उतनी जड़ नीचे चली जाती ह। जतनी जड़ नीचे जाती ह, उतना ही वृ ऊपर चला जाता है। अब यह स का वृ पूछ सकता है क छह ही इं च जड़ भेज तो कोई हजा तो नह है? हजा कुछ भी नह है, छह ही इं च ऊंचे भी जाएं गे। मजे से भेज,

छह इं च भी भेजते ह, भेज ही मत, तो बलकुल ही ऊंचे नह जाएं गे। नी शे ने कह लखा है और ब त अंत का वा लखा है: क ज ग क ऊंचाई छूनी हो, उ नरक क गहराई भी छूनी पड़ती है। ब त अंत क बात है: ज ग क ऊंचाई छूनी हो, उ नरक क गहराई भी छूनी पड़ती है। इस लए साधारण आदमी कभी भी धम क ऊंचाई नह छू पाता, पापी अ र छू लेते ह। क जो पाप क गहराई म उतरता है, वह पु क ऊंचाई म भी चला जाता है। यह जो व ध है, ए ी , अ तय से प रवतन क है। सब प रवतन अ त पर होते ह। एक अ त, और तब प रवतन होता है। घड़ी का पडुलम देखा आपने? वह जाता है, जाता है-बाएं , बाएं , बाएं ! और फर गरता है और दाएं जाने लगता है। आपने कभी खयाल न कया होगा, जब घड़ी का पडुलम बा तरफ जाता है, तब वह दा तरफ जाने क श अ जत कर रहा है। जा रहा है बा तरफ और ताकत इक ी कर रहा है दा तरफ जाने क । जतना बा तरफ जाएगा ऊंचा, उतना ही दा तरफ डोल सकेगा। तो आपके च के पडुलम को जतने तनाव म ले जाया जा सके, फर जब वराम का ण आएगा, उतने ही गहरे वराम म उतर जाएगा। अगर आप तनाव म न ले गए तो वराम म भी नह जाएगा। और लोग ब त अजीब-अजीब बात पूछते ह। ऐसा लगता है क वे वृ नह लगाना चाहते, सफ फूल तोड़ना चाहते ह। ऐसा लगता है, फसल नह बोना चाहते, सफ फल काटना चाहते ह। अब एक म आए, वे बोले क अगर शरीर न हलाएं , न कंपन हो शरीर म, तो कोई क ठनाई तो नह है? क ठनाई कुछ भी नह है। क ठनाई तो कुछ भी न कर तो कोई क ठनाई नह है। ले कन शरीर के कंपन से इतने भयभीत हो रहे ह, तो जब भीतर के कंपन उठगे तो ा होगा? शरीर के कंपने को रोकना चाहते ह, तो जब भीतर श क ऊजा कंपेगी तब ा होगा? नह , वे चाहते ह क भीतर कुछ हो जाए, और बाहर स , सुसं ृ त, श , जैसी श उ ने बनाई है, जो मू त खड़ी कर ली है अपनी, वे वैसे ही मोम के बने खड़े रह और भीतर कुछ हो जाए। वह नह होगा। वह जब भीतर ऊजा उठे गी तो यह सब मोम का पुतला बह जाएगा बलकुल। यह हटे गा, इसको जगह देनी पड़ेगी। तनाव अ त पर प ं च जाए, इसक चे ा कर, ता क फर व ां त अ त पर हो सके। व ां त फर अपने आप हो जाएगी। तनाव आप कर ल, व ां त भु क कृपा से हो जाएगी। तनाव आप उठा ल, फर तो लहर गरे गी और शां त छा जाएगी। तूफान के बाद जैसी शां त होती है वैसी कभी नह होती। तूफान उठना ज री है। और तूफान के बाद जो शां त होती है वह जदा होती है, क वह तूफान से पैदा होती है। तो एक जदा शां त के लए ज री है, जो म कह रहा ं उसम कोई चरण छोड़ा नह जा सकता। इस लए मुझसे कोई आकर बार-बार न पूछे क यह हम छोड़ द, यह हम छोड़ द; शरीर को न हलाएं , सफ ास ल; ास न चलाएं , सफ ‘म कौन ं ?’ यह पूछ। नह , वे तीन चरण ब त व त प से, वै ा नक ढं ग से तनाव क एक अ त से सरी अ त पर ले जाने के लए ह। और इसी लए म कहता ं , एक चरण जब पूरी अ त पर प ं चे तब सरे म बदला जा

सकता है। जैसे कार के गेयर आप बदलते ह। अगर पहले गेयर म गाड़ी आपने चलाई है तो ग त म लानी पड़ती है। जब पहले गेयर पर गाड़ी पूरी ग त म आती है, तब आप उसे सरे गेयर म डालते ह। सरे गेयर पर वह मंदी ग त म हो तो आप तीसरे गेयर म नह डाल सकते ह गाड़ी को। सब प रवतन ती ता म होते ह। च का प रवतन भी ती ता म होता है। ती ास क चोट का रह और तीन का ा अथ है, वह भी समझ लेना चा हए। पहला चरण, जो क पूरे समय जारी रहेगा, ास को गहरी और ती ता से लेने का है। गहरी भी लेना है, डीप भी, और ती ता से भी, फा भी। जतनी गहरी जा सके उतनी गहरी लेनी है और जतनी तेजी से यह लेने और छोड़ने का काम हो सके, यह करना है। ? ास से ा होगा? ास मनु के जीवन म सवा धक रह पूण त है। ास के ही मा म से, सेतु से आ ा और शरीर जुड़े ह। इस लए जब तक ास चलती है, हम कहते ह, आदमी जी वत है। ास गई और आदमी गया। अभी म एक घर म गया जहां नौ महीने से एक ी बेहोश पड़ी है। वह कोमा म आ गई है। और च क क कहते ह क अब वह कभी होश म नह आएगी। ले कन कम से कम तीन साल जदा रह सकती है अभी और। अब उसको बेहोशी म ही दवा और इं जे न और ूकोज दे-देकर कसी तरह से जदा रखे ए ह। वह बेहोश पड़ी है। नौ महीने से उसे कभी होश नह आया। म उनके घर गया, उस ी क मां को मने पूछा क अब यह तो करीबकरीब मर गई। उ ने कहा क नह , जब तक ास तब तक आस। उस बूढ़ी औरत ने कहा, जब तक ास है तब तक आशा है। अब च क क कहते ह, ले कन कौन जाने! च क क कसी को कहते ह क नह मरे गा और वह मर जाता है। कौन जाने, एक दफा होश आ जाए, अभी ास तो है। ास तो है, अभी सेतु गरा नह , अभी ज है। अभी वापसी लौटना हो सकता है। शरीर और ास से तादा व ेद ास हमारी आ ा और शरीर के बीच जोड़नेवाला सेतु है। ास को जब आप ब त ती ता म लेते ह और ब त गहराई म लेते ह, तो शरीर ही नह कंपता, भीतर के आ -तंतु भी कंप जाते ह। जैसे एक बोतल रखी है। और उसम ब त दन से कोई चीज भरी रखी है, कभी कसी ने हलाई नह । तो ऐसा पता नह चलता क बोतल और भीतर भरी चीज दो ह। ब त दन से रखी है, मालूम होता है एक ही है। बोतल हला द जोर से! बोतल हलती है, भीतर क चीज हलती है; बोतल और भीतर क चीज के पृथक होने का ीकरण होता है। तो जब ास को आप सम ग त से लेते ह, तो एक झंझावात पैदा होता है, जो शरीर को भी कंपा जाता है और भीतर आ ा के तंतुओ ं को भी कंपा जाता है। उस कंपन के ण म ही अहसास होता है दोन के पृथक होने का। अब आप मुझसे आकर कहते ह क न ल गहरी ास तो कोई हज तो नह ? हज कुछ भी नह । हज इतना ही है क आप कभी न जान पाएं गे क शरीर से पृथक ह। इसी लए उसम एक सू और जोड़ा आ है क गहरी ास ल और भीतर देखते रह क

ास आई और ास गई। जब आप ास को देखगे क ास आई और ास गई, तो न केवल शरीर अलग है, यह पता चलेगा, ब यह भी पता चलेगा क ास भी अलग है; म देखनेवाला ं , अलग ं । शरीर क पृथकता का पता तो गहरी ास के लेने से भी चल जाएगा, ले कन ास से भी भ ं म, इसका पता ास के त सा ी होने से चलेगा। इस लए पहले चरण म ये दो बात ह। ये दोन अं तम चरण तक जारी रहगी, तीसरे चरण तक। सरे चरण म मनो ं थय का वसजन सरे चरण म शरीर को छोड़ देने के लए म कहता ं । ास गहरी ही रहेगी। शरीर को इस लए छोड़ देने को कहता ं क उसके तो ब त से इं ीकेशंस ह, दो-तीन क बात आपसे क ं गा। पहली तो बात यह है क शरीर म हजार तनाव इक े आपने कर रखे ह, जनका आपको पता ही नह है। स ता ने हम इतना असहज कया है क जब आपको कसी पर ोध आता है तब भी आप मु ु राते रहते ह। शरीर को कुछ पता नह है; शरीर तो कहता है क गदन दबा दो इसक , मु यां बंधती ह। ले कन आप मु ु राते रहते ह, मु ी नह बांधते। तो शरीर के जो ायु मु ी बांधने के लए तैयार हो गए थे, वे बड़ी मु ल म पड़ जाते ह। उ पता ही नह चलता क ा हो रहा है। एक ब त ही बेचैन त शरीर म पैदा हो जाती है। मु ी बंधनी चा हए थी। अभी जो लोग ोध के संबंध को ब त गहराई से समझते ह, वे कहगे, म आपसे क ं गा, अगर आपको ोध आए, तो बजाय इसके क आप झूठे मु ु राते रह, टे बल के नीचे जोर से पांच मनट मु यां बांध और छोड़। और तब आपको जो हं सी आएगी, वह ब त और तरह क होगी। शरीर को कुछ भी पता नह क आदमी स हो गया है। शरीर का सारा काम तो बलकुल यं वत है। ले कन आदमी ने सब पर रोक लगा दी है। उस रोक के कारण शरीर म हजार तनाव इक े हो गए ह। और जब ब त तनाव इक े हो जाते ह, तो कां े पैदा होते ह, ं थयां पैदा होती ह। तो जब म आपसे कहता ं , शरीर को पूरी तरह छोड़ द, तो आपक हजार ं थयां जो आपने बचपन से इक ी क ह, वे सब बखरनी शु होती ह, पघलनी शु होती ह। उनका पघल जाना ज री है। अ था आप कभी भी बॉडीलेसनेस, देहातीत न हो पाएं गे। देह जब फूल क तरह हलक हो जाएगी, सब ं थय से मु .। महावीर का एक नाम शायद आपने सुना हो। महावीर का एक नाम है, न थ। नाम बड़ा अदभुत है। उसका मतलब है, कां े -लेस। न थ का मतलब है, जसक सारी ं थयां और गांठ खो ग , जसम अब कोई गांठ नह भीतर; जो बलकुल सरल हो गया, नद ष हो गया। तो यह शरीर क जो ं थय का जाल है हमारे भीतर, वह मु होना चाहे तो आप छोड़ते नह । आपक स ता, श ता, सं ार, संकोच, कसी का ी होना, कसी का बड़े पद पर होना, कसी का कुछ, कसी का कुछ होना, वह इस बुरी तरह से पकड़े ए है क वह छोड़ता नह । अब आज एक म हला ने मुझे आकर कहा क उसे यही डर लगा रहता है क कोई का हाथ उसको न लग जाए! तो वह बेचारी र जाकर बैठी होगी आज। मगर कोई दो-चार

करवट लेकर उसके पास प ं च गया। तो उसका फर गड़बड़ हो गया। वह मुझे पूछने आई थी क ा म और ब त र जाकर बैठूं? मने कहा, भेजनेवाला वहां भी भेज दे सकता है कसी को। वह अ ा ही है क कोई आता ही है। वहां भी आ जाएगा कोई। तुम जहां बैठती हो, वह बैठो। कसी का हाथ लग जाएगा तो ा हो जाएगा? य क हालत तो ऐसी है क अगर परमा ा भी मले तो वे ऐसी साड़ी बचाकर नकल जाएं गी। वह भी कह छू न जाए। उनका सारा का सारा बॉडी, य का तो पूरा शरीर ं थहै। बचपन से उसका सारा श ण ऐसा है क शरीर उनका एक रोग है। शरीर यां ढो रही ह, शरीर म जी नह रह । वह एक खोल है जसको पूरे व सुर त करके और ढोए चली जा रही ह। और कुछ भी बचाने जैसा नह है उसम। तो यह छोटाछोटा आ ह हमारा ब त कुछ रोक. अब कोई ब त पढ़े- लखे ह तो अब उनको ऐसा लगता है.कोई आज मुझसे एक स न कह रहे थे क यह इमोशनल लोग को हो जाता होगा, भावुक लोग को। इं टेले ुअल को कैसे होगा? अब कोई दो-चार ास पढ़ गया तो वह इं टेले ुअल हो गया! उसक मां मरे गी तो रोएगा क नह वह? उसका कसी से ेम होगा क नह होगा? वह इं टेले ुअल हो गया! वह चार ास पढ़ गया, उसने यु नव सटी से स ट फकेट ले लया है। तो अब वह ेम करे गा तो वह सोचकर करे गा क चुंबन लेना क नह , कतने क टाणु ांसफर हो जाते ह! वह कताब पढ़ेगा, वह जाकर हसाब- कताब लगाएगा क इमोशनल होना क नह होना। इं टेले भी बीमारी क तरह हो गई है। इं टेले कुछ हमारा सौरभ नह बन पाई है। बु हमारी कोई ग रमा नह बनी है, रोग बन गई है। कोई सोचता है क हम इं टेले ुअल ह, हम बु वादी ह; यह हमको नह हो सकता। यह तो उनको हो रहा है जो जरा भावुक ह। भाव क प ं च बु से गहरी ले कन भावुक होना कुछ बुरा है? जीवन म जो भी े है वह भाव से आता है। बु से कसी े ता का कोई ज न कभी आ और न कभी हो सकता है। हां, ग णत का हसाब लगता है, खाते-बही जोड़े जाते ह, यह सब होता है। ले कन जो भी े है, और आ य क बात यह है क व ान, जसको हम समझते ह सबसे बड़ी बौ क या है, उसम भी जो े तम आ व ार ह, वे भी भाव से होते ह, वे भी बु से नह होते। अगर आइं ीन से कोई जाकर पूछे क कैसे तुमने रले ट वटी खोजी? वह कहेगा, मुझे पता नह ; आ गई। यह बड़ी धा मक भाषा है क आ गई। इट हैपड। अगर ूरी से कोई पूछे क कैसे तुमने यह रे डयम खोज नकाला? तो वह कहेगी, मुझे कुछ पता नह , ऐसा आ है; हो गया है; मेरे वश क बात नह है। अगर बड़े वै ा नक से जाकर पूछ तो वह भी कहेगा, हमारे वश के बाहर आ है कुछ; हमारी खोज से नह आ, हमसे कह ऊपर से कुछ आ है; हम सफ मा म थे, इं ू मट थे। बड़ी धम क भाषा है। भाव ब त गहरे म है, बु ब त ऊपर है। बु ब त कामचलाऊ है। बु वैसे ही है, जैसे क गवनर क गाड़ी नकलती है और आगे एक पायलट नकलता है। उस पायलट को गवनर मत समझ लेना। बु पायलट से ादा नह है। वह रा ा साफ करती है, लोग

को हटाती है, हसाब रखती है क रा े पर कोई ट र न हो जाए। ले कन मा लक ब त पीछे है, वह इमोशन है। जीवन म जो भी सुंदर है, े है, वह भाव से ज ता और पैदा होता है। ले कन कुछ लोग पायलट को नम ार कर रहे ह। वे कहते ह, हम इं टेले ुअल ह, हम बु वादी ह; हम पायलट को ही गवनर मानते ह। मानते रह, पायलट भी खड़ा होकर हं स रहा है। बु वा दय क आ वंचना कुछ लोग को खयाल है क कमजोर लोग को हो जाता है। हम श शाली ह, हमको ब त मु ल है। उनको पता नह , उ कुछ भी पता नह । श शा लय को होता है, कमजोर खड़े रह जाते ह। क एक घंटे तक संक पूवक कसी भी त म होना, ब त ांग व के लए संभव है, कमजोर के लए नह । कमजोर तो दो मनट गहरी ास लेते ह, फर बैठ जाते ह। अब वे सरे जो उनको हो रहा है, वे कहते ह, कमजोर को हो रहा है। वे घंटे भर गहरी ास भी नह ले सकते, वे दस मनट ‘म कौन ं ?’ यह भी नह पूछ सकते। इस खयाल म आप मत पड़ना। ले कन ये हमारे रे शनलाइजेशंस ह। ये हमारी बौ क तरक ब ह, जनसे हम अपने को बचाते ह। हम कहते ह, जो कमजोर ह, उनको हो रहा है। हम ब त ताकतवर ह; हमको कैसे होगा? बड़े आ य क बात है। इस नया म सब चीज ताकतवर से होती ह, कमजोर से कुछ भी नह होता। और ान? ान तो अं तम ताकत मांगता है। वे कहगे यह क कमजोर को हो रहा है; और उनको इस लए नह हो रहा है क यह बगलवाला आदमी जोर से रो रहा है, इस लए उनको नह हो पा रहा। और जसको हो रहा है, वह रोने का उसे पता नह ; कौन देख रहा है, उसे पता नह ; कौन सोच रहा है, ा सोच रहा है, पता नह । वह अपनी धुन म पूरा लगा है। उतनी धुन का सात बड़ी श है। कमजोर को नह होता। इस लए अपने अहं कार को थ बचाने क को शश म मत लगना क हम ताकतवर ह, ांग व ह, हम इं टेले ुअल ह, हमको नह होगा। नह होगा, इतना ही जान। नह होने के लए यह और श र चढ़ा रहे ह ऊपर से? इससे न होना भी मीठा लगने लगेगा। और फर होना हमेशा के लए असंभव हो जाएगा। इतना ही जान क मुझे नह हो रहा। नह हो रहा, तो कह कोई कमजोरी है। उस कमजोरी को पहचान, समझ और हल कर। उसको बहा री न समझ क हमको नह हो रहा तो हम ताकतवर ह। अब एक म आए, उ ने कहा क यह तो ह े रक है। कसी को ह ी रया जैसा हो जाता है। उ पता नह क जीवन म, जीवन के भीतर ा- ा छपा है! ह े रक कहकर वे अपने को बचा लगे। अब वे समझ लए क यह तो ये कुछ व लोग ह, जनको होगा। हम, हम तो व नह ह। हमको नह होगा। तो फर बु भी व थे, और महावीर भी, और जीसस, और सुकरात, और मी, और मंसूर--सब व थे। तो इन व क जात म शा मल होना, आप क जात म शा मल होने से बेहतर है। इन पागल

क जमात म ही शा मल हो जाइए। क इन पागल को जो मला वह बु मान को नह मला। जब श ब त ती ता से भीतर उठे गी, तो सारे म तूफान आ जाएगा। वह व ता नह है, क व ता हो, तो फर शांत नह हो सकती। और जब तीन चरण के बाद एक ण म हम शांत हो जाते ह, तो ह े रक नह है। क ह ी रयावाले से कहो क शांत हो जाओ, अब व ाम करो, वह उसके वश के बाहर है। जो भी हो रहा है, वह हमारे वश के भीतर हो रहा है; हम कोआपरे ट कर रहे ह, सहयोग कर रहे ह, इस लए हो रहा है। इस लए जस ण अपने सहयोग को अलग कर लेते ह, वह वदा हो जाता है। स लोग क आंत रक व ता व ता और ा का एक ही ल ण है: जसक माल कयत हाथ म हो उसको ा समझना, और जसक माल कयत हाथ म न हो उसको व ता समझना। अब यह बड़े मजे का ाइटे रयन है। अब जो हो रहा है जनको, जब म कहता ं शांत हो जाएं , वे त ाल शांत हो गए ह। और वे जो बैठे ह, उनसे म क ं क अपने वचार को शांत कर दो, वे कहते ह, होता ही नह ; हम कतना ही कर, वे नह होते। व ह आप, पागल ह आप। जस पर आपका वश नह है, वह पागलपन है; जस पर आपका वश है, वह ा है। जस दन आपके वचार ऑन-ऑफ कर सकगे आप-- क कह द मन को क बस, तो मन वह ठहर जाए--तब आप समझना क ए। और आप कह रहे ह बस, और मन कहता है, कहते रहो; हम जा रहे ह जहां जाना है; जो कर रहे ह, कर रहे ह। सर पटक रहे ह, ले कन वह मन जो करना है, कर रहा है। आप भगवान का भजन कर रहे ह और मन सनेमागृह म बैठा है तो वह कहता है--बैठगे, यही देखगे, करो भजन कतना ही! ले कन आदमी ब त चालाक है और वह अपनी कमजो रय को भी अ े श म छपा लेता है और सरे क े ताओं को भी ब त बुरे श देकर न त हो जाता है। इससे बचना। सच तो यह है क सरे के संबंध म सोचना ही मत। कस को ा हो रहा है, कहना ब त मु ल है। जीवन इतना रह पूण है क सरे के संबंध म सोचना ही मत। अपने ही संबंध म सोच लेना, वही काफ है-- क म तो पागल नह ं , इतना सोच लेना। म कमजोर ं , ताकतवर ं , ा ं , अपने बाबत सोचना। ले कन हम सब सदा सर के बाबत सोच रहे ह क कस को ा हो रहा है? गलत है वह बात। शरीर को पूरी तरह छोड़ देने म, एक तो मने कहा, ं थ-रे चन, वे जो के ए अवरोध ह, वे सब बह जाते ह। सरा, जब शरीर अपनी ग त से चलता है--आप नह चलाते, अपनी ग त से चलता है--तब शरीर क पृथकता ब त होती है। क आप देख रहे ह, और शरीर घूम रहा है; आप देख रहे ह, और शरीर खड़ा हो गया है; आप देख रहे ह, और हाथ कंप रहा है, आप देख रहे ह क म नह कंपा रहा ं और हाथ कंप रहा है; तब आपको पहली दफा पता चलता है क मेरा होना और शरीर का होना कुछ अलग मामला है। तब आपको यह भी पता चल जाएगा क जवान भी म नह आ, शरीर आ है; बूढ़ा भी शरीर होगा, म नह होऊंगा। और अगर यह गहरा आपको पता चला तो पता चलेगा: मरे गा भी शरीर, म नह

म ं गा। इस लए शरीर क पृथकता ब त गहरे म दखाई पड़ेगी जब शरीर यं वत घूमने लगेगा। उसे पूरी तरह छोड़ देना, तभी पता चलेगा। ‘म कौन ं ?’ का तीर और तीसरा सवाल जो हम पूछते ह, ‘म कौन ं ?’ क यह पता चल जाए क शरीर नह ं , यह भी पता चल जाए क ास नह ं , तब भी यह पता नह चलता क म कौन ं । यह नगे टव आ--शरीर नह ं , ास नह ं । यह तो नगे टव आ। ले कन पा ज टव? यह अभी पता नह चलता क म कौन ं । इस लए तीसरा कदम है, जसम हम पूछते ह क म कौन ं । कस से पूछते ह? कसी से पूछने को नह है। खुद से ही पूछ रहे ह। अपने को ही पूरी तरह से सवाल से भर रहे ह क म कौन ं । जस दन यह सवाल पूरी तरह आपके भीतर भर जा एगा, उस दन आप पाएं गे--उ र आ गया, आपके ही भीतर से। क यह नह हो सकता क गहरे तल पर आपको पता न हो क आप कौन ह। जब ह, तो यह भी पता होगा क कौन ह। ले कन वहां तक सवाल को ले जाना ज री है। जैसे क जमीन म पानी है। ऊपर हम खड़े ह ासे, और जमीन म पानी है, ले कन बीच म तीस फ ट क खुदाई करनी ज री है। वह तीस फ ट खुद जाए तो पानी नकल आए। हम है क म कौन ं ? जवाब भी कह तीस फ ट गहरे हमम है, ले कन बीच म ब त सी पत ह जो कट जाएं तो उ र मल जाए। तो वह जो ‘म कौन ं ?’ वह कुदाली का काम करता है। ‘म कौन ं ?’ उसे जतनी ग त से पूछते ह, खुदाई होती है। ले कन पूछ नह पाते। कई दफे बड़ी अदभुत घटना.एक म को सुबह एक अदभुत घटना दो दन से घटती है। वह ब त समझने जैसी है। वे बड़ी ताकत से पूछते ह, वे पूरा म लगाते ह। उनके म म कोई कमी नह है। उनके संक म कोई कमी नह है, ले कन मन क कतनी पत ह! ऊपर से पूछते जाते ह, ‘म कौन ं ?’ इतने जोर से पूछते ह क उनका ऊपर भी नकलने लगता है क ‘म कौन ं ? म कौन ं ? म कौन ं ?’ और इसम बीच-बीच म एक-एक दफा यह भी आवाज आती है--इससे ा होगा, इससे ा होगा। ‘म कौन ं ?’ यह भी पूछते चले जाते ह, और बीच म कभी-कभी यह भी मुंह से नकलता है, ‘इससे ा होगा।’ यह कौन कह रहा है? ‘म कौन ं ?’ पूछ रहे ह; ‘इससे ा होगा’, यह कौन कह रहा है? यह मन क सरी पत कह रही है। वह कह रही है: कुछ भी न होगा। पूछ रहे हो? चुप हो जाओ। मन क एक पत पूछ रही है, म कौन ं ? सरी पत कह रही है, कुछ भी न होगा, चुप हो जाओ, ा पूछ रहे हो! अगर मन म खंड-खंड रह गए तो फर भीतर न घुस पाएं गे। इस लए म कहता ं --पूरी ताकत लगाकर पूछना है। ता क पूरा मन धीरे -धीरे इनवा ड हो जाए, और पूरा मन ही पूछने लगे क म कौन ं ? जस ण ही रह जाएगा-- सफ , तीर क तरह भीतर उतरता--उस दन उ र आने म देर न लगेगी। उ र आ जाएगा। उ र भीतर है। तीन चरण आप करगे, चौथा होगा ान भीतर है। हमने कभी पूछा नह , हमने कभी जगाया नह ; वह जगने को तैयार है। इस लए ये तीन चरण। ले कन ये तीन दरवाजे के बाहर क बात ह; दरवाजे तक छोड़ देती ह। दरवाजे के भीतर तो वेश चौथे चरण म होगा। ले कन जो तीन सी ढ़यां नह चढ़ा वह

दरवाजे म वेश भी नह कर सकेगा। इस लए ान रख, कल तो अं तम दन है हमारा, कल पूरी ताकत लगानी ज री है। इन तीन चरण म पूरी ताकत लगाएं , तो चौथा चरण घ टत हो जाएगा। वह चौथा आप करगे नह , वह होगा; तीन आप करगे, चौथा होगा। : ओशो, चौथा चरण हो जाने के बाद पहले तीन चरण छूट जाएं गे?

फर कोई सवाल नह है। चौथा हो जाए, फर कोई सवाल नह है। फर जैसा ज री लगेगा वह दखाई पड़ेगा। करने जैसा लगेगा तो जारी रहेगा, नह करने जैसा लगेगा तो छूट जाएगा। ले कन वह भी पहले से नह कहा जा सकता। और इस लए नह कहा जा सकता है क पहले से यह सवाल जब हम पूछते ह क जब चौथा हो जाएगा तो वे तीन छूट जाएं गे न? तो अभी भी हमारा मन उन तीन को नह करना चाह रहा, इस लए पूछता है। उन तीन से छूटने क बड़ी इ ा है! तो म नह क ं गा क छूट जाएं गे। क अगर म यह कह ं क छूट जाएं गे, तो अभी ही नह पकड़ पाएं गे उनको आप। छूट जाएं गे, ले कन वह चौथे के बाद क बात है, पहले बात नह उठानी चा हए। हमारा मन ब त तरह से डसीव करता है, वंचना करता है। जब पूछ रही हो तो तु खयाल नह है क तुम पूछ रही हो। बलकुल इस लए पूछ रही हो क ये तीन से कस तरह छु टकारा हो। इन तीन से छु टकारा अगर होगा तो चौथा पैदा ही नह होनेवाला! और इन तीन का भय है? इनका भय है। और वही भय मटाने के लए तो वे तीन ह। द मत वृ य के रे चन का साहस इनका भय है क शरीर कुछ भी कर सकता है। शरीर कुछ भी कर सकता है। तो कह ऐसा कुछ न कर दे। पर ा करे गा शरीर? नाच सकती हो, रो सकती हो, च ा सकती हो, गरोगी। असल क ठनाई यह है क पहले चरण पर ास जारी करो। सरे चरण पर ास जारी रखो और शरीर को ढीला छोड़ दो। ास से और शरीर के ढीले छोड़ने म कोई बाधा नह है, कसी तरह क बाधा नह है। ास गहरी रहेगी, शरीर.तु करना थोड़े ही है क तुम नाचो। अगर तुम नाचो तो फर ास म बाधा पड़ेगी। ले कन अगर नाचना हो जाए तो ास म कोई बाधा नह पड़ेगी। तु नह नाचना है। नाचना हो जाए तो हो जाए। वह जो होता हो, हो जाए। हमारी क ठनाई यह है क या तो हम रोकगे या हम करगे, होने हम न दगे। दो म से हम कुछ भी करने को राजी ह: या तो हम नाचने को रोक लगे या फर हम नाच सकते ह। ले कन हम होने न दगे। इसका भी डर है, ब त डर है। आदमी क पूरी स ता स े सव है। हमने ब त चीज दबाई ई ह और हम डर है क वे सब नकल न आएं । हम ब त भयभीत ह। हम ालामुखी पर बैठे ह। ब त डर है हम। नाचने का ही सवाल नह है। डर ब त गहरे

ह। हमने खुद को इतना दबाया है क हम ब त पता है क ा- ा नकल सकता है उसम। बेटे ने बाप क ह ा करनी चाही है। डरा आ है क कह यह खयाल न नकल आए। प त ने प ी क गदन दबा देनी चाही है। हालां क गदन जब दबाना चाह रहा था, तब भी वह कहता रहा क तेरे बना म एक ण नह जी सकता। और उसक गदन भी दबा देनी चाही थी। वह उसने दबाया आ है भीतर; उसे डर लगता है क कसी ण म यह नकल न आए। गुर जएफ एक फक र था, और इस जमाने म कुछ क मती लोग म से एक था। उसके पास आप जाते, तो पहला काम वह यह करता क पं ह दन तो आपको शराब पलाता, रात-रात आपको शराब पलाता। और जब तक पं ह दन आपको वह शराब पलापलाकर आपक डी न कर लेता, तब तक वह आपको साधना म न ले जाता। क पं ह दन वह शराब पला- पला कर आपके सब द मत रोग को नकलवा लेता, और पहचान लेता क आदमी कैसे हो, ा- ा दबाया है, तब वह इसके बाद साधना म लगाता। और अगर कोई कहता क नह , यह पं ह दन हम शराब पीने को राजी नह , तो वह कहता: दरवाजा खुला है, एकदम बाहर हो जाओ। शायद ही नया म कसी फक र ने शराब पलाई हो। ले कन वह समझदार था; उसक समझ क मती थी; और वह ठीक कर रहा था। क हमने ब त दबाया है; हमारे दमन का कोई हसाब नह है; कोई अंत नह है हमारे दमन का। उस दमन क वजह से हम डरते ह क कह कुछ कट न हो जाए, कह मुंह से कोई बात न नकल जाए; कह ऐसा न हो जाए क जो बात नह कहनी थी, नह बतानी थी, वह आ जाए। अब कसी ने चोरी क है, तो वह पूछने से डरे गा क म कौन ं । क मन कहेगा क तुम चोर हो। यह जोर से नकल सकता है क चोर हो, बेईमान हो, काला-बाजारी हो। यह कह न नकल जाए। तो वह तो कहेगा क पूछना क नह ? जरा धीरे -धीरे पूछो क म कौन ं! क पता तो है क म कौन ं ! म चोर ं । तो वह दबा रहा है उसे। तो वह डर रहा है, वह धीरे -धीरे पूछ रहा है क यह बगलवाले को कह सुनाई न पड़ जाए! कह यह मुंह से नकल जाए क मने चोरी क है! यह नकल सकता है, इसम कोई क ठनाई नह है ब त। तो हमारे कारण ह, हमारे पूछने के कारण ह क हम पूछते ह क ये ज ी छूट जाएं , न करने पड़। ले कन नह , छूटने से नह । करने ही पड़गे। छूट सकते ह, करने से छूटगे। और भीतर से जो आता है उसे आने द। वहां ब त गंदगी छपी है, वह बाहर आएगी। हमने एक चेहरा ऊपर बनाया है, वह हमारा असली चेहरा नह है। तो हम डरते ह। नकली चेहर का कटीकरण अब एक आदमी अपना चेहरा लीप-पोत कर कसी तरह बनाकर बैठा आ है। अब वह डरता है क अगर छोड़ा तो चेहरा कु प हो जाता है। तो वह डरता है क यह कु प चेहरा कोई देख न ले। क वह तो कतना आईने म तैयार होकर आया है घर से। अब वह डरता है क कह मने चेहरा बलकुल छोड़ दया तो चेहरा कु प भी हो सकता है। और जब छोडूंगा तो पाउडर और ल प क उस पर काम नह पड़गे, वे एकदम गड़बड़ हो जाएं गे।

असली चेहरा नकल सकता है। तो वह डरे गा, वह कहेगा क नह , और सब छोड़ा जा सकता है, ले कन चेहरे को नह छोड़ा जा सकता। उसको कसी तरह बनाकर. और हमारे सब चेहरे मेकअप के चेहरे ह, असली चेहरे नह ह। और ऐसा मत सोचना क जो पाउडर नह लगाते, उनके मेकअप के नह ह। मेकअप ब त गहरा है, बना पाउडर के भी चलता है। तो असली चेहरा नकल आएगा। अब असली चेहरा नकल आए तो घबड़ाहट हो सकती है, कोई देख न ले। इस लए हमारे डर ह। ले कन ये डर खतरनाक ह। इन डर को लेकर भीतर नह जाया जा सकता है। ये डर छोड़ने पड़गे। श पात और अहं शू मा म एक अं तम सवाल: एक म पूछते ह क ओशो, श

पात है ?

ा कोई श

पात कर सकता है ?

कोई कर नह सकता, ले कन कसी से हो सकता है। कोई कर नह सकता। और अगर कोई कहता हो क म श पात करता ं , तो फर सब धोखे क बात ह। कोई कर नह सकता, ले कन कसी ण म कसी से हो सकता है। अगर कोई ब त शू है, सब भां त सम पत, सब भां त शू , तो उसके सा म श पात हो सकता है। वह कंड र का काम कर सकता है--जानकर नह । परमा ा क वराट श उसके मा म से कसी सरे म वेश कर सकती है। ले कन कोई जानकर कंड र नह बन सकता, क कंड र बनने क पहली शत यह है क आपको पता न हो; ईगो न हो। नह तो नॉन-कंड र हो जाते ह फौरन। जहां ईगो है बीच म, वहां आदमी नॉन-कंड र हो गया, फर वहां से श वा हत नह होती। तो अगर ऐसे के पास जो सम भां त भीतर से शू है, और जो कुछ नह करना चाहता आपके लए--कुछ करता ही नह वह--उसके वै ूम से, उसके शू से, उसके ार से, उसके माग से परमा ा क श आप तक प ं च सकती है; और ग त ब त ती हो सकती है। कल दोपहर के मौन म इसको खयाल म ल। तो कल के लए दो सूचनाएं भी म इसके साथ दे ं । श पात का अथ है क परमा ा क श आप पर उतर गई। श दो तरह से संभव है--या तो आपसे श उठे और परमा ा तक मल जाए, या परमा ा से श आए और आप तक मल जाए। बात एक ही है; दो तरफ से देखने के ढं ग ह। वह वैसे ही, जैसे कोई गलास म आधा गलास पानी भरा रखा हो, और कोई कहे क आधा गलास खाली, और कोई कहे आधा गलास भरा। और अगर पं डत ह तो ववाद कर, और तय न हो पाए कभी भी क ा मामला है! क दोन ही बात सही ह। ऊपर से भी श उतरती है और नीचे से भी श जाती है। और जब उनका मलन होता है, जहां आपके भीतर सोई ई ऊजा वराट क ऊजा से मलती है, तब ए ोजन, व ोट हो जाता है। उस व ोट के लए कोई भ व वाणी नह क जा सकती। उस व ोट से ा होगा, यह भी नह कहा जा सकता। उस व ोट के बाद

ा होगा, यह भी नह कहा जा सकता। वैसे उस व ोट के बाद, नया म जन लोग को भी वह व ोट आ है, वे जदगी भर यही च ाते रहे क आओ और तुम भी उस व ोट से गुजर जाओ। कुछ आ है जो अ नवचनीय है। श पात का अथ है, ऊपर से श आ जाए। आ सकती है। रोज आती है। और कसी ऐसे के मा म को ले सकती है वह श जो सब भां त शू हो। तो वह कंड र हो जाता है, और कुछ भी नह । ले कन अगर अहं कार थोड़ा भी है, इतना भी क म कर ं गा श पात, तो नॉन-कंड र हो गया वह आदमी, उससे श नह वा हत होगी। खड़े होकर योग करने से ग त ती तम सुबह के लए और सांझ के लए दो सूचनाएं खयाल म ले ल। कल आ खरी दन है, और ब त कुछ संभव हो सकता है। और ब त संभावनाओं से भरकर ही कल सुबह योग करना है। एक तो, जन लोग को कुछ भी हो रहा है, कल सुबह वे खड़े होकर योग करगे। जनको कुछ भी हो रहा है, जनको थोड़ा भी शरीर म कह भी कुछ हो रहा है, कल वे सुबह खड़े होकर योग करगे, क खड़े होकर ती तम ग त संभव होती है। यह आपको पता न होगा क महावीर ने सारा ान खड़े होकर कया। खड़ी हालत म ती तम वाह होता है। म आपको इस लए अब तक खड़े होने के लए नह कहा क आप बैठे क ही ह त नह जुटा पाते तो खड़े क ह त कैसे जुटा पाएं गे। खड़े होने पर ब त जोर से श का आघात होता है। तो वह जो म कह रहा ं क नाच उठ सकते ह, बलकुल पागल होकर नाच सकते ह, वह खड़े होने म संभव हो जाता है। तो कल चूं क आ खरी दन है, और कुछ दस-प ीस म को तो ब त गहराई ई है, तो वे तो कल खड़े हो जाएं । म नाम नह लूंगा, अपने आप आप खड़े हो जाएं । और शु से ही खड़े होकर करना है। कुछ लोग, जनको बीच म लगेगा, वे भी खड़े हो जाएं गे। और खड़े होकर जो भी होता हो, होने देना है। और दोपहर के लए, कल दोपहर के मौन म जब हम बैठगे, तो मेरे पास थोड़ी ादा जगह छोड़ना। और मेरे पास जो लोग भी आएं गे, जब म उनके सर पर हाथ रखू,ं तब उनको जो भी हो, तब उ उसम भी होने देना है। अगर उनके मुंह से चीख नकल जाए, हाथ-पैर हलने लग, वे गर पड़, खड़े हो जाएं ; उ जो भी हो वह होने देना है। जो हम सुबह ान म कर रहे ह, वह दोपहर के मौन म, जो मुझसे मलने आएं गे, मेरे हाथ रखने पर उनको जो कुछ भी हो, उ हो जाने देना है। इस लए मेरे पास थोड़ी कल दोपहर ादा जगह छोड़कर बैठगे। और सुबह, जनको भी ह त हो उनको खड़े होकर ही सुबह का योग करना है। मेरे आने के पहले ही आप चुपचाप खड़े रह। कोई सहारा लेकर खड़ा नह होगा, क आप कोई वृ से टककर खड़े हो जाएं , कोई सहारा लेकर खड़ा नह होगा, सीधे आप खड़े रहगे। श पात क बात आपने पूछी है। खड़ी हालत म ब त लोग को श पात क त हो सकती है। और वातावरण बना है, उसका पूरा उपयोग कया जा सकता है। तो कल, चूं क आ खरी दन होगा श वर का, कल पूरी श लगा देनी है। इस योग का शारी रक व मान सक प रणाम

: ओशो, जो तीन चरण अभी आपने कहे , उनका बॉडी के ऊपर, हाट के ऊपर, नवस स ऊपर, फ जकल और मटल ा असर होता है ?

म और ेन के

ब त से असर पड़ते ह। : हाटफेल तो नह हो जाएगा?

हाटफेल हो जाए तो मजा ही आ जाए, फर ा है! वही तो फेल नह होता, उसे हो जाने द। हो जाने द, हाट फेल हो जाए, फर तो मजा ही है, फर ा है। उसको बचाए फ रएगा, फर होगा तो फेल। मत बचाइए, हो जाने दी जए। और इतना तो आनंद रहेगा क भगवान के रा े पर आ। उतना काफ है। वे म पूछते ह क ा- ा प रणाम ह गे? ब त, प रणाम तो ब त ह गे। ान के, जस योग को म कह रहा ं ान, उससे शरीर पर ब त फ जयोला जकल प रणाम ह गे। शरीर क ब त सी बीमा रयां वदा हो सकती ह, शरीर क उ बढ़ सकती है, के मकल ब त प रवतन ह गे। शरीर म ब त सी ं थयां ह जो करीब-करीब मृत ाय पड़ी रहती ह, वे सब स य हो सकती ह। जैसे हम खयाल नह है, अभी मनोवै ा नक कहते ह, फ जयोला ज भी कहते ह, क ोध म शरीर म वशेष तरह के वष छूट जाते ह। ले कन अभी तक मनोवै ा नक और फ जयोला ज यह नह बता पाते क ेम म ा होता है। ोध म तो वशेष कार के के मकल शरीर म छूट जाते ह, वष छूट जाते ह। सारा शरीर वषा हो जाता है। ेम म भी अमृत छूटता है। ले कन चूं क मु ल से कभी छूटता है, इस लए फ जयोला ज क लेबोरे टरी म अभी वह आदमी नह प ं चा, इस लए उसे पता नह चल पाता। अगर ान का पूरा प रणाम हो, तो शरीर म जैसे ोध म वष छूटता है, ऐसे ेम के अमृत रस छूटने शु हो जाते ह। के मकल प रणाम और भी गहरे होते ह। जैसे क जो लोग भी ान म थोड़े गहरे उतरते ह उ अदभुत रं ग दखाई पड़ते ह, अदभुत सुगंध मालूम पड़ने लगती ह, अदभुत नयां सुनाई पड़ने लगती ह, काश क धाराएं बहने लगती ह, नाद सुनाई पड़ने लगते ह। ये सबके सब के मकल प रणाम ह। ऐसे रं ग जो आपने कभी नह देख,े दखाई पड़ने लगते ह। शरीर क पूरी के म ी बदलती है। शरीर और ढं ग से देखना, सोचना, पहचानना शु कर देता है। शरीर के भीतर बहनेवाली व ुतधारा क सारी धाराएं बदल जाती ह। उन व ुत-धाराओं के सारे स कट बदल जाते ह। ब त कुछ होता है शरीर के भीतर। मान सक तल पर भी ब त कुछ होता है। ले कन वह व ार क बात है। वे जो म पूछते ह, उनसे कभी अलग से बात कर लूंगा। ब त कुछ संभावनाएं ह। गहरी ास का रासाय नक भाव

: ओशो, डीप ी दग का ेन के ऊपर और नवस स

म के ऊपर

ा असर पड़ता है ?

जैसे ही शरीर म डीप ी दग शु करगे तो काबन डाइआ ाइड और ऑ ीजन क मा ाओं का जो अनुपात है, वह बदल जाएगा। जो मा ा हमारे भीतर काबन डाइआ ाइड क है और ऑ ीजन क है, उसका अनुपात बदलेगा सबसे पहले। और जैसे ही काबन डाइआ ाइड का अनुपात बदलता है वैसे ही सारे म और सारे शरीर और खून और ायुओ ं म, सब म प रवतन शु हो जाएगा। क हमारे का सारा आधार ऑ ीजन और काबन डाइआ ाइड के वशेष अनुपात ह। उनके अनुपात म प रवतन सारा प रवतन ले आएगा। तो इसी लए मने कहा क वह अलग से आप आ जाएं , वह तो टे कल बात है, उस सबको उसम कोई रस नह भी हो सकता, तो आपसे बात कर लूंगा। ान का योग और आ -स ोहन और एक म ने इधर पूछा है क ओशो, यह जो

ान क बात है , यह कह ऑटो- ह ो सस, आ

-स

ोहन तो नह ?

आ -स ोहन से ब त र तक मेल है, आ खरी ब पर रा ा अलग हो जाता है। ह ो सस से ब त र तक संबंध है। सारे तीन चरण ह ो सस के ह, सफ सा ी-भाव ह ो सस का नह है। वह जो पीछे पूरे समय वटने सग चा हए-- क म जान रहा ं , देख रहा ं क ास आई और गई; म जान रहा ं , देख रहा ं क शरीर कं पत हो रहा है, घूम रहा है। म जान रहा ं , देख रहा ं --यह जो भाव है, वह स ोहन का नह है। वही फक है। और वह ब त बु नयादी फक है। बाक तो सारा स ोहन क या है। स ोहन क या बड़ी क मती है, अगर वह सा ी-भाव से जुड़ जाए तो ान बन जाती है; और अगर सा ी-भाव से अलग हो जाए तो मू ा बन जाती है। अगर सफ ह ो सस का उपयोग कर तो बेहोश हो जाएं गे; अगर सा ी-भाव का भी साथ म उपयोग कर, तो जा त हो जाएं गे। फक दोन म ब त है, ले कन रा ा ब त र तक एक सा है, आ खरी ब पर अलग हो जाता है। और कुछ

रह गए, वह कल रात हम बात कर लगे।

कुंड लनी , श

:5 पात व भु साद

मेरे य आ न्! ब त आशा और संक से भरकर आज का योग कर। जान क होगा ही। जैसे सूय नकला है, ऐसे ही भीतर भी काश फैलेगा। जैसे सुबह फूल खले ह, ऐसे ही आनंद के फूल भीतर भी खलगे। पूरी आशा से जो चलता है वह प ं च जाता है, और जो पूरी ास से पुकारता है उसे मल जाता है। जो म खड़े हो सकते ह , वे खड़े होकर ही योग को करगे। जो म खड़े ह, उनके आसपास जो लोग बैठे ह, वे थोड़ा हट जाएं गे.कोई गरे तो कसी के ऊपर न गर जाए। खड़े होने पर ब त जोर से या होगी--शरीर पूरा नाचने लगेगा आनंदम होकर। इस लए पास कोई बैठा हो, वह हट जाए। जो म खड़े ह, उनके आसपास थोड़ी जगह छोड़ द--शी ता से। और पूरा साहस करना है, जरा भी अपने भीतर कोई कमी नह छोड़ देनी है। पहला चरण आंख बंद कर ल.गहरी ास लेना शु कर--गहरी ास ल और गहरी ास छोड़.और भीतर देखते रह-- ास आई, ास गई। गहरी ास ल, गहरी ास छोड़। ( योग शु करते ही चार तरफ अनेक ी और पु ष साधक रोने, च ाने और चीखने लगे। ब त लोग का शरीर कंपने लगा और अनेक तरह क याएं होने लग ।) .गहरी ास ल, गहरी ास छोड़. (ब त से साधक अनेक तरह से नाचने, कूदने, उछलने, रोने, चीखने और च ाने लगे, साथ ही अनेक मुंह से अनेक कार क आवाज नकलने लग । ओशो का सुझाव देना चलता रहा.) गहरी ास ल, गहरी ास छोड़.गहरी ास ल, गहरी ास छोड़.श पूरी लगाएं । दस मनट के लए गहरी ास ल और गहरी ास छोड़।.गहरी ास ल, गहरी ास छोड़.गहरी ास ल, गहरी ास छोड़। पूरी श लगाएं .गहरी ास ल, गहरी ास छोड़-और भीतर देखते रह. (ची ार.चीख.इ ा द) गहरी ास ल, गहरी ास छोड़.गहरी ास ल, गहरी ास छोड़.और भीतर देखते रह-ास आ रही, ास जा रही।.श पूरी लगा द.और गहरी.और गहरी.और गहरी. ास म पूरी श लगा द। एक दस मनट पूरी श लगा द।.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास. (लोग का चीखना, च ाना, हं सना.) गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.भीतर देखते रह- ास आई, ास गई.श पूरी लगा द। कुछ भी बचाएं नह , श पूरी लगा द। गहरी

ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास। शरीर एक ऊजा का पुंज मा रह जाएगा। ास ही ास रह जाएगी। शरीर एक व ुत बन जाएगा। गहरी ास. (रोना, चीखना इ ा द.) गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.कोई पीछे न रहे, पूरी श लगा द। गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास. (साधक का हं सना, बड़बड़ाना, ं कार करना, चीखना, नाचना, कूदना.) गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.पांच मनट बचे ह, पूरी श लगाएं . फर हम सरे सू म वेश करगे.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास. (बीच-बीच म अनेक साधक का चीखना, उछलना और मुंह से अनेक तरह क आवाज नकालना.) शरीर सफ एक यं रह जाए, ास लेने का यं मा रह जाए. सफ ास ही रह जाएं .गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.पूरी श लगा द.गहरी ास.पूरी श लगा द.गहरी ास.गहरी ास. सफ ास ही रह गई है, सफ ास ही रह गई है.कमजोरी न कर, क न, ताकत पूरी लगा द.कुछ बचाएं न, ताकत पूरी लगा द.श पूरी लगा द.श पूरी लगा द.श पूरी लगा द. (साधक का ती आवाज नकालना और हांफना. च ाना, उछलना, कूदना.) श पूरी लगा द.पीछे न क.पीछे न क.यह पूरा वातावरण चा हो जाएगा। श पूरी लगा द.घटना घटे गी ही। श पूरी लगा द.गहरी ास.और गहरी ास.और गहरी ास.और गहरी ास.और गहरी ास.और गहरी ास.श पूरी लगाएं .देख, क न। म आपके पास ही आकर कह रहा ं --श पूरी लगा द। पीछे कहने को न हो क नह आ. पूरी श लगाएं .पूरी श लगाएं .पूरी श लगाएं .पूरी श लगाएं .गहरी ास.और गहरी.और गहरी. जतनी गहरी ास होगी, सोई ई श के जगने म सहायता मलेगी.कुंड लनी ऊपर क ओर उठने लगेगी। गहरी ास ल.गहरी ास ल.गहरी ास ल.गहरी ास ल. (कुछ लोग का जोर से रोना, चीखना.) कुंड लनी ऊपर क ओर उठनी शु होगी.गहरी ास ल.श ऊपर उठने लगेगी.गहरी ास ल.गहरी ास ल. (एक साधक का ती तम आवाज म ची ार करना-- ाऽऽऽऽऽ. ाऽऽऽऽऽ.चार ओर साधक अनेक कार क याओं म संल ह। कसी को योगासन हो रहे ह, कसी को अनेक कार के ाणायाम हो रहे ह, कसी को अनेक मु ाएं हो रही ह, कई हं स रहे ह, कई रो रहे ह। चार ओर एक अजीब सा उप त हो गया है। ओशो कुछ देर चुप रहकर फर साधक को ो ाहन देने लगते ह.) दो मनट बचे ह, पूरी ताकत लगाएं .गहरी ास.गहरी ास.कुंड लनी उठने लगेगी.गहरी ास ल.गहरी ास ल.गहरी ास ल.गहरी ास ल.गहरी ास ल. जतनी गहरी ले सक ल। दो मनट बचे ह, पूरी ताकत लगाएं । फर हम सरे सू म वेश करगे.गहरी ास.गहरी ास.भीतर कुछ उठ रहा है, उसे उठने द.गहरी ास.गहरी ास.गहरी

ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास. (कुछ साधक का चीखना, अनेक तरह क आवाज नकालना और नाचना.) एक मनट बचा है, पूरी श लगाएं , फर हम सरे सू म जाएं गे.गहरी ास.ताकत पूरी लगा द.ताकत पूरी लगा द.ताकत पूरी लगा द.भीतर श उठ रही है, छोड़ नह अपने को.ताकत पूरी लगा द.गहरी.और गहरी. और गहरी.और गहरी.कूद पड़, पूरी ताकत लगा द.सारी श लगा द.गहरी.गहरी.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास. ास क चोट होने द भीतर, सोई ई श उठे गी.गहरी ास.गहरी ास. गहरी ास.गहरी ास.गहरी ास.अब सरे सू म जाना है.गहरी ास.और गहरी--आपसे ही कह रहा ं .ताकत पूरी लगा द.और गहरी.और गहरी.और गहरी.और गहरी. सरा चरण सरे सू म वेश कर जाएं । ास गहरी रहेगी। शरीर को छोड़ द। शरीर को जो भी होता है, होने द। शरीर रोए, रोने द.हं स,े हं सने द. च ाए, च ाने द.शरीर नाचने लगे, नाचने द--शरीर को जो होता है, होने द। शरीर को छोड़ द अब.शरीर को जो होता है, होने द. (अनेक तरह क आवाज नकलना और शरीर क याओं म, व वध ग तय म ती ता का आना।) शरीर को छोड़ द बलकुल--जो होता है, होने द। शरीर के अंग म जो होता है, होने द.शरीर को छोड़ द.दस मनट के लए शरीर को होने द जो होता है। (शरीर क ग तयां और चीखना- च ाना चलता रहा.और ओशो सुझाव देते रहे.) शरीर को छोड़ द, पूरी तरह छोड़ द.शरीर नाचेगा, कूदेगा, छोड़ द.भीतर श .भीतर श उठे गी.शरीर नाचेगा, कूदेगा.छोड़ द--शरीर को बलकुल छोड़ द.जो होता है, होने द. (कुछ लोग अ हास कर रहे ह, कुछ ताली बजा रहे ह, कई रो रहे ह, कई हं स व नाच रहे ह.एक म हला ती आवाज से ची ार करने लगती है.अनेक लोग के मुंह से व च आवाज नकल रही ह.एक का ती ता से च ाना.आऽऽऽऽ.आऽऽऽऽऽऽऽ.) शरीर को छोड़ द. ास गहरी रहे.शरीर को छोड़ द.भीतर श जागेगी.शरीर नाचने लगेगा, कूदने लगेगा, कंपने लगेगा--जो भी होता है, होने द। शरीर लोटने लगे, चीखने लगे, हं सने लगे--छोड़ द.शरीर को पूरी तरह छोड़ द. ता क अलग दखाई पड़ने लगे--म अलग ं , शरीर अलग है। शरीर को छोड़.शरीर को छोड़.शरीर को बलकुल छोड़ द। छोड़.शरीर को छोड़ द। शरीर एक व ुत का यं भर रह गया है। शरीर नाच रहा है, शरीर कूद रहा है, शरीर कंप रहा है.शरीर को छोड़ द। शरीर रो रहा है, शरीर हं स रहा है--शरीर को छोड़ द। आप शरीर से अलग ह, शरीर को छोड़ द, शरीर को जो होता है, होने द. (आवाज.चीख. दन. हच कयां.) छोड़.छोड़.शरीर को बलकुल छोड़ द। रोक नह .कुछ म रोक रहे ह, रोक नह .छोड़ द। जरा भी न रोक; जो होता है, होने द.शरीर को बलकुल थका डालना है, सहयोग कर। शरीर को छोड़ द, सहयोग कर; जो होता है, होने द. (अनेक तरह क आवाज.चीखना, च ाना, फूट-फूटकर रोना। रे चन क या अ त ती हो गई। रोना, हं सना, आवाज करना, चीखना, च ाना खूब जोर से होने लगा; ओशो का सुझाव देना जारी रहा.)

शरीर को थका डालना है, छोड़ द. बलकुल छोड़ द--जो होता है, होने द। छोड़.छोड़.रोक नह । देख, कोई रोके नह , छोड़ द, बलकुल छोड़ द। शरीर को जो होता है, होने द.होने द.होने द.छोड़ द. (चार तरफ अनेक तरह क धीमी और ती आवाज का संयोग एक शोरगुल सा पैदा कर रहा है.) छोड़ द.पांच मनट बचे ह, शरीर को पूरी तरह छोड़ द--सहयोग कर.शरीर को जो हो रहा है, कोआपरे ट कर.शरीर जो कर रहा है, उसे करने द--रोना है रोए, हं सना है हं से। रोक नह । शरीर नाचने लगेगा, नाचने द। शरीर उछलने लगे, उछलने द. (अनेक ती आवाज, कराहना, चीखना, च ाना, रोना, हं सना, भागना-दौड़ना.) छोड़.पूरी तरह छोड़.सहयोग कर.भीतर श उठ रही है, उसे छोड़ द.पांच मनट बचे ह, पूरी तरह छोड़। शरीर को पूरी तरह छोड़. (कई चीख, ची ार और शरीर क ती त याएं .अचानक माइक काम करना बंद कर देता है। व ा करनेवाले सब ान म ह। लाउड ीकर का आपरे टर भी ान कर रहा है। कुछ देर बाद उसे कसी के ारा झकझोर कर सामा अव ा म लाया गया, शांत कया गया, तब उसने माइक क खराबी खोजनी शु क .ओशो बना माइक के ही बोलते रहे.) छोड़.पूरी तरह छोड़.छोड़.पूरी तरह से छोड़.शरीर को जो हो रहा है होने द। पूरी श से छोड़.छोड़.दो मनट बचे ह, पूरी तरह छोड़ द.दो मनट बचे ह, शरीर को पूरी तरह छोड़ द। शरीर अलग है, आप अलग ह। शरीर को जो होना है, होने द.आप अलग ह.दो मनट के लए पूरी तरह छोड़; फर हम सरे सू म चलगे.छोड़.छोड़. बलकुल छोड़ द.शरीर को थका डाल.छोड़.छोड़.छोड़.गहरी ास ल.शरीर को छोड़ द.शरीर नाचता है, नाचने द। बलकुल छोड़ द.आप अलग ह.तीसरे सू म चलने के पहले पूरी श लगा द.शरीर को छोड़.छोड़.एक मनट बचा है, पूरी तरह छोड़.पूरी तरह छोड़.पूरी तरह छोड़. (एक साधक का ती ता से च ाना.आऽऽऽऽऽऽ.) जो होता है, होने द.एक मनट बचा है, पूरी तरह छोड़.पूरी तरह छोड़ द.जो होता है, होने द.एक मनट के लए सब छोड़ द. (लंबी रकने क सी आवाज. दन.अ हास.हं सी.) छोड़, बलकुल छोड़ द। शरीर को बलकुल नाचने द, छोड़ द. च ाने द.रोने द.हं सने द-छोड़ द.शरीर जो कर रहा है, करने द.साफ दखाई पड़ेगा--आप अलग ह, शरीर अलग है। पूरी तरह छोड़. फर तीसरे सू म वेश करगे.छोड़.छोड़.छोड़.सहयोग कर.शरीर को छोड़ द. तीसरा चरण और अब तीसरे सू म वेश कर जाएं ! भीतर पूछ--म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.दस मनट तक शरीर नाचता रहे, ास गहरी रहे और भीतर पूछ--म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?. (लोग का अनेक याओं को करते ए रोना. च ाना.कराहना. हच कयां लेना.हांफना.एक साधक का जोर से लगातार च ाना--कौन ं ?.कौन ं ?.ओशो सुझाव देते रहे.)

म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.पूरी ताकत लगा द.म कौन ं ?.म कौन ं ?. (अनेक तरह क आवाज लोग के मुंह से नकलना. हच कय के साथ रोना. च ाना.नाचना.एक का असाधारण ती ता से च ाना-ाऽऽऽऽऽ. ाऽऽऽऽऽऽऽ. ाऽऽऽऽऽऽऽऽ.) म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?. (आवाज. चघाड़ना.अ हास करना.एक साधक का कराहपूवक च ाना--आऽऽऽऽऽ आऽऽऽऽऽ आऽऽऽऽऽ. ओशो सुझाव देते रहे.) म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ? पूरी तरह.पूरी ताकत से पूछ--म कौन ं .म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?. (रोना, चीखना, तड़फना, नाचना आ द.म कौन ं ? म कौन ं ? क अनेक आवाज.) म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.श पूरी लगा द.श पूरी लगा द.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.श पूरी लगाएं .म कौन ं ? (अनेक लोग क ची ार. चघाड़.पछाड़ खाकर रोना. गरना.रे त पर लोटना.उछलना.कूदना.) म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?. (एक क कराह के साथ आवाज--आऽऽऽऽऽऽ.आऽऽऽऽऽऽ.) म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ? पांच मनट बचे ह, पूरी श लगाएं , फर हम व ाम करगे.शरीर को छोड़ द.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.पूरी श लगाएं .पूरी श लगाएं . (एक लंबी ची ार.और अनेक का रोना, चीखना, च ाना.) म कौन ं ?.म कौन ं ?.पूरी श लगाएं .पूरी श लगाएं .म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?. तीन मनट बचे ह, फर हम व ाम करगे.अपने को थका डाल.भीतर श उठ रही है. (रोना, चीखना, उछलना, कूदना, भागना-दौड़ना.) म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.श पूरी लगाएं .म कौन ं ?.दो मनट बचे ह, श पूरी लगाएं .म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?. (शरीर क याएं .शोरगुल.आवाज.एक ती आवाज-- ाऽऽऽऽऽ. ाऽऽऽऽऽऽ.) म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.आ खरी दो मनट बचे ह, श पूरी लगाएं . फर हम व ाम करगे.म कौन ं ?.म कौन ं ?.श भीतर जाग रही है, शरीर को नाच जाने द.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.श भीतर पूरी जग जाने द.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?. बलकुल पागल हो जाएं .म कौन ं ?.म कौन ं ?. (एक का जोर से च ाना--बाऽऽऽऽ.बाऽऽऽऽऽ.बाऽऽऽऽऽ.) म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.थका डाल अपने को, फर व ाम करना है.म कौन

ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.एक मनट और--म कौन ं ?.शरीर नाचता है, नाच जाने द.म कौन ं ?.म कौन ं ?. (साधक क ती तम ग तयां.ती ची ार, दन.) म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?. फर व ाम म जाना है, पूरी ताकत लगा द.आ खरी ण म पूरी ताकत लगा द.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.अवसर न खोएं , पूरी ताकत लगा द.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.आ खरी ताकत, फर व ाम म जाना है.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?.म कौन ं ?. चौथा चरण बस.सब छोड़ द.सब छोड़ द.पूछना छोड़ द. ास लेना छोड़ द--जो जहां पड़ा है, पड़ा रह जाए.जो जहां खड़ा है, खड़ा रह जाए। गरना हो गर जाएं .लेटना हो लेट जाएं .बैठना हो बैठे रह जाएं .सब शांत, सब शू हो जाने द। न कुछ पूछ, न कुछ कर, बस पड़े रह जाएं , जैसे मर गए, जैसे ह ही नह । तूफान चला गया, भीतर शां त छूट जाएगी.सब मट गया.सब शांत हो गया। तूफान गया.पड़े रह जाएं , दस मनट बलकुल पड़े रह जाएं । इस शां त म, इस शू म ही उसका आगमन होता है, जसक खोज है.पड़े रह जाएं .सब छोड़ द.सब छोड़ द.न ास जोर से लेनी है, न पूछना है, न कुछ करना है। शरीर को भी छोड़ द। खड़े ह, खड़े रह जाएं ; गर गए ह, गरे रह जाएं ; पड़े ह, पड़े रह जाएं । दस मनट के लए मर जाएं --ह ही नह .तूफान गया.सब शांत हो गया.सब मौन हो गया. (चार ओर सब साधक शांत और र हो गए ह। बीच-बीच म कोई कराह उठता है, कोई हच कयां लेने लगता है, कोई सुबकने लगता है और फर शांत व चुप हो जाता है।) इस शू म ही कुछ घ टत होगा--कोई फूल खलगे.कोई काश फैल जाएगा.कोई शां त क धारा फूट पड़ेगी. कोई आनंद का संगीत सुनाई पड़ेगा। इस शू म ही भु नकट आता है। ती ा कर, ती ा कर, ती ा कर.पड़े रह जाएं , खड़े रह जाएं । ती ा कर, ती ा कर। बस ती ा कर। सब थक गया.सब शू हो गया. (कराह क कुछ आवाज।) ती ा कर. ती ा कर.अब म चुप हो जाता ं । दस मनट चुपचाप. (प य क सुरीली आवाज. कसी का हलना-डुलना, कसी का सुबकना, ास लेना। एक साधक का जोर से च ाना-- भुऽऽऽऽऽ मने माफ कर. ेक गुनाह बदल मने श ा कर.हे भु. कसी- कसी का ं ऽऽऽऽऽ, ं ऽऽऽऽऽ, ं ऽऽऽऽऽ करना। कराहने क आवाज। एक का जोर से चीखना--पाऽऽऽऽ पी.कुछ देर बाद र कोने से एक साधक के मुंह से आवाज नकलती है--‘कौन कहता है पापी ं ?’.पुनः कसी का कराहना-ऊं.ऊं.ऊं.करना। कौव का कांव-कांव करना.स वन म हवा क सरसराहट.सागर का गजन.सब तरफ स ाटा, जैसे स वन बलकुल नजन हो। एक म हला का रोना, हच कयां लेना.) जैसे मर ही गए। जैसे मट ही गए। एक शू मा रह गए। सब मट गया। सब शांत हो गया। सब मौन हो गया। इस मौन म ही उसका आगमन है.इस शू म ही उसका ार है।

ती ा कर. ती ा कर. (एक म हला का सुबक-सुबककर रोना.एक का ं . ं . ं .क आवाज करना। र कोने से एक साधक का ती ता से ास लेना-छोड़ना करना। कुछ लोग का कराहना.फुसफुसाना.एक का पुनः चीख उठना-- पाऽऽऽऽऽ पीऽऽऽऽऽ. कसी का बड़बड़ाना.माइक अब सुधर पाया.माइक पर ओशो बोलते ह.) जैसे मर ही गए। जैसे मट ही गए। तूफान गया, शां त छूट गई। ती ा कर. ती ा कर.इसी ण म कुछ घ टत होता है। मौन ती ा कर, मौन ती ा कर। शू हो गया.सब शू हो गया. ती ा कर. ती ा कर. ती ा कर.। जैसे मर ही गए, ले कन भीतर कोई जागा आ है। सब शू हो गया, ले कन भीतर कोई ो त जागी ई है--जो जानती है, देखती है, पहचानती है। आप तो मट गए, ले कन कोई और जागा आ है। भीतर सब का शत है। भीतर आनंद क धारा बहने लगी है। परमा ा ब त नकट है। ती ा कर. ती ा कर. ती ा कर. (एक का फुसफुसाना--पापीचारा, पापीचारा, पापीचारा.एक साधक का सोएसोए ही कह उठना--यह साधना चालू रख, यह साधना चालू रख.कह से दोन हथे लय को तेजी से पीटने क आवाज--पट, पट, पट.एक साधक क ती ची ार--बचाऽऽऽऽऽ ओऽऽऽऽऽऽ.) जैसे मर गए। जैसे मट गए। जैसे मर ही गए। जैसे मट गए। जैसे बूंद सागर म गरकर खो जाती है, ऐसे खो गए. ती ा कर.इस खो जाने म ही उसका मल जाना है। ती ा कर. ती ा कर.भीतर शांत-मौन काश फैल गया है। गहरा आनंद झलकना शु होगा। गहरा आनंद उठना शु होगा। भीतर आनंद क धारा बहने लगेगी। ती ा कर. ती ा कर. ती ा कर. ( भु, भु, हे भु क आवाज.) भीतर आनंद बहने लगेगा। भीतर उसका काश उतरने लगेगा. ती ा, ती ा, ती ा.जैसे मर ही गए, जैसे मट ही गए, सब शू हो गया.इसी शू म उसका दशन है। इसी शू म उसक झलक है। इसी शू म उसक उपल है। ती ा कर, ती ा कर, ती ा कर.देख, भीतर कोई वेश कर रहा है.देख, भीतर कोई जाग गया है.देख, भीतर कोई आनंद कट हो गया है। आनंद, जो कभी नह जाना। आनंद, जो अप र चत है। आनंद, जो अ ात है। ाण के पोर-पोर म कुछ भर गया है। ती ा कर, ती ा कर. (प य क आवाज.स -वृ क सरसराहट.सब शांत है.) आनंद ही आनंद शेष रह जाता है। काश ही काश शेष रह जाता है। शां त ही शां त शेष रह जाती है। ती ा कर, ती ा कर। इ मौन ण म आगमन है उसका। इ मौन ण म मलन है उससे। ती ा कर, ती ा कर, ती ा कर. (एक साधक का ती ास- ास लेना.एक का कराहना.) जसक खोज है, वह ब त पास है। जसक तलाश है, इस समय ब त नकट है। जसक खोज है, वह ब त पास है। जसक तलाश है, वह ब त नकट है। ती ा कर, ती ा कर. अब धीरे -धीरे आनंद के इस जगत से वापस लौट आएं । धीरे -धीरे काश के इस जगत

से वापस लौट आएं । धीरे -धीरे भीतर के इस जगत से वापस लौट आएं । ब त आ ह ाआ ह ा आंख खोल। आंख न खुलती हो तो दोन हाथ आंख पर रख ल, फर धीरे -धीरे खोल। और ज ी कोई भी नह करे । जो गर गए ह, उठ न सक, वे धीरे -धीरे दो-चार गहरी ास ल, फर आ ह ा-आ ह ा उठ। बना बोले, बना आवाज कए चुपचाप उठ आएं । जो खड़े ह, वे चुपचाप बैठ जाएं । धीरे -धीरे आंख खोल ल, वापस लौट आएं । (एक म हला का हचक ले-लेकर रोना.) हमारी सुबह क बैठक पूरी ई।

:6 गहरे पानी पैठ मेरे य आ न्, तीन दन म ब त से इक े हो गए ह और इस लए आज ब त सं ादा पर बात हो सके, म करना चा ं गा। कतनी ास?

म जतने

एक म ने पूछा है क ओशो, ववेकानंद ने रामकृ से पूछा क ा आपने ई र दे खा है , तो रामकृ ने कहा, हां, जैसा म तु दे ख रहा ं , ऐसा ही मने परमा ा को भी दे खा है । तो वे म पूछते ह क जैसा ववेकानंद ने रामकृ से पूछा, ा हम भी वैसा आपसे पूछ सकते ह?

पहली तो बात यह, ववेकानंद ने रामकृ से पूछते समय यह नह पूछा क हम आपसे पूछ सकते ह या नह पूछ सकते ह। ववेकानंद ने पूछ ही लया। और आप पूछ नह रहे ह; पूछ सकते ह या नह पूछ सकते ह, यह पूछ रहे ह। ववेकानंद चा हए वैसा पूछनेवाला। और वैसा उ र रामकृ कसी सरे को न देते। यह ान रहे, रामकृ ने जो उ र दया है वह ववेकानंद को दया है; वह कसी सरे को न दया जाता। अ ा के जगत म सब उ र नतांत वैय क ह, पसनल ह। उसम देनेवाला तो मह पूण है ही, उससे कम मह पूण नह है जसको क दया गया है; उसम समझनेवाला उतना ही मह पूण है। न मालूम कतने लोग मुझसे आकर पूछते ह क ववेकानंद को रामकृ के छूने से अनुभू त हो गई, तो आप हम छू द, और हम अनुभू त हो जाए! वे यह नह पूछते क ववेकानंद के सवाय रामकृ ने हजार लोग को छु आ है, उनको अनुभू त नह ई। उस छूने म जो अनुभू त ई है उसम रामकृ पचास तशत मह पूण ह, पचास तशत ववेकानंद ह। वह अनुभू त आधी-आधी है। और ऐसा भी ज री नह है क ववेकानंद को भी कसी सरे दन छु आ होता तो बात हो जाती। एक खास ण म वह घटना घटी। आप चौबीस घंटे भी वही आदमी नह होते ह; चौबीस घंटे म आप न मालूम कतने आदमी होते ह। कसी खास ण म. अब ववेकानंद पूछ रहे ह, ‘ई र को देखा है?’ ये श बड़े सरल ह। हम भी लगता है क हमारी समझ म आ रहे ह क ववेकानंद ा पूछ रहे ह। नह समझ म आ रहे ह। ई र को देखा है? ये श इतने सरल नह ह। ऐसे तो पहली क ा भी जो नह पढ़ा, वह भी समझ लेगा। सरल श ह: ‘ई र को देखा है?’ ब त

क ठन ह श ! और ववेकानंद के का उ र नह दे रहे ह रामकृ , ववेकानंद क ास का उ र दे रहे ह। उ र के नह होते, ास के होते ह। इस के पीछे वह जो आदमी खड़ा है बनकर, उसका उ र दया जा रहा है। बु एक गांव म गए ह। और एक आदमी ने पूछा, ई र है? बु ने कहा, नह । और दोपहर सरे आदमी ने पूछा क म समझता ं ई र नह है; आपका ा खयाल है? बु ने कहा, है। और सांझ एक तीसरे आदमी ने पूछा क मुझे कुछ पता नह , ई र है या नह ? बु ने कहा क चुप ही रहो तो अ ा है--न हां, न ना। जो साथ म था भ ु वह ब त घबड़ा गया, उसने तीन उ र सुन लए। रात उसने बु से कहा, म पागल हो जाऊंगा! सुबह आपने कहा, हां; दोपहर आपने कहा, नह ; सांझ आपने कहा, न हां, न नह ; म ा समझूं? बु ने कहा, तुझे तो मने एक भी उ र नह दया, जनको दए थे उनसे बात है; तुझसे कोई संबंध नह । तूने सुना ? तूने जब पूछा ही नह था, तो तुझे उ र कैसे दया जा सकता है? जस दन तू पूछेगा उस दन तुझे उ र मल जाएगा। पर उस आदमी ने कहा, मने सुन तो लया! बु ने कहा, वे उ र सर को दए गए थे, और सर क ज रत के अनुसार दए गए थे। सुबह जस आदमी ने कहा था क ई र है? वह आ क था और चाहता था क म भी उसक हां म हां भर ं । उसे कुछ पता नह ई र के होने का, ले कन सफ अपने अहं कार को तृ करने आया था क बु भी वही मानते ह जो म मानता ं । वह बु से भी अपनी ीकृ त लेन,े कनफमशन लेने आया था। तो मने उससे कहा, नह । मने उसक जड़ को हला दया। और उसे कुछ पता नह था, अ था मुझसे पूछने आता? जसे पता हो गया है वह कनफमशन नह खोजता। सारी नया भी इनकार करे तो वह कहता है, इनकार करो, वह है; इनकार का कोई सवाल नह है। अभी वह पूछ रहा है, अभी वह पता लगा रहा है क है? तो मुझे कहना पड़ा क नह है। उसक खोज क गई थी, वह मुझे शु कर देनी पड़ी। दोपहर जो आदमी आया था, वह ना क था। वह मानता था क नह है, उसे मुझे कहना पड़ा क है। उसक भी खोज क गई थी; वह भी मुझसे ीकृ त लेने आया था अपनी ना कता म। सांझ जो आदमी आया था, वह न आ क था, न ना क; उसे कसी भी बंधन म डालना ठीक न था; क हां भी बांध लेता है, नह भी बांध लेता है। तो उससे कहा क तू चुप रह जाना--न हां, न ना; तो प ं च जाएगा। और तेरा तो सवाल ही नह है, उस भ ु से कहा, क तूने अभी पूछा नह है। धम बड़ी नजी बात है--जैसे ेम। और ेम म अगर कोई अपनी ेयसी को कुछ कहता है तो वह बाजार म च ाने क बात नह है, वह नतांत वैय क है; और बाजार म कहते ही अथ उसका बेकार हो जाएगा। ठीक, धम के संबंध म कहे गए स भी इतने ही पसनल, एक के ारा सरे से कहे गए ह, हवा म फके गए नह ह। इस लए ववेकानंद बन जाएं तो ज र पूछने आ जाना। ले कन ववेकानंद पूछने नह आते क पूछ या न पूछ। म अभी एक गांव म गया, एक युवक आया और उसने कहा क म आपसे पूछने आया ं , म सं ास ले लू?ं तो मने उससे कहा, जब तक तुझे पूछने जैसा लगे तब तक मत लेना, नह तो पछताएगा। और मुझे झंझट म डालता है? तुझे लेना हो ले, न लेना हो न ले।

जस दन तुझे ऐसा लगे क अब सारी नया रोकेगी तो भी तू नह क सकता, उस दन ले लेना; उसी दन सं ास आनंद बन सकता है, उसके पहले नह । तो उसने कहा, और आप? मने कहा, म कसी से कभी पूछने नह गया। अपनी इस जदगी म तो कसी से पूछने नह गया। क पूछना ही है तो अपने ही भीतर पूछ लगे, कसी से पूछने जाएं गे? और कोई कुछ भी कहे, उस पर भरोसा कैसे आएगा? सरे पर कभी भरोसा नह आ सकता। लाख उपाय कर, सरे पर भरोसा नह आ सकता। अगर म कह भी ं क हां, ई र है, ा फक पड़ेगा? जैसा आपने कताब म पढ़ लया क रामकृ ने कहा क हां, है! और जैसा म तुझे देखता ं , उससे भी ादा साफ उसे देखता ं । ा फक पड़ गया आपको? एक कताब और लख लेना आप क आपने पूछा था और मने कहा, हां है! और जैसा म आपको देखता ं , उससे भी ादा साफ उसे देखता ं। ा फक पड़ेगा? एक कताब, दो कताब, हजार कताब म लखा हो क है, बेकार है; जब तक क भीतर से न उठे क है, तब तक कोई उ र सरे का काम नह दे सकता। ई र के संबंध म उधारी न चलेगी। और सब संबंध म उधारी चल सकती है, ई र के संबंध म उधारी नह चल सकती। इस लए मुझसे पूछते ह? और मेरे हां और न का ा मू ? अपने से ही पूछ। और अगर कोई उ र न आए तो समझ ल क यही भा है क कोई उ र नह ; फर चुप होकर ती ा कर, उसके साथ ही जीएं ; अनु र के साथ जीएं । कसी दन आ जाएगा; कसी दन उतर आएगा। और अगर पूछना ही आ जाए--ठीक पूछना आ जाए, राइट े नग आ जाए--तो सब उ र हमारे भीतर ह; और ठीक पूछना न आए, तो हम सारे जगत म पूछते फर, कोई उ र काम का नह है। और जब ववेकानंद जैसा आदमी रामकृ से पूछता है, तो रामकृ जो उ र देते ह, वह रामकृ का उ र थोड़े ही ववेकानंद के काम पड़ता है। ववेकानंद इतनी ास से पूछते ह क जब वह रामकृ का उ र आता है तो वह रामकृ का नह मालूम पड़ता, वह अपने ही भीतर से आया आ मालूम पड़ता है। इसी लए काम पड़ता है, नह तो काम नह पड़ सकता। जब हम ब त गहरे म कसी से पूछते ह, इतने गहरे म क हमारा पूरा ाण लग जाए दांव पर, तो जो उ र आता है, फर वह हमारा अपना ही हो जाता है, वह सरे का नह होता; सरा फर सफ एक दपण हो जाता है। अगर रामकृ ने यह कहा क हां है, तो यह उ र रामकृ का नह है। यह ऑथ टक बन गया, ववेकानंद को ामा णक लगा, क रामकृ एक दपण से ादा न मालूम पड़े; अपनी ही त न, ब त गहरे अपने ही ाण का र वहां सुनाई पड़ा। ववेकानंद ने रामकृ से पूछने के पहले एक आदमी से और पूछा था। रव नाथ के दादा थे देव नाथ। वे मह ष देव नाथ कहे जाते थे। वे बजरे पर रहते थे रात। बजरे पर एकांत म साधना करते थे। आधी रात अमावस क , ववेकानंद पानी म कूदकर, गंगा पार करके बजरे पर चढ़ गए। बजरा कंप गया। अंदर गए, ध ा देकर दरवाजा खोल दया। अटका था दरवाजा। भीतर घुस गए। अंधेरा है। देव नाथ आंख बंद कए कुछ मनन म बैठे ह। जाकर झकझोर दया उनका कालर पकड़कर कोट का। आंख खुल तो वे घबड़ा गए क

इतनी रात, पानी से तरबतर, कौन नदी म तैरकर आ गया है! सारा बजरा कंप गया है। जैसे ही उ ने आंख खोल , ववेकानंद ने कहा, म पूछने आया ं --ई र है? देव नाथ ने कहा, जरा बैठो भी। झझके। ऐसी आधी रात, अंधेरे म गंगा पार करके, कोई ऐसा छाती पर छु रा लगाकर पूछे, ई र है? तो उ ने कहा, जरा को भी, बैठो भी, कौन हो भाई? ा बात है? कैसे आए? बस ववेकानंद ने कालर छोड़ दया, वापस नदी म कूद पड़े। उ ने च ाया क युवक, को! ववेकानंद ने कहा, झझक ने सब कुछ कह दया, अब म जाता ं । झझक ने सब कुछ कह दया! इतने झझक गए क असली सवाल ही छोड़ दया! कहते, है या नह । फर देव नाथ बाद म कहे क म सच म ही घबड़ा गया था, क मुझसे कभी ऐसा आउट ऑफ द वे, आउटल डश, ऐसा कोई अचानक गदन पकड़कर कभी पूछा नह था। सभा म, मी टग म, मं दर म, म द म देव नाथ से लोग पूछते थे, ई र है? तो वे समझाते थे उप नषद, गीता, वेद। ऐसा कसी ने पूछा ही न था। तो ज र घबड़ा गए। उ ने कहा, म ज र घबड़ा गया था और मुझे कुछ भी नह सूझा था। और वह युवक कूदकर चला गया था और मुझे भी मेरी झझक से पहली दफा पता चला--अभी मुझे भी मालूम नह है। पूछ ज र। जस दन पूछने क तैयारी हो उस दन ज र पूछ। पर पूछने क तैयारी लेकर आ जाएं । क फर उ र पर बात ख न हो गई। रामकृ का उ र, फर वह ववेकानंद नह था जो पूछने आया था, वह था नर नाथ; रामकृ के उ र के बाद हो गया ववेकानंद। पूछ ज र, ले कन फर जदगी पूरी बदलने क तैयारी चा हए। उ र तो मल सकता है। फर वह नर नाथ नर नाथ क तरह घर वापस नह लौटा। क वह जो रामकृ ने कहा--है, और तुझसे ादा मुझे दखाई पड़ता है क वह है! एक दफा म कह सकता ं क तू झूठ, ले कन उसे नह कह सकता झूठ! तो फर ववेकानंद ऐसा नह क ठीक महाराज, उ र ब त अ ा लगा, परी ा म दे दगे जाकर। फर वापस नह लौट गया था। फर ववेकानंद के लए उ र ले डूबा। फर वह लड़का वापस लौटा ही नह । उ र तो मल सकता है; मुझे कोई क ठनाई नह है उ र देने म; आप द त म पड़ जाएं गे। तो जस दन पूछने का मन हो, आ जाना। और आउटल डश ही ठीक रहेगा, कसी अंधेरी रात म आकर मेरी गदन पकड़कर पूछ लेना। ले कन ान रखना, गदन मेरी पकड़गे, पकड़ा जाएगी आपक , फर भाग न सकगे। ॉलरली बात नह ह ये; ये कोई शा ीय और पां ड क बात नह ह क पूछ लया, समझ लया, चले गए, कुछ भी न आ। सारी जदगी को दांव पर लगाने क बात है। परमा ा एक छलांग है एक सरे म पूछते ह क ओशो, बीज बोते ह तो अंकुर आने म समय लगता है । और आप तो कहते ह क इसी सकती है सब बात। और आदमी को परमा ा का बीज कहते ह।

ण हो

ज र कहता ं । बीज बोते ह, समय लगता है। समय बीज के टूटने म लगता है, अंकुर के नकलने म नह । अंकुर तो एक ण म ही नकल आता है, व ोट होता है अंकुर का तो। ले कन बीज के टूटने म व लग जाता है। आपके टूटने म व लग सकता है, वह म नह कहता। ले कन परमा ा के आने म व नह लगता, वह एक ण म ही आ जाता है। जैसे हम पानी को गरम करते ह। तो गरम करने म व लग सकता है। सौ ड ी तक गरम होगा तो व लगेगा। ले कन भाप बनने म व नह लगता--छलांग! पानी सौ ड ी गरम आ-- द जंप--कूद गया, भाप हो गया। ऐसा नह है क भाप बनने म व लगे-- क पानी थोड़ा अभी भाप बना आधा, अभी आधा भाप नह बना; अभी बूंद थोड़ी सी भाप बन गई एक कोने से, सरे कोने से भाप नह बनी--ऐसा नह , भाप तो बनेगी तो छलांग म। हां, ले कन भाप तक प ं चने म व लगता है। ले कन जब तक भाप नह बनी तब तक वह पानी ही है--चाहे सौ ड ी गरम हो, चाहे न ानबे ड ी गरम हो, चाहे अ ानबे ड ी गरम हो। परमा ा एक व ोट है, एक छलांग है। उसके पहले आप आदमी ही ह, चाहे अ ानबे ड ी पर गरम ह , चाहे न ानबे ड ी पर गरम ह । सौ ड ी पर गरम ह गे क भाप बन जाएं गे--परमा ा शु होगा, आप मट जाएं गे। तो म कहता ं , वह इसी ण भी हो सकता है। इसी ण होने का मतलब? इसी ण होने का मतलब यह है क अगर हम उ होने को तैयार ह .और ा काफ समय नह बीत गया उ होने के लए? कढ़ाई कब से चढ़ी है चू े पर, कतने ज से! कतने ज से गरम हो रहे ह, और सौ ड ी तक नह प ं च पाए अभी तक! जनम-जनम जनमजनम गरम होते रहे ह, और सौ ड ी पर नह प ं च पाए अब तक! और कतना समय चा हए? इतना समय कम है? नह , समय तो ब त लग गया है, गरम होने क कला ही हम नह आती। तो हम अगर न ानबे पर भी प ं च जाएं तो ज ी से वापस हो जाते ह, कूलडाउन हो जाते ह; फर ठं डे होकर वापस लौट आते ह; सौ ड ी से ब त डरते ह। अब इधर म देखता था, ान म कतने लोग न ानबे ड ी से वापस लौट जाते ह! और कैसी-कैसी थ क बात उनको वापस लौटा लेती ह क ऐसी हैरानी होती है क वे ज र वापस लौटना ही चाहते ह गे। अ था यह कारण कोई वापस लौटने का था? एक आदमी को बंबई जाना हो, वह े न पर बैठे, और रा े म दो लोग जोर से बात करते मल जाएं , और वह घर वापस लौट आए क दो आद मय ने हम ड ब कर दया, वे रा े म जोर से बात कर रहे थे, तो हम बंबई नह जा पाए। तो आप कहगे, बंबई जाना ही न होगा, अ था रा े पर तो ड रबस है ही। कौन लौटता है? जसको बंबई जाना है वह चला जाता है। ब रा े पर ड रबस है तो जरा तेजी से चला जाता है क बीच म थ क बात न सुननी पड़। ले कन ान से बड़े-बड़े आसान कारण से आदमी वापस लौटता है। वह लौट आता है क हम कसी का ध ा लग गया, कसी का हाथ लग गया, कोई पड़ोस म गर पड़ा, कोई रोने लगा, तो हम वापस लौट आए। नह , ऐसा लगता है क वापस लौटना चाहते थे, सफ ती ा कर रहे थे क कोई कारण मल जाए और हम कूलडाउन हो जाएं । बस

बहाना भर मल जाए क फलां आदमी जोर से च ाने लगा इस लए हमको वापस लौटना पड़ा। आपको फलां आदमी के जोर से च ाने से आपका संबंध? आपको योजन? और आप ा खो रहे ह इस बहाने, आपको पता ही नह है; आप ा कह रहे ह, आपको पता ही नह है। अब अभी एक म मले रा े म, उ ने कहा क जरा लोग को समझा द, थोड़ा उनको ठं डा कर द, कूलडाउन कर; क दो लोग न खड़े हो गए ह, उससे बड़ी ए ो सव त बन गई है। उ ने बड़े ेम से कहा क जरा लोग को समझा द; कुछ लोग बड़े बेचैन हो गए ह क दो लोग न हो गए। ान म व का गर जाना सब लोग कपड़ के भीतर न ह और कोई बेचैन नह होता! कपड़ के भीतर सभी लोग न ह, कोई बेचैन नह है। दो आद मय ने कपड़े छोड़ दए, सब बेचैन हो गए! बड़ा मजा है, आपके कपड़े भी कसी ने छु ड़ाए होते तो बेचैन होते तो भी समझ म आता। अपने ही कपड़े कोई छोड़ रहा है और बेचैन आप हो रहे ह! अगर कोई आपके कपड़े छीनता, तो बेचैनी कुछ समझ म भी आ सकती थी। हालां क वह भी बेमानी थी। जीसस ने कहा है क कोई तु ारा कोट छीने तो अपनी कमीज भी उसको दे देना, कह बेचारा संकोचवश कम न छीन रहा हो। कोई आपका कोट छीनता तो समझ म भी आता। कोई अपना ही कोट उतारकर रख रहा है, आप बेचैन हो गए ह। ऐसा लगता है क आप ती ा ही कर रहे थे क कोई कोट उतारे और हम कूलडाउन हो जाएं , और हम कह, हमारा सारा ान खराब कर दया। अब बड़े आ य क बात है क कोई आदमी न हो गया है, इससे आपके ान के खराब होने का ा संबंध है? और आप कसी के न होने को बैठकर देख रहे थे? तो आप ान कर रहे थे या ा कर रहे थे? आपको तो पता ही नह होना चा हए था क कौन ने कपड़े छोड़ दए, कौन ने ा कया। आप अपने म होने चा हए थे। कौन ा कर रहा है.आप कोई धोबी ह, कोई टे लर ह, कौन ह? आप कपड़ के लए च तत ह? आपक परे शानी बेवजूद है, अथहीन है। और जसने कपड़े छोड़े ह.थोड़ा सोचते नह ह, आपसे कोई कहे क आप कपड़े छोड़ द, तब आपको पता चलेगा क जसने कपड़े छोड़े ह उसके भीतर कोई बड़ा कारण ही उप त हो गया होगा इस लए उसने कपड़े छोड़े ह। आपसे कोई कहे क लाख पया देते ह। आप कहगे, छोड़ते ह लाख पया, ले कन कपड़े न छोड़गे। उस बेचारे को कसी ने कुछ भी नह दया है और उसने कपड़े छोड़े! आप परे शान ह? उसके भीतर कोई कारण उप त हो गया होगा। ले कन जदगी को समझने क , सहानुभू त से देखने क हमारी आदत ही नह है। जब महावीर पहली दफे न ए तो प र पड़े। अब पूजा हो रही है! और जतने लोग पूजा कर रहे ह वे सब कपड़े बेच रहे ह। महावीर के माननेवाले सब कपड़े बेचनेवाले ह। यह बड़ा आ यजनक है! और इस आदमी को इ लोग ने प र मारे ह गे। और उसी के बदले म कपड़ा बेच रहे ह क कोई नंगा न हो जाए, कपड़े बेचते चले जा रहे ह। महावीर न ए तो

लोग ने गांव-गांव से नकाला। एक गांव म न टकने दया। जस गांव म ठहर जाते, लोग उनको गांव के बाहर करते क यह आदमी न हो गया। अब पूजा चल रही है, ले कन महावीर को तो हमने टकने नह दया गांव म, धमशाला म न कने दया, गांव के बाहर मरघट म न ठहरने दया। कह गांव के आसपास न आ जाएं तो लोग जंगली कु े उनके पीछे लगा देते जो उनको र गांव के बाहर नकाल आएं । ा तकलीफ हो गई थी महावीर से लोग को? एक तकलीफ हो गई थी क उस आदमी ने कपड़े छोड़ दए थे। ले कन बड़े आ य क बात है! कसी के कपड़े छोड़ देने से. ा, कारण ा है? डर कुछ सरे ह, डर कुछ ब त भयंकर ह। हम इतने नंगे ह भीतर क न आदमी को देखकर हम घबड़ा जाते ह क बड़ी मु ल हो गई; हम अपने नंगेपन का खयाल आ जाता है। और कोई कारण नह है। और ान रहे, न ता और बात है, नंगापन बलकुल सरी बात है। महावीर को देखकर कोई कह नह सकता क वे नंगे खड़े ह, और हमको कपड़ म भी देखकर कोई कहेगा क कतने ही कपड़े पहन, ह तो नंगे ही; फक नह पड़ता है। गौर से देखा है? जो लोग न खड़े हो गए उनको गौर से देखा है? ह त ही न पड़ी होगी उस तरफ देखने क । हालां क बीच-बीच म आंख बचाकर देखते रहे ह गे, नह तो बेचैन कैसे होते? ए ो सव त कैसे पैदा होती? अब उन म ने लखा है क यां ब त परे शान हो ग । य को मतलब? यां इस लए आई ह क कोई न हो तो उसको देखती रह? उनको अपना ान करना था। नह ले कन, देखते रहे ह गे आंख बचाकर। फर सब छोड़कर, वह आ - ान वगैरह छोड़कर, अपने को देखना वगैरह छोड़कर वही देखते रहे ह गे। तो ए ो सव हो ही जाएगा। आपसे कौन कह रहा था क आप देख? आप आंख बंद कए ए थे, कोई न खड़ा था वह खड़ा रहता। वह आपको बलकुल नह देख रहा था। वह न आदमी आकर मुझसे कहता क य क वजह से मेरे लए बड़ी ए ो सव त हो गई, तो कुछ समझ म आता। और य क ए ो सव त हो गई उस आदमी क वजह से! उसको जरा गौर से देखते तो मन स होता। उसको न खड़ा देखते तो लगता क कतना सादा, सीधा, नद ष। हलका होता मन--फक होता, लाभ होता। ले कन लाभ को तो हम खोने क ज कए बैठे ह। हम तो हा न को पकड़ने के लए बड़े आतुर ह। और हमने ऐसी व धारणाएं बना रखी ह जनका कोई हसाब नह । न ता: एक नद ष च -दशा एक त आती है ान क --कुछ लोग को अ नवाय प से आती है-- क व छोड़ देने क हालत हो जाती है। वे मुझसे पूछकर न ए ह। इस लए उन पर ए ो सव मत होना, होना हो तो मुझ पर होना। जो लोग भी यहां न ए ह वे मुझसे आ ा लेकर न ए ह। मने उनसे कह दया क ठीक है। वे मुझसे पूछ गए ह आकर क हमारी हालत ऐसी है क हम ऐसा लगता है एक ण म क अगर हमने व न छोड़े तो कोई चीज अटक जाएगी। तो मने उनको कहा है क छोड़ द। यह उनक बात है, आप परे शान हो रहे ह? इस लए उनसे कसी ने भी कुछ कहा हो

तो ब त गलत कया है। आपको हक नह है वह, कसी को कुछ कहने का। थोड़ा समझना चा हए क एक नद ष च .एक घड़ी है जब कई चीज बाधाएं बन सकती ह। कपड़े आदमी का गहरा से गहरा इन ह बशन है। कपड़ा जो है वह आदमी का सबसे गहरा टै बू है, वह सबसे गहरी ढ़ है जो आदमी को पकड़े ए है। और एक ण आता है क कपड़े करीबकरीब तीक हो जाते ह हमारी सारी स ता के। और एक ण आता है मन का कभी. कसी को आता है, सबको ज री नह .। बु कपड़े पहने ए जीए, जीसस कपड़े पहने ए जीए, महावीर ने कपड़े छोड़े। एक औरत ने भी ह त क । महावीर के व म औरत ह त न कर सक । महावीर क श ाएं कम न थ , ादा थ श से। दस हजार श थे और चालीस हजार श ाएं थ । ले कन श ाएं ह त न जुटा सक कपड़े छोड़ने क । तो महावीर को तो इसी वजह से यह कहना पड़ा क इन य को बारा ज लेना पड़ेगा। जब तक ये एक बार पु ष न ह तब तक इनक कोई मु नह । क जो कपड़ा छोड़ने से डरती ह, वे शरीर छोड़ने से कैसे न डरगी। तो महावीर को इस लए एक नयम बनाना पड़ा क ी-यो न से मु नह हो सकती, उसे एक दफे पु ष-यो न म आना पड़ेगा। और कोई कारण न था। ले कन ह तवर औरत । अगर क ीर क ल ा महावीर को मल जाती, तो उनको यह स ांत न बनाना पड़ता। महावीर क तरह एक औरत ई क ीर म--ल ा। और अगर क ीरी से जाकर पूछगे तो वह कहेगा: हम दो ही श जानते ह--अ ा और ल ा। दो ही श जानते ह। एक औरत ई जो न रही। और सारे क ीर ने उसको आदर दया। क उसक न ता म उ पहली दफा दखाई पड़ा--और तरह का स दय, और तरह क नद षता, और तरह का आनंद, एक ब े जैसा भाव। अगर ल ा महावीर को मल जाती, तो महावीर के ऊपर एक कलंक लग गया, वह बच जाता। महावीर के ऊपर एक कलंक है, और वह कलंक यह है क ी-यो न से मु न हो सकेगी। और उसका कारण महावीर नह ह, उसका कारण जो यां उनके आसपास इक ी ई ह गी वे ह। क उ ने कहा, यह तो असंभव है। तो फर महावीर ने कहा, व न छोड़ सकोगी तो शरीर कैसे छूटे गा? इतनी ऊपरी पकड़ है, तो भीतर क पकड़ कैसे जाएगी? श वर साधक के लए है, दशक के लए नह नह म कहता ं क आप न हो जाएं , ले कन कोई होता हो तो उसे रोकने क तो कोई बात नह है। और एक साधना- श वर म भी हम इतनी तं ता न दे पाएं क कोई अगर इतना मु होना चाहे तो हो सके, तो फर यह तं ता कहां मल पाएगी? साधना- श वर साधक के लए है, दशक के लए नह । वहां जब तक कोई सरे को कोई छेड़खानी नह कर रहा है तब तक उसक परम तं ता है। सरे पर जब कोई े सपास करता है तब बाधा शु होती है। अगर कोई नंगा होकर आपको ध ा देने लगे, तो बात ठीक है; कोई अगर आपको आकर चोट प ं चाने लगे, तो बात ठीक है क रोका जाए। ले कन जब तक एक आदमी अपने साथ कुछ कर रहा है, आप कुछ भी नह ह बीच म, आपको कोई कारण नह है। अब अजीब बात हम बाधा बनती ह। कोई न हो गया है इस लए कई लोग का ान खराब हो गया। ऐसा स ा ान बच भी जाता तो कसी काम का नह है। उसका मू

कतना है? इतना ही था क कोई आदमी न नह आ, इस लए आपको ान हो गया। कैसे हो जाएगा? नह , ये छोटी बात, अ ंत ओछी बात छोड़नी पड़गी। साधना बड़ी ह त क बात है; वहां पत-पत अपने को उखाड़ना पड़ता है। साधना ब त गहरे म आंत रक न ता है। ज री नह है क कपड़े कोई छोड़े, ले कन कसी मोमट म कसी क त यह हो सकती है क वह कपड़ा छोड़े। और इस बात को ान रख सदा क जब कसी को होती है तो आप बाहर से सोच नह सकते, न आपको कोई हक है क आप सोच क ठीक आ क गलत आ, क छोड़ा क नह छोड़ा। आप कौन ह? आप कहां आते ह? और आपको कैसे पता चलेगा? नह तो महावीर को ज ने गांव के बाहर नकाला वे कोई गलत लोग रहे ह गे? आप ही जैसे श , समझदार, गांव के सब स न ने उनको बाहर कया क यह आदमी न खड़ा है, हम न टकने दगे इसे। ले कन हम बार-बार वही भूल दोहराते ह। तो मेरे म अभी रा े म मले, उ ने बड़े ेम से कहा, समझपूवक कहा, उ ने कहा क आप ठीक से समझा द, नह तो बंबई म ान म आनेवाली सं ा कम हो जाएगी। बलकुल कम हो जाए, एक आदमी न आए। ले कन गलत आद मय क कोई ज रत नह । एक आदमी न आए, इससे ा योजन है? उ ने कहा क म हलाएं बलकुल अब श वर म न आएं गी। बलकुल न आएं । कसने कहा क वे आएं ? उनको लगा तो आएं । आएं तो मेरी शत पर आना होगा। उनक शत पर श वर नह हो सकता। और जस दन म आपक शत पर श वर क ं , उस दन आप आना ही मत; उस दन म आदमी दो कौड़ी का ं , उस दन फर मुझसे कोई मतलब नह । मेरी शत पर ही होगा। म आपके लए नह आता ं । और आपके हसाब से नह आऊंगा। और आपके हसाब से नह चलूंगा। इसी लए तो मुदा गु ब त ी तकर होते ह, क वह आपके हसाब से उनको आप चला लेते ह। जदा को तो ब त मु ल हो जाता है। इस लए महावीर मर जाएं तो पूजे जा सकते ह, जदा को प र मारने पड़ते ह। बलकुल ाभा वक है। इस लए नया भर म मुद को पूजा जाता है। जदा से बड़ी तकलीफ है, क जदे को आप बांध नह सकते। और कोई सरे कारण मेरे लए मू के नह ह। कौन आता है, कौन नह आता है--यह बलकुल बेमू है। जो आता है अगर वह आता है तो समझपूवक आए क कस लए आ रहा है और ा करने आ रहा है। सहज योग क ठनतम एक म पूछ रहे ह क ओशो, सहज योग के वषय म कुछ खुला करके समझाइए।

सहज योग सबसे क ठन योग है; क सहज होने से ादा क ठन और कोई बात नह । सहज का मतलब ा होता है? सहज का मतलब होता है: जो हो रहा है उसे होने द, आप बाधा न बन। अब एक आदमी न हो गया, वह उसके लए सहज हो सकता है, ले कन बड़ा क ठन हो गया। सहज का अथ होता है: हवा-पानी क तरह हो जाएं , बीच म

बु

से बाधा न डाल; जो हो रहा है उसे होने द। बु बाधा डालती है, असहज होना शु हो जाता है। जैसे ही हम तय करते ह, ा होना चा हए और ा नह होना चा हए, बस हम असहज होना शु हो जाते ह। जब हम उसी के लए राजी ह जो होता है, उसके लए राजी ह, तभी हम सहज हो पाते ह। तो इस लए पहली बात समझ ल क सहज योग सबसे ादा क ठन है। ऐसा मत सोचना क सहज योग ब त सरल है। ऐसी ां त है क सहज योग बड़ी सरल साधना है। तो कबीर का लोग वचन दोहराते रहते ह: साधो, सहज समा ध भली। भली तो है, पर बड़ी क ठन है। क सहज होने से ादा क ठन आदमी के लए कोई सरी बात ही नह है। क आदमी इतना असहज हो चुका है, इतना र जा चुका है सहज होने से क उसे असहज होना ही आसान, सहज होना मु ल हो गया है। पर फर कुछ बात समझ लेनी चा हए, क जो म कह रहा ं वह सहज योग ही है। जीवन म स ांत थोपना जीवन को वकृत करना है। ले कन हम सारे लोग स ांत थोपते ह। कोई हसक है और अ हसक होने क को शश कर रहा है; कोई ोधी है, शांत होने क को शश कर रहा है; कोई है, वह दयालु होने क को शश कर रहा है; कोई चोर है, वह दानी होने क को शश कर रहा है। यह हमारे सारे जीवन क व ा है: जो हम ह, उस पर हम कुछ थोपने क को शश म लगे ह। हम सफल ह तो भी असफल, हम असफल ह तो भी असफल। क चोर लाख उपाय करे तो दानी नह हो सकता। हां, दान कर सकता है। दानी नह हो सकता। दान करने से म पैदा हो सकता है क चोर दानी हो गया। ले कन चोर का च दान म भी चोरी क तरक ब नकाल लेगा। मने सुना है क एकनाथ या ा पर जा रहे थे। तो गांव म एक चोर था, उसने एकनाथ से कहा क म भी चलूं तीथया ा पर आपके साथ? ब त पाप हो गए, गंगा- ान म भी कर आऊं। एकनाथ ने कहा, चलने म तो कोई हज नह , बाक भी सब तरह-तरह के चोर जा रहे ह, तू भी चल सकता है। ले कन एक बात है: बाक जो चोर मेरे साथ जा रहे ह, वे कहते ह क उस चोर को मत ले चलना, नह तो हमारी सब चीज रा े म गड़बड़ करे गा। तो तू एक प शत बांध ले क रा े म तीथया य के साथ चोरी नह करना। उसने कहा, कसम खाता ं ! जाने से लेकर आने तक चोरी नह क ं गा। फर तीथया ा शु ई, वह चोर भी साथ हो गया। बाक भी चोर थे, भ - भ तरह के चोर ह। कोई एक तरह के चोर ह? कई तरह के चोर ह। कोई चोर म ज े ट बनकर बैठा है, कोई चोर कुछ और बनकर बैठा है। सब तरह के चोर गए, वह चोर भी साथ गया। ले कन चोरी क आदत! दन भर तो गुजार दे, रात बड़ी मु ल म पड़ जाए; सब या ी तो सो जाएं , उसक बड़ी बेचैनी हो जाए, उसके धंधे का व आ जाए। एक दन, दो दन.उसने कहा, मर जाएं गे, न मालूम तीन-चार महीने क या ा है, ऐसे कैसे चलेगा? और सबसे बड़ा खतरा यह है क कसी तरह या ा भी गुजार दी और कह चोरी करना भूल गए तो और मुसीबत, लौटकर ा करगे? कोई तीथ जदगी भर होता है? तीसरी रात गड़बड़ शु हो गई। पर गड़बड़ व त ई, धा मक ढं ग क ई। चोरी तो उसने क , ले कन तरक ब से क । एक ब र म से सामान नकाला और सरे म डाल दया, अपने पास न रखा। सुबह या ी बड़े परे शान होने लगे: कसी का सामान कसी क

सं क म मले, और कसी का सामान कसी के ब र म। सौ-पचास या ी थे, बड़ी खोजबीन म मु ल हो गई। सबने कहा, यह मामला ा है? यह हो ा रहा है? चीज जाती तो नह ह, ले कन इधर-उधर चली जाती ह। फर एकनाथ को शक आ क वही चोर होना चा हए जो तीथया ी बन गया है। तो वे रात जगते रहे। देखा कोई दो बजे रात वह चोर उठा और उसने एक क चीज सरे के पास करनी शु कर दी। एकनाथ ने उसे पकड़ा और कहा, यह ा कर रहा है? उसने कहा क मने कसम खा ली है क चोरी न क ं गा। चोरी म बलकुल नह कर रहा। ले कन कम से कम चीज इधर-उधर तो करने द! म कोई चीज रखता नह , अपने लए छूता नह , बस इधर से उधर कर देता ं । यह तो मने आपसे कहा भी नह था क ऐसा म नह क ं गा। एकनाथ बाद म कहते थे, चोर अगर बदलने क भी को शश करे तो भी फक नह पड़ता। जो ह, उसी को जीएं हमारे सारे जीवन म जो हमारी असहजता है, वह इसम है क जो हम ह, उससे हम भ होने क पूरे समय को शश म लगे ह। नह , सहज योग कहेगा: जो ह, उससे भ होने क को शश मत कर; जो ह, उसी को जान और उसी को जीएं । अगर चोर ह तो जान क म चोर ं , और अगर चोर ह तो पूरी तरह से चोर होकर जीएं । बड़ी क ठन बात है। क चोर को भी इससे तृ मलती है क म चोरी छोड़ने क को शश कर रहा ं । छूटती नह , ले कन एक राहत रहती है क म चोर ं आज भला, ले कन कल न रह जाऊंगा। तो चोर के अहं कार को भी एक तृ है क कोई बात नह आज चोरी करनी पड़ी, ले कन ज ही वह व आएगा जब हम भी दानी हो जानेवाले ह, कोई चोर न रहगे। तो कल क आशा म चोर आज सु वधा से चोरी कर पाता है। सहज योग कहता है: अगर तुम चोर हो तो तुम जानो क तुम चोर हो--जानते ए चोरी करो, ले कन इस आशा म नह क कल अचोर हो जाओगे। और जो हम ह, अगर हम उसको ठीक से जान ल और उसी के साथ जीने को राजी हो जाएं , तो ां त आज ही घ टत हो सकती है। चोर अगर यह जान ले क म चोर ं , तो ादा दन चोर नह रह सकता। यह तरक ब है उसक चोर बने रहने के लए क वह कहता है, भला चोर ं , मु ल है आज इस लए चोरी कर रहा ं , कल सु वधा हो जाएगी फर चोरी नह क ं गा। असल म म चोर नह ं , प र तय ने मुझे चोर बना दया है। इस लए वह चोरी करने म उसको सु वधा बन जाती है, वह अचोर बना रहता है। वह कहता है: म हसक नह ं , प र तय ने मुझे हसक बना दया है; म ोधी नह ं , वह तो सरे आदमी ने मुझे गाली दी इस लए ोध आ गया। और फर ोधी जाकर मा मांग आता है; वह कहता है, माफ कर देना भाई! न मालूम कैसे मेरे मुंह से वह गाली नकल गई, म तो ोधी आदमी नह ं । उसने अहं कार को वापस रख लया अपनी जगह। सब प ा ाप अहं कार को पुन ा पत करने का उपाय है। उसने रख लया, मा मांग ली। नह , सहज योग यह कहता है क तुम जो हो, जानना क वही हो, और इं च भर यहां-वहां हटने क को शश मत करना, बचने क को शश मत करना। तो उस पीड़ा से, उस दं श से, उस ख से, उस पाप से, उस आग से, उस नरक से--जो तुम हो--अगर उसका पूरा तु बोध हो जाए, तो तुम छलांग लगाकर त ाल बाहर हो जाओगे, बाहर होना नह पड़ेगा।

अगर कोई चोर है और पूरी तरह चोर होने को जान ले, और अपने मन म कह भी गुंजाइश न रखे क कभी म चोर नह र ं गा; म चोर ं तो म चोर ही र ं गा, और अगर आज चोर ं तो कल और बड़ा चोर हो जाऊंगा, क चौबीस घंटे का अ ास और बढ़ जाएगा। अगर कोई अपनी इस चोरी के भाव को पूरी तरह पकड़ ले और हण कर ले, और समझे क ठीक है, यही मेरा होना है, तो आप समझते ह क आप चोर रह सकगे? यह इतने जोर से छाती म तलवार क तरह चुभ जाएगी क म चोर ं , क इसम जीना असंभव हो जाएगा एक ण भी। ां त अभी हो जाएगी, यह हो जाएगी। स ांत के शॉक-ए ाबर नह , ले कन हम हो शयार ह, हमने तरक ब बना ली ह--चोर हम ह, और अचोर होने के सपने देखते रहते ह। वे सपने हम चोर बनाए रखने म सहयोगी होते ह, बफर का काम करते ह। जैसे े न है, रे लगाड़ी के ड के बीच म बफर लगे ह। ध े लगते ह, बफर पी जाते ह ध े । ड े के भीतर के या ी को पता नह चलता। कार म ग लगे ए ह, शॉक-ए ाबस लगे ए ह। कार चलती है, रा े पर ग े ह, शॉक-ए ाबर पी जाता है। भीतर के स न को पता नह चलता क ध ा लगा। ऐसे हमने स ांत के बफर और शॉक-ए ाबर लगाए ए ह। चोर ं म, और स ांत है मेरा अचौय; हसक ं म, अ हसा परम धम क त ी लगाए ए ं --यह बफर है; यह मुझे हसक रहने म सहयोगी बनेगा। क जब भी मुझे खयाल आएगा क म हसक ं , म क ं गा क ा हसक! अ हसा परम धम! म अ हसा को धम मानता ं । आज नह सध रहा, कमजोर ं , कल सध जाएगा; इस जनम म नह सधता, अगले जनम म सध जाएगा; ले कन स ांत मेरा अ हसा है। तो म झंडा लेकर अ हसा का स ांत सारी नया म गाड़ता फ ं गा, और भीतर हसक र ं गा। वह झंडा सहयोगी हो जाएगा। जहां अ हसा परम धम लखा आ दखाई पड़े, समझ लेना आसपास हसक नवास करते ह गे। और कोई कारण नह है। आसपास हसक बैठे ह गे, ज ने वह त ी लगाई है: अ हसा परम धम! वह हसक क तरक ब है। और आदमी ने इतनी तरक ब ईजाद क ह क तरक ब-तरक ब ही रह गई ह, आदमी खो गया है। सहज होने का मतलब है: जो है, दैट च इज़ इज़; जो है, वह है। अब उस होने के बाहर कोई उपाय नह है। उस होने म रहना है। उसम ही र ं गा। ले कन वह होना इतना खद है क उसम रहा नह जा सकता। नरक म आपको डाल दया जाए तो आप हैरान ह गे क नरक म रहने म आपके सपने ही सहयोगी बनगे। तो आप आंख बंद करके सपना देखते रहगे। उपवास कया है कसी दन आपने? तो आप आंख बंद करके भोजन के सपने देखते रहगे। उपवास के दन भी भोजन का सपना ही सहयोगी बनता है उपवास पार करने म; भोजन का सपना चलता रहता है भीतर। अगर भोजन का सपना बंद कर द तो उपवास उसी व टूट जाए। ले कन कल कर लगे सुबह। एक ोफेसर मेरे साथ थे यू नव सटी म। ब त दन साथ रहने पर मने.पहले तो मुझे पता नह चला, कभी-कभी अचानक एकदम वे मठाइय और इन सब क बात करने लगते। मने कहा क बात ा है? कभी-कभी करते ह! फर मने पकड़ा तो अंदाज लगाया तो पता चला क हर श नवार को करते ह। तो मने उनसे पूछा एक दन--श नवार था और वे आए-

-और मने कहा क अब तो आप ज र मठाई क बात करगे। उ ने कहा, , आप यह बात कहते ह? तो मने कहा क म इधर दो महीने से रकाड रख रहा ं आपका, श नवार को ज र मठाई क बात करते ह। आप श नवार को उपवास तो नह करते? उ ने कहा, आपको कसने कहा? मने कहा, कोई कहने का सवाल ही नह है, मने हसाब लगाया है। उ ने कहा, करता ं । आपने कैसे पकड़ा? मने कहा, पकड़ा ा, म देखता ं क कोई भी आदमी जो ठीक से खाता-पीता हो, मठाई क बात करे ? पर आप ठीक खातेपीते आदमी ह। श नवार को ज र वे बात करते, कोई न कोई बहाना फौरन वे कोई बहाने से भी नकाल लेते और वे मठाई क बात शु करते। उ ने कहा क म श नवार--आपने अ ा पकड़ा-ले कन श नवार को म दन भर सोचता रहता ं क कल यह खाऊं, वह खाऊं; यह क ं , वह क ं । उसी के सहारे तो गुजार पाता ं ; श नवार म उपवास करता ं । तो मने उनसे कहा क एक दन ऐसा करो क ये सपने मत देखो, उपवास करो। उ ने कहा, फर उपवास टूट जाएगा; इसी के सहारे म दन भर ख च पाता ं । कल क आशा आज को गुजार देती है। कल क आशा आज को बता देती है। हसक अपनी हसा गुजार रहा है, अ हसा क आशा म; ोधी अपने ोध को गुजार रहा है, दया क आशा म; चोर अपनी चोरी को गुजार रहा है, दान क आशा म; पापी अपने पाप को गुजार रहा है, पु ा ा होने क आशा म। ये आशाएं बड़ी अधा मक ह। नह , तोड़ द इनको। जो ह, ह--उसे जान ल और उसके साथ जीएं । वह जो फै है, उसके साथ जीएं । वह क ठन है, कठोर है, ब त खद है, ब त मन को पीड़ा देगा क म ऐसा आदमी ं ! अब एक आदमी है से ुअ लटी से भरा है, चय क कताब पढ़कर गुजार रहा है! काम से भरा है, कताब चय क पढ़ता है, तो वह सोचता है क हम बड़े चय के साधक ह। काम से भरा है। अब वह कताब चय क बड़ा सहारा बन रही है उसको कामुक रहने म; वह कह रहा है, आज कोई हज नह , आज तो गुजर जाए, आज और भोग लो, कल से तो प ा ही कर लेना। म एक घर म मेहमान था। एक बूढ़े ने मुझसे कहा क एक सं ासी ने मुझे तीन दफे चय का त दलवाया! तीन दफा? मने कहा। चय का त एक दफा काफ है। सरी दफे कैसे लया? क चय का त तीन दफे कैसे लेना पड़ेगा? तो उ ने कहा, म तो कई लोग से कह चुका, ले कन कसी ने मुझे पकड़ा नह । वे कहते ह, अ ा, आपने तीन दफे त लया! और कोई कहता नह । आप.। मने कहा क चय का त तो एक ही दफे हो सकता है; बारा कैसे लया? उ ने कहा, वह टूट गया। फर तबारा लया। तो फर मने कहा, चौथी बार नह लया? तो उ ने कहा क नह , फर मेरी ह त ही टूट गई लेने क । ले कन तीन दफे लेते-लेते वे साठ साल के हो गए। गुजार दी कामुकता-- चय का त ले-लेकर गुजार दी कामुकता। हम बड़े अदभुत ह। यह हमारा असहज योग है जो चल रहा है। असहज योग! रहगे कामुक, पढ़गे चय क कताब। वह चय क कताब हमारी से ुअ लटी के लए बड़ा बफर का काम कर रही है। उसे पढ़े जाएं गे, तो मन म समझाए जाएं गे क कौन कहता

है म कामुक ं ! कताब चय क पढ़ता ं । अभी जरा कमजोर ं , पछले ज के कम बाधा दे रहे ह; अभी समय नह आया है, इस लए थोड़ा चल रहा है, ले कन बाक ं म चारी। चारी क ही धारणा मेरी है। इधर से चलेगा, इधर चय--दोन साथ। चय बफर बन जाएगा, शॉक-ए ाबर बन जाएगा। से क ग ी लगी रहेगी भीतर, वहां कोई ध े न प ं चगे, या ा ठीक से हो जाएगी। यह असहज त है। सहज त का मतलब है क बफर हटा दो; सड़क पर ग े ह तो जानो; गाड़ी बना बफर क , बना शॉक-ए ाबर क चलाओ। पहले ही ग े पर ाण नकल जाएं गे, कमर टूट जाएगी, गाड़ी के बाहर नकल आओगे क नम ार, इस गाड़ी म अब नह चलते। गाड़ी के ग नकालकर चलगे रा े पर, पहले ही ग े म ाण नकल जाएं गे, ह ी टूट जाएं गी; गाड़ी के बाहर हो जाएं गे, कहगे, नम ार! अब इस गाड़ी म हम कदम न रखगे। ले कन वे नीचे लगे शॉक-ए ाबर ग को पी जाते ह। सहज योग का मतलब है: जो है, वह है। असहज होने क चे ा न कर; जो है उसे जान, ीकार कर, पहचान और उसके साथ रहने को राजी हो जाएं । और फर ां त सु न त है। जो है, उसके साथ जो भी रहेगा, बदलेगा। क साठ साल फर उपाय नह है कामुकता म गुजारने का। कतने दफे त लगे? त लगे तो उपाय हो जाएगा। अगर मने आप पर ोध कया और मा मांगने न जाऊं, और जाकर कल कह आऊं क म आदमी गलत ं , और अब मुझसे दो ी रखनी हो तो ान रखना, म फर- फर ोध क ं गा; मा म ा मांग!ूं म आदमी ऐसा ं क म ोध करता ं । सब दो टूट जाएं गे। सब संबंध छ - भ हो जाएं गे। अकेले ोध को लेकर जीना पड़ेगा फर। फर ोध ही म रह जाएगा। ोध करनेवाला भी कोई, ोध सहनेवाला भी कोई, ोध उठानेवाला भी कोई पास न होगा। तब उस ोध के साथ जीना पड़ेगा। जी सकगे उस ोध के साथ? छलांग लगाकर बाहर हो जाएं गे। कहगे, यह ा पागलपन है? नह , ले कन तरक ब हमने नकाल ली है। सुबह प ी पर नाराज हो रहा है प त, घंटे भर बाद मना-समझा रहा है, साड़ी खरीदकर ले आ रहा है। वह प ी समझ रही है क बड़े ेम से भर गया है। वह बेचारा अपने ोध का प ा ाप करके फर पुन ा पत, पुराने ान पर प ं च रहा है--पुरानी सीमा पर जहां से झगड़ा शु आ था, उस लाइन पर फर प ं च रहा है। साड़ी-वाड़ी आ जाएगी, प ी वापस लौट आएगी, पुरानी रे खा फर खड़ी हो जाएगी। सांझ फर वही होना है। उसी रे खा पर सुबह आ था, वही रे खा फर ा पत हो गई। फर सांझ वही होना है। फर रात वही समझाना है, फर सुबह वही होना है। पूरी जदगी वही दोहरना है। ले कन दोन म से कोई भी इस स को न समझेगा क स ा है? यह हो ा रहा है? यह ा जाल है? बेईमानी ा है यह? दोन एक- सरे को धोखा दए चले जाएं गे। हम सब एक- सरे को धोखा दए चले जाते ह। और सरे को धोखा देना तो ठीक, अपने को ही धोखा दए चले जाते ह। सहज योग का मतलब है: अपने को धोखा मत देना। जो ह, जान लेना, यही ं ; ऐसा ही ं । और अगर ऐसा जान लगे तो बदलाहट त ाल हो जाएगी--युगपत, उसके लए कना न पड़ेगा कल के लए। कसी के घर म आग लगी हो और उसे पता चल जाए क घर म आग लगी है, तो केगा कल तक? अभी छलांग लगाकर बाहर हो जाएगा। जस

दन जदगी जैसी हमारी है हम उसे पूरा देख लेते ह, उसी दन छलांग क नौबत आ जाती है। ले कन घर म आग लगी है, हमने अंदर फूल सजा रखे ह। हम आग को देखते ही नह , हम फूल को देखते ह। जंजीर हाथ म बंधी ह, हमने सोने का पा लश चढ़ा रखा है। हम जंजीर देखते ही नह , हम आभूषण देखते ह। बीमा रय से सब घाव हो गए ह, हमने प यां बांध रखी ह, प य पर रं ग पोत दए ह। हम रं ग को देखते ह, भीतर के घाव को नह देखते। अस बांधता है, स मु करता है धोखा लंबा है और पूरी जदगी बीत जाती है और प रवतन का ण नह आ पाता है। उसे हम पो पोन करते चले जाते ह। मौत पहले आ जाती है, वह पो पोनमट कया आ ण नह आता। मर पहले जाते ह, बदल नह पाते ह। बदलाहट कभी भी हो सकती है। सहज योग बदलाहट क ब त अदभुत या है। सहज योग का मतलब यह है क जो है उसके साथ जीओ, बदल जाओगे। बदलने क को शश करने क कोई ज रत नह है। स बदल देता है। जीसस का वचन है: ू थ लबरे स। वह जो स है वह मु करता है। ले कन स को हम जानते ही नह । हम अस को लीप-पोत कर खड़ा कर लेते ह। अस बांधता है, स मु करता है। खद से खद स भी सुखद से सुखद अस से बेहतर है, क सुखद अस ब त खतरनाक है; वह बांधेगा। खद स भी मु करे गा। उसका ख भी मु दायी है। इस लए खद स के साथ जीना, सुखद अस को मत पालना। सहज योग इतना ही है। और फर तो समा ध आ जाएगी। फर समा ध को खोजने न जाना पड़ेगा, वह आ जाएगी। जब रोना आए तो रोना, रोकना मत; और जब हं सना आए तो हं सना, रोकना मत। जब जो हो उसे होने देना और कहना, यह हो रहा है। मने सुना है, जापान म एक फक र मरा। उसके मरते समय लाख लोग इक े ए। उसक बड़ी क त थी। ले कन उससे भी ादा क त उसके एक श क थी। उस श के कारण ही गु स हो गया था। ले कन जब लोग आए तो उ ने देखा वह जो श है, वह बाहर बैठकर छाती पीटकर रो रहा है। तो लोग ने कहा क आप और रो रहे ह? हम तो समझते थे आप ान को उपल हो गए! और आप रोते ह? तो उस श ने कहा क पागलो, तु ारे ान के पीछे म रोना न छोडूंगा। रोने क बात ही और। रखो अपने ान को, स ालो, मुझे नह चा हए। पर उ ने कहा क अरे , लोग ा कहगे? अंदर जाओ! बदनामी फैल जाएगी। हम तो समझे तुम त हो गए; हम तो समझे थे क तुम परम ानी हो गए; और हम तो समझे थे क अब तु कुछ भी नह छु एगा। उसने कहा, तुम गलत समझे थे। ब पहले मुझे ब त कम छूता था, संवेदनशीलता मेरी कम थी, म कठोर था। अब तो सब मुझे छूता है और आर-पार नकल जाता है। म तो रोऊंगा, म तो दल भरकर रोऊंगा। तु ारे ान को फको। पर वे लोग, जैसा क भ गण होते ह, उ ने कहा क सब म बदनामी फैल जाएगी। भीड़ करके, घेरा करके रोको, कसी को देखने मत दो। बदनामी हो जाएगी क परम ानी. कसी एक ने कहा क तुम तो सदा समझाते थे क

आ ा अमर है, अब रो रहे हो? तो उस फक र ने कहा, आ ा के लए कौन रो रहा है? म तो उस शरीर के लए रो रहा ं । वह शरीर भी ब त ारा था, और वह शरीर अब बारा इस पृ ी पर कभी नह होगा। आ ा के लए कौन रो रहा है! वह तो सदा रहेगी। उसके लए रो कौन रहा है? ले कन वह शरीर भी ब त ारा था जो टूट गया। और वह मं दर भी ब त ारा था जसम उस आ ा ने वास कया। अब वह बारा नह होगा। म उसके लए रो रहा ं । अरे , उ ने कहा, पागल शरीर के लए रोते हो? उस फक र ने कहा क रोने म भी शत लगाओगे ा? मुझे रोने भी नह दोगे? ामा णकता से पांतरण मु च वही हो सकता है जो स च हो गया। स च का मतलब, जो हो रहा है-रोना है तो रोएं , हं सना है तो हं स, ोध करना है तो बी ऑथ टक, ोध म भी पूरे ामा णक ह । और जब ोध कर तो पूरे ोध ही हो जाएं -- क आपको भी पता चल जाए क ोध ा है और आपके आसपास को भी पता चल जाए क ोध ा है। वह मु दायी होगा। बजाय इं च-इं च ोध जदगी भर करने के, पूरा ोध एक ही दफे कर ल और जान ल। तो उससे आप भी झुलस जाएं और आपके आसपास भी झुलस जाए और पता चल जाए क ोध ा है। ोध का पता ही नह चलता। आधा-आधा चल रहा है। वह भी अनऑथ टक चल रहा है। इं च भर करते ह और इं च भर.हमारी या ा ऐसी है, एक कदम चलते ह, एक कदम वापस लौटते ह; न कह जाते, न कह लौटते, बस जगह पर खड़े नाचते रहते ह। कह जानाआना नह है। सहज योग का इतना ही मतलब है क जो है जीवन म, उसको ीकार कर ल, उसे जान और जीएं । और इस जीने, जानने और ीकृ त से आएगा प रवतन, ूटेशन, बदलाहट। और वह बदलाहट आपको वहां प ं चा देगी जहां परमा ा है। यह जसे म ान कह रहा ं , यह सहज योग क ही या है। इसम आप ीकार कर रहे ह जो हो रहा है; अपने को छोड़ रहे ह पूरा और ीकार कर रहे ह जो हो रहा है। नह तो आप सोच सकते ह, पढ़े- लखे आदमी, सु श त, संप , सो फ केटे ड, सुसं ृ त--रो रहे ह खड़े होकर, च ा रहे ह, हाथ-पैर पटक रहे ह, व क तरह नाच रहे ह! यह सामा नह है। क मती है ले कन, असामा है। इस लए जो देख रहा है उसक समझ म नह आ रहा है क यह ा हो रहा है। उसे हं सी आ रही है क यह ा हो रहा है! उसे पता नह क वह भी इस जगह खड़े होकर ामा णक प से जो कहा जा रहा है, करे गा, तो उसे भी यही होगा। और हो सकता है उसक हं सी सफ डफस-मेजर हो, वह सफ हं सकर अपनी र ा कर रहा है। वह क ह रहा है, हम ऐसा नह कर सकते। वह हं सकर यह बता रहा है, हम ऐसा नह कर सकते। ले कन उसक हं सी कह रही है क उसका कुछ संबंध है। उसक हं सी कह रही है क वह इस मामले से कुछ न कुछ संबंध उसका है। अगर वह भी इस जगह इसी तरह खड़ा होगा, यही करे गा। उसने भी अपने को रोका है, दबाया है; रोया नह , हं सा नह , नाचा नह । ब ड रसेल ने पीछे एक बार कहा क मनु क स ता ने आदमी से कुछ क मती चीज छीन ल --उसम नाचना एक है। ब ड रसेल ने कहा, आज म ै फलगर ायर पर खड़े

होकर लंदन म नाच नह सकता। कहते ह हम तं हो गए ह, कहते ह क नया म तं ता आ गई है, ले कन म चौर े पर खड़े होकर नाच नह सकता। ै फक का आदमी फौरन मुझे पकड़कर थाने भेज देगा क आप ै फक म बाधा डाल रहे ह। और आप आदमी पागल मालूम होते ह, चौर ा नाचने क जगह नह । ब ड रसेल ने कहा क कई दफे आ दवा सय म जाकर देखता ं , और जब उ नाचते देखता ं रात, आकाश के तार क छाया म, तब मुझे ऐसा लगता है: स ता ने कुछ पाया या खोया? ब त कुछ खोया है। ब त कुछ खोया है। कुछ पाया है, ब त कुछ खोया है। सरलता खोई है, सहजता खोई है, कृ त खोई है, और ब त तरह क वकृ त पकड़ ली है। ान आपको सहज अव ा म ले जाने क या है। साधक के लए पाथेय इस लए अं तम बात जो आपसे कहना चा ं गा वह यह क यहां तीन दन म जो आ, वह मह पूण है। कुछ लोग ने बड़ी अदभुत ती त पाई, कुछ लोग ती त क झलक तक प ं चे, कुछ लोग यास तो कए ले कन पूरा नह कर पाए, फर भी यास कए और नकट थे, वेश हो सकता था। ले कन सभी ने कुछ कया, सफ दो-चार-दस म को छोड़कर। उनको, ज बु मान होने का म है, उनको छोड़कर। जनके पास बु कम, कताब ादा ह, उनको छोड़कर बाक सारे लोग संल ए। और सारा वातावरण, ब त सी बाधाओं के बावजूद भी, एक वशेष कार क श से न मत आ। और ब त कुछ घटा। ले कन वह सफ ारं भ है। घर जाकर ान का योग जारी रख आप घर जाकर घंटे भर इस योग को चौबीस घंटे म से देते रहना, तो आपक जदगी म कोई ार खुल सकता है। और घर के लए--कमरा बंद कर ल, और घर के लोग को कह द क घंटे भर इस कमरे म कुछ भी हो, इस संबंध म च तत होने का कारण नह है। कमरे के भीतर न हो जाएं , सब व फक द। और खड़े होकर योग कर। ग ी बछा ल, ता क गर जाएं तो कोई चोट न लग जाए। खड़े होकर योग कर। और घर के लोग को पहले जता द क ब त कुछ हो सकता है--आवाज आ सकती ह, रोना नकल सकता है--कुछ भी हो सकता है भीतर, ले कन घर के लोग को बाधा नह देनी है। यह पहले बता द। और इस योग को घंटे भर दोहराते रह, बारा श वर म मलने के पहले। और अगर जो म यहां योग कए ह वे अगर सारे म घर जाकर दोहराते ह, तो उनके लए म फर अलग श वर ले सकूंगा। तब उ और ग त दी जा सकती है। ब त संभावना है, अनंत संभावनाएं ह, ले कन आप कुछ कर। आप एक कदम चल तो परमा ा आपक तरफ सौ कदम चलने को सदा तैयार है। ले कन आप एक कदम भी न चल, तब फर कोई उपाय नह है। जाकर इस योग को जारी रख। संकोच ब त घेरगे। क घर म छोटे ब े ा कहगे क पता को ा हो गया! वे तो कभी ऐसे न थे, सदा गु -गंभीर थे। ऐसा नाचते ह, कूदते ह, च ाते ह! हम नाचते-कूदते थे ब े घर म तो वे डांटते-डपटते थे क गलत है यह, अब खुद को ा हो गया है? ज र ब े हं सगे। ले कन उन ब से माफ मांग लेना, और उन ब से कह देना क भूल हो गई। तुम अभी भी नाचो और कूदो और आगे

भी नाचने-कूदने क मता को बचाए रखना, वह काम पड़ेगी। ब को ज ी हम बूढ़ा बना देते ह। घर म सबको जता देना क यह घंटे भर कुछ भी हो, उसके संबंध म कोई ा ा नह करनी है, कोई पूछताछ नह करनी है। एक दन कह देने से बात हल हो जाती है, दो या तीन दन चलने पर घर के लोग समझ लेते ह क ठीक है, ऐसा होता है। और न केवल आप ब आपके पूरे घर म प रणाम होने शु हो जाएं गे। ऊजावान ान क जस कमरे म आप कर इस योग को, अगर उस कमरे को संभव हो सके आपके लए, तो फर इसी योग के लए रख, उसम कुछ सरा काम न कर। छोटी कोठरी हो, ताला बंद कर द, उसम सफ यही योग कर। और अगर घर के सरे लोग भी उसम आना चाह तो वह योग करने के लए आएं तो ही आ सक, अ था उसे बंद कर द। नह संभव हो सके तो बात अलग है। संभव हो सके तो इसके ब त फायदे ह गे। वह कमरा चा हो जाएगा। वह रोज आप जब उसके भीतर जाएं गे तो आपको पता चलेगा क साधारण कमरा नह है। क हम पूरे समय अपने चार तरफ रे डएशन फैला रहे ह। हमारे चार तरफ हमारी च -दशा क करण फक रही ह। और कमरे और जगह भी करण को पी जाती ह। और इसी लए हजार -हजार साल तक भी कोई जगह प व बनी रहती है। उसके कारण ह। अगर वहां कभी कोई महावीर या बु या कृ जैसा बैठा हो, तो वह जगह हजार साल के लए और तरह का इ ै ले लेती है; उस जगह पर खड़े होकर आपको सरी नया म वेश करना ब त आसान हो जाता है। तो जो संप ह.और संप का म तो एक ही ल ण मानता ं क उसके घर म मं दर हो सके, बस वही संप है, बाक सब द र ही ह। घर म एक कमरा तो मं दर का हो सके, जो एक सरी नया क या ा का ार हो। वहां कुछ और न कर। वहां जब जाएं , मौन जाएं ; और वहां ान को ही कर। और घर के लोग को भी धीरे -धीरे उ ुकता बढ़ जाएगी, क आप म जो फक होने शु ह गे वे दखाई पड़ने लगगे। अब यहां जन दो-चार लोग को क मती फक ए ह, सरे लोग ने उनसे जाकर पूछना शु कर दया क आपको ा हो गया है! उ ने मुझसे भी आकर कहा क हम ा जवाब द? हमसे लोग पूछ रहे ह क ा हो गया है! तो वे आपके घर के ब े, आपक प ी, प त, पता, बेटे, वे सब पूछने लगगे, म पूछने लगगे क ा हो रहा है! वे भी उ ुक ह गे। और अगर इस योग को जारी रखते ह तो र नह वह ण जब आपके जीवन म घटना घट सकती है-- जस घटना के लए अनंत ज क या ा करनी होती है, और जस घटना के लए अनंत ज तक हम चूक सकते ह। वराट ान आंदोलन क आव कता मनु -जा त के इ तहास म आनेवाले कुछ वष ब त मह पूण ह। और अगर एक ब त बड़ी चुए लटी का ज नह हो सकता--अब आ ा क लोग से काम नह चलेगा-अगर आ ा क आंदोलन नह हो सकता, क लाख -करोड़ लोग उससे भा वत हो जाएं , तो नया को भौ तकवाद के गत से बचाना असंभव है। और ब त मोमटस ण ह

क पचास साल म भा का नपटारा होगा--या तो धम बचेगा, या नपट अधम बचेगा। इन पचास साल म बु , महावीर, कृ , मोह द, राम, जीसस, सबका नपटारा होने को है। इन पचास साल म एक तराजू पर ये सारे लोग ह और सरे तराजू पर सारी नया के व राजनी त , सारी नया के व भौ तकवादी, सारी नया के ांत और अ ान म यं और सर को भी ध ा देनेवाले लोग क बड़ी भीड़ है। और एक तरफ तराजू पर ब त थोड़े से लोग ह। पचास साल म नपटारा होगा। वह जो संघष चल रहा है सदा से, वह ब त नपटारे के मौके पर आ गया है। और अभी तो जैसी त है उसे देखकर आशा नह बंधती। ले कन म नराश नह ं , क मुझे लगता है क ब त शी ब त सरल-सहज माग खोजा जा सकता है, जो करोड़ लोग के जीवन म ां त क करण बन जाए। और अब इ ाा आद मय से नह चलेगा। जैसा पुराने जमाने म चल जाता था क एक आदमी ान को उपल हो गया। अब ऐसा नह चलेगा। ऐसा नह हो सकता। अब एक आदमी इतना कमजोर है, क इतनी बड़ी भीड़ पैदा ई है, इतना बड़ा ए ोजन आ है जनसं ा का क अब इ ाा आद मय से चलनेवाली बात नह है। अब तो उतने ही बड़े ापक पैमाने पर लाख लोग अगर भा वत ह , तो ही कुछ कया जा सकता है। ले कन मुझे दखाई पड़ता है क लाख लोग भा वत हो सकते ह। और थोड़े से लोग अगर ु यस बनकर काम करना शु कर तो यह ह ान उस मोमटस फाइट म, उस नणायक यु म ब त क मती ह ा अदा कर सकता है। कतना ही दीन हो, कतना ही द र हो, कतना ही गुलाम रहा हो, कतना ही भटका हो, ले कन इस भू म के पास कुछ संर त संप यां ह। इस जमीन पर कुछ ऐसे लोग चले ह, उनक करण ह, हवा म उनक ो त, उनक आकां ाएं सब प -प पर खुद गई ह। आदमी गलत हो गया है, ले कन अभी जमीन के कण को बु के चरण का रण है। आदमी गलत हो गया है, ले कन वृ पहचानते ह क कभी महावीर उनके नीचे खड़े थे। आदमी गलत हो गया है, ले कन सागर ने सुनी ह और तरह क आवाज भी। आदमी गलत हो गया है, ले कन आकाश अभी भी आशा बांधे है। आदमी भर वापस लौटे तो बाक सारा इं तजाम है। तो इधर म इस आशा म नरं तर ाथना करता रहता ं क कैसे लाख लोग के जीवन म एक साथ व ोट हो सके। आप उसम सहयोगी बन सकते ह। आपका अपना व ोट ब त क मती हो सकता है--आपके लए भी, पूरी मनु -जा त के लए भी। इस आशा और ाथना से ही इस श वर से आपको वदा देता ं क आप अपनी ो त तो जलाएं गे ही, आपक ो त सरे बुझे दीय के लए भी ो त बन सकेगी। मेरी बात को इतनी शां त और ेम से सुना है, उससे ब त अनुगृहीत ं ; और अंत म सबके भीतर बैठे परमा ा को णाम करता ं , मेरे णाम ीकार कर।

कुंड लनी जागरण व श ताओ--मूल

:7 पात

भाव

: ओशो, ताओ को आज तक सही तौर से समझाया नह गया है । या तो वनोबा भावे ने ाई कया, या फारे नस ने ाई कया, या हमारे एक ब त बड़े व ान मनोहरलाल जी ने ाई कया, ले कन ताओ को या तो वे समझा नह पाए या म नह समझ पाया। क यह एक ब त बड़ा गंभीर वषय है ।

ताओ का पहले तो अथ समझ लेना चा हए। ताओ का मूल प से यही अथ होता है, जो धम का होता है। धम का मतलब है भाव। जैसे आग जलाती है, यह उसका धम आ। हवा दखाई नह पड़ती है, अ है, यह उसका भाव है, यह उसका धम है। मनु को छोड़कर सारा जगत धम के भीतर है। अपने भाव के बाहर नह जाता। मनु को छोड़कर जगत म, सभी कुछ भाव के भीतर ग त करता है। भाव के बाहर कुछ भी ग त नह करता। अगर हम मनु को हटा द तो भाव ही शेष रह जाता है। पानी बरसेगा, धूप पड़ेगी, पानी भाप बनेगा, बादल बनगे, ठं डक होगी, गरगे। आग जलाती रहेगी, हवाएं उड़ती रहगी, बीज टूटगे, वृ बनगे। प ी अंडे देते रहगे। सब भाव से होता रहेगा। भाव म कह कोई वपरीतता पैदा न होगी। तं ता--मनु क ग रमा भी, भा भी मनु के आने के साथ ही एक अदभुत घटना जीवन म घटी। सबसे बड़ी घटना है जो इस जगत म घटी। और वह यह है क मनु के पास श और मता है क वह भाव के तकूल जा सके, भाव से उलटा जा सके। यह मनु क ग रमा भी है और भा भी। यह उसका गौरव भी है, इसी लए वह े तम ाणी भी है। इसी लए क वह चाहे तो भाव म जीए और चाहे तो भाव के तकूल चला जाए। यानी भाव क जो अ नवाय परतं ता थी, वह मनु पर नह है। मनु तं ाणी है। इस ात जगत म मनु अकेला तं है। तं का मतलब यह क वह वह भी कर सकता है जो क कृ त म नह होता। वह आग को ठं डी कर सकता है। हवा को बना सकता है। वह पानी को नीचे न बहाकर ऊपर क तरफ बहाए। और इस सबका कारण यह है क मनु सोच सकता है। उसके पास बु है। तो बु नणायक है उसक -- ा कर, ा न कर! ऐसा कर या वैसा कर! यह करना ठीक होगा क नह ठीक होगा! तो बु जो

है वह मनु के भीतर तं ता का सू है। और कृ त के ऊपर उठने क संभावना है। वह ांसेनडस है उसम। ं दता नह है तं ता ले कन मनु भाव के तकूल तो जा सकता है, ले कन भाव के तकूल जाने से जो ख होते ह वे उसे झेलने ही पड़गे। : झेलने ही पड़ते ह?

ं दता नह है। उस पर एक गहरी कावट वे झेलने ही पड़ते ह। तो उसक तं ता है। तं है वह क वह कृ त से तकूल काम करे । ले कन तकूल काम करने से जो भी प रणाम ह गे खद, वे उसे झेलने ही पड़गे। अधम का मतलब इतना ही है। अधम का मतलब यह है क जो भाव म नह है वैसा करना। जो नह करना चा हए था वैसा करना। जसे करने से ख उ होता है ऐसा करना। यह सब एक ही बात ई। जसे भी करने से खद प रणाम आते ह वह अधम है। क भाव म ख क गुंजाइश ही नह है। इस लए मनु को छोड़कर इस जगत म और कोई खी भी नह है, च तत भी नह है, तनाव भी नह है। मनु को छोड़कर और कोई ाणी पागल होने क मता नह रखता, व नह हो सकता, क वह अपने भाव म ही जीता है। भाव म सुख है, भाव के तकूल जाने म ख है। ले कन और कोई ाणी जा ही नह सकता। भाव म जीना उसका चुनाव नह है। भाव म जीना उसक मजबूरी है। इस लए गौरवपूण नह है वह बात। मनु भाव के तकूल जा सकता है। यह गौरवपूण है। ले कन यह ज री नह है क इससे सौभा आए, इससे भा आ सकता है। अगर वह तकूल जाएगा तो ख उठाएगा। सुख + तं ता = आनंद यह एक बात और समझ लेनी ज री है: भाव म रहने क अगर मजबूरी हो तो सुख तो होता है, ले कन आनंद कभी नह होता। मनु के जीवन म एक नया सू खुलता है आनंद का। आनंद का मतलब यह है: भाव के तकूल जा सकता था और नह गया। जाता तो ख उठाता; अगर जा ही न सकता और भाव म रहता तो सुख पाता; ले कन जा सकता था, नह गया, तब जो सुख उपल होता है वह आनंद है। सुख के साथ तं ता जब जुड़ जाती है तो आनंद बन जाता है। सुख + तं ता आनंद बन जाता है। ताओ का अथ है: जैसा सारा जगत जीता है मजबूरी म, वैसे हम अपनी तं ता म जीएं । तं तापूवक हम अपने भाव म जीएं , तो ताओ उपल हो जाता है। तो ताओ के लए या तो धम श ब त अदभुत है। ले कन धम चूं क हमारे बीच ब त पट गया, इस लए हमारे खयाल म नह पड़ता। और धम के हमने बड़े गलत उपयोग कए, इस लए भी कह ह और मुसलमान को धम बना दया इससे भी क ठनाई हो गई। नह तो एक सरा वै दक श है: ऋत। ऋत का अथ होता है: द लॉ। नयम। तो ताओ का भी मतलब ऋत है जो नयम है।

ले कन नयम दो तरह से हो सकता है, जैसा मने कहा। मजबूरी! तब फर कृ त रह जाती है। जहां सब सुखद है, ले कन जहां चुनाव नह है। और नयम को तोड़ने क संभावना मनु के साथ शु होती है। यानी मनु जो है वह कृ त को पार कर गया और परमा ा म व नह आ ऐसा ाणी है। वह ार पर खड़ा है परमा ा के, चाहे तो वेश करे , चाहे तो लौट जाए। इस पर कोई मजबूरी नह है। लौटने से जो ख होगा वह झेलना पड़ेगा। वेश से जो आनंद होगा वह मलेगा। चुनावपूवक, तं तापूवक जो भाव म जीने को राजी हो जाता है, वह ताओ को उपल होता है। कृ त म न कुछ शुभ है, न कुछ अशुभ इस लए अब ताओ म और भी कुछ बात इस आधार पर समझनी ज री ह। जैसे भाव म कुछ अ ा और बुरा नह होता। जो होता है होता है। हम यह नह कह सकते क पानी नीचे क तरफ बहता है तो पाप करता है। हम ऐसा नह कह सकते। पानी नीचे क तरफ बहता ही है, उसका भाव है। इसम पाप-पु कुछ भी नह है। अ ा-बुरा भी कुछ नह है। आग जलाती है तो हम यह नह कह सकते क आग ब त पाप करती है। जलने से कोई कतना ही ख पाता हो, ले कन आग क तरफ से कोई पाप नह है, यह उसका भाव है। यह उसक मजबूरी है। वह आग है इस लए जलाती है। इसम कोई. आग होना और जलाना, एक ही चीज को कहने के दो ढं ग ह। इस लए कृ त म कोई पाप-पु नह ह। आदमी थोपने क को शश करता है। जैसे क हम शेर को पापी समझते ह, क वह गाय को खा जाता है। इस लए पु ा ा लोग ऐसी त ीर बनाते ह क गाय और शेर एक ही साथ पानी पी रहे ह। इसम गाय के साथ तो ब त भला हो गया, ले कन शेर का ा होगा? इन पु ा ाओं ने भी कभी गाय को और घास को एक साथ खड़े नह बताया। नह तो गाय के साथ भी वही हो जाएगा जो शेर के साथ हो रहा है। क घास भी तो मरा जा रहा है गाय के हाथ म। गाय मजे से घास चर रही है और शेर को गाय के बगल म बठा दया और वह गाय को नह चर रहा है। हम अपनी धारणाएं थोपते ह। कृ त म न कुछ शुभ है, न कुछ अशुभ है। कोई अ े और बुरे क बात कृ त म नह है, क वहां वक नह है, वहां चुनाव ही नह है। ऐसा शेर कोई जानकर गाय को नह खाता और गाय कोई जानकर घास को नह खाती। कसी का कसी को ख प ं चाने का कोई इरादा नह है। बस ऐसा होता है। आदमी के साथ अनंत संभावनाएं आदमी के साथ पहली दफा सवाल उठता है-- ा अ ा और ा बुरा। क आदमी चुन सकता है। ऐसा कुछ भी नह है आदमी के साथ जो होता ही है। कुछ भी हो सकता है, अनंत संभावनाएं ह। आदमी गाय भी खा सकता है, घास भी खा सकता है। गाय को भी छोड़ सकता है, घास को भी छोड़ सकता है। बना खाए उपवासा भी मर सकता है। आदमी के साथ अनंत संभावनाएं खुल जाती ह। इस लए सवाल उठता है क ा ठीक है और ा गलत है। कहानी है क कन ू शयस लाओ े के पास गया। और लाओ े से उसने कहा क लोग को बताना पड़ेगा: ा ठीक है, ा गलत है। तो लाओ े ने कहा क यह तभी बताना पड़ता है जब ठीक खो जाता है। जब ठीक खो जाता है तभी बताना पड़ता है क ा

ठीक है और ा गलत है। जब ठीक खो जाता है, तभी बताना पड़ता है क ा ठीक है और ा गलत है। तो कन ू शयस ने कहा, लोग को धम तो समझाना ही पड़ेगा। तो लाओ े ने कहा, तभी समझाना पड़ता है जब धम का कुछ पता नह चलता क ा धम है। जब धम खो जाता है। आदमी के साथ खो ही गया है। उसके पास कोई साफ सू ज के साथ नह ह जन पर वह चले। उसे अपने चलने के सू भी खोजने पड़ते ह--जीने के साथ ही साथ। इससे तं ता तो ब त है, ले कन भाव के तकूल चले जाने क भी संभावना उतनी ही है। तो हम ऐसा भी कर सकते ह जो करना हम ख म ले जाए। और ऐसा हम रोज कर रहे ह। ताओ का मतलब है क फर उस जगह खड़े हो जाना, उस ब पर, जहां से चीज साफ दखाई पड़नी शु हो जाती ह। जहां हम तय नह करना पड़ता क ा ठीक है और ा गलत है, ब जहां से हम दखाई ही पड़ता है क यह ठीक है और वह गलत है। जहां हम वचार नह करना पड़ता, ब दखाई पड़ता है। ताओ क साधना-- न वचार तो पहली तो मने ताओ क प रभाषा क क ताओ का मतलब ा है। अब सरी बात म कह रहा ं क ताओ क साधना ा है। ताओ क साधना, यह ऐसे ब पर खड़े हो जाने का उपाय है जहां से हम दखाई पड़े क ा ठीक है और ा गलत है। जहां हम सोचना न पड़े क ा ठीक है और ा गलत है। क सोचेगा कौन? सोचूंगा म। और अगर म सोच ही सकता, तब तो कहना ही ा था। मुझे पता नह है इस लए तो म सोच रहा ं । और जो मुझे पता नह है उसे म सोचकर पता लगा नह सकता ं । यानी सोच हम उसी को सकते ह जो हम जानते ही ह । अनजान को, अननोन को हम सोच नह सकते। इतना तो साफ है क मुझे पता नह क ा ठीक है और ा गलत है। ा भाव है, ा वभाव है, मुझे कुछ पता नह । अब हम कहते ह हम सोचगे। जहां से सोचना शु होता है वहां से फलॉसफ शु होती है। और इस लए क ं गा क ताओ क कोई फलॉसफ नह है। ताओ कोई फलॉसफ नह है। जहां से सोचना शु होता है क ा ठीक है और ा गलत है; ा कर, ा न कर; ा करना पु है, ा करना पाप है; ा करगे तो सुख होगा, ा करगे तो ख होगा--जहां यह सोचना है वहां फलॉसफ है। न, ताओ बलकुल एं टी- फलॉसफ है। वह बलकुल अदशन है। ताओ यह कह रहा है, सोचकर तुम पाओगे कैसे? अगर तु पता ही होता तो तुम सोचते ही न। और अगर तु पता नह है तो तुम सोचोगे कैसे? सोचकर तुम वही जुगाली कर लोगे जो तुम जानते हो। सोचने से नया कभी उपल नह होता। न कभी उपल आ है, न हो सकता है। सोचने से सफ पुराने के नये संयोग बनते ह। कभी कोई नया उपल नह होता। चाहे व ान क कोई नई ती त हो, चाहे धम क कोई नई अनुभू त हो, सब सोचने के बाहर घटती है, सोचने के भीतर नह घटती। व ान क भी नह घटती। जब भी कुछ नया आता है, वह तब आता है जब आप सोचने के बाहर होते ह। भला यह हो सकता है क आप सोच-सोचकर थककर बाहर हो गए ह । यह हो सकता है क एक आदमी अपनी

योगशाला म सोच-सोचकर थक गया है दन भर। और दन भर सब तरह के योग कए ह और कोई फल नह पाया। थक गया, थक गया, थक गया। वह रात सो गया है। और अचानक उसे सपने म खयाल आ गया या सुबह उठा है और उसे खयाल आया। तो वह यही कहेगा क मने जो सोचा था उससे ही यह आया। यह उससे नह आया। यह तो जब सोचना थक गया, ठहर गया, तब वह ताओ म प ं च गया। जब कोई सोचने से छूट जाता है, त ाल भाव म आ जाता है। क और कह जाने का उपाय नह है। वचार एकमा व ा है जसम हम भाव के बाहर चले जाते ह। जैसे म इस कमरे म सोऊं और रात सपना देख,ूं तो म इस कमरे के बाहर जा सकता ं सपने म। ले कन सपना टूट जाए, तो म इसी कमरे म खड़ा हो जाऊं। फर म यह नह पूछूंगा क म इस कमरे म आया कैसे? क म तो सपने म बाहर चला गया था! तब म त ाल जानूंगा क सपने म बाहर गया था अथात म बाहर गया नह था सफ खयाल था मुझे क म बाहर गया ं । था म यह , जब म बाहर गया था ऐसा देख रहा था तब भी म यह था। तो ताओ यह कहता है क तुम कतना ही सोच रहे हो क यहां चले गए, वहां चले गए, तुम ताओ से जा नह सकते। रहोगे तो तुम वह , क भाव के बाहर जाओगे कैसे? भाव का मतलब ही यह है क जसके बाहर न जा सकोगे। जो तु ारा होना है, जो तु ारी बीइं ग है, उससे बाहर जाओगे कैसे? ले कन सोच सकते हो बाहर जाने क बात। इस लए यह सरी बात खयाल म ले लेने जैसी है क मनु क जो तं ता है वह भी सोचने क तं ता है। सोचने म वह बाहर चला गया है। वचार म वह भटक रहा है। अगर सारा वचार ठहर जाए तो वह ताओ पर खड़ा हो जाएगा। जसको हम ान कहते ह, या जसको जापान म वे झेन कहते ह, उसको लाओ े ताओ कहता है। उस जगह खड़े हो जाना है जहां कोई वचार नह है। वहां से तु वह दखाई पड़ेगा जो है। जैसा होना चा हए, जैसा होना सुख देगा, आनंद देगा, वह दखाई पड़ेगा। और यह अब चुनना नह पड़ेगा क इसको म क ं । बस यह होना शु हो जाएगा। तो ताओ क त को जहां क पशु है ही, जहां पौधे ह ही, जहां हम भी ह, ले कन हम वचार म भटक गए ह। और ताओ हमारी वा वक त का हम पता नह , और सब कुछ हम पता होता है। वचार है भाव के बाहर छलांग तो ताओ क जो मौ लक या है साधना, वह तो ान ही है। वहां आ जाना है जहां कोई सोच- वचार नह है। और लाओ े कहता है, तुमने सोचा, र ी भर वचार, और ग और नरक अलग, इतना बड़ा फासला हो जाएगा। लाओ ेके पास कोई आया है और उससे कुछ पूछता है और लाओ े उसे जवाब देता है। और जब वह जवाब देता है तो वह आदमी सोचने लगता है। अब लाओ े कहता है क बस, बस! सोचना मत। क सोचा, क जो मने कहा उसे तुम कभी न समझ पाओगे। सोचना ही मत। जो मने कहा उसे सुनो। सोचो मत। अगर सुन सके तो बात हो जाएगी और अगर सोचे तो गए। सोचना ही था तो मुझसे पूछा ? तु सोच लेते! तुम सोच ही

लेते, कौन तु मना करता है! सोचते ही हम त ाल भाव के बाहर हो जाते ह। तो वचार जो है वह भाव के बाहर छलांग है--ले कन वचार म ही! इस लए मूलतः हम कह नह गए होते, गए ए मालूम पड़ते ह। तो ताओ क साधना का अथ आ: सोच- वचार छोड़कर खड़े हो जाना। जहां कोई वचार न हो, सफ चेतना रह जाए, सफ होश रह जाए। तो वहां से जो ठीक है वह न केवल दखाई पड़ेगा ब होना शु हो जाएगा। इस लए ताओ को जीनेवाला आदमी न नै तक होता, न अनै तक होता; न पापी होता, न पु ा ा होता। क वह कहता है क जो हो सकता है वही हो रहा है। म कुछ करता नह । एक ताओ फक र से कोई जाकर पूछता है क आपक साधना ा है? तो वह कहता है, जब मेरी न द टूटती है तब म उठ जाता ं ; और जब न द आ जाती है तो म सो जाता ं ; और जब भूख लगती है तो खाना खा लेता ं । तो वह कहता है, यह तो हम सभी करते ह। तो वह कहता है, यह तुम सब नह करते। जब न द आई तब तुम कब सोए? तुमने और हजार काम कए। और जब न द नह आ रही थी तब तुमने न द लाने क को शश भी क । और तुम कब उठे जब न द टूटी हो? तुमने सदा न द तोड़कर तुम उठ आए हो। या न द टूट गई है और तुम नह उठे हो। तुमने कब खाना खाया जब भूख लगी हो? एक ए मो साइबे रया का पहली दफा इं ड आया। तो वह ब त हैरान आ। और सबसे बड़ी हैरानी उसे यह ई क लोग घड़ी देखकर कैसे सो जाते ह! और लोग घड़ी देखकर खाना कैसे खा लेते ह! और जस घर म वह मेहमान था वह इतना परे शान आ क सारे लोग एक साथ खाना कैसे खा लेते ह घर भर के! क उसने कहा यह हो ही नह सकता क सबको एक साथ भूख लगती हो। क हम तो.जब हमारे यहां जसको भूख लगती है वह खाता है। कसी को कभी लगती है, कसी को कभी लगती है, कसी को कभी लगती है। यह बड़ा मरे कल है क घर भर के लोग एक साथ टे बल पर बैठकर खाना खाते ह! क सबको एक साथ भूख लगना बड़ी असंभव घटना है। और लोग कहते ह क बारह बज गए और सो जाते ह। उसने कहा क.उसक यह बलकुल समझ के बाहर पड़ा उसे। ाभा वक, क साइबे रया से आनेवाला आदमी अभी भी ताओ के ादा करीब है। अभी भी जब भूख लगती है तब खाता है, जब नह लगती तो नह खाता है। जब न द आती है तो सोता है, जब न द टूटती है तो उठता है। मु त म उठना चा हए, ऐसा ताओ नह कहेगा। ताओ कहेगा क जब तुम उठ जाते हो वही मु त है। ऐसा नह कहेगा ताओ.। वह फक र ठीक कह रहा है क जो होता है हम वह होने देते ह। हम कुछ भी नह करते, जो होता है हम होने देते ह। तो मनु एकबारगी फर से अगर कृ त क तरह जीने लगे तो ताओ को उपल होता है। जब उसे जो होता है होने देता है। और यह ब त गहरे तल तक! यह खाने और पीने क बात ही नह है। अगर उसे ोध आता है तो वह ोध को भी आने देता है। अगर उसे काम उठता है तो वह काम को भी उठने देता है। क वह कहता है, म कौन ं जो बीच म आऊं? असल म जो होता

है, ताओ कहता है, उसे होने देना है। तुम कौन हो जो तुम बीच म आते हो? हर चीज पर तुम कौन हो जो बीच म आते हो? ताओ क अं तम घटना--सा ी और अगर कोई सब होने दे जो होता है, तो सा ी ही रह जाएगा, और तो कुछ बचेगा नह उसके भीतर। देखेगा क ोध आया। देखेगा क भूख आई। देखेगा क न द आई। वह सा ी हो जाएगा। तो ताओ क जो गहरी से गहरी पकड़ है वह सा ी म है। वह सा ी रह जाएगा। वह देखता रहेगा, देखता रहेगा, एक दन वह यह भी देखेगा क मौत आई और देखता रहेगा। क जसने सब देखा हो जीवन, वह फर मौत को भी देख पाता है। क हम जीवन को ही नह देख पाते, हम सदा बीच म आ जाते ह, तो मौत के व भी हम बीच म आ जाते ह और नह देख पाते क ा हो रहा है। वह मौत को भी देखेगा। जसने न द को आते देखा और जाते देखा, जसने बीमारी को आते देखा और जाते देखा, ोध को आते देखा जाते देखा, वह एक दन मौत को भी आते देखेगा। वह ज को भी आते देखेगा। वह सब का देखनेवाला हो जाएगा। और जस दन हम सबके देखनेवाले हो जाते ह उसी ण हम पर कोई भी कम का कोई बंधन नह रह जाता। क कम का सारा बंधन हमारे कता होने म है क म कर रहा ं । चाहे ोध कर रहे ह और चाहे चय साध रहे ह , ले कन म करनेवाला ं मौजूद है। चाहे पूजा कर रहे ह और चाहे भोजन कर रहे ह , म करनेवाला मौजूद है। तो ताओ क जो अं तम घटना है उसम म तो खो जाएगा, कता खो जाएगा, सा ी रह जाएगा। अब जो होता है होता है। अब इसम कुछ भी करनेवाला नह है। डुअर जो है वह अब नह है। तो ऐसी जो चेतना क अव ा है--जहां न कोई शुभ है, न कोई अशुभ है; न अ ा है, न बुरा है; जहां सफ भाव है; और भाव के साथ पूरे भाव से रहने का राजीपन है; जहां कोई संघष नह , कोई झगड़ा नह ; ऐसा हो, वैसा हो, ऐसा कोई वक नह ; जो होता है उसे होने देने क तैयारी है--तो व ोट, ए ोज़न जसको म कहता ं वह त ाल घ टत हो जाएगा। ताओ म सम अ ा समा हत है और इस लए ताओ जैसे छोटे श म सब आ गया है। सब जो भी े तम है साधना म। और जो भी महानतम है मनु क अ ा क खोज म। ान म, समा ध म जो भी पाया गया है, वह सब इस छोटे से श म सब समाया आ है। यह श ब त क मती है। और इसी लए अन ांसलेटेबल है। इस लए ताओ का अनुवाद नह हो सकता। धम से हो सकता था। ले कन धम वकृत आ, उसके एसो सएशंस गलत हो गए। ऋत से हो सकता था। ले कन वह अ व त है, उसका कभी योग नह आ। ापक मन तक गया नह । ले कन अथ वही है। अथ वही है। मूल भाव म जीने क साम सबसे बड़ी साम है। क तब न नदा का उपाय है, न शंसा का उपाय है। तब कोई उपाय ही नह है। लाओ े ने कुछ भी होना बंद कर दया है लाओ े एक नदी के कनारे बैठा आ है। स ाट ने कसी को भेजा है क लाओ े को खोज लाओ! सुनते ह ब त बु मान आदमी है। तो हम उसे अपना वजीर बना ल। वह आदमी गया है। बामु ल तो लाओ े को खोज पाया। क जहां-जहां लोग से पूछा,

उ ने कहा क लाओ े को खुद ही पता नह होता क कहां जा रहा है। जहां पैर ले जाते ह चला जाता है। तो पहले से तो वह खुद भी नह बता सकता क कहां जाएगा। इस लए बताना मु ल है। ले कन फर भी खोजो, कह न कह होगा। क सुबह यहां दखाई पड़ा है। इस गांव म वह था। कह ब त र नह नकल गया होगा। र इस लए भी नह नकल गया होगा, क तेजी से वह चलता ही नह है। क जाना ही नह है कह , प ं चना ही नह है कह । तो कह र नह गया होगा, मलेगा आसपास। खोजा है तो वह नदी के कनारे बैठा आ है। तो उ ने जाकर उसको कहा क मल गए, हम बड़ी मु ल गांव-गांव खोजते फर रहे ह। स ाट ने बुलाया है। कहा है क वजीर का पद लाओ े स ाल ले। तो लाओ े चुपचाप बैठा रहा। फर उसने कहा, देखते हो उस कछु ए को! एक कछु आ वहां क चड़ म मजा कर रहा है। उ ने कहा, देखते ह। तो लाओ े ने कहा, हमने सुना है क तु ारे स ाट के घर एक सोने का कछु आ है। उसक पूजा होती है। कभी कोई कछु आ कई पी ढ़य पहले कसी कारणवश उस प रवार म पू हो गया था। उस पर सोने क खोल चढ़ाकर उसको बड़े उससे रखा गया है। ा यह सच है? तो उ ने कहा, यह सच है। सोने क खोल मढ़ा आ वह कछु आ परम आदरणीय है। स ाट यं उसके सामने सर झुकाते ह। तो लाओ े ने कहा, बस म यह तुमसे पूछता ं --अगर तुम इस कछु ए से कहो क हम तुझे सोने से मढ़कर और सुंदर ब मू पेटी म बंद करके पूजा करगे, तो यह कछु आ सोने से मढ़ा जाना पसंद करे गा क यह क चड़ म लोटना पसंद करे गा? उ ने कहा, कछु आ तो क चड़ म लोटना ही पसंद करे गा। तो लाओ े ने कहा, हम भी पसंद करगे। नम ार! तुम जाओ। जब कछु आ तक इतना बु मान है, तो तुम लाओ े को ादा बु हीन समझे हो कछु ए से! तुम जाओ। तु ारा वजीर होना हमारे काम का नह है। असल म, लाओ े ने कुछ भी होना बंद कर दया अब। लाओ े जो है वह है। यह जो आदमी है, यह साधारणतः जनको हम साधक कहते ह, वैसा आदमी नह है। हम जसे साधक कहते ह वह आमतौर से, हम जसे साधारण आदमी कहते ह, उससे वपरीत होता है। अगर यह आदमी कान करता है तो वह आदमी कान नह करता। अगर यह आदमी धन कमाता है तो वह आदमी धन छोड़ देता है। अगर यह आदमी ववाह करता है तो वह आदमी ववाह नह करता। ले कन उसके करने का जतना भी नयम है वह इसी गृह से मलता है। वह सफ इसका रए न होता है। लाओ े कहता है क हम कसी के रए न नह ह, हम कसी क त या नह ह। कौन ा करता है, इससे योजन नह है। न हम कसी के पीछे जाते क वैसा कर जैसा वह करता है, न हम कसी के तकूल जाते ह क वैसा कर जैसा वह नह करता है। हम तो वही होने देते ह जो हमारे भीतर से होता है। भाव को होने देने का मतलब यह है क हम कसी का अनुकरण न कर, कसी क नकल न कर, कसी के वरोध म आयोजन न कर अपने का। जो हो सकता है भीतर से, जो होना चाहता है, वह हम होने द। उस पर कह कोई कावट न हो, कोई नदा न हो, कोई वरोध न हो, कोई संघष न हो, कोई ं न हो, जो होता है उसे होने द। तब उसका मतलब यह क बुरे-भले का खयाल त ाल छोड़ देना पड़ेगा। क बुरा-भला ही

हम नदा करवाता है, कवाता है--यह करो और यह मत करो। यह सारे बुरे-भले का, शुभअशुभ का खयाल छोड़कर और उस ब पर हम खड़े होकर देखना पड़े क जीवन अब कहां जाए, जस ब पर कोई वचार नह है। सोच- वचार से ास म फक अगर आपके म से सोचने क सारी श छीन ली जाए, फर भी आप ास लोगे। अभी भी ास ले रहे हो। ले कन ास तक के लेने म फक पड़ जाएगा। रात को आप सरी तरह से ास लेते हो दन क बजाय। ास पर हम आमतौर से कोई खयाल नह दए ह। ले कन फर भी हमारी वचार क या ास पर कोई तरह क बाधा डालती रहती है। रात म हम सरी तरह क ास लेते ह। अगर कोई बीमार रात सोना बंद कर दे तो उसक बीमारी ठीक होना मु ल हो जाती है; क जागते म बीमारी का खयाल बीमारी को बढ़ावा देने लगता है। तो पहले ज री होता है क कोई बीमार हो तो पहले उसको न द आए। इलाज नंबर दो बाद है, पहले तो न द आए। क न द म वह बीमारी का खयाल छोड़ पाए और उसका भाव जो कर सकता है वह कर सके। यह आदमी बाधा न दे। ताओ का स दय इस लए ब े हम इतने ी तकर लगते ह। ब त मजे क बात है! आमतौर से कु प ब ा खोजना ब त मु ल है। सभी ब े सुंदर होते ह असल म, ब ा कु प होता ही नह । यानी कभी खयाल म नह आया होगा कसी ब े को देखकर क यह कु प है। ले कन यही ब े बड़े होकर इनम ब त से लोग कु प हो जाते ह अ धक लोग कु प हो जाते ह, सुंदर आदमी खोजना मु ल हो जाता है। बात ा हो जाती है? यह ब े का स दय कहां से आता है? ताओ से। वह वैसा ही जी रहा है जैसा है। यानी बड़े से बड़ी जो कु पता है, बड़े से बड़ी अ ीनेस जो है वह सुंदर होने क चे ा से पैदा होती है। वह सुंदर होने क चे ा से पैदा होती है। तब जो हम ह वह नह रह जाता मह पूण। जो हम दखना चा हए उसको हम थोपना शु कर देते ह। इस लए यां मु ल से ही सुंदर हो पाती ह। सुंदर होने का जो अ त वचार है वह ब त गहरी और छपी कु पताएं भीतर भरता है। इस लए ब त कम यां ह जनम कोई गहराई होती है स दय क । इस लए एक या दो दन के बाद अगर एक ी आपके साथ रह जाए, कतनी ही सुंदर हो, दो दन के बाद उसका स दय दखाई पड़ना बंद हो जाता है। क ब त सफस पर था, ब त ऊपर था, गया। वह गहरे दखाई नह पड़ता। ब े सभी सुंदर मालूम होते ह, क वे जैसे ह वैसे ह। कु प ह तो कु प होने को भी राजी ह, उसम भी कोई बाधा नह है। और तब एक और तरह का स दय उनम कट होता है जसको ताओ का स दय कहगे। ताओ क अपनी एक बु म ा है इसी तरह जीवन के सारे पहलुओ ं पर। एक ब त बु मान आदमी है। वह सब के उ र जानता है। ले कन ज र ऐसे ह गे जनके उ र उसको पता नह ह। जब तक उसके जाने ए आप पूछते ह तब तक वह उ र देता है। और एक आप ऐसा खड़ा

कर द जो उसे पता नह , वह त ाल अ ानी हो जाता है। क जो बु म ा थी वह साधी गई थी। वह साधी गई बु म ा थी। इस लए बु मान आदमी नये को ीकार नह करना चाहता, नये सवाल नह उठाना चाहता। वह कहता है, पुराने सवाल ठीक ह। इस लए वह कहता है, पुराने जवाब ठीक ह। क पुराने जवाब तभी तक ठीक ह जब तक क नया सवाल नह उठता। नया सवाल उठता है तो बु मान आदमी गया। नह ले कन, ताओ के पास कोई जवाब नह है। इस लए ताओ क बु म ा जसको उपल हो जाए, उसके लए कोई सवाल न नया है, न कोई पुराना है। इधर सवाल खड़ा होता है, इधर वह उस सवाल से जूझ जाता है। उसके पास कुछ रे डीमेड नह है। उसके पास कुछ तैयार नह है। कन ू शयस जब लाओ े से मला है.तो कन ू शयस ब त से लोग से मलने गया था। और जब लौटकर उसके म ने पूछा क ा आ? तो उसने कहा, आदमी क जगह तुमने मुझे अजगर के पास भेज दया। वह आदमी ही नह है, वह तो खा जाएगा। मेरी सारी बु म ा चकनाचूर हो गई। ब उस आदमी के सामने मुझे पता चला क मेरी बु म ा एक तरह क क नगनेस है, और कुछ भी नह ; सफ एक चालाक है, जसम मने कुछ सवाल के जवाब तय कर रखे ह जनके म जवाब दे देता ं । ले कन उस आदमी ने ऐसे सवाल पूछे जनके जवाब मुझे पता ही नह थे। मुझे यह भी पता नह था क यह भी सवाल है। और तब वह ब त हं सने लगा। और अब उस आदमी के सामने म बारा न जा सकूंगा। क उस आदमी के पास मेरी सारी बु म ा चालाक से ादा सा बत नह ई जो मने तैयार कर रखी थी। ताओ क अपनी एक बु म ा है। जस बु म ा म कुछ तैयार नह है। चीज आती ह और ीकार कर ली जाती ह। पर जो भी होता है उसे होने दया जाता है। ताओ का वहार तय करना क ठन है इस लए ब त, ताओ का वहार तय करना ब त क ठन है। हो सकता है क आप कसी ताओ म र आदमी से कोई सवाल पूछ और वह जवाब न देकर आपको चांटा मार दे। क वह यह कहेगा, यही आ! वह यह नह कहता क आप न मार, आप जवाब म मार सकते ह और जो करना हो कर सकते ह। ले कन वह यह कहेगा, जो हो सकता था वह आ। और अगर उसके चांटे को समझा जाए तो शायद आपके लए वही जवाब था। सभी ऐसे नह क उनके उ र दए जाएं । ब त ऐसे ही ह जनका चांटा ही अ ा होगा। हमारे खयाल म नह आएगा एकदम से क चांटा कैसे अ ा हो सकता है। एक ताओ फक र के पास एक युवक पूछने गया है। वह उससे पूछता है क ई र ा है? धम ा है? तो वह उसे उठाकर एक चांटा लगाता है और दरवाजा बंद करके बाहर कर देता है। तो वह ब त परे शान होता है। वह बड़ी र से बड़ी पहाड़ी चढ़कर इसके पास आया। तो सामने ही एक सरे फक र का झोपड़ा है, वह उसम जाता है। और वह कहता है क कस तरह का आदमी है यह! तो वह डंडा उठाता है वह फक र। वह कहता है, यह आप ा कर रहे ह? तो उसने कहा क तू ब त दयालु आदमी के पास गया था। अगर हमारे पास तू आता तो हम डंडा ही मारते। वह आदमी सदा का दयालु है। तू वापस वह जा! उसक बड़ी क णा है।

उसने इतना भी कया, यह कुछ कम नह है। वह आदमी वापस लौटता है। वह कुछ समझ नह पाता क ा मामला है। दरवाजा खटखटाता है। वह आदमी फर भीतर बुलाकर बड़े ेम से बठा लेता है। उससे कहता है, पूछ! वह कहता है क अभी म आया था तो आपने मुझे मारा और आप अब इतने ेम से बठा रहे ह! तो वह उससे कहता है, जो मार न सह सके, वह ेम तो सह ही न सकेगा। वह कहता है, जो मार न सह सके, वह ेम तो सह ही न सकेगा। क ेम क मार तो ब त क ठन है। मगर तू लौट आया, तो अब आगे बात चल सकती है। तो उसने कहा क म तो डरकर भाग भी जा सकता था, वह तो सामनेवाले क क णा है। तो उसने कहा, वह बड़ा कृपालु है। वह मुझसे ादा कृपालु है। अगर तू उसके पास गया होता तो वह डंडा ही मार देता। अब यह जो, यह जब बात सारी क सारी सारे जगत म प ं ची तो समझना ब त मु ल हो गया क यह सारा मामला ा है! ले कन चीज के अपने आंत रक नयम ह, आंत रक ताओ है चीज का। अब यह ज री नह है क आप जब मुझसे पूछने आए ह तो सच म ही पूछने आए ह । यह ज री नह है। और यह भी ज री नह है क आपको उ र क ही ज रत है। यह भी ज री नह है। और यह भी ज री नह है क जो आपने पूछा है वही आप पूछने आए थे। यह भी ज री नह है। और यह भी ज री नह है क जो आपने पूछा है यह आप पूछना ही चाहते ह। यह भी ज री नह है। क आपके पास भी ब त चेहरे ह। आप कुछ पूछना तय करके चलते ह, कुछ रा े म हो जाता है, कुछ आप आकर पूछते ह। अब मेरे पास कई लोग आते ह क अगर म उनका दो मनट छोड़ जाऊं, सरी बात क ं , फर बारा वे घंटे भर बैठे रहगे, वे कभी वह नह पूछगे। जो आदमी एक पूछने आया था--मने उससे इतना ही पूछा: कैसे हो? ठीक हो? अ े हो? फर मने पूछा क कहो ा है? वह गया। तो यह कतना गहरा हो सकता है? इसक कतनी स हो सकती ह? इस आदमी के को कतनी इसक ज रत हो सकती है? उसको कोई ज रत नह है। ले कन आया यह ऐसे ही था जैसे क ब त ज री था इसको पूछना। जैसे इसके बना पूछे यह जी न सकेगा। ताओ क बु म ा--दपण क तरह तो ताओ क अपनी एक बु म ा है जो सीधा डायरे ए न म है। कुछ कहा नह जा सकता क ताओ म थर आदमी ा करे गा। हो सकता है चुप रह जाए। लाओ े रोज घूमने जाता है। एक म उसके साथ जाता है। वे दो घंटे तक घूमते ह पहाड़ पर, फर लौट आते ह। फर एक मेहमान आया आ है। तो वह म उसे लाता है और कहता है क हमारे मेहमान ह, आज ये भी चलगे। वे दोन चुप ह। लाओ े चुप है, साथी चुप है, वह मेहमान भी चुप है। रा े म जब सूरज ऊगा तब वह इतना ही कहता है मेहमान क कतनी अ ी सुबह है! तब लाओ े ब त गु े से उस अपने म क तरफ देखता है जो इस मेहमान को ले आया है। वह म भी घबड़ा जाता है, वह मेहमान तो और भी घबड़ा जाता है क ऐसी भी कोई मने बुरी बात भी नह कह दी। और घंटा भर हो गया चुप रहते, सफ इतना ही कहा है क कतनी अ ी सुबह है।

फर वे लौट आते ह, घंटा और बीत जाता है, दरवाजे पर लाओ े उस म से कहता है, इस आदमी को बारा मत लाना। यह ब त बकवासी मालूम होता है। वह मेहमान कहता है क मने कोई बकवास नह क , दो घंटे म सफ इतना कहा क कतनी अ ी सुबह है। लाओ े कहता है, वह हमको भी दखाई पड़ रही थी। वह नपट बकवास थी। सुबह हमको भी दखाई पड़ रही थी। जो बात सभी को दखाई पड़ रही थी, उसको कहने क ा ज रत है! और जो बात नह कहनी, तुम वह कह सकते हो, तुम आदमी ठीक नह हो। तुम कल से मत आना। अब यह बात जरा सोचने जैसी है। असल म, जब आप सुबह देखकर कहते ह क कतनी अ ी सुबह है, तब सच म आपको सुबह से कोई मतलब नह होता। आप सफ एक चचा शु करना चाहते ह। सुबह तो हम सबको दखाई पड़ रही है। सुबह सुंदर है तो चुप र हए। नह , सफ आदमी खूंटी खोजता है। तो वह जो पूरा कां स स है, लाओ े पूरा पकड़ लेता है। वह कहता है, यह आदमी बकवासी है। इसने शु आत क थी, वह तो हम जरा ठीक आदमी नह थे, नह तो यह शु हो गया था। इसने े न तो चला दी थी। वह तो दो आद मय ने सहयोग नह दया इस लए यह बेचारा चुप रह गया। इसने शु आत तो कर दी थी, इसने खूंटी गाड़ दी थी, अभी यह और सामान भी गाड़ता उसके ऊपर। यह आदमी बकवासी है। अब यह इतनी सी बात क सुबह सुंदर है, एक बकवासी आदमी के च क सबूत हो सकती है। इससे ादा उसने कुछ कहा ही नह । हमको भी लगता है क लाओ े ादती कर रहा है। ले कन मुझे नह लगता। वह ठीक ही कह रहा है। वह आदमी पकड़ लया उसने। क ताओ जो है उसक अपनी बु म ा है, वह दपण क तरह है। वह चीज जैसी ह वैसी दख जाती ह। उसने पकड़ ली इस आदमी क तरक ब क यह आदमी घंटे भर से बेचैन था, इसने कई तरक ब लगाई ह गी, ले कन दो आदमी बलकुल चुप थे, वे कुछ बोल ही नह रहे थे! इसने कहा, ा कर, ा न कर! इसने कहा सुबह हो गई, अब इसने कहा क सुबह ब त सुंदर है। अब इसने चाहा था क इनम से कोई कुछ तो कहेगा क हां, सुंदर है। अब इसम तो कोई इनकार नह करे गा। तो बात शु हो जाएगी। फर जो बात शु हो जाती है उसका कोई अंत नह है। तो लाओ े ने कहा, यह है बकवासी, इसको तुम कल से लाना ही मत। इसने बीज तो बो दया था, फसल तो हमने बचाई। तो ताओ का एक अपना दपण है। जसम चीज कैसी दखाई पड़गी, यह सीधी चीज को देखकर हम नह जानते। और चूं क उसके पास अपना कोई बंधा आ उ र नह है, इस लए बड़ी मु है। चूं क कोई रे डीमेड बात नह है, इस लए चीज सरल और सीधी ह और जाल कुछ भी नह है। ले कन यह त पर खड़े होने क सारी बात है। लाओ े मेरे नकटतम है तो जसे म ान कह रहा ं , उसे ताओ कह तो कोई फक नह पड़ता। हां, ताओ से मेरे बड़े नकट लेन-देन ह। और अगर कसी भी के नकट म मालूम अपने को करता ं तो वह लाओ े के। वह शु तम! उसने कभी जदगी म कताब नह लखी। कतने लोग ने कहा क लख, लख, लख। फर आ खरी उ म वह देश छोड़कर जा रहा है। और तब

उसे चौक पर, चुंगी चौक पर पकड़वा लया है राजा ने। और उसने कहा क कज चुका जाओ; ऐसे न जाने ं गा। उसने कहा क मेरे पास तो कुछ भी नह है। चुंगी देने के लए तो मेरे पास कुछ है ही नह । टै म कस बात का ं ! तो वह जो टै कले र है, उसने कहा क तु ारे सर म जो है वह हम जाने न दगे। उसे लख जाओ। तुम भागे जा रहे हो, तु ारे पास ब त संपदा है। तो उसने एक छोटी सी कताब लखी है। यह ताओ तेह कग। और यह भी अदभुत कताब है। क कम ही ऐसे लोग ह जो लखते व यह कह क जो म कहने जा रहा ं वह कहा न जा सकेगा; और जो म क ं गा वह स हो ही नह सकता, क कहते ही अस हो जाता है। स न कहा जा सकेगा और जो म क ं गा वह अस हो जाएगा, क कहते ही चीज अस हो जाती ह। तो इस आदमी के पास कुछ है, और इस आदमी ने कुछ जाना है, और यह आदमी कह प ं चा है। ान + ताओ = झेन झेन क जो पैदाइश है, झेन जो है, वह ताओ और बु , लाओ े और बु दोन क ास ीड है; झेन जो है। इस लए झेन का कोई मुकाबला नह है। झेन अकेला बु नह है। ह ान से बौ भ ु लेकर गए ान क या को। ले कन ह ान के पास ताओ क पूरी न थी, पूरा फैलाव न था। ान क या थी, जो भाव म थर कर देती है। ले कन भाव म थर होने क पूरी क पूरी ापक क ना ह ान के पास नह थी। वह लाओ े के पास थी। और जब ह ान से बौ भ ु ान को लेकर चीन गए, और वहां जाकर ताओ क पूरी फलॉसफ और पूरी उनके खयाल म आई, तो ान और ताओ एक हो गए। इनसे जो पैदाइश ई वह झेन है। इस लए झेन न तो बु है, न झेन लाओ े है। झेन ब त ही अलग बात है। और इस लए आज झेन क जो खूबी है जगत म वह कसी और बात क नह है। उसका कारण है क नया क दो अदभुत क मती बात--बु और लाओ े--दोन से पैदा ई बात है। इतनी बड़ी दो ह य के मलन से कोई सरी बात पैदा नह ई। तो उसम ताओ का पूरा फैलाव है और ान क पूरी गहराई है। क ठन तो है जैसा आप कहते ह, और सरल भी है। क ठन इसी लए है क हमारे सोचने के जो ढांचे ह उनसे बलकुल तकूल है। और सरल इसी लए है क भाव सरल ही हो सकता है। उसम कुछ क ठन होने क बात नह है। ती ास और कुंड लनी का संबंध : ओशो, ती ास- ास लेना और ‘म कौन ं ’ पूछना, इसका कुंड लनी जागरण और च -भेदन क या से कस कार का संबंध है ?

संबंध है और ब त गहरा संबंध है। असल म, ास से ही हमारी आ ा और शरीर का जोड़ है; ास सेतु है। इस लए ास गई क ाण गए। म चला जाए तो चलेगा,

आंख चली जाएं तो चलेगा, हाथ-पैर कट जाएं तो चलेगा। ास कट गई क गए; ास से जोड़ है हमारी आ ा और शरीर का। और आ ा और शरीर के मलन का जो ब है, वह कुंड लनी है--उसी ब पर! वह वह श है जसको कुंड लनी कहते ह। नाम कुछ भी दया जा सकता है। वह ऊजा वह है। कुंड लनी ऊजा के दो प और इस लए उस ऊजा के दो प ह। अगर वह कुंड लनी क ऊजा शरीर क तरफ बहे, तो काम-श बन जाती है, से बन जाती है; और अगर वह ऊजा आ ा क तरफ बहे, तो वह कुंड लनी बन जाती है, या कोई और नाम द। शरीर क तरफ बहने से वह अधोगामी हो जाती है और आ ा क तरफ बहने से ऊ गामी हो जाती है। पर जस जगह वह है, उस जगह पर चोट ास से पड़ती है। इस लए तुम हैरान होओगे: संभोग करते समय शांत ास को नह रखा जा सकता; संभोग करते व ास क ग त म त ाल अंतर पड़ जाएगा। इस लए कामातुर होते ही च ास को तेज कर लेगा, क उस ब पर चोट ास करे गी तभी वहां से कामश बहनी शु होगी। ास क चोट के बना संभोग भी असंभव है और ास क चोट के बना समा ध भी असंभव है। समा ध उसके ऊ गामी ब का नाम है और संभोग उसके अधोगामी ब का नाम है। पर ास क चोट तो दोन पर पड़ेगी। ास और वासना का घ न संबंध तो अगर च काम से भरा हो, तब ास को धीमा करना, ास को श थल करना। जब च म कामवासना घेरे, या ोध घेरे, या और कोई वासना घेरे, तो ास को श थल करना और कम करना और धीमी लेना। तो काम और ोध दोन वदा हो जाएं गे, टक नह सकते; क जो ऊजा उनको चा हए वह ास क बना चोट पड़े नह मल सकती। इस लए कोई आदमी ोध नह कर सकता, ास को धीमे लेकर। और करे तो वह चम ार है। करे तो बलकुल चम ार है; साधारण घटना नह है। हो नह सकता; ास धीमी ई क ोध गया। कामो े जत भी नह हो सकता ास को शांत रखकर; क ास शांत ई क कामो ेजना गई। तो जब कामो े जत हो मन, ोध से भरे मन, तब ास को धीमी रखना; और जब ान क अभी ा से भरे मन, तो ास क ती चोट करना। क जब ान क अभी ा भीतर हो और ास क चोट पड़े, तो जो ऊजा है वह ान क या ा पर नकलनी शु हो जाती है। ती ास क चोट से श जागरण तो कुंड लनी पर गहरी ास का ब त प रणाम है। ाणायाम अकारण ही नह खोज लया गया था। वह ब त लंबे योग और अनुभव से ात होना शु आ क ास क चोट से ब त कुछ कया जा सकता है; ास का आघात ब त कुछ कर सकता है। और यह आघात जतना ती हो, उतनी रत ग त होगी। और हम सब साधारणजन म, जनक कुंड लनी ज -ज से सोई है, उसको बड़े ती आघात क ज रत है; घने आघात क ज रत है; सारी श इक ी करके आघात करने क ज रत है।

तो ास से तो कुंड लनी पर चोट पड़नी शु होती है, मूल क पर चोट पड़नी शु होती है। और जैस-े जैसे तु अनुभव होना शु होगा, तुम बलकुल आंख बंद करके देख पाओगे क ास क चोट कहां पड़ रही है। इस लए अ र ऐसा हो जाएगा क जब ास क तेज चोट पड़ेगी तो ब त बार कामो ेजना भी हो सकती है। वह इस लए हो सकती है क तु ारे शरीर का एक ही अनुभव है, ास तेज पड़ने का और उस ऊजा पर चोट पड़ने का एक ही अनुभव है--से का। तो जो अनुभव है उस लीक पर शरीर फौरन काम करना शु कर देता है। इस लए ब त साधक को, सा धकाओं को एकदम त ाल यौन क पर चोट पड़नी शु हो जाती है। गुर जएफ के पास अनेक लोग को ऐसा खयाल आ--और होना बलकुल ाभा वक है--अनेक य को ऐसा खयाल आ क उसके पास जाते ही से उनके यौन क पर चोट होती है। अब यह बलकुल ाभा वक है। इसक वजह से गुर जएफ को ब त बदनामी मली। इसम उसका कोई कसूर न था। इसम उसका कोई कसूर न था। असल म, ऐसे के पास, जसक अपनी कुंड लनी जा त हो, तु ारी कुंड लनी पर चोट होनी शु होती है, उसक चार तरफ क तरं ग से। ले कन तु ारी कुंड लनी तो अभी बलकुल से सटर के पास सोई ई होती है, इस लए चोट वह पड़ती है, पहली चोट वह पड़ती है। जागी ई कुंड लनी से च स य ास तो गहरा प रणाम लानेवाली है, कुंड लनी के लए। और सारे च ज तुम कहते हो, वे सब कुंड लनी के या ा-पथ के े शन समझो; जहां-जहां से कुंड लनी होकर गुजरे गी, वे ान। ऐसे तो ब त ान ह, इस लए कोई कतने ही च गन सकता है, ले कन ब त मोटे वभाजन कर तो जहां कुंड लनी थोड़ी देर ठहरे गी, व ाम करे गी, वे ान ह। तो सब च पर प रणाम होगा। और जस का जो च सवा धक स य है, उस पर सबसे पहले प रणाम होगा। जैसे क अगर कोई म से ही दन-रात काम करता है, तो तेज ास के बाद उसका सर एकदम भारी हो जाएगा। क उसका जो म का च है, वह स य च है। ास का पहला आघात स य च पर पड़ेगा। उसका सर एकदम भारी हो जाएगा। कामुक है तो उसक कामो ेजना बढ़ जाएगी; ब त ेमी है तो उसका ेम बढ़ जाएगा; भावुक है तो भावना बढ़ जाएगी। उसका जो अपने का क ब त स य है, पहले उस पर चोट होनी शु हो जाएगी। ले कन त ाल सरे क पर भी चोट शु होगी। और इस लए म पांतरण भी त ाल अनुभव होना शु हो जाएगा क म बदल रहा ं ; यह म वही आदमी नह ं जो कल तक था। क हम आदमी का पता ही नह है क हम कतने ह; हम तो पता है उसी च का जस पर हम जीते ह। जब सरा च हमारे भीतर खुलता है तो हम लगता है क हमारा गया, यह तो हम सरे आदमी ए; यह हम अब वह आदमी नह ह जो कल तक थे। यह ऐसे ही है, जैसे क इस मकान म हम इसी कमरे का पता हो, यही कमरे का न ा हो हमारे दमाग म। अचानक एक दरवाजा खुले और एक और कमरा हम दखाई पड़े, तो हमारा पूरा न ा बदलेगा। अब जसको हमने अपना मकान समझा था, अब वह

सरा हो गया। अब एक नई व ा उसम हम देनी पड़े। स य क से नये का आ वभाव तो तु ारे जन- जन क पर चोट होगी, वहां-वहां से का नया आ वभाव होगा। और जब सारे क स य होते ह एक साथ, उसका मतलब है क जब सबके भीतर से ऊजा एक सी वा हत होती है, तब पहली दफे तुम अपने पूरे म जीते हो। हमम से कोई भी अपने पूर म साधारणतः नह जीता। और हमारे ऊपर के क तो अछूते रह जाते ह। तो ास से इन क पर भी चोट पड़ेगी। और ‘म कौन ं ’ का जो है, वह भी चोट करनेवाला है; वह सरी दशा से चोट करनेवाला है। इसे थोड़ा समझो। ास से तो खयाल म आया। अब ‘म कौन ं ’, इससे कुंड लनी पर कैसे चोट होगी? यह कभी हमारे खयाल म नह है। तुम आंख बंद कर लो, और एक न ी का च सोचो। तु ारा से सटर फौरन स य हो जाएगा। ? तुम सफ एक क ना कर रहे हो, तु ारा से सटर स य हो गया? असल म, ेक सटर क अपनी क ना है। समझे न? ेक सटर क अपनी इमे जनेशन है। और अगर उसक इमे जनेशन के करीब तुमने इमे जनेशन करनी शु क तो वह सटर त ाल स य हो जाएगा। इस लए कामवासना का वचार करते ही तु ारा से सटर वक करना शु कर देगा। और तुम हैरान होओगे: न ी हो सकता है इतनी भावी न हो, जतना न ी का वचार भावी होगा। उसका कारण है क न ी का वचार तो तु क ना म ले जाएगा और क ना चोट करे गी। और न ी तु क ना म नह ले जाएगी, वह तो खड़ी है। इस लए जतनी चोट कर सकती है, करे गी। क ना भीतर से चोट करती है तु ारे सटर पर, ी सामने से चोट करती है। सामने क चोट उतनी गहरी नह है, जतनी भीतर क चोट गहरी है। इस लए ब त से ऐसे लोग ह जो क ी के सामने तो इं पोटट स ह गे, ले कन क ना म ब त पोटट ह वे। क ना म उनक पोटसी का कोई हसाब नह है। क क ना क जो चोट है वह तु ारे भीतर से जाकर सटर को छूती है। क जो चोट है वह भीतर से जाकर नह छूती, बाहर से तु सीधा छूती है। और मनु चूं क मन म जीता है, इस लए मन से ही गहरी चोट कर पाता है। ‘म कौन ं ?’ एक अ गत सवाल तो जब तुम पूछते हो: ‘म कौन ं ?’ तो तुम एक ज ासा कर रहे हो; एक जानने क क ना कर रहे हो; एक उठा रहे हो। यह तु ारे कस सटर को छु एगा? यह तु ारे कसी सटर को छु एगा। जब तुम यह पूछते हो, जब तुम इसक ज ासा करते हो, इसक अभी ा से भरते हो, और तु ारा रोआं-रोआं पूछने लगता है: ‘म कौन ं ?’ तब तुम भीतर जा रहे हो; और भीतर कसी क पर चोट होनी शु होगी। ‘म कौन ं ’, ऐसा जो पूछा ही नह तुमने कभी। इस लए तु ारे कसी ात स य क पर उसक चोट नह होनेवाली है। समझे न? तुमने कभी पूछा ही नह है उसे; उसक अभी ा ही कभी तुमने नह क । तुमने अ र पूछा है: वह कौन है? यह कौन है? तुमने ये सारे पूछे ह।

ले कन ‘म कौन ं ’, यह अनपूछा है। यह तु ारे बलकुल अ ात क को चोट करे गा, जस पर तुमने कभी चोट नह क है। और वह अ ात क , जहां ‘म कौन ं ’, चोट करे गा, ब त बे सक है; क यह ब त बे सक है, ब त आधारभूत है क ‘म कौन ं ?’ ब त एि झ शयल है यह सवाल। यह पूरे अ क गहराई का सवाल है क म ं कौन? यह मुझे वहां ले जाएगा जहां म ज के पहले था; यह मुझे वहां ले जाएगा जहां ज ज के पहले था। यह मुझे वहां ले जा सकता है जहां क म आ द म था। इस क गहराई का कोई हसाब नह है। इसक या ा ब त गहरी है। इस लए तु ारा जो मूल, गहरे से गहरा क है कुंड लनी का, वहां इसक त ाल चोट होनी शु होगी। चोट करने के व भ उपाय ास फ जयोला जकल चोट है, और ‘म कौन ं ’ यह मटल चोट है। यह तु ारी माइं ड एनज से चोट प ं चाना है, और वह तु ारी बॉडी एनज से चोट प ं चाना है। और अगर ये दोन चोट पूरे जोर से पड़ जाएं .तो दो ही रा े ह वहां तक चोट प ं चाने के तु ारे पास सामा तया। और तरक ब भी ह, ले कन वे जरा उलझी ई ह। सरा आदमी तु सहयोगी हो सकता है। इस लए तुम अगर मेरे सामने करोगे तो तु चोट ज ी प ं च जाती है, क तीसरी दशा से भी चोट प ं चनी शु होती है, जसका तु खयाल नह है; वह ए ल है। यह बॉ डली है, जब तुम ास गहरी लेते हो; और जब तुम पूछते हो, ‘म कौन ं ?’ तब यह मटल है। और अगर तुम एक ऐसे के पास बैठे हो, जससे क तु ारे ए ल को चोट प ं च सके, तु ारे सू शरीर को चोट प ं च सके, तो एक तीसरी या ा शु हो जाती है। इस लए अगर यहां पचास लोग ान करगे तो ती ता से होगा बजाय एक के; क पचास लोग क ती आकां ाएं और पचास लोग क ती ास का संवेदन इस कमरे को ए ल एटमा यर से भर देगा; यहां नई तरह क व ुत करण चार तरफ घूमने लगगी। और वे भी तु चोट प ं चाने लगगी। पर तु ारे पास साधारणतः दो सीधे उपाय ह: शरीर का और मन का। तो ‘म कौन ं ’ गहरी चोट करे गा; ास से भी गहरी करे गा। ास से इस लए हम शु करते ह क वह शरीर क है; उसे करने म ादा क ठनाई नह है। समझे न? ‘म कौन ं ’ थोड़ा क ठन है; क मन का है। शरीर से शु करते ह। और जब शरीर पूरी तरह से वाइ ेट होने लगता है, तब तु ारा मन भी इस यो हो जाता है क पूछने लगे। फर पूछने क एक ठीक सचुएशन चा हए। हर कभी तुम ‘म कौन ं ’ पूछोगे तो नह बनेगा काम। सब सवाल के लए भी ठीक तयां चा हए, जब वे पूछे जा सकते ह। जैसे क जब तु ारा पूरा शरीर कंपने लगता है और डोलने लगता है, तब तु खुद ही सवाल उठता है क यह हो ा रहा है? यह म कर रहा ं ? यह म तो नह कर रहा ं --यह सर म नह घुमा रहा ं ; यह पैर म नह उठा रहा ं ; यह नाचना म नह कर रहा ं --ले कन यह हो रहा है। और अगर यह हो रहा है तो तु ारी जो आइड टटी है सदा क क यह शरीर म ं , वह ढीली पड़ गई। अब तु ारे सामने एक नया सवाल उठ रहा है क फर म कौन ं ? अगर यह शरीर कर रहा है और म नह कर रहा, तो अब एक नया सवाल है क कर कौन रहा है? फर तुम कौन हो अब?

तो यह ठीक सचुएशन है जब इस छेद म से तु ारा ‘म कौन ं ’ का गहरा उतर सकता है। तो उस ठीक मौके पर उसे पूछना ज री है। असल म, हर का भी ठीक व है। और ठीक व खोजना बड़ी क मती बात है। हर कभी पूछ लेने का सवाल नह है उतना बड़ा। तुम अगर अभी बैठकर पूछ लो क म कौन ं ? तो यह हवा म घूम जाएगा, इसक चोट कह नह होगी। क तु ारे भीतर जगह चा हए न जहां से यह वेश कर जाए! रं चा हए! कुंड लनी जागरण पर अत य अनुभव इन दोन क चोट से कुंड लनी जगेगी। और उसका जागरण जब होगा तो अनूठे अनुभव शु हो जाएं गे। क उस कुंड लनी के साथ तु ारे सम ज के अनुभव जुड़े ए ह-जब तुम वृ थे, तब के भी; और जब तुम मछली थे, तब के भी; और जब तुम प ी थे, तब के भी। तु ारे अनंत-अनंत यो नय के अनुभव उस पूरे या ा-पथ पर पड़े ह। तु ारी उस कुंडल श ने उन सब को आ सात कया है। इस लए ब त तरह क घटनाएं घट सकती ह। उन अनुभव के साथ तादा जुड़ सकता है। और कसी भी तरह क घटना घट सकती है। और इतने सू अनुभव तुमम जुड़े ह. क तु खयाल नह है.एक वृ खड़ा आ है बाहर। अभी हवा चली जोर से, वषा ई। वृ ने जैसा वषा को जाना, वैसा हम कभी न जान सकगे। कैसे जान सकगे? वृ ने जैसा जाना वषा को, वैसा हम कभी न जान सकगे! हम वृ के पास भी खड़े हो जाएं तो हम न जान सकगे। हम वैसा ही जानगे जैसा हम जान सकते ह। ले कन कभी तुम वृ भी रहे हो अपनी कसी जीवन-या ा म। और अगर कुंड लनी उस जगह प ं चेगी, उस अनुभू त के पास जहां वह संगृहीत है वृ क अनुभू त, तो तुम अचानक पाओगे क वषा हो रही है और तुम वह जान रहे हो जो वृ जान रहा है। तब तुम ब त घबड़ा जाओगे। तब तुम ब त घबड़ा जाओगे क यह ा हो रहा है! तब तुम समझ पाओगे क जो सागर अनुभव कर रहा है वह तुम अनुभव कर पाओगे; जो हवाएं अनुभव कर रही ह वह तुम अनुभव कर पाओगे। इस लए तु ारी ए े टक न मालूम कतनी संभावनाएं खुल जाएं गी जो तु कभी भी नह थ खयाल म। जैसे क गोगा का एक च है: एक वृ है और आकाश को छू रहा है! तारे नीचे रह गए ह और वृ बढ़ता ही चला जा रहा है! चांद नीचे पड़ गया है, सूरज नीचे पड़ गया है, छोटे छोटे रह गए ह, और वृ ऊपर चलता जा रहा है। तो कसी ने कहा क तुम पागल हो गए हो! वृ कह ऐसे होते ह? चांद-तारे नीचे पड़ गए ह और वृ ऊपर चला जा रहा है! तो गोगा ने कहा क तुमने कभी वृ को जाना ही नह , तुमने कभी वृ के भीतर नह देखा। म उसको भीतर से जानता ं । नह बढ़ पाता चांद-तार के पार, यह बात सरी है, बढ़ना तो चाहता है। नह बढ़ पाता, यह बात सरी है, अभी ा तो यही है। उसने कहा, म तो कभी सोच ही नह सकता। मजबूरी है, नह बढ़ पाता, ले कन भीतर ाण तो सब चांद-तारे पार करते चले जाते ह। तो गोगा कहता था क वृ जो है वह पृ ी क आकां ा है आकाश को छूने क ; पृ ी क डजायर है, पृ ी अपने हाथ-पैर बढ़ा रही है आकाश को छूने के लए। पर वैसा जब देख पाएं गे। मगर वह वृ . फर भी वृ जैसा देखेगा, वैसा फर भी हम नह देख पाएं गे।

पर ये सब हम रहे ह, इस लए कुछ भी होगा। और जो हम हो सकते ह, उसक भी संभावनाएं अनुभव म आनी शु हो जाएं गी। जो हम रहे ह, वह तो अनुभव म आएगा; जो हम हो सकते ह कल, उसक संभावनाएं भी आनी शु हो जाएं गी। और तब कुंड लनी के या ा-पथ पर वेश करने के बाद हमारी कहानी क कहानी नह है, सम चेतना क कहानी हो जाती है। अर वद इसी भाषा म बोलते थे, इस लए ब त साफ नह हो पाया मामला। तब फर एक क कहानी नह है वह, तब फर कांशसनेस क कहानी है। तब तुम अकेले नह हो। तुमम अनंत ह भीतर जो बीत गए, और तुमम अनंत ह आगे जो कट ह गे। एक बीज जो खुलता ही जा रहा है और मे नफे होता चला जा रहा है, और जसका कोई अंत नह दखाई पड़ता। और जब इस तरह ओर-छोर हीन तुम अपने व ार को देखोगे--पीछे अनंत और आगे अनंत--तब त और हो जाएगी; तब सब बदल जाता है। और वे सब के सब कुंड लनी पर छपे ह। ब त से रं ग खुल जाएं गे जो तुमने कभी नह देख।े असल म, इतने रं ग बाहर नह ह जतने रं ग तु ारे भीतर तु अनुभव म आ सकते ह। क वे रं ग तुमने कभी जाने ह, और-और तरह से जाने ह। जब एक चील आकाश के ऊपर मंडराती है तो रं ग को और ढं ग से देखती है; हम और ढं ग से देखते ह। अभी तुम जाओगे वृ के पास से तो तु सफ हरा रं ग दखाई पड़ता है; ले कन जब एक च कार जाता है तो उसे हजार तरह के हरे रं ग दखाई पड़ते ह। हरा रं ग एक रं ग नह है, उसम हजार शेड ह; और कोई दो शेड एक से नह ह, उनका अपना-अपना है। हमको तो सफ हरा रं ग दखाई पड़ता है। हरा रं ग, बात ख हो गई। एक मोटी धारणा है हमारी, बात ख हो गई। हरा रं ग एक रं ग नह है, हरा रं ग हजार रं ग ह--हर रं ग म हजार रं ग ह। और जतनी उसक बारीक से.जब तुम भीतर वेश करोगे तो वहां तुमने हजार बारीक अनुभव कए ह। सू अनुभव का लोक मनु जो है, इं य क से ब त कमजोर ाणी है, सारे पशु-प ी ब त श शाली ह; उनक अनुभू त और उनके अनुभव क गहराइयां-ऊंचाइयां ब त ह। कमी है क उनको सबको पकड़कर वे चेतन म वचार नह कर पाते। ले कन उनक अनुभू तयां ब त गहरी ह; उनके संवेदन ब त गहरे ह। अब जापान म एक च ड़या है--आम च ड़या--जो भूकंप के चौबीस घंटे पहले गांव छोड़ देगी। बस वह च ड़या नह दखाई पड़ेगी गांव म, समझो क चौबीस घंटे के भीतर भूकंप आया। अभी हमारे पास जो यं ह, वे भी छह घंटे के पहले नह खबर दे पाते। और फर भी ब त सु न त नह है वह खबर। ले कन उस च ड़या का मामला तो सु न त है। और इतनी आम च ड़या है क गांव भर को पता चल जाए क च ड़या आज दखाई नह पड़ रही, तो चौबीस घंटे के भीतर भूकंप पड़नेवाला है। उसका मतलब है क भूकंप से पैदा होनेवाले अ तसू वाइ ेशंस उस च ड़या को कसी न कसी तल पर अनुभव होते ह; वह गांव छोड़ देती है। अब तुम कभी अगर यह च ड़या रहे हो, तो तु ारी कुंड लनी के या ा-पथ पर तु ऐसे वाइ ेशंस होने लगगे जो तु कभी नह ए। मगर तु कभी ए ह, तु पता नह , खयाल म नह । तभी हो सकते ह।

तु ऐसे रं ग दखाई पड़ने लगगे जो तुमने कभी नह देखे ह; तु ऐसी नयां सुनाई पड़ने लगगी, जसको कबीर कहते ह नाद। कबीर कहते ह, अमृत बरस रहा है, साधुओ, नाचो! तो वे साधु पूछते ह, कहां अमृत बरस रहा है? और वह अमृत कह बाहर नह बरस रहा है। और कबीर कहते ह, सुना? नाद बज रहे ह, बड़े नगाड़े बज रहे ह। पर साधु पूछते ह, कहां बज रहे ह? और कबीर कहते ह, तु सुनाई नह पड़ रहे? अब वह कबीर को जो सुनाई पड़ रहा है, वे नाद तु सुनाई पड़गे, नयां सुनाई पड़गी। ऐसे ाद आने शु ह गे जो तु कभी क ना म नह क ये ाद हो सकते ह। तो सू अनुभू तय का बड़ा लोक कुंड लनी के साथ जुड़ा है, वह सब जग जाएगा, और सब तरफ से तुम पर हमला बोल देगा। और इस लए अ र ऐसी त म आदमी पागल मालूम पड़ने लगता है। क जब हम सब बैठे थे गंभीर तब वह हं सने लगता है, क उसे कुछ दखाई पड़ रहा है जो हम दखाई नह पड़ रहा; क जब हम सब हं स रहे थे तब वह रोने लगता है, क कुछ उसे हो रहा है जो हम नह हो रहा। श पात से ऊजा का नयं त अवतरण इन सबक सामा मनु के पास चोट करने के दो उपाय ह, और असामा प से जसको श पात कह, वह तीसरा उपाय है; वह ए ल है। उसम कोई मा म चा हए। उसम सरा सहयोगी हो, तो तु ारे भीतर ती ता बढ़ जा सकती है। और उस त म सरा कुछ करता नह , सफ उसक मौजूदगी काफ है। वह सफ एक मी डयम बन जाता है। अनंत श चार तरफ पड़ी ई है। अब जैसे क हम घर के ऊपर लोहे क सलाख लगाए ए ह क बजली गरे तो घर के नीचे चली जाए। सलाख न हो तब भी बजली गर सकती है, तब पूरे घर को तोड़ जाएगी। सलाख से पार हो जाएगी। ले कन सलाख अभी हमको खयाल म आई है, बजली ब त पहले से गरती रही है; बजली का श पात ब त दन से हो रहा है, सलाख हम अब खयाल आई है। तो अनंत श यां ह चार तरफ मनु के, उनका भी उपयोग कया जा सकता है उसके आ ा क वकास म। उन सबका उपयोग कया जा सकता है। ले कन कोई मा म हो। तुम खुद भी मा म बन सकते हो। ले कन ाथ मक प से मा म बनना खतरनाक हो सकता है। क इतना बड़ा श पात हो सकता है क तुम उसे न झेल पाओ, ब तु ारे कुछ तंतु जाम हो जाएं या टूट ही जाएं । क श का एक वो े ज है, और वह तु ारे सहने क मता के अनुकूल होना चा हए। तो सरे के मा म से तु ारे अनुकूल बनाने क सु वधा हो जाती है क अगर एक सरा उन श य का तु ारे ऊपर अवतरण कराना चाहता है, तो उस पर अवतरण हो चुका है, तभी। तब वह उतनी धारा म तुम तक प ं चा सकता है जतनी धारा म तु ज रत है। और इसके लए कुछ भी नह करना होता है; इसके लए सफ मौजूदगी ज री है बस। तब वह एक कैटे ले टक एजट क तरह काम करता है। वह कुछ करता नह है। इस लए कोई अगर कहता हो क म श पात करता ं , तो वह गलत कहता है; कोई श पात करता नह । ले कन हां, कसी क मौजूदगी म श पात हो सकता है। श जागरण और श पात म अंतर और इधर म सोचता ं , जरा इधर साधक थोड़ी गहराई ल, तो वह यहां होने लगेगा बड़े

जोर से। इसम कोई क ठनाई नह है। इसम कोई क ठनाई नह है। कसी को करने क कोई ज रत नह है, वह होने लगेगा। बस तुम अचानक पाओगे क तु ारे भीतर कुछ और तरह क श वेश कर गई है जो कह बाहर से आ गई है, जसका क तुम.तु ारे भीतर से नह आई। तु कुंड लनी का जब भी अनुभव होगा, तो तु ारे भीतर से उठता आ मालूम होगा; और जब तु श पात का अनुभव होगा, तो तु ारे बाहर से, ऊपर से आता आ मालूम होगा। यह इतना ही साफ होगा, जैसा क ऊपर से आपके पानी गरे और नीचे से पानी बढ़े--नदी म खड़े ह और पानी बढ़ता जा रहा है, और नीचे से पानी ऊपर क तरफ आता जा रहा है, और आप डूब रहे हो। तो कुंड लनी का अनुभव सदा डूबने का होगा--नीचे से कुछ बढ़ रहा है और तुम उसम डूबे जा रहे हो; कुछ तु घेरे ले रहा है। ले कन श पात का जब भी तु अनुभव होगा तो वषा का होगा। वह जो कबीर कह रहे ह क अमृत बरस रहा है, साधुओ! पर वे साधु पूछते ह, कहां बरस रहा है? वह ऊपर से गरने का होगा। और तुम उसम भीगे जा रहे हो। और ये दोन अगर एक साथ हो सक तो ग त ब त ती हो जाती है--ऊपर से वषा हो रही है और नीचे से नदी बढ़ी जा रही है। इधर नदी का पूर आता है, इधर वषा बढ़ती जा रही है--और दोन तरफ से तुम डूबे जा रहे हो और मटे जा रहे हो। यह दोन तरफ से हो सकता है, इसम कोई क ठनाई नह है। श पात नजी संपदा नह है : ओशो, श पात का भाव अ कालीन होता है या दीघकालीन होता है ? वह अं तम या ा तक ले जाता है या अनेक बार श पात क आव कता होती है ?

असल बात यह है क दीघकालीन तो तु ारे भीतर जो उठ रहा है उसका ही होगा; श पात जो है, वह सफ सहयोगी हो सकता है, मूल नह बन सकता कभी भी। मूल नह बन सकता। तु ारे भीतर जो रहा है वही मूल बनेगा। संप तो तु ारी वही है। असली संप तु ारी वही है। श पात से तु ारी संप नह बढ़ेगी, श पात से तु ारी संप के बढ़ने क मता बढ़ेगी। इस फक को ठीक से समझ लेना। श पात से तु ारी संपदा नह बढ़ेगी, ले कन तु ारी संपदा के बढ़ने क जो ग त है, तु ारी संपदा के फैलाव क जो ग त है, वह ती हो जाएगी। इस लए श पात तु ारी संपदा नह है। यानी ऐसे ही जैसे तुम दौड़ रहे हो, और म एक बं क लेकर तु ारे पीछे लग गया। बं क लेकर लगने से मेरी बं क तु ारे दौड़ने क संप नह बननेवाली, ले कन मेरी बं क क वजह से तुम तेजी से दौड़ोगे। दौड़ोगे तुम ही, श तु ारी ही लगेगी, ले कन जो नह लग रही थी तु ारे भीतर वह भी अब लग जाएगी। बं क का इसम कोई भी हाथ नह है। बं क म से इं च भर श नह खोएगी इसम। बं क क नाप-तौल पीछे करोगे तो वह उतनी क उतनी ही रहेगी। उसम से कुछ

जाने-आनेवाला नह है। ले कन तुम उस बं क के भाव म ती हो जाओगे; जहां चल रहे थे धीमे, वहां दौड़ने लगोगे। श पात से अंतया ा म ो ाहन तो श पात से तु ारी संप नह बढ़ती, ले कन तु ारी संप क बढ़ने क मता एकदम ग तमान हो जाती है। क एक दफा तु .एक दफा तु अनुभव हो जाए, बजली चमक जाए एक. बजली चमकने से तु कोई रा ा का शत नह हो जाता; हाथ म दीया नह बन जाता है बजली का चमकना, सफ एक झलक। ले कन झलक बड़ी क मत क हो जाती है--तु ारे पैर मजबूत हो जाते ह, इ ा बल हो जाती है, प ं चने क कामना तय हो जाती है, रा ा दखाई पड़ जाता है--रा ा है, तुम यूं ही अंधेरे म नह भटक रहे हो। यह सब साफ एक बजली क झलक म तु रा ा दख जाता है, र तु मं दर दख जाता है तु ारी मं जल का। फर बजली खो गई, फर घु अंधेरा हो गया, ले कन अब तुम सरे आदमी हो। वह खड़े हो जहां थे, ले कन दौड़ तु ारी बढ़ जाएगी। मं जल पास है, रा ा साफ है--न भी दखाई पड़ता हो अंधेरे म, तो भी है। अब तुम आ हो। तु ारा आ ासन बढ़ जाता है। और तु ारे आ ासन का बढ़ना तु ारे संक को बढ़ा देता है। तो इनडायरे प रणाम ह। और इस लए बार-बार ज रत पड़ती है, एक बार से हल नह होता। बजली बारा चमक जाए तो और फायदा होगा, तबारा चमक जाए तो और फायदा होगा। पहली बार कुछ चूक गया होगा, न दखाई पड़ा होगा, सरी बार दख जाए, तीसरी बार दख जाए! और इतना तो है क आ ासन गहरा होता जाएगा। तो श पात से अं तम प रणाम हल नह होता, अं तम प रणाम तक तु प ं चना है। और श पात के बना भी प ं च सकोगे। थोड़ी देर-अबेर होगी, इससे ादा कुछ होना नह है। थोड़ी देर-अबेर होगी, अंधेरे म आ ासन कम होगा, चलने म ादा ह त जुटानी पड़ेगी, ादा बल लगाना पड़ेगा--भय पकड़ेगा, संक - वक पकड़गे; पता नह , रा ा है या नह --यह सब होगा, ले कन फर भी प ं च जाओगे। ले कन श पात सहयोगी बन सकता है। सामू हक श पात भी संभव तो इधर म चाहता ही ं , तु ारी जरा ग त बढ़े, तो एकाध-दो पर ा, इक ा, सामू हक! एक-दो पर ा करने का काम करना, इक ा दस हजार लोग को खड़ा करके श पात हो, इसम कोई क ठनाई नह है। क जतना एक पर होने म व लगता है, उतना ही दस हजार पर। उससे कोई फक नह पड़ता। श पात ायी नह है : ओशो, य द संबंध न रहे मी डयम से तो इसका भाव धीरे -धीरे घटते-घटते मट भी जाता होगा?

कम तो होगा ही। सब भाव

ीण होनेवाले होते ह। असल म, भाव का मतलब ही यह

है जो बाहर से आया है, वह ीण हो जाएगा। जो भीतर से आया, वह ीण नह होगा; वह तु ारा अपना है। भाव तो सब घटनेवाले ह, वे घट जाते ह; ले कन जो तु ारे भीतर से आता है वह नह घटता। उस भाव म भी जो आ जाता है वह भी नह घटता; वह तो बना रह जाता है। तु ारी मूल संप नह घटती, भाव तो घट जाता है। वकास- म म पीछे लौटना असंभव : ओशो, ा सर के असर से, जो थोड़ा-ब त ऊपर उठा हो, वह नीचे भी गर सकता है ?

नह , नीचे क तरफ जाने का उपाय नह है। असल म, इस बात को भी ठीक से समझ लेना चा हए। यह बड़े मजे क बात है, यह ब त मजे क बात है क नीचे क तरफ जाने का उपाय नह है। तुम जहां तक गई हो, तु उससे ऊंचा ले जाने म तो सहायता प ं चाई जा सकती है; तु वह तक ठहराने म भी बाधा डाली जा सकती है; तु उससे नीचे नह ले जाया जा सकता। उसका कारण है क उसके ऊंचे जाने म तुम बदल गई हो त ाल। का

(

न-मु ण

नह ।)

न, न, न। कोई सवाल ही नह उठता है। एक इं च भी कोई म ऊपर गया, तो पीछे नह लौट सकता; पीछे लौटना असंभव है। यह मामला ऐसा ही है क कसी ब े को हम पहली क ा से सरी म वेश करवा सकते ह। एक ूटर रख सकते ह जो उसको पहली म पढ़ाने म सहायता दे दे और सरी म प ं चा दे। ले कन ऐसा ूटर खोजना ब त मु ल है क उसने पहली म जो पढ़ा है, उसको भुला दे-- क भई अब फर इसको हमको पहली भुला देना है। और एक ब ा सरी ास म जाकर नासमझ लड़क क सोहबत करे , तो इतना ही हो सकता है क सरी म फेल होता रहे। बाक पहली म उतार दगे नासमझ लड़के, ऐसा नह है उपाय। मेरा मतलब समझ न तुम? यह हो सकता है क वह सरी ही म क जाए, और जनम भर सरी म का रहे, और तीसरी म न जा सके। ले कन सरी से नीचे उतारने का कोई उपाय नह है। वह वहां अटक जाएगा। तो आ ा क जीवन म कोई पीछे लौटना नह है; सदा आगे जाना है या क जाना है। बस क जाना ही पीछे लौट जाने का मतलब रखता है। तो रोक तो सकते ह साथी, हटा नह सकते पीछे। हटाने का कोई उपाय नह है। श पात व साद म फक है : ओशो, ाश

पात और ेस म फक है ?

ब त फक है; ब त फक है। श

पात और साद म ब त फक है। श

पात जो है वह

एक टे ीक है, और आयो जत है। उसक आयोजना करनी पड़ेगी। हर कभी हर कह नह हो जाएगा। समझे न? साधक इस त म होना चा हए क उस पर हो सके, मी डयम इस त म होना चा हए क वह मा म बन सके। जब ये दोन बात व त ह , तालमेल खा जाएं , एक ण के ब पर दोन का मेल हो जाए, तो हो जाएगा। यह टे ीक क बात है। ेस जो है वह अनका फाल है; उसके लए कभी बुलावा नह है, उसके लए कभी कोई इं तजाम नह है। वह कभी होती है। यानी फक उतना ही है जैसा क हम बटन दबाकर बजली जलाते ह और आकाश क बजली चमकती है, वैसा ही फक है। समझे न? यह टे ीक है। यह वही बजली है जो आकाश म चमकती है, ले कन यह टे ीक से बंधी ई है। हम बटन दबाते ह, जलती है; बुझाते ह, बुझती है। आकाश क बजली हमारे हाथ म नह है। तो ेस जो है वह आकाश क बजली है, कभी कसी ण म चमकती है। और तुम भी अगर उस मौके पर उस हालत म ए, तो घटना घट जाती है। ले कन वह श पात नह है फर। है वही घटना, ले कन वह ेस है। उसम मी डयम भी नह होता। उसम कोई मी डएटर भी नह है बीच म; वह सीधी तुम पर होती है। और आक क है; और सदा सडन है; आयोजना नह क जा सकती। श पात तो आयो जत कया जा सकता है क कल पांच बजे आ जाओ, इतनी तैयारी करके आना, इतनी व ा करके आ जाना, हो जाएगा। ले कन ेस के लए पांच बजे आकर बैठने से कुछ मतलब नह है। हो जाए हो जाए, न हो जाए न हो जाए; उसे कोई हम अपने हाथ म नह ले सकते। घटना वही है, ले कन इतना फक है। इतना फक है। अहं शू त म ही श पात संभव : ओशो, आपने कहा था क श

पात ईगोलेस

त म होता है तो आयोजना कैसे हो सकती है ?

ईगोलेस त म आयोजना हो सकती है। ईगो का आयोजना से कोई संबंध नह है, उससे कोई संबंध नह है। : ओशो, ईगोलेस आयोजना हो सकती है ?

हां, बलकुल हो सकती है, उससे कोई संबंध ही नह है। ईगो तो बात ही और है। ईगो तो बात ही और है। जैसे हमने तय कया क पांच बजे इस-इस तैयारी म बैठगे हम सब। इसम साधक क तरफ ईगोलेस होने का सवाल नह है, इसम सफ मी डयम जो बननेवाला है उसके ईगोलेस होने का सवाल है। और ईगोलेस मामला ऐसा नह है क तुम कभी हो सकते हो और कभी न हो जाओ। हो गए तो हो गए, नह ए तो नह ए--ऐसा मामला

नह है न! अगर म ईगोलेस ं तो ं , और नह ं तो नह ं । ऐसा नह है क कल सुबह पांच बजे ईगोलेस हो जाऊंगा। मेरी बात समझ रहे हो न तुम? कैसे हो जाऊंगा? कोई उपाय नह है। अगर म अभी ं तो पांच बजे भी र ं गा--चाहे कोई आयोजन क ं और चाहे न क ं ; चाहे तुम पांच बजे आओ तो और न आओ तो; म जागूं तो और सोऊं तो--अगर ं तो ं , नह ं तो नह ं । अहं शू ता मक नह होती : ओशो, ईगो क जो जनरल भावना है न, उससे ऐसा लगता है क ईगोइ लगता है क ईगो है , सरे ण म लगता है क ईगोलेस है ।

है क ईगोलेस है । एक



हां-हां, ऐसा ही चल रहा है। ऐसा ही चल रहा है। असल म, हमारा तो सारा जो सोचनावचारना है, वह ड ीज का होता है। वह ऐसा होता है: अ ानबे ड ी पर बुखार है तो हम कहते ह, बलकुल ठीक है यह आदमी; और न ानबे ड ी पर बुखार होता है तो हम कहते ह, बुखार है। अ ानबे ड ी भी बुखार है, ले कन वह नॉमल बुखार है। न ानबे ड ी म वह एबनॉमल हो जाता है। फर अ ानबे हो जाता है तो हम कहते ह, बलकुल ठीक है, नॉमल हो गया। अभी भी बुखार है, मतलब उतना बुखार है जतना सबको है। सबसे जरा इधर-उधर होता है तो गड़बड़ हो जाता है। वैसा ही हमारा ईगो को मामला है। वह हमारा बुखार है, उतनी ही ड ी म जतना हम सबको है, तब तक हम कहते ह: आदमी बलकुल वन है, अ ा आदमी है। जरा हमसे ड ी उसक न ानबे ई और हमने कहा क ब त ईगोइ आदमी मालूम होता है। जरा स ानबे आ क हमने कहा क बलकुल महा ा, वन हो गया है। इसके पैर छू लो। बाक ईगो और नो-ईगो बलकुल ही अलग बात ह; उनका कोई ड ी से संबंध नह है। बुखार और बुखार का न होना, यह अ ानबे और न ानबे ड ी का मामला नह है। सफ मरे ए आदमी को हम कह सकते ह क इसको बुखार नह है। क जब तक भी गम है, बुखार है ही; नॉमल और एबनॉमल का फक है। इस लए तकलीफ हम होती है। इस लए तकलीफ हम होती है। और फर ऐसा है न क अगर कसी आदमी क ईगो हमारी ईगो को चोट प ं चाती है तो वह ईगोइ है, अगर कसी क ईगो हमारी ईगो को रस प ं चाती है तो वह आदमी ईगोलेस है। हम नाप कैसे? पता कैसे चले? एक आदमी मेरे पास आए और वह अकड़ मेरे ऊपर दखलाए, हम कहते ह, ईगोइ है। आए और मेरे पैर छु ए, हम कहते ह, ब त वन है। और ा, उपाय ा है जांच का? हमारी ईगो जांच का उपाय है; उससे हम जांचते ह क यह आदमी हमारी ईगो को गड़बड़ तो नह कर रहा है? गड़बड़ कर रहा है तो ईगोइ है। और अगर फुसला रहा है और कह रहा है, आप ब त बड़े महा ा ह, तो यह आदमी वन है, इसम अहं कार बलकुल भी नह है। मगर यह सब अहं कार है या नह , यह हमारा अहं कार ही इन सबका तौल है। इनके पीछे जो मेजरमट है हमारा, वह हमारा अहं कार है।

इस लए जो नॉन-ईगो क त है उसको तो हम पहचान ही नह पाते। क हम उसे कैसे पहचान? हम ड ी तक पहचान पाते ह क भई कतनी ड ी है, इतना कहो। वे कहते ह क है ही नह , तब हम ब त क ठनाई हो जाती है। मगर वह जो घटना है श पात क , वह मी डयम तो ईगोलेस चा हए ही। ईगोलेस कहना ठीक नह है, नो-ईगोवाला मी डयम चा हए। अहं शू पर साद क सतत वषा और ऐसे आदमी पर चौबीस घंटे ेस बरसती रहती है, यह खयाल म रख लेना। वह तो तु ारे लए आयोजन कर देगा, ले कन उस पर तो चौबीस घंटा अमृत बरस रहा है। इसी लए तु ारे लए भी आयोजन कर देगा क तुम जरा एक ण के लए ार खोलकर खड़े रह जाना। उस पर तो बरसता ही है, शायद दो-चार बूंद तु ारे ार के भीतर भी पड़ जाएं । : ओशो, यह जो डायरे जाता है ?

ेस मलता है , इसका भाव



ायी होता है ? और

ा उपल

तक ले

डायरे ेस तो मलता ही उपल पर है न! इसके पहले तो मलता नह ! इसके पहले नह मलता। इसके पहले नह मलता। वह तो जब तु ारा अहं कार जाएगा तभी ेस उतर पाएगी। अहं कार ही बाधा है। : तो उपल



त कौन सी है ?

जसके आगे फर उपल

करने को कुछ शेष न रह जाए।

: ेस अं तम है ?

हां, अं तम चीज है। कुंड लनी है मनोगत ऊजा : ओशो, अ

ा यह कुंड लनी साधना जो है , वह साइ कक है क

चुअल है ?

तुम यह जानते हो क खाना शारी रक है, ले कन न खाने पर आ ा का ब त ज ी वलोप हो जाएगा। य प खाना शरीर को जाता है, ले कन शरीर एक त म हो तो

आ ा उसम बनी रहती है। तो कुंड लनी जो है वह मान सक है। ले कन कुंड लनी एक त म हो तो आ ा तक ग त होती है, कुंड लनी एक सरी त म हो तो आ ा तक ग त नह होती। तो साइ कक है, ले कन े प बनती है चुअल के लए। चुअल नह है खुद। अगर कोई कहता हो क कुंड लनी चुअल है, तो गलत कहता है। कोई अगर कहे क खाना चुअल है, तो गलत कहता है। खाना तो फ जकल ही है। ले कन फर भी आधार बनता है आ ा क के लए। ास भी भौ तक है और वचार भी भौ तक है; सब भौ तक है। इनका जो सू तम प है वह साइ कक हम उसे कह रहे ह। वह भूत का सू तम प है। ले कन ये सब आधार बनते ह उस अभौ तक म छलांग लगाने के लए। ये, जसको कहना चा हए, जं पग बो स बनते ह। जैसे कोई आदमी नदी म छलांग लगा रहा है, तो कनारे पर एक बोड पर खड़े होकर छलांग लगा रहा है। बोड नदी नह है। और कोई तक कर सकता है क बोड पर खड़े हो? जब बोड तो नदी है ही नह , और तु नदी म छलांग लगानी है, तो बोड पर कस लए खड़े हो? नदी म छलांग लगानी है तो नदी म खड़े हो जाओ! ले कन नदी म कह कोई खड़ा आ है? खड़ा तो बोड पर ही होना पड़ता है, छलांग नदी म लगती है। समझे न? और बोड बलकुल अलग चीज है, वह नदी नह है। तो तु जो छलांग लगानी है वह शरीर से लगानी है, मन से लगानी है। लगानी है जसम वह आ ा है। वह तो जब लग जाएगी जब मलेगी। अभी तो तुम जहां खड़े हो वह से तैयारी करनी पड़ेगी। तो शरीर से और मन से ही कूदना पड़ेगा। और इस लए यह काम करना पड़ेगा। हां, जब छलांग लग जाएगी, तब तुम जहां प ं चोगे, वह होगा चुअल, वह होगा आ ा क। : ओशो, आपने दो कार क व ध बताई ह। पहले आप जस साधना क बात करते थे उसम आप साधक को शांत, श थल, मौन, सजग और सा ी होने के लए कहते थे। अब आप ती ास और ‘म कौन ं ’ पूछने के अंतगत साधक को पूरी श लगाकर य करने के लए कहते ह। पहली साधना करनेवाला साधक जब सरे ढं ग के योग म जाता है तो थोड़ी दे र के बाद उससे यास करना छूट जाता है , कं ोल छूट जाता है । तो अ ी व ा वह थी क यह है ?



े और बुरे का सवाल नह है यहां। :

ओशो, मेरा मतलब कं ोल छूट जाता है । तो अ





ा वह थी क यह है ?

म समझ गया, म समझ गया। अ े-बुरे का सवाल नह है। तु जससे ादा शां त और ग त मलती हो, उसक फकर करो; क सबके लए अलग-अलग होगा। सबके

लए अलग-अलग होगा। कुछ लोग ह जो दौड़कर गर जाएं तो ही व ाम कर सकते ह। कुछ लोग ह जो क अभी व ाम कर सकते ह। ले कन ब त कम लोग ह। ब त कम लोग ह। एकदम सीधा मौन म जाना, क ठन है मामला; थोड़े से लोग के लए संभव है। अ धक लोग के लए तो पहले दौड़ ज री है, तनाव ज री है। मतलब एक ही है अंत म, योजन एक ही है। श साधना से तनाव : ओशो, आपने यह भी कहा था क यह अ तय से प रवतन क व ध है । तो तनाव क चरम सीमा म ले जाता ं ता क व ाम क चरम सीमा उपल हो सके। तो ा कुंड लनी साधना तनाव क साधना है ?

बलकुल तनाव क साधना है। बलकुल तनाव क साधना है। असल म, श क कोई भी साधना तनाव क ही साधना होगी। श का मतलब ही तनाव है। जहां तनाव है वह श पैदा होती है। जैसे हमने एटम से इतनी बड़ी श पैदा कर ली, क हमने सू तम अणु को भी तनाव म डाल दया; दो ह े तोड़ दए और दोन को टशन म डाल दया। तो श क तो सम साधना जो है वह तनाव क है। अगर ठीक से समझो तो तनाव ही श है; टशन जो है वही श है। : ओशो, साधना क दो प तयां आप कहते ह: पा ज टव और नगे टव। तो कुंड लनी साधना नगे टव है क पा ज टव?

पा ज टव है। बलकुल पा ज टव है। : ब त तनाव

होते ह तो ज ी शांत हो जाता है न!

हां, ज ी। : तो म जो बोलती थी न आपको क बना

ास-

ास के भी शांत हो जाती ं ।

नह , तू तो डरती है। तू अपनी बात न बता। ये शांत होने से डरती है क कह शांत हो गए तो फर ा होगा! यह डर है, इस लए ये ऐसी तरक ब नकालती है जसम जरा कम ही

शां त रहे,

ादा शां त न हो जाए। न, तेरा मामला अलग है।

: ओशो, बु ने च

और कुंड लनी क बात

नह क ?

ये पूछते ह क बु ने च और कुंड लनी क बात नह क ? असल म, बु ने जतनी बात क ह, वे सब रकाडड नह ह। समझ रहे हो न? बड़ा ा म जो है वह यह है। और बु ने जो भी कहा है, उसम से ब त सा जानकर रकाडड नह है। और बु ने जो कहा है, उनके मरने के पांच सौ वष बाद रकाड आ, उस व तो रकाड नह आ। पांच सौ वष तक तो जन भ ुओ ं के पास वह ान था, उ ने उसे रकाड करने से इनकार कया। पांच सौ वष बाद एक ऐसी घड़ी आ गई क वे भ ु लोप होने लगे जनको बात पता थ । और तब एक बड़ा संघ बुलाया गया और उसने यह तय कया क अब तो यह मु ल है, अगर ये दस-पांच भ ु हमारे और खो गए, तो वह ान क सारी संपदा खो जाएगी। इस लए उसे रकाड कर लेना चा हए। जब तक वह रण रखा जा सकता था तब तक ज पूवक उसे नह लखा गया। ऐसा जीसस के साथ भी आ, महावीर के साथ भी आ। और ज री था। उसके कारण ह ब त। क ये लोग बोल रहे थे सफ। इस बोलने म ब त सी बात थ , जो ब त तल के साधक के लए कही गई थ । और पहले तल के साधक के लए वे सारी बात ज री प से सहयोगी नह ह, नुकसान भी प ं चा द। अ र ऐसा होता है क जस सीढ़ी पर हम खड़े नह ह, उसक बातचीत हम उस सीढ़ी पर भी ठीक से खड़ा नह रहने देती जहां हम खड़े होना है, जहां हम खड़े ह। आगे क सी ढ़यां अ र हम आगे क सी ढ़य पर जाने का खयाल दे देती ह, और हम पहली सीढ़ी पर खड़े ही नह ह। और भी क ठनाई यह है क पहली सीढ़ी पर ब त सी ऐसी बात ह जो सरी सीढ़ी पर जाकर गलत हो जाती ह। अगर आपको सरी सीढ़ी क बात पहले ही पता चल जाए तो आपको पहली सीढ़ी पर ही वे गलत मालूम होने लगगी। तब आप पहली सीढ़ी से कभी पार न हो सकगे। पहली सीढ़ी पर तो उनका सही होना ज री है, तभी आप पहली सीढ़ी पार कर सकगे। हम छोटे ब े को पढ़ाते ह: ग गणेश का। अब इसका कोई मतलब नह है। ग गधे का भी होता है। और गधा और गणेश म कोई संबंध नह है; कोई भाईचारा नह है; कोई जोड़ नह है, कुछ भी नह है। ग का कोई संबंध ही नह है कसी से। ले कन यह पहली ास के लड़के को बताना खतरनाक होगा। जब वह पढ़ रहा है ग गणेश का, तब उससे उसका बाप कहे, नालायक, ग से गणेश का ा संबंध? कोई संबंध नह है। ग तो और हजार चीज का भी है, गणेश से ा लेना-देना है? तो यह लड़का ग को ही नह पकड़ पाएगा। अभी इसको ग गणेश का, इतना ही पकड़ लेना उ चत है। अभी और हजार चीज भी ग म स लत ह, यह ान रहने ही दो। अभी तो इसको गणेश भी ग म आ जाए तो काफ है। कल और हजार चीज भी आ जाएं गी। जब हजार आएं गी तब यह खुद भी जान लेगा क

ठीक है, ग क गणेश से कोई अ नवायता नह थी; वह भी एक संबंध था, और भी ब त संबंध ह। और फर जब यह ग पढ़ेगा हमेशा तो ग गणेश का, ऐसा नह पढ़ेगा; वह गणेश छूट जाएं गे, ग रह जाएगा। गु साधन क गोपनीयता तो हजार बात ह, हजार तल क ह। और फर कुछ बात तो बलकुल नजी और सी े ट ह। जैसे म भी जस ान क बात कर रहा ं , यह बलकुल ऐसी बात है जो सामू हक क जा सकती है। ब त बात ह जो म समूह म नह कर सकता ं , नह क ं गा। वह तो तभी क ं गा जब मुझे समूह म से कुछ लोग मल जाएं गे जनको क वे बात कही जा सकती ह। तो बु ने तो कहा है ब त, वह सब रकाडड नह है। म भी जो क ं गा वह सब रकाडड नह हो सकता। वह सब रकाडड नह हो सकता, क म वही क ं गा जो रकाड हो सकता है। सामने तो वही क ं गा। जो रकाड नह हो सकता, वह सामने नह क ं गा; उसे तो ृ त म ही रखना पड़ेगा। : ओशो, तो ा कुंड लनी और च चा हए?

क बात को रकाड नह करना चा हए?

ाउ

गु

रखना

नह , नह , नह । न, इसम और ब त सी बात ह न! जो मने कहा है, इसम तो कोई क ठनाई नह है। इसम कोई क ठनाई नह है। पर इसम और ब त बात ह। ले कन क ठनाई यह है न क बु और आज म प ीस सौ साल का फक पड़ा है; मनु क चेतना म ब त फक पड़ा है। जस चीज को बु समझते थे क न बताया जाए; म समझता ं , बताया जा सकता है। प ीस सौ साल म ब त बु नयादी फक पड़ गए ह। बु ने जतनी चीज को कहा क नह बताया जाए, उनको म कहता ं क उनम से ब त कुछ बताया जा सकता है आज। और जो म कहता ं क नह बताया जाए, प ीस सौ साल बाद बताया जा सकेगा। बताया जा सकना चा हए, वकास अगर होता है तो। समझ रहे ह न मेरी बात को? तो बु भी लौट आएं तो ब त सी बात.बु तो ब त ही समझ का काम कए थे। उ ने ारह तो तय कर रखे थे, कोई पूछ न सकेगा। क पूछो तो उनको कुछ न कुछ तो उ र देना पड़े। गलत द उ र तो उ चत नह मालूम होता, ठीक उ र द तो देना नह चा हए। तो ारह उ ने अ ा करके तय कर रखे थे। वह जा हर घोषणा थी सारे गांव म क कोई बु से ये ारह म से न पूछे; क बु को अड़चन म नह डालना है; क वे इनका उ र नह दगे। न देने का कारण है: अगर द तो नुकसान होगा और न द तो उ ऐसा लगता है क म स को छपाता ं । यह पूछना ही मत। इस लए गांव-गांव म भ ु ढढोरा पीट देते थे क बु आते ह, ये ारह मत पूछना। उससे उनको ब त परे शानी होती है। तो वे अ ा मान लए गए, वे नह पूछे जाते थे। वे नह पूछे जाते थे।

कभी कोई वरोधी आ जाता और पूछ लेता था, तो बु उससे कहते क को, कुछ दन ठहरो। कुछ दन ठहरो, कुछ दन साधना करो; जब इस यो हो जाओगे, म उ र ं गा। ले कन कभी उनके उ र दए नह । इस लए उन पर बड़ा आरोप तो यही था--जैन का, ह ओं का यही आरोप था क उनको पता नह है। उन पर बड़ा आरोप यही था क ये ारह के उ र नह देते, हमारे शा म तो हम सब उ र देते ह। इनको मालूम होता है पता नह है। ले कन उनके शा म जो लखा आ है, उतना उ र तो वे भी दे सकते थे! असल म, असली उ र शा म भी नह लखा आ है। और असली दया नह जा सकता था। तो इस लए, इस लए नह यह सवाल है, यह सवाल नह है क

ा हो जाए।

या ा:

से अ

:8 क ओर

: ओशो, आपने नारगोल श वर म कहा है क कुंड लनी साधना शरीर क तैयारी है । कृपया इसका अथ समझाएं ।

पहली बात तो यह: शरीर और आ ा ब त गहरे म दो नह ह; उनका भेद भी ब त ऊपर है। और जस दन दखाई पड़ता है पूरा स , उस दन ऐसा दखाई नह पड़ता क शरीर और आ ा अलग-अलग ह, उस दन ऐसा ही दखाई पड़ता है क शरीर आ ा का वह ह ा है जो इं य क पकड़ म आ जाता है और आ ा शरीर का वह ह ा है जो इं य क पकड़ के बाहर रह जाता है। शरीर और आ ा--एक ही स के दो छोर शरीर का ही अ छोर आ ा है और आ ा का ही छोर शरीर है, यह तो ब त आ खरी अनुभव म ात होगा। अब यह बड़े मजे क बात है: साधारणतः हम सब यही मानकर चलते ह क शरीर और आ ा एक ही ह। ले कन यह ां त है; हम आ ा का कोई पता ही नह है; हम शरीर को ही आ ा मानकर चलते ह। ले कन इस ां त के पीछे भी वही स काम कर रहा है। इस ां त के पीछे भी कह अ हमारे ाण के कोने म वही ती त है क एक है। उस एक क ती त ने दो तरह क भूल पैदा क ह। एक अ ा वादी है, वह कहता है: शरीर है ही नह , आ ा ही है। एक भौ तकवादी है, चावाक है, एपीकुरस है, वह कहता है क शरीर ही है, आ ा है ही नह । यह उसी गहरी ती त क ां तयां ह; और ेक साधारणजन भी, जसको हम अ ानी कहते ह, वह भी यह एहसास करता है क शरीर ही म ं । ले कन जैसे ही भीतर क या ा शु होगी, पहले तो यह टूटे गी बात और पता चलेगा क शरीर अलग है और आ ा अलग है। क जैसे ही पता चलेगा आ ा है, वैसे ही पता चलेगा क शरीर अलग है और आ ा अलग है। ले कन यह म क बात है। और गहरे जब उतरोगे, और गहरे जब उतरोगे, और चरम अनुभू त जब होगी, तब पता चलेगा क कहां! सरा तो कोई है नह ! फर आ ा और शरीर दो नह ह; फर एक ही है; उसके ही दो प ह। जैसे म एक ं और मेरा बायां हाथ है और दायां हाथ है। बाहर से जो देखने आएगा, अगर वह कहे क बायां और दायां हाथ एक ही ह, तो गलत कहता है; क बायां बलकुल अलग है, दायां बलकुल अलग है। जब मेरे करीब आकर समझेगा तो पाएगा: बायां अलग

है, दायां अलग है; दायां खता है, बायां नह खता; दायां कट जाए तो बायां बच जाता है; एक तो नह ह। ले कन मेरे भीतर और वेश करे तो पाएगा क म तो एक ही ं जसका बायां है और जसका दायां है। और जब बायां टूटता है तब भी म ही खता ं , और जब दायां टूटता है तब भी म ही खता ं ; और जब बायां उठता है तब म ही उठता ं , और जब दायां उठता है तब म ही उठता ं । तो ब त अं तम अनुभू त म तो शरीर और आ ा दो नह ह, वे एक ही स के दो पहलू ह, दो हाथ ह। इसका यह मतलब है इस लए मने यह बात कही क इससे यह तु समझ म आ सके क तब या ा कह से भी शु हो सकती है। अगर कोई शरीर से या ा शु करे , और गहरा, और गहरा, और गहरा उतरता चला जाए, तो आ ा पर प ं च जाएगा। अगर कोई मेरा बायां हाथ पकड़ना शु करे , और पकड़ता जाए, पकड़ता जाए, और बढ़ता जाए, बढ़ता जाए, तो आज नह कल मेरा दायां हाथ उसक पकड़ म आ जाएगा। या कोई चाहे तो सरी तरफ से भी या ा शु कर सकता है क सीधी आ ा से या ा शु करे , तो शरीर पकड़ म आ जाएगा। ले कन आ ा से या ा शु करनी ब त क ठन है। क ठन इस लए है क उसका हम पता ही नह है। हम खड़े ह शरीर पर, तो हमारी या ा तो शरीर से शु होगी। ऐसी व धयां भी ह जनम या ा सीधी आ ा से ही शु होती है। ले कन साधारणतः वैसी व धयां ब त थोड़े से लोग के काम क ह। कभी लाख म एक आदमी मलेगा जो उस या ा को कर सके। अ धकतम लोग को तो या ा शरीर से ही शु करनी पड़ेगी, क वहां हम खड़े ह। जहां हम खड़े ह, वह से या ा शु होगी। और शरीर क जो या ा है उसक तैयारी कुंड लनी है। शरीर के भीतर म जो गहरे से गहरे अनुभव ह, उन गहरे अनुभव का जो मूल क है वह कुंड लनी है। असल म, जैसा हम शरीर को जानते ह और जैसा शरीर-शा ी जानता है, शरीर उतना ही नह है, शरीर उससे ब त ादा है। यह पंखा चल रहा है। इस पंखे को हम उतार ल और तोड़कर सारा जांच कर डाल, तो भी बजली हम कह भी नह मलेगी। और यह हो सकता है क एक ब त बु मान आदमी भी यह कहे क पंखे म बजली जैसी कोई भी चीज नह है। एक-एक अंग को काट डाले, कभी बजली नह मले। फर भी पंखा बजली से चल रहा था। और पंखा उसी ण बंद हो जाएगा जस ण बजली क धारा बंद होगी। तो शरीर-शा ी ने एक तरह शरीर का अ यन कया है, काट-काट कर, तो उसे कुंड लनी कह भी नह मलती। मलेगी भी नह । फर भी कुंड लनी क ही व ुत श से सारा शरीर चल रहा है। यह जो कुंड लनी क व ुत श है, इसको बाहर से शरीर के व ेषण से कभी नह जाना जा सकता। क व ेषण म वह त ाल छ - भ होकर वदा हो जाती है, वलीन हो जाती है। उसे तो जानना हो तो भीतरी अनुभव से जाना जा सकता है। यानी शरीर को भी जानने के दो ढं ग ह। बाहर से शरीर को जानना, जैसा क एक फ जयोला ज , शरीर-शा ी, डा र टे बल पर आदमी के शरीर को रखकर काट रहा है, पीट रहा है, जांच रहा है। और एक शरीर को भीतर से जानना है। जो शरीर के भीतर बैठा है, वह अपने शरीर को भीतर से जान रहा है। तो यं के शरीर को जब कोई भीतर से जानना शु करता है.और यह खयाल रखना

क हम अपने शरीर को भी बाहर से ही जानते ह--अपने शरीर को भी! अगर मुझे मेरे बाएं हाथ का पता है, तो वह भी मेरी आंख जो मेरे हाथ को देख रही ह उसका पता है। यह बाएं हाथ का जो अनुभव है, यह शरीर-शा ी का अनुभव है। ले कन आंख बंद करके इस बाएं हाथ क आंत रक जो ती त है, भीतर से जो इसका अनुभव है, वह मेरा अनुभव है। तो अपने ही शरीर को भीतर से जानने अगर कोई जाएगा, तो ब त शी वह उस कुंड पर प ं च जाएगा जहां से शरीर क सारी श यां उठ रही ह। उस कुंड म सोई ई श का नाम ही कुंड लनी है। और तब वह अनुभव करे गा क सब कुछ वह से फैल रहा है पूरे शरीर म। जैसे क एक दीया जल रहा हो, पूरे कमरे म काश हो, ले कन हम खोजबीन करते, करते, करते दीये पर प ं च जाएं और पाएं क इस ो त से ही सारी काश क करण फैल रही ह। वे र तक फैल गई ह, ले कन वे जा रही ह यहां से। जीवन-ऊजा का कुंड तो कुंड से मतलब है शरीर के भीतर उस ब क खोज, जहां से जीवन क ऊजा पूरे शरीर म फैल रही है। न त ही, उसका कोई सटर होगा। असल म, ऐसी कोई ऊजा नह होती जसका कोई क न हो। चाहे दस करोड़ मील र हो सूरज, ले कन करण है हमारे हाथ म तो हम कह सकते ह क कह क होगा, जहां से वह या ा कर रही है और जहां से वह चल रही है। असल म, कोई भी श क -शू नह हो सकती। श होगी तो क होगा। ऐसे ही, जैसे प र ध होगी तो क होगा; कोई प र ध बना क के नह हो सकती। तो तु ारा शरीर एक श का पुंज है, इसे तो स करने क कोई ज रत नह । वह श का पुंज है--उठ रहा है, बैठ रहा है, चल रहा है, सो रहा है। फर ऐसा भी नह है क उसक श हमेशा एक सी ही काम करती हो! कभी ादा भी श उसम होती है, कभी कम भी होती है। जब तुम ोध म होते हो तो इतना बड़ा प र उठाकर फक देते हो, जो तुम ोध म नह हो तो हला भी न सकोगे। जब तुम भय म होते हो तो इतनी तेजी से दौड़ लेते हो, जतना क तुम कसी ओलं पक के खेल म भी दौड़ रहे हो तो भी नह दौड़ सकोगे। तो ऐसा भी नह है क श तु ारे भीतर एक सी है; उसम तारत ताएं ह--वह कभी ादा हो रही है, कभी कम हो रही है। इससे यह भी साफ होता है क तु ारे पास कुछ रजवायर भी है, जसम से कभी श आ जाती है, कभी नह आती; ज रत होती है तो आ जाती है, नह ज रत होती तो छपी रहती है। तु ारे पास एक क है, जससे श तु मलती है--सामा तया भी, असामा तया भी; रोजमरा के काम के लए भी तु श मलती है और असाधारण काम के लए भी श मलती है। फर भी उस क को कभी तुम र नह कर पाते हो। वह क कभी र नह होता। और कभी तुम उस क का पूरा उपयोग भी नह कर पाते हो। यानी इस संबंध म ज ने खोज क है उनका खयाल है क पं ह तशत से ादा अपनी ऊजा का असाधारण से असाधारण आदमी भी उपयोग नह करता है। यानी हमारा महापु ष भी जसको हम कहते ह, वह भी पं ह तशत से ऊपर नह जाता है। और जसको हम साधारणजन कहते ह वह तो दो-ढाई तशत से काम चलाता है। उसक अ ानबे तशत श य ही पड़ी-पड़ी वदा हो जाती है। और इस लए बड़े आदमी म और छोटे आदमी म कोई पोट शयल भेद नह होता; बीज श का कोई भेद नह होता;

उपयोग का ही भेद होता है। महान से महान तभा का भी जस श का उपयोग कर रहा है, वह साधारण से साधारण बु के आदमी के पास भी है--बस अनुपयोग म है; उसे कभी पुकारा नह गया; उसे कभी चुनौती नह दी गई; उसे कभी जगाया नह गया; वह पड़ी रह गई है; और वह राजी हो गया है जतना है उससे ही; और उसको अपना उसने मै मम समझ लया है जो उसका म नमम है। हमारी जो ूनतम सीमा रे खा है उसको हम अपनी परम सीमा रे खा मानकर जी रहे ह। और इस लए कई ण म, जब क संकट का ण हो, साधारण से साधारण आदमी भी असाधारण मता कट कर पाता है। तो कई बार ाइ सस और संकट म अचानक हम ही पता चलता है क हमारे भीतर ा था। एक क है, जस पर यह सारी श ठहरी ई है, छपी ई है, सोई ई है--कहना चा हए एक बीज क तरह, जसम सब कुछ अभी बंद है; मे नफे हो सकती है, कट हो सकती है। इसको कुंड. अचेतन म सोई श कुंड श ब त मह पूण है; उसके कई अथ ह। उसके कई अथ ह। पहला तो अथ यह है क जहां जरा सी लहर भी नह उठ रही; क जरा सी भी लहर उठे तो स य हो गई श । कुंड का मतलब है: जहां जरा सी भी लहर नह उठ रही--सब सोया आ, जरा सा कंपन नह , सब सु है। सरा अथ यह है क सु तो है, ले कन कसी भी ण स य हो सकता है; मृत नह है। सूखा नह है कुंड, भरा है। कसी भी ण स य हो सकता है, ले कन सब सोया आ है। और इस लए हो सकता है क हम पता भी न चले क हमारे भीतर ा सोया आ था। क हम उतना ही पता चलेगा जतना हम जगाएं गे। इसे समझ लेना! क जगाने के पहले हम पता ही नह चल सकता क हमारे भीतर ा सोया आ है। उतना ही पता चलेगा जतना जगेगा। जतना जगेगा उतना ही पता चलेगा। यानी तु ारे भीतर जतनी श स य होगी उतनी ही तु ारे चेतन म आएगी। और जो न य श है वह तु ारे अचेतन और अनकांशस म सोई रहेगी। इस लए महान से महान को भी, जब तक वह महान हो नह जाता, पता नह चलता। न महावीर को पता है, न बु को पता है, न जीसस को, न कृ को; वे जस दन हो जाते ह उसी दन पता चलता है। और इस लए अनायास जस दन यह घटना घटती है उनके भीतर, उस दन उनको अनुकंपा मालूम पड़ती है क पता नह कहां से यह दान मला! पता नह कहां से यह आया! कौन दे गया! तो जो भी नकटतम होता है--अगर गु हो, तो वे सोचगे क गु से मल गया; अगर गु न हो, मू त हो भगवान क , तो वे सोचगे उससे मल गया। जो भी पूवगामी होगा। आया उनके ही भीतर से है सदा--तीथकर होगा, आसमान म बैठा आ भगवान होगा-कुछ भी होगा; जो पूवगामी होगा, उसे वे कारण समझ लगे। असल म, हम तो उसी को कारण समझ लेते ह जो पहले गया। अभी म एक कहानी पढ़ रहा था क दो कसान पहली दफा े न म सवार ए। उन दोन

का ज दन था और पहाड़ी गांव म वे रहते थे। और दोन का एक ही ज दन था, और गांव के लोग ने उनको कुछ भट करना चाही, नई-नई े न चली थी, तो उ ने कहा क हम तु टकट भट करते ह, तुम े न म घूम आओ दोन । और इससे ब ढ़या ा हो सकता था उनको! तो वे दोन े न म गए। अब वे हर चीज के लए उ ुक थे क ा हो रहा है, ा नह हो रहा है। तो कोई शबत क बोतल बेचता आ आदमी आया, तो उ ने सोचा क हम भी चखनी चा हए। तो उ ने कहा, एक बोतल ले ल और आधी-आधी चख ल। और फर अ ी लगे तो सरी भी ले सकते ह। तो पहले आदमी ने आधी बोतल चखी, जब वह आधी बोतल चख रहा था तभी एक टनल म, एक बोगदे म गाड़ी वेश कर गई। सरे आदमी ने उसके हाथ से बोतल छीनी क भई, तुम पूरी मत पी जाना, आधी मुझे भी दो। उसने कहा, छूना ही मत! आई हैव बीन क ाइं ड! इसको तुम छूना ही मत; क इसने मुझे अंधा कर दया है। टनल म गाड़ी चली गई थी। जो पूवगामी था, तो उसने उस बोतल को पीया था, तो उसने उसको कहा, छूना ही मत; भूल के मत छूना, म अंधा हो गया ं । ाभा वक है, जो पूवगामी है वह हम कारण मालूम पड़ता है। ले कन श जहां से आ रही है, उसका हम पता ही नह ; और जब तक न आ जाए तब तक पता नह । और भी आ सकती है वहां से, उसका भी हम पता नह ; और कतनी आ सकती है, इसका भी हम पता नह । कुंड म उठी एक लहर यह जो सोया आ कुंड है, अचेतन, इसम से जतनी श जग जाती है, वह कुंड लनी है। कुंड तो अचेतन है, कुंड लनी चेतन है। कुंड तो सोई ई श का नाम है, कुंड लनी जागी ई श का नाम है। उसम से जतना ह ा जागकर ऊपर आ गया, उस कुंड से जतना बाहर आ गया, उतनी कुंड लनी है। कुंड लनी पूरा कुंड नह है, कुंड लनी उसम से ब त छोटी सी एक लहर है जो उठ गई है। इसक दोहरी खोज है इस या ा म। तु ारे भीतर जो कुंड लनी जगी है वह तो सफ खबर है तु ारे भीतर एक ोत क , जहां और भी ब त कुछ सोया होगा। जब एक करण आई है, तो अनंत करण क वहां संभावना है। तो एक रा ा तो कुंड लनी को जगाने का है, जसम से तु ारी श .शरीर क श का तु पूरा बोध हो सकेगा। और इस श को जगाकर तुम शरीर के उन ब ओं पर प ं च जाओगे, जहां से शरीर के अ प म--आ ा म-- वेश आसान है; उन ार पर प ं च जाओगे इस श को जगाकर, जहां से अ ार पर तुम जा सकते हो। और इसको भी समझ लेना ज री है, क हम जो कुछ भी कर रहे ह, वह हमारी श क ार के ारा कर रही है। अगर तु ारे कान खराब हो जाएं , तो श वहां तक आकर लौट जाएगी, ले कन तुम सुन न सकोगे। फर धीरे -धीरे श वहां आनी बंद हो जाएगी; क श वह आती है जहां उसको स य होने का कोई मौका हो। वह वहां नह आएगी। इससे उलटा भी हो सकता है। इससे उलटा भी हो सकता है क कोई आदमी बहरा है, और अगर वह अपनी अंगुली से ब त ादा संक करे सुनने का, तो अंगुली भी सुन सकती है। ऐसे लोग ह जमीन पर आज भी जो शरीर के सरे ह से सुनने लगे ह,

ऐसे लोग भी ह जो शरीर के सरे ह से देखने लगे ह। असल म, जसको तुम आंख कहते हो, वह है ा? तु ारी चमड़ी का ही ह ा है। ले कन अनंत काल से मनु उस ह े से देखता रहा है, इतना ही। ले कन पहले दन जस दन मनु के पहले ाणी ने उस अंग से देखा होगा, वह बलकुल ही संयोग क बात थी; वह कह और से भी देख सकता था। सरे ा णय ने और ह से देखा है। तो सरी तरफ उनक आंख आ गई ह। ऐसे भी पशु-प ी ह, क ड़े-मकोड़े ह, जनके पास असली आंख भी है और फा आंख भी है। असली आंख, जससे वे देखते ह; और झूठी आंख, जससे वे सर को धोखा देते ह, क अगर कोई हमला करे तो झूठी आंख पर हमला करे , असली आंख पर हमला न करे । साधारण सी म ी तु ारे घर म जो है, उसक हजार आंख ह; उसक एक आंख हजार आंख का जोड़ है। उसक देखने क मता ब त ादा है उसके पास। मछ लयां ह जो पूंछ से देखती ह, क उनको पीछे से न का डर होता है। अगर हम सारी नया के ा णय क आंख का अ यन कर तो हमको पता चलेगा क आंख का कोई इसी जगह होना कोई मतलब नह है। कान का इसी जगह होना कोई मतलब नह है। ये कह भी हो सकते ह। इस जगह ह, क अनंत बार मनु -जा त ने वह -वह उ पुन कया है, वे वहां र हो गए ह। और हमारे भीतर उनक जो ृ त है, वह गहरी हो गई है हमारी चेतना म, इस लए वहां पुन हो जाते ह। यहां जो-जो अंग हमारे पास ह, उन अंग म से एक अंग भी खो जाए, तो उस नया का दरवाजा बंद हो जाएगा। जैसे आंख खो जाए, तो फर हम काश का कोई अनुभव न हो सकेगा। फर कतने ही अ े कान ह हमारे पास, और कतने ही अ े हाथ ह , काश का अनुभव नह हो सकेगा। नये ार पर द क तो जब कुंड लनी तु ारी जागनी शु होती है तो वह कुछ ऐसे नये ार पर भी चोट करती है जो सामा नह ह; जनसे तु कुछ और चीज का पता चलना शु होता है-जो क इन आंख से पता नह चलता था; इन हाथ से पता नह चलता था। अगर ठीक से कह तो ऐसा कह सकते ह क तु ारी अंतर-इं य पर चोट होनी शु हो जाती है। अभी भी तु ारी कुंड लनी क श ही इन आंख को और कान को चला रही है, ले कन ये ब हरइं यां ह। और ब त छोटी सी मा ा कुंड लनी क इनको चला लेती है। अगर तुम उस मा ा म थोड़ी सी भी बढ़ती कर दो, तो तु ारे पास अ त र श होगी जो नये ार पर चोट कर सके। जैसे क हम यहां से पानी बहा द। अगर पानी क एक छोटी सी मा ा हो, तो पानी क एक लीक बन जाएगी और फर पानी उसी म से बहता आ चला जाएगा। ले कन पानी क मा ा एकदम से बढ़ जाए तो त ाल नई धाराएं शु हो जाएं गी; क उतने पानी को पुरानी धारा न ले जा सकेगी। तो कुंड लनी को जगाने का जो गहरा शारी रक अथ है, वह यह है क इतनी ऊजा तु ारे पास हो क तु ारे पुराने ार उसको बहाने म समथ न रह जाएं । तब अ नवाय पेण उस ऊजा को नये ार पर चोट करनी पड़ेगी और तु ारी नई इं यां जगनी शु हो जाएं गी।

उन इं य म ब त तरह क इं यां ह--उनसे टे लीपैथी होगी, ेअरवाय होगा। तु कुछ चीज दखाई पड़ने लगगी, कुछ सुनाई पड़ने लगगी, जो क कान क नह ह, आंख क नह ह। तुम कुछ चीज अनुभव करने लगोगे जनम तु ारी कसी इं य का कोई योगदान नह है। तु ारे भीतर नई इं यां स य हो जाएं गी। और इ इं य क स यता का जो गहरे से गहरा फल होगा, वह तु ारे शरीर के भीतर जो अ लोक है-जसको आ ा हम कह रहे ह--तु ारे शरीर का जो सू तम अ छोर है, उसक ती त उसे पकड़नी शु हो जाएगी। तो यह कुंड लनी के जागने से तु ारे भीतर संभावनाएं बढ़गी। शरीर से काम शु होगा। चेतना को कुंड म डुबोने का अनूठा योग सरी बात मने छोड़ दी। यह साधारणतः योग आ है--कुंड लनी को जगाने का। पर फर भी कुंड लनी पूरा कुंड नह है। एक सरा योग भी है जस पर म फर कभी तुमसे उसक अलग ही पूरी बात करनी पड़े। ब त थोड़े से लोग ने पृ ी पर उस पर काम कया है। वह कुंड लनी जगाने का नह है, ब कुंड म डूब जाने का है। उसम से कोई एक छोटी-मोटी श को उठाकर काम कर लेना नह , ब सम चेतना को अपने उस कुंड म डुबा देना। तब कोई इं य नह जागेगी नई, कोई अत य अनुभव नह ह गे, और आ ा का अनुभव एकदम खो जाएगा, और सीधा परमा ा का अनुभव होगा। कुंड लनी क श जगाकर जो अनुभव ह गे, वह तु पहले आ ा का अनुभव होगा; और उसके साथ एक ती त होगी क सरे क आ ा अलग है, मेरी आ ा अलग है। जन लोग ने कुंड लनी क श जगाकर अनुभव कए ह, वे अनेक-आ वादी ह; वे कहगे क अनेक आ ाएं ह, हर एक के भीतर अलग आ ा है। ले कन जन लोग ने कुंड म डुबक लगाई है, वे कहगे: आ ा है ही नह , परमा ा ही है; अनेक नह ह, एक ही है। क उस कुंड म डुबक लगाते से ही तुम अपने ही कुंड म डुबक नह लगाते--तुम, सबका जो स लत कुंड है, उसम वेश कर जाते हो त ाल। तु ारा कुंड और मेरा कुंड और उनका कुंड अलग-अलग नह ह। इसी लए तो कुंड अनंत श वान है। तुम उसम से कतना ही उठाओ, तो भी कुछ नह उठता। तुम उसम से कतनी बालटी पानी भर लाए हो अपने घर के काम के लए, उससे कुछ वहां फक नह पड़ता। ले कन तुम अपना मटका भर लाए हो, म अपना मटका भर लाया ं ; मेरे मटके का पानी अलग है, तु ारे मटके का पानी अलग है। हम सागर से कुछ ले आए ह। ले कन एक आदमी सागर म डूब गया! तब वह कहता है क मटके-वटके क कोई बात नह है, और कसी का पानी अलग नह है, सागर एक है; वह जसे तुम घर ले गए हो, वह भी इसी का ह ा है; और कुछ र नह हो गया है, और तुम र रख न पाओगे, वह लौट आएगा। अभी धूप पड़ेगी और भाप बनेगी और बादल बनगे, वह सब लौट आएगा। वह कह र नह गया है, वह र जा नह सकता, वह सब यह लौट आएगा। तो जन लोग ने कुंड लनी को जगाने के योग कए, उन लोग को अत य अनुभव ए। जो क साइ कक, जो क मनस क बड़ी अदभुत अनुभू तयां ह। और उ आ अनुभव आ। जो क परमा ा का सफ एक अंश है; जहां से तुम परमा ा को पकड़ रहे हो।

जैसे एक सागर के कनारे से म सागर को छू रहा ं । म उसी सागर को छू रहा ं जो क करोड़ मील र तुम भी छू रहे होओगे। ले कन म कैसे मानूं क तुम भी उसी सागर को छू रहे हो? तुम अपने कनारे छू रहे हो, म अपने कनारे छू रहा ं । तो मेरा सागर अलग होगा। मेरा सागर हद महासागर होगा, तु ारा सागर अटलां टक महासागर होगा, उनका सागर पै स फक महासागर होगा। महासागर नह छु एं गे हम, अपने-अपने सागर भी हो जाएं गे, अपना-अपना तट भी हो जाएगा, हम कह वभाजन रे खा ख च लगे--जो मने छु आ। तो आ ा जो है वह परमा ा को एक कोने से छूना है। और कोने से छूने का रा ा है क एक छोटी सी श जग जाए तो तुम छू लोगे। और इस लए इस माग से चलने पर एक दन आ ा को भी खोना पड़ता है, नह तो कावट हो जाती है; वह पूरा नह है मामला। फर आ ा को भी खोना पड़ता है; फर छलांग लगानी पड़ती है कुंड म। ले कन यह आसान है। यह आसान है। कई बार ऐसा होता है क लंबा रा ा आसान रा ा होता है, और नकटतम रा ा क ठन रा ा होता है। उसके कारण ह। उसके कारण ह। लंबा रा ा सदा आसान रा ा होता है। अब जैस,े मुझे अगर मेरे ही पास आना हो, तो भी मुझे सरे के मा म से आना पड़े। और अगर मुझे अपनी ही श देखनी हो, तो भी मुझे एक आईना रखना पड़े। अ ब यह फजूल क लंबी या ा है क आईने म मेरी श जाएगी और आईने से वापस लौटे गी, तब म देख पाऊंगा। यह इतनी या ा करनी पड़ेगी। ले कन अपनी श को सीधा देखना, नकटतम तो है, ले कन क ठनतम भी है। मेरा मतलब समझे न तुम? यं को जानने व खोने का आनंद तो यह जो कुंड लनी क छोटी सी श को उठाकर थोड़ी लंबी या ा तो होती है, क इं य का सारा का सारा, अंतर-इं य का जगत खुलता है और आ ा पर प ं चते ह, और फर वहां से छलांग तो लेनी ही है, ले कन बड़ी सरल हो जाती है। क जसको आ अनुभव आ, जसने अपने को जाना और आनंद पाया, वह आनंद उसे पुकारने लगता है क अब अपने को भी खो दो तो और परम आनंद पा लोगे। अपने को जानने का एक आनंद है, अपने को पाने का एक आनंद है, और अपने को खोने का एक परम आनंद है। क जब तुम अपने को जान लोगे तब तु सफ एक ही पीड़ा रह जाएगी क म ं ; बस इतनी पीड़ा और रह जाएगी; सब पीड़ाएं मट जाएं गी, एक ही पीड़ा रह जाएगी क मेरा होना भी है। यह भी अनाव क है। यह मेरा होना भी थ, अनाव क है। इस लए इससे भी तुम छलांग लगाओगे ही। एक दन तुम कहोगे क अब मने होना जान लया, अब म न होना भी जानना चाहता ं ; मने बीइं ग भी जान लया, अब म नॉन-बीइं ग भी जानना चाहता ं ; मने जान लया काश, अब म अंधकार भी जानना चाहता ं । और काश कतना ही बड़ा हो, उसक सीमा है; और अंधकार असीम है। और बीइं ग कतना ही मह पूण हो, फर भी सीमा है। अ क सीमा होगी; अन क कोई सीमा नह । इस लए बु को लोग नह समझ पाए। क बु से जब लोग ने जाकर पूछा क हम बचगे क नह वहां? तो उ ने कहा क तुम कैसे बचोगे? तुमसे ही तो छूटना है! तो उ ने पूछा क मो म फर कम से कम हम तो ह गे? और सब मट जाए--वासना मटे ,

ख मटे , पाप मटे --हम तो बचगे? बु ने कहा क तुम कैसे बचोगे? जब वासना मट जाएगी, पाप मट जाएगा, ख मट जाएगा, तो एक ख बचेगा तु ारा--होने का ख। होना भी खलने लगेगा। यह बड़े मजे क बात है। क जब तक वासना है तब तक होना नह खलता तु , क तुम होने को काम म लगाए रखते हो। धन कमाना है, तो होने को तुमने धन कमाने म लगाया है; यश कमाना है, तो यश कमाने म लगाया है। जब यश क कामना न होगी, धन क कामना न होगी, काम क वासना न होगी, जब कुछ भी न होगा करने को, जब डूइं ग बलकुल न बचेगी, तो बीइं ग का करोगे ा? तब बीइं ग सीधा गड़ने लगेगा; होना ही घबराने लगेगा क अब यह होना भी नह चा हए। तो बु कहते ह क नह , वहां कुछ भी नह होगा। जैसे दीया बुझ जाता है, फर तुम पूछते हो कहां गया? मरते समय तक बु से लोग पूछ रहे ह क तथागत का मरने के बाद ा होता है? जब आप मर जाएं गे तो फर ा होगा? तो बु कहते ह, जब मर ही गए तो फर होने को बचा ा? फर कुछ बचेगा ही नह , जैसे दीया बुझ गया ऐसे सब बुझ जाएगा। तुम कब पूछते हो क दीया बुझ गया, अब ा आ? बुझ गया, बुझ गया। तो आ ा क उपल चरण ही है एक आ ा को खोने क तैयारी का। ले कन ऐसे ही आसान है। क जो अभी वासना ही नह खो सका, उससे अगर सीधा कहो क कुंड म डूब जाओ, अपने को ही खो दो। असंभव है! क वह कहेगा, अभी मुझे ब त काम ह। आ खर हम अपने को खोने से डरते ह? हम अपने को खोने से इस लए डरते ह क काम तो ब त करने को ह, म खो ं गा तो फर ये काम कौन करे गा? एक मकान बनाया, वह अधूरा है। तो उसे म पूरा बना लू,ं फर तैयार हो जाऊंगा। ले कन तब तक सरे काम अधूरे रह जाएं गे। असल म, काम क वासना, कुछ पूरा करना है, उसक वजह से ही तो म अपने को चला रहा ं । तो जब तक वासना है तब तक अगर कोई कहे क आ ा को खो दो, तो तब तक बलकुल संभव नह है। यह नकट का तो है, ले कन संभव नह है। क वह आदमी जसक अभी वासना नह खोई, वह आ ा को कैसे खोएगा? हां, वासना खो जाए तो फर एक दन वह आ ा को खोने को राजी हो सकता है, क अब आ ा का भी करना ा है! मेरा मतलब समझ रहे हो? मेरा मतलब यह है क जसने अभी ख नह खोया, उससे कहो क आनंद को खो दो! वह कहेगा, पागल ह आप? ले कन जस दन ख खो जाए, आनंद ही रह जाए, फर आनंद का भी ा करोगे? फर आनंद को भी खोने के लए तुम तैयार हो जाओगे। और जस दन कोई आनंद को भी खोने को तैयार है, उसी दन कोई घटना घटती है। ख खोने को तो कोई भी तैयार हो जाता है, ले कन एक घड़ी आती है जब हम आनंद को भी खोने को तैयार हो जाते ह। वह परम अ म लीनता उपल उससे होती है। यह सीधा भी हो सकता है; सीधा कुंड म जाया जा सकता है। ले कन राजी होना मु ल होता है। धीरे -धीरे राजी होना आसान हो जाता है। वासना खोती है, वृ यां खोती ह, या

खोती है, वह सब खो जाता है जनके सहारे तुम हो; फर आ खर म तु बचते हो जसम न न व बची, न सहारे बचे। अब तुम कहते हो, इसको भी ा बचाना! अब इसको भी जाने दे सकते ह। तब तुम कुंड म डूब जाते हो। कुंड म डूबना नवाण है। अगर सीधा कोई डूबना चाहे तो कुंड लनी नह माग म आती। इस लए कुछ माग ने उसक बात नह क ; ज ने सीधे ही डूबने क बात क , उ ने उसक बात नह क ; उसक कोई ज रत नह थी। ले कन मेरा अपना अनुभव यह है क वह नह संभव हो सका। वह कभी एकाध-दो लोग के लए संभव हो सकता है, ले कन एकाध-दो लोग से कुछ हल नह होता। लंबे रा े ही जाना पड़ेगा। ब त बार अपने घर प ं चने के लए सर के घर के ार खटखटाने ही पड़ते ह--अपने ही घर प ं चने के लए! और अपनी ही श पहचानने के लए न मालूम कतनी श को पहचानना पड़ता है। और खुद को ेम करने के लए न मालूम कतने लोग को ेम करना पड़ता है। सीधा तो यही था क अपने को ेम कर लेते। इसम कौन क ठनाई थी? इसम कौन बाधा डालता था? उ चत तो यही था क अपने घर म सीधे आ जाते। ले कन ऐसा नह है। असल म, जब तक हम सर के घर म न भटक ल, तब तक अपने घर को पहचानना ही मु ल होता है। और जब तक हम सर से ेम न मांग ल और सर को ेम न कर ल, तब तक यह पता ही नह चलता क असली सवाल अपने को ेम करने का है। यह पता ही नह चलता। इसका पता चलता है तभी। तो यह कुंड लनी को मने जो कहा क शरीर क तैयारी है; तैयारी है अशरीर म वेश क , आ ा म वेश क । और तु ारी जतनी ऊजा अभी जगी है उससे तुम आ ा म वेश न कर सकोगे। क तु ारी वह ऊजा तु ारे रोजमरा के काम म पूरी चुक जाती है। ब करीब-करीब उसम भी पूरी नह पड़ती, उसम भी हम थक जाते ह। वह उसम भी पूरी नह पड़ रही है। ब त मंदी-मंदी जल रही है लौ। इतने से इसको नह ले जाया जा सकता। ऊजा अनंत है, उसे जगाओ और इसी लए सं ास क वृ पैदा ई, ता क रोजमरा का काम बंद कर दया जाए। क श तो इतनी सी ही है हमारे पास, अब इसको लगाना है कसी और या ा पर, तो फर यह काम बंद कर दो, कान मत करो, बाजार मत जाओ, नौकरी मत करो। ले कन मेरा मानना है क वे ां त म ह। क यह जो दो पैसे क श उसक इस काम म लग रही है, यह अगर वह कसी तरह बचा भी ले, तो बचाने म यह उतनी य हो जाएगी। क बचाने म भी बड़ी ताकत लग जाती है। बचाने म बड़ी ताकत लगती है; ब त बार तो ोध करने म उतनी ताकत य नह होती जतना ोध रोकने म य हो जाती है; ब त बार लड़ने म उतनी य नह होती जतना लड़ने से बचने म य हो जाती है। तो म इसको उ चत नह मानता, यह कंजूस का रा ा है। यह जो सं ास है, यह कंजूस का रा ा है। वह यह कह रहा है क इतने म ही हम उधर से बचा लेते ह, इधर से बचा लेते ह। मेरा मानना है क कंजूस के रा े से नह चलेगा। और जगा लो! ब त है, अनंत है; बचाते हो, और जगा लो! और खच करनी है? और जगा लो! और तुम खच कर नह सकते इतनी तु ारे पास है, तो तुम उसे बचाने क फ करते हो!

अब वह आदमी डर रहा है क अगर मने अपनी प ी को ेम कया तो म परमा ा को कैसे ेम क ं गा? क उसके पास ेम क इतनी छोटी सी तो ऊजा है क इसी म चुक जाएगी। तो वह कह रहा है, इससे बचा ल। ले कन अगर इसको बचा भी लया, तो इस बचाने म उसको लड़ना पड़ेगा; लड़ने म य होगी। और इतनी छोटी सी ऊजा से, जससे तुमने प ी को ेम कया था, उससे तुम परमा ा को ेम कर पाओगे? उतनी सी ऊजा से प ी तक नह प ं च पाए पूरी तरह, परमा ा तक कैसे प ं च पाओगे? यानी उतना छोटा सा जो ज तुमने बनाया था, वह प ी तक भी तो पूरा नह प ं चता था। उसम भी बीच म ही सी ढ़यां चुक जाती थ । वह वहां तक भी सेतु पूरा नह बनता था क तुम उसके दय तक भी प ं च गए होओ ठीक; वह भी नह हो पाता था। उतनी सी ऊजा बचाकर तुम अनंत तक सेतु बनाने क सोचने बैठे हो, तो पागलपन म पड़ गए हो। उसे बचाने का सवाल नह है; और ऊजा है, उसे जगाने का सवाल है। और इतनी अनंत ऊजा है क जसका कोई हसाब नह । और एक बार वह जगनी शु हो जाए, तो वह जतनी जगती है, उतनी ही और जगने क संभावना कट होने लगती है। उसका झरना फूटना शु हो जाए तो अनंत है। उसे तुम चुकता नह कर सकते कभी। यानी ऐसा कोई ण नह आ सकता जब तुम कह दो क अब मेरे भीतर जगने को और कुछ भी शेष नह रहा। जगने क , अवेक नग क अनंत संभावना है; कतना भी तुम जगा सकते हो। और जतना तुम जगाते हो, उतना और जगाने के लए तुम श शाली होते चले जाते हो। और जब तु ारे पास अ त र होती है, ए ुएंस होता है तु ारे पास अंतर-ऊजा का, तभी तुम उसे उन रा पर खच कर सकते हो जो अनजान ह। समझ रहे हो न मेरा मतलब? बाहर क नया म भी ए ुएंस होता है। एक आदमी के पास अ त र धन है, अब वह सोचता है क चलो, चांद क या ा कर आएं । हालां क बेमानी है, और चांद पर कुछ मलने को नह है। ले कन हज भी कुछ नह है, क उसका खोने को भी ा है! उसके पास अ त र है, वह खो सकता है। जब तक तु ारे पास अ त र नह है, उतना ही है जतनी तु ज रत है--उससे भी कम है--तब तक तुम इं च-इं च जांच-पड़ताल करके खच करोगे। इस लए तुम ात क नया से कभी बाहर न हटोगे। अ ात म जाने के लए तु ारे पास अ तरे क चा हए। तो कुंड लनी क श तु अ तरे क से भर देती है। और तु ारे पास इतनी श होती है क तु ारे सामने सवाल होता है क इसको कहां खच कर? और ान रहे, जनके पास अ त र श होती है, अचानक वे पाते ह क उनके जो पुराने ार थे, वे एकदम बंद हो गए; क उस अ त र श को बहाने म वे समथ नह होते। जैसे एक छोटी नदी हो और उसम पूरा सागर आ गया है। वह नदी मट जाएगी फौरन। उसका कह पता ही नह चलेगा क वह कहां गई। तो तु ारा ोध का एक माग था, तु ारे से का एक माग था, वे अचानक खो जाएं गे। जस दन अ त र ऊजा आएगी, वह सब घाट, तट, सब तोड़-फोड़ कर उनको ख कर देगी। तुम अचानक पाओगे क कुछ और ही हो गया! वह सब कहां गया जो कल म छोटा-छोटा बचा-बचा कर कंजूस क तरह चल रहा था; और चय साध रहा था, और

ोध दबा रहा था, और यह कर रहा था, और वह कर रहा था; वह सब अब कहां है? क वे न दयां न रह , वे नहर न रह ; अब तो यह पूरा सागर आ गया है! अब इसको खच करने का तु ारे पास जब उपाय नह है, तब अनायास तुम पाते हो क इसक सरी या ा शु हो गई। या ा तो होगी ही, वह तो क सकती नह । ऊजा बहेगी ही, वह क सकती नह । होनी चा हए। तो एक बार जगा लेने क बात है। और तब तु ारे दैनं दन के ार बेमानी हो जाते ह; और अनजान-अप र चत ार, जो बंद पड़े ह, उनम पहली दफे दरार पड़ती ह और उनसे ऊजा ध े देकर बहने लगती है। तो वहां तु अत य अनुभव शु हो जाते ह। और जैसे ही अत य ार खुलते ह वैसे ही तु अपने शरीर का अशरीरी छोर, जसको आ ा कह, उसक तु ती त शु हो जाती है। तो कुंड लनी तु ारे शरीर क तैयारी है अशरीर म वेश के लए। उस अथ म मने वह बात कही। कुंड लनी का आरोहण-अवरोहण : ओशो, कुंड लनी साधना म कुंड लनी के एसड और डसड क बात आती है --आरोहण और उसके बाद अवरोहण। तो यह जो डसड है , वह ा कुंड म डूबना है या और कोई सरी बात है ?

असल म, कुंड म डूबना जो है, वह न तो उतरना है, न वह चढ़ना है। कुंड म डूबने म तो ये दोन बात ही नह ह। वह उतरना-चढ़ना नह है, मट जाना है, समा हो जाना है। बूंद जब सागर म गरती है, न तो उतरती, न चढ़ती। हां, बूंद जब सूरज क करण म सूखती है, तब चढ़ती है आकाश क तरफ; और जब बादल म ठं डक पाकर गरती है जमीन क तरफ, तब उतरती है। ले कन जब सागर म जाती है तो फर उतरना-चढ़ना नह है--डूबना है, मटना है, मरना है। तो यह जो उतरने-चढ़ने क जो बात है, अवरोहण क , अवतरण क , यह ब त सरे अथ म है। यह इस अथ म है क कुंड से जस श को हम उठाते ह, इसे ब त बार वापस कुंड म भी भेज देना पड़ता है। इस श को हम उठाते भी ह, इसे हम वापस भी भेज देना पड़ता है ब त बार। कई कारण हो सकते ह। सबसे बड़ा कारण तो यह होता है क ब त बार ऐसा होता है क जतनी श के लए तुम तैयार नह होते, उतनी श जग जाती है; उसे वापस लौटाना पड़ता है, अ था खतरे हो सकते ह। तो कुछ श जतनी तुम झेल सको.हमारे झेलने क भी मताएं ह न! हमारे झेलने क भी मताएं ह--सुख झेलने क भी मता है, ख झेलने क भी मता है, श झेलने क भी मता है। अगर हमारी मता से ब त बड़ा आघात हमारे ऊपर हो जाए, तो हमारा जो सं ान है का वह टूट सकता है। वह हतकर नह होगा। इस लए ब त बार ऐसी श उठ आती है जसको वापस भेज देना पड़ता है। ले कन जस योग क म बात कर रहा ं , उस योग म इसक कोई ज रत कभी नह

पड़ेगी। यह योग पर नभर बात है। ऐसे योग ह जो तु ारे भीतर आक क प से, जनको सडन एनलाइटे नमट के योग कहते ह, जो ता ा लक, इं ट श को जगा सकते ह। ऐसे योग म सदा खतरा है, क श इतनी आ सकती है जतनी क तुम तैयार न थे। वो े ज इतना हो सकता है क तु ारा ब बुझ जाए, ूज उड़ जाए, तु ारा पंखा जल जाए, तु ारी मोटर म आग लग जाए। जस योग क म बात कर रहा ं , वह योग तु ारे भीतर पहले पा ता पैदा करता है, पहले श को नह जगाता। पहले पा ता पैदा करता है। साधना म सर क सहायता इसे ऐसे भी समझ क य द एक बड़ा बांध अचानक टूट जाए तो उसके पानी से बड़ा भारी नुकसान हो जाएगा, ले कन उससे नहर नकालकर उसी पानी को सु वधानुसार नयं त प से वा हत कया जा सकता है। एक अदभुत घटना है क कशोराव ा म कृ मू त को थयोसाफ के कुछ वशेष लोग ारा कुंड लनी क सारी साधनाओं से गुजारा गया। उन पर अनेक योग कए गए, जनक ृ त उ न रही; उ बोध नह है क ा आ। उनको तो बोध तभी आया जब उस नहर म सागर उतर आया। इस लए उ तैयारी का कोई भी पता नह है। इस लए कसी ेशन को वे ीकार नह करगे क कसी तैयारी क ज रत है। ले कन उन पर बड़ी तैयारी क गई, जैसा क संभवतः पृ ी पर पहले कसी आदमी के साथ नह क गई। तैया रयां तो ब त लोग ने क , ले कन अपने साथ क । यह पहली दफा कुछ सरे लोग ने उनके साथ तैयारी क । : सरे भी कर सकते ह?

बलकुल कर सकते ह। क सरे ब त गहरे म सरे नह ह। इधर से जो हम सरे दखाई पड़ रहे ह वे इतने सरे नह ह। तो वह तैयारी सर ने क और कसी एक ब त बड़ी घटना के लए क थी। वह घटना भी चूक गई। वह घटना थी कसी और बड़ी आ ा को वेश कराने के लए। कृ मू त को तो सफ एक वी हकल क तरह उपयोग करना था, इस लए उ तैयार कया था; इस लए नहर खोदी थी; इस लए श को, ऊजा को जगाया था। ले कन यह ारं भक काम था। कृ मू त जो थे वे खुद ल नह थे उसम। एक बड़े ल के लए साधन क तरह योग करना था उनका। कसी और आ ा को उनके भीतर जगह देने क बात थी। वह नह हो सका। वह नह हो सका इस लए क जब पानी आ गया तो कृ मू त ने साधन बनने से इनकार कर दया; वह कसी और के लए साधन बनने से इनकार कर दया। इसका डर था, इसका डर सदा है। इस लए इसका योग नह कया गया था। इसका डर सदा है। क जब उस हालत म आ जाए जब क वह खुद ही सा बन सके तो वह सरे के लए साधन बनेगा? वह इनकार कर दे ऐन व पर। यानी म तु अपने मकान क चाबी ं इस लए क कल कोई मेहमान आ रहा है, उसके लए तुम मकान

तैयार करके रखना। ले कन जब म चाबी तु देकर जाऊं और तुम मा लक हो जाओ, तो कल जब मेहमान आने क बात हो तो तुम इनकार ही कर दो, क मा लक तो म ं , चाबी मेरे पास है। और यह चाबी क और ने तैयार क थी और यह मकान भी क और ने बनाया था। इस लए न तु बनाने का पता है, न तु यह चाबी कब ढाली गई, कैसे ढाली गई, इसका पता है। ले कन इस चाबी के तुम मा लक हो और मकान तुम खोलना जानते हो, बात ख हो गई। पहले तैयारी, पीछे उपल ऐसी घटना घटी है। कुछ लोग को तैयार कया जा सकता है। कुछ लोग पछले ज म तैयार होकर आते ह। ले कन यह साधारण मामला नह है। साधारणतः तो ेक को अपने को तैयार करना होता है। और उ चत यही है क ऐसा योग हो, जसम तैयारी पहले चलती हो और घटना पीछे घटती हो। तु ारी जतनी मता बनती जाती हो उतना जल आता जाता हो। तु ारी मता से ादा श कभी न जग पाए। ऐसे ब त से योग थे जनम ऐसा आ। इस लए ब त से लोग उ ाद ह गे, पागल हो जाएं गे। धम से ब त बड़ा भय पैदा हो गया था। इस तरह के योग क वजह से पैदा आ था। तो योग दो तरह के हो सकते ह, इसम कोई ब त क ठनाई नह है। अमे रका म उ ने बजली क जो व ा क है, उसम उ ने एक जो काम कया है, उसके कई दफे ा प रणाम हो सकते ह, वह म कहता ं । इस तरह क त भीतर भी हो सकती है। उ ने जो व ा क है वह यह व ा क है क इस गांव को जतनी बजली क ज रत है उससे अगर ादा कोटा इसके पास है आज, और आज रात गांव म कम बजली का उपयोग कया जा रहा है, तो जतनी बजली बचे वह सरे गांव क तरफ ऑटोमै टकली वा हत हो जाए; यानी इस गांव के पास कुछ भी अ त र बजली न पड़ी रह जाए थ, वह सरे गांव के काम आ जाए। आज एक फै री बंद है जो कल शाम तक चल रही थी; आज बंद है, उसक हड़ताल हो गई। तो जतनी बजली उसको चा हए थी वह आज इस गांव म बेकार पड़ी रहेगी, जब क सरे गांव म हो सकता है बजली क ज रत हो और एक फै री को बजली न दी जा सके। तो पूरा ऑटोमै टक इं तजाम कया है क सारे ज़ोन क बजली पूरे व वा हत होती रहेगी सरी तरफ--जहां भी अ त र है वह त ाल सरी तरफ बह जाएगी। पीछे तीन-चार वष पहले कोई आठ-दस-बारह घंटे के लए पूरी बजली चली गई अमे रका क । वह इस इं तजाम म चली गई। एक गांव क बजली गई तो उलटा वाह शु हो गया। वह जो वाह अ त र बजली को ले जाता था, जब एक गांव क बजली चली गई तो सारी बजली उस तरफ दौड़ी, वहां वै ूम हो गया। उसक कैपे सटी थी उस गांव क , उतनी बजली उसको मलनी चा हए थी; और वे सारे के सारे गांव संबं धत थे, वह सारी बजली उस तरफ दौड़ी। वह इतने जोर से दौड़ी क उस गांव के सारे ूज चले गए और सरे गांव क मुसीबत हो गई। और पूरा का पूरा जतना ज़ोन का इं तजाम था, वह सब का सब एकदम से ख हो गया। एक बारह घंटे के लए अमे रका बलकुल कोई दो हजार साल पहले लौट गया; एकदम अंधेरा हो गया। जो जहां था वहां अंधकार म हो गया और सब काम ठ हो गया। और उस व पहली दफा उनको पता चला क हम

जस लए इं तजाम करते ह, उससे उलटा भी हो सकता है। हमारा इं तजाम जो हम करते ह, उससे उलटा आ। अगर एक-एक गांव का अलग-अलग इं तजाम था तो ऐसा कभी नह हो सकता था। ह ान म ऐसा कभी नह हो सकता क पूरे ह ान क बजली चली जाए। अमे रका म हो सकता है; क वह सब इं टरकने े ड है पूरा का पूरा। और पूरे व धाराएं एक गांव से सरे गांव श होती रहगी। और कभी भी खतरा हो सकता है। मनु के भीतर भी ठीक व ुतधारा क तरह इं तजाम ह। और ये व ुतधाराएं जो ह, ये अगर तु ारी मता से ादा तु ारी तरफ वा हत हो जाएं .और ऐसे इं तजाम ह जनसे वा हत हो सकती ह। यानी तुम यहां बैठे ए हो, और यहां पचास लोग बैठे ए ह, तो ऐसे मेथ स ह क तुम चाहो तो इन पचास लोग क सारी व ुतधारा तु ारी तरफ वा हत हो जाए; ये सब पचास लोग यहां बलकुल ही फट हालत म हो जाएं और तुम एकदम ऊजा के क बन जाओ। ले कन खतरे भी ह उसम। उसम खतरे ह; क वह इतनी ादा भी हो सकती है क तुम उसे न झेल पाओ। और इससे उलटा भी हो सकता है क जस माग से व ुतधारा तुम तक आई, उसी माग से तु ारी भी सारी व ुत को लेकर सरी तरफ बह जाए। इन सबके योग ए ह। तो वह जो उतरना है, वह तु ारे भीतर अगर कभी कोई अ त र मा ा म श --तु ारी ही श --ऊपर चली जाए, तो उसे वापस लौटाने क व धयां ह। ले कन जस व ध क म बात कर रहा ं उसम उनक भी कोई ज रत नह है; उसम कोई योजन ही नह है। तु ारे भीतर जतनी पा ता बनती जाएगी उतनी ही तु ारे भीतर श जगती जाएगी। पहले जगह बनेगी, फर श आएगी। और इस लए कभी तु ारे पास ऐसा नह होगा क तु कुछ भी वापस लौटाना पड़े। हां, एक दन तुम खुद ही वापस लौटोगे, वह सरी बात है। एक दन तुम खुद ही सब जानकर छलांग लगा जाओगे कुंड म, वह सरी बात है। और इन श का और अथ म भी योग आ है। जैसे क ी अर वद जस अथ म योग करते ह, वह ब त सरा है। दो तरह से हम परमा श को सोच सकते ह: या तो अपने से ऊपर, या तो अपने से ऊपर कह आकाश म-- कसी भी ऊपर के भाव म; या अपने से गहरे , पाताल के भाव म। और जहां तक जगत क व ा का संबंध है, ऊपर और नीचे श बेमानी ह, इनका कोई अथ नह है; ये सफ हमारे सोचने क धारणाएं ह क हम कैसा सोचते ह। इस छत को तुम ऊपर कह रहे हो, कुछ ऊपर नह है; क हम यहां एक छेद कर और वह जाकर अमे रका म नकल जाएगा छेद जमीन म। और वहां से अगर कोई झांककर देखे तो यह छत हमारे नीचे मालूम पड़ेगी--हमारे सर के नीचे--उस छेद से झांकने पर। हम उलटे मालूम पड़गे, सब शीषासन करते ए, और यह छत हमारे सर के नीचे मालूम पड़ेगी। अभी भी वह है वह--हम कहां से देखते ह, इस पर सब नभर करता है। जैसे हमारा पूरब-प म सब झूठा है। ा पूरब? ा प म? और पूरब चलते जाओ, चलते जाओ, तो प म प ं च जाओगे। और प म चलते जाओ, चलते जाओ, तो पूरब प ं च जाओगे। जस प म म चलते-चलते पूरब प ं च जाते ह उसको प म कहने का ा मतलब है? कोई मतलब नह है; रले टव है। रले टव का मतलब यह क बेमानी है।

इसका मतलब यह है क कोई मतलब नह है उसका; हमारी कामचलाऊ सीमा-रे खा है क यह रहा पूरब, यह रहा प म; नह तो हम कैसे हसाब बांटगे! ले कन कहां पूरब है? कस जगह से शु होता है? कलक े से? रं गून से? टो कयो से? कहां से पूरब शु होता है? प म कहां से शु होता है और कहां ख होता है? न कह शु होता है, न कह ख होता है। वे कामचलाऊ खयाल ह जनसे हम सु वधा बनती है क हम एक- सरे को बांट लेते ह। ठीक ऐसे ही, ऊपर-नीचे सरे डायमशन म कामचलाऊ ह। पूरब-प म हॉ रजटल कामचलाऊ बात ह और ऊपर-नीचे व टकल कामचलाऊ बात ह। न कुछ ऊपर है, न कुछ नीचे है; क इस जगत क कोई छत नह है और इस जगत का कोई बाटम नह है। इस लए ऊपर-नीचे क सब बात बेमानी ह। ले कन हमारी ये कामचलाऊ धारणाएं हमारे धम क धारणाओं म भी घुस जाती ह। तो कुछ लोग ई र को अनुभव करते ह अबव, ऊपर। तो जब श उतरे गी तो उतरे गी, डसड करे गी, हम तक आएगी। कुछ लोग अनुभव करते ह ई र को नीचे, स म। तो जब श आएगी तो चढ़ेगी, उठे गी, हम तक आएगी। ले कन कोई मतलब नह है। कहां हम रखते ह ई र को, यह सफ कामचलाऊ बात है। ले कन इस कामचलाऊ बात म भी अगर चुनाव करना हो, तो म मानता ं बजाय उतरने के, उठना ही ादा सहयोगी होगा; बजाय उतरने के, श का तु ारे भीतर से उठना ही ादा सहयोगी होगा। उसके कारण ह। क जब श के उठने क धारणा तुम पकड़ोगे, तो उठाने का सवाल उठे गा। तब तु कुछ करना पड़ेगा। और जब उतरने क बात है तो सफ ाथना रह जाएगी, और तुम कुछ भी न कर सकोगे। जब ऊपर से नीचे आना है तो हम हाथ जोड़कर ाथना कर सकते ह। धम के दो आयाम-- ान और ाथना इस लए दो तरह के धम नया म बने-- ान करनेवाले और ाथना करनेवाले। ाथना करनेवाले वे धम ह ज ने ई र को ऊपर अनुभव कया कह । अब हम कर भी ा सकते ह? उसको ला तो सकते नह ! क अगर लाएं तो उतने ऊपर हमको जाना पड़े! और उतने ऊपर हम जाएं गे कैसे? उतने ऊपर जाएं गे तो परमा ा ही हो जाएं गे हम। वहां हम जा नह सकते, जहां हम खड़े ह वहां हम खड़े रहगे। हम च ाकर ाथना कर सकते ह क हे परमा ा, उतर! ले कन जन धम ने और जन धारणाओं ने इस तरह सोचा क उठाना है नीचे से, कह हमारी ही जड़ म सोया आ है कुछ और हम ही कुछ करगे तो वह उठे गा, तो वे ाथना के धम न बनकर फर ान के धम बने। तो मे डटे शन और ेयर म इस ऊपर-नीचे क धारणा का फक है। ाथना करनेवाला धम ई र को ऊपर मानता है, ान करनेवाला धम ई र को जड़ म मानता है, और वहां से उसको उठा लेता है। और ान रहे, ाथना करनेवाले धम धीरे -धीरे हारते जा रहे ह, ख होते जा रहे ह; उनका कोई भ व नह है। उनका कोई भ व नह है। ान करनेवाले धम क संभावना रोज गाढ़ होती जा रही है। उसका ब त भ व है। तो म पसंद क ं गा क हम समझ क नीचे से ऊपर.। इसके और भी अथ ह गे। धारणा

तो सापे है, इस लए मुझे कोई द त नह है; कसी को ऊपर मानना हो तो मुझे कोई अड़चन नह आती। ले कन म मानता ं क आपको अड़चन आएगी काम करने म। जैसे मने कहा क अगर हम पूरब चलते जाएं तो प म प ं च जाते ह। फर भी हम प म जाना हो तो हम पूरब क तरफ नह चलते, हम प म क तरफ ही चलते ह। धारणा बेमानी है, ले कन फर भी हम प म जाना हो तो हम प म क तरफ चलना शु करते ह। हालां क पूरब क तरफ चल तो चलते-चलते प म प ं च जाएं गे, ले कन वह नाहक लंबा रा ा हो जाएगा। मेरा मतलब समझ रहे हो न तुम? तो साधक के लए और भ के लए फक पड़ेगा। भ ऊपर मानेगा, इस लए हाथ जोड़कर ती ा करे गा; साधक नीचे मानेगा, इस लए कमर कसकर जगाने क को शश करे गा। और भी अथ ह, जो खयाल म आ जाने चा हए। असल म, जब हम नीचे मानते ह परमा ा को, तो हमारी जनको हम न वृ यां कहते ह, उनम भी वह मौजूद हो जाता है। इस लए हमारे च म कुछ न नह रह जाता। क जब परमा ा ही नीचे है, तो जसको हम न तम कहते ह, वहां भी वह मौजूद है। और वहां से भी जगेगा; अगर से है, तो वहां से भी जगेगा। यानी ऐसी कोई जगह ही नह हो सकती जहां वह न हो। नीचे से नीचे, नीचे से नीचे नरक म भी कह अगर कुछ है कोई, तो वहां भी वह मौजूद है। ले कन जैसे ही हम उसे ऊपर मानते ह, तो कंडेमनेशन शु हो जाता है, क जो नीचे है वह कंडे ड हो जाता है, उसक नदा शु हो जाती है, क वहां परमा ा नह है। वहां परमा ा नह है। और अनजाने यं क भी हीनता शु हो जाती है क हम नीचे ह और वह ऊपर है। तो उसके घातक प रणाम ह, मनोवै ा नक घातक प रणाम ह। ान-क त धम अ धक भावकारी और फर जतनी श से खड़े होना हो, उतना उ चत है क श नीचे से आए। क तु ारे पैर को मजबूत करे गी। श ऊपर से आए तो तु ारे सर को श करे गी। और तु ारी जड़ तक जाना चा हए मामला। और जब ऊपर से आएगी तो तु हमेशा वजातीय और फारे न मालूम पड़ेगी। इस लए जन लोग ने ाथना क , वे कभी नह मान पाते क भगवान और हम एक ह। वे कभी नह मान पाते। इस लए मुसलमान का नरं तर स वरोध रहा क कोई कहे क म भगवान ं । क कहां वह ऊपर और कहां हम नीचे! इस लए वे मंसूर का गला काट दगे, सरमद को मार डालगे। क यह सबसे बड़ा कु एक ही है उनक नजर म न क तुम कह रहे हो क हम भगवान! इससे बड़ा कु नह हो सकता। क कहां वह ऊपर और कहां तुम नीचे जमीन पर सरकते क ड़े-मकोड़े! और कहां वह परम, तुम उसके साथ अपनी आइड टटी नह जोड़ सकते। तो उसका कारण था; क जब हम उसे ऊपर मानगे और अपने को नीचे मानगे, तो हम दो हो जाएं गे त ाल। इस लए सूफ कभी पसंद नह पड़ सके इ ाम को, क सूफ दावा कर रहे ह इस बात का क हम और वह एक ह। ले कन हम और वह एक तभी हो सकते ह जब वह नीचे से आता हो, क हम नीचे ह। जब वह जमीन से ही आता हो, आकाश से नह , तभी हम और वह एक हो सकते ह। जैसे

ही हम परमा ा को ऊपर रखगे, पृ ी का जीवन न दत हो जाएगा, पाप हो जाएगा; और ज लेना पाप का फल हो जाएगा। जैसे ही हम उसे नीचे रखगे, वैसे ही पृ ी का जीवन एक आनंद हो जाएगा; वह पाप का फल नह , वह परमा ा क अनुकंपा हो जाएगा। और ेक चीज, चाहे वह कतनी ही अंधेरी हो, उसम भी उसक काश क करण मौजूद अनुभव होगी। और कैसा ही बुरा से बुरा आदमी हो, कतना ही शैतान हो, फर भी उसके अंतरतम कोर पर वह मौजूद रहेगा। इस लए म पसंद क ं गा क हम उसे नीचे से ऊपर क तरफ उठना मान। फक नह है, फक नह है धारणाओं म। जो जानता है उसके लए कोई फक नह है, वह कहेगा, ऊपरनीचे दोन बेकार क बात ह। ले कन जब हम नह जानते ह और या ा करनी है, तो उ चत होगा क हम वही मान जससे या ा आसान हो सके। तो इस लए मेरे मन म तो साधक के लए उ चत यही है क वह समझे क नीचे से श उठे गी और ऊपर क तरफ जाएगी; ऊपर क तरफ या ा है। इस लए ज ने ऊपर क तरफ क या ा को ीकार कया उ ने अ को तीक माना, क वह नरं तर ऊपर क तरफ जा रही है। दीया है, आग है, वे नरं तर ऊपर क तरफ जा रहे ह; तो उ ने इसको तीक माना परमा ा का। इस लए अ जो है वह ब त गहनतम मन म हमारे परमा ा का तीक बन गई। उसका कुल कारण इतना था क कुछ भी करो, वह ऊपर क तरफ ही जाती है। और जतना ऊपर बढ़ती है, उतनी ही थोड़ी देर म खो जाती है; थोड़ी र तक दखाई पड़ती है, फर अ हो जाती है। ऐसा ही साधक भी ऊपर क तरफ जाएगा, थोड़ी देर तक दखाई पड़ेगा और अ हो जाएगा। इस लए म आरोहण--अवतरण नह --उस पर जोर देना पसंद क ं गा। बस एक और पूछ लो, बस फर उठगे। श का जागरण : ओशो, नारगोल श वर म आपने कहा है क ती ास- ास और ‘म कौन ं ’ पूछने के य से अपने को पूरी तरह से थका डालना है ता क गहरे ान म वेश संभव हो सके। ले कन ान म वेश के लए अ त र ऊजा चा हए, तो थकान क ऊजा- ीणता से ान म वेश कैसे संभव होगा?

नह -नह , थकान का मतलब ऊजाहीनता नह है। असल म, जब तुम अपने को थका डालते हो.‘अपने’ से मतलब ा? ‘अपने’ से मतलब तु ारे वे ार-दरवाजे, तु ारी वे इं यां, जनसे तु ारी ऊजा के बहने का दै नक म है--तु ारा जो सं ान है, तुम अभी जो हो। उस तुम क बात नह कर रहा जो तुम हो सकते हो। जो तुम हो। तो जब तुम अपने को थका डालते हो, तो दोहरी घटनाएं घटती ह। इधर तुम अपने को थका डालते हो, तो तु ारी सारी इं यां, तु ारा मन, तु ारा शरीर थक जाता है। और कसी तरह क ऊजा को वहन करने के लए तैयार नह होता, इनकार कर देता है। थकान म तुम कसी तरह क ऊजा को वहन करने क तैयारी नह दखलाते; तुम कहते हो, अभी

म थका ं । तो एक तरफ तो यह योग तु ारे शरीर को, तु ारे मन को, तु ारी इं य को थकाता है, और सरी तरफ तु ारी कुंड लनी पर चोट करता है; वहां से ऊजा जगती है और यहां से तुम थकते हो--यह दोन एक साथ चलता है। समझे न! यह एक साथ चलता है--इधर तुम थकते हो, उधर से श जगती है। और उस श को वहन करने के यो भी तुम नह रहते, क तु ारी आंख देखना चाहे तो कहती है--थक ं , देखने का मन नह ; तु ारा मन सोचना चाहे तो मन कहता है--थका ं , सोचने का मेरा मन नह ; तु ारे पैर चलना चाह तो पैर कहते ह--हम थके ह, हम चल नह सकते। तो अब अगर चलना है तो बना पैर क कोई या ा तु ारे भीतर करनी पड़ेगी; और अगर देखना है तो बना आंख के देखना पड़ेगा; क आंख थक है। समझ रहे ह मेरा मतलब? तो तु ारा सं ान, तु ारा थक जाता है, तो वह इनकार करता है क हम अभी कुछ करना नह है। और श जग गई है, जो कुछ करना चाहती है। तो त ाल वह उन दरवाज पर चोट करे गी जो अनथके पड़े ह, जो थके ए नह ह; जो तु ारे भीतर सदा वहन करने के लए तैयार ह, ले कन कभी उनको मौका ही नह मला था क तुम उनको भी मौका देते; तुम ही खुद इतने सश थे क तुम सारी श को लगा डालते थे। वह इधर से श तु ारी. ये दरवाजे इनकार करगे क मा करो, इधर नह । वह जो श जग रही है, ये दरवाजे कहगे क नह , हमारी कोई इ ा देखने क नह है। तो जब देखने के लए आंख इनकार कर दे और मन देखने क इ ा से इनकार कर दे, तब भी जो श जग गई है देखने क , उसका ा होगा? तो तुम कसी और आयाम म देखना शु कर दोगे; वह तु ारा बलकुल नया ह ा होगा। वही साइ कक सटर तु ारे देखने के खुलने शु हो जाएं गे। तुम कुछ ऐसी चीज देखने लगोगे जो तुमने कभी नह देख , और ऐसी जगह से देखने लगोगे जहां से तुमने कभी नह देख । ले कन उसको तो कभी मौका नह मला था। उसको कभी मौका ही नह मला था तु ारे भीतर से। तो उसके लए मौका बनेगा। अत य क का स य होना तो थकाने का मेरा जोर है। इधर शरीर को थका डालना है, मन को थका डालना है--तुम जो हो, उसको थका डालना है--ता क तुम जो अभी हो, ले कन तु पता नह , वह स य हो सके तु ारे भीतर। और ऊजा जगेगी, वह तो फौरन कहेगी हम.ऊजा जगेगी तो वह कहेगी काम चा हए। और काम तु ारे अ को देना पड़ेगा उसे। वह खुद काम खोज लेगी। तु ारे कान थके ह, तो भी वह ऊजा जग गई है, तो वह सुनना चाहेगी तो नाद सुनेगी। उन नाद के लए तु ारे कान क कोई ज रत नह है। तु ारी आंख क कोई ज रत नह है, ऐसा काश देखेगी। ऐसी सुगंध आने लगेगी जसके लए तु ारी नाक क कोई ज रत नह है। तो तु ारे भीतर सू तर इं यां, या अत यां, जो भी हम नाम देना पसंद कर, वे स य हो जाएं गी। और हमारी सब इं य के साथ एक-एक अत य का जोड़ है। यानी एक कान तो वह है जो बाहर से सुनता है, और एक कान और है तु ारे भीतर जो भीतर सुनता है। ले कन उसको तो कभी मौका नह मला। तो जब तु ारा बाहर का कान थका

है और ऊजा जगकर कान के पास आ गई है, और कान कहता है, मुझे सुनना नह , सुनने क कोई इ ा ही नह , तब वह ऊजा ा करे गी? वह तु ारे उस सरे कान को स य कर देगी जो सुन सकेगा, जसने कभी नह सुना। इस लए ऐसी चीज तुम सुनोगे, ऐसी चीज देखोगे, क तुम कसी से कहोगे तो वह कहेगा, पागल हो! ऐसा कह होता है! कसी वहम म पड़ गए होओगे, कोई सपना देख लया होगा! ले कन तु तो वह इतना मालूम पड़ेगा जतना क बाहर क वीणा कभी मालूम नह पड़ी। वह भीतर क वीणा इतनी होगी क तुम कहोगे, हम कैसे मान? अगर यह झूठ है तो फर बाहर क वीणा का ा होगा, वह तो बलकुल ही झूठ हो जाएगी! तो तु ारी इं य का थकना तु ारे अ के नये ार के खुलने के लए ारं भक प से ज री है। एक दफा खुल जाए, फर तो कोई बात नह । क फर तो तु ारे पास तुलना भी होती है क अगर देखना ही है तो फर भीतर ही देखो; क इतना आनंदपूण है क फजूल बाहर देखता र ं ! ले कन अभी तुलना नह है तु ारे पास; अभी तो देखना है तो बाहर ही देखना है। एक ही वक है। एक बार तु ारी भीतर क आंख भी देखने लगे, तब तु ारे सामने वक साफ है। तो जब भी देखने का मन होगा, तुम भीतर देखना चाहोगे। मौका चूकना! बाहर देखने से ा मतलब है! रा बया के जीवन म उ ेख है क सांझ को सूरज ढल रहा है और वह अंदर अपने झोपड़े म बैठी है। हसन नाम का फक र उससे मलने आया है। सूरज ढल रहा है और बड़ी सुंदर सांझ है। तो हसन उससे च ाकर कहता है क रा बया, तू ा कर रही है भीतर? ब त सुंदर सांझ है; इतना सुंदर सूया मने कभी देखा नह ; ऐसा सूय दोबारा देखने नह मलेगा, बाहर आ! तो रा बया उससे कहती है क पागल, कब तक बाहर के सूय को देखता रहेगा! म तुझसे कहती ं , तू भीतर आ! क हम उसे देख रहे ह जसने सूय को बनाया; और हम ऐसे सूय देख रहे ह जो अभी अनबने ह और कभी बनगे। तो अ ा हो क तू भीतर आ! अब वह हसन नह समझ पाया क वह ा कह रही है। पर यह औरत ब त अदभुत ई। नया म जन य ने कुछ कया है, उन दो-चार य म एक है वह रा बया। पर वह हसन नह समझ पाया। वह उससे फर कह रहा है क देख, सांझ चूक जा रही है! और वह रा बया कह रही है क पागल, तू सांझ म ही चूक जाएगा; इधर भीतर ब त कुछ चूका जा रहा है। वह बलकुल दो तल पर बात हो रही है, क वह दो अलग इं य क बात हो रही है। ले कन अगर सरी इं य का तु पता नह , तो भीतर का कोई मतलब ही नह होता, बाहर का ही सब मतलब होता है। इस अथ म मने कहा क वे थक जाएं , तो शुभ है। थकाने का अथ ऊजाहीनता नह है : ओशो, तो इस योग म थकाने का अथ ऊजाहीनता नह है !

नह , बलकुल नह । ऊजा तो जग रही है, ऊजा तो जग रही है; ऊजा को जगाने के लए ही सारा काम चल रहा है। हां, इं यां थक रही ह। इं यां ऊजा नह ह, सफ ऊजा के बहने के ार ह। यह दरवाजा म नह ं , म तो और ं । इस दरवाजे से बाहर-भीतर आता-जाता ं । दरवाजा थक रहा है, और दरवाजा कह रहा है--कृपा करके हमसे बाहर मत जाओ, ब त थके ए ह। ले कन कहां जाओगे, फर रहना तो भीतर पड़ेगा। दरवाजा कह रहा है--हम ब त थके ए ह, अब कृपा करो क मत जाओ बाहर; क जाओगे तो हम फर काम म लगना पड़ेगा। आंख कह रही है क हम थक गए ह, अब इधर से या ा मत करो। इं यां थक रही ह। और इनका थकना ाथ मक प से बड़ा सहयोगी है। उस अथ म। तादा के कारण थकान : ओशो, यह ऊजा य द अ धक है तो टायडनेस नह लगनी चा हए, े शनेस लगनी चा हए।

नह , शु म लगेगी। धीरे -धीरे तो तु ब त ताजगी लगेगी, जैसी ताजगी तुमने कभी नह जानी। ले कन शु म थकान लगेगी। शु म थकान इस लए लगेगी क तु ारी आइड टटी इन इं य से है। इ को तुम समझते हो ‘म’। तो जब इं यां थकती ह, तुम कहते हो, म थक गया। इससे तु ारी आइड टटी टूटनी चा हए न! जस दन. ऐसा मामला है क तु ारा घोड़ा थक गया, तुम घोड़े पर बैठे हो। ले कन तुम सदा से समझते थे क म घोड़ा ं । अब घोड़ा थक गया, अब तुमने कहा, हम मरे , हम थक गए। वह हमारे थकने का जो मतलब है, हमारी आइड टटी जससे है, वही हम कहते ह। म घोड़ा ं , तो म थक गया। जस दन तुम जानोगे क म घोड़ा नह ं , उस दन तु ारी े शनेस ब त और तरह से आनी शु होगी। और तब तुम जानोगे क इं यां थक गई ह, ले कन म कहां थका! ब इं यां चूं क थक गई ह और काम नह कर रही ह, इस लए ब त सी ऊजा जो उनसे वक ण होकर थ हो जाती थी, वह तु ारे भीतर संर त हो गई है और पुंज बन गई है। और तुम ादा, जसको कहना चा हए कंजवशन ऑफ एनज अनुभव करोगे क तुमने ब त ऊजा बचाई जो तु ारी संप बन गई है। और चूं क बाहर नह गई, इस लए तु ारे रोएं -रोएं पोर-पोर म भीतर फैल गई है। ले कन इससे तुम एक हो, यह तु जब खयाल आना शु होगा, तभी तु फक लगेगा। ान से ताजगी तो धीरे -धीरे तो ान के बाद ब त ही ताजगी मालूम होगी। ताजगी कहना ही गलत है, तुम ताजगी हो जाओगे। यानी ऐसा नह क ऐसा लगेगा क ताजगी मालूम हो रही है। तुम ताजगी हो जाओगे--यू वल बी द े शनेस। ले कन वह तो आइड टटी बदलेगी तब। अभी तो घोड़े पर बैठे हो, ब त मु ल से, जदगी भर यही समझा है क म घोड़ा ं । सवार ं , इसको समझने म व लगेगा। और शायद घोड़ा थककर गर पड़े, तो आसानी हो जाए तु । अपने पैर से चलना पड़े थोड़ा, तो पता चले क म तो अलग ं । ले कन घोड़े पर ही

चलते-चलते यह खयाल ही भूल गया है क म भी चल सकता ं । ऐसा है! इस लए थकेगा घोड़ा तो अ ा होगा।

:9 ास क क मया : ओशो, स के ब त बड़े अ ा व और म क जॉज गुर जएफ ने अपनी आ ा क खोज-या ा के सं रण ‘मी ट वद द रमाकबल मेन’ नामक पु क म लखे ह। एक दरवेश फक र से उनक काफ चचा भोजन को चबाने के संबंध म तथा योग के ाणायाम व आसन के संबंध म ई, जससे वे बड़े भा वत भी ए। दरवेश ने उ कहा क भोजन को कम चबाना चा हए, कभीकभी ह ी स हत भी नगल जाना चा हए; इससे पेट श शाली होता है । इसके साथ ही दरवेश ने उ कसी भी कार के ास के अ ास को न करने का सुझाव दया। दरवेश का कहना था क ाकृ तक ास- णाली म कुछ भी प रवतन करने से सारा अ हो जाता है और उसके घातक प रणाम होते ह। इस संबंध म आपका ा मत है ?

इसम पहली बात तो यह है क यह तो ठीक है क अगर भोजन चबाया न जाए, तो पेट श शाली हो जाएगा। और जो काम मुंह से कर रहे ह वह काम भी पेट करने लगेगा। ले कन इसके प रणाम ब त घातक ह गे। पहली तो बात यह है क मुंह जो है वह पेट का ह ा है। वह पेट से अलग चीज नह है। वह पेट क शु आत है। पेट और मुंह दो चीज नह ह, दो अलग चीज नह ह; मुंह पेट क शु आत है। तो कहां से पेट शु होता है, यह जस आदमी से गुर जएफ क बात ई उस दरवेश को कुछ पता नह है। पेट कहां से शु होता है? पेट मुंह से शु होता है। और अगर मुंह का काम आपने नह कया.उसका काम है और अ नवाय काम है। अगर उसे आप छोड़ द तो पेट उस काम को करने लगेगा। ले कन उस करने म दोहरे नुकसान ह गे। मुंह के साथ म के आंत रक संबंध एक नुकसान तो यह होगा क शरीर का सारा काम बंटा आ है। एक तरह का डवीजन ऑफ लेबर है, म वभा जत है शरीर म। अगर हम इस म- वभाजन को तोड़ द और एक ही अंग से और काम भी लेने लग, तो वह अंग तो श शाली हो जाएगा, ले कन जस अंग से हम काम लेना बंद कर दगे वह एकदम श हीन हो जाएगा। और पेट अगर ब त श शाली हो तो आप एक पशु तो हो जाएं गे बड़े श शाली, ले कन अगर मुंह कमजोर हो जाए तो आप मनु नह रह जाएं गे। क मुंह क कमजोरी के ब त घातक प रणाम ह। क मुंह के साथ हमारे म के ब त आंत रक संबंध ह, जैसे पेट के संबंध ह, वैसे म के संबंध ह। और हमारे मुंह के श शाली होने पर नभर करता है क हमारे म के ायु श शाली ह । तो जैसे एक आदमी अगर गूंगा है, बोल नह सकता, तो उसके म के ब त से

ह े सदा के लए बेकार रह जाएं गे। गूंगा आदमी बु मान नह हो सकता। अंधा आदमी ब त बु मान हो जाएगा। गूंगा आदमी ई डयट हो जाएगा, उसम बु वक सत नह होगी। क उसके मुंह के साथ ब त से उसके म के जोड़ ह। और मुंह के चलाने के साथ आपके पेट का चलना शु हो जाता है। अगर आप मुंह न चलाएं , तो पेट का जो चलना शु होना है वह भी ब त क ठन बात है। और हमारे मुंह के पास कुछ चीज ह, जो पेट के पास नह ह। : सलाइवा?

हां, सलाइवा; जो क नह है पेट के पास और उसके लए उसे अ त र म करना पड़े। और यह बात सच है क कोई अंग अगर काम करे तो श शाली होता है। ले कन अगर उसे ऐसा काम करना पड़े जो क उसका नह है, तो ीण होता है; क उस पर अ त र भार है। और भी बड़े मजे क बात है क पेट के ब त से काम को जब हम वभा जत कर देते ह-कुछ मुंह कर लेता है, कुछ पेट कर लेता है--तो हमारी जो ऊजा है, हमारी जो एनज है, वह पेट पर क त नह हो पाती। वह पेट से मु होना शु होती है। इस लए जैसे ही आप खाना खाते ह, न द आनी शु हो जाती है। क आपके म म जो श थी वह भी पेट अपने भीतर बुला लेता है। वह कहता है क अब उसे भी काम म लगा देना है। क खाना ब त बु नयादी त है जीवन के लए। सोचना वगैरह गौण बात ह, इनम पीछे लगगे, अभी पेट को पचा लेने द। तो जैसे ही आप खाना खाते ह, वैसे ही मन सोने का होने लगता है। उसका कारण यह है क म से सारी ऊजा वापस बुला ली गई। पेट पर जतना काम बढ़ेगा, म उतना कमजोर होता चला जाएगा। क उसको उतनी ऊजा क ज रत पड़ेगी। और जो नॉन-एस शयल ह े ह जीवन म, वह उनसे ख च लेगा। म जो है वह ल ू रयस ह ा है। उसके बना जानवर काम चला रहे ह। वह कोई जी वत होने के लए ज री ह ा नह है। ले कन पेट जी वत होने के लए ज री ह ा है। उसके बना कोई काम नह चला रहा, वृ भी काम नह चला सकता उसके बना। तो वह ब त एस शयल क ीय त है। तो हमारे म वगैरह को श तभी मलती है, जब वह पेट से बचती है। अगर वह पेट म लग जाए तो वह म को नह मलती। इस लए गरीब कौम के पास म धीरे -धीरे ीण होने लगता है, वक सत नह होता। क उसक पेट पर सारी क सारी श लग जाती है। और उसके पेट से ही कुछ नह बचता क वह कह और जा सके, शरीर के और ह म फैलाव हो सके। रफाइं ड फूड से म का वकास तो जतना हम पेट का काम कम कर द, उतना ही म वक सत होता है। इस लए जतना रफाइं ड फूड है, जसको क पेट को पचाने म कम से कम ताकत लगती है, उतना म वक सत होता चला जाता है। इस लए जस दन हम सथे टक फूड ले सकगे,

सफ गोली आपने ली और आपका काम पूरा हो गया, उस दन म को इतनी ऊजा मलेगी जतनी कभी भी नह मली। और उस ऊजा के अनंत प रणाम ह गे। असल म, पेट का काम नह बढ़ाना है, पेट का काम रोज कम करना है। अगर गौर से देख तो जैसे-जैसे नीचे उतरगे उतना पेट का काम ादा पाएं गे पशु म। जैसे एक भस है, वह चौबीस घंटे ही चबा रही है, चौबीस घंटे ही खा रही है। उसका पेट का ही काम पूरा नह हो पाता। इस लए म जैसी चीज क उसम झलक नह मल पाती। मनु उतना ही वक सत होता चला जाएगा जतनी पेट से ऊजा उसक मु होने लगेगी। अगर ब त ठीक से समझ तो जस दन मनु पेट से मु होगा उसी दन पशुता से मु हो जाएगा। उस दन के बाद उसको पशु होने का कोई अथ नह है। और इस लए पेट का काम बढ़ाना नह है, पेट का काम नरं तर कम करना है। उपवास का यही योजन है। क पेट का काम कुछ देर के लए बलकुल बंद हो जाए, तो म के लए पूरी श मल जाती है। इस लए उपवास के ण म म म श का बड़ा ती वाह होता है। ादा खाना खा ल तो म क श सब पेट म चली जाती है त ाल। इस लए ब त खाना खा ल तो फर तो म काम कर ही नह सकता। तो इस लए पेट का काम नरं तर कम करना है। मुंह उसम हाथ बंटाता है। इस लए जतना आप चबा ल उतना हतकर है। यानी इतना चबा ल क पेट को काम ही न बचे तो और भी ादा हतकर है। और बड़े मजे क बात यह है, बड़े मजे क बात यह है, इसको थोड़ा सा देखने जैसा है, क आदमी का सारा वकास पेट से मु होने का वकास है। वह धीरे -धीरे पेट से मु होने क को शश म लगा आ है। ठीक से ठीक भोजन खोज रहा है क उसको डाइजेशन का उप व कम हो जाए। तो एक तो म तो इसम गवाही नह ं गा। अ ा सरी बात यह है क हमारे म का जो ह ा है.मुंह दो चीज से जुड़ा है-इधर पेट से और इधर म से। मुंह दोन के बीच म पड़ता है। अगर हम आदमी का सारा वकास देख तो वह, ठीक समझ हम तो, मुंह का ही वकास है। बाक सारा शरीर इस छोटे से सर का ही काम कर रहा है। बाक सब जो है वह फै ी इस छोटे से सर के लए चल रही है। चाहे हमारा ेम हो, चाहे हमारी बु हो, चाहे हमारी तभा हो, वह ब त गहरे म हमारे मुंह से संबं धत है। और इसका हम कैसे उपयोग करते ह, कतना ादा उपयोग करते ह, यह कतना मजबूत होता है, उतनी ही ऊजा नीचे क तरफ जाने क बजाय ऊपर क तरफ जानी शु होती है। तो इसका तो ादा से ादा उपयोग होना चा हए। और अगर ठीक से चबाया हो कसी ने तो उसके दांत ही नह गरगे। अगर ठीक से चबाया हो, तो वह जो बात कह रहा है दरवेश, वह कभी नह घटे गी। अगर कसी ने जदगी भर ठीक से चबाया तो दांत तो गरगे ही नह । वह मरते दम तक अपने ठीक वही दांत लेकर जाएगा जो दांत लेकर आया था। शायद उससे भी ादा मजबूत, क वे इतना काम कर चुके ह गे। और जतना उसका मुंह मजबूत हो, उतना ही उसका पेट मजबूत होगा। क मुंह शु आत है उसके पेट क । यानी मुंह जो है वह पेट का ार ही है। वह पेट से अलग कोई चीज नह । उसको अलग मानकर चलना गलत है। और अगर ह ी, जैसा वह कह रहा है क ह ी भी ऐसे ही गटक जाओ, गटक सकते ह आप, और पेट उसक भी

चे ा करे गा, ले कन वह इन ूमन चे ा होगी। और तब पेट को इतनी श क ज रत पड़ेगी क आप कुछ और काम ही नह कर पाएं गे, बस ह ी पचा ली तो ब त काम हो गया। और आप पेट क त हो जाएं गे। आपका जो है वह पेट पर क त हो जाएगा। जीवन के मह पूण काम--अंधेरे म और सरी और जो बात है वह यह है क पेट जतने अचेतन म हो उतना अ ा। आपको उसका पता न चले, उतना उसक व कग जो है, ूथ और अ ी होगी। अगर आपको पेट का पता चले तो आप हो जाएं गे। असल म, हमारे म कुछ चीज ह, जो हमारी चेतना म नह होनी चा हए। चेतना म ह गी तो आप नुकसान पाएं गे। तो पेट का काम जतना हलका हो, उतना ही अचेतन होगा, अनकांशस होगा। आपको पता नह चलेगा पेट का। और जतना पेट का कम पता चलेगा उतने आप और वेल बीइं ग अनुभव करगे। अगर ठीक से समझ तो आपक जो इलनेस का जो बोध है बीमारी का वह पेट के बोध से शु होता है। जैसे ही आपको पता चला क पेट भी है शरीर म क आप बीमार ए। अगर आपको पता न चले क पेट है तो आप ह। और पेट का जो काम है वह जो है आपक अचेतना का काम है। जीवन के जतने मह पूण काम ह, वे अंधेरे म होते ह और उनके लए चेतना क ज रत नह है। जड़ अंधेरे म, जमीन म बड़ी होती ह। ब ा मां के पेट म अंधेरे म बड़ा होता है। हमारे पेट का सारा का सारा काम हमारे ान के बाहर होता है। आपके ान के भीतर उसको लाने क ज रत नह है। ले कन अगर पेट पर ब त काम आपने डाला तो वह आपके ान के भीतर आ जाएगा त ाल, क उस पर अ त र म पड़ेगा। और पेट ान म आया तो आप चौबीस घंटे ह। तो गुर जएफ को कुछ तो ब त अदभुत बात का खयाल था। ले कन एक खतरा उसके साथ आ और वह यह क वह ब त सी परं पराओं से संबं धत था। इस लए कई अथ म वह भानुम त का पटारा है। और वह कभी भी तय नह कर पाया क इनके बीच तालमेल ा है। अब यह बात जंचती है, दरवेश ने जब कही तो उसे यह बात जंच गई। अगर उसे जो म कह रहा ं यह भी कहता, यह बात भी जंच सकती थी। और इन दोन का तालमेल बठालना ब त मु ल हो जाता। ाणायाम और कृ म ास से हा न का खतरा सरी जो बात कह रहा है वह ाणायाम और कृ म ास के लए, उसम भी कुछ बात सच ह। असल म, ऐसा कोई अस नह होता जसम क कुछ स न हो; होता ही नह ; होता ही नह । अ ा वह जो उसम स होता है वही भाव लाता है; और उसके साथ वह जो अस है वह भी सरक जाता है, हम कभी पता नह चलता क ा हो गया। अब इसम ब त स ाई है क जहां तक बने, साधारणतः, जीवन का जो सहज म है, उसम बाधा नह डालनी चा हए। उप व होने का डर है। तो जो व ा चल रही है सहज-आपक ास क , उठने क , बैठने क , चलने क --जहां तक बने उसम बाधा नह डालना उ चत है। क बाधा डालने से ही प रवतन शु ह गे। यह ान रहे क हा न भी एक प रवतन है और लाभ भी एक प रवतन है; दोन ही प रवतन ह। तो आप जैसे ह, अगर ऐसे ही रहना है, तब तो कुछ भी छेड़छाड़ करनी उ चत

नह है; ले कन अगर कुछ भी इससे जाना है कह भी, कोई भी प रवतन करना है, कोई भी ांसफामशन, तो हा न का खतरा लेना पड़ेगा। वह जो.हा न का खतरा तो है ही, क आपक जो ास चल रही है अभी, अगर इसको और व ा दी जाए तो आपके पूरे म अंतर पड़गे। ले कन अगर आप अपने से राजी ह, और सोचते ह क जैसा है ठीक है, तब तो उ चत है। ले कन अगर आप सोचते ह क यह पया नह मालूम होता, तो अंतर करने पड़गे। ास प रवतन से म पांतरण और तब ास पर अंतर सबसे क मती बात है। और ये जो.जैसे ही ास पर आप अंतर करगे वैसे ही आपके भीतर ब त सी चीज टूटनी और ब त सी नई चीज बननी शु हो जाएं गी। अब हजार योग के बाद यह तय कया गया है क वह ास के कस योग से कौन सी चीज बनगी, कौन सी टूटगी। और अब करीब-करीब सु न त बात हो गई है। जैसे कुछ तो हम सबके भी अनुभव म होता है। जैसे जब आप ोध म होते ह तो ास बदल जाती है; वह वैसी नह रहती जैसी थी। अगर कभी ब त ही साइलस अनुभव होगी तो भी ास बदल जाएगी; वह वैसी नह रहेगी जैसी थी। अगर आपको पता चल गया है क साइलस म ास कैसी हो जाती है, तो आप अगर वैसी ास कर सक तो साइलस पैदा हो जाएगी। ये जो दोन ह, ये दोन इं टर-कने े ड ह। जब मन कामातुर होगा तो ास बदल जाएगी। अगर मन कामातुर हो और आप ास को न बदलने द, तो आप फौरन पाएं गे क कामातुरता वदा हो गई। वह काम वलीन हो जाएगा, वह टक नह सकता; क बॉडी के मेके न म सारी चीज म तारत होना चा हए तभी कुछ हो सकता है। अगर ोध जोर से आ रहा है और उस व आप ास धीमी लेने लग, तो ोध टक नह सकता; क ास म उसको टकने क जगह नह मलेगी। ास और मन के वै ा नक नयम तो ास के जो अंतर ह, वे बड़े क मती ह। और ास के अंतर से आपके मन का अंतर पड़ना शु होगा। और जब साफ हो चुका है और ब त वै ा नक प से साफ हो चुका है: ास क कौन सी ग त पर मन क ा ग त होगी, तब खतरे नह ह। खतरे थे उनको ज ने ारं भक योग कए ह; खतरा आज भी है उसको जो जीवन क कसी भी दशा म ारं भक योग करता है। ले कन जब योग साफ हो जाते ह तो वे ब त साइं ट फक ह। यानी यह असंभव है क एक आदमी ास को शांत रखे और ोध कर ले। यह असंभव है, ये दोन बात एक साथ नह घट सकत । इससे उलटा भी संभव है क अगर आप उसी तरह क ास लेने लग जैसी आप ोध म लेते ह, तो आप थोड़ी देर म पाएं क आपके भीतर ोध जग गया। तो ाणायाम ने आपके च के प रवतन के लए ब त से उपाय खोजे ह। ाकृ तक और अ ाकृ तक ास और सरी बात यह है क जसको हम कह रहे ह आ टफ शयल ी दग और जसको हम नेचरल कह रहे ह, यह फासला भी समझने जैसा है। जसको आप नेचरल कह रहे ह, वह भी नेचरल नह है; वह ी दग नेचरल नह है। ब ब त ठीक से समझा जाए तो वह ऐसी आ टफ शयल ी दग है जसके आप आदी हो गए ह; जसको आप ब त दन से कर

रहे ह इस लए आदी हो गए ह; बचपन से कर रहे ह इस लए आदी हो गए ह। आपको पता नह है क नेचरल ी दग ा है। इस लए दन भर आप एक तरह से लेते ह ास, रात म आप सरी तरह से लेते ह। क दन म जो ली थी वह आ टफ शयल थी, और इस लए रात म नेचरल शु होती है जो क आपक है बट के बाहर है। तो रात क ही ास क या ादा ाभा वक है बजाय दन के। दन म तो हमने आदत डाली है ी दग क , और आदत के हमारे कई कारण ह। जब आप भीड़ म चलते ह तब आप एहसास कर, जब आप अकेले म बैठते ह तब एहसास कर, तो आप पाएं गे आपक ी दग बदल गई। भीड़ म आप और तरह से ास लेते ह, अकेले म और तरह से। क भीड़ म आप टस होते ह। चार तरफ लोग ह, तो आपक ी दग छोटी हो जाएगी; ऊपर से ही ज ी लौट जाएगी; पूरी गहरी नह होगी। जब आप आराम से बैठे ह, अकेले ह, तो वह पूरी गहरी होगी। इस लए जब रात आप सो गए ह तो वह पूरी गहरी होगी।.वह आपने दन म कभी नह ली है, क वह इतनी कभी गहरी नह गई क आवाज भी कर सके। पेट से ास लेना नद षता का ल ण तो जसको हम कह रहे ह नेचरल वह नेचरल नह है, सफ कंडीशंड आ टफ शयल है; न त हो गई है, आदत हो गई है। इस लए ब े एक तरह से ी दग ले रहे ह। अगर ब े को सुलाएं , तो आप पाएं गे उसका पेट हल रहा है, और आप ी दग ले रहे ह तो छाती हल रही है। ब ा नेचरल ी दग ले रहा है। अगर ब ा जस ढं ग से ास ले रहा है, आप ल, तो आपके मन म वही तयां पैदा होनी शु हो जाएं गी जो ब े क ह। उतनी इनोसस आनी शु हो जाएगी जतनी ब े क है। या अगर आप इनोसट हो जाएं गे तो आपक ी दग पेट से शु हो जाएगी। इस लए जापान म और चीन म बु क जो मू तयां ह, वे उ ने भ बनाई ह; वे ह ानी मू तय से भ ह। ह ान म बु का पेट छोटा है; जापानी और चीनी मु म बु का पेट बड़ा है, छाती छोटी है। हम बे दी लगती है। हम बे दी लगती है क यह बेडौल कर दया। ले कन वही ठीक है। क बु जैसा शांत आदमी जब ास लेगा तो वह पेट से ही लेगा। उतना इनोसट आदमी छाती से ास नह ले सकता, इस लए पेट बड़ा हो जाएगा। वह पेट जो बड़ा है, वह तीक है। : झेन संत का?

हां, वह तीक है। सब झेन मा स का पेट बड़ा है। वह तीक है। उतना बड़ा न भी रहा हो, ले कन वह बड़ा ही ड प कया जाएगा। उसका कारण है क वह ास जो है, वह पेट से ले रहा है; वह छोटे ब े क तरह हो गया है। तो जब हम यह खयाल म साफ हो गया हो, तो नेचरल ी दग क तरफ हम कदम उठाने चा हए। हमारी ी दग आ टफ शयल है। वह दरवेश गलत कह रहा है क आप

आ टफ शयल ी दग मत करो। आ टफ शयल ी दग हम कर रहे ह। तो जैसे ही हम समझ बढ़ेगी, हम नेचरल ी दग क तरफ कदम उठाएं गे। और जतनी नेचरल ी दग हो जाएगी, उतने ही जीवन क अ धकतम संभावना हमारे भीतर से कट होनी शु होगी। और यह भी समझने जैसा है क कभी-कभी एकदम आक क प से अ ाकृ तक ी दग करने के भी ब त फायदे ह। और एक बात तो साफ ही है क जहां ब त फायदे ह वह ब त हा नयां ह। एक आदमी कानदारी कर रहा है, तो जतनी हा नयां ह उतने फायदे ह। एक आदमी जुआ खेल रहा है, तो जतने फायदे ह उतनी हा नयां ह। क फायदा और हा न का अनुपात तो वही होनेवाला है। तो वह बात तो ठीक कह रहा है क ब त खतरे ह, ले कन आधी बात कह रहा है। ब त संभावनाएं भी ह वहां। वह जुआरी का दांव है। तो अगर हम कभी कसी ण म थोड़ी देर के लए बलकुल ही अ ाभा वक-अ ाभा वक इस अथ म क जसको हमने नह क है अभी तक--इस तरह क ी दग कर, तो हम अपने ही भीतर नई तय का पता चलना शु होता है। उन तय म हम पागल भी हो सकते ह और उन तय म हम मु भी हो सकते ह-- व भी हो सकते ह, वमु भी हो सकते ह। और चूं क उस त को हम ही पैदा कर रहे ह, इस लए कसी भी ण उसे रोका जा सकता है। इस लए खतरा नह है। खतरे का डर तब है, जब क आप रोक न सक। जब आपने ही पैदा कया है तो आप त ाल रोक सकते ह। और आपको तपल अनुभव होता है क आप कस तरफ जा रहे ह। आप आनंद क तरफ जा रहे ह, क ख क तरफ जा रहे ह, क खतरे म जा रहे ह, क शां त म जा रहे ह, वह आपको ब त साफ एक-एक कदम पर मालूम होने लगता है। अजनबी त के कारण मू ा पर चोट और जब बलकुल ही आक क प से, तेजी से ी दग बदली जाए, तो आपके भीतर क पूरी क पूरी त बदलती है एकदम से। जो हमारी सु न त आदत हो गई है ास लेने क , उसम हम कभी पता नह चल सकता क म शरीर से अलग ं । उसम सेतु बन गया है, ज बन गया है। शरीर और आ ा के बीच ास क एक न त आदत ने एक ज बना दया है। उसके हम आदी हो गए ह। यानी वह मामला ऐसा ही है क जैसे आप रोज अपने घर जाते ह और कार का आप ील घुमा लेते ह और आपको कभी न सोचना पड़ता है, न वचार करना पड़ता है; आप अपने घर पर जाकर खड़े हो जाते ह। ले कन अचानक ऐसा हो क ील आप दाएं मुड़ाएं और ील बाएं मुड़ जाए, क जो रा ा रोज आपका था, अचानक आप पाएं क वह रा ा आज पूरा का पूरा घूम गया है और सरा रा ा उसक जगह आ गया है, तब एक जनेस क हालत म आप प ं चगे, और पहली दफा आप होश से भर जाएं गे। वह जो होश से भर जाएं गे आप. जनेस जो है न, कसी भी चीज का अजनबीपन, वह आपक मू ा को तोड़ देता है त ाल। व त नया, जहां सब रोज वही आ है, वहां आपक मू ा कभी नह टूटती; आपक मू ा टूटती है वहां, जहां अचानक कुछ हो जाता है। जैसे क म बोल रहा ं , इसम आपक मू ा न टूटे गी। अचानक आप पाएं क यह टे बल बोलने लगी, तो यहां एक आदमी भी बेहोश नह रह जाएगा। उपाय नह है बेहोश रहने का। यह टे बल अचानक बोल उठे , एक श बोले--म हजार श बोल रहा ं तो भी आप

मू त सुनगे--ले कन यह टे बल एक श बोल दे तो आप सब इतनी अवेयरनेस म प ं च जाएं गे जसम आप कभी नह गए; क वह ज है, और ज आपके भीतर क सब त तोड़ देता है। तो ास के अनूठे अनुभव जब जनेस म ले जाते ह, तो आपके भीतर बड़ी नई संभावनाएं होती ह और आप होश उपल कर पाते ह और कुछ देख पाते ह। और अगर कोई आदमी होशपूवक पागल हो सके, तो इससे बड़ा क मती अनुभव नह है--होशपूवक अगर पागल हो सके। : इं पा सबल है !

हां, यह इं पा सबल है, इसी लए तो इससे क मती अनुभव नह है। ान- योग म अजनबी, अ ात तय का बनना तो यह जो म योग कह रहा ं , यह योग जो है ऐसा है क भीतर आपका पूरा होश है और बाहर आप बलकुल पागल हो गए ह। जो क आप कोई भी आदमी अगर कर रहा होता तो आप कहते, पागल है। भीतर तो आपको पूरा होश है और आप देख रहे ह क म नाच रहा ं । और आप जानते ह क अगर यह कोई भी सरा आदमी कर रहा होता तो म कहता क यह पागल है। अब आप अपने को पागल कह सकते ह। ले कन दोन बात एक साथ हो रही ह--आप यह जान भी रहे ह क यह हो रहा है। इस लए आप पागल भी नह ह; क आप होश म पूरे ह और फर भी वही हो रहा है जो पागल को होता है। इस हालत म आपके भीतर एक ऐसा ज मोमट आता है क आप अपने को अपने शरीर से अलग कर पाते ह। कर नह पाते, हो ही जाता है। अचानक आप पाते ह क सब तालमेल टूट गया। जहां कल रा ा जुड़ता था वहां नह जुड़ता और जहां कल आपका ज जोड़ता था वहां नह जुड़ता; जहां ील घूमता था वहां नह घूमता। सब वसंगत हो गया है। वह जो रे लेवसी थी रोज-रोज क , वह टूट गई है; कह कुछ और हो रहा है। आप हाथ को नह घुमाना चाह रहे ह, और वह घूम रहा है; आप नह रोना चाह रहे ह, और आंसू बहे जा रहे ह; आप चाहते ह क यह हं सी क जाए, ले कन यह नह क रही है। तो ऐसे ज मोम स पैदा करना अवेयरनेस के लए बड़े अदभुत ह। और ास से जतने ज ी ये हो जाते ह, और कसी योग से नह होते। और योग म वष लगाने पड़, ास म दस मनट म भी हो सकता है। क ास का इतना गहरा संबंध है हमारे म क उस पर जरा सी लगी चोट सब तरफ त नत हो जाती है। अ व त ास का योग क मती तो ास के जो योग थे, वे बड़े क मती थे। ले कन ाणायाम के जो व त योग ह उन पर मेरा ब त आ ह नह है। क जैसे ही वे व त हो जाते ह, वैसे ही उनक जनेस चली जाती है। जैसे एक आदमी एक-दो ास इस नाक से लेता है, फर दो इससे लेता है। फर इतनी देर रोकता है, फर इतनी देर नकालता है। इसका अ ास कर लेता है। तो यह भी उसका अ ास का ह ा हो जाने के कारण सेतु बन जाता है।

मेथॉ डकल हो जाता है। तो म जस ास को कह रहा ं , वह बलकुल नॉन-मेथॉ डकल है, ए ड है। उसम न कोई रोकने का सवाल है, न छोड़ने का सवाल है। वह एकदम से ज फ लग पैदा करने क बात है क आप एकदम से ऐसी झंझट म पड़ जाएं क इस झंझट को आप व ा न दे पाएं । अगर व ा दे दी, तो आपका मन ब त हो शयार है, वह उसम भी राजी हो जाएगा क ठीक है। वह इस नाक को दबा रहा है, इसको खोल रहा है; इतनी नकाल रहा है, उतनी बंद कर रहा है; तो उसका कोई मतलब नह है, वह एक नया स म हो जाएगा, ले कन जनेस, अजनबीपन उसम नह आएगा। और आपको म चाहता ं क कसी ण म आपक जो भी स ह, जतनी भी जड़ ह और जतना भी आपका अपना प रचय है, वह सब का सब कसी ण म एकदम उखड़ जाए। एक दन आप अचानक पाएं क न कोई जड़ है मेरी, न मेरी कोई पहचान है, न मेरी कोई मां है, न मेरा कोई पता है, न कोई भाई है, न यह शरीर मेरा है। आप एकदम ऐसी ए ड हालत म प ं च जाएं जहां क आदमी पागल होता है। ले कन अगर आप इस हालत म अचानक प ं च जाएं आपक बना कसी को शश के, तो आप पागल हो जाएं गे। और अगर आप अपनी ही को शश से इसम प ं च तो आप कभी पागल नह हो सकते, क यह आपके हाथ म है, अभी आप इसी सेकड वापस लौट सकते ह। ान योग ारा पागलपन से मु तो मेरा तो मानना है क अगर हम पागल को भी इतनी ास--और म यहां चा ं गा क यह योग करने जैसा है--अगर हम पागल को भी यह ास का योग करवाएं तो उसके हो जाने क पूरी संभावना है। क अगर वह पागलपन को भी देख सके क म पैदा कर लेता ं , तो वह यह भी जान पाएगा क म मटा भी सकता ं । अभी पागलपन उसके ऊपर उतर आया है, वह उसके हाथ क बात नह है। इस लए यह जो योग है, इसके खतरे ह, ले कन खतरे के भीतर उतनी ही संभावनाएं ह। और पागल भी अगर इसको करे तो ठीक हो सकता है। और इधर मेरा खयाल है पीछे क इसको पागल के लए भी इस योग को करवाने जैसा है। और जो आदमी इस योग को करता है उसक गारं टी है क वह कभी पागल नह हो सकता। वह इस लए पागल नह हो सकता क पागलपन को पैदा करने क उसके पास खुद ही कला है। जस चीज को वह ऑन करता है उसको ऑफ भी कर लेता है। इस लए आप उसको कभी पागल नह बना सकते। यानी कसी दन ऐसा नह हो सकता क वह अपने वश के बाहर हो जाए। क उसने, जो वश के बाहर था, उसको भी वश म करके देख लया है। जस ास क बात म कह रहा ं , वह ास बलकुल ही नॉन- रद मक नॉन-मेथॉ डकल है। और कल जैसा कया था, वैसा भी आज नह कर सकते आप, क उसका कोई मेथड ही नह है। कल जैसा कया था, वैसा भी आज नह कर सकते; अभी शु जैसा कया था, अंत करते तक भी वैसा नह कर सकते। वह जैसी होगी! और खयाल सफ इतना है क आपक सब जो कंडीश नग है माइं ड क वह ढीली पड़ जाए। वह जो दरवेश कह रहा है, वह ठीक कह रहा है क कई नट और कई बो ढीले पड़ जाएं गे। वे करने ह ढीले। वे नट-बो ब त स ी से पकड़े ए ह और आ ा और शरीर

के बीच फासला नह हो पाता उनक वजह से। वे एकदम से ढीले पड़ जाएं तो ही आपको पता चले क कुछ और भी है भीतर, जो जुड़ा था और अलग हो गया है। ले कन चूं क वे ास क चोट से ही ढीले ए ह, वे ास क चोट जाते ही से अपने आप कस जाते ह; उनको अलग से कसने के लए कोई इं तजाम नह करना पड़ता। उनको इं तजाम करने क कोई ज रत नह है। हां, अगर ास पागलपन क हो जाए आपके भीतर, क आपके वश के बाहर हो, आ ेशन बन जाए और चौबीस घंटे उस ढं ग से चलने लगे, तो फर वह त खराब हो जा सकती है। ले कन कोई घंटे भर के लए अगर यह योग कर रहा है, और योग शु करता है और योग बंद कर देता है, तो जैसे ही वह योग बंद करता है, वैसे ही वे सब के सब अपनी जगह वापस सेट हो जाते ह। आपको अनुभव भर रह जाता है पीछे क एक अनुभव आ था जब म अलग था और अब सब चीज फर अपनी जगह सेट हो गई ह। ं, ले कन अब सेट हो जाने के बाद भी आप जानते ह क म अलग ं --जुड़ गया ं , संयु ले कन फर भी अलग ं । ास के बना तो काम ही नह हो सकता है। हां, यह बात वह ठीक कह रहा है क खतरे ह। तो खतरे तो ह ही, और जतने बड़े जीवन क हमारी खोज है उतने बड़े खतरे के लेने क हम तैयारी होनी चा हए। फक म इतना ही करता ं क एक तो वह खतरा है जो हम पर अचानक आ जाता है, उससे हम बच नह सकते; और एक वह खतरा है जो हम पैदा करते ह, उससे हम कभी भी बच सकते ह। यानी अब इतना मूवमट होता है शरीर का--इतना--रो रहा है कोई, च ा रहा है, नाच रहा है, और एक सेकड उसको क नह , तो वह सब गया। चूं क यह एटे ड है, यह उसने ही पैदा कया है सब, यह एक बात है। और यह अपने आप हो जाता है जब-- क एक आदमी सड़क पर खड़े होकर नाच रहा है--खुद नह उसने कुछ कया है, अब वह रोक भी नह सकता; क कहां से यह आया, कैसे यह आ, उसे कुछ पता नह । तो मेरी तो अपनी समझ यह है क यह आज नह कल, जो म कह रहा ं , यह एक ब त बड़ी थैरेपी स होगी। और आज नह कल, पागल को करने के लए यह अ नवाय रा ा बन जाएगा। और अगर हम ेक ब े को ू ल म इसे करा सक तो हम उस ब े के पागल नह होने क व ा कए दे रहे ह; वह कभी पागल नह हो सकता। वह इ ून हो जाएगा--एक। और वह मा लक हो जाएगा--इन सारी तय का मा लक हो जाएगा। व भ सूफ व धयां ले कन जस दरवेश से उसक बात ई है, गुर जएफ क , वे सरे पथ के राही ह। उ ने ास का कोई योग नह कया। उ ने जनेस सरी तरह से पैदा क । और यही तकलीफ है। तकलीफ ा है क एक रा े को जाननेवाला आदमी त ाल सरे रा े को गलत कह देगा। ले कन कोई भी चीज कसी रा े के संदभ म गलत और सही होती है। एक बैलगाड़ी म चके म एक डंडी लगी ई है, क ल लगी ई है। एक कारवाला कह सकता है क बलकुल बेकार! ले कन कार के संदभ म बेकार होगी, वह बैलगाड़ी म उतनी

ही साथक है जतनी कार म कोई चीज साथक हो। तो कसी चीज का गलत और सही होना ए ो ूट अथ नह रखता। ले कन हमेशा यह भूल होती है। रा -जागरण अब जैसे क सूफ दरवेश है, वह सरे ढं ग से इस तरफ प ं चा है; उसके ढं ग और ह। जैसे सूफ जो है, वह न ा पर चोट करे गा, ास पर नह । तो नाइट व ज क बड़ी क मत है दरवेश के लए। महीन जागता रहेगा! ले कन जागने से भी वही जनेस पैदा हो जाती है जो ास से पैदा होती है। अगर महीने भर जाग जाएं तो आप उसी तरह पागल हालत म प ं च जाते ह जस हालत म ास से प ं चगे। तो एक तो न द पर वह चोट करे गा, क न द बड़ी ाभा वक व ा है। उस पर चोट करने से फौरन आपके भीतर व च ताएं शु हो जाती ह। ले कन उसम भी खतरे इतने ही ह, ब इससे ादा ह, क लंबा योग करना पड़े। एक दन क न द के तोड़ने से नह होता वह। महीने भर, दो महीने क न द तोड़ देनी पड़े। ले कन दो महीने क न द तोड़कर अगर कुछ हो जाए तो एक सेकड म आप बंद नह कर सकते उसको। ले कन दस मनट क ास से कुछ भी हो जाए तो एक सेकड म बंद हो जाता है। दो महीने क न द अगर नह ली है, तो आप अगर आज सो भी जाओ तो भी दो महीने क न द आज पूरी नह होनेवाली। और दो महीने जो नह सोया है, वह आज शायद सो भी न पाए; क वह जरा खतरनाक जगह से उसने काम शु कया है। तो नाइट व जल का बड़ा उपयोग है; फक र रात-रात भर जागकर ती ा करगे क ा होता है। तो उ ने उससे शु कया है। सरा उ ने नृ से भी शु कया है। नृ का उपयोग नृ को भी उपयोग कया जा सकता है शरीर से अलग होने के लए। ले कन वे भी उनके योग ऐसे ही ह क अगर नृ सीखकर कया आपने तो नह हो सकेगा। जैसा क मने कहा क ाणायाम से नह होगा, क वह व त है। अब एक आदमी ने अगर नृ सीख लया, तो वह शरीर के साथ एक हो जाता है। नह , आप--जो क नाच जानते नह --आप से म क ं --ना चए! और आप एकदम नाचना शु कर द, कूदना-फांदना, तो हो जाएगा। हो जाएगा इस लए क यह इतना ज मामला है क आप इसके साथ अपने को एक न कर पाएं गे क यह म नाच रहा ं ! यह आप एक न कर पाएं गे। तो नाच से उ ने योग शु कए ह, रात क न द से शु कए ह। ऊन के व , उपवास, कांटे क श ा और तरह क उप व क चीज, जैसे क ऊन के व ह। अब ठे ठ रे ग ान क गरम हालत म ऊन पहने ए ह! तो शरीर के वपरीत चल रहे ह। कोई उपवास कर रहा है, वह भी शरीर के वपरीत चल रहा है। कोई कांटे पर पैर रखे बैठा है, कोई कांटे क श ा बछाकर उस पर लेट गया है, वे सब जनेस पैदा करने क तरक ब ह। ले कन एकपथ के राही को कभी खयाल म नह आता, और भावतः नह भी आता है, क सरे पथ से भी ठीक यही त पैदा हो सकती है। तो वह दरवेश को तो कुछ पता नह ाणायाम के बाबत। हां, अगर वह कुछ करे गा तो

नुकसान उठा सकता है। वह कुछ करे गा तो नुकसान उठा सकता है और खतरे ादा हो सकते ह। खतरे ऐसे हो सकते ह, जैसे क एक बैलगाड़ी क क ल को आपने कार के चाक म लगा दया हो। तो वह कहेगा क भई, यह क ल बड़ी खतरनाक है, कभी मत लगाना, क इससे तो हमारी गाड़ी खराब हो गई। अब जो आदमी रात भर जग रहा है, अगर वह ाणायाम का योग करे तो पागल हो जाएगा--फौरन पागल हो जाएगा। उसके कारण ह; क ये दोन चोट एक साथ नह सह सकता। लंबे उपवास म आसन और ाणायाम हा न द इस लए जैन ने ाणायाम का योग नह कया, क उपवास से वे जनेस पैदा कर रहे ह। अगर उपवास के साथ ाणायाम कर तो ब त खतरे म पड़ जाएं गे। एकदम खतरे म पड़ जाएं गे। इस लए जैन के लए कोई ाणायाम का उपयोग नह रहा; ब वह जैन साधु कहेगा क कोई ज रत नह है। मगर उसे पता नह है क वह ाणायाम को इनकार नह कर रहा है, वह सफ इतना ही कह रहा है क उसक व ा म उसके लए कोई जगह नह है; वह सरी चीज से वही काम पैदा कर ले रहा है। इस लए जैन ने कोई योगासन वगैरह के लए फकर नह क । क उपवास क हालत म, लंबे उपवास क हालत म, योगासन वगैरह ब त खतरनाक स हो सकते ह। तो उनके लए ब त मृ आहार चा हए, घी चा हए, ध चा हए, अ ंत तृ दायी आहार चा हए। उपवास कर देता है खा भीतर बलकुल, और जठरा इतनी बढ़ जाती है, क उपवास से बलकुल पेट आग हो जाता है। इस आग क हालत म कोई भी आसन खतरनाक हो सकते ह। यह आग म तक चढ़ सकती है और पागल कर सकती है। तो जैन सं ासी कह देगा क नह -नह , आसन वगैरह म कुछ सार नह है, सब बेकार है। ले कन जस रा े पर उनका उपयोग है, उस रा े पर उनक क मत बड़ी अदभुत है। अगर ठीक आहार लया जाए, तो आसन अदभुत काम कर सकते ह। ले कन उसके लए शरीर का बड़ा होना ज री है। बलकुल ऐसा ही मामला है जैसे क लु ीके टग हालत होनी चा हए बॉडी क ; क एक-एक ह ी और एक-एक नस और एक-एक ायु को फसलना है, बदलना है। उसम जरा भी खापन आ तो टूट जाएगी। अ ंत लोचपूण चा हए। और उस लोचपूण हालत म अगर शरीर को ये सारी क सारी जो. आसन: अनोखी देहतयां अब ये जो आसन ह, ये भी ज पोजीशंस ह, जनम आप कभी नह होते। और हम खयाल नह है क हमारी सब पो जशन हमारे च से बंधी ई है। अब एक आदमी च तत होता है और सर खुजाने लगता है। कोई पूछे क तुम सर कस लए खुजा रहे हो? चता से सर खुजाने का ा संबंध है? ले कन अगर आप उसका हाथ पकड़ ल तो आप पाएं गे-वह च तत नह हो सकता। उसके च तत होने के लए अ नवाय है क वह अपने सर पर हाथ ले जाए। अगर उसका हाथ पकड़ लया जाए तो वह चता नह कर सकता। क उस चता के लए उतना एसो सएशन ज री है क वह हाथ क मस इस जगह प ं च, अंगु लयां इस ान को छु एं , इस ायु को छु एं , इस पो जशन म जब वह हो जाएगा तो बस त ाल उसक चता स य हो जाएगी। अब इसी तरह क सारी क सारी मु ाएं ह,

आसन ह। तो वे ब त अनुभव से.जैसा म अभी सुबह ही कह रहा था क अब यह ान का जो योग आ इसम अपने-आप आसन बनगे, अपने-आप मु ाएं आएं गी। नरं तर हजार योग के बाद यह पता चल गया क च क कौन सी दशा म कौन सी मु ा बन जाती है। तब फर उलटा काम भी शु हो सका--वह मु ा बनाओ तो च क वैसी दशा के बनने क संभावना बढ़ जाती है। जैसे क बु बैठे ए ह, अगर आप ठीक उसी हालत म बैठ, तो आपको बु क च -दशा म जाने म आसानी होगी। क च -दशा भी शरीर क दशाओं से बंधी ई है। बु जैसे चलते ह, अगर आप वैसे ही चलो; बु जैसी ास लेते ह, अगर वैसी ास लो; बु जैसे लेटते ह, वैसे लेटो; तो बु क जो च क दशा है उसको पाना आपके लए सुगमतर होगा। और या आप बु क च -दशा को पा लो तो आप पाओगे क आपके चलने, उठने, बैठने म बु से तालमेल होने लगा। ये दोन चीज पैरलल ह। गुर जएफ क अधूरी जानकारी अब जैसे क गुर जएफ जैसे लोग को, जो क एक अथ म अप टे ड ह, इनके पीछे कोई हजार वष का काम नह है, तो इनको पता नह है। इनको पता नह है, हजार वष का काम नह है। और फर इस आदमी ने दस-प ीस अलग-अलग तरह के लोग से मलकर कुछ इक ा कया है। उसम कई यं के सामान यह ले आया है। वे सब अपनी-अपनी जगह ठीक थे, ले कन सब इक े होकर बड़े अजीब हो गए ह। उनम से कभी कोई कसी पर काम कर जाता है, ले कन पूरा कसी पर काम नह कर पाता। इस लए गुर जएफ के पास जतने लोग ने काम कया, पूणता पर उनम से कोई भी नह प ं च सका। वह प ं च नह सकता। क जब वह आता है तो कोई चीज एक काम कर जाती है उस पर, तो वह उ ुक तो हो जाता है और वेश कर जाता है, ले कन सरी चीज उलटा काम करने लगती ह। क स म जो है, पूरी क पूरी स म नह है एक। कहना चा हए क म ी- स का ब त कुछ उसम ले लया है उसने। अ ा और कुछ स का उसे बलकुल पता नह है। उसके पास उनक जानकारी नह है। उसक ादा जानकारी सूफ दरवेश से है। उसे तबेतन योग का कोई वशेष पता नह है; उसे हठयोग का भी कोई ब त वशेष पता नह है। जो उसने सुना है, वह भी वरो धय के मुंह से सुना है; वह भी दरवेश से सुना है। वह हठयोगी नह है। तो उसक जो जानकारी हठयोग के बाबत या कुंड लनी के बाबत जो भी जानकारी है, वह न के मुंह से सुनी गई जानकारी है, वपरीत पथगा मय के ारा सुनी गई जानकारी है। उस जानकारी के आधार पर वह जो कह रहा है वह ब त अथ म तो कभी असंगत ही हो जाता है। जैसे कुंड लनी के बाबत तो उसने नपट नासमझी क बात कही; उसका उसे कुछ पता ही नह है। वह उसको कुंडा-बफर ही कहे चला जा रहा है। और बफर अ ा श नह है। वह यह कह रहा है क कुंड लनी एक ऐसी चीज है, जसके कारण आप ान को उपल नह हो पाते, वह बफर क तरह काम कर रही है। और उसको पार करना ज री है। उसे मटाकर पार कर जाना ज री है। इस लए उसको जगाने क तो चता म ही मत पड़ना।

अब उसे पता ही नह है क वह ा कह रहा है। बफस ह म, ऐसी चीज ह जनक वजह से हम कई तरह के शॉ झेल जाते ह। कुंड लनी वह नह है; कुंड लनी तो शॉक है। मगर उसे पता नह है। कुंड लनी तो खुद बड़े से बड़ा शॉक है। जब कुंड लनी जगती है तो आपको बड़े से बड़ा शॉक लगता है आपके म। बफर और ह सरे आपके भीतर, जनसे वह शॉक ए ाबस क तरह वे काम करते ह; वे पी जाते ह उसे। उन बफस को तोड़ने क ज रत है। ले कन वह उसको ही बफर समझ रहा है। और उसका कारण है क उसे कुछ पता नह है। अनुभव तो है ही नह उसे उसका, जनको अनुभव है उनके पास बैठकर उसने कोई बात भी नह सुनी। और इस लए कई दफे बड़ी अजीब हालत हो जाती ह। गुर जएफ, कृ मू त, इन सब के साथ ब त अजीब हालत हो गई है। इनके साथ अजीब हालत यह है क वे जो सी े स ह उन श के पीछे और उन श य के पीछे, उनका कभी भी उ कोई व त ान नह हो सका। और क ठन भी ब त है। असल म, एक ज म संभव भी नह है। अगर एक आदमी दस-बीस ज म दस-बीस व ाओं के बीच बड़ा हो, तभी संभव है; नह तो संभव नह है। दस-बीस ज म दस-बीस व ाओं के बीच बड़ा हो, तब कह कसी अं तम ज म वह उन सब के बीच कोई सथी सस खोज सकता है, नह तो नह खोज सकता। ले कन आमतौर से ऐसा होता है क एक आदमी एक व ा से प ं च जाता है तो सरा ज ही ले? बात ही ख हो गई। इस लए सथी सस नह हो पाती। और इधर म सोचता ं इस पर, इस पर कभी काम करने जैसा है क सारी नया क व ाओं के बीच एक सथी सस संभव है। अलग-अलग छोर से पकड़ना पड़ेगा; घटनाएं वही घटती ह, ले कन अलग-अलग तरक ब ह उनको घटाने क । झेन फक र के अनोखे उपाय अब जैसे झेन फक र है, वह एक आदमी को खड़क से उठाकर फक देगा। सफ जनेस पैदा होती है, और कुछ नह । ले कन वह कह देगा, ाणायाम क कोई ज रत नह है; यह भ का से ा होगा? उसका कारण है। ले कन भ का से नह होगा तो एक आदमी को खड़क से फकने से ा होगा? बु से, महावीर से जाकर कहो, कसी को खड़क से फकने से ान हो गया। तो वे कहगे, पागल! आदमी रोज गर जाते ह मकान से, कह ान होता है! ले कन गरना एक बात है, फका जाना बलकुल सरी बात है। जब एक आदमी मकान से गरता है तो यह वैसा ही है जैसे एक आदमी पागल हो गया। ले कन जब हम चार आदमी उठाकर काकू भाई को बाहर फक द खड़क के, और काकू भाई जानते ह क ये फके जा रहे ह, तो एक जनेस अनुभव होगी। जब वे गरते ह जमीन पर और जाते ह फके ए, तब पूरे व अवेयर होते ह क यह ा हो रहा है। उस व फौरन वे अलग हो जाते ह, बॉडी से अलग हो जाते ह। अब एक झेन गु के पास गए, उसने एक डंडा उठाकर खोपड़ी पर मार दया आपके। ज है! आप गए थे क भाई, मुझे आ -शां त चा हए, उसने एक डंडा मार दया। एकदम जनेस पैदा हो गई। ले कन ह ान म नह पैदा होगी। अगर आप यहां डंडा

मारगे तो वह आदमी भी आपको डंडा मार देगा; वह लड़ने के लए तैयार हो जाएगा। जापान म सफ होगी, क जापान म उसक व ा खयाल म आ गई लोग को क झेन फक र डंडा मारकर भी कुछ कर सकता है। अब एक फक र है, और आप गए ह और वह आपको मां-बहन क गाली देने लगा! वह जनेस पैदा कर देगा उससे। कहां आप गए थे ानी के पास, और वह मां-बहन क गाली दे रहा है खुले आम आपको। ले कन आपको पता हो तो। पता न हो तो आपको द त पड़ जाएगी। आप दोबारा जाएं गे नह , क यह आदमी गलत है, गाली बकता है। ले कन उस व ा के भीतर उसका भी उपयोग कया गया है। वह गाली बककर भी जनेस पैदा कर देगा। एक फक र थे, गाडरवाड़ा के पास एक जगह है सा खेड़ा। तो वे कुछ भी कर सकते थे। वे गाली भी बकते थे; और आप सब बैठे ह, खड़े होकर सब के सामने पेशाब करने लग! मगर बड़ा ज हो जाता। एकदम ज हो जाता था क वे खड़े होकर यह पेशाब करने लग-और आप एकदम च ककर खड़े हो जाएं । एकदम ज हो जाएगी इस कमरे क हालत-यह ा हो गया! वे गाली तो देते ही थे, मारने भी दौड़ते थे। और मारगे तो मील तक दौड़ते चले जाएं गे उस आदमी के पीछे। ले कन जो उनके पास जाते थे और जो समझने लगे थे, उनको ब त लाभ हो गया। जो नह समझते थे, वे समझे पागल आदमी है। पर नह जो समझते उनसे कोई लेना-देना भी ा है! जो समझते थे उनको फायदा हो गया। क जस आदमी के पीछे वे दो मील दौड़ते चले गए, उसको ब त ज हालत म खड़ा कर दया। और हजार क भीड़ दौड़ रही है, और वे उसको मारने दौड़ रहे ह, अ ◌ौर वह आदमी भागा जा रहा है। अब यह पूरा ज एटमा यर हो गया! ब त सी व ाओं से वही कया जा सकता है। सरी व ावाले को कभी पता नह चलता। और क ठनाई एक और है: अगर पता भी हो, कई बार पता भी हो, जैसे मेरे को कुछ पता है अगर, तब भी जब म एक व ा क बात कर रहा ं तो मुझे ए ीम पर बात करनी पड़ती है, नह तो उसका प रणाम नह होगा। अगर मुझे पता भी है क सरी बात से भी हो सकता है, ले कन जब म एक बात कह रहा ं तो म क ं गा क कसी से नह हो सकता, इसी से होगा। कारण है वह भी। कारण है, क आपके पास दमाग नह क आप इतना सब.सबसे होगा, ऐसा समझकर आपको ऐसा ही लगेगा क कसी से नह होगा। और वे सब इतनी वपरीत व ाएं ह क सबसे कैसे होगा, आप इसी झंझट म पड़ जाएं गे। इस लए ब त बार तो ा नय को भी, जो जानते भी ह, उनको भी अ ानी क भाषा बोलनी पड़ती है। उनको कहना पड़ता है: सफ इसी से होगा, और कसी से नह हो सकता! इस लए म तो ब त मु ल म पड़ गया ं । म ब त मु ल म पड़ गया ं , जानता ं : उससे भी हो सकता है। उससे भी यह हो सकता है।

कम

: 10 आं त रक पांतरण के त : ओशो, कल क चचा म आपने कहा क श का कुंड ेक का अलग-अलग नह है । ले कन कुंड लनी जागरण म तो साधक के शरीर म त कुंड से ही श ऊपर उठती है । तो ा कुंड अलग-अलग ह या कुंड एक ही है , इस इस त को कृपया समझाएं ।

ऐसा है, जैसे एक कुएं से तुम पानी भरो। तो तु ारे घर का कुआं अलग है, मेरे घर का कुआं अलग है, ले कन फर भी कुएं के भीतर के जो झरने ह वे सब एक ही सागर से जुड़े ह। तो अगर तुम अपने कुएं के ही झरने क धारा को पकड़कर खोदते ही चले जाओ, तो उस माग म मेरे घर का कुआं भी पड़ेगा, और के घर के कुएं भी पड़गे, और एक दन तुम वहां प ं च जाओगे जहां कुआं नह , सागर ही होगा। जहां से शु होती है या ा वहां तो है, और जहां समा होती है या ा वहां बलकुल नह है, वहां सम है; इं ड वजुअल से शु होती है और ए ो ूट पर ख होती है। तो अगर या ा का ारं भक ब पकड़ोगे, तब तो तुम अलग हो, म अलग ं ; और अगर इस या ा का चरम ब पकड़ोगे, तो न तुम हो, न म ं । और जो है, हम दोन उसके ही ह े और टुकड़े ह। तो जब तु ारे भीतर कुंड लनी का आ वभाव होगा तो वह पहले तो तु क ही मालूम पड़ेगी, तु ारी अपनी मालूम पड़ेगी। भावतः, कुएं पर तुम खड़े हो गए हो। ले कन जब कुंड लनी का आ वभाव बढ़ता चला जाएगा, तब तुम धीरे -धीरे पाओगे क तु ारा कुआं तु ारा ही नह है, वह और से भी जुड़ा है। और जतनी तु ारी यह गहराई बढ़ती जाएगी उतना ही तु ारा कुआं मटता जाएगा और सागर होता जाएगा। अं तम अनुभव म तुम कह सकोगे क यह कुंड सबका था। तो इसी अथ म मने कहा क.इसी भां त हम क तरह अलग-अलग मालूम हो रहे ह। आ ा से परमा ा म छलांग ऐसा समझो क एक वृ का एक प ा होश म आ जाए, तो उसे पड़ोस का जो प ा लटका आ दखाई पड़ रहा है, वह सरा मालूम पड़ेगा। उसी वृ क सरी शाखा पर लटका आ प ा उसे यं कैसे मालूम पड़ सकता है क यह म ही ं ! सरी शाखा भी छोड़ द, उसी शाखा पर लगा आ सरा प ा भी उस वृ के प े को कैसे लग सकता है क म ही ं ! उतनी री भी छोड़ द, उसी के बगल म, पड़ोस म लटका आ जो प ा है, वह भी सरा ही मालूम पड़ेगा; क प े का भी जो होश है, वह का है। फर प ा अपने भीतर वेश करे , तो ब त शी वह पाएगा क म जस डंठल से लगा ं ,

उसी डंठल से मेरे पड़ोस का प ा भी लगा है, और हम दोन क ाणधारा एक ही डंठल से आ रही है। वह और थोड़ा वेश करे , तो वह पाएगा क मेरी शाखा ही नह , पड़ोस क शाखा भी एक ही वृ के दो ह े ह और हमारी जीवनधारा एक है। वह और थोड़ा नीचे वेश करे और वृ क स पर प ं च जाए, तो उसे लगेगा क सारी शाखाएं और सारे प े और म, एक ही के ह े ह। वह और वृ के नीचे वेश करे और उस भू म म प ं च जाए जस भू म से पड़ोस का वृ भी नकला आ है, तो वह अनुभव करे गा क म, मेरा यह वृ , मेरे ये प े, और यह पड़ोस का वृ , ये हम एक ही भू म के पु ह, और एक ही भू म क शाखाएं ह। और अगर वह वेश करता ही जाए, तो यह पूरा जगत अंततः उस छोटे से प े के अ का अं तम छोर होगा। वह प ा इस बड़े अ का एक छोर था! ले कन छोर क तरह होश म आ गया था तो था, और सम क तरह होश म आ जाए तो नह है। तो कुंड लनी के पहले जागरण का अनुभव तु आ ा क तरह होगा और अं तम अनुभव तु परमा ा क तरह होगा। अगर तुम पहले जागरण पर ही क गए, और तुमने घेराबंदी कर ली अपने कुएं क , और तुमने भीतर खोज न क , तो तुम आ ा पर ही क जाओगे। इस लए ब त से धम आ ा पर ही क गए ह। वह परम अनुभव नह है; वह अनुभव क आधी ही या ा है। और थोड़ा आगे जाएं गे तो आ ा भी वलीन हो जाएगी और तब परमा ा ही शेष रह जाएगा। और जैसा मने तुमसे कहा क और अगर आगे गए तो परमा ा भी वलीन हो जाएगा, और तब नवाण और शू ही शेष रह जाएगा--या कहना चा हए, कुछ भी शेष नह रह जाएगा। तो परमा ा से भी जो एक कदम आगे जाने क जनक संभावना थी, वे नवाण पर प ं च गए ह; वे परम शू क बात कहगे। वे कहगे: वहां जहां कुछ भी नह रह जाता। असल म, सब कुछ का अनुभव जब तु होगा, तो साथ ही कुछ नह का अनुभव भी होगा। जो ए ो ूट है, वह न थगनेस भी है। शू और पूण: एक के ही दो नाम इसे ऐसा हम समझ.शू और पूण एक ही चीज के दो नाम ह, इस लए दोन कनवटबल ह। शू पूण है। तुमने अधूरा शू न देखा होगा। आधा शू तुम नह कर सकते हो। अगर तुमसे हम कह क शू को आधा कर दो, दो टुकड़े कर दो! तो तुम कहोगे, यह कैसे हो सकता है? एक के दो टुकड़े हो सकते ह, दो के दो टुकड़े हो सकते ह, शू के दो टुकड़े नह हो सकते। शू के टुकड़े ही नह हो सकते। और जब तुम कागज पर एक शू बनाते हो तो वह सफ तीक है; वह तु ारे बनाते ही शू नह रह जाता, क तुम रे खा बांध देते हो। इस लए यू ड से पूछोगे तो वह कहेगा क शू हम उसे कहते ह, जसम न लंबाई है, न चौड़ाई है। ले कन तुम तो कतना ही छोटा सा ब भी बनाओगे, तो उसम भी लंबाईचौड़ाई होगी। इस लए वह सफ सबा लक है, वह असली ब नह है; क असली ब म तो लंबाई-चौड़ाई नह हो सकती। लंबाई-चौड़ाई होगी तो फर ब नह रह जाएगा। इस लए उप नषद कह सके क शू से तुम नकाल लो शू भी, तो भी पीछे शू ही

शेष रह जाता है। उसका मतलब यह है क तुम नकाल नह सकते उसम से कुछ। तुम अगर पूरे शू को भी लेकर भाग जाओ तब भी पीछे पूरा शू ही शेष रह जाएगा। तुम आ खर म पाओगे, चोरी बेकार गई; तुम उसे लेकर भाग नह सके; वह वह शेष रह गया। ले कन जो शू के संबंध म सही है, वही पूण के संबंध म भी सही है। असल म, पूण क कोई क ना सवाय शू के और नह हो सकती। पूण का मतलब है: जसम अब और आगे वकास नह हो सकता। शू का मतलब है: जसम अब और नीचे पतन नह हो सकता। शू के और नीचे उतरने का उपाय नह , पूण के और आगे जाने का उपाय नह । तुम पूण के भी खंड नह कर सकते; तुम शू के भी खंड नह कर सकते। पूण क भी कोई सीमा नह हो सकती; क जब भी कसी चीज क सीमा होगी तब वह पूण नह हो सकेगा। क उसका मतलब आ क सीमा के बाहर फर कुछ शेष रह जाएगा। और अगर कुछ बाहर शेष रह गया तो पूणता कैसी? फर यह अपूणता हो जाएगी। जहां मेरा घर ख होता है, तु ारा घर शु हो जाता है। मेरे घर क सीमा पर मेरा घर समा होता है और तु ारा शु होता है। अगर मेरा घर पूण है, तो तु ारा घर मेरे घर के बाहर नह हो सकता। तो पूण क कोई सीमा नह हो सकती, क कौन उसक सीमा बनाएगा? सीमा बनाने के लए हमेशा नेबर चा हए; सीमा बनाने के लए कोई पड़ोसी चा हए। और पूण है अकेला; उसका कोई पड़ोसी नह है, जससे उसक सीमा इं गत हो सके। सीमा दो बनाते ह, एक नह --यह खयाल रखना; सीमा बनाने के लए दो चा हए। जहां म समा होऊं और कोई शु हो, वहां सीमा बनेगी। अगर कोई शु ही न हो तो म समा भी न हो सकूंगा। और अगर म समा ही न हो सकूं, हो ही न सकूं समा , तो फर मेरी कोई सीमा न बनेगी। पूण क कोई सीमा नह है, क कौन उसक सीमा बनाए? शू क कोई सीमा नह है; क जसक सीमा हो जाती है, वह कुछ हो गया, वह शू कैसे रहा? तो अगर इसे ब त ठीक से समझोगे तो शू और पूण जो ह, वे एक ही चीज को कहने के दो ढं ग ह। और शू : दो ओर से या ा तो धम भी दो तरफ से या ा कर सकता है: या तो तुम पूण हो जाओ, या तुम शू हो जाओ। दोन तय म तुम वही हो जाओगे जो होने क बात है। तो जो पूण क या ा करनेवाला है, या पूण श को ेम करता है, पा ज टव को ेम करता है, वह कहेगा--अहं ं ! वह यह कह रहा है क म ही ं । यह सब जो है, यह म ही ं । और ा !म मेरे अ त र कोई तू नह है; सब तू मने अपने म म घेर लए ह। अगर यह हो सके तो यह बात हो जाएगी। ले कन अं तम चरण म म को भी खोना पड़ेगा, क जब कोई तू नह है तो तुम कैसे ं? कहोगे क म ही क म क उदघोषणा तू क मौजूदगी पर ही साथक है। और ं। जब तुम ही हो, तो यह कहना भी ब त अथ का नह रह जाएगा क म क इसम भी दो क ीकृ त है-क और मेरी। तो अंत म म भी थ हो जाएगा, भी थ हो जाएगा और चुप हो जाना पड़ेगा।

सरा एक माग है क तुम कहो.इतने मट जाओ तुम क तुम कह सको, म ं ही नह । ं अथात म सब ं । सरी या ा है जसम तुम कह सको एक जगह तुम कह सके, म क म ं ही नह , कुछ भी नह है; सब परम शू है। ले कन इससे भी तुम वह प ं च जाओगे। और प ं चकर तुम यह भी न कह सकोगे क म नह ं । क म नह ं , यह कहने के लए भी म का होना ज री है। तो म खो जाएगा। तुम यह भी न कह सकोगे क सब शू है; क यह कहने के लए भी सब भी होना चा हए और शू भी होना चा हए। तब तुम फर चुप हो जाओगे। तो या ा चाहे कह से हो--चाहे वह पूणता क तरफ से हो, चाहे शू ता क तरफ से हो-ले कन वह परम मौन म ले जाएगी, जहां बोलने को कुछ भी नह बचेगा। इस लए कहां से कोई जाता है, यह बड़ा सवाल नह है; कहां प ं चता है, यह जांचने क बात है। उसक अं तम मं जल पकड़ी जा सकती है, पहचानी जा सकती है। अगर वह यहां प ं च गया तो वह जहां से भी गया हो, ठीक ही रा े से गया है। कोई रा ा गलत नह है, कोई रा ा ठीक नह है--इस अथ म क जो प ं चा दे वह ठीक है। और प ं चना यहां है। ले कन ाथ मक अनुभव कह से भी म से ही शु होगा, क हमारी वह त है; वह गवेन सचुएशन है, जहां से हमको चलना है। तो चाहे हम कुंड लनी को जगाएं , तो भी वह गत मालूम पड़ेगी; चाहे ान म जाएं , तो भी वह गत मालूम पड़ेगा; चाहे शांत ह तो गत होगा; जो कुछ भी होगा वह गत होगा, क अभी हम ह। ले कन जैसे-जैसे इसम वेश करोगे, भीतर जतने गहरे उतरोगे, मटता जाएगा। और अगर बाहर गए, तो बढ़ता चला जाएगा। का अं तम छोर जैसे समझ लो क एक आदमी कुएं पर खड़ा है। अगर वह कुएं म भीतर जाए, तो एक दन सागर म प ं च जाएगा। और अनुभव करे क कुआं तो नह था.असल म कुआं है ा? ज ए होल सागर को झांकने के लए। और ा है? कुएं का और अथ ा है? एक छेद है जससे तुम सागर को झांक लेते हो। अगर तुम पानी को कुआं समझते हो तो गलती समझते हो, पानी तो सागर ही है। हां, वह छेद जससे तुमने झांका है, वह है कुआं। तो वह जो छेद है, वह जतना बड़ा होता जाए, सागर उतना बड़ा दखाई पड़ने लगेगा। ले कन अगर तुम कुएं के भीतर वेश न कए और कुएं से र हटते चले गए, तो तु कुएं का पानी भी दखाई पड़ना थोड़ी देर म बंद हो जाएगा। फर तो वह जो कुएं का छेद है और पाट है, वही दखाई पड़ेगा। और उसका सागर से कभी तुम तालमेल न कर पाओगे। एकदम तुम सागर के कनारे भी प ं च जाओ, तो भी तुम यह तालमेल न बठा पाओगे क वह जो कुएं म झांका था वह और यह सागर एक हो सकता है। अंतया ा तो तु एकता पर ले जाएगी, ब हया ा तु अनेकता पर ले जाएगी। ले कन सभी अनुभव का ारं भक छोर होगा, कुआं होगा; अं तम छोर अ होगा--या परमे र कहो--सागर होगा। इस अथ म मने कहा: अगर तुम गहरे जाओगे तो कुंड जो है तु ारा नह रह जाएगा; कुछ भी तु ारा नह रह जाएगा। कुछ भी नह रह जा सकता है। पीड़ा कुएं क , आनंद सागर का

: ओशो, अगर शू ज रत

को ही उपल ा है ?

होना है तो कुंड लनी जगाने क ज रत

ा है ? और साधना क

यह जो बात है न, क तु समझ म आ रहा है क शू यानी कुछ भी नह , इस लए साधना क ा ज रत? कुछ हो तो ज रत है। तु खयाल म आ रहा है क शू यानी ना-कुछ हो गए। तो साधना क ा ज रत? साधना क ज रत तो तब लगती है, जब कुछ हम हो जाएं । ले कन तु यह पता नह क शू का मतलब है पूण; शू का मतलब है सब कुछ। शू का मतलब कुछ नह नह , सब कुछ। ले कन अभी तु ारे खयाल म नह आ सकता क शू यानी सब कुछ का ा मतलब होता है। एक कुआं भी कह सकता है क अगर सागर क तरफ जाने का मतलब इसी बात का पता चलना है क म ं ही नह , तो म जाऊं ही ? यह ठीक कह रहा है कुआं। यह कहे क अगर म सागर क तरफ जाऊं और आ खर म यही पता चलना है क म ं ही नह , तो म जाऊं ? ले कन तु ारे न जाने से फक नह पड़ता है। तुम नह हो, एक बात; तु ारे जाने, न जाने का सवाल नह । न जाओ, कुएं पर ही के रहो, कुएं ही बने रहो, ले कन तुम हो नह कुआं। यह झूठ है सरासर। यह झूठ तु ख देता रहेगा। यह झूठ तु पीड़ा देता रहेगा। यह झूठ तु बांधे रहेगा। इस झूठ म आनंद क कोई संभावना नह है। कुआं मटे गा ज र सागर तक जाकर, ले कन मटते ही उसक सारी चता, ख, सब मट जाएगा; क वह उसके कुएं और होने से बंधा था, उसक ईगो और अहं कार से बंधा था। और हम तो ऐसा लगेगा क कुआं जाकर सागर म मट गया, कुछ भी नह आ। ले कन कुएं को थोड़े ही ऐसा लगेगा। कुआं तो कहेगा क म सागर हो गया। कौन कहता है, म मट गया! यह तो जो नह गया कुआं, पड़ोस का जो कुआं नह गया वह उससे कहेगा, पागल! कहां जाता है? वहां तो मट ही जाना है, तो जाना ? ले कन जो गया है, वह कहेगा: कौन कहता है, मट जाना है! म तो मटूंगा एक अथ म--कुएं के अथ म, ले कन सागर के अथ म हो भी जाऊंगा। इस लए चुनाव कुआं बने रहने का या सागर होने का है सदा; ु से बंधे रहने का या वराट के साथ एक हो जाने का है। ले कन वह अनुभव क बात है। और अगर कुएं ने कहा क म मटने से डरता ं , तो फर तो उसको सागर से सब संबंध छोड़ लेने पड़गे; क उन संबंध म सदा भय है क कभी भी पता न चल जाए क म सागर ं । तो उसको सब अपने झरने तोड़ लेने पड़गे, क वे झरने सब सागर तक जाते ह। या उसे झरने क तरफ से आंख मोड़ लेनी पड़ेगी। वह सदा बाहर देखता रहे, भीतर न देखे भूलकर; क भीतर देखने से कभी भी संभावना है क उसे पता चल जाए क अरे , म नह ं , सागर ही है। तो फर वह बाहर देख।े और झरने जतने छोटे ह , उतने अ े; क उनसे भीतर जाना कम आसान रह जाएगा। जतने सूखे ह , उतने अ े; बलकुल सूख जाएं तो और भी अ े। ले कन तब कुआं मरे गा। समझेगा क म बचा रहा ं अपने को, ले कन मरे गा।

मटना ब त आनंदपूण है जीसस का वचन है क जो अपने को बचाएगा, वह मटे गा; और जो मटाएगा, वही केवल बच सकता है। तो यह तो हमारे मन म सवाल उठता ही है क मट जाएं गे, वहां जाएं ? वहां जाएं , मट जाएं गे! तो अगर यह.अगर मटना ही हमारा स है, तो ठीक है। और बचाने से कैसे बचगे? अगर सागर म प ं चकर मटना होता है तो कुएं बने रहकर कतने दन बच सकोगे? इतना बड़ा सागर होकर भी मटना हो जाता है तो इतने से कुएं को कैसे बचाओगे? कतने दन बचाओगे? ज ी इसक ट गर जाएं गी, ज ी इस पर म ी गरे गी, ज ी इसका पानी सूख जाएगा। जब सागर म भी न बच सकोगे, तो कुएं म कैसे बचोगे? और कतनी देर बचोगे? इसी से मृ ु का भय पैदा होता है। वह कुएं का भय है। सागर से मलना नह चाहता, क उसम डर है मटने का, इस लए सागर से अपने को र कर लेता है और कुआं बन जाता है। और फर मौत का भय सताने लगता है, क सागर से जैसे ही टूटा क मरने क त करीब आने लगी; क सागर से जुड़कर जीवन है। तो इस लए हम सब मृ ु से भयभीत ह, डरे ए ह क कह मर न जाएं । मरना पड़ेगा। और दो ही तरह के मरने ह: या तो तुम सागर म कूदकर मर जाओ। वह मरना ब त आनंदपूण है; क मरोगे नह , सागर हो जाओगे। और एक यह क तुम कुएं को जोर से पकड़े बैठे रहो--सूखोगे, सड़ोगे, मट जाओगे। हमारा मन कहता है: कोई लोभन चा हए-ा, मलेगा ा जसक वजह से हम सागर म जाएं ? ा मलेगा जससे हम समा ध को खोज, शू को खोज? मलेगा ा? हम पहले पूछते ह, मलेगा ा? हम इसको पूछते ही नह क इस मलने क दौड़ म हमने अपने को खो दया है। सब तो मल गया है-मकान मल गया है, धन मल गया है--वह सब मल गया है और हम खो गए ह; हम बलकुल नह ह वहां। तो अगर मलने क भाषा म पूछते हो तो म क ं गा क अगर खोने को तैयार हो जाओ तो तुम तुमको मल जाओगे। अगर खोने को तैयार नह हो, बचाने क को शश क , तो तुम खो जाओगे और सब बच जाएगा; और ब त सी चीज बच जाएं गी, बस तुम खो जाओगे। ती ास से ाण-ऊजा म वृ : ओशो, आपने कहा था क डीप ी दग लेने से ऑ ीजन और काबन डाइआ ाइड का अनुपात बदल जाता है । तो इस अनुपात के बदलने का कुंड लनी जागरण के साथ कैसे संबंध है ?

ब त संबंध है। एक तो हमारे भीतर जीवन और मृ ु दोन क संभावनाएं ह। उसम जो ऑ ीजन है वह हमारे जीवन क संभावना है, और जो काबन है वह हमारी मृ ु क संभावना है। जब ऑ ीजन ीण होते-होते-होते-होते समा हो जाएगी और सफ काबन रह जाएगी तु ारे भीतर, तो तुम लाश हो जाओगे। ऐसे ही, जैसे क हम एक लकड़ी को जलाते ह। जब तक ऑ ीजन मलती है, जलती चली जाती है। आग होती है,

जीवन होता है। फर ऑ ीजन चुक गई, आग चुक गई, फर कोयला, काबन पड़ा रह जाता है पीछे। वह मरी ई आग है। वह जो कोयला पड़ा है पीछे, वह मरी ई आग है। तो हमारे भीतर दोन का काम चल रहा है पूरे समय। भीतर हमारे जतनी ादा काबन होगी, उतनी ही लथाज होगी, उतनी सु ी होगी। इस लए दन म न द लेना मु ल पड़ता है, रात म आसान पड़ता है; क रात म ऑ ीजन क मा ा कम हो गई है और काबन क मा ा बढ़ गई है। इस लए रात म हम सरलता से सो जाते ह और दन म सोना इतना सरल नह पड़ता, क ऑ ीजन ब त मा ा म है। ऑ ीजन हवा म ब त मा ा म है। सूरज के आ जाने के बाद ऑ ीजन का अनुपात पूरी हवा म बदल जाता है। सूरज के हटते ही से ऑ ीजन का अनुपात नीचे गर जाता है। इस लए अंधेरा जो है, रा जो है, वह तीक बन गया है सु ी का, आल का, तमस का। सूय जो है वह तेजस का तीक बन गया है, क उसके साथ ही जीवन आता है। रात सब कु ला जाता है--फूल बंद हो जाते, प े झुक जाते, आदमी सो जाता--सारी पृ ी एक अथ म टे ेरी डेथ म चली जाती है, एक अ ायी मृ ु म समा जाती है। सुबह होते ही से फर फूल खलने लगते, फर प े जी वत हो जाते, फर वृ हलने लगते, फर आदमी जगता, प ी गीत गाते--सब तरफ फर पृ ी जागती है; वह जो टे ेरी डेथ थी, वह जो अ ायी मृ ु थी रात के आठ-दस घंटे क , वह गई; अब जीवन फर लौट आया है। तो तु ारे भीतर भी ऐसी घटना घटती है क जब तु ारे भीतर ऑ ीजन क मा ा ती ता से बढ़ती है, तो तु ारे भीतर जो सोई ई श यां ह वे जगती ह; क सोई ई श यां को जगने के लए सदा ही ऑ ीजन चा हए-- कसी भी तरह क सोई ई श य को जगने के लए। अब एक आदमी मर रहा है, मरने के बलकुल करीब है, हम उसक नाक म ऑ ीजन का स लडर लगाए ए ह। उसे हम दस-बीस घंटे जदा रख लगे। उसक मृ ु घट गई होती दस-बीस घंटे पहले, ले कन हम उसे दस-बीस घंटे ख च लगे। वष, दो वष भी ख च सकते ह, क उसक बलकुल ीण होती श य को भी हम ऑ ीजन दे रहे ह तो वे सो नह पा रह । उसक सब श यां मौत के करीब जा रही ह, डूब रही ह, डूब रही ह, ले कन हम फर भी ऑ ीजन दए जा रहे ह। तो आज यूरोप और अमे रका म तो हजार आदमी ऑ ीजन पर अटके ए ह। और सारे अमे रका और यूरोप म एक बड़े से बड़ा सवाल है अथना सया का-- क आदमी को े ा-मरण का हक होना चा हए। क डा र अब उसको लटका सकता है ब त दन तक। बड़ा भारी सवाल है, क अब डा र चाहे तो कतने ही दन तक एक आदमी को न मरने दे। अ ा, डा र क तकलीफ यह है क अगर वह उसे जानकर मरने दे तो वह ह ा का आरोपण उस पर हो सकता है; वह मडर हो गया। यानी वह अभी ऑ ीजन देकर इस अ ी साल के मरते ए बूढ़े को बचा सकता है। अगर न दे, तो यह ह ा के बराबर जुम है। तो वह तो इसे देगा; वह इसे ऑ ीजन देकर लटका देगा। अब उसक जो सोती ई श यां ह वे काबन क कमी के कारण नह सो पाएं गी। समझ रहे हो न मेरा मतलब? अ धक ाण से अ धक जागृ त ठीक इससे उलटा ाणायाम और भ का और जसे म ास क ती या कह रहा

ं , उसम होता है। तु ारे भीतर तुम इतनी ादा जीवनवायु ले जाते हो, ाणवायु ले जाते हो क तु ारे भीतर जो सोए ए त ह वह तो जगने क मता उनक बढ़ जाती है, त ाल वे जगने शु हो जाते ह; और तु ारे भीतर जो सोने क वृ है, भीतर वह भी टूटती है। तुम तो हैरान होओगे, अभी मेरे पास कोई चार वष पहले सीलोन से एक बौ भ ु आया। वह तीन साल से सो नह सका। सब तरह के इलाज कए, वे काम नह कए। वे काम कर नह सकते थे, क वह एक अनापानसती योग का योग कर रहा था ास का--चौबीस घंटे गहरी ास पर ान रख रहा था। अब जसने उसे बता दया था उसे कुछ पता नह होगा क चौबीस घंटे गहरी ास पर अगर ान रखा जाएगा तो न द बलकुल वदा हो जाएगी; न द को लाया ही नह जा सकता। तो इधर तो वह चौबीस घंटे ास पर ान रख रहा है और उधर उसको दवाइयां दलवाए जा रहे ह। तो उसक बड़ी तकलीफ खड़ी हो गई; क उसके शरीर म कां पैदा हो गई। दवाइयां उसको सुला रही ह, और वह गहरी ास का जो योग चौबीस घंटे जारी रखे ए है, वह उसक श य को जगा रहा है। तो उसके भीतर ऐसी जच पैदा हो गई, जैसे क कोई कार म ए ीलरे टर और ेक दोन एक साथ दबाता हो। समझे न? तो वह तो ब त परे शानी म था। कसी ने मेरा उसको कहा तो वह मेरे पास आया। म उसको देखकर समझा क वह तो पागलपन म पड़ा है, यह तो कभी हो ही नह सकता। तो मने उससे कहा क अनापानसती योग बंद करो। तो उसने कहा, इससे ा संबंध है? तो उसे खयाल ही नह है क अगर ास का इतना ादा योग करोगे क ऑ ीजन इतनी मा ा म हो जाए क शरीर सो ही न सके, तो फर कैसे सोओगे! और या फर, मने उससे कहा क सोने का खयाल छोड़ दो और ये दवाइयां लेना बंद कर दो। और तु कोई ज रत नह है न द क । न द नह आएगी तो हज नह है। अगर यह योग जारी रखते हो तो न द नह आने से कोई हज नह होगा। एक आठ दन उसने योग बंद कया है क उसे न द आनी शु हो गई, कोई दवा क ज रत न रही। अ धक काबन से अ धक मू ा तो हमारे भीतर सोने क संभावना बढ़ती है काबन के बढ़ने से। इस लए जन- जन चीज से हमारे भीतर काबन बढ़ती है, वे सभी चीज हमारे भीतर सोई ई श य को और सुलाती ह। उतनी हमारी मू ा बढ़ती चली जाती है। जैसे नया म जतनी सं ा आदमी क बढ़ रही है उतनी मू ा का त ादा होता चला जाएगा; क जमीन पर ऑ ीजन कम और आदमी ादा होते चले जाएं गे। कल एक ऐसी हालत हो सकती है क हमारे भीतर जागने क मता कम से कम रह जाए। इस लए तुम सुबह ताजा अनुभव करते हो; एक जंगल म जाते हो, ताजा अनुभव करते हो; समु के तट पर तुम ताजा अनुभव करते हो। बाजार क भीड़ म सु ी छा जाती है, सब तमस हो जाता है; वहां ब त काबन है।

: ा नया ऑ

ीजन नह बनता है ?

नरं तर बन रहा है। ले कन हमारी भीड़, हमारी भीड़ म रहने क आदत, वे सारी ऑ ीजन को पीए चली जाती ह। तो इस लए जहां भी ऑ ीजन ादा है वहां तुम फु अनुभव करोगे--वह चाहे बगीचा हो, चाहे नदी का कनारा हो, चाहे पहाड़ हो--जहां भी ऑ ीजन ादा है, वहां तुम एकदम फु त हो जाओगे, हो जाओगे। जहां भीड़ है, भड़ ा है, सनेमागृह है--चाहे मं दर हो--वहां तुम एकदम से सु हो जाओगे; वहां मू ा पकड़ेगी। ती प रवतन से देखना सुगम तो तु ारे भीतर ऑ ीजन को बढ़ाने का योजन है। उससे तु ारे भीतर का संतुलन बदलता है--तुम सोने क तरफ उ ुख न रहकर जागने क तरफ उ ुख होते हो। और अगर यह मा ा तेजी से और एकदम बढ़ाई जा सके, तो तु ारे भीतर संतुलन म एकदम से इतना फक होता है जैसे तराजू का एक प ा जो नीचे लगा था, एकदम ऊपर चला गया; ऊपर का तराजू का प ा बलकुल नीचे आ गया। अगर झटके के साथ तु ारे भीतर का संतुलन बदला जा सके, तो उसका तु अनुभव भी ज ी होगा। अगर प ा ब त धीरे -धीरे -धीरे -धीरे आए, तु पता नह चलेगा क कब बदलाहट हो गई। इस लए म ती ास के योग के लए कह रहा ं -- क इतने जोर से प रवतन करो क दस मनट म तुम एक त से ठीक सरी त म वेश कर जाओ, और तुम साफ देख सको। क जतने ज ी चीज बदलती है, तभी देखी जा सकती है। जैसे क हम सब जवान से बूढ़े होते ह, ब े से जवान होते ह, ले कन हम कभी पता नह लगा पाते क कब हम ब े थे और कब जवान हो गए; और कब हम जवान थे और कब हम बूढ़े हो गए। अगर कोई तारीख हमसे पूछे क कस तारीख को आप जवानी से बूढ़े ए ह, तो हम तारीख न बता सकगे। ब बड़ी ां त चलती रहती है: बूढ़ा मन म समझ ही नह पाता क बूढ़ा हो गया; क उसक जवानी और उसके बुढ़ापे के बीच कोई गैप नह है, कोई ती ता नह है। ब ा कभी नह समझ पाता क अब वह जवान हो गया, वह अपने बचपन के ही ढं ग अ यार कए चला जाता है। सर को वह जवान दखने लगता है, उसको पता नह चला क वह जवान हो गया है। मां-बाप समझते ह: ज ेवार होना चा हए, यह होना चा हए, वह होना चा हए। वह अपने को ब ा समझे जा रहा है! क कभी ऐसी ती ता से कोई घटना नह घटी जसम उसको पता चले क अब वह ब ा नह रहा, अब जवान हो गया है। बूढ़ा आदमी जवान क तरह वहार कए चला जाता है। उसे पता नह चल पा रहा है क वह बूढ़ा हो गया। पता कैसे चले? क पता चलने के लए ती सं मण चा हए। अगर ऐसा हो क एक आदमी फलां तारीख को घंटे भर म जवान से बूढ़ा हो जाए, तो कसी को कहने क ज रत न होगी क तुम बूढ़े हो गए हो। एक ब ा एक घंटे म फलां तारीख को बीस साल का पूरा हो और एकदम जवान हो जाए, तो कसी को, बाप को

कहना न पड़ेगा क अब तु ारी उ बड़ी हो गई है, अब जरा यह बचपना छोड़ो। यह कसी को कहने क ज रत नह , वह खुद ही जान लेगा क बात घट गई है; अब म सरा आदमी ं। तो म इतना ही ती सं मण चाहता ं क तुम पहचान सको इन दो तय का फक क तु ारा सोया आ च , तु ारा सोया आ , वह तु ारी ी पग कांशसनेस; और यह तु ारी अवेकंड, जागी ई, बु चेतना। यह इतनी ती ता से, झटके से होना चा हए--जंप क तरह, छलांग क तरह-- क तुम पहचान पाओ क फक हो गया। यह पहचान काम पड़ेगी। यह पहचान ब त क मत क है। इस लए म ऐसे योग का प पाती ं जो तु ती ता से पांत रत करते ह । अगर ब त व ले ल, तो तुम कभी समझ न पाओगे क ा हो रहा है। और खतरा ा है क अगर तुम समझ न पाओ, तो हो सकता है थोड़ा-ब त पांतरण भी हो जाए, ले कन उससे तु ारी समझ गहरी न हो पाए। कई बार ऐसा हो जाता है; कई मौक पर ऐसा होता है क एक आदमी ब त बार ऐसा होता है क आ क अनुभव के ब त नकट प ं च जाता है अनायास, चलते-चलते कह से, ले कन झटके से नह , ती ता से नह , तो वह पकड़ नह पाता क ा आ। और उसक वह जो ा ा करता है वह कभी भी ठीक नह होती; क उसक ा ा के लए उतना फासला नह होता। ब त मौक पर ऐसी घटना घटती है जब क तुम करीब होते हो एक नये अनुभव के, ले कन तुम उसको टाल जाओगे; तुम उसक ा ा अपने पुराने हसाब म ही कर लोगे, क वह इतने धीरे -धीरे आ है क उसका कभी पता नह चलेगा। एक आदमी को म जानता ं क वह भस को उठा लेता है। उसके घर भस ह। और वह बचपन से, जब भस उसके घर म पैदा ई होगी तब से उसे उठाता रहा है रोज; उसे उठाकर घूमता रहा है। भस रोज धीरे -धीरे बड़ी होती गई है और रोज उसका भी उठाने का बल थोड़ा-थोड़ा बढ़ता चला गया। अब वह पूरी भस को उठा लेता है। अब वह चम ार मालूम होता है। हालां क उसको भी नह लगता क यह कोई चम ार है। सर को लगता है क बड़ा मु ल का मामला है, भस को उठा ले एक आदमी! मगर वह इतना मक आ है क उसे भी पता नह है। और हम यह चम ार दखता है, क हमारे लए बड़ा फासला मालूम हो रहा है दोन म; उसम कह तालमेल नह दखता है--हम उठा नह सकते, वह उठा रहा है! कुंड लनी का धन है ाण-ऊजा तो ती ता का योग इस लए कहता ं । और ाणवायु का तो ब त मू है। उसका तो ब त मू है। असल म, जतनी मा ा म तुम अपने शरीर को ाणवायु से, ऑ ीजन से भर लोगे, उतनी ही रा से, ीड से तुम शरीर के अनुभव से आ -अनुभव क तरफ झुक जाओगे। क अगर ब त ठीक से समझो तो शरीर तु ारा डेड एं ड है--यानी तु ारा वह ह ा, जो मर चुका है। इस लए वह दखाई पड़ रहा है। तु ारा वह ह ा जो स हो चुका है। इस लए दखाई पड़ रहा है। तु ारा वह ह ा जो अब तरल नह है, ठोस हो गया है। और आ ा तु ारा वह ह ा है जो तरल है, ठोस नह है; हवाई है, पकड़ म नह आता है।

तो जतनी ादा तु ारे भीतर ऊजा होगी ाण क , और जागरण और जीवन होगा, उतना ही तुम इन दोन के बीच साफ फासला कर पाओगे। ये दो ब त भ तम तु मालूम पड़गे, तु ारे ही--एक ह ा यह, एक ह ा वह-- बलकुल अलग मालूम पड़गे। इस लए ब त गहरा उपयोग है। : कुंड लनी जागरण के लए?

हां, कुंड लनी जागरण के लए। इस लए क कुंड लनी जो है, वह तु ारी सोई ई श है। उसको तुम काबन के साथ न जगा सकोगे; काबन उसे और सुला देगी। उसको जगाने के लए ऑ ीजन ब त सहयोगी है। इस लए जस तरह से भी हो सके.इस लए सुबह का ान नरं तर समझा गया है क सुबह का ान उपयोगी है। उसका कोई और ादा मू नह है। उसका मू इतना ही है क सुबह तुम थोड़ी भी ास लो तो भी ादा ऑ ीजन तु ारे भीतर प ं च जाती है। तो उधर सूय उगने के साथ घंटे भर पृ ी ब त ही अनोखी त म होती है। तो उस त का उपयोग करने के लए सुबह सारी नया म ान का व चुन लया गया। तु ारे भीतर जो सोई ई श है उस पर जतने जोर से ाणवायु क चोट होगी, उतनी ही शी ता से. हम दखाई नह पड़ता न! एक दीया जल रहा है, तो हम तो तेल दखाई पड़ता है, बाती दखाई पड़ती है; मा चस से आग लगाई, वह दखाई पड़ती है; ले कन जो जल रही है ऑ ीजन, वह भर नह दखाई पड़ती। न तेल मू का है उतना, न बाती उतने मू क है, न मा चस उतने मू क है। ले कन यह ह ा है; यह शरीर है उसका; यह दखाई पड़ता है। और ऑ ीजन जो जल रही है, वह दखाई नह पड़ती। मने सुना है क एक घर म ब े को छोड़ गए ह, और भगवान का मं दर है उस घर म, और दीया जलाकर रख गए ह, और जोर क तूफान क हवा आई है, तो उस ब े ने सोचा: बाप कह गया है, दीया बुझ न जाए। उसे चौबीस घंटे घर म वे जलाते ह। अब जोर क हवा है, ब ा ा करे ? तो उसने लाकर एक कांच का बड़ा बतन उस दीये पर ढांक दया। जोर क हवा से तो सुर ा हो गई, ले कन थोड़ी देर म दीया बुझ गया। अब वह बड़ी मु ल म पड़ गया। शायद उतनी तेज हवा को भी दीया झेल जाता, ले कन हवा के न होने को कैसे झेलेगा? वह मर ही गया। पर वह दखाई नह पड़ता न! हमारे भीतर भी जसको हम जीवन कह रहे ह, वह आ ीडाइजेशन ही है--उसी तरह, जैसे दीये के। असल म, अगर जीवन को हम वै ा नक अथ म ल, तो वह ाणवायु के जलने का नाम है। चाहे वह वृ म हो, चाहे आदमी म, चाहे दीये म, चाहे सूरज म--कह भी हो--जहां भी ाणवायु जल रही है, वहां जीवन है। तो जतना तुम ाणवायु को जला सको, उतनी तु ारी जीवन क ो त गाढ़ हो जाएगी। और तु ारी जीवन क ो त ही है कुंड लनी। वह उतनी ही गाढ़ होकर बहने लगेगी, उतनी ही ती हो जाएगी। तो उस पर ाणवायु का ती आघात प रणामकारी है। गुफा म साधना करने के सू कारण

: ओशो, समा ध के योग के लए गुफाओं का उपयोग कया जाता था। वहां तो ाणवायु कम रहती है !

असल म, ब त सी बात का आधार है समा ध म--ब त सी बात का। और जो लोग भी गुफाओं का योग करते ह समा ध के लए, उसम अगर और बात नह ह, तो समा ध म न जाकर वे मू ा म चले जाएं गे। और जसे वे समा ध समझगे, वह केवल गाढ़ तं ा होगी और मू ा क अव ा होगी। गुफा का उपयोग सफ वही कर सकता है, जसने ब त ाणायाम के ारा अपने को आ ीडाइज कया आ है क गुफा उसके लए बेमानी है। इस लए एक आदमी अगर ब त गहरा ाणायाम कया है, और उसके खून का कण-कण, रोआं-रोआं, रे शा-रे शा आ ीडाइज हो गया है, तो वह आठ दन जमीन के नीचे भी दब जाए तो मर नह जाएगा। और कोई कारण नह है। उसके शरीर को जतनी ऑ ीजन क ज रत है, उसके पास उतना अ त र संचय है। हमारे पास कोई अ त र संचय नह है। तो अगर तुम बना ाणायाम को समझे और उस आदमी क बगल म सो गए, तो तुम मरे ए नकलोगे, वह आदमी आठ दन के बाद जदा नकल आएगा। असल म, आठ दन के लए जो ूनतम, म नमम ऑ ीजन क ज रत है, उतना उसके पास संचय है, उतना वह पी गया है। तो गुफा म जा सकता है एक आदमी, और तब गुफा म उसको फायदे हो जाएं गे। ऑ ीजन को तो इस तरह पूरा कर लेगा, उसका उसे डर नह है ादा। और गुफा जो सुर ा देती है और ब त सी चीज से, वह उसके लए गुफा का उपयोग कर रहा है। गुफा ब त तरह क सुर ा देती है। बाहर के शोरगुल से ही नह , बाहर क ब त सी तरं ग से, बाहर क ब त सी वे स से। और प र क , और खास तरह के प र क गुफा के खास अथ ह। कुछ प र, कुछ वशेष प र, जैसे संगमरमर, कुछ तरं ग को भीतर व नह होने देता। इस लए संगमरमर का मं दर म वशेष योग कया गया। कुछ तरं ग उस मं दर के भीतर वेश नह कर सकत उस प र क वजह से। वह कारीगरी का उतना नह है मामला, उसके पीछे ब त गहरे अनुभव ह क कुछ प र कसी खास तरह क तरं ग को पी जाते ह, भीतर नह जाने देते ह। कुछ प र पर से कुछ खास तरह क तरं ग वापस लौट जाती ह; कुछ प र कुछ खास तरह क तरं ग को आक षत करते ह। तो वशेष तरह क गुफाएं वशेष आकार म काटी ग ; क आकार का भी बड़ा मू है। और वह आकार भी वशेष तरं ग को हटाने म सहयोगी होता है। पर हम खयाल म नह होता है। जब एक साइं स खो जाती है तो बड़ी मु ल हो जाती है। हम एक कार बनाते ह। कार को हम एक खास आकार म बनाते ह। अगर खास आकार म न बनाएं तो उसक ग त कम हो जाएगी। कार का आकार ऐसा होना चा हए क वह हवा को चीर सके, हवा से लड़ने न लगे। अगर आकार उसका चपटा हो सामने से और हवा से लड़ने लगे तो वह ग त को तोड़ेगा। अगर हवा को चीर सके--लड़े न, सफ तीर क

तरह चीरे , तो वह हवा के रे स स से जो उसक ग त को बाधा पड़ती है, वह तो पड़ेगी नह , ब चीरने क वजह से पीछे जो वै ूम पैदा होगा, वह भी उसक ग त को बढ़ाने म सहयोगी हो जाएगा। तुम इलाहाबाद का ज अगर कभी देखोगे, तो इलाहाबाद का ज ब त मु ल से बना। क वह गंगा उसके पलस को खड़ा न होने दे; वे पलस गरते ही चले गए। और एक पलर तो बनाना असंभव ही हो गया! सारे पलस बन गए, ले कन एक पलर नह बना। तो तुम वहां देखोगे क एक जूते के आकार का पलर है। ले कन जसने बनाया, उसे बड़ी मु ल ई। उसने जूते के आकार का पलर बनाया। तो वह गंगा का जो ध ा है, पी जाता है। जूते का आकार भी तु चलने म सहयोगी है; वह हवा को काटता है, रोकता नह । तो उस खयाल से जूते के आकार का पलर है। वह गंगा का जो ध ा था जो नी का, वह उसको ए ाब कर गया। गुफाओं के वशेष आकार, आयतन व प र का रह तो गुफाओं के वशेष आकार ह, वशेष आयतन ह। तो वशेष आकार, वशेष प र और वशेष आयतन। एक एक खास सीमा तक अपने को आरो पत कर सकता है। और वे अनुभव म आ जाते ह; उसके सारे रा े ह क वे खयाल म आ जाते ह; क अगर म आठ फ ट चौड़े और आठ फ ट लंबे चौकोर कमरे को अपने से आपू रत कर सकता ं , यानी म तो एक ही जगह बैठा र ं गा ले कन मेरे से नकलनेवाली सारी करण इतने ह े को घेरा बांधकर भर सकती ह, तो यह जगह बड़ी सुर त हो जाती है। इस लए इसम कम से कम रं होने चा हए, कम से कम ार--एक ही ार होगा। और इसके अपने आकार ह गे, और उन आकार क अपनी वशेषता होगी। तो बाहर के संवेदन को भीतर न आने दगे, और भीतर जो पैदा हो रहा है उसको बाहर न जाने दगे। फर अगर एक ही गुफा पर ब त साधक ने योग कया हो तब तो अदभुत फायदा होता है; उसका मू ही ब त बढ़ जाता है। वह वशेष तरह क सारी क सारी तरं ग वह गुफा पी जाती है और नये साधक के लए सहयोगी हो जाती है। इस लए हजार -हजार साल तक एक-एक गुफा का योग चला है। अब अजंता जब पहली दफा खोजा गया, तो वे सब म ी से बंद कर दी गई थ गुफाएं । उसके म ी से बंद करने के लए कारण था। खयाल म नह है क बंद कर दी ग । पर सब गुफाएं म ी म ढं क ई मल । सब म ी से बंद थ पूरी क पूरी। सैकड़ साल तक उनका कोई पता नह रहा था, वह पहाड़ ही रह गया था; क म ी भर दी गई थी और उस म ी पर वृ पैदा हो गए थे। और वे इस लए भर दी गई थ क जब साधक उपल नह हो सके, तो उन गुफाओं म जो वशेषता थी, उसको बचाने के लए और कोई रा ा नह रहा, तो उसे बंद कर दया गया। कभी भी कोई साधक खोजेगा तो फर काम म लाई जा सकती ह। ले कन वे व जटस के लए नह थ ; वे दशक के लए नह ह। दशक ने सब न कर दया; अब वहां कुछ भी नह है, दशक ने सब न कर दया। तो इन गुफाओं म ऑ ीजन का तो फायदा नह मलेगा तु । फायदे सरे ह। ले कन साधना तो ब त ज टल मामला है। उसके ब त ह े ह। पर उनके लए गुफा फायदे क हो सकती है, ज ने काफ योग कया है।

फर जो गुफा म बैठता था, वह गुफा म ही नह बैठा रहता था। समय-समय पर गुफा म था, समय-समय गुफा के बाहर था। जो बाहर करने यो था वह बाहर कर रहा था, जो भीतर करने यो था वह भीतर कर रहा था। मं दर ह, म द ह, वे कभी इसी अथ म खोजे गए थे क वहां एक वशेष तरह क तरं ग और कंपन का सं ह है; और उन तरं ग और कंपन का उपयोग कया जा सकता है। कह अचानक कसी ान पर तुम पाओगे क तु ारे वचार एकदम से बदल गए। हालां क तुम पहचान न पाओगे; तुम यही समझोगे क अपने भीतर ही कोई फक हो गया। तुम अचानक कसी आदमी के पास जाकर पाओगे क तुम सरे आदमी हो गए हो थोड़ी देर के लए; तु ारा कोई सरा पहलू ही ऊपर आ गया। तुम यही समझोगे क अपने भीतर ही कुछ हो गया है, मूड क बात है। ऐसा नह है; इतना आसान नह है। महापु ष के मृत शरीर भी मू वान और उसके लए बड़ी अदभुत.अब जैसे क परा म स ह। अब कतनी खोजबीन चलती है! उससे कोई संबंध नह है। अभी खोजबीन चलती है क परा म स कस लए बनाए गए? ा है? इतने-इतने बड़े परा म स उस रे ग ान म बनाने का ा योजन है? कतना म य आ है! कतनी श लगी है! और सफ आद मय क लाश गड़ाने के लए इतनी बड़ी क बनाना बलकुल बेकार है। वे सब के सब साधना के लए वशेष अथ म बनाए गए ान ह। और साधना के उपयोग के लए ही वशेष लोग क लाश भी वहां रखी ग । अभी त त म हजार-हजार, दो-दो हजार साल पुराने साधक क ममीज़ ह, जनको ब त गहरे म सुर त रखा आ है। जो शरीर बु के पास रहा हो, वह शरीर साधारण नह रह जाता। जस शरीर के साथ अ ी साल तक बु जैसी आ ा संबं धत रही हो, वह शरीर भी साधारण नह रह जाता; वह काया भी कुछ ऐसी चीज पी जाती है और ऐसी तरं ग पकड़ लेती है जो क अनूठी ह-- जनका क अब दोबारा शायद जगत म वैसा होगा क नह होगा, कहना क ठन हो जाता है। जीसस के मरने के बाद उनक लाश को एक गुफा म रख दया गया था क सुबह दफना दया जाएगा। ले कन वह लाश फर मली नह । और यह बड़ी म ी है ईसाई के लए क वह ा आ? वह कहां गई? फर कहानी है क वे कह देखे गए, दखाई पड़े। तो रसरे न आ; वे पुन ी वत हो गए। ले कन फर कब मरे ? पुन ी वत होकर फर उनका जीवन ा है? ईसाइय के पास उनक कोई कथा नह है। असल म, जीसस क लाश इतनी क मती है क उसे त ाल उन जगह म प ं चा दया गया जहां वह सुर त क जा सके ब त लंबे समय के लए। और इसक कोई खबर सामा नह बनाई जा सकती थी। क इस लाश को बचाना ब त ज री था। ऐसा आदमी मु ल से कभी होता है। तो जो ममीज़ ह परा म स म, और ये जो परा म स ह, इनका जो आकार है, इनके जो कोण ह. :

वह लाश कौन ले गया?

वह अलग बात करनी पड़े। वह तो अलग बात है न! जब जीसस पर पूरी बात कभी करगे, तब पूरी बात होगी तो खयाल म आएगा। गहरे ान म कम ास क ज रत : ओशो, जब हमारा गहरे ान म वेश होता है तब शरीर मशः जड़ होता जाता है और ास बलकुल ीण होने लगती है , मटने लगती है । ास के इस धीमे होने के कारण शरीर म ऑ ीजन तो घटता है । तो ऑ ीजन क इस कमी का और शरीर के जड़ होने का ान व समा ध से ा संबंध है ?

हां, हां। असल म.असल म, जब ास पूरी ती ता से जग जाएगी, और तु ारे और तु ारे शरीर के बीच एक गैप पैदा हो जाएगा उसक ती ता के कारण, तु ारा सोया ह ा और तु ारा जागा ह ा भ मालूम होने लगेगा, तो जैसे ही तुम इस जागे ए ह े क तरफ या ा शु करोगे, शरीर को फर ऑ ीजन क कोई ज रत नह है-शरीर को। अब तो उ चत है क बलकुल सो जाए वह; अब तो उ चत है क वह बलकुल जड़ हो जाए, मुद क तरह पड़ा रह जाए। क तु ारी जीवन-ऊजा अब शरीर क तरफ नह बह रही है, अब तु ारी जीवन-ऊजा तो आ ा क तरफ बहनी शु हो गई है। ऑ ीजन क जो ज रत है वह है शरीर क ; वह ज रत आ ा क नह है। समझ रहे हो न तुम? वह है ज रत शरीर क । इस लए जब तु ारी आ ा क तरफ तु ारी जीवनऊजा बहने लगी, तो अब शरीर के लए ब त म नमम ऑ ीजन क ज रत है, जतने से क वह सफ जी वत रह पाए बस। इससे ादा क कोई ज रत नह है। इससे ादा अगर उसको मलेगी, तो वह बाधा बनेगा। इस लए ीण होती जाएगी ास पीछे तु ारी। उसका जगाने के लए उपयोग है क तु ारे भीतर कोई चीज जग गई; जब वह जग गई, तब उसका कोई उपयोग नह है। अब तु ारे शरीर को ब त कम से कम ास क ज रत है। कुछ ण तो ऐसे आ जाएं गे जब ास बलकुल बंद हो जाएगी। होगी ही नह । समा ध म ास का खो जाना असल म, जब तुम ठीक संतुलन पर प ं चोगे, बैलस पर प ं चोगे-- जसको हम समा ध कह, उस पर प ं चोगे--तो ास बंद हो जाएगी। ले कन हम ास बंद होने का कोई खयाल नह है क उसका मतलब ा होता है? अगर अभी हम अनुभव भी कर तो हम बंद करगे। वह अनुभव वह नह है। ास चल रही है, हमने रोक ली, यह एक बात है। ास बाहर जा रही है, ास भीतर आ रही है, ये दो अनुभव हमारे ह--बाहर जाना, भीतर आना; बाहर जाना, भीतर आना। ले कन एक ब ऐसा आता है क ास आधी बाहर है और आधी भीतर है और सब ठहर गया है। तो कुछ ण ऐसे आएं गे ान म जब क तु लगेगा क ास ठहर तो नह गई! कह बंद तो नह हो गई! कह मर तो नह जाऊंगा! बलकुल ऐसे ण आएं गे। जतना तुम गहरे जाओगे, उतना इधर ास के कंपन कम होते चले जाएं गे; क उस गहराई पर

तु

ऑ ीजन क कोई ज रत नह है; उसक ज रत थी बलकुल पहली चोट पर। यह ऐसा ही है, जैसे क मने चाबी लगाई ताले म। ले कन ताला खुल गया; अब म चाबी लगाए ही थोड़ा चला जाऊंगा। चाबी बेकार हो गई; वह ताले म अटक रह गई, म भीतर चला गया। तुम कहोगे क आपने पहले चाबी लगाई थी, अब आप भीतर चाबी नह लगा रहे ह? वह चाबी लगाई ही इस लए थी क वह ार पर ही उसक ज रत थी। जब तक तु ारे भीतर जगी नह है कुंड लनी, तब तक तो तु ास क चाबी का जोर से योग करना पड़ेगा। ले कन जैसे ही वह जग गई, यह बात बेकार हो गई, अब तुम भीतर क या ा पर चल पड़े हो। और अब तु ारा शरीर ब त कम ास मांगेगा। यह तु बंद नह करनी है, यह अपने से होने लगेगी धीमी, धीमी, धीमी, धीमी.और ऐसे ण आएं गे बीच-बीच म, झलक आएगी ऐसी क जैसे सब बंद हो गया, सब ठहर गया। समा ध जीवन का नह , अ का अनुभव असल म, वह जो ण है जब ास बलकुल ठहरी ई है--न बाहर जाती; न भीतर जाती--वह परम संतुलन के जो ण ह, वही समा ध का ण है। उस ण म तुम अ को जानोगे, जीवन को नह । इस फक को ठीक से समझ लेना! लाइफ को नह , एि झ स को। जीवन क जानकारी तो ास से ही बंधी है; जीवन तो आ ीडाइजेशन ही है; वह तो ास का ही ह ा है। ले कन उस ण तुम उस अ को जानोगे जहां ास भी अनाव क है, जहां सफ होना है; जहां प र ह, पहाड़ ह, चांद ह, तारे ह--जहां सब ठहरा आ है; जहां कोई कंपन भी नह है। उस ण तु ारे ास का कंपन भी क जाएगा। वहां ास का भी वेश नह है, क वहां जीवन का भी वेश नह है। वह जो है- बयांड! जीवन के भी पार! और ान रहे, जो चीज मृ ु के पार है वह जीवन के भी पार होगी। इस लए परमा ा को हम जी वत नह कह सकते; क जसके मरने क कोई संभावना नह है उसे जी वत कहना फजूल है; कोई अथ नह है। परमा ा का कोई जीवन नह है, अ है। हमारा जीवन है; अ के बाहर जब हम आते ह तो हमारा जीवन है; जब हम अ म वापस लौटते ह तो हमारी मौत है। जैसे एक लहर उठी सागर म, यह इसका जीवन है--लहर का। इसके पहले लहर तो नह थी, सागर था। उसम कोई कंपन न था, उसम लहर थी नह । लहर उठी, यह जीवन शु आ; फर लहर गरी, यह लहर क मौत ई। उठना लहर का जीवन है; गरना मर जाना है। ले कन सागर का जो अ है, लहरहीन; जब लहर नह उठी थी जो तब भी था, और जब लहर गर जाएगी तब भी होगा, उस अ का, उस लटी का जो अनुभव है वह समा ध है। तो समा ध जीवन का अनुभव नह है, अ का अनुभव है; एि झ शयल है वह। वहां ास क कोई ज रत नह है। वहां ास का कोई अथ नह है। वहां नह ास का कोई सवाल नह है, ास का कोई सवाल नह है। वहां कभी-कभी सब ठहर जाएगा। समा ध के वापस लौटने क सम ा इस लए जब गहरी साधक क त हो, तो अनेक बार उसे जी वत रखने के लए और लोग क ज रत पड़ती है, अ था वह खो जा सकता है। अ था वह खो जा सकता है; वह अ से वापस ही न लौटे ।

रामकृ ब त बार ऐसी हालत म प ं च जाते। तो छह-छह दन लग जाते, वे नह लौटने क हालत म हो जाते। रामकृ को इतना स ान है, ले कन जस आदमी ने रामकृ को नया को दया, उसका हम पता भी नह है। उनका एक भतीजा उनके पास था। उसने उनको बचाया नरं तर। वह रात-रात भर जागता, जबरद ी मुंह म पानी डालता, जबरद ी ध पलाता; ास घुटने लगती तो वह मा लश करता। वह उनको वापस लाता रहा। रामकृ को, ववेकानंद ने तो उनक चचा क नया से, ले कन जस आदमी ने बचाया, उसका तो हम पता भी नह चलता। उस आदमी ने सारी मेहनत क । वष क मेहनत थी उसक । और रामकृ तो कभी भी जा सकते थे; क वह इतना आनंदपूण है क लौटना कहां? तो अ के उस ण म खोना संभव है बलकुल। वह ब त बारीक रे खा है जहां से तुम उस पार चले जा सकते हो। तो उसके बचाने के लए ू ल पैदा ए, उसको बचाने के लए आ म पैदा ए। इस लए जन सं ा सय ने आ म नह बनाए, वे सं ासी समा ध म ब त गहरे नह जा सके। जनका सं ास प र ाजक का है, सफ घूमते रहने का, वे ादा गहरे नह जा सके; क उस गहरे जाने के लए ुप चा हए, ू ल चा हए; उस गहरे जाने के लए और बचाव के लए और लोग भी चा हए जो जानते ह , नह तो आदमी कभी भी खो जा सकता है। तो उ ने छोटी सी व ा कर ली क भई, कह ादा देर कगे तो मोह हो जाएगा। ले कन जसको ादा देर कने से मोह पैदा हो जाता है, उसको कम देर से भी होता होगा--थोड़ा कम होता होगा, और ा फक पड़ेगा! तीन महीने से ादा होता होगा, तीन दन म जरा कम होता होगा। मा ा का ही फक पड़ेगा, और तो कोई फक पड़नेवाला नह है। तो जन- जन लोग के सं ासी सफ घूम रहे ह, उनम योग खो जाएगा, उनम समा ध खो जाएगी, उनम समा ध नह बच सकती, क समा ध के लए ुप चा हए। तो समा ध म जा सकता है, ले कन उसका लौटना ब त मामला और है। तो ान तक तो को कोई क ठनाई नह है, समा ध के ण के बाद ब त सुर ा क ज रत है। और वही ण है जब वह बचाया जा सके तो उस लोक क खबर ला सकता है--जहां उसने पीप कया, जहां उसने झांक लया जरा सा। उसको अगर हम लौटा सक तो वहां क थोड़ी खबर ला सकता है। जतनी खबर हम मली ह, वे उन थोड़े से लोग क वजह से मली ह जो वहां से थोड़ा सा लौट आए। नह तो उस लोक क हम कोई खबर नह मल सकती। उसके बाबत सोचा तो जा ही नह सकता; उसके सोचने का तो कोई उपाय नह है। और अ र यह है क वहां जो जाए उसके लौटने क क ठनाई हो जाती है; वह वहां से खो सकता है। वह ाइं ट ऑफ नो रटन है। वह वह जगह है जहां से छलांग हो जाती है और ख मल जाता है; जहां से रा ा टूट जाता है और पीछे लौटने के लए रा ा नह दखाई पड़ता। उस व बड़े काम क ज रत है। इधर म नरं तर चाहता ं क जस दन भी तु म समा ध क तरफ उ ुख क ं , उस दन क मती नह रह जाता, उस दन फौरन ू ल चा हए जो तु ारी फकर ले सके--अ था तुम तो गए--और तु लौटा सके; और तु जो अनुभव मला है वह सुर त करवा सके। नह तो वह अनुभव खो जाएगा।

सहज समा ध

क लयब

ास

: ओशो, सहज समा ध क अव

ा म जो

जीता है , उसक

ास क अव

ा कैसी होती है ?

ब त ही रद मक हो जाती है, ब त लयब हो जाती है, संगीतपूण हो जाती है। और ब त सी बात होती ह। जो आदमी चौबीस घंटे ही सहज समा ध म है, वह जसका मन डोलता नह , इधर-उधर नह होता, जैसा है वैसा ही बना रहता है, जो जीता नह अ म होता है, ऐसा जो आदमी है, उसक ास एक ब त ही अपने तरह क लयब ता ले लेती है। और जब वह कुछ भी नह कर रहा है--बोल नह रहा है, खाना नह खा रहा है, चल नह रहा है--तब ास उसके लए बड़ी आनंदपूण त हो जाती है; तब सफ होना, सफ ास का चलना इतना रस देता है जतनी और कोई चीज नह देती। और ब त संगीतपूण हो जाती है, ब त नादपूण हो जाती है। उस अनुभव को थोड़ा-ब त ास क व ा से भी अनुभव कया जा सकता है। इस लए ास क व ाएं पैदा : क जैसा सहज समा ध क ास होती है, जस रदम, जस छं द म चलती है, उसी छं द म सरा आदमी भी अपनी ास चलाए, तो उसे शां त का अनुभव होगा। इस लए सब ाणायाम इ ा द क अनेक व ाएं पैदा । ये अनेक समा ध लोग के पास उनक ास क लयब ता को देखकर पैदा क गई ह। थोड़ा प रणाम होगा, और सहायता मलेगी। और यह जो ास है, सहज समा ध क , यह अ ंत म नमम हो जाती है, ूनतम हो जाती है। क जीवन अब जो है उतना अथपूण नह रह जाता, जतना अ अथपूण हो जाता है। यानी इस के भीतर एक और दशा खुल गई है जो अ क है, जहां ास वगैरह क कोई ज रत नह है। वह जीता तो वह है, वह रहता तो वह है, वह हमसे जब संबं धत होता है तभी वह शरीर का उपयोग कर रहा है, अ था वह शरीर का उपयोग नह कर रहा है। और हमसे संबं धत होने के लए उसे जो-जो करना पड़ता है--वह खाना खा रहा है, कपड़े पहन रहा है, सो रहा है, ान कर रहा है, वह हमसे संबं धत होने क व ा है; अब उसके लए कोई अथ नह है। और इस सबके लए जतनी जीवन-ऊजा चा हए, उतनी उसक ास चल रही है। वह ब त ून हो जाती है। इस लए वह ब त कम ऑ ीजन क जगह म भी जी सकता है। ब त कम ऑ ीजन क जगह म जी सकता है। नवात ान म साधक का रहना इस लए पुराने मं दर या पुरानी गुफाओं म ार-दरवाजे नह ह। जसको हम आज क नया म कह तो ब त हैरानी क बात है। क वे सब के सब हम बलकुल ही ा व ान के वपरीत मालूम पड़गे--सारे पुराने मं दर। न खड़क है, न दरवाजा है, न कुछ है। गुफाएं ह, कुछ उपाय नह है, वायु के आने-जाने का कोई खास उपाय नह दखाई पड़ता। जो उनके भीतर रह रहा था, उसे ब त उपयोग नह था। और वायु को, वह चाहता नह

था क वह ादा भीतर आए-जाए। क वायु के जो कंपन भीतर आते ह, वह भीतर के जो और ए ल कंपन ह, जो सू कंपन ह, उनको सबको न कर डालते ह; उनके ध े से उनको जला जाते ह। इस लए वह उनक सुर ा कर रहा था। वह आने देने के लए उ ुक नह था उनको ब त। ले कन आज नह हो सकता, क आज.उसके लए पहले पूरी ास क लंबी साधना चा हए, तब! या समा ध त चा हए, तब। अनापानसती: क मती योग है : ओशो, बु साधना म जो अनापानसती है , उसम ा असर पड़ता है ?

ास पर

ान करने से ऑ

ीजन क मा ा पर

ब त असर पड़ता है। असल म--यह ब त मजे क बात है और समझने जैसी है--जीवन क जो भी याएं ह, इन म कसी पर भी अगर तुम ान ले जाओ, तो उनक ग त बढ़ जाती है। जीवन क जो याएं ह वे ान के बाहर चल रही ह। जैसे तु ारी नाड़ी चल रही है। तो जब तु ारा डा र तु ारी नाड़ी जांचता है, तो वह उतनी ही नह होती जतनी जांचने के पहले थी, थोड़ी सी बढ़ जाती है; क तु ारा ान और डा र--दोन का ान उस पर चला जाता है। और अगर लेडी डा र जांच रही है तो और ादा बढ़ जाएगी; क ान और ादा चला जाएगा। समझ रहे ह न? उतनी ही नह होती, जतनी थी; थोड़ा सा अंतर पड़ जाता है। इसको तुम ऐसा भी योग करो: अपनी नाड़ी ही जांचो पहले; और फर दस मनट नाड़ी पर ान रखो क वह कैसी चल रही है, और इसके बाद जांचो; तो तुम पाओगे: उसके कंपन बढ़ गए। असल म, शरीर के भीतर जो भी याएं चल रही ह, वे हमारे ान के बाहर चल रही ह। ान के जाते ही उनक ग त बढ़ जाएगी। ान क मौजूदगी उनक ग त को बढ़ाने के लए कैटे ल टक एजट का काम करती है। तो अनापानसती जो है, वह जो योग है, वह ब त क मती योग है। वह ास पर ान देने का योग है। ास को घटाना-बढ़ाना नह है, ास जैसी चल रही है, उसे तु देखना है। ले कन तु ारे देखते से ही वह बढ़ जाती है। तुमने देखा, तुम आ वर ए क ास क ग त बढ़ी। वह अ नवाय है उसका बढ़ना। तो उसके बढ़ जाने से प रणाम ह गे। और उसको देखने के भी प रणाम ह गे। ले कन अनापानसती का मूल ल उसको बढ़ाना नह है, उसका मूल ल तो उसे देखना है। क जब तुम अपनी ास को देख पाते हो, धीरे -धीरे -धीरे , नरं तर- नरं तर देखने से ास तुमसे अलग होती जाती है। क जस चीज को भी तुम बना लेते हो, तुम ब त गहरे म उससे भ हो जाते हो। असल म, से ा एक हो ही नह सकता; उससे वह त ाल भ होने लगता है। जस चीज को भी तुम बना लोगे, उससे तुम भ होने लगोगे। तो ास को अगर तुमने बना लया अपना, और चौबीस घंटे, चलते, उठते, बैठते, तुम उसको देखने लगे--जा रही, आ रही; जा रही, आ रही--तो तुम देखते रहे, देखते रहे, तु ारा फासला

अलग होता जाएगा। एक दन तुम अचानक पाओगे क तुम अलग खड़े हो और ास वह चल रही है; ब त र तुमसे उसका आना-जाना हो रहा है। तो इससे वह घटना घट जाएगी, तु ारे शरीर से पृथक होने का अनुभव उससे हो जाएगा। इस लए कसी भी चीज को.अगर तुम शरीर क ग तय को देखने लगो--रा े पर चलते व खयाल रखो क बायां पैर उठा, दायां पैर उठा। बस तुम अपने दोन पैर ही देखते रहो एक पं ह दन, तुम अचानक पाओगे क तुम पैर से अलग हो गए; अब तु पैर अलग से उठते ए मालूम पड़ने लगगे और तुम बलकुल देखनेवाले रह जाओगे। तु ारे ही पैर तु बलकुल ही मैके नकल मालूम होने लगगे क उठ रहे ह, चल रहे ह, और तुम बलकुल अलग हो गए। इस लए ऐसा आदमी कह सकता है क चलता आ चलता नह , बोलता आ बोलता नह , सोता आ सोता नह , खाता आ खाता नह ; ऐसा आदमी कह सकता है। उसका दावा गलत नह है, मगर उसका दावा समझना ब त मु ल है। अगर वह खाने म सा ी है तो वह खाते ए खाता नह , ऐसा उसे पता चलता है; अगर वह चलने म सा ी है तो वह चलते ए चलता नह , क वह उसका सा ी है। तो अनापानसती का तो उपयोग है, पर सरी दशा से वह या ा है। पूण ास से पूण जीवन : ओशो, ती व गहरी ास से ा आव कता से अ धक ऑ उससे ा कोई हा न नह होगी?

ीजन फेफड़े म नह चली जाएगी और

असल म, कोई भी आदमी ऐसा नह है जसके पूरे फेफड़े म ऑ छह हजार छ अगर ह फेफड़े म, तो हजार, डेढ़ हजार छ तक जसको पूण कह।

ीजन जाती हो। कोई आदमी क जाती है,

: बाक म

ा होता है ?

बाक म काबन डाइआ ाइड भरी रहती है। वे सब गंदी हवा से भरे रहते ह। तो इस लए ऐसा तो आदमी मलना मु ल है जो ज रत से ादा ले ले। ज रत म ही लेनेवाला आदमी मलना मु ल है। ब त बड़ा ह ा बेकार पड़ा रहता है। उस तक, पूरे तक आप प ं चा द तो बड़े प रणाम ह गे। बड़े अदभुत प रणाम ह गे। आप क कांशसनेस का ए पशन एकदम से हो जाएगा। क जतनी मा ा म आपके फेफड़े म ऑ ीजन प ं चती है, उतना ही जीवन का आपको व ार मालूम पड़ता है; उतनी ही आपके जीवन क सीमा होती है। जैस-े जैसे फेफड़े म ादा प ं चती है, आपके जीवन का व ार बड़ा होता है। तो अगर हम पूरे फेफड़े तक ऑ ीजन प ं चा सक, तो मै मम जदगी का हम

अनुभव होगा। और और बीमार आदमी म वही फक है क बीमार आदमी और भी कम प ं चा पाता है, और भी कम प ं चा पाता है। ब त बीमार को हम ऑ ीजन ऊपर से देनी पड़ती है, वह प ं चा ही नह पाता। उस पर ही छोड़ दगे तो वह मर जाएगा। बीमार और को भी हम अगर चाह तो ऑ ीजन क मा ा से भी नाप सकते ह क उसके भीतर कतनी ऑ ीजन जा रही है। इस लए आप दौड़गे तो हो जाएं गे, क ऑ ीजन क मा ा बढ़ जाएगी; ायाम करगे तो हो जाएं गे, क ऑ ीजन क मा ा बढ़ जाएगी। आप कुछ भी ऐसा करगे जससे ऑ ीजन क मा ा बढ़ती हो, वह आपके ा म व क हो जाएगी। और आप कुछ भी ऐसा करगे जससे ऑ ीजन क मा ा कम होती है, वह आपक बीमारी के लाने म सहयोगी हो जाएगी। ले कन जतनी आप ले सकते ह उतनी ही कभी नह ले रहे ह; और जतनी आप पूरी ले सकते ह उससे ादा लेने का सवाल ही नह उठता, आप ले नह सकते। आपका पूरा फेफड़ा भर जाए, उससे ादा आप ले नह सकते। उतनी भी नह ले पाएं गे, उतना भी ब त मु ल मामला है। उतनी भी नह ले पाएं गे। : ओशो, हम ास म जो वायु लेते ह उसम केवल ऑ ीजन ही नह होती, उसम नाइ ोजन, हाइ ोजन आ द अनेक कार क हवाएं भी ह। ा उन सब का ान के लए सहयोग ह?

बलकुल ही ान के लए सहयोगी होगी। क हवा म जो कुछ भी है--और ब त कुछ है, ऑ ीजन ही नह है, और ब त कुछ है--वह सब का सब आपके लए, जीवन के लए साथक है, इसी लए आप जदा ह। जस ह पर, जस उप ह पर हवा म उतनी मा ा म वे सब चीज नह ह, वहां जीवन नह हो सकेगा। वह जीवन क पा स ब लटी है सब का सब। इस लए उसम चता लेने क ज रत नह है। उसम चता लेने क ज रत नह है। और जतनी ती ता से आप लगे उतना हतकर है, क उतनी ती ता म ऑ ीजन ही ादा से ादा वेश कर पाएगी और आपका ह ा बन पाएगी। बाक चीज फक दी जाएं गी। और वह जस अनुपात म जो चीज ह, वे सब क सब आपके जीवन के लए उपयोगी ह; उससे कोई हा न नह है। उससे कोई हा न नह है। हलकेपन का अनुभव और उसक अ भ : इससे शरीर हलका सा महसूस होता है !

हां, हलका महसूस होगा। हलका महसूस होगा, क हमारे शरीर का जो बोध है, शरीर का बोध ही हमारा भारीपन है। जसको हम भारीपन कहते ह, वह हमारे शरीर का बोध है। इस लए बीमार बला-पतला हो तो भी उसको बोझ मालूम पड़ता है और

आदमी कतना ही वजनी हो तो भी उसे हलका मालूम पड़ेगा। शरीर क जो कांशसनेस है हमारी, वही हमारा बोझ है। और शरीर क कांशसनेस, शरीर का जो बोध है उसी मा ा म होता है जस मा ा म शरीर म तकलीफ हो। अगर पैर म दद है तो पैर का पता चलता है, सर म दद है तो सर का पता चलता है; अगर कह कोई तकलीफ नह है, तो शरीर का पता ही नह चलता। इस लए आदमी क प रभाषा ही है: जो वदेह अनुभव करे ; जसको ऐसा न लगे क म शरीर ं । तो समझना चा हए वह आदमी है। अगर उसको कोई भी ह ा लगता हो क यह म ं , तो समझ लेना चा हए वह ह ा बीमार है। तो जस मा ा म ऑ ीजन बढ़ेगी और कुंड लनी जगेगी, तो कुंड लनी के जगते ही आपको आ क ती तयां शु हो जाएं गी जो क शरीर क नह ह। और सब बोझ शरीर का है। तो उनक वजह से त ाल हलकापन लगना शु हो जाएगा। ब त हलकापन लगेगा। यानी ब त लोग को लगेगा क जैसे हम जमीन से ऊपर उठ गए ह। सभी उठ नह जाते, कभी ऐसी घटती है सौ म एकाध दफे घटना क कभी शरीर थोड़ा ऊपर उठता है; आमतौर से उठता नह है, ले कन अनुभव ब त लोग को होगा। जब आंख खोलकर देखगे तो पाएं गे, बैठे तो वह ह। ले कन यह अनुभव आ था क उठ गए? असल म, इतनी वेटलेसनेस मालूम ई, इतना हलकापन मालूम आ क हलकेपन को जब हम च क भाषा म कहगे तो कैसे कहगे? और हमारा जो गहरा मन है वह भाषा नह जानता, वह च जानता है। तो वह यह नह कह सकता क हलके हो गए, वह च बना लेता है क जमीन से उठ गए। अचेतन मन क च मय भाषा हमारा जो गहरा मन है अचेतन, वह च ही जानता है। इस लए रात सपने म भाषा नह होती आपके, च ही च होते ह। और सपने को सारी बात को च म बदलना पड़ता है। इस लए हमारे सपने समझ म नह आते सुबह; क हम जो सुबह जागकर भाषा बोलते ह, वह सपने म नह होती; और जो भाषा हम सपने म अनुभव करते ह, वह सुबह नह होती। तो इतना बड़ा ांसलेशन है सपने से जदगी म क उसके लए बड़े भारी ा ाकार चा हए, नह तो वह ांसलेट नह होता। अब एक आदमी ब त मह ाकां ी है, ब त एं बीशस है, तो सपने म अब वह एं बीशन को कैसे अनुभव करे ? वह प ी हो जाएगा। वह आकाश म ऊपर से ऊपर उड़ता जाएगा; सब उसके नीचे आ जाएं गे। अब मह ाकां ा सपने म जब कट होगी तो उड़ान क तरह कट होगी--उड़ रहा है एक आदमी। कुछ आदमी उड़ने-उड़ने के ही सपने देखगे। वह मह ाकां ा का सपना है। ले कन मह ाकां ा श वहां होगा ही नह । सुबह वह आदमी कहेगा, ा बात है क मुझे उड़ने-उड़ने के सपने आते ह! पर उसक जो मह ाकां ा है वह सपने म उड़ना बन जाती है। ऐसे ही ान क गहराई म प ोरइल ल ेज होगी। हलकापन अनुभव होगा तो ऐसा लगेगा शरीर उठ गया। क शरीर उठ गया है, यही हलकेपन का प र बन सकता है, और तो कोई प र बन नह सकता। और कभी ब त ही हलकेपन क हालत म शरीर उठ

भी जाता है। शारी रक पांतरण क

या

: कभी-कभी टूटने का डर लगता है क जैसे कुछ भी टूट जाएगा।

हां, लग सकता है, बलकुल लग सकता है।. बलकुल लग सकता है। : वह डर नह रखना चा हए बलकुल?

रखने क तो कोई ज रत नह है, ले कन वह लगता है; वह

ाभा वक है।

: गरमी भी ब त पैदा होती है !

वह भी हो सकता है; क हमारे भीतर सारी क सारी व ा बदलती है। यानी जोजो हमारा इं तजाम है, वह सब बदलता है; जहां-जहां से हम शरीर से जुड़े ह वहां-वहां ढलाई होनी शु होती है; जहां हम नह जुड़े ह वहां नये जोड़ बनने शु होते ह; पुराने ज गरते ह, नये ज बनते ह; पुराने दरवाजे बंद होते ह, नये दरवाजे खुलते ह। वह पूरा मकान आल े शन म होता है, तो इस लए ब त सी चीज टूटती मालूम पड़ती ह, ब त से डर मालूम पड़ते ह, सब व ा अ व ा हो जाती है। तो ांजीशन के व म यह चलेगा। ले कन जैसे ही नई व ा आ जाएगी, वह पुरानी व ा से अदभुत है, उसका फर कोई मुकाबला नह । फर कभी खयाल भी नह आएगा क पुरानी व ा टूट गई, या थी! ब ऐसा लगेगा क इतने दन उसको कैसे ख चा? तो वह होगा। अंत तक य जारी रखो : ओशो, श पात के बाद भी ही होने लगता है ?

ा ती

ास और ‘म कौन ं ’ पूछने का य करना पड़े गा या वह सहज

जब सहज होने लगे तब तो सवाल नह है। तब तो सवाल नह है; तब कोई सवाल नह है। तब तो सवाल भी असहज है। होने लगे वह, तब तो कोई बात ही नह है। ले कन जब तक नह आ है, तब तक कई बार मन मानने का होता है क अब छोड़ो, अब तो हो गया! अब ा बार-बार पूछते चले जा रहे ह! अब कतने दन से तो पूछ रहे ह! जब तक मन तुमसे कहे क छोड़ो, अब ा फायदा है, तब तक तो करते ही चले जाना;

क मन अभी है। जस दन अचानक तुम पाओ क अब तो करने का कोई सवाल ही नह , करना भी चाहो तो नह कर सकते; क ‘म कौन ं ’ तुम तभी तक पूछ सकते हो जब तक पता नह है; जस दन पता चल जाएगा उस दन तुम पूछोगे कैसे? वह तो ए डटी है, उसको तुम पूछ ही कैसे सकते हो जब तु पता ही चल गया? म पूछता ं क दरवाजा कहां है? दरवाजा कहां है? अब मुझे पता चल गया क यह रहा दरवाजा। अब म पूछूंगा दरवाजा कहां है? यह भी नह पूछूंगा क ा म पूछूं अब क दरवाजा कहां है। इसका कोई मतलब नह है। जो हम पता नह है, वह तक हम पूछ सकते ह; जैसे ही हम पता आ वैसे ही बात ख हो गई। तो जैसे ही ‘म कौन ं ’ इसक अनुभू त तुम पर बरस जाए, वैसे ही तु ारे क नया गई। और जैसे ही तुम छलांग लगा जाओ उस लोक म, फर करने का कोई सवाल नह है; फर तो तुम जो करोगे, वह सभी वही होगा। तुम चलोगे तो ान होगा, तुम बैठोगे तो ान होगा, तुम चुप रहोगे तो ान होगा, तुम बोलोगे तो ान रहेगा। ऐसा भी क तुम लड़ने भी चले जाओगे तो भी ान होगा। यानी, तु ारा ा करना है, इससे फर कोई फक नह पड़ता। इससे कोई फक नह पड़ता। दांव पूरा ही लगाना : ओशो, श पात का भाव जब याशील होता है तो ास तो तेज होती है आप ही आप, ले कन बीचबीच म ास क ग त बलकुल क जाती है । तो ा उस त म यास करना चा हए ास का?

करोगे तो फायदा होगा। सवाल यह नह है क ास चले क नह ; वह न चले तो कोई हजा नह । तुमने यास कया क नह ! यह सवाल नह है; वह नह चलेगी तो नह चलेगी, तुम ा करोगे? ले कन तुम मत छोड़ देना यास। तु ारा यास ही साथक है। बड़ा सवाल इतना नह है क वह आ क नह आ। तुमने कया! तुमने अपने को पूरा दांव पर लगाया; तुमने कह बचा नह लया अपने को। नह तो मन ब त बचाव करता है। वह कहता है: अब तो हो ही नह रहा, अब छोड़ो। हमारे मन के साथ क ठनाई ऐसी है क वह रोज हजार रा े खोजता है: क अब तो यह हो ही नह रहा, अब बलकुल दम घुटी जा रही है, अब बलकुल मर ही जाओगे, अब छोड़ो। तो तुम यह मत सुनना। तुम कहना, घुट जाए तो बड़ा आनंद! नह आ सकेगी तो वह सरी बात है, उसम तु ारा कोई वश नह है। ले कन अपनी तरफ से तुम पूरी को शश करना; तुम अपने को पूरा दांव पर लगाना। उसम र ी भर अपने को बचाना मत। क कभी-कभी र ी भर बचाना ही सब रोक देता है--र ी भर बचाना! कोई नह जानता क ऊंट आ खरी तनके से बैठ जाए। तुमने ब त वजन लादा है ऊंट पर, ले कन अभी इतना वजन नह आ है क ऊंट बैठे। और हो सकता है सफ आ खरी तनका--घास का एक छोटा सा टुकड़ा--और ऊंट बैठ जाए। क संतुलन तो एक छोटे से तनके से ही

आ खर म तय होता है। : पहले नह होता!

पहले नह होता तय। पहले तुमने दो मन लादा और उससे कुछ नह आ, ऊंट चलता ही चला गया। तुमने एक हथौड़े से ताला तोड़ा। तुम पचास हथौड़े मार चुके पूरी ताकत से-और इ ावनवां तुमने ब त धीमी ताकत से मारा और टूट गया। संतुलन तो अंत म बड़ी छोटी बात से तय होता है; कभी-कभी इं च भर से तय होता है, तनके से तय होता है। इस लए ऐसा न हो क तुम सारी मेहनत करो और एक तनके से चूक जाओ। और चूक गए तो तुम पूरे चूक गए। अभी ऐसा आ: एक म अमृतसर म तीन दन से ान कर रहे थे। पढ़े- लखे डा र ह। पर नह कुछ हो रहा था। आ खरी दन--मुझे तो पता ही नह था क वे ा कर रहे ह, ा नह कर रहे ह; जानता भी नह था उनको--आ खरी दन मने यह कहा क हम पानी को गरम करते ह, तो वह सौ ड ी पर भाप बनता है। और अगर न ानबे ड ी से भी वापस लौट गए, तो यह मत सोचना क हमने न ानबे तक बनाया था तो एक ड ी क ा बात थी! वह पानी रह जाएगा। साढ़े न ानबे तक भी पानी रह जाएगा; र ी भर फासला रह जाएगा तो भी पानी रह जाएगा। वह तो आ खरी र ी भी, जब सौ को पार करे गा, ास करे गा, तभी भाप बनेगा। और इसम कोई शकायत नह क जा सकती है। तो वे उसी दन सांझ को मेरे पास आए क आपने यह अ ा कहा, म तो कर रहा था क भई, चलो धीरे -धीरे कर रहे ह, ब त नह होगा तो थोड़ा तो होगा! हमारे ा खयाल म होते ह! तो आपने जब कहा तब मुझे खयाल म आया क यह बात तो ठीक है। अ ानबे ड ी पर गम कया तो ऐसा नह क थोड़ा पानी भाप बनेगा और थोड़ा नह बनेगा; बनेगा ही नह । बनना तो शु होगा, एक भी ब अगर बना हो तो वह सौ ड ी पर ही उड़ेगा; उसक उड़ान तो सौ ड ी पर ही होगी। उसके पहले वह पानी होना नह छोड़ सकता। पानी होना छोड़ने के लए उतनी या ा उसे करनी ही पड़ेगी, आ खरी इं च तक। तो उ ने मुझसे कहा क आपने अ ा कह दया यह; आज मने पूरी ताकत लगाई। तो म तो हैरान ं क म तीन दन से मेहनत फजूल कर रहा था; थक भी जाता था, कुछ होता भी नह था; आज थका भी नह ं , और कुछ हो भी गया। पर उ ने कहा क मुझे सौ ड ी क बात खयाल रही पूरे व ; और मने इं च भर भी नह छोड़ा, मने कहा क अपनी तरफ से नह छोड़ना है, पूरी ताकत लगा देनी है। जनको नह हो रहा है और जनको हो रहा है, उनम और कोई फक नह है, सफ इतना ही फक है। सफ इतना ही फक है। और एक बात और ान रखना क कई दफे ऐसा लगता है क तु ारा पड़ोसी तुमसे ादा ताकत लगा रहा है और उसको नह हो रहा। ले कन उसक सौ ड ी और तु ारी सौ ड ी म फक है। अगर उसके पास ताकत ादा है. एक आदमी के पास पांच सौ पए ह और वह तीन सौ पए लगा रहा है दांव पर, और

तु ारे पास पांच पए ह और तुम चार पए दांव पर लगा रहे हो--तुम आगे नकल जाओगे। यह तीन सौ और चार से तय नह होगा, पूरे अनुपात से तय होगा। तुमने अपना पूरा लगाया तो सौ ड ी पर हो। और सबक सौ ड ी अलग ह गी। उसका कतना पूरा लगाने का सवाल है। अगर तुमने पांच पए लगा दए तो तुम जीत जाओगे, और वह तीन सौ और चार सौ भी लगा दे तो नह जीतेगा। उसके पास पांच सौ थे; जब तक वह पांच सौ न लगा दे, तब तक वह जीतनेवाला नह है। चरम- ब पर ही सावधानी इस लए अं तम अथ म एक बात ान रखना सदा ज री है क तुम अपने को बचाना मत; कह भी यह मत सोचना क अब ठीक है, इतने से हो जाएगा। ऐसा तुमने सोचा क तुम लौटना शु हो जाओगे। और अ र ऐसा होगा क जस ब से घटना घटती है उसी ब से ऐसा होगा; क मन उसी ब पर घबड़ाना शु होता है क अब तो भाप बनी, अब भाप बनी। अब वह कहता है क अब बस काफ हो गया, उबल चुके, पानी आग आ जा रहा है, अब ा फायदा; अब लौट आओ। वही ण ब त क मती है जब तु ारा मन कहे क अब लौट चलो। अब मन को लगने लगा क अब मामला खतरे का है; अब टूटने का व करीब आता है, अब मटे , अब मरे । तो जैसे ही उसको लगा क अब खतरा आता है.जब तक खतरा नह है, तब तक वह कहेगा क खूब मजे से करो, जैसे ही खतरे के करीब प ं चोगे, ाइ लग ाइं ट के पहले ही वह तुमसे कहेगा क अब बस, अब तो सारी ताकत लगा दी, अब तो होता ही नह है। उसी व सावधान रहना। वही ण है जब तु पूरा लगा देना है। उस एक ण म चूकने से कभी वष चूकना हो जाता है। और न ानबे ड ी तक प ं चने म भी वष लग जाते ह कभी तो। और कभी प ं च पाते ह और त ाल चूक जाते ह। जरा सी बात और चुका सकती है। इस लए तुम मत बचाव करना। वह नह होगा, नह होगा। : जोर से करने से ना ड़य पर कुछ असर नह हो सकता?

ये सारी क सारी जो बात ह, सारी क सारी जो बात ह, हमारे सारे भय जो ह.असर तो होगा ही, असर नह होगा? असर तो होगा ही। असर होने के लए ही तो सारी बात है। : टूट जाएं नाड़ी तो?

हां, तो देखो भी न! टूट जाने दो, बचाकर भी ा करोगी। :

ा करना है! टूट ही जाएगी, बचाकर भी

इ ोरस म तो मरना नह चाहते!

तो मरोगी इ ोरस म अगर नाड़ी बचाओगी। करोगी ा? हमारी तकलीफ यह है क हम जन चीज को बचाने के लए च तत रहते ह उनको बचाने से होना ा है? : हमारे पास इतना ही अ

सा तो है ; उसे भी खो द?

हां, अगर वह भी होता तब भी कुछ था; तब तु डर न होता उसके खोने का। वह भी नह है। अ र नंगे आदमी कपड़े चोरी जाने के डर से भयभीत रहते ह, क इससे एक मजा आता है क अपने पास भी कपड़े ह। उसका जो रस है भीतर वह यह रहता है क अरे , अपन कोई नंगे थोड़े ही ह, कपड़े चोरी न चले जाएं । कपड़े ह तो चोरी जाने क इतनी फकर नह रहती है। कपड़े ही ह न, चोरी चले जाएं गे तो चले जाएं गे। यह भय छोड़ना। इसका यह मतलब नह है क तु ारी ना ड़यां टूट जाएं गी। भय से टूट सकती ह, ान से नह टूट सकत । भय से टूट ही जाती ह। ले कन भय से हम भयभीत नह होते। भय से टूट जाएं गी, चता से टूट जाएं गी, उससे हम भयभीत नह ह। तनाव से टूट जाएं गी, उससे हम भयभीत नह ह। ान से हम भयभीत ह, जहां क टूटने का कोई सवाल नह है, जहां टूटी भी ह गी तो जुड़ सकती ह। ले कन हम अपने भय पालते ह। और वे भय हम सु वधा बना देते ह क ऐसा न हो जाए, ऐसा न हो जाए, ऐसा न हो जाए। लौट आने का हम सारा इं तजाम कर लेते ह। तो म यह कहता ं , जाओ ही ? यह वधा खतरनाक है। म कहता ं , जाओ ही मत; बात ही छोड़ो; उसक चता ही मत लो। वधा साधक क एकमा श ु ले कन हम दोन काम करना चाहते ह। हम जाना भी चाहते ह और नह भी जाना चाहते ह। तब वधा हमारे ाण ले लेती है। और तब हम अकारण परे शान होते ह। सैकड़ -लाख लोग अकारण परे शान होते ह। उनको परमा ा को खोजना भी है और बचना भी है क कह मल न जाए। अब ये दोहरी द त ह। हमारी सारी तकलीफ जो है न वह ऐसी है क हम जो करना चाहते ह उसको कसी सरे तल पर मन के नह भी करना चाहते। वधा हमारा ाण है। हम ऐसा कर ही नह पाते क कुछ हम करना चाहते ह तो करना चाहते ह। जस दन ऐसा हो उस दन तु कोई कावट नह होगी। उस दन जदगी ग त बन जाती है। ले कन हमारी हालत ऐसी ह क एक पैर उठाते ह और एक वापस लौटा लेते ह; एक ट मकान क रखते ह और सरी उतार लेते ह। रखने का भी मजा लेते रहते ह और रोने का भी मजा लेते रहते ह क मकान बन नह रहा। दन भर मकान जमाते ह, रात भर उतार देते ह। सरे दन फर दीवाल वह क वह हो जाती ह, फर हम रोने लगते ह क बड़ी मु ल है क मकान बन नह रहा। यह जो क ठनाई है, यह समझनी चा हए अपने भीतर। और इसको ऐसे ही समझ

सकोगी जब तुम यह समझो क ठीक है, टूटगी न, तो टूट ही जाएं गी। तीस-चालीस साल नह भी टूट तो करोगी ा? एक द र म नौकरी करोगी, रोज खाना खाओगी, दो-चार ब े पैदा करोगी, नह पैदा करोगी; प त होगा; यह होगा, वह होगा; यही सब होगा। और इनको छोड़ जाओगी तो ये बेचारे अपनी ना ड़यां न टूट जाएं उसके लए डरते रहगे। यही करती रहोगी। करोगी ा? अगर हमको थोड़ा सा भी यह खयाल म आ जाए क जदगी जसको हम बचाने क को शश म ह, इसम बचाने यो भी ा है! तो दांव पर लगा सकते ह, नह तो नह लगा सकते। और यह ब त ही जसको कहना चा हए , हमारे मन म साफ हो जाना चा हए क जस- जस चीज को हम बचाना चाहते ह, उसम बचाने जैसा भी ा है? ा है बचाने जैसा? और बचाकर भी कहां बचता है? यह हो तो फर तु क ठनाई नह होगी। टूटे गी तो टूट जाएगी। टूटती नह है, अभी तक टूटी नह है। अगर तोड़ दो तो तुम एक नई घटना होगी। : रकाड टूट जाएगा?

हां, रकाड टूट जाएगा।

मु

: 11 सोपान क सी ढ़यां

: ओशो, आपने नारगोल श वर म कहा क श पात का अथ है --परमा ा क श आप म उतर गई। बाद क चचा म आपने कहा क श पात और ेस म फक है । इन दोन बात म वरोधाभास सा लगता है । कृपया इसे समझाएं ।

दोन म थोड़ा फक है, और दोन म थोड़ी समानता भी है। असल म, दोन के े एकसरे पर वेश कर जाते ह। श पात परमा ा क ही श है। असल बात तो यह है क उसके अलावा और कसी क श ही नह है। ले कन श पात म कोई मा म क तरह काम करता है। अंततः तो वह भी परमा ा है। ले कन ारं भक प से कोई मा म क तरह काम करता है। जैसे आकाश म बजली क धी; घर म भी बजली जल रही है; वे दोन एक ही चीज ह। ले कन घर म जो बजली जल रही है, वह एक मा म से वेश क है घर म-- नयो जत है। आदमी का हाथ उसम साफ और सीधा है। वह भी परमा ा क है। वषा म जो बजली क ध रही है वह भी परमा ा क है। ले कन इसम बीच म आदमी भी है, उसम बीच म आदमी नह है। अगर नया से आदमी मट जाए तो आकाश क बजली तो क धती रहेगी, ले कन घर क बजली बुझ जाएगी। श पात घर क बजली जैसा है, जसम आदमी मा म है; और साद, ेस आकाश क बजली जैसा है, जसम आदमी मा म नह है। : परमा श का मा म तो जस को ऐसी श उपल ई है, जो परमा ा से कसी अथ म संयु आ है, वह तु ारे लए मा म बन सकता है; क वह ादा अ ा वी हकल है, तुमसे ादा अ ा वाहन है। उस श के लए वह आदमी प र चत है, उसके रा े प र चत ह; वह श उस आदमी से ब त शी ता से वेश कर सकती है। तुम बलकुल अप र चत हो, अनगढ़ हो। वह आदमी गढ़ा आ है। और उसके मा म से तुम म वेश करे , तो एक तो वह गढ़ा आ वाहन है, इस लए बड़ी सरलता है; और सरा वह तु ारे लए ब त संक ण ार है जहां से तु ारी पा ता के यो श तु मल जाएगी। तो घर क बजली म बैठकर तुम पढ़ सकते हो, आकाश क बजली के नीचे बैठकर पढ़ नह सकते। घर क बजली एक नयं ण म है, आकाश क बजली कसी नयं ण म नह है। तो कभी अगर कसी के ऊपर आक क साद क त बन जाए, अनायास

ऐसे संयोग इक े हो जाएं क उसके ऊपर श पात हो जाए, तो ब त संभावना है वह पागल हो जाए, व हो जाए, उ ाद हो जाए। क वह श इतनी बड़ी हो और उसक पा ता सब अ हो जाए। फर अनजान, अप र चत सुखद अनुभव भी खद हो जाते ह। जो आदमी वष तक अंधेरे म रहा हो, उसके सामने अचानक सूरज आ जाए, तो उसे काश दखाई नह पड़ेगा। और भी ादा अंधेरा दखाई पड़ेगा-- जतना अंधेरे म भी दखाई नह पड़ता था। अंधेरे म तो वह थोड़ा देखने का आदी हो गया था; रोशनी म तो उसक आंख ही बंद हो जाएगी। तो कभी ऐसा हो जाता है क ऐसी तयां बन सकती ह भीतर क अनायास तुम पर वराट श का आगमन हो जाए। ले कन उससे तु सांघा तक नुकसान प ं च सकते ह; क तुम तो तैयार नह हो; तुम तो च ककर पकड़ लए गए हो। तो घटना हो जाए। ेस भी घटना बन सकती है। श का नयं त संचार सरी जो श पात क त है, उसम घटना क संभावना ब त कम है--नह के बराबर है; क कोई मा म है। और संक ण मा म से एक तो श का माग ब त संकरा हो जाता है, फर वह नयं ण भी कर सकता है; वह तुम तक उतना ही प ं चने दे सकता है, जतना तुम झेल सको। ले कन ान रहे क फर भी वह यं श का मा लक नह है, सफ वाहक है। इस लए कोई कहता हो: मने श पात कया, तो वह गलत कहता है। वह ऐसे ही होगा, जैसे ब कहने लगे क म काश दे रहा ं । तो वह गलत कहता है। हालां क ब को यह ां त हो सकती है। इतने दन से रोज-रोज काश देता है, यह ां त हो सकती है क काश म दे रहा ं । ब से काश कट तो हो रहा है, ले कन ब से काश पैदा नह हो रहा; वह उदगम का ोत नह है, अ भ का मा म है। तो जो कोई दावा करता हो क म श पात करता ं , वह ां त म पड़ गया है; वह ब क ां त म पड़ गया है। श पात तो सदा परमा ा का ही है। ले कन कोई मा म बने तो उसको श पात कहगे; कोई मा म न हो, तो यह आक क हो सकता है कभी, तो नुकसान प ं च सकता है। ले कन कसी ने बड़ी अनंत ती ा क हो, और कसी ने अनंत धैय से ान कया हो, तो भी साद के प म श पात हो जाएगा। तब कोई मा म भी नह होगा, ले कन तब घटना नह होगी। क उसक अनंत ती ा, उसका अनंत धैय, उसक अनंत लगन, उसका अनंत संक , उसम अनंतता को झेलने क साम पैदा करता है। तो घटना नह होगी। इस लए दोन तरह से घटना घटती है। ले कन तब उसे श पात मालूम नह पड़ेगा, उसको साद ही मालूम पड़ेगा; क कोई मा म तो नह है; कोई बीच म सरा नह है। अहं शू ही मा म तो दोन बात म समानता है, दोन बात म भेद है। म इसी प म ं क जहां तक हो सके साद उपल हो, जहां तक हो सके ेस उपल हो, जहां तक हो सके कोई

बीच म मा म न बने। ले कन कई तय म यह असंभव है; कई लोग के लए असंभव है। तो बजाय इसके क वे अनंत काल तक भटकते रह, कसी को मा म भी बनाया जा सकता है। ले कन वही मा म बन सकता है जो न रह गया हो। तब खतरा ब त कम हो जाता है। वही मा म बन सकता है जसम अब कोई अ ता, कोई ईगो शेष न रह गई हो। तब खतरा न के बराबर हो जाता है। खतरा इस लए न के बराबर हो जाता है क ऐसा मा म भी बन जाएगा और फर भी गु नह बनेगा; क गु बननेवाला तो अब कोई नह रहा। सदगु वही, जो गु नह बनता इस फक को ठीक से समझ लेना। जब कोई गु बनता है तो तु ारे संबंध म बनता है, और जब मा म बनता है तब परमा ा के संबंध म बनता है; तुमसे कुछ लेनादेना फर नह रह जाता। समझ रहे हो न मेरा फक? और परमा ा के संबंध म कोई भी त बने, वहां अहं कार नह टक सकता। ले कन तु ारे संबंध म कोई भी त बने, तो अहं कार टक जाएगा। तो जसको ठीक गु कह वह वही है जो गु नह बनता है। सदगु क प रभाषा अगर करनी हो तो यही है सदगु क प रभाषा क जो गु नह बनता है। इसका मतलब आ क सम गु बननेवाले लोग गु नह होने क यो ता रखते ह। गु बनने के दावे से बड़ी अयो ता और कोई नह है। यानी वही डस ा ल फकेशन है; क तु ारे संबंध म वह एक अहं कार क त ले रहा है। और खतरनाक हो जाएगा। अगर अनायास कोई शू हो गया है, अहं कार वलीन हो गया है, और वाहन बन सकता है--बन सकता है, कहना भी शायद गलत है; कहना चा हए, वाहन बन गया है--तो उसके नकट भी श पात क घटना घट सकती है। ले कन तब उसम घटना क कोई संभावना नह रहती। न तो तु ारे को घटना क संभावना है, और न जस वाहन से श तुम तक आई है उसके को घटना क संभावना है। फर भी मौ लक प से म ेस के प म ं । और जब इतनी शत पूरी हो जाएं क न हो, अहं कार न हो, तो फर श पात ेस के करीब प ं च गया, ब त करीब प ं च गया। और अगर उस को कोई पता ही नह हो, तब फर वह ब त ही करीब प ं च गया। तब उसके पास होने से घटना घट जाए। तो अब यह जो है, तु क तरह दखाई पड़ रहा है, ले कन अब यह परमा ा के साथ एकाकार ही हो गया। कहना चा हए, परमा ा का फैला आ हाथ हो गया जो तु ारे करीब है। अब यह बलकुल इं ू मटल है, साधन मा है। और ऐसी त म अगर यह म क भाषा भी बोले, तो भूल हम हो जाती है ब त बार; क ऐसी अव ा म जब यह म बोलता है, तो उसका मतलब होता है परमा ा। ले कन हम बड़ी क ठनाई. क हम तो. इस लए कृ कह सकते ह अजुन से--मामेकं शरणं ज। मेरी शरण म आ जा तू। और हजार साल तक हम सोचगे क यह आदमी कैसा रहा होगा, जो कहता है: मेरी शरण म आ जा। तब तो अहं कार प ा है। ले कन यह आदमी कह ही इस लए पाया है क यह बलकुल नह है। अब यह तो कसी का फैला आ हाथ है, और वही बोल रहा है: मेरी शरण आ जा--मुझ एक क शरण आ जा। यह श बड़ा क मती है, मामेकं! मुझ एक क शरण आ जा। ‘म’ तो एक कभी नह होता,

‘म’ तो अनेक है। यह कसी ऐसी जगह से बोल रहा है जहां ‘म’ एक ही होता है। ले कन अब यह कोई अहं कार क भाषा नह है। ले कन हम तो अहं कार क भाषा ही समझते ह। इस लए हम समझगे क कृ अजुन से कह रहे ह: मेरी शरण म आ जा। तब भूल हो जाएगी। इस लए हमारे ेक श को देखने के दो माग ह: एक हमारी तरफ से, जहां से ां त सदा होगी; और एक परमा ा क तरफ से, जहां कोई ां त का सवाल नह है। तो कृ जैसे से घटना घट सकती है; और उसम कृ के का कोई लेना-देना नह है। इतने करीब आ जाना चा हए श पात साद के क तुम जो कहते हो क आपक दोन बात म वरोध दखाई पड़ता है.दोन घटनाएं अपनी अ त पर ब त व ह, ले कन दोन घटनाएं अपने क पर अ त नकट ह। और म उसी प म ं जहां क साद म और श पात म क चत फक करना मु ल हो जाए। वह साथक है बात, वह क मती है। चीन म एक सं ासी बड़ा समारोह मना रहा है। वह अपने गु का ज दन मना रहा है। और उस तरह का ोहार गु के ज दन पर ही मनाया जाता है। ले कन लोग उससे पूछते ह क तुम तो कहते थे क मेरा कोई गु नह है, तो तुम ज दन कसका मना रहे हो? और तुम तो सदा कहते थे क गु क कोई ज रत ही नह है, तो तुम आज यह उ व कसका मना रहे हो? तो वह आदमी कहता है क मुझे मु ल म मत डालो; अ ा हो क म चुप र ं । ले कन जतना वह चुप रहता है उतना लोग और पूछते ह क बात ा है, तुम यह मना ा रहे हो? क यह दन तो गु पव है; इस दन तो गु का उ व ही मनाया जाता है। तो तु ारा कोई गु है ा? तो वह आदमी कहता है, तुम नह मानोगे तो मुझे कहना पड़ेगा। म आज उस आदमी का रण कर रहा ं जसने मेरा गु बनने से इनकार कर दया था; क अगर वह मेरा गु बन जाता तो म सदा के लए भटक जाता। उस दन तो म ब त नाराज आ था, आज ले कन उसे ध वाद देने का मन होता है. क वह चाहता तो गु त ाल बन सकता था, म तो खुद गया था उसको मनाने, ले कन वह गु बनने को राजी नह आ था। तो वे लोग पूछते ह क फर ध वाद ा दे रहे हो, जब वह गु बनने को राजी नह आ? तो वह सं ासी कहता है, तुम मुझे ादा मु ल म मत डालो; अब इतना मने कह दया, यह काफ है। क वह आदमी गु तो नह बना था, ले कन जो कोई गु नह कर सकता है, वह आदमी कर गया है। इस लए ऋण दोहरा हो गया। एक तो वह आदमी गु भी बन जाता तो भी लेन-देन हो जाता न दोन तरफ से! कुछ उसने भी हम दया था, हमने भी कुछ उसे दया था--आदर दया था, ा दी थी, पैर छू लए थे-- नपटारा हो गया था; कुछ हमने भी कर लया था। ले कन वह आदमी गु भी नह बना, उसने आदर भी नह मांगा, ा भी नह मांगी, तो ऋण दोहरा हो गया-- बलकुल इकतरफा हो गया; वह दे गया और हम कुछ ध वाद भी नह दे पाए; क ध वाद देने का भी उसने ान नह छोड़ा था। शु तम श पात साद के नकट तो यहां श पात--ऐसी त म--और साद म कोई फक नह रह जाएगा। और

जतना फक हो उतना ही श पात से बचना; और जतना फक कम हो उतना ही ठीक है। इस लए म जोर देता ं साद पर, ेस पर। और जस दन श पात भी साद के करीब आ जाए--इतने करीब आ जाए क तुम ड श न कर सको, फक न कर सको क दोन म ा फक है--उस दन समझ लेना क बात ठीक हो गई। ं द, सहज और तु ारे घर क बजली जस दन आकाश क बजली क तरह वराट श का ह ा हो जाए, और जस दन तु ारे घर का ब दावा करना छोड़ दे क म ं श का ोत, उस दन तुम समझना क अब श पात भी हो तो वह साद ही है। मेरी बात खयाल कए! व ोट: दो श य का मलन : ओशो, आपने समझाया क आप से श उठे और परमा ा से मल जाए या परमा ा क श आए और आप म मल जाए। थम तो कुंड लनी का उठना है और सरी बात ई र क ेस मलने क है । आगे आपने कहा है क आपके भीतर सोई ई ऊजा जब वराट क ऊजा से मलती है तब ए ोजन, व ोट होता है । तो ए ोजन या समा ध के लए कुंड लनी जागरण और ेस का मलन आव क है या कुंड लनी का सह ार तक वकास और ेस क उपल एक बात है ?

असल म, व ोट एक श से कभी नह होता, व ोट सदा दो श य का मलन है। ए ोजन जो है, वह एक श से कभी नह होता। अगर एक श से होता होता तो कभी का हो जाता। तु ारी मा चस भी रखी है, तु ारी मा चस क काड़ी भी रखी है, वह रखी रहे अनंत ज तक--एक इं च के फासले पर, आधा इं च के फासले पर वह रखी है, रखी रहे, तो आग पैदा नह होगी। उस व ोट के लए उन दोन क रगड़ ज री है, तो आग पैदा होगी। वह छपी है दोन म, ले कन कसी एक म भी अकेले पैदा होने का उपाय नह है। जो व ोट है, वह दो श य के मलने पर पैदा ई संभावना है। तो के भीतर जो सोई ई है श , वह उठे और उस ब तक आ जाए। सह ार वह ब है जसके पहले मलन ब त असंभव है। जैसे क तु ारे दरवाजे बंद ह और सूरज बाहर खड़ा है। रोशनी तु ारे दरवाजे पर आकर क गई है। तुम अपने घर से चलो, चलो; भीतर से बाहर क तरफ आओ, आओ; दरवाजे तक आकर भी खड़े हो जाओ, तो भी तु ारा सूरज क रोशनी से मलन न हो। दरवाजा खुले और मलन हो जाए। सह ार पर ती ारत परमा ा तो जो हमारा अं तम चरम ब है कुंड लनी का, सह ार, वह हमारा ार है, जहां ेस सदा ही खड़ी ई है, जस ार पर परमा ा नरं तर तु ारी ती ा कर रहा है। ले कन तुम ही अपने ार पर नह हो; तुम ही अपने ार से ब त भीतर कह और हो। तो तु अपने ार तक आना है, वहां मलन हो जाएगा। और वह मलन व ोट होगा। व ोट इस लए कह रहे ह उसे क उस मलन म तुम त ाल वलीन हो जाओगे;

ए ोजन इस लए है क उस मलन के बाद तुम बचोगे नह । वह जो काड़ी है वह बचेगी नह मा चस क उस व ोट के बाद। मा चस तो बचेगी, काड़ी नह बचेगी। काड़ी तो जलकर राख हो जाएगी, काड़ी तो नराकार म वलीन हो जाएगी। तो उस घटना म तुम चूं क मट जाओगे, टूट जाओगे, बखर जाओगे, खो जाओगे, तुम बचोगे नह ; तुम जैसे थे ार तक आने के पहले, वैसे तुम नह बचोगे। तु ारा सब खो जाएगा, तुम मट जाओगे। जो ार पर खड़ा था वही बचेगा, तुम उसी के ह े हो जाओगे। यह घटना तुमसे अकेले नह हो सकती। इस व ोट के लए उस वराट श के पास तु ारा जाना ज री है। उस श के पास जाने के लए, तु ारी श जहां सोई है वहां से उसे उठकर वहां तक जाना पड़ेगा जहां वह श तु ारी ती ा कर रही है। तो कुंड लनी क जो या ा है, वह तु ारे सोए ए क से उस ान तक है, उस सीमांत तक, जहां तुम समा होते हो; तु ारी जो सीमा है। मनु क दो सीमाएं तो एक सीमा तो हमारे शरीर क है जो हमने मान रखी है। यह बड़ी सीमा नह है; क मेरा हाथ कट जाए, तो भी कुछ खास फक नह पड़ता; मेरे पैर कट जाएं , तो भी कुछ खास फक नह पड़ता; फर भी म रहता ं । यानी इन सीमाओं के घटने-बढ़ने से म मटता नह । मेरी आंख चली जाएं , मेरे कान चले जाएं , तो भी म ं । तु ारी असली सीमा तु ारे शरीर क सीमा नह है, तु ारी असली सीमा सह ार का ब है, जसके बाद तुम नह बच सकते। उस सीमा पर एन ोचमट आ क तुम गए, फर तुम नह बच सकते। तु ारी कुंड लनी तु ारी सोई ई श है। तो वह तु ारे यौन के क के नकट और तु ारे म के क के नकट तु ारी सीमा है। इसी लए हम नरं तर यह खयाल होता है क हम अपने पूरे शरीर से चाहे अपनी आइड टटी छोड़ द, ले कन अपने सर से, अपने चेहरे से आइड टटी नह छोड़ पाते। यानी मुझे यह मानने म ब त क ठनाई नह लगती क हो सकता है यह हाथ म न होऊं, ले कन अगर दपण म अपना चेहरा देखकर यह सोचूं क यह चेहरा म नह ं , तो ब त मु ल हो जाती है; वह सीमांत है। इस लए आदमी सब खोने को तैयार हो सकता है, बु खोने को तैयार नह होता। सुकरात से कसी ने पूछा है क तुम एक असंतु सुकरात होना पसंद करोगे क एक संतु सुअर होना पसंद करोगे? क सुकरात संतोष क बात कर रहा था; वह कह रहा था: संतोष परम धन है। तो कोई उससे पूछ रहा है क तुम एक संतु सुअर होना पसंद करोगे क एक असंतु सुकरात होना? तो वह सुकरात कहता है क संतु सुअर होने से तो म एक असंतु सुकरात होना ही पसंद क ं गा; क संतु सुअर को संतोष का पता भी तो नह हो सकता, असंतु सुकरात को कम से कम असंतोष का पता तो होगा। अब यह जो कह रहा है असंतु सुकरात, वह हम यह कह रहे ह क हम सब खोने को तैयार ह ले कन बु को न खोएं गे, चाहे बु असंतु ही न हो। बु भी हमारे उस क के ब त नकट है। अगर हम ठीक से समझ तो हमारे सीमांत दो ह। एक यौन हमारी सीमा रे खा है, जसके पार कृ त शु होती है; जसके नीचे, बलो दैट कृ त क नया शु होती है। तो जहां हम से के ब पर होते ह, वहां हम म, पशु म, पौधे म कोई फक नह होता; क पशु

क , पौधे क वह अं तम सीमा है जो हमारी थम सीमा है; वहां उनक सीमा ख होती है। इस लए से के ब पर पशु म और हम म कोई फक नह होता। वह पशु क अं तम सीमा है और हमारी पहली सीमा है। उस ब पर जब हम खड़े होते ह तो हम पशु ही होते ह। हमारी सरी सीमा है बु ; वह हमारे सरे सीमांत के नकट है, जसके पार परमा ा है। उस ब पर होकर भी फर हम नह होते, फर हम परमा ा ही होते ह। और ये हमारी दो सीमा रे खाएं ह, और इनके बीच हमारी श का आंदोलन है। अभी हमारी सारी श जस कुंड पर सोई है, वह यौन के पास है। इस लए आदमी का न ानबे तशत चतन, न ानबे तशत , न ानबे तशत या-कलाप, न ानबे तशत जीवन उसी कुंड के आसपास तीत होता है। स ता कतना ही झुठलाए, समाज कतना ही और कुछ कहे, आदमी जीता वह है; वह काम के पास ही जीता है। वह धन कमाता है तो इस लए, मकान बनाता है तो इस लए, यश कमाता है तो इस लए--वह जो भी कर रहा है, उसके ब त मूल म खोजने पर उसका काम मल जाएगा। दो ल , दो साधन इस लए जनको समझ थी, उ ने दो ही ल बताए: काम और मो । ये दो ल ह। और अथ और धम, दो साधन ह। अथ यानी धन, वह काम का साधन है। इस लए जतना कामुक युग होगा, उतना धन पपासु होगा; जतना मो क आकां ा करनेवाला युग होगा, उतना धम पपासु होगा। धम साधन है, जैसे धन साधन है। अगर मो पाना है तो धम साधन बन जाता है, और अगर काम-तृ पानी है तो धन साधन बन जाता है। तो दो ह ल और दो ह साधन, क दो हमारी सीमाएं ह। और उन सीमाओं पर हम.और यह बड़े मजे क बात है क उन दो सीमाओं के बीच म तुम कह भी नह टक सकते; उनके बीच म तुम कह नह ठहर सकते; क उनके बीच म तुम ऐसे मालूम पड़ोगे क जैसा गधा घर का न घाट का हो जाता है। कुछ लोग उस हालत म पड़कर बड़ी मुसीबत म पड़ जाते ह। ब त लोग पड़ जाते ह उस मुसीबत म तो ब त मु ल म पड़ जाते ह। उनको मो क अभी ा नह होती और काम का वरोध अगर कसी वजह से पैदा हो गया, तो वे क ठनाई म पड़ जाएं गे; वे काम के ब से र हटने लगगे और मो के ब के पास नह जाएं गे। तब वे एक ऐसी वधा म पड़ जाएं गे जो ब त ही क ठन है, ब त खद है, ब त नारक य है। और उनका जीवन सारा का सारा अंत से भर जाएगा। बीच के ब पर टकना न उ चत है, न ाभा वक है, न अथपूण है। इसे हम ऐसा समझ ल क जैसे कोई सीढ़ी पर चढ़े और बीच म क जाए। तो हम उससे कहगे: कुछ भी करो, या तो वापस लौट आओ या ऊपर चले जाओ! क सीढ़ी कोई मकान नह है, सीढ़ी कोई नवास नह है; उसम बीच म क जाना कसी भी अथ का नह है। यानी एक आदमी अगर सीढ़ी पर क जाए तो समझो उससे ादा थ आदमी खोजना ब त मु ल होगा; क उसे कुछ भी करना है तो उसे सीढ़ी के या तो नीचे के ब पर आना पड़े या ऊपर के ब पर जाना पड़े। तो हमारी जो रीढ़ है, समझ लो क सीढ़ी है। है भी सीढ़ी। और रीढ़ का एक-एक गु रया समझो क एक-एक े प है। और वह जो हमारी कुंड लनी है, वह नीचे के क से या ा शु करती है और ऊपर के अं तम क तक जाती है। ऊपर के क पर वह प ं च जाए तो

व ोट न त है; वहां फर व ोट नह बच सकता। और नीचे के क पर प ं च जाए तो लन न त है, वहां लन नह बच सकता। इन दोन बात को ठीक से समझ लेना। न ब पर लन और उ तम पर व ोट कुंड लनी नीचे के ब पर है तो लन न त है, ऊपर के ब पर प ं च जाए तो व ोट न त है। दोन ही व ोट ह, और दोन के लए ही सरे क ज रत है। वह जो यौन का लन है, उसम भी सरा अपे त है--चाहे क ना म ही सही, ले कन सरा अपे त है। तो उस जगह से भी तु ारी ऊजा वक ण होगी। पर उस जगह से तु ारी पूरी ऊजा वक ण नह हो सकती। नह हो सकती इस लए क वह ब तु ारा ाथ मक ब है; तुम उससे ब त ादा हो; उस ब से तुम आगे जा चुके हो। पशु तो वहां पूरा तृ हो जाता है। इस लए पशु मो नह खोजता। अगर पशु कोई शा लखे तो वहां दो ही पु षाथ ह गे--काम और धन, अथ और काम। धन भी पशु क नया का धन होगा। अब जस पशु के पास ादा मांस है, ादा श है, उसके पास ादा धन है; वह सरे पशुओ ं से काम क तयो गता म जीत जाएगा; वह अपने आसपास दस मादाएं इक ी कर लेगा। वह भी एक तरह का धन इक ा कया है। उसके पास चब ादा है, वह धन है। एक के पास तजोरी ादा है, वह भी चब है, जो कभी भी चब म कनवट हो सकती है। तो एक राजा है, वह हजार रा नयां इक ी कर लेगा। एक जमाना था क आदमी के पास कतनी संपदा है, वह उसक य से नापा जाता था क उसके पास कतनी यां ह। गरीब आदमी है तो वह कैसे चार ी रख सकता है! तो जैसे आज हम श ा से नापते ह क कौन आदमी कतना श त है, या कौन आदमी के पास कतना बक बैलस है। ये सब ब त बाद के मेजरमट ह, पहला मेजरमट तो एक ही था क उसके पास कतनी यां ह। इस लए ब त बार हम अपने महापु ष को बड़ा बताने के लए ब त यां गनानी पड़ , जो झूठी ह। जैसे कृ क सोलह हजार! अब यह कृ को बड़ा बताने का उस व और कोई उपाय नह था-- क अगर कृ बड़े आदमी ह तो औरत कतनी ह? वह एकमा मेजरमट होने क वजह से हमको फर गनती करानी पड़ी क भई ब त ह। और सोलह हजार अब ब त कम मालूम पड़ती ह, क अब हमारे पास ब त बड़ी सं ाएं ह। उन दन सं ाएं ब त बड़ी नह थ । अगर अ का म जाएं तो अब भी ऐसी कौम ह क जनक कुल सं ा तीन पर ख हो जाती है। तो अगर कसी के पास चार औरत ह तो वह यह कहेगा, ब त! क तीन के बाद सं ा ख हो जाती है। तो वह कहेगा, मेरे पास ब त, असं औरत ह। असं ! क तीन के बाद तो सं ा ख हो जाती है उसक , तो तीन के बाद जतनी ह उनको वह गन तो सकता नह , तो वह कहता है, असं औरत ह। दोन के लए सरा अपे त उस तल पर भी सरा अपे त है। अगर सरा व ुतः मौजूद न हो, तो भी क ना म अपे त है। बाक सरा अपे त है। सरे के बना लन भी नह हो सकता ऊजा का। ले कन क ना म भी सरा उप त हो तो लन हो सकता है। इसी वजह से यह

खयाल पैदा आ क अगर क ना म भी परमा ा उप त हो तो व ोट हो सकता है। इस लए भ क लंबी धारा चली जसने क क ना को ही व ोट का आधार बनाने क को शश क । क जब क ना म वीय- लन हो सकता है, तो सह ार से ऊजा का व ोट नह हो सकता? इस खयाल ने का नक ई र को भी जोर से मन म बठा लेने क संभावनाओं को गाढ़ कर दया। उसका कारण यही था। ले कन यह नह हो सकता। लन इस लए हो सकता है क ना म, क व ुतः लन आ है, इस लए उसक क ना क जा सकती है। ले कन परमा ा से तो कभी मलन नह आ, इस लए कोई क ना नह क जा सकती उसक । क ना हम उसक ही कर सकते ह जो आ है। तो फर उसक क ना से भी काम लया जा सकता है। यानी एक आदमी ने कोई एक तरह का सुख लया है तो फर वह आंख बंद करके उसका सपना भी देख सकता है, ले कन अगर लया ही नह है तो फर सपना नह देख सकता। जैसे बहरा आदमी लाख को शश करे , सपने म भी श नह सुन सकता, उसक क ना भी नह कर सकता। अंधा आदमी हजार उपाय करे तो भी सपने म भी काश नह देख सकता। हां, यह हो सकता है क एक आदमी क आंख चली ग , अब वह सपने म बराबर काश देख सकता है। ब अब सपने म ही देख सकता है! क अब तो आंख तो नह है, इस लए अस लयत म तो नह देख सकता। तो जो हमारा अनुभव आ है, उसक हम क ना भी कर सकते ह; ले कन जो अनुभव नह आ है, उसक तो क ना का भी उपाय नह । और व ोट हमारा अनुभव नह है, इस लए वहां क ना काम नह कर सकती है। वहां व ुतः जाना होगा और व ुतः ही घटना घट सकती है। मनु : पशु और परमा ा के बीच का सेतु तो जो सह च है, वह तु ारी अं तम सीमा है, जहां से तुम समा होते हो। जैसा मने कहा क सीढ़ी। और आदमी एक सीढ़ी ही है। इस लए नी शे के वचन ब त क मती ह। वह कहता है क आदमी सफ एक सेतु है--मैन इज़ ए ज ब वीन टू इटर नटीज--दो अनंतताओं के बीच म एक सेतु। एक अनंतता है कृ त क , उसक भी कोई सीमा नह है; और एक अनंतता है परमा ा क , उसक भी कोई सीमा नह है। और आदमी दोन के बीच म झूलता आ एक सेतु है। इस लए आदमी पड़ाव नह है। या तो पीछे जाओ या आगे जाओ, इस सेतु पर मकान बनाने क जगह नह है। और जो भी इस पर मकान बनाएगा वह पछताएगा; क सेतु कोई मकान बनाने क जगह नह है, सफ पार होने के लए है। फतेहपुर सीकरी म अकबर ने जो एक सव धम मं दर बनाने क क ना क थी, उसम जो एक दीन-ए-इलाही का खयाल था क सब धम का सारभूत हो, तो उसने उस दरवाजे पर जो वचन खुदवाया है वह जीसस का वचन है। जीसस का वचन उसने खुदवाया है उस दरवाजे पर, वह वचन यह है क यह जगत मुकाम नह , सफ पड़ाव है। यहां थोड़ी देर ठहर सकते हो, ले कन क ही मत जाना; यह कोई या ा का अंत नह है, यह सफ थकान मटाने के लए एक पड़ाव है, एक सराय है--जहां हम रात भर कते ह और सुबह फर चल पड़ते ह। और कते सफ इसी लए ह क सुबह चल सक, और कने का कोई योजन

नह है; कने के लए नह कते। पशु-वृ य का सुख हमेशा णक तो आदमी एक सीढ़ी है जस पर या ा है। इस लए आदमी सदा तनाव है। अगर हम ठीक से कह तो तनाव है आदमी, यह कहना शायद ठीक नह ; यही कहना ठीक है क मनु एक तनाव है। क ज जो है तनाव ही है, तना आ है; तना आ होकर ही ज हो सकता है। वह दो छोर पर--और बीच म बेसहारा--तना आ है। इस लए मनु एक अ नवाय तनाव है। इस लए मनु कभी शांत नह हो सकता। या तो वह पशु होता है तो थोड़ी सी शां त मलती है, और या फर वह परमा ा होता है तो फर पूरी शां त मलती है। पशु होकर भी तनाव उतर जाता है, क वह वापस लौट आया सीढ़ी से, नीचे जमीन पर खड़ा हो गया--प र चत जमीन पर, पहचानी ई जमीन पर, जसम वह अनंत-अनंत ज रहा है, वहां वापस आ गया; झंझट के बाहर हो गया। अभी कोई तनाव नह है। इस लए या तो आदमी से म खोजता है तनाव क मु , या से से संबं धत और अनुभव म खोजता है--शराब म, नशे म--जहां भी मू ा है, वहां वह खोज लेता है। ले कन वहां तुम थोड़ी देर ही क सकते हो; क तुम अब कुछ भी चाहो तो ायी प से पशु नह हो सकते। बुरे से बुरा आदमी भी ण काल को ही पशु हो सकता है। वह जो आदमी कसी क ह ा कर देता है, वह भी ण भर म ही कर पाता है। अगर ण भर और क गया होता तो शायद नह कर पाता। यानी हमारा पशु होना करीब-करीब ऐसा है जैसे एक आदमी जमीन पर छलांग लगाता है; तो एक सेकड को हवा म रह पाता है, फर वापस जमीन पर लौट आता है। तो बुरे से बुरा आदमी भी ायी बुरा नह होता, न हो सकता है। बुरे से बुरा आदमी भी क ण म बुरा होता है। और उन ण के बाहर वह ऐसा ही आदमी होता है जैसे सारे आदमी ह। पर उस एक ण को उसे राहत मल सकती है, क वह प र चत भू म पर प ं च गया, जहां कोई तनाव नह था। इस लए पशु के मन म तु कोई तनाव नह दखेगा; उसक आंख म झांकोगे तो कोई तनाव नह दखेगा। पशु पागल नह होता, आ ह ा नह करता, उसे दय का दौरा नह पड़ता। उसे ये सब बात नह होत । हां, आदमी के च र म पड़ जाए तो हो सकती ह; आदमी क बैलगाड़ी म जुट जाए तो दय का दौरा हो सकता है; आदमी का घोड़ा बन जाए तो मु ल म पड़ सकता है; आदमी का कु ा हो तो पागल भी हो सकता है। वह सरी बात है। वह भी इसी लए है क वह आदमी अपने ज पर उसको ख च लेता है, इस लए वह झंझट म डाल देता है उसे। अब जैसे एक कु ा इस कमरे म आए तो अपनी मौज से घूमेगा। ले कन अगर कसी आदमी का पाला आ कु ा हो तो वह उससे कहेगा--बैठ जाओ उस कोने म! तो वह कु ा उस कोने म बैठेगा। वह आदमी क नया म वेश कर गया। वह पशु क नया के बाहर हो गया। अब वह झंझट म पड़नेवाला है कु ा। वह बैठा है। है तो वह कु ा, ले कन बैठा है आदमी क तरह। अब तुमने उसको तनाव म डाल दया है। अब वह बड़ी झंझट म है क कब आ ा हटे और वह यहां से बाहर हो जाए। आदमी कुछ देर के लए, ण, दो ण के लए वहां प ं च सकता है। इसी लए जो हम नरं तर कहते ह क हमारे सब सुख णक ह, उसका और कोई कारण नह है। सुख

शा त हो सकता है। ले कन जहां हम सुख खोजते ह वह त णक है, सुख णक नह है। हम खोजते ह पशु होने म, तो वह णक ही हो सकता है, क हम पशु ण भर को मु ल से हो पाते ह। वह ऐसा ही है क जैसे हम. कसी त म वापस लौटना सदा मु ल है। अगर तुम कल म वापस लौटना चाहो, बीते कल म, तो तुम आंख बंद करके एकाध ण को ऐसी क ना म हो सकते हो क लौट गए। ले कन कतनी देर? आंख खोलोगे और पाओगे क नह , वापस खड़े हो--जहां थे वह आ गए हो। पीछे लौटा नह जा सकता; ण भर क कोई जबरद ी क जा सकती है। फर पछतावा होगा। इस लए जतने भी णक सुख ह, सबके पीछे पछतावा है, सबके पीछे रपटस है, सबके पीछे एक ख-बोध है-- क बेकार मेहनत क , वह सब थ गया। ले कन फर चार दन बाद तुम भूल जाओगे और फर छलांग लगा लोगे। पशु के तल पर जाकर ण भर को सुख पाया जा सकता है, भु के तल पर जाकर शा त सुख म डूबा जा सकता है। ले कन यह या ा तु ारे भीतर पहले पूरी होगी; तु अपने सेतु के एक कोने से सरे कोने पर प ं चना होगा, तब सरी घटना घटे गी। संभोग और समा ध म समानता इस लए म संभोग और समा ध को बड़ी समतुल बात मानता ं । समतुल मानने का कारण है। असल म, वे ही दो समतुल घटनाएं ह, और कोई घटना समतुल नह है। संभोग क त म हम ज के इस छोर पर होते ह, सीढ़ी के नीचेवाले ह े पर होते ह, जहां से हम कृ त से मलते ह। और समा ध म हम सीढ़ी के सरे छोर पर होते ह, जहां हम परमा ा से मलते ह। दोन मलन ह, दोन व ोट ह एक अथ म, दोन म कसी खास अथ म तुम खोते हो। हां, कसी म ण भर के लए, से म और संभोग म ण भर के लए और समा ध म सदा के लए। वह सरी बात है। ले कन दोन तय म तुम मटते हो। यह बड़ा णक व ोट है जो वापस लौट आता है; तुम र लाइज हो जाते हो; क तुम जहां गए थे वह तुमसे पीछे क अव ा थी, उसम तुम लौट नह सकते। ले कन परमा ा म जाकर तुम र लाइज नह हो सकते, वापस तुम सुसंग ठत नह हो सकते। क जसम तुम गए हो, उसम जाते ही, फर तु ारा वापस लौटना उतना ही असंभव है जैसे क पहले तुम पीछे वापस लौटने म असंभव थे। अब तो और भी असंभव है। अब तो इतना असंभव है, ऐसे ही जैसे क एक आदमी बड़ा हो गया और उसके बचपन के पाजामे म उसे वापस लौट आना पड़े। पर वह भी संभव है; यह संभव नह है। क तुम वराट के साथ एक हो गए, अब तुम म नह लौट सकते। अब वह इतनी ु , संक ण जगह है क जहां तु ारे वेश का कोई उपाय नह है। अब तुम सोच ही नह सकते क इसम जाना कैसे हो सकता है! तुम यह भी नह सोच सकते क म इसम कभी था तो कैसे था; इतने छोटे होने म कैसे हो सकता ं । वह बात ख हो जाती है। उस व ोट के लए दोन बात ज री ह; तु ारे भीतर क या ा तु ारे अं तम ब सह ार तक आनी चा हए। सह -दल कमल का खलना और उसे हम सह कहते ह, वह भी थोड़ा खयाल म लेना ज री है। ये सारे श आक क नह ह।

हमारी भाषा आमतौर से आक क है, उपयोग से पैदा ई है। जैसे कसी चीज को हम दरवाजा कहते ह। दरवाजा न कह, कुछ और कह, तो कुछ हज नह होता। नया म हजार भाषाएं ह तो हजार श ह गे दरवाजे के लए, और सभी श काम कर जाते ह। ले कन फर भी कोई एक बात जो सांयो गक नह है, वह शायद सभी म मेल खाएगी। तो दरवाजा या डोर या ार का जो भाव है: जसके ारा हम बाहर-भीतर जाते ह, वह सभी भाषाओं म मेल खाएगा; क वह अनुभव का ह ा है, वह सांयो गक नह है। जससे हम बाहरभीतर आते-जाते ह; जससे जगह मलती है बाहर-भीतर आने-जाने क ; ेस का एक खयाल जो उसम है, वह सबम होगा। तो सह श बड़ा अनुभव का है, सांयो गक नह है। जैसे ही तुम उस अनुभू त को उपल होते हो, तु लगता है क तु ारे भीतर जैसे हजार-हजार फूल एकदम से खल गए--सब बंद हजार फूल एकदम से खल गए। हजार भी इसी अथ म क सं ा के बाहर जैसी घटना घटती है। और फूल इस अथ म क ाव रग होती है, कोई चीज जो बंद थी कली क तरह वह खुलती है। फूल का मतलब है खलना। फूल का मतलब वही होता है जो फु होने का होता है--खुल जाना। ाव रग का भी वही मतलब होता है--खुल जाना। कोई चीज जो बंद थी वह खुल गई है। तो कली क तरह कोई चीज थी वह फूल क तरह हो गई है। और फर एकाध चीज नह खुल गई, अनंत चीज जैसे पूरे तरफ से खुल गई ह। तो इस लए इसको सह कमल, हजार कमल खल गए ह, यह खयाल आना बलकुल ाभा वक था। अगर तुमने कभी सुबह कमल को खलते देखा है--नह देखा तो गौर से देखना चा हए, ब त नकटता से, ब त चुपचाप बैठकर उसके पूरे, धीरे -धीरे पूरे खलने को देखना चा हए--तो तु खयाल आ सकेगा क अगर हजार म के कमल एकदम से खल जाएं गे तो कैसी ती त, उसक तुम थोड़ी सी प-रे खा क ना म ले सकोगे। और भी एक अदभुत अनुभव आ है। जन लोग को संभोग का ब त गहरा अनुभव होगा, उ भी खलने का एक अनुभव होता है ण भर को; उनके भीतर भी कोई चीज खलती है--बस ण भर को, फर बंद हो जाती है। ले कन उस खलने म और इस खलने म एक और अनुभव होगा क जैसे क फूल नीचे क तरफ लटका आ खले और फूल ऊपर क तरफ खले। पर वह तुलना तभी हो सकती है जब सरा अनुभव तु ारे खयाल म आ जाए; तब तु पता चलेगा क नीचे क तरफ फूल खल रहे थे और अब ऊपर क तरफ फूल खल रहे ह। नीचे क तरफ जो फूल खलते थे, भावतः वे नीचे के जगत से जोड़ देते थे; ऊपर क तरफ जो फूल खलते ह, भावतः वे ऊपर के जगत से जोड़ देते ह। असल म, उनका खलना और उनक ओप नग तु व नरे बल बना देती है, तु खोल देती है; सरी नया के लए दरवाजा बन जाते हो, वहां से कुछ तुमम वेश करता है। और उस वेश से तु ारे भीतर व ोट घ टत होता है। इस लए दोन बात ज री ह: तुम जाओगे वहां तक और वहां कोई ती ा ही कर रहा है। आना कहना ठीक नह है क वहां से कोई आएगा; तुम जाओगे वहां तक, कोई वहां ती ा कर रहा है, घटना घट जाएगी। श पात दोहरी घटना

: ओशो, ा केवल श पात के मा म से कुंड लनी सह ार तक वक सत हो सकती है ? उसके सह ार पर प ं चने पर ा समा ध का ए ोजन हो जाता है ? य द श पात के मा म से कुंड लनी सह ार तक वक सत हो सकती है , तो इसका अथ यह हो जाएगा क सरे से समा ध उपल हो सकती है !

इसे थोड़ा समझना पड़े। असल बात यह है, इस जगत म, इस जीवन म कोई भी घटना इतनी सरल नह है जसको तुम एक ही तरफ से देखो और समझ लो; उसे ब त तरफ से देखना पड़े। अब जैसे म इस दरवाजे पर आऊं और जोर से एक हथौड़ा मा ं और दरवाजा खुल जाए, तो म यह कह सकता ं क मेरे हथौड़े से दरवाजा खुला। और यह कहना एक अथ म सच भी है, क म अगर हथौड़ा नह मारता तो दरवाजा अभी खुलता नह था। ले कन इसी हथौड़े को म सरे दरवाजे पर मा ं और दरवाजा न खुल,े हथौड़ा ही टूट जाए-तब? तब तु सरा पहलू भी खयाल म आएगा क जब एक दरवाजे पर मने हथौड़ा मारा और दरवाजा खुला, तो सफ हथौड़े के मारने से नह खुला, दरवाजा भी खुलने के लए पूरी तरह तैयार था; क सरा दरवाजा नह खुला। कसी भी कारण से तैयार था--कमजोर था, जराजीण था, पर उसक तैयारी थी। यानी खुलने म सफ हथौड़ा ही नह खोल दया है उसे, दरवाजा भी खुला; क और सरे दरवाज पर हथौड़े क चोट करके देखी है तो हथौड़ा ही टूट गया है कह ; कह हथौड़ा नह टूटा, न दरवाजा खुला; कह हम थक गए चोट कर-कर के, वह नह खुला। तो इस घटना म जहां श पात से कुछ घटना घटती है, वहां श पात से ही घटती है, इस ां त म नह पड़ने क ज रत है। वहां वह सरा भी कसी ब त आंत रक तैयारी के एक छोर पर प ं च गया है, जहां जरा सी चोट सहयोगी हो जाती है। नह यह चोट लगती तो शायद थोड़ी देर लग सकती थी। तो इस श पात से जो हो रहा है वह कुंड लनी सह ार तक नह प ं च रही, इस श पात से इतना ही हो रहा है क टाइम ए लमट जो है, समय का जो थोड़ा वधान था, वह कम हो रहा है; और कुछ भी नह हो रहा। यह आदमी प ं च तो जाता ही। समझ लो क म इस हथौड़े से चोट नह मारता इस दरवाजे पर, और यह जराजीण दरवाजा, यह बलकुल गरने को हो रहा है; कल हवा के थपेड़े से गर जाता। हवा का थपेड़ा भी न आता, क दरवाजे का भा --न आए, हवा का थपेड़ा ही न आए उस तरफ--तो ा तुम सोचते हो, यह दरवाजा खड़ा ही रहता? यह दरवाजा जो एक ही चोट से गर गया, जो हवा के थपेड़े से डरता था क गर जाएगा, यह बना हवा के थपेड़े के भी एक दन गर जाएगा। जब तु कारण भी बताना मु ल हो जाएगा क कसने गराया, तब यह अपने से भी गर जाएगा, यह गरने क तैयारी इक ी करता जा रहा है। तो ादा से ादा जो फक लाया जा सकता है, वह सफ समय क प र ध का, टाइम गैप का। जो घटना रामकृ के पास अगर ववेकानंद को घटी, उसम अगर अकेले रामकृ ही ज ेवार ह, तो फर और कसी को भी घट जाती, ब त लोग उनके करीब

गए। सैकड़ उनके श ह। तो और कसी को नह घट गई है। और अगर ववेकानंद ही ज ेवार थे अकेले, तो वे रामकृ के पहले और ब त लोग के पास गए थे, उनके पास वह नह घटी थी। समझ रहे हो न? तो ववेकानंद क अपनी एक तैयारी थी, रामकृ क अपनी एक साम थी, यह तैयारी और यह साम कसी ब पर अगर मल जाएं , तो टाइम गैप कम हो सकता है। ववेकानंद, हो सकता है अगले ज म यह घटना घटती--वष भर बाद घटती, दो वष बाद घटती, दस ज बाद घटती--यह सवाल नह है; इस क अपनी भीतरी तैयारी अगर हो रही थी तो घटना घटती। टाइम गैप कम हो सकता है। और समझने क बात यह है क टाइम बड़ी ही फ ीशस, बड़ी मा यक घटना है, इस लए उसका कोई ब त मू नह है। असल म, समय इतनी ादा ल घटना है क उसका कोई बड़ा मू नह है। अभी तुम एक झपक लो और हो सकता है क घड़ी म एक ही मनट गुजरे और तुम जागकर कहो क मने इतना लंबा देखा क म ब ा था, जवान था, बूढ़ा आ, मेरे लड़के थे, शादी ई, धन कमाया, स े म हार गया--यह सब हो गया! और यहां बाहर हम कह क यह तुम कैसी बात कर रहे हो, इतना लंबा सपना देखने के लए भी व लगेगा। क अभी तुम एक सेकड तु ारी आंख बंद ई है सफ, तुमने झपक भर ली है। असल म ीम टाइम जो है, का जो समय है, उसक या ा ब त अलग है। वह ब त छोटे से समय म ब त घटनाएं घटाने क उसक संभावना है, इस लए हम बड़ी ां त होती है। अब ये कुछ क ड़े ह जो क पैदा होते ह सुबह और सांझ मर जाते ह। हम कहते ह, बेचारे ! ले कन हम यह पता नह क उनका टाइम का जो अनुभव है, वह उतना ही है जतना हम स र साल म होता है। कोई फक नह पड़ता। वे इस बारह घंटे म वह सब काम कर लेते ह-घर बना लेते ह, प ी खोज लेते ह, शादी- ववाह रचा लेते ह, लड़ाई-झगड़ा कर लेते ह--जो भी करना है, सब कर-करा के सांझ मर जाते ह। इसम कुछ कमी नह छोड़ते; इसम सब हो जाता है। इसम शादी- ववाह, तलाक, लड़ाई-झगड़ा, सब घटना घट-घटा कर वे सं ास वगैरह भी सब कर डालते ह--सुबह से सांझ तक! पर वह जो समय का उनका जो बोध है, उसम फक है। इस लए हम लगता है, बेचारे ! और वे अगर सोचते ह गे तो हमारे बाबत सोचते ह गे क जो हम बारह घंटे म कर लेते ह, तुमको स र साल लग जाते ह--बेचारे ! इतना काम तो हम ब त ज ी नपटा लेते ह, इन लोग को ा हो गया! कैसी मंद बु के ह, स र साल लगा देते ह! समय जो है, वह बलकुल ही मनो नभर, मटल एनटाइटी है। इस लए हम भी हमारे मन के अनुसार समय का अनुपात छोटा-बड़ा होता रहता है। जब तुम सुख म होते हो, समय एकदम छोटा हो जाता है; जब तुम ख म होते हो, समय एकदम लंबा हो जाता है। घर म कोई मर रहा है और तुम उसक खाट के पास बैठे हो, तब रात ब त लंबी हो जाती है, कटती ही नह । ऐसा लगता है क अब यह रात कभी ख होगी क नह होगी! सूरज उगेगा क नह उगेगा! रात इतनी लंबी होती जाती है क लगता है क अब नह , यह आ खरी रात है! अब यह कभी होगा नह , सूरज उगेगा नह ! ख समय को ब त लंबा कर

देता है; क ख म तुम ज ी से समय को बताना चाहते हो; तु ारी अपे ा ज ी क हो जाती है। तु ारा ए पे े शन है--ज ी बीत जाए। जतनी तु ारी अपे ा ती हो जाती है, समय उतना मंदा मालूम पड़ने लगता है, क उसका अनुभव रले टव है। जब तु ारी अपे ा ब त ती होती है, वह तो अपनी ग त से चला जा रहा है, पर तु ऐसा लगता है क ब त धीमे जा रहा है। जैसे कोई ेमी अपनी ेयसी से मलने बैठा है और वह चली आ रही है। वह तो चाहता है क बलकुल दौड़ती ई जेट क र ार से आओ, ले कन वह आदमी क र ार से आ रही है। तो उसे लगता है, कैसी मंद ग त चल रही है! तो ख म तु ारा समय का बोध एकदम लंबा हो जाता है। सुख आता है, तु ारा म मलता है, यजन मलता है, रात भर जागकर तुम गपशप करते रहते हो, सुबह वदा होने का व आता है; तुम कहते हो, रात कैसे बीत गई ण भर म! यह तो आई न आई बराबर हो गई! ऐसा लगता ही नह क आई भी। सुख म तु ारे समय का बोध एकदम भ हो जाता है, ख म भ हो जाता है। तो तु ारी मनो नभर इकाई है समय। इस लए इसम तो फक पैदा ही कए जा सकते ह, क तु ारे मन तक तो चोट क जा सकती है। इसम कोई क ठनाई नह है। अगर म तु ारे सर पर ल मार ं तो तु ारा सर खुल जाता है। तो अब तुम ा कहोगे क तु ारा सर एक आदमी ने खोल दया, उस पर नभर हो गए तुम! हो ही गए नभर। तु ारे शरीर को चोट क जा सकती है; तु ारे मन को भी चोट क जा सकती है। हां, तुमको चोट नह क जा सकती; क तुम न शरीर हो, न तुम मन हो। ले कन अभी तुम मन पर ठहरे ए अपने को मन मान रहे हो, या अपने को शरीर मान रहे हो, तो इन सबको तो चोट क जा सकती है। और इनक चोट से तु ारे समय के अंतर को ब त कम कया जा सकता है--क को ण म बदला जा सकता है; ण को क म बदला जा सकता है। मु समयातीत है ले कन जस दन तुम जागोगे, यह ब त मजे क बात है क बु जस दन जागे, उनको तो प ीस सौ साल हो गए, जीसस को दो हजार साल हो गए, कृ को शायद पांच हजार साल हो गए, जरथु को ब त समय आ, मूसा को ब त समय आ--ले कन जस दन तुम जागोगे, तुम अचानक पाओगे क अरे , वे भी अभी ही जागे ह! क वह जो टाइम गैप है, एकदम ख हो जाएगा। ये प ीस सौ साल, और दो हजार, और पांच हजार साल एकदम सपने के मालूम पड़गे। इस लए जब कोई जागता है, तो एक ही ण म सब जागते ह, कोई ण म फक नह पड़ता। ले कन यह बड़ा क ठन है खयाल म लेना। यह बड़ा क ठन है क जस दन तुम जाओगे, उस दन तुम एकदम कंटे ेरी हो जाओगे--बु के, महावीर के, कृ के। वे सब तु चार तरफ खड़े ए मालूम पड़गे; सब अभी-अभी जागे--अभी! तु ारे साथ ही! एक ण का भी फासला वहां नह है। वहां नह हो सकता। असल म, ऐसा समझो क हम एक बड़ा वृ ख च, एक बड़ा स कल बनाएं ; और स कल के सटर पर हम वृ से ब त सी रे खाएं ख च; हजार रे खाएं प र ध से ख च और क पर जोड़ द। प र ध पर तो ब त फासला होगा दो रे खाओं के बीच म। फर तुम क क

तरफ बढ़ने लगे, फासला कम होने लगा। फर तुम जब क पर प ं चोगे, तुम पाओगे-फासला ख हो गया, दोन रे खाएं एक हो ग । तो जस दन अनुभू त क उस गाढ़ता के क पर कोई प ं चता है, तो वे जो प र ध पर फासले थे, ढाई हजार साल का, दो हजार साल का, वे सब ख हो जाते ह। इस लए ब त द त होती है, बड़ी क ठनाई होती है, क उस जगह से बोलने से कई बार भूल हो जाती है। क जनसे हम बोल रहे ह, वे प र ध क भाषा समझते ह। इस लए ब त भूल क संभावना है वहां। एक आदमी मेरे पास आया। भ है, जीसस का भ । तो उसने मुझसे पूछा क आपका जीसस के बाबत ा खयाल है? तो मने उससे कहा क अपने ही बाबत खयाल बनाना अ ा नह होता। मुझे थोड़ा उसने च ककर देखा, उसने कहा क नह , शायद आप सुने नह ; म पूछ रहा ं : जीसस के बाबत आपका ा खयाल है? तो मने उससे कहा क म भी समझता ं क तुमने शायद सुना नह ! म कहता ं क अपने ही बाबत खयाल बनाना ठीक नह होता। उसने कुछ परे शानी से मुझे देखा। मने उससे कहा क जीसस के बाबत खयाल तभी तक बनाया जा सकता है जब तक जीसस को नह जानते। जस दन जानोगे उस दन तुमम और जीसस म ा फक है? कैसे खयाल बनाओगे? ऐसा आ क रामकृ के पास कभी कोई च कार आया और उनका एक च बनाकर लाया। और वह रामकृ को लाकर उसने बताया क दे खए, आपका च बनाया है, कैसा बना है? रामकृ उस च के पैर म सर लगाकर नम ार करने लगे। तो वहां जतने लोग बैठे थे उन सबने सोचा क कुछ भूल हो गई, क अपने ही च के पैर पड़ रहे ह! ा, गड़बड़ ा है? शायद समझे नह , च उ का है। तो उस च कार ने कहा, माफ क रए, यह च आपका ही है और आप ही इसके. तो उ ने कहा क अरे , म भूल गया। असल म, उ ने कहा क यह च इतना समा ध है क मेरा कैसे हो सकता है! रामकृ ने कहा, यह च इतना समा ध का है क मेरा कैसे हो सकता है! क समा ध म कहां म और कहां तू। तो म तो समा ध के पैर पड़ने लगा; तुमने ठीक याद दला दी, और व पर याद दला दी, नह तो लोग ब त हं सते।.पर लोग तो हं स ही चुके थे। प र ध क और क क भाषाएं अलग ह। इस लए अगर कृ कहते ह क म ही था राम, और अगर जीसस कहते ह क म ही पहले भी आया था और तु कह गया था, और अगर बु कहते ह क म फर आऊंगा, तो इस सब म वे सब क क भाषा बोल रहे ह जससे हमको बड़ी क ठनाई होती है। अब बौ भ ु ती ा कर रहे ह क वे कब आएं गे! वे ब त बार आ चुके। वे रोज खड़े ह गे तो भी नह पहचान म आएं गे, क अब उसी श म तो आने का कोई उपाय नह है; वह श तो सपने क श थी, वह खो गई। तो वहां कोई समय का अंतराल नह है। और इसी लए तु ारे समय क त म तो ती ता और कमी क जा सकती है, ब त कमी क जा सकती है। उतना श पात से हो सकता है। कोई सरा नह है और सरी बात जो तुम उसम पूछते हो क इसम तो सरा.

वह सरा भी तभी तक दखाई पड़ रहा है न! वह सरे का जो सरा होना है, वह भी हमारी अपनी सीमा को जोर से पकड़े होने क वजह से मालूम पड़ रहा है। तो ववेकानंद को लगेगा क रामकृ क वजह से मुझे हो गया। रामकृ को लगे तो बड़ी नासमझी हो जाएगी। रामकृ के लए तो ऐसे ही घटना घटी है, जैसे क मेरे हाथ पर कोई चोट लगी हो और मने मलहम लगा दी। तो मेरा यह हाथ, बायां हाथ समझेगा क कोई और मेरी सेवा कर रहा है। दाएं हाथ से म लगाऊंगा न! तो कोई और कर रहा है। हो सकता है ध वाद भी दे; हो सकता है इनकार भी कर दे क भई, रहने दो; म ावलंबी ं ; म सरे क सहायता नह लेता। ले कन उसे पता नह क जो उसम वेश कया आ है, बाएं म, वही दाएं म भी वेश कया आ है; वह एक ही है। तो जब कभी कोई कसी सरे के लए सरे क तरफ से सहायता प ं चती है, तो सच म कोई सरा नह है; तु ारी तैयारी ही उस सहायता को तु ारे ही सरे ह े से बुलाती और पुकारती है। इ ज म एक ब त पुरानी कताब है जो यह कहती है क तुम गु को कभी मत खोजना, क जस दन तुम तैयार हो, गु तु ारे दरवाजे पर हा जर हो जाएगा। तुम खोजने जाना ही मत। और वह यह भी कहती है क अगर तुम खोजने भी जाओगे तो खोज कैसे सकोगे? तुम पहचानोगे कैसे? क अगर तुम इस यो ही हो गए क गु को भी पहचान लो, तब फर और ा कमी रह गई! इस लए सदा ही गु श को पहचानता है, श कभी गु को नह पहचान सकता। उसका कोई उपाय नह है। मेरा मतलब समझे न? उसका उपाय कहां है? अभी तुम अपने को नह पहचानोगे तो तुम गु को कैसे पहचानोगे क यह आदमी है! तुम नह पहचान सकते। हां, ले कन जस दन तुम तैयार हो, उस दन तु ारा ही कोई हाथ तु ारी सहायता के लए मौजूद हो जाता है। वह सरे का हाथ तभी तक है जब तक तु पता नह चला है। जस दन तु पता चलेगा उस दन तुम ध वाद देने को भी नह कोगे। जापान म झेन मोने ी का एक हसाब है क जब कोई मोने ी म, आ म म आता है ान सीखने, तो अपनी चटाई आकर बछाता है। चटाई दबाकर लाता है, बछा देता है, बैठ जाता है; समझ लेता है, ान करके चला जाता है, चटाई वह छोड़ जाता है। फर वह रोज आता रहता है और अपनी चटाई पर बैठता है, चला जाता है। जस दन हो जाता है उस दन अपनी चटाई गोल करके चला जाता है; गु समझ जाता है, हो गया। इसम ध वाद देने क भी ा ज रत है? वह जस दन चटाई गोल करता है, उस दन गु कहता है क अ ा, जा रहे हो! क कसको ध वाद देना है। वह यह भी नह कहता क हो गया, वह अपनी चटाई लपेटने लगता है, तो गु समझता है क चलो ठीक है, बस चटाई लपेटने का व आ गया, अ ी बात है। इतनी औपचा रकता क भी कहां ज रत है क ध वाद दो। और कसको ध वाद दो! और अगर कोई ध वाद देने जाएगा तो गु डंडा भी मार सकता है उसको-- क खोल चटाई वापस, अभी तेरा नह आ! कसको ध वाद दोगे? तो वह जो सरे का खयाल है वह हमारे अ ान क ही धारणा है, अ था कौन है सरा! हम ही ह ब त प म, हम ही ह ब त या ाओं पर, हम ही ह ब त दपण म। न त ही,

सभी दपण म ले कन दखाई तो कोई और ही पड़ रहा है। एक सूफ कहानी है क एक कु ा एक राजमहल म घुस गया। और उस राजमहल म सारी दीवाल दपण क बनाई गई थ । वह कु ा ब त मु ल म पड़ गया, क उसे चार तरफ कु े ही कु े दखाई पड़ने लगे। वह ब त घबड़ाया। इतने कु े चार तरफ! अकेला घर गया इतने कु म! नकलने का भी रा ा नह रहा। ार-दरवाज पर भी आईने थे। सब तरफ आईने ही आईने थे। फर वह भ का। ले कन उसके भ कने के साथ सारे कु े भ के और उसक आवाज सारी दीवाल से टकराकर वापस लौटी, तब तो बलकुल प ा हो गया क खतरे म जान है और ब त सरे कु े मौजूद ह। और वह च ाता रहा! और जतना च ाया, उतने जोर से बाक कु े भी च ाए; और जतना वह लड़ा और भ का और दौड़ा, उतने ही सारे कु े भी दौड़े और भ के। और उस कमरे म वह अकेला कु ा था। रात भर वह भ कता रहा, भ कता रहा। सुबह जब पहरे दार आया तो वह कु ा मरा आ पाया गया, क वह दीवाल से लड़कर और भ ककर थक गया और मर गया। हालां क वहां कोई भी नह था। जब वह मर गया तो वे दीवाल भी शांत हो ग , वे दपण चुप हो गए। ब त दपण ह; और हम सब एक- सरे को जो देख रहे ह, वे ब त तरह के मरस, ब त तरह के दपण म अपनी ही त ीर ह। इस लए सरा कोई है, यह ां त है; इस लए सरे क हम सहायता कर रहे ह, यह भी ां त है, और सरे से हम सहायता मल रही है, यह भी ां त है। असल म, सरा ही ां त है। और तब जीवन म एक सरलता आती है, जहां तुम सरे को सरा मानकर कुछ नह करते हो--कुछ भी नह करते हो; न सरे को सरा मानकर अपने लए कुछ करवाते हो; तब तुम ही रह जाते हो। और अगर रा े पर कसी गरते आदमी को तुमने सहारा दया है तो वह तुमने अपने को ही दया है; और अगर रा े पर कसी और ने तु सहारा दया है तो वह भी उसने अपने को ही दया है। मगर यह परम अनुभव के बाद खयाल म आना शु होगा, उसके पहले तो न त ही सरा है। अनुभू त और अ भ : ओशो, ववेकानंद को श

पात से नुकसान आ था, ऐसा आपने एक बार कहा है !

असल म, ववेकानंद को श पात से तो नुकसान नह आ, ले कन श पात के पीछे जो आ उससे नुकसान आ; जो और चीज चल । पर नुकसान और हा न क बात भी सपने के भीतर क बात है, बाहर क नह । तो जस भां त रामकृ क सहायता से उनको एक झलक मली--जो झलक शायद उनको अपने ही पैर पर कभी मलती, व लग जाता--ले कन उस झलक के बाद, चूं क वह झलक सरे से मली थी, सरे के ारा मली थी.। जैसे मने हथौड़ा मारा दरवाजे पर, दरवाजा टूट गया। ले कन म दरवाजे को फर खड़ा कर गया, उसी हथौड़े से खील ठ क गया और वापस ठीक कर गया। जो हथौड़ा दरवाजा गरा सकता है, वह क ल भी ठ क सकता है। हालां क दोन हालत म एक ही बात हो रही है,

पहले भी समय ही थोड़ा कम आ था, अब समय ही फर थोड़ा हो जाएगा। रामकृ क कुछ क ठनाइयां थ जनके लए उ ववेकानंद का उपयोग करना पड़ा। रामकृ नपट देहाती, अपढ़, अ श त आदमी थे; अनुभव उनको गहरा आ था, ले कन अभ उनके पास नह थी। और ज री था क वे अपनी अ भ के लए कसी आदमी को साधन बनाएं , वाहन बनाएं । नह तो रामकृ का आपको पता ही न चलता। और रामकृ को जो मला था, यह उनक क णा का ह ा ही है क वह कसी आदमी के ारा आप तक प ं चा द। मेरे घर म खजाना मल जाए मुझे, और मेरे पैर टूटे ह , और म कसी आदमी के कंधे पर खजाना रखकर आपके घर तक प ं चा ं । तो उस आदमी के कंधे का तो मने उपयोग कया, उसे थोड़ी तकलीफ भी दी; क इतनी र वजन तो उसे ढोना ही पड़ेगा। ले कन उस आदमी को तकलीफ देने का इरादा नह है, इरादा वह जो खजाना मुझे मला है, आप तक प ं चाने का है। क म ं लंगड़ा, और यह खजाना यह पड़ा रह जाएगा, और म घर के बाहर खबर भी नह ले जा सकूंगा। तो रामकृ को एक क ठनाई थी। बु को ऐसी क ठनाई नह थी। बु के म रामकृ और ववेकानंद एक साथ मौजूद थे। तो बु जो जानते थे, वह कह भी सकते थे; रामकृ जो जानते थे, वह कह नह सकते थे। कहने के लए उ एक आदमी चा हए था जो उनका मुंह बन जाए। तो ववेकानंद को उ ने झलक तो दखा दी, ले कन त ाल ववेकानंद से कहा क अब चाबी म रखे लेता ं अपने हाथ, अब मरने के तीन दन पहले लौटा ं गा। अब ववेकानंद ब त च ाने लगे क आप यह ा कर रहे ह! अब जो मुझे मला है, छी नए मत! रामकृ ने कहा, ले कन अभी तुझे और सरा काम करना है; अगर यह तू इसम डूबा, तो गया। तो अभी म तेरी चाबी रखे लेता ं ; इतनी तू कृपा कर। और मरने के तीन दन पहले तुझे लौटा ं गा। और अब मरने के तीन दन पहले तक तुझे समा ध उपल न हो, क तुझे कुछ और काम करना है जो समा ध के पहले ही तू कर पाएगा। और इसका भी कारण यही था क रामकृ को पता नह था क समा ध के बाद भी लोग ने यह काम कया है। ले कन रामकृ को पता हो भी नह सकता था, क वे समा ध के बाद कुछ भी नह कर पाए थे। भावतः हम अपनी ही अनुभू त से चलते ह। रामकृ क अनुभू त के बाद रामकृ कुछ भी नह कह पाते थे; बोल नह पाते थे। बोलना तो ब त मु ल था, वे तो इतने.कोई कह देता राम--और वे बेहोश हो जाते। यह तो सरा कह दे! कोई चला आया है और उसने कहा क जय राम जी--और वे बेहोश होकर गर गए! उनके लए तो राम श भी सुनाई पड़ जाए तो मु ल मामला था-उनको याद आ गई उसी जगत क । कसी ने कह दया: अ ाह, तो वे गए। म द दखाई पड़ गई, तो वे वह खड़े होकर बेहोश हो गए। कह भजन-क तन हो रहा है, वे चले जा रहे ह अपने रा े से--वे गए, वह सड़क पर गर गए। उनक क ठनाई यह हो गई थी: कह से भी जरा सी ृ त आ जाए उनको उस रस क , क वे गए। तो अब उनको तो ब त क ठनाई थी। और उनका अनुभव उनके लहाज से ठीक ही था क ववेकानंद को अगर यह अनुभू त हो गई तो फर ा होगा! तो उ ने ववेकानंद से कहा क तुझे तो म कुछ,

एक बड़ा काम है, वह तू कर ले, उसके बाद. इस लए ववेकानंद क पूरी जदगी समा ध-र हत बीती; और इस लए ब त तकलीफ म बीती। तकलीफ ले कन सपने क ! इस बात को खयाल म रखना क तकलीफ सपने क है; एक आदमी सोया है और बड़ी तकलीफ का सपना देख रहा है। मरने के तीन दन पहले चाबी वापस मल गई, ले कन मरने तक ब त पीड़ा थी। मरने के पांच-सात दन पहले तक भी जो प उ ने लखे, वे ब त ख के ह-- क मेरा ा होगा, म तड़प रहा ं । और तड़प और भी बढ़ गई, क जो देख लया है एक दफा, उसक बारा झलक नह मली। अभी उतनी तड़प नह है आपको, क कुछ पता ही नह है क ा हो सकता है। उसक एक झलक मल जाए. आप खड़े थे अंधेरे म, कोई तकलीफ न थी; हाथ म कंकड़-प र थे, तो भी बड़ा आनंद था, क संप थी। फर चमक गई बजली और दखाई पड़ा क हाथ म कंकड़-प र ह--और सामने दखाई पड़ा क रा ा भी है, और सामने दखाई पड़ा क हीर क खदान भी है। ले कन बजली खो गई। और बजली कह गई क अभी सरा काम तु करना है: वे जो और प र बीन रहे ह उनसे कहना है क यहां आगे खदान है। इस लए अभी तु ारे लए वापस बजली नह चमकेगी। अब तुम ये जो बाक प र इक े कर रहे ह इनको समझाओ। तो ववेकानंद से एक काम लया गया है जो रामकृ के लए स ीम ी था, ज री था, जो उनके म नह था वह सरे से लेना पड़ा। ऐसा ब त बार हो गया है, ब त बार हो जाता है; कुछ बात जो नह संभव हो पाए एक से, उसके लए दो-चार भी खोजने पड़ते ह। कई बार तो एक ही काम के लए दस-पांच भी खोजने पड़ते ह। उन सबके सहारे से वह बात प ं चाई जा सकती है। उसम है तो क णा, ले कन ववेकानंद के साथ तो. इस लए मेरा कहना यह है क जहां तक बने श पात से बचना; जहां तक बने वहां तक साद क फ करना। और श पात भी वही उपयोगी है जो साद जैसा हो। जसक कोई कंडीश नग न हो, जसके साथ कोई शत न हो, जो यह न कहे क अब हम चाबी रखे लेते ह। मेरा मतलब समझे न? जो यह न कहे क अब कोई शत है इसके साथ; जो बेशत, अनकंडीशनल हो; जो आपको हो जाए और वह आदमी कभी आपसे पूछने भी न आए क ा आ; जो गया तो आपको अगर ध वाद भी देना हो तो उसको खोजना मु ल हो जाए क उसे कहां जाकर ध वाद द। उतना ही आपके लए आसान पड़ेगा। ले कन कभी रामकृ जैसे को ज रत पड़ती है। तो उसके सवाय कोई रा ा नह था। नह तो रामकृ का जानना खो जाता; वे कह नह पाते। उनके लए जबान चा हए थी जो उनके पास नह थी। वह जबान उ ववेकानंद से मल गई। इस लए ववेकानंद नरं तर कहते थे क जो भी म कह रहा ं वह मेरा नह है। और अमे रका म जब उ ब त स ान मला, तो उ ने कहा क मुझे बड़ा ख हो रहा है और मुझे बड़ी मु ल पड़ती है, क जो स ान मुझे दया जा रहा है वह उस एक और सरे ही आदमी को मलना चा हए था जसका आपको पता ही नह । और जब उ कोई महापु ष कहता, तो वे कहते क जस महापु ष के पास म बैठकर आया ं , म उसके

चरण क धूल भी नह ं । ले कन रामकृ अगर अमे रका म जाते, तो वे कसी पागलखाने म भत कए जाते; और उनक च क ा क जाती। उनक कोई नह सुनता; वे बलकुल पागल स होते। वे पागल थे। अभी तक हम यह नह साफ कर पाए क एक से ुलर पागलपन होता है और एक नॉन-से ुलर पागलपन भी होता है। अभी हम फक नह कर पाए क एक पागलपन सांसा रक पागलपन, और एक और पागलपन भी है-- डवाइन भी है। वह हम फक तो नह हो पाया। तो अमे रका म कभी दोन पागल एक साथ एक से पागलखाने म बंद कर दए जाते ह; दोन क एक च क ा हो जाती है। रामकृ क च क ा हो जाती, ववेकानंद को स ान मला। क ववेकानंद जो कह रहे ह, वह कहने क बात है; वे खुद कोई दीवाने नह ह; वे एक संदेशवाहक ह, एक डा कया। च ी ले गए ह कसी क , वह जाकर पढ़कर सुना दी है। ले कन वे अ ी तरह पढ़कर सुना सकते ह। नस ीन के जीवन म एक ब त अदभुत घटना है। नस ीन अपने गांव म अकेला पढ़ा- लखा आदमी है। और जस गांव म एक ही अकेला पढ़ा- लखा हो, वह भी ब त पढ़ालखा तो होता नह ! तो च ी कसी को लखवानी हो, तो उसी से लखवानी पड़ती है। तो एक आदमी उससे च ी लखवाने आया है। और वह नस ीन उससे कहता है क म न लखूंगा, मेरे पैर म बड़ी तकलीफ है। उस आदमी ने कहा, भई पैर से च ी लखने को कहता कौन है! आप हाथ से च ी ल खए। नस ीन ने कहा क तुम समझे नह , असल म हम च ी लखते ह तो हम ही पढ़ते ह; हम सरे गांव म जाकर पढ़नी भी पड़ती है। पैर म ब त तकलीफ है, अभी हम च ी लखने क झंझट म नह पड़ना। लख तो दगे, पढ़ेगा कौन? वह सरे गांव म हम को जाना पड़ता है न! तो अभी जब तक पैर म तकलीफ है, हम च ी लखना बंद ही रखगे। तो रामकृ जैसे जो लोग ह, ये जो च ी भी लखगे, ये खुद ही पढ़ सकते ह। ये आपक भाषा भूल ही गए; आपक भाषा का इनको कोई पता ही नह है। और ये एक और ही तरह क भाषा बोल रहे ह जो आपके लए बलकुल मी नगलेस, अथहीन हो गई है। हम इनको पागल कहगे क यह आदमी पागल है। तो हमारे बीच म से इ कोई डा कया पकड़ना पड़े जो हमारी भाषा म लख सके। न त ही, वह डा कया ही होगा। इस लए ववेकानंद से जरा सावधान रहना। उनका कोई अपना अनुभव ब त गहरा नह है। जो वे कह रहे ह, वह कसी और का है। हां, कहने म वे कुशल ह, हो शयार ह। जसका था, वह इतनी कुशलता से नह कह सकता था। ले कन फर भी वह ववेकानंद का अपना नह है। ा नय क झझक और अ ा नय का अ त आ व ास इस लए ववेकानंद क बातचीत म ओवरकां फडस मालूम पड़ेगा। ज रत से ादा वे बल दे रहे ह। वह बल कमी क पू त के लए है। उ खुद भी पता है क वे जो कह रहे ह, वह उनका अपना अनुभव नह है। इस लए ानी तो थोड़ा-ब त हे ज़टे ट करता है; वह थोड़ाब त डरता है। उसके मन म पचास बात होती ह क यह क ं , ऐसा क ं , वैसा क ं , गलत न हो जाए। जसको कुछ पता नह है वह बेधड़क जो उसे कहना है, कह देता है; क उसे

कोई क ठनाई नह होती, हे ज़टे शन कभी नह होता; वह कह देता है क ठीक है। बु जैसे ानी को तो बड़ी क ठनाई थी। तो वे तो ब त सी बात का जवाब ही नह देते थे। वे कहते थे क म जवाब ही नह ं गा, क कहने म बड़ी क ठनाई है। कुछ लोग तो कहते, इससे तो हमारे गांव म अ े आदमी ह, वे जवाब तो देते ह, वे ादा ानी ह आपसे! कोई भी चीज पूछो, जवाब दे देते ह। भगवान है क नह ? तो वे कहते तो ह क है या नह । उनको पता तो है। आपको पता नह है ा? आप नह कहते क है या नह ? अब बु क बड़ी मु ल है। है कह तो मु ल है, नह कह तो मु ल है। तो वे हे ज़टे ट करगे, वे कहगे क नह भई, इस संबंध म बात ही मत करो, कुछ और बात करते ह। भावतः हम कहगे क फर पता नह है आपको, यही कह दो। यह भी बु नह कह सकते, क पता तो है। और हमारी कोई भाषा काम नह करती। इस लए ब त बार ऐसा आ है क रामकृ जैसे ब त लोग पृ ी पर अपनी बात को बना कहे खो गए ह। वे नह कह पाते, क यह ब त रे अर कां बनेशन है क एक आदमी जाने भी और कह भी सके। और जब यह घटना घटती है तो ऐसे ही को हम तीथकर, अवतार, पैगंबर, इस तरह के श का उपयोग करने लगते ह। उसका कारण यह नह है क इस तरह के और लोग नह होते, इस तरह के और भी लोग ए ह, ले कन कह नह सके। बु से कसी ने पूछा क आपके पास ये दस हजार भ ु ह, चालीस साल से आप लोग को समझा रहे ह, इनम से कतने लोग आपक त को उपल ए? बु ने कहा, ब त लोग ह इनम। तो उस आदमी ने कहा, आप जैसा कोई पता तो नह चलता हम। बु ने कहा, फक इतना ही है क म कह सकता ं , वे कह नह सकते; और कोई फक नह है। म भी न क ं तो तुम मुझको भी नह पहचान सकोगे, बु ने कहा; क तुम बोलना पहचानते हो, तुम जानना थोड़े ही पहचानते हो। यह संयोग क बात है क म बोल भी सकता ं , जानता भी ं ; यह बलकुल संयोग क बात है। तो इस लए वह थोड़ी सी क ठनाई ववेकानंद के लए ई जो उनको अगले ज म पूरी करनी पड़े, ले कन वह क ठनाई ज री थी। इस लए रामकृ को लेनी मजबूरी थी। लेनी पड़ी। और नुकसान ले कन सपने का है। फर भी म कहता ं , सपने म भी नुकसान उठाना? सपना ही देखना है तो अ ा नह देखना, बुरा देखना? मने सुना है क--ईसप क एक फेबल है-- क एक ब ी एक वृ के नीचे बैठी है और सपना देख रही है। एक कु ा भी उधर आकर व ाम कर रहा है। और ब ी बड़ा आनंद ले रही है, ब त ही आनंद ले रही है सपने म। उसक स ता देखकर कु ा भी ब त हैरान है क ा देख रही है! ा कर रही है! जब उसक आंख खुली तो उसने पूछा क जाने से पहले जरा बता दे क ा मामला था क इतनी स हो रही थी? उसने कहा क बड़ा ही आनंद आ रहा था, एकदम चूहे बरस रहे थे आकाश से। तो उस कु े ने कहा, नासमझ! चूहे कभी बरसते ही नह । हम भी सपने देखते ह, हमेशा ह यां बरसती ह। और हमारे शा म भी लखा आ है क चूहे कभी नह बरसते; जब बरसती ह, ह यां बरसती ह। मूरख ब ी, अगर सपना ही देखना था तो ह ी बरसने का देखना था। कु े के लए ह ी अथपूण है। कु े काहे के लए चूहे बरसाएं । ले कन ब ी के लए ह ी

बलकुल बेकार है। तो वह कु ा उससे कहता है, सपना ही देखना था तो कम से कम ह ी का देखती। यानी एक तो सपना देख रही है, यही बेकार क बात है; फर वह भी चूहे का देख रही है, और भी बेकार बात है। तो म आपसे कहता ं , सपना ही देखना हो तो ख का देखना? और जागना ही है, तो जहां तक बने--जहां तक बने--अपनी साम , अपनी श , अपने संक का पूरे से पूरा जतना योग आप कर सक, वह कर; और र ी भर सरे क ती ा न कर क वह सहायता प ं चाएगा। सहायता मलेगी, वह सरी बात है; आप ती ा न कर क सहायता मलेगी। क जतनी आप ती ा करगे उतना ही आपका संक ीण हो जाएगा। आप तो फकर ही छोड़ द क कोई सहायता करनेवाला है, आप तो अपनी पूरी ताकत अकेला समझकर लगाएं क म अकेला ं । हां, सहायता ब त तरह से मल जाएगी, ले कन वह बलकुल सरी बात है। साधना म ावलंबी बनना सदा उपादेय इस लए मेरा जोर जो है वह नरं तर आपक पूरी संक श पर है, ता क कोई और जरा सी भी बाधा आपके लए न हो। और जब सरे से मले तो वह आपक मांगी ई न हो, और न आपक अपे ा हो; वह ऐसे ही आ जाए जैसे हवा आती है और चली जाए। इस वजह से मने कहा क नुकसान प ं चा। और जतने दन वे जदा रहे, उतने दन ब त तकलीफ म रहे; क जो वे कह रहे थे, उस कही ई बात क सरे क आंख म तो झलक मालूम पड़ती थी, क वह च क गया है, खुश आ है, ले कन खुद उ पता था क यह मुझे नह हो रहा है। अब यह बड़ी क ठनाई क बात है न क म आपको मठाई क खबर लेकर आऊं और मुझे ाद भी न हो! बस एक दफे सपने म थोड़ा सा दखाई पड़ा हो, फर सपना टूट गया हो, और उसने कहा क अब सपना ही नह आएगा बारा तु । बस अब तुम लोग तक खबर ले जाओ। तो ववेकानंद का अपना क है। ले कन वे सबल थे, इस क को उ ने झेला। यह भी क णा का ह ा है। ले कन इस लए आपको झेलना चा हए, यह योजन नह है। ववेकानंद को समा ध क मान सक झलक : ओशो, ववेकानंद को जो समा ध का अनुभव आ था रामकृ समा ध का?

के संपक से, वह ामा णक अनुभव था

ाथ मक कहो। ामा णक तो उतना बड़ा सवाल नह है-- ाथ मक, अ ंत ाथ मक, जसम एक झलक उपल हो जाती है। और वह झलक, न त ही, ब त गहरी नह हो सकती और आ क भी नह हो सकती; ब त गहरी नह हो सकती। बलकुल ही जहां हमारा मन समा होता है और आ ा शु होती है, उस प र ध पर घटे गी वह घटना। साइ कक ही होगी गहरे म, और इस लए खो गई। और उसको उससे गहरा होने नह दया गया। उससे गहरा हो जाए तो रामकृ डरे ए थे। उससे गहरा हो जाए तो यह आदमी

काम का न रह जाए। और उनको इतनी चता थी काम क क उ यह खयाल ही नह था क यह कोई ज री नह है क यह आदमी काम का न रह जाए! बु चालीस साल तक बोलते रहे ह, जीसस बोलते रहे ह, महावीर बोलते रहे ह, कोई इससे क ठनाई नह आ जाती। मगर रामकृ का भय ाभा वक था, उनको क ठनाई थी। तो जसको जो क ठनाई होती है, वही उनके खयाल म थी। इस लए ब त ही छोटी सी झलक उनको मली। ामा णक तो है; जतने र तक जाती है उतने र तक ामा णक है। ले कन ाथ मक है, ब त गहरी नह है। नह तो लौटना मु ल हो जाए। : ओशो, समा ध का आं शक अनुभव भी हो सकता है ?

आं शक नह है, ाथ मक है। इन दोन म फक है। आं शक अनुभव नह है यह। और समा ध का अनुभव आं शक हो ही नह सकता। ले कन समा ध क मान सक झलक हो सकती है। अनुभव तो आ ा क होगा, झलक मान सक हो सकती है। जैस,े म एक पहाड़ पर चढ़कर सागर को देख लूं। न त ही मने सागर देखा, ले कन सागर ब त फासले पर है। म सागर के तट पर नह प ं चा; मने सागर को छु आ भी नह ; मने सागर का जल चखा भी नह ; म सागर म उतरा भी नह ; म नहाया भी नह , डूबा भी नह ; मने एक पहाड़ क चोटी पर से सागर देखा और वापस चोटी से ख च लया गया। तो मेरे अनुभव को सागर का आं शक अनुभव कहोगे? नह , आं शक भी नह कह सकते, क मने छु आ भी नह --जरा भी नह छु आ, एक इं च भी नह छु आ, एक बूंद भी नह छु ई, एक बूंद चखी भी नह । ले कन फर भी ा मेरे अनुभव को अ ामा णक कहोगे? नह , देखा तो है! मेरे देखने म तो कोई कमी नह है, सागर मने देखा। सागर होकर नह देखा, डूबकर नह देखा, र कसी पीक से, कसी र शखर से दखाई पड़ गया! तो तुम अपनी आ ा को कभी अपने शरीर क ऊंचाई पर खड़े होकर भी देख लेते हो। शरीर क भी ऊंचाइयां ह, शरीर के भी पीक ए पी रएं सेस ह। शरीर क भी कोई अनुभू त अगर ब त गहरी हो तो तु आ ा क झलक मलती है। जैसे अगर ब त वेलबीइं ग का अनुभव हो शरीर म, तुम प रपूण हो, और तु ारा शरीर ा से लबालब भरा है, तो तुम शरीर क एक ऐसी ऊंचाई पर प ं चते हो जहां से तु आ ा क झलक दखाई पड़ेगी। और तब तुम अनुभव कर पाओगे क नह , म शरीर नह ं , म कुछ और भी ं । ले कन तुम आ ा को जान नह लए। ले कन शरीर क एक ऊंचाई पर चढ़ गए। मन क भी ऊंचाइयां ह। जैसे क कोई ब त गहरे ेम म--से म नह , से शरीर क ही संभावना है। और से भी अगर ब त गहरा और पीक पर हो, तो वहां से भी तु आ ा क एक झलक मल सकेगी। ले कन ब त र क झलक, बलकुल सरे छोर से। ले कन ेम क अगर ब त गहराई का अनुभव हो तु , और कसी को जसे तुम ेम

करते हो उसके पास तुम ण भर को चुप बैठे हो, सब स ाटा है, सफ ेम रह गया है तु ारे दोन के बीच डोलता आ, और कुछ श नह , कोई भाषा नह , कुछ लेन-देन नह , कुछ आकां ा नह , सफ ेम क तरं ग यहां से वहां पार होने लगी ह, तो उस ेम के ण म भी तुम एक ऐसे शखर पर चढ़ जाओगे जहां से तु आ ा क झलक मल जाए। े मय को भी आ ा क झलक मली है। एक च कार एक च बना रहा है; और इतना डूब जाए उस च को बनाने म क एक ण म परमा ा हो जाए, ा हो जाए। जब एक च कार च को बनाता है तो वह उसी अनुभू त को प ं च जाता है क अगर भगवान ने कभी नया बनाई होगी तो प ं चा होगा, उस ण म। तो उस पीक पर.ले कन वह मन क है ऊंचाई। उस जगह से वह एक ण को ा है, एटर है; एक झलक मलती है उसको आ ा क । इस लए कई बार वह उसे समझ लेता है क पया हो गई। वह भूल हो जाती है। संगीत म मल सकती है कभी, का म मल सकती है कभी, कृ त के स दय म मल सकती है कभी, और ब त जगह से मल सकती है, ले कन ह सब र क चो टयां। समा ध म डूबकर मलती है। बाहर से तो ब त शखर ह जन पर चढ़कर तुम झांक ले सकते हो। तो यह जो अनुभू त है ववेकानंद क , यह भी मन के ही तल क है; क मने तुमसे कहा क सरा तु ारे मन तक आंदोलन कर सकता है। तो एक पीक पर चढ़ा दया है! समा ध क मान सक झलक भी ब त मह पूण यानी ऐसा समझो क एक छोटा ब ा है, मने उसे कंधे पर बठा लया, और उसने देखा, और मने उसे कंधे से नीचे उतार दया। क मेरा शरीर उसका शरीर नह हो सकता। उसके पैर तो जतने बड़े ह उतने ही बड़े ह। अपने पैर से तो जब वह खुद बड़ा होगा, तब देखेगा। ले कन मने कंधे पर बठाकर उसको कुछ दखा दया। वह कह सकता है जाकर क मने देखा। फर भी शायद लोग उसका भरोसा भी न कर। वे कह, तूने देखा कैसे होगा? क तेरी तो ऊंचाई नह है इतनी क तू देख सके! ले कन कसी के कंधे पर ण भर बैठकर देखा जा सकता है। पर वह है संभावना सब मन क , इस लए वह आ ा क नह है। इस लए अ ामा णक नह कहता ं , ले कन ाथ मक कहता ं । और ाथ मक अनुभू त शरीर पर भी हो सकती है, मन पर भी हो सकती है। आं शक नह है वह, है तो पूरी, पर मन क पूरी अनुभू त है वह। आ ा क पूरी अनुभू त नह है। आ ा क पूरी होगी तो वहां से लौटना नह है, वहां से कोई चाबी नह रख सकता तु ारी। और वहां से कोई यह नह कह सकता क जब हम चाबी लौटाएं गे तब होगा। वहां से फर कोई वश नह है। इस लए वहां अगर कसी को काम लेना हो तो उसके पहले ही उसे रोक लेना पड़ता है। उसे उस तक नह जाने देना पड़ता है, नह तो फर क ठनाई हो जाएगी। है तो ामा णक, ले कन ामा णकता जो है वह साइ कक है, चुअल नह है। वह भी छोटी घटना नह है, क सभी को वह नह हो सकती; उसके लए भी मन का बड़ा बल होना ज री है। वह भी सबको नह हो सकती। :

ओशो, ववेकानंद का शोषण कया उ

ने, ऐसा कहा जा सकता है ?

कहने म कोई क ठनाई नह है। ले कन श जो है वह ब त ादा, जसको कह सफ श सूचक नह है वह, उसम नदा भी है। इस लए नह कहना चा हए। शोषण श म नदा है, गहरे म उसम कंडेमनेशन है। शोषण नह कया; क रामकृ को कुछ भी नह लेना-देना है ववेकानंद से। ले कन ववेकानंद के ारा कसी को कुछ मल सकेगा, यह खयाल है। इस अथ म शोषण कया क उपयोग तो कया, उपयोग तो कया ही। ले कन उपयोग और शोषण म ब त फक है। और शोषण श , जहां म अहं क त, अपने अहं कार के लए कुछ ख च रहा ं और उपयोग कर रहा ं , वहां तो शोषण हो जाता है; ले कन जहां म जगत, व , सबके लए कुछ कर रहा ं , वहां शोषण का कोई कारण नह है। और फर यह भी तो खयाल म नह है तु क अगर रामकृ वह झलक न दखाते तो ववेकानंद को वह भी हो जाती, यह भी थोड़े ही प ा है। इसी ज म हो जाती, यह भी थोड़े ही प ा है। और इस बात को जो जानते ह, वे तय कर सकते ह। जैस,े हो सकता है-जैसी मेरी समझ है, यही है! ले कन अब इसके लए कोई माण नह जुटाए जा सकते ह। रामकृ का यह कहना क मृ ु के तीन दन पहले तुझे चाबी वापस लौटा ं गा, कुल इसका कारण इतना भी हो सकता है क रामकृ क समझ म ववेकानंद अपने ही आप यास करते तो मरने के तीन दन पहले समा ध को उपल हो सकते थे। रामकृ का ऐसा खयाल है क अगर यह आदमी अपने आप ही चलता है तो मरने के तीन दन पहले इस जगह प ं च जाता। तो उस दन चाबी लौटा दगे। वे भी चाबी कैसे लौटाएं गे, क रामकृ तो मर गए! रामकृ तो मर गए, चाबी लौटानेवाला भी मर गया, ले कन चाबी लौट गई तीन दन पहले। तो इसक ब त संभावना है। क तु ारे को जतना तुम नह जानते, उतना जो जतनी गहराइय म गया है उतनी गहराइय म तु जान सकता है; और यह भी जान सकता है क तुम अगर अपने ही माग से चलते रहो.। भावतः, अगर म एक या ा पर गया और एक पहाड़ चढ़ गया। पहाड़ का रा ा मुझे मालूम है, सी ढ़यां मुझे मालूम ह, समय कतना लगता है वह मुझे मालूम है, क ठनाइयां कतनी ह वे मुझे मालूम ह। म तु पहाड़ चढ़ते देख रहा ं ; म जानता ं क तीन महीने लग जाएं गे; समझ रहे हो न? म जानता ं क तुम जस र ार से चल रहे हो, जस ढं ग से चल रहे हो, जस ढं ग से भटक रहे हो, डोल रहे हो, उसम इतना समय लग जाएगा। तो ब त गहरे म तो इतना भी शोषण नह है। पर मने तु वह बीच म आकर, ऊपर उठाकर, पहाड़ के ऊपर जो है उसक झलक दखा दी है और तु उसी जगह छोड़ दया और कहा क तीन महीने बाद रा ा मल जाएगा; अभी तीन महीने तक रा ा नह मलेगा। तो इतना, भीतर इतना सू है ब त सा और इतना कां े है क तु एकदम से ऊपर से नह दखाई पड़ता, खयाल म नह आता। अब जैसे अभी कल नमल गई वहां वापस, तो उसको कसी ने कहा आ है क ेपन वष क उ म मर जाएगी; तो मने उसक गारं टी ले ली क ेपन वष म नह मरे गी। अब यह गारं टी पूरी म नह क ं गा, पर यह गारं टी पूरी हो जाएगी। ले कन अगर वह बच गई ेपन वष के बाद, तो वह कहेगी क

मने गारं टी पूरी क । ववेकानंद कहगे क चाबी तीन दन पहले लौटा दी। बाक कसको चाबी लौटानी है! : ओशो, ऐसा भी हो सकता है क रामकृ जानते रहे ह क ववेकानंद को साधना क लंबी या ा बना सफलता के करनी है जसम उ ब त ख भी होगा। इस लए उ ने ख र करने के लए पहले ही ववेकानंद को समा ध क एक झलक बता दी?

‘ऐसा भी हो सकता है’, ऐसा करके कभी सोचना ही मत, क इसका कोई अंत नह है। ‘ऐसा भी हो सकता है’, ऐसा करके सोचने का कोई मतलब नह होता। इस लए मतलब नह होता क फर तुम कुछ भी सोचती रहोगी, और उसका कोई अथ नह है। इस लए ऐसा कभी मत सोचना क ऐसा भी हो सकता है, ऐसा भी हो सकता है, ऐसा भी हो सकता है। जतना हो सकता है पता हो, उतना ही सोचना। ऐज इफ करके नह सोचा चा हए। जहां तक बने नह सोचना चा हए। उससे कोई मतलब नह है, क वे बलकुल ही अथहीन रा े ह, जन पर हम कुछ भी सोचते रह, उससे कुछ होगा नह । और उससे एक नुकसान होगा। वह नुकसान यह होगा क ‘जैसा है’, उसका पता चलने म ब त देर लग जाएगी। इस लए हमेशा इसक फ करना क कैसा है? और जैसा है, उसको जानना हो, तो ऐसा हो सकता है, ऐसा हो सकता है, ऐसा हो सकता है, यह अपने मन से काट डालना बलकुल। इनको जगह ही मत देना। न मालूम हो तो समझना क मुझे मालूम नह क कैसा है। ले कन यह अ ान क जो त है क मुझे मालूम नह है, इसे इस ान से मत ढांक लेना क ऐसा भी हो सकता है। क हम ऐसे ढांके ए ह ब त सी बात। हम सब लोग इस तरह सोचते रहते ह। इससे बचो तो हतकर है। अब कल बात करगे!

सतत साधना: न कह

: 12 कना , न कह बंधना

: ओशो, आपने पछली एक चचा म कहा क सीधे अचानक साद के उपल होने पर कभी-कभी घटना भी घ टत हो सकती है और त तथा पागल भी हो सकता है या उसक मृ ु भी हो सकती है । तो सहज ही उठता है क ा साद हमेशा ही क ाणकारी नह होता है ? और ा वह -संतुलन नह रखता है ? घटना का यह भी अथ होता है क अपा था। तो अपा पर कृपा कैसे हो सकती है ?

दो-तीन बात समझ लेनी ज री ह। एक तो भु कोई नह है, श है। और श का अथ आ क एक-एक का वचार करके कोई घटना वहां से नह घटती है। जैसे नदी बह रही है। कनारे जो दर ह गे, उनक जड़ मजबूत हो जाएं गी; उनम फूल लगगे, फल आएं गे। नदी क धार म जो पड़ जाएं गे, उनक जड़ उखड़ जाएं गी, बह जाएं गे, टूट जाएं गे। नदी को न तो योजन है क कसी वृ क जड़ मजबूत ह , और न योजन है क कोई वृ उखाड़ दे। नदी बह रही है। नदी एक श है, नदी एक नह है। परमा ा कोई नह , श है ले कन नरं तर यह भूल ई है क हमने परमा ा को एक समझ रखा है। इस लए हम सोचते ह, जैसे हम के संबंध म सोचते ह। हम कहते ह, वह बड़ा दयालु है; हम कहते ह, वह बड़ा कृपालु है; हम कहते ह, वह सदा क ाण ही करता है। ये हमारी आकां ाएं ह जो हम उस पर थोप रहे ह। पर तो ये आकां ाएं थोपी जा सकती ह; और अगर वह इनको पूरा न करे तो उसको उ रदायी ठहराया जा सकता है। श पर ये आकां ाएं नह थोपी जा सकत । और श के साथ जब भी हम मानकर वहार करते ह तब हम बड़े नुकसान म पड़ते ह; क हम बड़े सपन म खो जाते ह। श के साथ श मानकर वहार करगे तो ब त सरे प रणाम ह गे। जैसे क जमीन म े वटे शन है, क शश है, गु ाकषण है। आप जमीन पर चलते ह तो उसी क वजह से चलते ह। ले कन वह इस लए नह है क आप चल सक। आप न चलगे तो गु ाकषण नह रहेगा, इस भूल म मत पड़ जाना। आप नह थे जमीन पर, तो भी था; एक दन हम नह भी ह गे, तो भी होगा। और अगर आप गलत ढं ग से चलगे, तो गर पड़गे, टांग भी टूट जाएगी; वह भी गु ाकषण के कारण ही होगा। ले कन आप कसी अदालत म मुकदमा न चला सकगे, क वहां कोई नह है। गु ाकषण एक

श क धारा है। अगर उसके साथ वहार करना है तो आपको सोच-समझकर करना होगा। वह आपके साथ सोच-समझकर वहार नह कर रही है। परमा ा क श आपके साथ सोच-समझकर वहार नह करती है। परमा ा क श कहना ठीक नह है; परमा ा श ही है। वह आपके साथ सोच-समझकर वहार नह है उसका, उसका अपना शा त नयम है। उस शा त नयम का नाम ही धम है। धम का अथ है, उस परमा ा नाम क श के वहार का नयम। अगर आप उसके अनुकूल करते ह, समझपूवक करते ह, ववेकपूवक करते ह, तो वह श आपके लए कृपा बन जाएगी--उसक तरफ से नह , आपके ही कारण। अगर आप उलटा करते ह, नयम के तकूल करते ह, तो वह श आपके लए अकृपा बन जाएगी। परमा ा अकृपा नह है, आपके ही कारण। तो परमा ा को मानगे तो भूल होगी। परमा ा नह है, श है। और इस लए परमा ा के साथ न ाथना का कोई अथ है, न पूजा का कोई अथ है; परमा ा के साथ अपे ाओं का कोई भी अथ नह है। य द चाहते ह क परमा ा, वह श आपके लए कृपा बन जाए, तो आपको जो भी करना है वह अपने साथ करना है। इस लए साधना का अथ है, ाथना का कोई अथ नह है। ान का अथ है, पूजा का कोई अथ नह है। इस फक को ठीक से समझ ल। ाथना म आप परमा ा के साथ कुछ कर रहे ह--अपे ा, आ ह, नवेदन, मांग; ान म आप अपने साथ कुछ कर रहे ह। पूजा म आप परमा ा से कुछ कर रहे ह; साधना म आप अपने से कुछ कर रहे ह। साधना का अथ है, अपने को ऐसा बना लेना क धम के तकूल आप न रह जाएं ; और जब नदी क धारा बहे तो आप बीच म न पड़ जाएं --तट पर ह क नदी क धारा का पानी आपक जड़ को मजबूत कर जाए, उखाड़ न जाए। जैसे ही हम परमा ा को श के प म समझगे, हमारे धम क पूरी व ा बदल जाती है। तो जो मने कहा क य द आक क घटना घट जाए, तो घटना बन सकती है। साद से घटना भी हो सकती है सरी बात पूछी है क ा अपा को भी वह घटना घट सकती है? न, अपा को कभी नह घटती, घटती तो है पा को ही, ले कन अपा कभी आक क प से पा बन जाता है, जसका उसे खुद भी पता नह चलता। घटना तो सदा ही पा को घटती है। जैसे काश आंख को ही दखाई पड़ता है, आंखवाले को ही दखाई पड़ता है; अंधे को नह दखाई पड़ता; न दखाई पड़ सकता है। ले कन अगर अंधे क आंख का इलाज कया गया हो, और वह आज ही अ ताल से बाहर नकलकर सूरज को देख ले, तो घटना घट जाएगी। उसे महीने, दो महीने हरा च ा लगाकर ती ा करनी चा हए। अपा एकदम से पा बन जाए तो घटना ही घटे गी, इसम सूरज कसूरवार नह होगा। उसको दो महीने आंख को सूय के काश के झेलने क मता भी वक सत करने देनी चा हए। नह तो वह पहले जतना अंधा था उससे भी ादा खतरनाक अंधा हो जाएगा; क पहलेवाले अंधेपन का इलाज भी हो सकता था, अब इलाज भी मु ल होगा; क यह बारा अंधा आ है वह। तो इसको ठीक से समझ लेना: पा को ही अनुभू त आती है, ले कन अपा कभी

शी ता से पा बन सकता है; कभी ऐसे कारण से पा बन सकता है जसका उसे पता भी न चले। और तब.तब घटना के सदा डर ह; क श अनायास उतर आए तो आप झेलने क त म नह होते। ऐसा समझ ल, एक आदमी को अनायास कुछ भी मल जाए--धन मल जाए। तो धन के मलने से घटना नह होनी चा हए, ले कन अनायास मलने से घटना हो जाएगी। अनायास ब त बड़ा सुख भी मल जाए तो भी घटना हो जाएगी; क उस सुख को भी झेलने के लए मता चा हए। सुख भी धीरे -धीरे ही मले तो हम तैयार हो पाते ह; आनंद भी धीरे -धीरे ही मले तो हम तैयार हो पाते ह। क तैयारी ब त सी बात पर नभर है; और हमारे भीतर झेलने क मता भी ब त सी बात पर नभर है। हमारे म के ायु, हमारे शरीर क मता, हमारे मन क मता, सब क सीमा है। और जस श क हम बात कर रहे ह, वह असीम है। वह ऐसा ही है, जैसे बूंद के ऊपर सागर गर जाए। तो बूंद के पास कुछ पा ता चा हए सागर को पी जाने क , नह तो अनायास तो सफ बूंद मरे गी ही, मटे गी ही, पा नह सकेगी कुछ। इस लए, अगर इसे ठीक से समझ तो साधना म दोहरा काम है: उस श के माग पर अपने को लाना है, उसके अनुकूल लाना है, और अनुकूल लाने के पहले अपने को सहने क मता भी बढ़ानी है। ये दोहरे काम साधना के ह। एक तरफ से ार खोलना है, आंख ठीक करनी है; और सरी तरफ से आंख ठीक हो जाए, तो भी ती ा करनी है और आंख को भी इस यो बनाना है क वह काश को देख सके। अ था ब त काश अंधेरे से भी ादा अंधेरा स होता है। इसम काश का कोई भी कसूर नह है, इसम काश का कोई लेना-देना नह है, यह बलकुल एकतरफा मामला है; यह हमारे ऊपर ही नभर है। इसम हम ज ेवारी कभी सरे पर न दे पाएं गे। अब जैसे, आदमी क तो ज -ज क या ा है। उस ज -ज क या ा म उसने ब त कुछ कया है। और कई बार ऐसा होता है क वह बलकुल पा होने के इं च भर पहले छूट गया। वे पछले ज क सारी ृ तयां उसक खो ग ; उसे कुछ पता नह है। य द आप पछले ज म कसी साधना म लगे थे और न ानबे ड ी तक प ं च गए थे, सौव ड ी तक नह प ं चे थे, अब वह साधना भूल गई, वह जीवन भूल गया, वह सारी बात भूल गई, ले कन न ानबे ड ी तक क जो आपक त थी, वह आपके साथ है। एक सरा आदमी आपके पास म बैठा आ है; वह एक ही ड ी पर क गया है; उसको भी कोई पता नह है। आप दोन एक ही दन ान करने बैठे ह, तो भी आप दोन अलग-अलग तरह के आदमी ह। उसक एक ड ी बढ़ेगी तो अभी कोई घटना घटनेवाली नह है; वह दो ही ड ी पर प ं चेगा। आपक एक ड ी बढ़ेगी तो घटना घट जानेवाली है। यह आक क ही होगी आपके लए घटना; क आपको कोई अंदाज भी नह है क न ानबे ड ी पर आप थे। आप कहां ह, इसका अंदाज नह है। और इस लए एकदम से पहाड़ टूट पड़ सकता है। उसक तैयारी चा हए। और जब म कहता ं घटना, तो मेरा मतलब इतना ही है क जसक हमारे लए तैयारी नह थी। अ नवाय प से घटना का मतलब ख नह होता; घटना का इतना ही मतलब होता है क जसके घटने के लए हम अभी तैयार न थे। घटना का मतलब अ नवाय प

से बुरा नह होता। अब एक आदमी को एक लाख पये क लाटरी मल गई हो, तो कुछ बुरा नह हो गया है, ले कन मृ ु घ टत हो जाएगी; वह मर सकता है। एक लाख! ये उसके दय क ग त को बंद कर जा सकते ह। घटना का मतलब इतना है क जस घटना के लए हम अभी तैयार न थे। और इससे उलटा भी हो सकता है क अगर कोई आदमी तैयार हो और उसक मृ ु आ जाए, तो ज री नह है क मृ ु घटना ही हो। अगर कोई आदमी तैयार हो, सुकरात जैसी हालत म हो, तो वह मृ ु को भी आ लगन करके ागत कर लेगा, और उसके लए मृ ु त ाल समा ध बन जाएगी, घटना नह ; क उस मरते ण को वह इतने ेम और आनंद से ीकार करे गा क वह उस त को भी देख लेगा जो नह मरता है। हम तो मरने को इतनी घबड़ाहट से ीकार करते ह क मरने के पहले बेहोश हो जाते ह; मरने क या हम होशपूवक नह अनुभव कर पाते, मरने के पहले बेहोश हो जाते ह। इस लए हम ब त बार मरे ह, ले कन मरने क या का हम कोई पता नह । एक बार भी हम पता चल जाए क मरना ा है, तो फर हम कभी भी यह खयाल नह उठे गा क म और मर सकता ं ; क मौत क घटना घट जाएगी और आप पार खड़े रह जाएं गे। ले कन यह होश म होना चा हए। तो मृ ु भी कसी के लए सौभा हो सकती है; और साद, ेस भी कसी के लए भा हो सकती है। इस लए साधना दोहरी है: पुकारना है, बुलाना है, खोजना है, जाना है; और साथ-साथ तैयार भी होते चलना है क जब आ जाए ार पर काश, तो ऐसा न हो क काश भी हम अंधेरा ही स हो, और अंधा कर जाए। इसम एक बात अगर खयाल रखगे जो मने पहले कही, तो अड़चन न होगी। अगर परमा ा को मान लगे तो फर ब त अड़चन हो जाती है, अगर श मानगे तब कोई अड़चन नह । मानकर ब त क ठनाई हो गई। और हमारे मन क इ ा ऐसी होती है क हो; क बनाकर हम उसको र ां सबल बना देते ह; तो ज ेवारी अपनी पूरी नह रह जाती, उसक भी कुछ हो जाती है। और हम तो छोटी-छोटी चीज के लए उसको उ रदायी बनाते ह, बड़ी चीज क तो बात अलग है। एक आदमी को नौकरी मल जाए तो परमा ा को ध वाद देता है; नौकरी छूट जाए तो परमा ा पर नाराज होता है; कसी को फोड़ा-फंु सी हो जाए तो परमा ा को कहता है उसने कर दया; कसी का फोड़ा-फंु सी ठीक हो जाए तो वह कहता है, भगवान क कृपा से ठीक हो गया। ले कन हम कभी खयाल नह करते क हम कैसे काम भगवान से ले रहे ह! और कभी यह खयाल नह करते क बड़ी ईगोस क धारणा है यह क मेरे फोड़ेफंु सी क फकर भी भगवान कर रहा है! क हमारा एक पया गर गया और सड़क पर लौटकर मल गया तो हम कहते ह, भगवान क कृपा से! मेरे एक पये का भी हसाब- कताब जो है वह भगवान रख रहा है, यह सोचकर भी मन को बड़ी तृ मलती है, क म तब इस सारे जगत के क पर खड़ा हो गया। और परमा ा से भी जो म वहार कर रहा ं , वह एक नौकर का वहार है। उससे भी हम एक पु लसवाले का उपयोग ले रहे ह-- क वह तैयार खड़ा है, हमारे पये को बचा रहा है। बनाने से यह सु वधा है क ज ेवारी उस पर टाल सकते ह। ले कन साधक

ज ेवारी अपने ऊपर लेता है। असल म, साधक होने का एक ही अथ है क अब इस जगत म वह कसी बात के लए कसी और को ज ेवार ठहराने नह जाएगा। अब ख है तो अपना है, सुख है तो अपना है, शां त है तो अपनी है, अशां त है तो अपनी है--कोई उ रदायी नह , कोई र ां सबल नह , म ही उ रदायी ं । अगर टांग टूट जाती है गरकर, तो े वटे शन ज ेवार नह , म ही ज ेवार ं । ऐसी मनोदशा हो तो फर बात समझ म आ जाएगी। और तब, तब घटना का अथ और होगा। और इस लए मने कहा क साद भी तैयार को उपल होता है, तो क ाणकारी, मंगलदायी हो जाता है। असल म, हर चीज क एक घड़ी है, हर चीज का एक ठीक ण है, और ठीक ण और ठीक घड़ी को चूक जाना बड़ी घटना है। इस खयाल से। गु और श का गलत संबंध : ओशो, आपने पछली एक चचा म कहा क श पात का भाव धीरे -धीरे कम हो जाता है , इस लए मा म से बार-बार संबंध होना चा हए। तो यह ा गु पी कसी पर परावलंबन नह आ?

यह हो सकता है परावलंबन। अगर कोई गु बनने को उ ुक हो, कोई बनाने को उ ुक हो, तो यह परावलंबन हो जाएगा। इस लए भूलकर भी श मत बनना और भूलकर भी गु मत बनना, यह परावलंबन हो जाएगा। ले कन, य द श और गु बनने का कोई सवाल नह है, तब कोई परावलंबन नह है; तब जससे आप सहायता ले रहे ह, वह अपना ही आगे गया प है। अपना ही आगे गया प है--कौन बने गु , कौन बने श ? म नरं तर कहता रहा ं क बु ने अपने पछले ज के रण म एक बात कही है। कहा है क म तब अ ानी था और एक बु पु ष परमा ा को उपल हो गए थे, तो म उनके दशन करने गया था। बु पछले ज म, जब वे बु नह ए थे, कसी बु पु ष के दशन करने गए थे। झुककर उ ने णाम कया था, और वे णाम करके खड़े भी नह हो पाए थे क ब त मु ल म पड़ गए, क वह बु पु ष उनके चरण म झुके और उ णाम कया। तो उ ने कहा, आप यह ा कर रहे ह? म आपके पैर छु ऊं, यह ठीक। आप मेरे पैर छूते ह! तो उ ने कहा था क तू मेरे पैर छु ए और म तेरे पैर न छु ऊं तो बड़ी गलती हो जाएगी; गलती इस लए हो जाएगी क म तेरा ही दो कदम आगे गया एक प ं । और जब म तेरे पैर म झुक रहा ं तो तुझे याद दला रहा ं क तू मेरे पैर पर झुका, वह ठीक कया, ले कन इस भूल म मत पड़ जाना क तू अलग और म अलग; और इस भूल म मत पड़ जाना क तू अ ानी और म ानी। घड़ी भर क बात है क तू भी ानी हो जाएगा। यानी ऐसे ही क जब मेरा दायां पैर आगे जाता है तो बायां पीछे छूट जाता है। असल म, दायां आगे जाए, इसके लए भी बाएं को पीछे थोड़ी देर छूटना पड़ता है। गु और श का संबंध घातक है। गु और श का असंबं धत प बड़ा साथक है।

असंबं धत प का मतलब ही यह होता है क जहां अब दो नह ह। जहां दो ह, वह संबंध हो सकता है। तो यह तो समझ म भी आ सकता है क श को यह खयाल हो क गु है, क श अ ानी है; ले कन जब गु को भी यह खयाल होता है क गु है, तब फर हद हो जाती है; तब उसका मतलब आ क अंधा अंधे को मागदशन कर रहा है! और इसम आगे जानेवाला अंधा ही ादा खतरनाक है। क वह एक सरे अंधे को यह भरोसा दलवा रहा है क बे फकर रहो। गु और श के संबंध का कोई आ ा क अथ नह है। असल म, इस जगत म हमारे सारे संबंध श के संबंध ह, पावर पा ल ट के संबंध ह। कोई बाप है, कोई बेटा है। बाप और बेटा, अगर ेम का संबंध हो तो बात और होगी। तब बाप को बाप होने का पता नह होगा, बेटे को बेटे होने का पता नह होगा। तब बेटा बाप का ही बाद म आया आ प होगा, और बाप बेटे का पहले आ गया प होगा। भावतः बात भी यही है। एक बीज हमने बोया है और वृ आया; और फर उस वृ म हजार बीज लग गए। वह पहला बीज और इन बीज के बीच ा संबंध है? वे पहले आ गए थे, ये पीछे आए ह, उसी क या ा है--उसी बीज क या ा है जो वृ के नीचे टूटकर बखर गया है। बाप पहली कड़ी थी, यह सरी कड़ी है उसी ृंखला म। ले कन तब ृंखला है और दो नह ह। तब अगर बेटा अपने बाप के पैर दबा रहा है तो सफ बीती ई कड़ी को-- भावतः बीती ई कड़ी को वह स ान दे रहा है, बीती ई कड़ी क सेवा कर रहा है, जो जा रहा है उसको वह आदर दे रहा है। क उसके बना वह आ भी नह सकता था; वह उससे आया है। और अगर बाप अपने बेटे को बड़ा कर रहा है, पाल रहा है, पोस रहा है, भोजन-कपड़े क चता कर रहा है, तो यह कसी सरे क चता नह है, वह अपने ही एक प को स ाल रहा है। और अपने जाने के पहले उसे.अगर इसे हम ऐसा कह क बाप अपने बेटे म फर से जवान हो रहा है, तो क ठनाई नह है। तब संबंध क बात नह है, तब एक और बात है। तब एक ेम है जहां संबंध नह है। ले कन आमतौर से जो बाप और बेटे के बीच संबंध है, वह राजनी त का संबंध है। बाप ताकतवर है, बेटा कमजोर है; बाप बेटे को दबा रहा है; बाप बेटे को कह रहा है क तू अभी कुछ भी नह , म सब कुछ ं । तो उसे पता नह क आज नह कल बेटा ताकतवर हो जाएगा, बाप कमजोर हो जाएगा; और तब बेटा उसे दबाना शु करे गा क म सब कुछ ं और तू कुछ भी नह है। यह जो गु और श के बीच जो संबंध है, प त और प ी के बीच जो संबंध है, ये सब परवरशंस ह, वकृ तयां ह। नह तो प त और प ी के बीच संबंध क ा बात है! दो य ने ऐसा अनुभव कया है क वे एक ह, इस लए वे साथ ह। ले कन नह , ऐसा मामला नह है। प त प ी को दबा रहा है--अपने ढं ग से; प ी प त को दबा रही है--अपने ढं ग से; और वे एक- सरे के ऊपर पूरी क पूरी ताकत और पावर पा ल ट का पूरा योग कर रहे ह। गु - श घूमकर फर ऐसी क ऐसी बात है। गु श को दबा रहा है, और श गु के मरने क ती ा कर रहे ह क वे कब गु बन जाएं । या अगर गु ादा देर टक जाए तो बगावत शु हो जाएगी। इस लए ऐसा गु खोजना ब त मु ल है जसके श

उससे बगावत न करते ह । ऐसा गु खोजना मु ल है जसके श उसके न न हो जाते ह । जो भी चीफ डसाइपल है वह न होनेवाला है। तो चीफ डसाइपल जरा सोचकर बनाना चा हए। कह भी, वह अ नवाय है; क वह जो श का दबाव है, उसक बगावत, रबे लयन भी होती है। अ ा का इससे कोई लेना-देना नह । तो मेरी समझ म आता है क बाप बेटे को दबाए, क दो अ ा नय क बात है, माफ क जा सकती है; अ ी तो नह है, सही जा सकती है। प त प ी को दबाए, प ी प त को दबाए, चल सकता है; शुभ तो नह है, चलना तो नह चा हए, ले कन फर भी छोड़ा जा सकता है। ले कन गु भी श को दबा रहा है, तब फर बड़ा मु ल हो जाता है। कम से कम यह तो जगह ऐसी है जहां कोई दावेदार नह होना चा हए-- क म जानता ं , और तुम नह जानते। अब गु और श के बीच ा संबंध है? दावेदार है एक, वह कहता है, म जानता ं और तुम नह जानते; तुम अ ानी हो और म ानी ं ; इस लए अ ानी को ानी के चरण म झुकना चा हए। मगर हम यह पता ही नह है क यह कैसा ानी है जो कसी से कह रहा है क चरण म झुकना चा हए! यह महाअ ानी हो गया। हां, इसे कुछ थोड़ी बात पता चल गई ह, शायद उसने कुछ कताब पढ़ ली ह, शायद परं परा से कुछ सू उसको उपल हो गए ह, वह उनको दोहराना जान गया है। इससे ादा कुछ और मामला नह है। दावेदार गु अ ानी शायद तुमने एक कहानी न सुनी हो। मने सुना है क एक ब ी थी जो सव हो गई थी। ब य म उसक बड़ी ा त हो गई, क वह तीथकर क है सयत पा गई थी। और उसके सव होने का, आलनोइं ग होने का कारण यह था क वह एक पु कालय म वेश कर जाती थी, और उस पु कालय के बाबत सभी कुछ जानती थी। सभी कुछ का मतलब--कहां से वेश करना, कहां से नकलना, कस कताब क आड़ म बैठने से ादा आराम होता है, और कौन सी कताब ठं ड म भी गम देती है। तो ब य म यह खबर हो गई थी क अगर पु कालय के संबंध म कुछ भी जानना हो, तो वह ब ी आलनोइं ग है, वह सव है। और न त ही, जो ब ी पु कालय के बाबत सब जानती है--जो भी पु कालय म है, सब जानती है--उसके ानी होने म ा कमी थी! उस ब ी को श भी मल गए थे। ले कन उसको कुछ भी पता नह था; कताब का पता उसे इतना ही था क उसक आड़ म बैठकर छपने क सु वधा है। उस कताब के बाबत उसे इतना ही पता था क उसक ज जो है वह ऊनी कपड़े क है, उसम ठं ड म भी गम मलती है। यही जानकारी थी उसक कताब के बाबत, और उसे कुछ भी पता नह था क भीतर ा है। और भीतर का ब ी को पता हो भी कैसे सकता था! आद मय म भी ऐसी आलनोइं ग ब यां ह, जनको कताब क आड़ म छपने का पता है; जन पर आप हमला करो तो फौरन रामायण बीच म कर लगे--और कहगे: रामायण म ऐसा लखा है! और आपक गदन को रामायण से दबा दगे। गीता म ऐसा लखा है! अब गीता से कौन झगड़ा करे गा? अगर म सीधा क ं क म ऐसा कहता ं , तो

मुझसे झगड़ा हो सकता है। ले कन म कहता ं , गीता ऐसा कहती है! म गीता को बीच म ले लेता ं ; गीता क आड़ म मुझे सुर ा है। गीता गम भी देती है ठं ड म, वसाय भी देती है; न से बचाव के लए श भी बन जाती है; आभूषण भी बन जाती है; और गीता के साथ खेल खेला जा सकता है। ले कन गीता म जो है, ऐसे आदमी को उतना ही पता है, जतना क उस ब ी को जो पु कालय म आराम करती थी; उससे भ कुछ पता नह है। और यह तो हो सकता है क उस पु कालय म रहते-रहते ब ी कसी दन जान जाए क कताब म ा है, ले कन ये कताब जाननेवाले गु बलकुल भी नह जान पाएं गे। क जतनी इनको कताब कंठ हो जाएगी, उतना ही इनको जानने क कोई ज रत न रह जाएगी; इनको म पैदा होगा क हमने जान लया है। जब भी कोई आदमी दावा करे क जान लया है, तब समझना क अ ान मुखर हो गया। दावेदार अ ान है। ले कन जब कोई आदमी जानने के दावे से भी झझक जाए, तब समझना क कह कोई झलक और करण मलनी शु ई। ले कन ऐसा आदमी गु न बन सकेगा। ऐसा आदमी गु बनने क क ना भी नह कर सकता; क गु के साथ अथॉ रटी है; गु के साथ दावा ज री है। गु का मतलब ही यह है क म जानता ं , प ा जानता ं ; तु अब जानने क कोई ज रत नह , मुझसे जान लो। तो जहां अथॉ रटी है, जहां आ ता है और जहां दावा है क म जानता ं , वहां सरे क अ ेषण और खोज क वृ क ह ा भी है; क अथॉ रटी बना ह ा कए नह रह सकती; दावेदार सरे क गदन काटे बना नह रह सकता; क यह भी डर है क कह तुम पता न लगा लो, अ था मेरे अ धकार का ा होगा, मेरी अथॉ रटी का ा होगा! तो म तु रोकूंगा। अनुयायी बनाऊंगा, श बनाऊंगा। श म भी हायरे रक बनाई जाएगी--कौन धान है, कौन कम धान है। और सब वही जाल खड़ा हो जाएगा जो राजनी त का जाल है, जससे अ ा का कोई भी संबंध नह है। श पात ो ाहन बने, गुलामी नह तो जब म कहता ं क श पात जैसी घटना, परमा ा के काश और उसक व ुत को, ऊजा को उपल करने क घटना क य के करीब सुगमता से घट सकती है, तो म यह नह कह रहा ं क तुम उन य को पकड़कर क जाना, न यह कह रहा ं क तुम परतं हो जाना, न यह कह रहा ं क तुम उ गु बना लेना, न यह कह रहा ं क तुम अपनी खोज बंद कर देना। ब सच तो यह है क जब भी तु कसी के करीब वह घटना घटे गी, तो तु त ाल ऐसा लगेगा क जब सरे के मा म से आकर भी इस घटना ने इतना आनंद दया तो जब सीधी अपने मा म से आती होगी तो बात ही और हो जाएगी। आ खर सरे से आकर थोड़ी तो जूठी हो ही जाती है, थोड़ी तो बासी हो ही जाती है। म बगीचे म गया और वहां के फूल क सुगंध से भर गया, और फर तुम मेरे पास आए, और मेरे पास से तु फूल क सुगंध आई; ले कन मेरे पसीने क बदबू भी उसम थोड़ी मल ही जाएगी; और तब तक फ क भी ब त हो जाएगी। तो जब म कह रहा ं क यह ाथ मक प से बड़ी उपयोगी है क तु खबर तो लग जाए क बगीचा भी है, फूल भी ह, तब तुम अपनी या ा पर जा सकोगे। अगर गु

बनाओगे तो कोगे। मील के प र के पास हम कते नह ह। हालां क मील के प र, जनको हम गु कहते ह, उनसे ब त ादा बताते ह, प खबर देते ह: कतने मील चल चुके और कतने मील मं जल क या ा बाक है। अभी कोई गु इतनी प खबर नह देता। ले कन फर भी मील के प र क न हम पूजा करते ह, न उसके पास बैठ जाते ह। और अगर मील के प र के पास हम बैठ जाएं गे तो हम प र से बदतर स ह गे। क वह प र सफ बताने को था क आगे! वह रोकनेवाला नह है, न रोकनेवाले का कोई अथ है। ले कन अगर प र बोल सकता होता तो वह कहता, कहां जा रहे हो? मने तु इतना बताया और तुम मुझे छोड़कर जा रहे हो! बैठो, तुम मेरे श हो गए, क मने ही तु बताया क दस मील चल चुके और बीस मील अभी बाक है। अब तु कह जाने क ज रत नह है, मेरे पीछे रहो। तो प र बोल नह सकता, इस लए गु नह बनता है; आदमी बोल सकता है, इस लए गु बन जाता है; क वह कहता है: मेरे त कृत रहो, अनुगृहीत रहो, े ट ूड कट करो, मने तु इतना बताया। और ान रहे, जो ऐसा आ ह करता हो, अनु ह मांगता हो, समझना क उसके पास बताने को कुछ भी न था, कोई सूचना थी। जैसे मील के प र के पास सूचना है। उसे कुछ पता थोड़े ही है क कतनी मं जल है और कतनी नह है; उसे कुछ पता नह है, सफ एक सूचना उसके ऊपर खुदी है। वह उस सूचना को दोहराए चला जा रहा है--कोई भी नकलता है, उसी को दोहराए चला जा रहा है। ऐसे ही, अनु ह जब तुमसे मांगा जाए तो सावधान हो जाना। और य के पास नह कना है, जाना तो है अ के पास; जाना तो है उसके पास जहां कोई आकार और सीमा नह । ले कन य से भी उसक झलक मल सकती है, क अंततः ह तो उसी के। जैसा मने कल कहा क कुएं से भी सागर का पता चलता है, ऐसे ही कसी से भी उस अनंत का पता चलता है; अगर तुम झांक सको, तो तु पता चल सकता है। ले कन कह नभर नह होना है, और कसी चीज को परतं ता नह बना लेना है। ले कन सभी तरह के संबंध परतं ता बनते ह--चाहे वह प त-प ी का हो, चाहे बाप-बेटे का हो, चाहे गु - श का हो; जहां संबंध है वहां परतं ता शु हो जाएगी। तो आ ा क खोजी को संबंध ही नह बनाने ह। और प त-प ी के बनाए रखे तो कोई ब त हजा नह है, क उनसे कोई बाधा नह है, वे इररे लेवट ह। ले कन मजा यह है क वह प त-प ी के, बाप-बेटे के संबंध तोड़कर एक नया संबंध बनाता है जो ब त खतरनाक है; वह गु - श का संबंध बनाता है। आ ा क संबंध का कोई मतलब ही नह होता। सब संबंध सांसा रक ह। संबंध मा सांसा रक ह। अगर हम ऐसा कह क संबंध ही संसार है, तो कोई क ठनाई नह होगी। असंग, अकेले हो तुम! ले कन इसका यह मतलब नह क अहं कार। क तु अकेले हो, ऐसा नह है, और भी अकेले ह। और तुमसे कोई दो कदम आगे है। उसक अगर तु पैर क न भी मल जाती है क कोई दो कदम आगे है, तो दो कदम आगे के रा े क भी खबर मल जाती है। कोई तुमसे दो कदम पीछे है, कोई तु ारे साथ है, कोई र है--ये सब चार तरफ हजारहजार, अनंत-अनंत आ ाएं या ा कर रही ह। इस या ा म सब संगी-साथी ह, फासला

आगे-पीछे का है। इससे जतना फायदा ले सको वह लेना, ले कन इसको गुलामी मत बनाना। यह गुलामी संबंध बनाने से शु हो जाती है। इस लए परतं ता से बचना, संबंध से बचना; आ ा क संबंध से सदा बचना। सांसा रक संबंध उतना खतरनाक नह है, क संसार का मतलब ही संबंध है; वहां कोई इतनी अड़चन क बात नह है। और जहां से तु खबर मले, वहां से खबर ले लेना। और यह नह कह रहा ं म क तुम ध वाद मत देना। यह नह कह रहा ं । इस लए क ठनाई होती है; इस लए ज टलता हो जाती है। कोई अनु ह मांग,े यह गलत है, ले कन तुम ध वाद न दो तो उतना ही गलत है। मील के प र को भी ध वाद तो दे ही देना जाते व -- क तेरी बड़ी कृपा! वह सुने या न सुन।े तो इससे बड़ी ां त होती है। जब हम कहते ह क गु अनु ह न मांग,े तो आमतौर से आदमी के अहं कार को एक रस मलता है; वह सोचता है: बलकुल ठीक है, कसी को ध वाद भी देने क ज रत नह । तब भूल हो रही है; यह बलकुल सरे पहलू से बात को पकड़ा जा रहा है। यह म नह कह रहा ं क तुम ध वाद मत दे देना। म यह कह रहा ं क कोई अनु ह मांग,े यह गलत है। ले कन तुम अनुगृहीत न होओ तो उतना ही गलत हो जाएगा। तुम तो अनुगृहीत होना ही। ले कन वह अनु ह बांधेगा नह ; क जो मांगा नह जाता, वह कभी नह बांधता है; जो दान है, वह कभी नह बांधता है। अगर मने तु ध वाद दया है, तो वह कभी नह बांधता; और अगर तुमने मांगा है, फर म ं या न ं , उप व शु हो जाता है। और जहां से तु झलक मले उसक , वहां से झलक को ले लेना। और वह झलक चूं क सरे से आई है, इस लए ब त ायी नह होगी; वह खोएगी बार-बार। ायी तो वही होगी जो तु ारी है। इस लए उसे तु बार-बार, बार-बार लेना पड़ेगा। और अगर डरते हो परतं ता से तो अपनी खोजना। परतं ता से डरने से कुछ भी न होगा, सरे पर नभर होने का भय भी लेने क ज रत नह है। क इससे कोई फक नह पड़ता: म तुम पर परतं हो जाऊं तो भी संबं धत हो गया, और तुमसे डरकर भाग जाऊं तो भी संबं धत हो गया और परतं हो गया। इस लए चुपचाप लेना, ध वाद देना, बढ़ जाना। और अगर लगे क कुछ है जो आता है और खो जाता है, तो फर अपना ोत खोजना, जहां से वह कभी न खोए, जहां से खोने का कोई उपाय न रह जाए। अपनी संपदा ही अनंत हो सकती है। सरे से मला आ दान चुक ही जाता है। भखारी मत बन जाना क सरे से ही मांगते चले जाओ। वह सरे से मला आ भी तु अपनी ही खोज पर ले जाए। और यह तभी होगा जब तुम सरे से कोई संबंध नह बनाते हो, ध वाद देकर आगे बढ़ जाते हो। श है न : ओशो, आपने कहा क परमा

ा एक श

है और उसको मनु

के जीवन म कोई दलच

ी नह है ,

कोई सरोकार नह है । कठोप नषद म एक ोक है जसका मतलब है क वह परमा ा जसको पसंद करता है उसको ही मलता है । तो उसक पसंदगी का कारण व आधार ा है ?

असल म, मने यह नह कहा क उसक आपम कोई च नह है। यह मने नह कहा। मने यह नह कहा क परमा ा क आपम कोई च नह है। उसक च न हो तो आप हो ही नह सकते ह। यह मने नह कहा। यह मने नह कहा। और यह भी मने नह कहा क वह आपके त तट है; यह भी मने नह कहा। और हो भी नह सकता तट ; क आप उससे कुछ अलग नह हो; आप उसके ही फैले ए व ार हो। जो कहा, वह मने यह कहा क आपम उसक कोई वशेष च नह है। यह दोन बात म फक है। आपम उसक कोई वशेष च नह है। आपके लए वह नयम से बाहर नह जाएगी श । और अगर आप अपने सर पर प र मारगे, तो ल बहेगा, और कृ त आपम वशेष च न लेगी। च तो पूरी ले रही है, क खून जब बह रहा है, वह भी च है; वह भी उसके ही ारा बह रहा है। आपने जो कया है, उसम पूरी च ली गई है। आप अगर नदी म बहकर डूब रहे ह, तब भी कृ त पूरी च ले रही है--डुबाने म ले रही है। ले कन वशेष च नह है। कोई ेशल, कोई अ त र , आपम कोई च नह है क नयम तो था डुबाने का और बचाया जाए; नयम तो था क आप जब छत पर से गर तो सर टूट जाए, ले कन छत पर से गर और सर न टूटे , ऐसी वशेष च नह है। ज ने ई र को माना, उ ने इस तरह क वशेष चय का फ न खड़ा कया है क ाद को वह जलाएगा नह आग म; पहाड़ से गराओ तो चोट नह लगेगी। ये जो कहा नयां ह, ये हमारी आकां ाएं ह--ऐसा हम चाहते ह क ऐसा हो; इतनी वशेष च हमम हो; हम उसके क बन जाएं । यह म नह कह रहा ं क च नह है, म यह कह रहा ं क उसक च नयम म है। श क च सदा नयम म होती है। क च वशेष बन सकती है। प पाती हो सकता है। श सदा न है। न ता ही उसक च है। इस लए जो नयम म होगा, वह होगा; जो नयम म नह होगा, वह नह होगा। परमा ा क तरफ से मरे कल नह हो सकते, चम ार नह हो सकते। जाननेवाल क वन ता और वह जो सरा सू आप कह रहे ह, कठोप नषद का, उसके मतलब ब त और ह। उसम कहा गया है: उसक जसके त पसंद होती, वह जस पर स होता, वह जस पर आनं दत होता, उसे ही मलता है। भावतः, आप कहगे, यह तो वही बात हो गई क उसक वशेष च जसम होती है। नह , यह बात नह है। असल म, आदमी क बड़ी तकलीफ है। और जब हम कसी स को कहना होता है तो उसके ब त पहलू ह। असल म, जनको वह मला है, उनका यह कहना है। जनको वह मला है, उनका यह कहना है क हमारे यास से ा हो सकता था! हम ा थे! हम तो ना-कुछ थे, हम तो धूल के कण भी न थे, फर भी हम वह मल गया! और अगर हमने दो घड़ी ान कया था, तो उसका भी ा मू था क हम दो घड़ी चुप बैठ गए थे! जो मला है, वह अमू है। तो जो हमने कया था और जो मला है, इसम कोई तालमेल ही नह है। तो जनको मला है, वे कहते ह क नह , यह अपने यास का

फल नह है, यह उसक कृपा है। उसने पसंद कया तो मल गया, अ था हम ा खोज पाते! यह नरहं कार का कहना है, जसको पाकर पता चला है क अपने से ा हो सकता था! ले कन, यह जनको नह मला है, अगर उनक धारणा बन जाए तो ब त खतरनाक है। जनको मला है, उनक तरफ से तो यह कहना बड़ा सु चपूण है, और ब त, इसम बड़ा ही सुसं ृ त भाव है। यानी वे यह कह रहे ह क हम कौन थे क वह हम मलता! हमारी ा ताकत थी, हमारी ा साम थी, हमारा ा अ धकार था, हम कहां दावेदार थे! हम तो कुछ भी न थे, फर भी वह हम मल गया; उसक ही कृपा है, हमारा कोई यास नह है। यह उनका कहना तो उ चत है। उनके कहने का मतलब सफ यह है क यह कसी यास भर से नह मल गया; यह कोई हमारी अहं कार क उपल नह है; यह कोई अचीवमट नह है; यह साद है। यह उनका कहना तो बलकुल ठीक है, ले कन कठोप नषद पढ़कर आप द त म पड़ जाओगे। सभी शा को पढ़कर आदमी द त म पड़ा है। क वह कहना है जाननेवाल का और पढ़ रहे ह न जाननेवाले--और वे उसको अपना कहना बना रहे ह। तो न जाननेवाला कहता है क ठीक है, फर हम ा करना है! जब वह उसक पसंद से ही मलता है, तो हम परे शान ह ! जस पर उसक इ ा होती है, उसी को मलता है, तो जब उसक इ ा होगी तब मल जाएगा। तो हम परे शान ह ? हम कुछ कर? तो जो नरहं कार का दावा था, वह हमारे लए आल क र ा बन जाता है। यह इतना बड़ा प रवतन है इन दोन म क जमीन-आसमान का फक है। जो शू ता का भाव था, वह हमारे लए माद बन जाता है। हम कहते ह, वह तो जसको मलना है उसको मलेगा; जसको नह मलना है, नह मलेगा। ा नय के शा , अ ा नय के हाथ अब अग ीन का एक वचन है इससे मलता-जुलता, जसम वह कहता है क जसको उसने चाहा, अ ा बनाना; जसको उसने चाहा, बुरा बनाया। बड़ा खतरनाक मालूम होता है! क अगर यह उसक चाह से हो गया क जसको उसने अ ा बनाया था, अ ा बनाया; और जसको बुरा बनाना था, उसको बुरा बनाया; तो बात ख हो गई। और ह पागल परमा ा है क कसी को बुरा बनाना चाहता है और कसी को अ ा बनाना चाहता है! न जाननेवाला जब इसको पढ़ेगा, तो इसके अथ बड़े खतरनाक ह। ले कन अग ीन जो कह रहा है, वह कुछ और ही बात कह रहा है। वह अ े आदमी से कह रहा है क तू अहं कार मत कर क तू अ ा है; क जसको उसने चाहा, अ ा बनाया। वह बुरे आदमी से कह रहा है: परे शान मत हो, चता से मत घर; उसने जसको बुरा बनाया, बुरा बनाया। वह बुरे आदमी का भी दं श ख च रहा है, वह अ े आदमी का भी दं श ख च रहा है। ले कन वह जाननेवाले क तरफ से है। ले कन बुरा आदमी सुन रहा है, वह कह रहा है: तो फर ठीक है, तो फर म बुराई क ं । क अपना तो कोई सवाल ही नह है; जससे उसने बुरा करवाया, वह बुरा कर रहा है। और अ े आदमी क भी या ा श थल पड़ गई, क वह कह रहा है क अब ा होना

है! वह जसको अ ा बनाता है, बना देता है; जसको नह बनाता, नह बनाता। तब जदगी बड़ी बेमानी हो जाती है। सारी नया म शा से ऐसा आ। क शा ह उनके कहे ए वचन जो जानते ह। और न त ही, जो जानता है वह शा -वा पढ़ने काहे के लए जाएगा! जो नह जानता वह शा पढ़ने चला जाता है। फर दोन के बीच उतना ही फक है जतना जमीन और आसमान के बीच फक है; और जो ा ा हम करते ह वह हमारी है। वह (शा ) हमारी ा ा नह है। इस लए मेरे इधर खयाल म आता है क दो तरह के शा रचे जाने चा हए-- ा नय के कहे ए अलग, अ ा नय के पढ़ने के लए अलग। ा नय के कहे ए बलकुल छपा देने चा हए; अ ा नय के हाथ म नह पड़ने चा हए। क अ ानी उनसे अथ तो अपना ही नकालेगा। और तब सब वकृत हो जाता है; सब वकृत हो गया है। मेरी बात खयाल म आती है? आ ा क अनुभव के नकली त प : ओशो, आपने कहा है क श पात अहं शू के मा म से होता है ; और जो कहता है क म तुम पर श पात क ं गा, तो जानना क वह श पात नह कर सकता। ले कन इस कार श पात दे नेवाले ब त से य से म प र चत ं । उनके श पात से लोग को ठीक शा ो ढं ग से कुंड लनी क याएं होती ह। ा वे ामा णक नह ह? ा वे झूठी, ूडो याएं ह?. और कैसे?

हां, यह भी समझने क बात है। असल म, नया म ऐसी कोई भी चीज नह है जसका नकली स ा न हो सके; नया म ऐसी कोई भी चीज नह है जसका फा कॉइन न बनाया जा सके। सभी चीज के नकली ह े भी ह और नकली पहलू भी ह। और अ र ऐसा होता है क नकली स ा ादा चमकदार होता है--उसे होना पड़ता है; क चमक से ही वह चलेगा; असलीपन से तो चलता नह । असली स ा बेचमक का हो, तो भी चलता है। नकली स ा दावेदार भी होता है; क असलीपन क जो कमी है, वह दावे से पूरी करनी पड़ती है। और नकली स ा एकदम आसान होता है, क उसका कोई मू तो होता नह । तो जतनी आ ा क उपल यां ह, सबका काउं टर पाट भी है। ऐसी कोई आ ा क उपल नह है, जसका फा , झूठा काउं टर पाट नह है। अगर असली कुंड लनी है, तो नकली कुंड लनी भी है। नकली कुंड लनी का ा मतलब है? और अगर असली च ह, तो नकली च भी ह। और अगर असली योग क याएं ह, तो नकली याएं भी ह। फक एक ही है, और वह फक यह है क सब असली आ ा क तल म घ टत होता है, और सब नकली साइ कक, मनस के तल म घ टत होता है। अब जैस,े उदाहरण के लए, एक को च क गहराइय म वेश मले, तो उसे ब त से अनुभव होने शु ह गे। जैसे उसे सुगंध आ सकती ह, ब त अनूठी, जो उसने कभी नह जान ; संगीत सुनाई पड़ सकता है, ब त अलौ कक, जो उसने कभी नह सुना; रं ग

दखाई पड़ सकते ह, ऐसे, जैसे क पृ ी पर होते ही नह । ले कन ये सब क सब बात ह ो सस से त ाल पैदा क जा सकती ह बना क ठनाई के--रं ग पैदा कए जा सकते ह, नयां पैदा क जा सकती ह, ाद पैदा कया जा सकता है, सुगंध पैदा क जा सकती है। और इसके लए कसी साधना से गुजरने क ज रत नह है, इसके लए सफ बेहोश होने क ज रत है। और तब जो भी सजे कया जाए बाहर से, वह भीतर घ टत हो जाएगा। अब यह फा कॉइन है। ान म जो-जो घ टत होता है, वह सब का सब ह ो सस से भी घ टत हो सकता है। ले कन वह आ ा क नह है; वह सफ डाला गया है, और ीम है, जैसा है। अब जैस,े तुम एक ी को ेम कर सकते हो जागते ए भी, म भी कर सकते हो। और आव क नह है क क जो ी है, वह जागनेवाली ी से कम सुंदर हो। अ र ादा होगी। और समझ लो क एक आदमी अगर सोए और फर उठे न, सपना ही देखता रहे, तो उसे कभी भी पता नह चलेगा क जो वह देख रहा है वह असली ी है, क जो वह देख रहा है वह सपना है। कैसे पता चलेगा? वह तो न द टूटे तभी वह जांच कर सकता है क अरे , जो म देख रहा था वह सपना था! तो इस तरह क याएं ह जनसे तु ारे भीतर सभी तरह के सपने पैदा कए जा सकते ह--कुंड लनी का सपना पैदा कया जा सकता है, च के सपने पैदा कए जा सकते ह, अनुभू तय के सपने पैदा कए जा सकते ह। और अगर तुम उन सपन म लीन रहो--और वे इतने सुखद ह क तोड़ने का मन न होगा; और ऐसे सपने ह जनको क सपना कहना मु ल है, क वे जागते म चलते ह, दवाह, डे- ी ह; और उनको साधा जा सकता है--तो तुम उनको जदगी भर साधकर गुजार सकते हो। और तुम आ खर म पाओगे: तुम कह भी नह प ं चे हो; तुम सफ एक लंबा सपना देखे हो। इन सपन को पैदा करने क भी तरक ब ह, व ाएं ह। और सरा तुमम इनको पैदा कर सकता है। और तु तय करना मु ल हो जाएगा क इन दोन म फक ा है; क सरे का तु पता नह है। अगर एक आदमी को कभी असली स ा न मला हो और नकली स ा ही हाथ म मला हो, तो वह कैसे तय करे गा क यह नकली है? नकली के लए असली भी मल जाना ज री है। तो जस दन को कुंड लनी का आ वभाव होगा, उस दन वह फक कर पाएगा क इन दोन म तो जमीन-आसमान का फक है! यह तो बात ही और है! अनुभव क जांच का रह -सू और ान रहे, शा ो कुंड लनी जो है, वह फा होगी। उसके कारण ह। अब यह तु म एक सी े ट क बात कहता ं । उसके कारण ह और बड़ा राज है। असल म, जो भी बु मान लोग इस पृ ी पर ए ह, उन सबने ेक शा म कुछ बु नयादी भूल छोड़ दी है, जो क पहचान के लए है। कुछ बु नयादी भूल छोड़ दी है। जैसे मने तुमसे कहा क इस मकान म--मने तु खबर दी इस मकान के बाहर-- क इस मकान म पांच कमरे ह। छह कमरे ह, यह म जानता ं ; मने तुमसे कहा, पांच कमरे ह। एक दन तुम आए और तुमने कहा क वह म मकान देख आया, आपने बलकुल ठीक कहा था, बलकुल पांच ही कमरे ह। तो म जानता ं क तुम कसी झूठे मकान म हो आए, तुमने कोई सपना देखा, क

कमरे तो वहां छह ह। वह एक कमरा बचाया गया है हमेशा के लए। वह तु खबर देता है क तु आ क नह आ। अगर बलकुल शा ो हो, तो समझना क नह आ, फा कॉइन है; क शा म एक कमरा सदा बचाया गया है। उसे बचाना ब त ज री है। उसे बचाना ब त ज री है। तो अगर तुमको बलकुल कताब म लखे ढं ग से सब हो रहा हो, तो समझना क कताब ोजे हो रही है। ले कन जस दन तुमको कताब म लखे ए ढं ग से नह , कसी और ढं ग से कुछ हो, जसम क कह कताब से मेल भी खाता हो और कह नह भी मेल खाता हो उस दन तुम जानना क तुम कसी असली ै क पर चल रहे हो, जहां चीज अब तु साफ हो रही ह; जहां तुम शा को ही सफ क ना म परोए- परोए नह चले जा रहे हो। तो जब कुंड लनी तु ठीक से जगेगी, तब तुम जांच पाओगे क अरे , शा म कहांकहां, कुछ-कुछ तरक ब है। ले कन वह तु उसके पहले पता नह चल सकती। और ेक शा को अ नवाय प से कुछ चीज छोड़ देनी पड़ी ह, नह तो कभी भी तय करना मु ल हो जाए। मेरे एक श क थे; यू नव सटी के ोफेसर थे। कभी भी म कसी कताब का नाम लूं तो वे कह, हां, मने पढ़ी है। एक दन मने झूठी ही कताब का नाम लया, जो है ही नह ; न वह लेखक है, न वह कताब है। मने उनसे कहा, आपने फलां लेखक क कताब पढ़ी है? बड़ी अदभुत कताब है! उ ने कहा, हां, मने पढ़ी है। तो मने उनसे कहा क अब जो पहले पढ़े ए दावे थे, वे भी गड़बड़ हो गए; क न यह कोई लेखक है और न यह कोई कताब है। मने कहा, अब इस कताब को आप मुझे मौजूद करवाकर बता द, तो बाक दाव के संबंध म बात होगी, बाक अब ख हो गई बात। वे कहने लगे, ा मतलब, यह कताब नह है? तो मने कहा, आपक जांच के लए अब इसके सवाय कोई और रा ा नह था। जो जानते ह, वे तु फौरन पकड़ लगे। अगर तु बलकुल शा ो हो रहा है, तुम फंस जाओगे। क वहां कुछ गैप छोड़ा गया है; कुछ गलत जोड़ा गया है, कुछ सही छोड़ दया गया है। जो क अ नवाय था; नह तो पहचान ब त मु ल है क कसको ा हो रहा है। पर यह जो शा ो है, यह पैदा कया जा सकता है। सभी चीज पैदा क जा सकती ह। आदमी के मन क मता कम नह है। और इसके पहले क वह आ ा म वेश करे , मन ब त तरह के धोखे दे सकता है। और धोखा अगर वह खुद देना चाहे, तब तो ब त ही आसान है। तो म यह कहता ं क व ा से, दावे से, शा से, नयम से, उतना नह है सवाल। और सवाल ब त सरा है। फर इसके पहचान के और भी रा े ह। इसके पहचान के और भी रा े ह क तु जो हो रहा है, वह असली है या झूठ। ामा णक अनुभव से आमूल पांतरण एक आदमी दन म पानी पीता है तो उसक ास बुझती है; सपने म भी पानी पीता है, ले कन ास नह बुझती और सुबह जागकर वह पाता है क ओंठ सूख रहे ह और गला तड़प रहा है। क सपने का पानी ास नह बुझा सकता, असली पानी ास बुझा सकता है। तो तुमने पानी जो पीया था, वह असली था या नकली, यह तु ारी ास

बताएगी क ास बुझी क नह बुझी। तो जन कुंड लनी जागरण करनेवाल क --या जनक जा त हो गई--तुम बात कर रहे हो, वे अभी भी तलाश कर रहे ह, अभी भी खोज रहे ह। वे यह भी कह रहे ह क हम यह हो गया, और वह खोज भी उनक जारी है। वे कहते ह, हम पानी भी मल गया। और अभी भी कह रहे ह, सरोवर का पता ा है? परस ही एक म आए थे। और वे कहते ह, मुझे न वचार त उपल हो गई; और मुझसे पूछने आए ह क ान कैसे कर! तो अब ा कया जाए? अब म कैसे क ं उनसे क यह ा.तु ारे साथ ा. कया ा जाए! तुम कह रहे हो, न वचार त उपल हो गई है; वचार शांत हो गए ह; और ान का रा ा बता द। ा मतलब होता है इसका? एक आदमी कह रहा है, कुंड लनी जग गई है; और कहता है, मन शांत नह होता! एक आदमी कहता है, कुंड लनी तो जग गई, ले कन यह से से कैसे छु टकारा मले! तो अवांतर उपाय भी ह-- क जो आ है, वह सच म आ है? अगर सच म आ है तो खोज ख हो गई। अगर भगवान भी उससे आकर कहे क थोड़ी शां त हम देने आए ह, तो वह कहेगा: अपने पास रखो, हम कोई ज रत नह है। अगर भगवान भी आए और कहे क हम कुछ आनंद तु देना चाहते ह, बड़े स ह, तो वह कहेगा: आप उसको बचा लो, और थोड़े ादा स हो जाओ; और हमसे कुछ लेना हो तो ले जाओ। तो उसको जांचने के लए तुम उस म भी देखना क और ा आ है? झूठी समा ध का धोखा अब एक आदमी कहता है क उसे समा ध लग जाती है; वह छह दन म ी के नीचे पड़ा रह जाता है। और वह बलकुल ठीक पड़ा रह जाता है, ग े से वह जदा नकल आता है। ले कन घर म अगर पये छोड़ दो तो वह चोरी कर सकता है; मौका मल जाए तो शराब पी सकता है। और उस आदमी का अगर तु पता न हो क इसको समा ध लग गई है, तो तुम उसम कुछ भी न पाओगे; उसम कुछ भी नह है--कोई सुगंध नह है, कोई नह है, कोई चमक नह है--कुछ भी नह है; एक साधारण आदमी है। नह , तो उसको समा ध नह लग गई है, वह समा ध क क सीख गया है; वह छह दन जमीन के अंदर जो रह रहा है, वह समा ध नह है। वह समा ध नह है, वह छह दन जमीन के नीचे रहने क अपनी क है, अपनी व ा है। वह उतना सीख गया है। वह ाणायाम सीख गया है, वह ास को श थल करना सीख गया है; वह छह दन, जतनी छोटी सी जमीन का घेरा उसने अंदर बनाया है, जस आयतन का, वह जानता है क उतनी ऑ ीजन से वह छह दन काम चला लेता है। वह इतनी धीमी ास लेता है क जो म नमम, जससे ादा लेने म ादा ऑ ीजन खच होगी, उतनी ास लेकर वह छह दन गुजार देता है। वह करीब-करीब उस हालत म होता है, जस हालत म साइबे रया का भालू छह महीने के लए बफ म दबा पड़ा रह जाता है। उसको कोई समा ध नह लग गई है। बरसात के बाद मढक जमीन म पड़ा रह जाता है। आठ महीने पड़ा रहता है। उसे कोई समा ध नह लग गई है। वही इसने सीख लया है; और कुछ भी नह हो गया। ले कन जसको समा ध उपल हो गई है, उसको अगर तुम छह दन के लए बंद कर

दो, तो वह हो सकता है मर जाए और यह नकल आए। क समा ध से छह दन जमीन के नीचे रहने का कोई संबंध नह है। महावीर ामी या बु कह मल जाएं , और उनको जमीन के भीतर छह दन रख दो, बचकर लौटने क आशा नह है। यह बचकर लौट आएगा। क इससे कोई संबंध ही नह है। उससे कोई वा ा ही नह है; वह बात ही और है। ले कन यह जंचेगा। और अगर महावीर न नकल पाएं और यह नकल पाए, तो तीथकर यह असली मालूम पड़ेगा, वे नकली स हो जाएं गे। तो ये सारे के सारे जो साइ कक फा कॉइ पैदा कए गए ह, जो मनस ने झूठे-झूठे स े पैदा कए ह, उ ने अपने झूठे दावे भी पैदा कए ह; उन दाव को स करने क पूरी व ा भी पैदा क है। और उ ने एक अलग ही नया खड़ी कर रखी है। जसका कोई लेना-देना नह है, जससे कोई संबंध नह है। और असली चीज उ ने छोड़ दी ह; जो असली पांतरण थे, उनके छह दन जमीन के नीचे रहने या छह महीने रहने से कोई संबंध नह है। ले कन इस का च र ा है? इस के मनस क शां त कतनी है? इसके आनंद का ा आ? इसका एक पैसा खो जाता है तो यह रात भर सो नह पाता, और छह दन जमीन के भीतर रह जाता है! यह सोचना पड़ेगा क इसके असली संबंध ा ह? झूठे श पात के लए स ोहन का उपयोग तो जो भी दावेदार ह क हम श पात करते ह, वे कर सकते ह, ले कन वह श पात नह है, वह ब त गहरे म कसी तरह का स ोहन है, ह ो सस है; ब त गहरे म कुछ मै े टक फोसस का उपयोग है, जनको वे सीख गए ह। और ज री नह है क वे भी जानते ह । उसके पूरे व ान को जानते ह , यह भी ज री नह है। और यह भी ज री नह है क वह दावा जो है जानकर कर रहे ह क झूठा है। इतने जाल ह! अब एक मदारी को तुम सड़क पर देखते हो क वह एक लड़के को लटाए ए है, चादर बछा दी है, उसक छाती पर एक ताबीज रख दी है। अब उस लड़के से वह पूछ रहा है क फलां आदमी के नोट का नंबर ा है? वह नोट का नंबर बता रहा है। फलां आदमी क घड़ी म कतना बजा है? वह घड़ी बता रहा है। पूछ रहा है कान म, इस आदमी का नाम ा है? वह लड़का नाम बता रहा है। और वह सब देखनेवाल को स आ जा रहा है क ताबीज म कुछ खूबी है। वह ताबीज उठा लेता है और पूछता है, इस आदमी क घड़ी म ा है? वह लड़का पड़ा रह जाता है, वह जवाब नह दे पाता। ताबीज वह बेच लेता है--छह आने, आठ आने म वह ताबीज बेच लेता है। तुम ताबीज घर पर ले जाकर छाती पर रखकर जदगी भर बैठे रहो, उससे कुछ नह होगा। अ ा ऐसा नह है.नह , ऐसा नह है क वह लड़के को सखाया आ है उसने; ऐसा नह है क वह कहता है क जब ताबीज उठा लूं तो मत बोलना। नह , ऐसा नह है। और ऐसा भी नह है क ताबीज म कुछ गुण है। ले कन तरक ब और गहरी है। और वह खयाल म आए तो ब त हैरानी होती है। इसको कहते ह पो ह ो टक सजेशन। अगर एक को हम बेहोश कर, और बेहोश करके उसको कह क आंख खोलकर इस ताबीज को ठीक से देख लो! और जब भी यह ताबीज म तु ारी छाती पर रखूंगा और क ं गा--एक. दो.तीन.तुम त ाल फर से बेहोश हो जाओगे। यह बेहोशी म कहा गया सजेशन--जब भी इस ताबीज को म तु ारी

छाती पर रखूंगा, तुम पुनः बेहोश हो जाओगे। और उस बेहोशी क हालत म इसक ब त संभावना है क वह नोट का नंबर पढ़ा जा सकता है, घड़ी देखी जा सकती है। इसम कुछ झूठ नह है। जैसे ही वह चादर रखता है और लड़के के ऊपर ताबीज रखता है, वह लड़का ह ो टक ांस म चला गया, वह स ो हत त म चला गया। अब वह तु ारे नोट का नंबर बता पाता है। यह कुछ सखाया आ नह है वह। उस लड़के को भी पता नह है क ा हो रहा है। इस आदमी को भी पता नह है क भीतर ा हो रहा है। इस आदमी को एक क मालूम है क एक आदमी को बेहोश करके अगर कोई भी चीज बताकर कह दया जाए क पुनः जब भी यह चीज तु ारे ऊपर रखी जाएगी, तुम बेहोश हो जाओगे, तो वह बेहोश हो जाता है, इतना इसको भी पता है। इसके ा भीतर मैके न है, इसका डाइना म ा है, इन दोन को कसी को कोई पता नह है। क जसको उतना डाइना म पता हो, वह सड़क पर मदारी का काम नह करता है। उतना डाइना म ब त बड़ी बात है। मन का ही है, ले कन वह भी ब त बड़ी बात है। उतना डाइना म कसी ायड को भी पूरा पता नह है, उतना डाइना म कसी जुंग को भी पूरा पता नह है, उतना डाइना म बड़े से बड़े मनोवै ा नक को भी अभी पूरा पता नह है क हो ा रहा है। ले कन इसको एक क पता है, उतनी क से यह काम कर लेता है। तु बटन दबाने के लए यह जानना थोड़े ही ज री है क बजली ा है! और बटन दबाने के लए यह भी जानना ज री नह है क बजली कैसे पैदा होती है। और यह भी जानना ज री नह है क बजली क पूरी इं जी नय रग ा है। तुम बटन दबाते हो, बजली जल जाती है। तु एक क पता है, हर आदमी दबाकर बजली जला लेता है। ऐसे ही क उसको पता है क यह ताबीज रखने से और यह-यह करने से यह हो जाता है, वह उतना कर ले रहा है। आप ताबीज खरीदकर ले जाओगे, वह ताबीज बलकुल बेमानी है। क वह सफ उसी के लए साथक है जसके ऊपर पहले उसका योग कया गया हो स ो हत अव ा म। आप अपनी छाती पर रखकर बैठे रहो, कुछ भी नह होगा। तब लगेगा क हम ही कुछ गलत ह, ताबीज तो ठीक; क ताबीज को तो काम करते देखा है। तो ब त तरह क म ा, झूठी. म ा और झूठी इस अथ म नह क वे कुछ भी नह ह। म ा और झूठी इस अथ म क वे चुअल नह ह, आ ा क नह ह, सफ मान सक घटनाएं ह। और सब चीज क मान सक पैरेलल घटनाएं संभव ह--सभी चीज क । तो वे पैदा क जा सकती ह; सरा आदमी पैदा कर सकता है। और दावेदार उतना ही कर सकता है। हां, गैर-दावेदार ादा कर सकता है। मा उप त से घटनेवाला श पात पर गैर-दावेदार का मतलब है: वह कहकर नह जाता क म श पात कर रहा ं ! म तुमम ऐसा कर ं गा, म तुमम ऐसा कर ं गा! यह हो जाएगा तुमम, म करनेवाला ं ! और जब हो जाएगा तो तुम मुझसे बंधे रह जाओगे! वह इस सबका कोई सवाल नह है। वह एक शू क भां त हो गया है वैसा आदमी। तुम उसके पास भी जाते हो तो कुछ होना शु हो जाता है। यह उसको खयाल ही नह है क यह हो रहा है।

एक ब त पुरानी रोमन कहानी है क एक बड़ा संत आ। और उसके च र क सुगंध और उसके ान क करण देवताओं तक प ं च ग । और देवताओं ने आकर उससे कहा क तुम कुछ वरदान मांग लो; तुम जो कहो, हम करने को तैयार ह। ले कन उस फक र ने कहा क जो होना था वह हो चुका है, और तुम मुझे मु ल म मत डालो। क तुम कहते हो, मांगो! अगर म न मांगूं तो अ श ता होती है। और मांगने को मुझे कुछ बचा नह है; ब जो मने कभी नह मांगा था, वह सब हो गया है। तो तुम मुझे मा करो, इस झंझट म मुझे मत डालो, इस मांगने क क ठनाई मुझ पर पैदा मत करो। ले कन वे देवता तो और भी. क अब तो यह सुगंध और भी जोर से उठी इस आदमी क , क जो मांगने के ही बाहर हो गया है। उ ने कहा क तब तो तुम कुछ मांग ही लो, और हम बना दए अब न जाएं गे। उस आदमी ने कहा क बड़ी मु ल हो गई! तो तु कुछ दे दो; कम ा मांग,ूं मुझे सूझता नह ; क मेरी कोई मांग न रही; तु कुछ दे दो, म ले लूंगा। तो उन देवताओं ने कहा क हम तु ऐसी श दए देते ह क तुम जसे छु ओगे, वह मुदा भी होगा तो जदा हो जाएगा; बीमार होगा तो बीमारी ठीक हो जाएगी। उसने कहा क यह तो बड़ा काम हो जाएगा। यह बड़ा काम हो जाएगा। और इससे जो ठीक होगा वह तो ठीक है, मेरा ा होगा? म बड़ी मु ल म पड़ जाऊंगा। क मुझको यह लगने लगेगा--म ठीक कर रहा ं । तो यह जो बीमार ठीक हो जाएगा, वह तो ठीक है, ले कन म बीमार हो जाऊंगा। उसने कहा क मेरे बाबत ा खयाल है? क एक मुद को म छु ऊंगा, वह जदा हो जाएगा, तो मुझे लगेगा--म जदा कर रहा ं । तो वह तो जदा हो जाएगा, म मर जाऊंगा। मुझे मत मारो, मुझ पर कृपा करो! ऐसा कुछ करो क मुझे पता न चले। तो उन देवताओं ने कहा, अ ा हम ऐसा कुछ करते ह: तु ारी छाया जहां पड़ेगी, वहां कोई बीमार होगा तो ठीक हो जाएगा, कोई मुदा होगा तो जदा हो जाएगा। उसने कहा, यह ठीक है। और इतनी और कृपा करो क मेरी गदन पीछे क तरफ न मुड़ सके। नह तो छाया से भी द त हो जाएगी--अपनी छाया! तो मेरी गदन अब पीछे न मुड़े। वह वरदान पूरा हो गया, उस फक र क गदन मुड़नी बंद हो गई। वह गांव-गांव चलता रहता। अगर कु लाए ए फूल पर उसक छाया पड़ जाती तो वह खल जाता, ले कन तब तक वह जा चुका होता। क उसक गदन पीछे मुड़ सकती नह थी; उसे कभी पता नह चला। और जब वह मरा तो उसने देवताओं से पूछा क तुमने जो दया था, वह आ भी क नह ? क हमको पता नह चल पाया। तो मुझे लगता है--यह कहानी ी तकर है--तो घटना तो घटती है, ऐसी ही घटती है, पर वह छाया से घटती है और गदन भी नह मुड़ती। पर शू होना चा हए उसक शत, नह तो गदन मुड़ जाएगी। अगर जरा सा भी अहं कार शेष रहा तो पीछे लौटकर देखने का मन होगा, क आ क नह आ! और अगर हो गया तो फर मने कया है। उसे बचाना ब त मु ल हो जाएगा। तो शू जहां घटता है वहां आसपास श पात जैसी ब त साधारण बात ह, ब त बड़ी बात नह ह, वे ऐसे ही घटने लगती ह जैसे सूरज नकलता है, फूल खलने लगते ह--बस ऐसे ही; नदी बहती है, जड़ को पानी मल जाता है--बस ऐसे ही। न नदी दावा करती है, न बड़े बोड लगाती है रा े पर क मने इतने झाड़ को पानी दे दया,

इतन म फूल खल रहे ह। यह सब कुछ.कोई सवाल नह है। यह नदी को इसका पता ही नह चलता। जब तक फूल खलते ह, तब तक नदी सागर प ं च गई होती है। तो कहां फुसत? ककर देखने क भी सु वधा कहां? पीछे लौटकर मुड़ने का उपाय कहां? तो ऐसी त म जो घटता है, उसका तो आ ा क मू है। ले कन जहां अहं कार है, कता है; जहां कोई कह रहा है: म कर रहा ं ; वहां फर साइ कक फना मनन है, फर मनस क घटनाएं ह, और वह स ोहन से ादा नह है। मेरे ान म स ोहन का योग : ओशो, आपक जो ान क नयी व ध है , उसम भी ा स ोहन व म क संभावना नह है ? ब त से लोग को कुछ भी नह हो रहा है , तो ा ऐसा है क वे स े रा े पर नह ह? और जनको ब त सी याएं चल रही ह, ा वे स े रा े पर ही ह? या उनम भी कोई जान-बूझकर ही कर रहे ह, ऐसी बात नह है ा?

इसम दो-तीन बात समझनी चा हए। असल म, स ोहन एक व ान है। और अगर स ोहन का तु धोखा देने के लए उपयोग कया जाए, तो कया जा सकता है। ले कन स ोहन का उपयोग तु ारी सहायता के लए भी कया जा सकता है। और सभी व ान दोधारी तलवार ह। अणु क श है, वह खेत म गे ं भी पैदा कर सकती है, और गे ं खानेवाले को भी नया से मटा सकती है--वे दोन काम हो सकते ह; दोन ही अणु क श ह। यह बजली घर म हवा भी दे रही है, और इसका तु शॉक लगे तो तु ारे ाण भी ले सकती है। ले कन इससे तुम बजली को कभी ज ेवार न ठहरा पाओगे। तो स ोहन, अगर कोई अहं कार स ोहन का उपयोग करे --और सरे को दबाने, और सरे को मटाने, और सरे म कुछ इ ूजंस और सपने पैदा करने के लए--तो कया जा सकता है। ले कन इससे उलटा भी कया जा सकता है। स ोहन तो सफ तट श है, वह तो एक साइं स है। उससे तु ारे भीतर जो सपने चल रहे ह, उनको तोड़ने का भी काम कया जा सकता है; और तु ारे जो इ ूजंस डीप टे ड ह, उनको भी उखाड़ा जा सकता है। तो मेरी जो या है, उसके ाथ मक चरण स ोहन के ही ह। ले कन उसके साथ एक बु नयादी त और जुड़ा आ है जो तु ारी र ा करे गा और जो तु स ो हत न होने देगा--और वह है सा ी-भाव। बस स ोहन म और ान म उतना ही फक है। ले कन वह ब त बड़ा फक है। जब तु कोई स ो हत करता है तो वह तु मू त करना चाहता है, क तुम मू त हो जाओ तो ही फर तु ारे साथ कुछ कया जा सकता है। जब म कह रहा ं क ान म स ोहन का उपयोग है, ले कन तुम सा ी रहो पीछे, तुम पूरे समय जागे रहो, जो हो रहा है उसे जानते रहो, तब तु ारे साथ कुछ भी तु ारे वपरीत नह कया जा सकता; तुम सदा मौजूद हो। स ोहन के वही सुझाव तु बेहोश करने के काम म लाए जा सकते ह, वही सुझाव तु ारी बेहोशी तोड़ने के भी काम म लाए जा सकते ह।

तो जसे म ान कहता ं , उसके ाथ मक चरण सब के सब स ोहन के ह। और ह गे ही, क तु ारी कोई भी या ा आ ा क तरफ तु ारे मन से ही शु होगी। क तुम मन म हो; वह तु ारी जगह है जहां तुम हो। वह से तो या ा शु होगी। ले कन वह या ा दो तरह क हो सकती है: या तो तु मन के भीतर एक चकरीले पथ पर डाल दे क तुम मन के भीतर च र लगाने लगो, को ू के बैल क तरह चलने लगो। तब या ा तो ब त होगी, ले कन मन के बाहर तुम न नकल पाओगे। वह या ा ऐसी भी हो सकती है: तु मन के कनारे पर ले जाए और मन के बाहर छलांग लगाने क जगह पर प ं चा दे। दोन हालत म तु ारे ाथ मक चरण मन के भीतर ही पड़गे। तो स ोहन का भी ाथ मक प वही है जो ान का है, ले कन अं तम प भ है; और दोन का ल भ है। और दोन क या म एक बु नयादी त भ है। स ोहन चाहता है त ाल मू ा--न द, सो जाओ। इस लए स ोहन का सारा सुझाव न द से शु होगा, तं ा से शु होगा--सोओ; ीप; फर बाक कुछ होगा। ान का सारा सुझाव--जागो, अवेक, वहां से होगा और पीछे सा ी पर जोर रहेगा। क तु ारा सा ी जगा आ है तो तुम पर कोई भी बाहरी भाव नह डाले जा सकते। और अगर तु ारे भीतर जो भी हो रहा है, वह भी तु ारे जानते ए हो रहा है.तो एक तो यह खयाल म लेना ज री है। ान- योग से बचने क तरक ब और सरी बात यह खयाल म लेना ज री है क जनको हो रहा है और जनको नह हो रहा, उनम जो फक है, वह इतना ही है क जनको नह हो रहा है उनका संक थोड़ा ीण है--भयभीत, डरे ए; कह हो न जाए, इससे भी डरे ए। अब यह आदमी कतना अजीब है! करने आए ह, आए इसी लए ह क ान हो जाए। ले कन अब डर भी रहे ह क कह हो न जाए! और जनको हो रहा है उनको देखकर, जनको नह हो रहा है उनके मन म ऐसा लगेगा: कह ये ऐसे ही तो नह कर रहे ह! कह बनावटी तो नह कर रहे ह! ये डफस मेजर ह; ये उनके सुर ा के उपाय ह। इस भां त वे कह रहे ह क अरे , हम कोई इतने कमजोर नह क हमको हो जाए! ये कमजोर लोग ह जनको हो रहा है। इससे वे अपने अहं कार को तृ भी दे रहे ह। और यह नह जान पा रहे ह क यह कमजोर को नह होता, यह श शाली को होता है; और यह भी नह जान पा रहे ह क यह बु हीन को नह होता, बु मान को होता है। एक ई डयट को न तो स ो हत कया जा सकता है, न ान म ले जाया जा सकता है; दोन ही नह कया जा सकता। एक जड़बु आदमी को स ो हत भी नह कया जा सकता। एक पागल आदमी को कोई स ो हत कर दे; तब तु पता चलेगा क नह कर सकता। जतनी तभा का आदमी हो, उतनी ज ी स ो हत हो जाएगा; और जतना तभाहीन हो, उतनी देर लग जाएगी। ले कन वह तभाहीन अपनी सुर ा ा करे ? वह संक हीन अपनी सुर ा ा करे ? वह कहेगा क अरे , ऐसा मालूम होता है क इसम कुछ लोग तो बनकर कर रहे ह; और कुछ जनको हो रहा है, ये कमजोर श के लोग ह, तो इनक कोई अपनी श नह है; इन पर भाव सरे का पड़ गया है; ये करने लगे ह। अभी एक आदमी अमृतसर म मुझे मलने आए। डा र ह, पढ़े- लखे आदमी ह, बूढ़े

आदमी ह, रटायड ह। वे मुझसे तीसरे दन माफ मांगने आए। उ ने मुझसे कहा, म सफ आपसे माफ मांगने आया ं ; क मेरे मन म एक पाप उठा था, उसक मुझे मा चा हए। ा आ, मने उनसे पूछा। उ ने कहा, पहले दन जब म ान करने आया तो मुझे लगा क आपने दस-पांच आदमी अपने खड़े कर दए ह, जो बन-ठनकर कुछ भी कर रहे ह। और कुछ कमजोर लोग ह, वह उनक देखा-देखी वे भी करने लगे ह। तो ऐसा मुझे पहले दन लगा। पर मने कहा, सरे दन भी म देखूं तो जाकर क अब ा आ! ले कन सरे दन मने अपने दो-चार म देख,े जनको हो रहा था, वे सब डा र ह। तो म उनके घर गया। मने कहा क भई, अब म यह नह मान सकता क तुमको कोई उ ने तैयार कया होगा, ले कन तुम बनकर कर रहे थे क तुमको हो रहा था? तो उ ने कहा क बनकर करने का ा कारण है? कल तो हमको भी शक था क कुछ लोग बनकर तो नह कर रहे! ले कन आज तो हम आ। तो वह डा र, तीसरे दन उसको आ, तो वह तीसरे दन मुझसे मा मांगने आया। उसने कहा, जब आज मुझे आ तभी मेरी पूरी ां त गई। नह तो म मान ही नह सकता था; मुझे यह भी शक आ क पता नह , ये डा र भी मल गए ह ! आजकल कुछ प ा तो है ही नह क कौन ा करने लगे! पता नह , ये भी मल गए ह ! अपने पहचान के तो ह, ले कन ा कहा जा सकता है? या कसी भाव म आ गए ह , ह ोटाइ हो गए ह , या कुछ हो गया हो! ले कन आज मुझे आ है; और आज जब म घर गया--तो उसका छोटा भाई भी डा र है--तो उसने कहा क देख आए आप वह खेल, वहां आपको कुछ आ क नह ? तो मने उससे कहा क माफ कर भाई, अब म न कह सकूंगा खेल; दो दन मने भी मजाक उड़ाई, ले कन आज मुझे भी आ है। ले कन म तुझ पर नाराज भी नह होऊंगा; क यही तो म भी सोच रहा था, जो तू सोच रहा है। और उस आदमी ने कहा क म माफ मांगने आया ं , क मेरे मन म ऐसा खयाल उठा। ये हमारे सुर ा के उपाय ह। जनको नह होगा वे सुर ा का इं तजाम करगे। ले कन जनको नह हो रहा है उनम और होनेवाल म ब त इं च भर का ही फासला है; सफ संक क थोड़ी सी कमी है। अगर वे थोड़ी सी ह त जुटाएं और संक कर और संकोच थोड़ा छोड़ सक. अब आज ही एक म हला ने मुझे आकर कहा क कसी म हला ने उनको फोन कया है क रजनीश जी के इस योग म तो कोई नंगा हो जाता है, कुछ हो जाता है। तो भले घर क म हलाएं तो फर आ नह सकगी! तो भले घर क म हलाओं का ा होगा? अब कसी को यह भी वहम होता है क हम भले घर क म हला ह, और कोई बुरे घर क म हला है! तो बुरे घर क म हला तो जा सकेगी, भले घर क म हला का ा होगा? अब ये सब डफस मेजर ह। और वह भले घर क म हला अपने को भला मानकर घर रोक लेगी। और भले घर क म हला कैसी है? अगर एक आदमी न हो रहा है तो जस म हला को भी अड़चन हो रही है, वह बुरे घर क म हला है। उसे योजन ा है? बना कए नणय मत लो तो हमारा मन ब त अजीब-अजीब इं तजाम करता है; वह कहता है क ये सब गड़बड़ बात हो रही ह, यह अपने को नह होनेवाला; हम कोई कमजोर थोड़े ही ह, हम ताकतवर ह।

ले कन ताकतवर होते तो हो गया होता; बु मान होते तो हो गया होता। क बु मान आदमी का पहला ल ण तो यह है क जब तक वह खुद न कर ले तब तक वह कोई नणय न लेगा। वह यह भी न कहेगा क सरा झूठा कर रहा है। क म कौन ं यह नणय लेनेवाला? और सरे के संबंध म झूठे होने का नणय ब त ा नपूण है। सरे के संबंध म क वह झूठा कर रहा है.हम कौन ह? और म कैसे नणय क ं क सरा झूठा कर रहा है? ये इसी तरह के गलत नणय ने तो बड़ी द त डाली है। जीसस को लोग ने थोड़े ही माना क इसको कुछ आ है, नह तो सूली पर न लटकाएं । वे समझे क सब.आदमी गड़बड़ है, और कुछ भी कह रहा है। महावीर को प र न मार लोग। उनको लग रहा है क यह गड़बड़ आदमी है, नंगा खड़ा हो गया है, इसको कुछ आ थोड़े ही है। सरे आदमी को भीतर ा हो रहा है, हम नणायक कहां ह? कैसे ह? तो जब तक म न करके देख लूं, तब तक नणय न लेना बु म ा का ल ण है। और अगर मुझे नह हो रहा है, तो जो योग कहा जा रहा है, उसको म पूरा कर रहा ं न, इसक थोड़ी जांच कर लू-ं - क म उसे पूरा कर रहा ं ? अगर म पूरा नह कर रहा ं तो होगा कैसे? इधर पोरबंदर.म कह रहा था तो एक.आ खरी दन मने कहा क अगर कसी ने सौ ड ी ताकत नह लगाई, न ानबे ड ी लगाई, तो भी चूक जाएगा। तो एक म ने आकर मुझे कहा क म तो धीरे -धीरे कर रहा था, मने कहा थोड़ी देर म होगा। ले कन मुझे खयाल म आया क वह तो कभी नह होगा; सौ ड ी होनी ही चा हए। तो आज मने पूरी ताकत लगाई तो हो गया है। म तो सोचता था क म धीरे -धीरे करता र ं गा, होगा। धीरे -धीरे कर रहे थे? नह करो, ठीक है। धीरे -धीरे कर रहे हो? वह धीरे -धीरे करने म हम दोन नाव पर सवार रहना चाहते ह। और दो नाव पर सवार या ी ब त क ठनाई म पड़ जाता है। एक ही नाव अ ी--नरक जाए तो भी एक तो हो। ले कन ग क नाव पर भी एक पैर रखे ह, नरक क नाव पर भी एक पैर रखे ह। असल म, सं द है मन क कहां जाना है। और डर है क पता नह नरक म सुख मलेगा क ग म सुख मलेगा। दोन पर पैर रखे खड़े ह। इसम दोन जगह चूक सकती ह, और नदी म ाणांत हो सकते ह। ऐसा हमारा मन है पूरे व --जाएं गे भी, फर वहां रोक भी लगे। और नुकसान होता है। पूरा योग करो! और सरे के बाबत नणय मत लो। और पूरा योग जो भी करे गा उसे होना सु न त है; क यह व ान क बात कह रहा ं म, अब म कोई धम क बात नह कह रहा ं । और यह बलकुल ही साइं स का मामला है क अगर इसम पूरा आ तो होना न त है, इसम कोई और उपाय नह है। क परमा ा को म श कह रहा ं । उधर कोई प पात, और कोई ाथना- ाथना करने से, क अ े कुल म पैदा ए ह, और फलां घर म पैदा ए ह, यह सब कुछ चलेगा नह ; क भारत भू म म पैदा हो गए ह तो ऐसे ही पार हो जाएं गे, ऐसे नह चलेगा। बलकुल व ान क बात है। उसको जो पूरा करे गा, उसको परमा ा भी अगर खलाफ हो जाए, तो रोक नह सकता। और न भी हो परमा ा, तो कोई सवाल नह है। पूरा कर रहे हो क नह , इसक फकर करो। और सदा नणय भीतर के अनुभव से लो, बाहर से मत

लो। अ था भूल हो सकती है।

: 13 सात शरीर से गुजरती कुंड लनी : ओशो, कल क चचा म आपने कहा क कुंड लनी के झूठे अनुभव भी ोजे कए जा सकते ह-- ज आप आ ा क अनुभव नह मानते ह, मान सक मानते ह। ले कन ारं भक चचा म आपने कहा था क कुंड लनी मा साइ कक है । इसका ऐसा अथ आ क आप कुंड लनी क दो कार क तयां मानते ह--मान सक और आ ा क। कृपया इस त को कर।

असल म, आदमी के पास सात कार के शरीर ह। एक शरीर तो जो हम दखाई पड़ता है-- फ जकल बॉडी, भौ तक शरीर। सरा शरीर जो उसके पीछे है और जसे ईथ रक बॉडी कह--आकाश शरीर। और तीसरा शरीर जो उसके भी पीछे है, जसे ए ल बॉडी कह-सू शरीर। और चौथा शरीर जो उसके भी पीछे है, जसे मटल बॉडी कह--मनस शरीर। और पांचवां शरीर जो उसके भी पीछे है, जसे चुअल बॉडी कह--आ क शरीर। छठवां शरीर जो उसके भी पीछे है, जसे हम का क बॉडी कह-शरीर। और सातवां शरीर जो उसके भी पीछे है, जसे हम नवाण शरीर, बॉडीलेस बॉडी कह--अं तम। इन सात शरीर के संबंध म थोड़ा समझगे तो फर कुंड लनी क बात पूरी तरह समझ म आ सकेगी। भौ तक शरीर, भाव शरीर और सू शरीर पहले सात वष म भौ तक शरीर ही न मत होता है। जीवन के पहले सात वष म भौ तक शरीर ही न मत होता है, बाक सारे शरीर बीज प होते ह; उनके वकास क संभावना होती है, ले कन वे वक सत उपल नह होते। पहले सात वष, इस लए इ मटे शन, अनुकरण के ही वष ह। पहले सात वष म कोई बु , कोई भावना, कोई कामना वक सत नह होती, वक सत होता है सफ भौ तक शरीर। कुछ लोग सात वष से ादा कभी आगे नह बढ़ पाते; कुछ लोग सफ भौ तक शरीर ही रह जाते ह। ऐसे य म और पशु म कोई अंतर नह होगा। पशु के पास भी सफ भौ तक शरीर ही होता है, सरे शरीर अ वक सत होते ह। सरे सात वष म भाव शरीर का वकास होता है; या आकाश शरीर का। इस लए सरे सात वष के भाव जगत के वकास के वष ह। चौदह वष क उ म इसी लए से मै ो रटी उपल होती है; वह भाव का ब त गाढ़ प है। कुछ लोग चौदह वष के होकर ही रह जाते ह; शरीर क उ बढ़ती जाती है, ले कन उनके पास दो ही शरीर होते ह। तीसरे सात वष म सू शरीर वक सत होता है--इ स वष क उ तक। सरे शरीर

म भाव का वकास होता है; तीसरे शरीर म तक, वचार और बु का वकास होता है। इस लए सात वष के पहले नया क कोई अदालत कसी ब े को सजा नह देगी, क उसके पास सफ भौ तक शरीर है; और ब े के साथ वही वहार कया जाएगा जो एक पशु के साथ कया जाता है। उसको ज ेवार नह ठहराया जा सकता। और अगर ब े ने कोई पाप भी कया है, अपराध भी कया है, तो यही माना जाएगा क कसी के अनुकरण म कया है; मूल अपराधी कोई और होगा। तीसरे शरीर म वचार का वकास सरे शरीर के वकास के बाद--चौदह वष--एक तरह क ौढ़ता मलती है; ले कन वह ौढ़ता यौन- ौढ़ता है। कृ त का काम उतने से पूरा हो जाता है। इस लए पहले शरीर और सरे शरीर के वकास म कृ त पूरी सहायता देती है; ले कन सरे शरीर के वकास से मनु मनु नह बन पाता। तीसरा शरीर--जहां वचार, तक और बु वक सत होती है-वह श ा, सं ृ त, स ता का फल है। इस लए नया के सभी मु इ स वष के को मता धकार देते ह। अभी कुछ मु म संघष है अठारह वष के ब को मता धकार मलने का। वह संघष ाभा वक है; क जैसे-जैसे मनु वक सत हो रहा है, सात वष क सीमा कम होती जा रही है। अब तक तेरह और चौदह वष म नया म लड़ कयां मा सक धम को उपल होती थ । अमे रका म पछले तीस वष म यह उ कम होती चली गई है; ारह वष क लड़क भी मा सक धम को उपल हो जाती है। अठारह वष का मता धकार इसी बात क सूचना है क मनु , जो काम इ स वष म पूरा हो रहा था, उसे अब और ज ी पूरा करने लगा है; वह अठारह वष म भी पूरा कर ले रहा है। ले कन साधारणतः इ स वष लगते ह तीसरे शरीर के वकास के लए। और अ धकतम लोग तीसरे शरीर पर क जाते ह; मरते दम तक उसी पर के रहते ह; चौथा शरीर, मनस शरीर भी वक सत नह हो पाता। जसको म साइ कक कह रहा ं , वह चौथे शरीर क नया क बात है--मनस शरीर क । उसके बड़े अदभुत और अनूठे अनुभव ह। जैसे जस क बु वक सत न ई हो, वह ग णत म कोई आनंद नह ले सकता। वैसे ग णत का अपना आनंद है। कोई आइं ीन उसम उतना ही रसमु होता है, जतना कोई संगीत वीणा म होता हो, कोई च कार रं ग म होता हो। आइं ीन के लए ग णत कोई काम नह है, खेल है। पर उसके लए बु का उतना वकास चा हए क वह ग णत को खेल बना सके। ेक शरीर के अनंत आयाम जो शरीर हमारा वक सत होता है, उस शरीर के अनंत-अनंत आयाम हमारे लए खुल जाते ह। जसका भाव शरीर वक सत नह आ, जो सात वष पर ही क गया है, उसके जीवन का रस खाने-पीने पर समा हो जाएगा। जस कौम म पहले शरीर के लोग ादा मा ा म ह, उसक जीभ के अ त र कोई सं ृ त नह होगी। जस कौम म अ धक लोग सरे शरीर के ह, वह कौम से सटड हो जाएगी; उसका सारा --उसक क वता, उसका संगीत, उसक फ , उसका नाटक, उसके च , उसके मकान, उसक गा ड़यां--सब कसी अथ म से स क हो जाएं गी; वे सब

वासना से भर जाएं गी। जस स ता म तीसरे शरीर का वकास हो पाएगा ठीक से, वह स ता अ ंत बौ क चतन और वचार से भर जाएगी। जब भी कसी कौम या समाज क जदगी म तीसरे शरीर का वकास मह पूण हो जाता है, तो बड़ी वैचा रक ां तयां घ टत होती ह। बु और महावीर के व म बहार ऐसी ही हालत म था क उसके पास तीसरी मता को उपल ब त बड़ा समूह था। इस लए बु और महावीर क है सयत के आठ आदमी बहार के छोटे से देश म पैदा ए, छोटे से इलाके म। और हजार तभाशाली लोग पैदा ए। सुकरात और ेटो के व यूनान क ऐसी ही हालत थी। कन ू शयस और लाओ े के समय चीन क ऐसी ही हालत थी। और बड़े मजे क बात है क ये सारे महान पांच सौ साल के भीतर सारी नया म ए। उस पांच सौ साल म मनु के तीसरे शरीर ने बड़ी ऊंचाइयां छु । ले कन आमतौर से तीसरे शरीर पर मनु क जाता है; अ धक लोग इ स वष के बाद कोई वकास नह करते। चौथे मनस शरीर क अत य याएं ले कन ान रहे, चौथा जो शरीर है उसके अपने अनूठे अनुभव ह--जैसे तीसरे शरीर के ह, सरे शरीर के ह, पहले शरीर के ह। चौथे शरीर के बड़े अनूठे अनुभव ह। जैसे स ोहन, टे लीपैथी, ेअरवायंस--ये सब चौथे शरीर क संभावनाएं ह। आदमी बना समय और ान क बाधा के सरे से संबं धत हो सकता है; बना बोले सरे के वचार पढ़ सकता है या अपने वचार सरे तक प ं चा सकता है; बना कहे, बना समझाए, कोई बात सरे म वेश कर सकता है और उसका बीज बना सकता है; शरीर के बाहर या ा कर सकता है-ए ल ोजे न--शरीर के बाहर घूम सकता है; अपने इस शरीर से अपने को अलग जान सकता है। इस चौथे शरीर क , मनस शरीर क , साइ कक बॉडी क बड़ी संभावनाएं ह, जो हम बलकुल ही वक सत नह कर पाते ह; क इस दशा म खतरे ब त ह--एक; और इस दशा म म ा क ब त संभावना है--दो। क जतनी चीज सू होती चली जाती ह, उतनी ही म ा और फा संभावनाएं बढ़ती चली जाती ह। अब एक आदमी अपने शरीर के बाहर गया या नह --वह सपना भी देख सकता है अपने शरीर के बाहर जाने का, जा भी सकता है। और उसके अ त र , यं के अ त र और कोई गवाह नह होगा। इस लए धोखे म पड़ जाने क ब त गुंजाइश है; क नया जो शु होती है इस शरीर से, वह स े व है; इसके पहले क नया ऑ े व है। अगर मेरे हाथ म पया है, तो आप भी देख सकते ह, म भी देख सकता ं , पचास लोग देख सकते ह। यह कॉमन रय लटी है, जसम हम सब सहभागी हो सकते ह और जांच हो सकती है-- पया है या नह ? ले कन मेरे वचार क नया म आप सहभागी नह हो सकते, म आपके वचार क नया म सहभागी नह हो सकता; वह नजी नया शु हो गई। जहां से नजी नया शु होती है, वहां से खतरा शु होता है; क कसी चीज क वै ल डटी, कसी चीज क स ाई के सारे बा नयम ख हो जाते ह। इस लए असली डसे शन का जो जगत है, वह चौथे शरीर से शु होता है। उसके पहले

के सब डसे शन पकड़े जा सकते ह, उसके पहले के सब धोखे पकड़े जा सकते ह। और ऐसा नह है क चौथे शरीर म जो धोखा दे रहा है, वह ज री प से जानकर दे रहा हो। बड़ा खतरा यह है! वह अनजाने दे सकता है; खुद को दे सकता है, सर को दे सकता है। उसे कुछ पता ही न हो, क चीज इतनी बारीक और नजी हो गई ह क उसके खुद के पास भी कोई कसौटी नह है क वह जाकर जांच करे क सच म जो हो रहा है वह हो रहा है? क वह क ना कर रहा है? चौथे शरीर के लाभ और खतरे तो यह जो चौथा शरीर है, इससे हमने मनु ता को बचाने क को शश क । और अ र ऐसा आ क इस शरीर का जो लोग उपयोग करनेवाले थे, उनक ब त तरह क बदनामी और कंडेमनेशन ई। योरोप म हजार य को जला डाला गया वचेज़ कहकर, डा कनी कहकर; क उनके पास यह चौथे शरीर का काम था। ह ान म सैकड़ तां क मार डाले गए इस चौथे शरीर क वजह से, क वे कुछ सी े स जानते थे जो क हम खतरनाक मालूम पड़े। आपके मन म ा चल रहा है, वे जान सकते ह; आपके घर म कहां ा रखा है, यह उ घर के बाहर से पता हो सकता है। तो सारी नया म इस चौथे शरीर को एक तरह का ैक आट समझ लया गया क एक काले जा क नया है जहां क कोई भरोसा नह क ा हो जाए! और एकबारगी हमने मनु को तीसरे शरीर पर रोकने क भरसक चे ा क क चौथे शरीर पर खतरे ह। खतरे थे; ले कन खतर के साथ उतने ही अदभुत लाभ भी थे। तो बजाय इसके क रोकते, जांच-पड़ताल ज री थी क वहां भी हम रा े खोज सकते ह जांचने के। और अब वै ा नक उपकरण भी ह और समझ भी बढ़ी है; रा े खोजे जा सकते ह। जैसे कुछ चीज के रा े अभी खोजे गए। कल ही म देख रहा था। अभी तक यह प ा नह हो पाता था क जानवर सपने देखते ह क नह देखते। क जब तक जानवर कहे न, तब तक कैसे पता चले? हमारा भी पता इसी लए चलता है क हम सुबह कह सकते ह क हमने सपना देखा। चूं क जानवर नह कह सकता, तो कैसे पता चले क जानवर सपना देखता है या नह देखता! ब त तकलीफ से ले कन रा ा खोज लया गया। एक आदमी ने बंदर पर वष मेहनत क यह बात जांचने के लए क वे सपने देखते ह क नह । अब अपना ब त नजी, चौथी बॉडी क बात है; ब त नजी बात है। पर उसक जांच क उसने जो व ा क , वह समझने जैसी है। उसने बंदर को फ दखानी शु क --पद पर फ दखानी शु क । और जैसे ही फ चलनी शु हो, नीचे से बंदर को शॉक देने शु कए बजली के। और उसक कुस पर एक बटन लगा रखी, जो उसको सखा दी क जब भी उसको शॉक लगे तो वह बटन बंद कर दे, तो शॉक लगना बंद हो जाए। फ शु हो और शॉक लगे और वह बटन बंद करे , ऐसा उसका अ ास कराया। फर उस कुस पर उसको सो जाने दया। जब उसका सपना चला, तो उसको घबराहट ई क शॉक न लग जाए--न द म उसको घबराहट ई; क वह सपना और पद पर फ एक ही चीज है उसके लए--उसने त ाल बटन दबाई। इस बटन के दबाने का बार-बार योग करने पर खयाल म आया क उसको जब भी सपना चलता, तब वह बटन दबा देता

फौरन। अब सपने जैसी गहरी भीतर क नया के, वह भी बंदर क , जो कह न सके, बाहर से जांच का कोई उपाय खोजा जा सका। साधक ने चौथे शरीर के भी बाहर से जांचने के उपाय खोज लए ह। और अब तय कया जा सकता है क जो आ, वह सच है या गलत; वह म ा है या सही; जस कुंड लनी का तुमने चौथे शरीर पर अनुभव कया, वह वा वक है या झूठ। सफ साइ कक होने से झूठ नह होती, फा साइ कक तयां भी ह और ू साइ कक तयां भी ह। यानी जब म कहता ं क वह मनस क है बात, तो इसका मतलब यह नह होता क झूठ हो गई; मनस म भी झूठ हो सकती है और मनस म भी सही हो सकती है। तुमने एक सपना देखा रात। यह सपना एक स है, क यह घटा। ले कन सुबह उठकर तुम ऐसे सपने को भी याद कर सकते हो जो तुमने देखा नह , ले कन तुम कह रहे हो क मने देखा; तब यह झूठ है। एक आदमी सुबह उठकर कहता है क म सपना देखता ही नह । हजार लोग ह जनको खयाल है क वे सपने नह देखते। वे सपने देखते ह; क सपने जांचने के अब ब त उपाय ह जनसे पता चलता है क वे रात भर सपने देखते ह; ले कन सुबह वे कहते ह क हमने सपने देखे ही नह । तो वे जो कह रहे ह, बलकुल झूठ कह रहे ह; हालां क उ पता नह है। असल म, उनको ृ त नह बचती सपने क । इससे उलटा भी हो रहा है: जो सपना तुमने कभी नह देखा, उसक भी तुम सुबह क ना कर सकते हो क तुमने देखा। वह झूठ होगा। सपना कहने से ही कुछ झूठ नह हो जाता, सपने के अपने यथाथ ह। झूठा सपना भी हो सकता है, स ा सपना भी। मेरा मतलब समझे? स े का मतलब यह है क जो आ है, सच म आ है। और ठीक-ठीक तो सपने को तुम बता ही नह पाते सुबह। मु ल से कोई आदमी है जो सपने क ठीक रपोट कर सके। इस लए पुरानी नया म जो आदमी अपने सपने क ठीक-ठीक रपोट कर सकता था, उसक बड़ी क मत हो जाती थी। उसक बड़ी क ठनाइयां ह, सपने क रपोट ठीक से देने क । बड़ी क ठनाई तो यह है क जब तुम सपना देखते हो तब उसका सी स अलग होता है और जब याद करते हो तब उलटा होता है, फ क तरह। जब हम फ देखते ह तो शु से देखते ह, पीछे क तरफ। सपना जब आप देखते ह न द म तो जो घटना पहले घटी, वह ृ त म सबसे बाद म घटे गी; क वह सबसे पीछे दबी रह गई। जब तुम सुबह उठते हो तो सपने का आ खरी ह ा तु ारे हाथ म होता है और उससे तुम पीछे क तरफ याद करना शु करते हो। यह ऐसे उप व का काम है, जैसे कोई कताब को उलटी तरफ से पढ़ना शु करे , और सब श उलटे हो जाएं , और वह डगमगा जाए। इस लए थोड़ी र तक ही जा पाते हो सपने म, बाक सब गड़बड़ हो जाता है। उसे याद रखना और उसको ठीक से रपोट कर देना बड़ी कला क बात है। इस लए हम आमतौर से गलत रपोट करते ह; जो हम नह आ होता, वह रपोट करते ह। उसम ब त कुछ खो जाता है, ब त कुछ बदल जाता है, ब त कुछ जुड़ जाता है। यह जो चौथा शरीर है, सपना इसक ही घटना है। योग- स यां, कुंड लनी, च इ ा द इस चौथे शरीर क बड़ी संभावनाएं ह। जतनी भी योग म स य का वणन है, वह इस

सारे चौथे शरीर क ही व ा है। और नरं तर योग ने सचेत कया है क उनम मत जाना। और सबसे बड़ा डर यही है क उसम म ा म जाने के ब त उपाय ह और भटक जाने क बड़ी संभावनाएं ह। और अगर वा वक म भी चले जाओ तो भी उसका आ ा क मू नह है। तो जब मने कहा क कुंड लनी साइ कक है, तो मेरा मतलब यह था क वह इस चौथे शरीर क घटना है, व ुतः। इस लए फ जयोला ज तु ारे इस शरीर को जब खोजने जाएगा तो उसम कोई कुंड लनी नह पाएगा। तो तुम, सारी नया के सजन, डा र कहगे क कहां क फजूल क बात कर रहे हो! कुंड लनी जैसी कोई चीज इस शरीर म नह है; तु ारे च इस शरीर म कह भी नह ह। वह चौथे शरीर क व ा है। वह चौथा शरीर ले कन सू है, उसे पकड़ा नह जा सकता, पकड़ म तो यही शरीर आता है। ले कन उस शरीर और इस शरीर के तालमेल पड़ते ए ान ह। जैसे क हम सात कागज रख ल, और एक आलपीन सात कागज म डाल द; और एक छेद सात कागज म एक जगह पर हो जाए। अब समझ लो क पहले कागज पर छेद वदा हो गया, नह है। फर भी, सरे कागज पर, तीसरे कागज पर जहां छेद है उससे कॉर ांड करनेवाला ान पहले कागज पर भी है; छेद तो नह है, इस लए पहले कागज क जांच पर वह छेद नह मलेगा; ले कन पहले कागज पर भी कॉर ां डग कोई ब है, जसको अगर हाथ रखा जाए तो वह तीसरे -चौथे कागज पर जो ब है, उसी जगह पर होगा। तो इस शरीर म जो च ह, कुंड लनी है, जो बात है, वह इस शरीर क नह है, वह इस शरीर म सफ कॉर ां डग ब ओं क है। और इस लए कोई शरीर-शा ी इनकार करे तो गलत नह कह रहा है--वहां कोई कुंड लनी नह मलती, कोई च नह मलता। वह कसी और शरीर पर है। ले कन इस शरीर से संबं धत ब ओं का पता लगाया जा सकता है। कुंड लनी: मनस शरीर क घटना तो कुंड लनी चौथे शरीर क घटना है; इस लए मने कहा, साइ कक है। और जब म कह रहा ं क यह साइ कक होना, यह मान सक होना भी दो तरह का हो सकता है--गलत और सही, तो मेरी बात तु ारे खयाल म जा आएगी। गलत तब होगा जब तुमने क ना क ; क क ना भी चौथे शरीर क ही त है। जानवर क ना नह कर पाते। तो जानवर का अतीत थोड़ा-ब त होता है, भ व बलकुल नह होता। इस लए जानवर न त ह; क चता सब भ व के बोध से पैदा होती है। जानवर रोज अपने आसपास कसी को मरते देखते ह, ले कन यह क ना नह कर पाते क म म ं गा। इस लए मृ ु का कोई भय जानवर को नह है। आदमी म भी ब त आदमी ह जनको यह खयाल नह आता है क म म ं गा; उनको भी खयाल आता है--कोई और मरता है, कोई और मरता है, कोई और मरता है। म म ं गा, इसका खयाल नह आता। उसका कारण सफ यह है क चौथे शरीर म क ना जतनी व ीण होनी चा हए क र तक देख पाए, वह नह हो रहा। अब इसका मतलब यह आ क क ना भी सही होती है और म ा होती है। सही का मतलब सफ यह है क हमारी संभावना र तक देखने क है। जो अभी नह है, उसको

देखने क संभावना क ना क बात है। ले कन जो होगा ही नह , जो है ही नह , उसको भी मान लेना क हो गया है और है, वह म ा क ना होगी। तो क ना का अगर ठीक उपयोग हो तो व ान पैदा हो जाता है, क व ान सफ एक क ना है-- ाथ मक प से। हजार साल से आदमी सोचता है क आकाश म उड़गे। जस आदमी ने यह सोचा है आकाश म उड़गे, बड़ा क नाशील रहा होगा। ले कन अगर कसी आदमी ने यह न सोचा होता तो राइट दस हवाई जहाज नह बना सकते थे। हजार लोग ने क ना क है और सोचा है क हवाई जहाज म उड़गे, इसक संभावना को जा हर कया है। फर धीरे -धीरे , धीरे -धीरे संभावना कट होती चली गई--खोज हो गई और बात हो गई। फर हम सोच रहे ह हजार वष से क चांद पर प ं चगे। वह क ना थी; उस क ना को जगह मल गई। ले कन वह क ना ऑथ टक थी। यानी वह क ना म ा के माग पर नह थी। वह क ना भी उस स के माग पर थी जो कल आ व ृ त हो सकता है। तो वै ा नक भी क ना कर रहा है, एक पागल भी क ना कर रहा है। तो अगर म क ं क पागलपन भी क ना है और व ान भी क ना है, तो तुम यह मत समझ लेना क दोन एक ही चीज ह। पागल भी क ना कर रहा है, ले कन वह ऐसी क नाएं कर रहा है जनका व ु जगत से कभी कोई तालमेल न है, न हो सकता है। वै ा नक भी क ना कर रहा है, ले कन ऐसी क ना कर रहा है जो व ु जगत से तालमेल रखती है। और अगर कह तालमेल नह रखती है तो तालमेल होने क संभावना है पूरी क पूरी। तो इस चौथे शरीर क जो भी संभावनाएं ह उनम सदा डर है क हम कह भी चूक जाएं और म ा का जगत शु हो जाता है। तो इस लए इस चौथे शरीर म जाने के पहले सदा अ ा है क हम कोई अपे ाएं लेकर न जाएं , ए पे े शंस न ह । क यह चौथा शरीर मनस शरीर है। जैसे क मुझे अगर इस मकान से नीचे उतरना है--व ुतः, तो मुझे सी ढ़यां खोजनी पड़गी, ल खोजनी पड़ेगी। ले कन मुझे अगर वचार म उतरना है, तो ल और सीढ़ी क कोई ज रत नह , म यह बैठकर उतर जाऊंगा। तो वचार और क ना म खतरा यह है क चूं क कुछ नह करना पड़ता, सफ वचार करना पड़ता है, कोई भी उतर सकता है। और अगर अपे ाएं लेकर कोई गया, तो जो अपे ाएं लेकर जाता है उ म उतर जाएगा। क मन कहेगा क ठीक है, कुंड लनी जगानी है? यह जाग गई! और तुम क ना करने लगोगे क जाग रही, जाग रही, जाग रही। और तु ारा मन कहेगा क बलकुल जाग गई और बात ख हो गई, कुंड लनी उपल हो गई है; च खुल गए ह; ऐसा हो गया। ले कन इसको जांचने क कोई कसौटी है। और वह कसौटी यह है क ेक च के साथ तु ारे म आमूल प रवतन होगा। उस प रवतन क तुम क ना नह कर सकते, क वह प रवतन व ु जगत का ह ा है। कुंड लनी जागरण से म आमूल पांतरण जैस,े कुंड लनी जागे तो शराब नह पी जा सकती है। असंभव है! क वह जो मनस शरीर है, वह सबसे पहले शराब से भा वत होता है; वह ब त डे लकेट है। इस लए बड़ी

हैरानी क बात जानकर होगी क अगर ी शराब पी ले और पु ष शराब पी ले, तो पु ष शराब पीकर इतना खतरनाक कभी नह होता, जतनी ी शराब पीकर खतरनाक हो जाती है। उसका मनस शरीर और भी डे लकेट है। अगर एक पु ष और एक ी को शराब पलाई जाए, तो पु ष शराब पीकर इतना खतरनाक कभी नह होता, जतना ी हो जाए। ी तो इतनी खतरनाक स होगी शराब पीकर जसका कोई हसाब लगाना मु ल है। उसके पास और भी डे लकेट मटल बॉडी है, जो इतनी शी ता से भा वत होती है क फर उसके वश के बाहर हो जाती है। इस लए य ने आमतौर से नशे से बचने क व ा कर रखी है, पु ष क बजाय ादा। इस मामले म उ ने समानता का दावा अब तक नह कया था। ले कन अब वे कर रही ह; वह खतरनाक होगा। जस दन भी वे इस मामले म समानता का दावा करगी, उस दन पु ष के नशे करने से जो नुकसान नह आ, वह ी के नशे करने से होगा। यह जो चौथा शरीर है, इसम सच म ही कुंड लनी जगी है, यह तु ारे कहने और अनुभव करने से स नह होगा; क वह तो झूठ म भी तु अनुभव होगा और तुम कहोगे। नह , वह तो तु ारा जो व ु जगत का है, उससे तय हो जाएगा क वह घटना घटी है या नह घटी है; क उसम त ाल फक पड़ने शु हो जाएं गे। इस लए म नरं तर कहता ं क आचरण जो है वह कसौटी है--साधन नह है; भीतर कुछ घटा है, उसक कसौटी है। और ेक योग के साथ कुछ बात अ नवाय प से घटना शु ह गी। जैसे चौथे शरीर क श के जगने के बाद कसी भी तरह का मादक नह लया जा सकता। अगर लया जाता है, और उसम रस है, तो जानना चा हए क कसी म ा कुंड लनी के खयाल म पड़ गए हो। वह नह संभव है। जैसे कुंड लनी जागने के बाद हसा करने क वृ सब तरफ से वदा हो जाएग ◌ी-- हसा करना ही नह , हसा करने क वृ ! क हसा करने क जो वृ है, हसा करने का जो भाव है, सरे को नुकसान प ं चाने क जो भावना और कामना है, वह तभी तक हो सकती है जब तक क तु ारी कुंड लनी श नह जगी है। जस दन वह जगती है, उसी दन से तु सरा सरा नह दखाई पड़ता, क उसको तुम नुकसान प ं चा सको; उसको तुम नुकसान नह प ं चा सकते। और तब तु हसा रोकनी नह पड़ेगी, तुम हसा नह कर पाओगे। और अगर तब भी रोकनी पड़ रही हो, तो जानना चा हए क अभी वह जगी नह है। अगर तु अब भी संयम रखना पड़ता हो हसा पर, तो समझना चा हए क अभी कुंड लनी नह जगी है। अगर आंख खुल जाने पर भी तुम लकड़ी से टटोल-टटोलकर चलते हो, तो समझ लेना चा हए: आंख नह खुली है--भला तुम कतना ही कहते हो क आंख खुल गई है। क तुम अभी लकड़ी नह छोड़ते और तुम टटोलना अभी जारी रखे ए हो, टटोलना भी बंद नह करते। तो साफ समझा जा सकता है। हम पता नह है क तु ारी आंख खुली है क नह खुली, ले कन तु ारी लकड़ी और तु ारा टटोलना और डर-डरकर तु ारा चलना बताता है क आंख नह खुली है। च र म आमूल प रवतन होगा। और सारे नयम, जो कहे गए ह महा त, वे सहज हो जाएं गे। तो समझना क सच म ही ऑथ टक है--साइ कक ही है, ले कन ऑथ टक है।

और अब आगे जा सकते हो, क ऑथ टक से आगे जा सकते हो; अगर झूठी है तो आगे नह जा सकते। और चौथा शरीर मुकाम नह है, अभी और शरीर ह। चौथे शरीर म चम ार का ारं भ तो मने कहा क चौथा शरीर कम लोग का वक सत होता है। इसी लए नया म मरे क हो रहे ह। अगर चौथा शरीर हम सबका वक सत हो तो नया म चम ार त ाल बंद हो जाएं गे। यह ऐसे ही है, जैसे क चौदह साल तक हमारा शरीर वक सत हो, और हमारी बु वक सत न हो पाए, तो एक आदमी जो हसाब- कताब लगा सकता हो बु से, ग णत का हसाब कर सकता हो, वह चम ार मालूम हो। ऐसा था। आज से हजार साल पहले जब कोई कह देता था क फलां दन सूय- हण पड़ेगा, तो वह बड़ी चम ार क बात थी; वह परम ानी ही बता सकता था। अब आज हम जानते ह क यह मशीन बता सकती है, यह सफ ग णत का हसाब है। इसम कोई ो तष और कोई ोफेसी और कोई बड़े भारी ानी क ज रत नह है, एक कं ूटर बता सकता है--और एक साल का नह , आनेवाले करोड़ साल का बता सकता है क कब-कब सूयहण पड़ेगा। और अब तो कं ूटर यह भी बता सकता है क सूरज कब ठं डा हो जाएगा। क अब तो सारा हसाब है! वह जतनी गम फक रहा है, उससे उसक कतनी गम रोज कम होती जा रही है, उसम कतना गम का भंडार है, वह इतने हजार वष म ठं डा हो जाएगा, एक मशीन बता देगी। ले कन यह अब हमको चम ार नह मालूम पड़ेगा, क हम सब तीसरे शरीर को वक सत कर लए ह। आज से हजार साल पहले यह बात चम ार क थी क कोई आदमी बता दे क अगले साल, फलां रात को, ऐसा होगा क चांद पर हण हो जाएगा। तो जब साल भर बाद हण हो जाता, तो हम मानना पड़ता क यह आदमी अलौ कक है। अभी जो चम ार घट रहे ह, क कोई आदमी ताबीज नकाल देता है, कसी आदमी क त ीर से राख गर जाती है, ये सब चौथे शरीर के लए बड़ी साधारण सी बात ह। ले कन वह हमारे पास नह है, तो हमारे लए बड़ा भारी चम ार है। यह सारी बात ऐसी है जैसे क एक झाड़ के नीचे तुम खड़े हो और म झाड़ के ऊपर बैठा ं । म तुमसे कहता ं क घंटे भर बाद एक बैलगाड़ी इस रा े पर आएगी। वह मुझे दखाई पड़ रही है--म झाड़ के ऊपर बैठा ं , तुम झाड़ के नीचे बैठे हो, हम दोन म बात हो रही ह। म कहता ं , एक घंटे बाद एक बैलगाड़ी इस झाड़ के नीचे आएगी। तुम कहते हो, बड़े चम ार क बात कर रहे हो! बैलगाड़ी कह दखाई नह पड़ती। ा आप कोई भ व व ा ह? म नह मान सकता। ले कन घंटे भर बाद बैलगाड़ी आ जाती है, और तब आपको मेरे चरण छूने पड़ते ह क गु देव, म नम ार करता ं , आप बड़े भ व व ा ह। ले कन फक कुल इतना है क म थोड़ी ऊंचाई पर एक झाड़ पर बैठा ं , जहां से मुझे बैलगाड़ी घंटे भर पहले वतमान हो गई थी। भ व क बात म नह कह रहा ं , म भी वतमान क ही बात कह रहा ं । ले कन आपके वतमान म, मेरे वतमान म घंटे भर का फासला है, क म एक ऊंचाई पर बैठा ं । आपके लए घंटे भर बाद वह वतमान बनेगा, मेरे लए अभी वतमान हो गया है। तो जतने गहरे शरीर पर खड़ा हो जाएगा, उतना ही पीछे के शरीर के लोग के

लए चम ार हो जाएगा। और उसक सब चीज मरे कुलस मालूम पड़ने लगगी क यह हो रहा है, यह हो रहा है, यह हो रहा है। और हमारे पास कोई उपाय न होगा क कैसे हो रहा है; क उस चौथे शरीर के नयम का हम कोई पता नह है। इस लए नया म जा चलता है, चम ार घ टत होते ह; वे सब चौथे शरीर के थोड़े से वकास से ह। इस लए नया से अगर चम ार ख करने ह , तो लोग को समझाने से ख नह ह गे; चम ार ख करने ह तो जैसे हम तीसरे शरीर क श ा देकर ेक को ग णत और भाषा समझने के यो बना देते ह, उसी तरह हम चौथे शरीर क श ा भी देनी पड़ेगी और ेक को इस तरह क चीज के यो बना देना होगा। तब नया से चम ार मटगे, उसके पहले नह मट सकते। कोई न कोई आदमी इसका फायदा लेता रहेगा। चौथा शरीर अ ाइस वष तक वक सत होता है--यानी सात वष फर और। ले कन मने कहा क कम ही लोग इसको वक सत करते ह। पांचवां आ शरीर पांचवां शरीर ब त क मती है, जसको अ ा शरीर या चुअल बॉडी कह। वह पतीस वष क उ तक, अगर ठीक से जीवन का वकास हो, तो उसको वक सत हो जाना चा हए। ले कन वह तो ब त र क बात है, चौथा शरीर ही नह वक सत हो पाता। इस लए आ ा वगैरह हमारे लए बातचीत है, सफ चचा है; उस श के पीछे कोई कंटट नह है। जब हम कहते ह ‘आ ा’, तो उसके पीछे कुछ नह होता, सफ श होता है; जब हम कहते ह ‘दीवाल’, तो सफ श नह होता, पीछे कंटट होता है। हम जानते ह, दीवाल यानी ा। ‘आ ा’ के पीछे कोई अथ नह है, क आ ा हमारा अनुभव नह है। वह पांचवां शरीर है। और चौथे शरीर म कुंड लनी जगे तो ही पांचव शरीर म वेश हो सकता है, अ था पांचव शरीर म वेश नह हो सकता। चौथे का पता नह है, इस लए पांचव का पता नह हो पाता। और पांचवां भी ब त थोड़े से लोग को पता हो पाता है। जसको हम आ वादी कहते ह, कुछ लोग उस पर क जाते ह, और वे कहते ह: बस या ा पूरी हो गई; आ ा पा ली और सब पा लया। या ा अभी भी पूरी नह हो गई। इस लए जो लोग इस पांचव शरीर पर कगे, वे परमा ा को इनकार कर दगे; वे कहगे, कोई , कोई परमा ा वगैरह नह है। जैसे जो पहले शरीर पर केगा, वह कह देगा क कोई आ ा वगैरह नह है। तो एक शरीरवादी है, एक मैटी रय ल है, वह कहता है: शरीर सब कुछ है; शरीर मर जाता है, सब मर जाता है। ऐसा ही आ वादी है, वह कहता है: आ ा ही सब कुछ है, इसके आगे कुछ भी नह ; बस परम त आ ा है। ले कन वह पांचवां शरीर ही है। छठवां शरीर और सातवां नवाण काया छठवां शरीर शरीर है, वह का क बॉडी है। जब कोई आ ा को वक सत कर ले और उसको खोने को राजी हो, तब वह छठव शरीर म वेश करता है। वह बयालीस वष क उ तक सहज हो जाना चा हए--अगर नया म मनु -जा त वै ा नक ढं ग से वकास

करे , तो बयालीस वष तक हो जाना चा हए। और सातवां शरीर उनचास वष तक हो जाना चा हए। वह सातवां शरीर नवाण काया है; वह कोई शरीर नह है, वह बॉडीलेसनेस क हालत है। वह परम है। वहां शू ही शेष रह जाएगा। वहां भी शेष नह है। वहां कुछ भी शेष नह है। वहां सब समा हो गया है। इस लए बु से जब भी कोई पूछता है, वहां ा होगा? तो वे कहते ह: जैसे दीया बुझ जाता है, फर ा होता है? खो जाती है ो त, फर तुम नह पूछते, कहां गई? फर तुम नह पूछते, अब कहां रहती होगी? बस खो गई। नवाण श का मतलब होता है, दीये का बुझ जाना। इस लए बु कहते ह, नवाण हो जाता है। पांचव शरीर तक मो क ती त होगी, क परम मु हो जाएगी; ये चार शरीर के बंधन गर जाएं गे और आ ा परम मु होगी। तो मो जो है, वह पांचव शरीर क अव ा का अनुभव है। अगर चौथे शरीर पर कोई क जाए, तो ग का या नरक का अनुभव होगा; वे चौथे शरीर क संभावनाएं ह। अगर पहले, सरे और तीसरे शरीर पर कोई क जाए, तो यही जीवन सब कुछ है--ज और मृ ु के बीच; इसके बाद कोई जीवन नह है। अगर चौथे शरीर पर चला जाए, तो इस जीवन के बाद नरक और ग का जीवन है; ख और सुख क अनंत संभावनाएं ह वहां। अगर पांचव शरीर पर प ं च जाए, तो मो का ार है। अगर छठव पर प ं च जाए, तो मो के भी पार क संभावना है; वहां न मु है, न अमु है; वहां जो भी है उसके साथ वह एक हो गया। अहं ा क घोषणा इस छठव शरीर क संभावना है। ले कन अभी एक कदम और, जो ला जंप है--जहां न अहं है, न है; जहां म और तू दोन नह ह; जहां कुछ है ही नह , जहां परम शू है--टोटल, ए ो ूट वॉयड--वह नवाण है। हर सात साल म एक शरीर का वकास ये सात शरीर ह। इस लए पचास वष क .उनचास वष म यह पूरा होता है, इस लए औसतन पचास वष को ां त का ब समझा जाता था। प ीस वष तक एक जीवनव ा थी। इस प ीस वष म को शश क जाती थी क हमारे जो भी ज री शरीर ह वे वक सत हो जाएं --यानी चौथे शरीर तक आदमी प ं च जाए; मनस शरीर तक आदमी प ं च जाए, तो उसक श ा पूरी ई। फर वह पांचव शरीर को जीवन म खोजे। और पचास वष तक--शेष प ीस वष म--वह सातव शरीर को उपल हो जाए। इस लए पचास वष म सरा ां त का ब आएगा क अब वह वान हो जाए। वान का मतलब केवल इतना ही है क उसका मुख अब जंगल क तरफ हो जाए; अब आदमी क तरफ से, समाज क तरफ से, भीड़ क तरफ से वह मुंह को फेर ले। और पचह र वष फर एक ां त का ब है जहां से वह सं हो जाए। वन क तरफ मुंह फेर ले--यह भीड़ और आदमी से बचे। और सं का मतलब है--अपने से भी बचे; अब अपने से भी मुंह फेर ले। मतलब समझ रहे हो न तुम? यानी जंगल म अब म तो बच ही जाऊंगा! फर इसको

भी छोड़ने का व है क पचह र वष म फर इसको भी छोड़ दे। ले कन गृह जीवन म उसके सात शरीर का अनुभव और वकास हो जाना चा हए, तो यह सब आगे बड़ा सहज और आनंदपूण हो जाएगा; और अगर यह न हो पाए, तो यह बड़ा क ठन हो जाएगा। क ेक उ के साथ वकास क एक त जुड़ी है। अगर एक ब े का शरीर सात वष म न हो पाए, तो फर जदगी भर वह कसी न कसी अथ म बीमार रहेगा। ादा से ादा हम इतना ही इं तजाम कर सकते ह क वह बीमार न रहे, ले कन कभी न हो सकेगा। क उसक बे सक फाउं डेशन जो सात साल म पड़नी थी, वह डगमगा गई; वह उसी व पड़नी थी। जैसे क हमने मकान क न व भरी; अगर न व कमजोर रह गई, तो शखर पर प ं चकर उसको ठीक करना ब त मु ल मामला है; वह जब न व भरी थी, तभी मजबूत हो जानी चा हए थी। तो वे जो पहले सात वष ह, वह अगर भौ तक शरीर के लए पूरी व ा मल जाए, तो बात बनेगी। सरे सात वष म अगर भाव शरीर का ठीक वकास न हो पाए, तो प ीस से ुअल परवशन पैदा हो जाएं गे; फर उनको सुधारना ब त मु ल हो जाएगा। वह वही व है, जब क तैयारी उसक हो जानी चा हए। यानी जीवन क ेक सीढ़ी पर ेक शरीर क साधना का सु न त समय है। उसम इं च, दो इं च का फेर-फासला और बात है। ले कन एक सु न त समय है। हर शरीर का समय पर वक सत हो जाना ज री अगर कसी ब े म चौदह साल तक से का वकास न हो पाए, तो अब उसक पूरी जदगी कसी तरह क मुसीबत म बीतेगी। अगर इ स वष तक उसक बु वक सत न हो पाए, तो फर अब ब त कम उपाय ह क इ स वष के बाद हम उसक बु को वक सत करवा पाएं । ले कन इस संबंध म हम सब राजी हो जाते ह क यह ठीक बात है। इस लए हम पहले शरीर क भी फकर कर लेते ह, ू ल म भी पढ़ा देते ह, सब कर देते ह। ले कन बाद के शरीर का वकास भी उस सु न त उ से बंधा आ है, और वह चूक जाने क वजह से ब त क ठनाई होती है। एक आदमी पचास साल क उ म उस शरीर को वक सत करने म लगता है जो उसे इ स वष म लगना चा हए था। तो इ स वष म जतनी ताकत उसके पास थी उतनी पचास वष म उसके पास नह है। इस लए अकारण क ठनाई पड़ती है और उसे ब त ादा म उठाना पड़ता है जो क इ स वष म आसान आ होता। वह अब एक लंबा पथ और क ठन पथ हो जाता है। और एक क ठनाई हो जाती है क इ स वष म उस ार पर खड़ा था, और इ स वष और पचास वष के बीच तीस वष म वह इतने बाजार म भटका है क वह दरवाजे पर भी नह है अब, जहां इ स वष म अपने आप खड़ा हो गया था; जहां से जरा सी चोट और दरवाजा खुलता, अब उसको वह दरवाजा फर से खोजना है। और वह इस बीच इतना भटक चुका है और इतने दरवाजे देख चुका है क उसे पता लगाना भी मु ल है क वह दरवाजा कौन सा है, जस पर म इ स वष म खड़ा हो गया था। इस लए प ीस वष तक बड़ी सु नयो जत व ा क ज रत है ब के लए। वह इतनी सु नयो जत होनी चा हए क उनको चौथे पर तो प ं चा दे। चौथे के बाद ब त

आसान है मामला। फाउं डेशन सब भर दी गई ह, अब तो सफ फल आने क बात है। पांचव से फल आने शु हो जाते ह। चौथे तक वृ न मत होता है, पांचव से फल आने शु होते ह, सातव पर पूरे हो जाते ह। इसम थोड़ी देर-अबेर हो सकती है, ले कन यह बु नयाद पूरी क पूरी मजबूत हो जाए। इस संबंध म एक-दो बात और खयाल म ले लेनी चा हए। ी और पु ष के चार व ुतीय शरीर चार शरीर तक ी और पु ष का फासला है। जैसे कोई पु ष है, तो उसक फ जकल बॉडी मेल बॉडी होती है; वह पु ष शरीर होता है उसका भौ तक शरीर। ले कन उसके पीछे क , नंबर दो क ईथ रक बॉडी, भाव शरीर ैण होती है; वह फ मेल बॉडी होती है। क कोई नगे टव या कोई पा ज टव अकेला नह रह सकता। ी का शरीर और पु ष का शरीर, इसको अगर हम व ुत क भाषा म कह, तो नगे टव और पा ज टव बॉडीज़ ह। ी के पास नगे टव बॉडी है-- ूल। इसी लए ी कभी भी से के संबंध म आ ामक नह हो सकती, वह पु ष पर बला ार नह कर सकती; उसके पास नगे टव बॉडी है। वह बला ार झेल सकती है, कर नह सकती। पु ष क बना इ ा के ी उसके साथ कुछ भी नह कर सकती। ले कन पु ष के पास पा ज टव बॉडी है, वह ी क बना इ ा के भी कुछ कर सकता है; आ ामक शरीर है उसके पास। नगे टव का मतलब ऐसा नह क शू , और ऐसा नह क ऋणा क। नगे टव का मतलब व ुत क भाषा म इतना ही होता है-- रजवायर। ी के पास एक ऐसा शरीर है जसम श संर त है--बड़ी श संर त है। ले कन स य नह है; है वह न य श । इस लए यां कुछ सृजन नह कर पात --न कोई बड़ी क वता का ज कर पाती ह, न कोई बड़ी प टग बना पाती ह, न कोई व ान क खोज कर पाती ह। उनके ऊपर कोई बड़ी खोज नह है, उनके ऊपर कोई सृजन नह है। क सृजन के लए आ ामक होना ज री है; वे सफ ती ा करती रहती ह। इस लए सफ ब े पैदा कर पाती ह। पु ष के पास एक पा ज टव बॉडी है--भौ तक शरीर। ले कन जहां भी पा ज टव है, उसके पीछे नगे टव को होना चा हए, नह तो वह टक नह सकता। वे दोन इक े ही मौजूद होते ह, तब उनका पूरा स कल बनता है। तो पु ष का जो नंबर दो का शरीर है, वह ैण है; ी के पास जो नंबर दो का शरीर है, वह पु ष का है। इस लए एक और मजे क बात है क पु ष दखता ब त ताकतवर है--जहां तक उसके भौ तक शरीर का संबंध है, वह ब त ताकतवर है; ले कन उसके पीछे एक कमजोर शरीर खड़ा आ है, ैण। इस लए उसक ताकत ण म कट होगी, लंबे अरसे म वह ी से हार जाएगा; क ी के पीछे जो शरीर है, वह पा ज टव है। इस लए रे स स क , सहने क मता पु ष से ी म सदा ादा होगी। अगर एक बीमारी पु ष और ी पर हो, तो ी उसे लंबे समय तक झेल सकती है, पु ष उतने लंबे समय तक नह झेल सकता। ब े यां पैदा करती ह, अगर पु ष को पैदा करना पड़ तब उसे पता चले। शायद नया म फर संत त- नयमन क कोई ज रत न रह जाए, वह बंद ही कर दे। वह इतना क नह झेल सकता--और इतना लंबा! ण, दो ण को ोध म

वह प र फक सकता है, ले कन नौ महीने एक ब े को पेट म नह झेल सकता और वष तक उसे बड़ा नह कर सकता। और रात भर वह रोए तो उसक गदन दबा देगा, उसको झेल नह सकता। ताकत तो उसके पास ादा है, ले कन पीछे उसके पास एक डे लकेट और कमजोर शरीर है जसक वजह से वह उसको झेल नह पाता। इस लए यां कम बीमार पड़ती ह। य क उ पु ष से ादा है। इस लए हम पांच साल का फासला रखते ह शादी करते व । नह तो नया वधवाओं से भर जाए। इस लए हम लड़का बीस साल का चुनते ह तो लड़क पं ह साल क चुनते ह, सोलह साल क चुनते ह। क चार और पांच साल का फासला है, नह तो सारी नया वधवाओं से भर जाए। क पु ष क उ चार-पांच साल कम है। वह जब स र साल म मरे गा तो क ठनाई खड़ी हो जाएगी। तो उसका, दोन के बीच तालमेल बैठ जाए और वे बराबर जगह आ जाएं । एक सौ सोलह लड़के पैदा होते ह और एक सौ लड़ कयां पैदा होती ह; पैदा होते व सोलह का फक होता है, सोलह लड़के ादा पैदा होते ह। ले कन नया म ी-पु ष क सं ा बराबर हो जाती है पीछे। सोलह लड़के चौदह साल के होने के पहले मर जाते ह और करीब-करीब बराबर अनुपात हो जाता है। लड़के ादा मरते ह, लड़ कयां कम मरती ह, उनके पास रे स स क मता, तरोध क मता बल है। वह उनके पीछे के शरीर से आती है। सरी बात: तीसरा शरीर जो है पु ष का, वह फर पु ष का होगा--यानी सू शरीर। और चौथा शरीर, मनस शरीर फर ी का होगा। और ठीक इससे उलटा ी म होगा। चार शरीर तक ी-पु ष का वभाजन है, पांचवां शरीर बयांड से है। इस लए आ -उपल होते ही इस जगत म फर कोई ी और पु ष नह है। ले कन तब तक ी-पु ष है। और इस संबंध म एक बात और खयाल आती है, वह म आपसे क ं क चूं क ेक पु ष के पास ी का शरीर है भीतर और ेक ी के पास पु ष का शरीर है, अगर संयोग से ी को ऐसा प त मल जाए जो उसके भीतर के पु ष शरीर से मेल खाता हो, तभी ववाह सफल होता है, नह तो नह हो पाता; या पु ष को ऐसी ी मल जाए तो उसके भीतर क ी से मेल खाती है, तो ही सफल होता है, नह तो नह हो पाता। थम चार शरीर के वकास के बना ववाह असफल इस लए सारी नया म सौ म न ानबे ववाह असफल होते ह, क उनक गहरी सफलता का सू अभी तक साफ नह हो सका है। और उसको हम कैसे खोजबीन कर क उनके भीतरी शरीर से मेल खा जाए, तब तक नया म ववाह असफल ही होता रहेगा। उसके लए हम कुछ भी इं तजाम कर ल, वह सफल नह हो सकता। और उसको हम तभी खोज पाएं गे जब यह सारी क सारी शरीर क पूरी वै ा नक व ा अ ंत हो जाए। और इस लए अगर एक युवक ववाह के पहले, एक युवती ववाह के पहले, अपनी कुंड लनी जागरण तक प ं च गए ह , तो उ ठीक साथी चुनना सदा आसान है। उसके पहले ठीक साथी चुनना कभी भी आसान नह है। क वे अपने भीतर के शरीर क

पहचान से बाहर के ठीक शरीर को चुन पा सकते ह। इस लए हमारी को शश थी, जो लोग जानते थे, वे प ीस वष तक चय वास म और इन चार शरीर के वकास तक ले जाने के बाद.तभी ववाह, उसके पहले ववाह नह ! क कससे ववाह करना है? कसके साथ तु रहना है? खोज कसक है? हम कसको खोज रहे ह? एक पु ष एक ी को.कौन सी ी को खोज रहा है जससे वह तृ हो सकेगा? वह अपने ही भीतर क ी को खोज रहा है; एक ी अपने ही भीतर के पु ष को खोज रही है। अगर कह तालमेल बैठ जाता है संयोग से, तब तो वह तृ हो जाता है, अ था वह अतृ बनी रहती है। फर हजार तरह क वकृ त पैदा होती है-- क वह वे ा को खोज रहा है, वह पड़ोस क ी को खोज रहा है, वह यहां जा रहा है, वह वहां जा रहा है। वह परे शानी बढ़ती चली जाती है। और जतनी मनु क बु वक सत होगी उतनी यह परे शानी बढ़ेगी। अगर चौदह वष तक ही आदमी क जाए तो यह परे शानी नह होगी। क यह सारी परे शानी तीसरे शरीर के वकास से शु होगी, बु के। अगर सफ सरा शरीर वक सत हो, भाव शरीर, तो वह से से तृ हो जाएगा। इस लए दो रा े थे: या तो हम प ीस वष तक चय के काल म उसको चार शरीर तक प ं चा द, और या फर बाल- ववाह कर द। क बाल- ववाह का मतलब है क बु का शरीर वक सत होने के पहले। ता क वह से पर ही क जाए और कभी झंझट म न पड़े। तब उसका जो संबंध है ी-पु ष का, वह बलकुल पाश वक संबंध है। बाल- ववाह का जो संबंध है, वह सफ से का संबंध है; ेम जैसी संभावना वहां नह है। इस लए अमे रका जैसे मु म, जहां श ा ब त बढ़ गई, और जहां तीसरा शरीर पूरी तरह वक सत हो गया, वहां ववाह टूटे गा, वह नह बच सकता। क तीसरा शरीर कहता है: मेल नह खाता। इस लए तलाक फौरन तैयार हो जाएगा, क मेल नह खाता तो इसको ख चना कैसे संभव है। स क श ा म चार शरीर का वकास ये चार शरीर अगर वक सत ह , तो ही म कहता ं : श ा ठीक है, स क है। राइट एजुकेशन का मतलब है: चार शरीर तक तु ले जाए। क पांचव शरीर तक कोई श ा नह ले जा सकती, वहां तो तु जाना पड़ेगा। ले कन चार शरीर तक श ा ले जा सकती है। इसम कोई क ठनाई नह है। पांचवां क मती शरीर है, उसके बाद या ा नजी शु हो जाती है। फर छठवां और सातवां तु ारी नजी या ा है। कुंड लनी जो है वह चौथे शरीर क संभावना है। मेरी बात खयाल म आई न? : ओशो, श पात म कंड जाती है ? उससे

र का काम करनेवाले के साथ ा साधक क साइ कक बाइं डग हो ा- ा हा नयां साधक को हो सकती ह? ा उसके अ े उपयोग भी ह?

बंधन का तो कोई अ ा उपयोग नह है, क बंधन ही बुरी बात है; और जतना गहरा बंधन हो उतनी ही बुरी बात है। तो साइ कक बाइं डग तो ब त बुरी बात है। अगर मेरे हाथ म कोई जंजीर डाल दे तो चलेगा; क वह मेरे भौ तक शरीर को ही पकड़ पाती है। ले कन कोई मेरे ऊपर ेम क जंजीर डाल दे तो ादा झंझट शु ई; क वह जंजीर गहरे चली गई। वह जंजीर गहरे चली गई और उसको तोड़ना उतना आसान नह रह गया। कोई ा क जंजीर डाल दे तो और गहरी चली गई, उसको तोड़ना और अनहोली काम हो गया न! अप व काम हो गया। वह और मु ल बात हो गई। तो बंधन तो सभी बुरे ह; और मनस बंधन तो और भी बुरे ह। श पात का सही मा म जो श पात म वाहन का काम करे , वह तो तु बांधना ही न चाहेगा। अगर श पात हो रहा है, तो वह तो तु बांधना न चाहेगा; क अगर वह बांधना चाहता हो तो वह पा ही नह है क वह वाहन बन सके। हां, ले कन तुम बंध सकते हो। तुम बंध सकते हो, तुम उसके पैर पकड़ ले सकते हो क म अब आपको न छोडूंगा, आपने मेरे ऊपर इतना उपकार कया। उस समय सजग होने क ज रत है। उस समय ब त सजग होने क ज रत है क साधक, जस पर श पात हो, वह अपने को बंधन से बचा सके। ले कन अगर यह खयाल हो, और अगर यह बात साफ हो क बंधन मा आ ा क या ा म भारी पड़ जाते ह, तो अनु ह बांधेगा नह , ब अनु ह भी खोलेगा। यानी म तु ारे त कृत हो जाऊं, तो यह बंधन बने? इसम बंधन होने क ा बात है? ब अगर म कृत ता ापन न कर पाऊं तो शायद भीतर एक बंधन रह जाए क म ध वाद भी नह दे पाया। ले कन ध वाद देने का मतलब यह है क बात समा हो गई। सुर ा--भयभीत क खोज अनु ह बंधन नह है, ब अनु ह का भाव परम तं ता का भाव है। ले कन हम को शश करते ह बंधने क , क हमारे भीतर भय है। और हम सोचते ह: अकेले खड़े रह पाएं गे, नह खड़े रह पाएं गे? कसी से बंध जाएं । सरे क तो बात छोड़ द, अंधेरी गली म से आदमी नकलता है तो खुद ही जोर-जोर से गाना गाने लगता है; अपनी ही आवाज जोर से सुनकर भी भय कम होता है। अपनी ही आवाज! सरे क आवाज भी होती तब भी ठीक था क कोई सरा भी मौजूद है! ले कन अपनी ही आवाज जोर से सुनकर कां फडस बढ़ता मालूम पड़ता है क कोई डर नह । तो आदमी भयभीत है और वह कुछ भी पकड़ने लगता है। और अगर डूबते को तनका भी मल जाए, तो वह आंख बंद करके उसको भी पकड़ लेता है। हालां क इस तनके से डूबने से नह बचता, सफ डूबनेवाले के साथ तनका भी डूब जाता है। ले कन भय म हमारा च पकड़ लेना चाहता है। सारी बाइं डग फयर क है। तो गु हो--यह हो, वह हो--कोई भी, उसको पकड़ लगे हम। पकड़कर हम सुर त होना चाहते ह। एक तरह क स ो रटी है। असुर ा म ही आ ा का वकास और साधक को सुर ा से बचना चा हए। साधक के लए सुर ा सबसे बड़ा मोहजाल

है। अगर उसने एक दन भी सुर ा चाही, और उसने कहा क अब म कसी क शरण म सुर त हो जाऊंगा, और कसी क आड़ म अब कोई भय नह है, अब म भटक नह सकता, अब मने ठीक मुकाम पा लया, अब म कह जाऊंगा नह , अब म यह बैठा र ं गा, तो वह भटक गया; क साधक के लए सुर ा नह है। साधक के लए असुर ा वरदान है; क जतनी असुर ा है, उतना ही साधक क आ ा को फैलने, बलवान होने, अभय होने का मौका है; जतनी सुर ा है, उतना साधक के नबल होने क व ा है; वह उतना नबल हो जाएगा। बेसहारा होने के लए ही सहारे का उपयोग सहारा लेना एक बात है, सहारा लए ही चले जाना बलकुल सरी बात है। सहारा दया ही इस लए गया है क तुम बेसहारे हो सको; सहारा दया ही इस लए गया है क अब तु सहारे क ज रत न रहे। एक बाप अपने बेटे को चलना सखा रहा है। कभी खयाल कया है क जब बाप अपने बेटे को चलना सखाता है, तो बाप बेटे का हाथ पकड़ता है; बेटा नह पकड़ता। ले कन थोड़े दन बाद जब बेटा थोड़ा चलना सीख जाता है, तो बाप का हाथ बाप तो छोड़ देता है, ले कन बेटा पकड़ लेता है। कभी बाप को चलाते देख, तो अगर बेटा हाथ पकड़े हो तो समझो क वह चलना सीख गया है, ले कन फर भी हाथ नह छोड़ रहा है; और अगर बाप हाथ पकड़े हो तो समझना क अभी चलना सखाया जा रहा है, अभी छोड़ने म खतरा है; अभी छोड़ा नह जा सकता। और बाप तो चाहेगा ही यह क कतनी ज ी हाथ छूट जाए; क इसी लए तो सखा रहा है। और अगर कोई बाप इस मोह से भर जाए क उसे मजा आने लगे क बेटा उसका हाथ पकड़े ही रहे, तो वह बाप न हो गया। ब त बाप हो जाते ह। ब त गु हो जाते ह। ले कन चूक गए वे। जस बात के लए उ ने सहारा दया था, वही ख हो गई। वह तो उ ने प पैदा कर दए जो अब उनक बैसाखी लेकर चलगे। हालां क उनको मजा आता है क मेरी बैसाखी के बना तुम नह चल सकते। अहं कार क तृ मलती है। ले कन जस गु को अहं कार क तृ मल रही हो, वह तो गु ही नह है। ले कन बेटा पकड़े रह सकता है पीछे भी; क बेटा डर जाए क कह गर न जाऊं! क बना बाप के म कैसे चल सकूंगा? तो गु का काम है क उसके हाथ को झड़के और कहे क अब तुम चलो। और कोई फकर नह , दो-चार बार गरो तो ठीक है, उठ आना। आ खर उठने के लए गरना ज री है। और, गरने का डर मटाने के लए भी कुछ बार गरना ज री है क अब नह गरगे। हमारे मन म यह हो सकता है क कसी का सहारा पकड़ ल, तो फर बाइं डग पैदा हो जाती है। वह पैदा नह करना है। कसी साधक को ान लेकर चलना है क वह कोई सुर ा क तलाश म नह है; वह स क खोज म है, सुर ा क खोज म नह है। और अगर स क खोज करनी है तो सुर ा का खयाल छोड़ना पड़ेगा। नह तो अस ब त बार बड़ी सुर ा देता है--और ज ी से दे देता है। तो फर सुर ा का खोजी अस को पकड़ लेता है। कनवी नएं स का खोजी स तक नह प ं चता, क लंबी या ा है। फर वह यह अस को गढ़ लेता है और यह बैठे ए पा लेता है। और बात समा हो जाती है।

अंध ा इस लए कसी भी तरह का बंधन.और गु का बंधन तो ब त ही खतरनाक है, क वह आ ा क बंधन है। और आ ा क बंधन श ही कं ा ड री है; क आ ा क तं ता तो अथ रखती है, आ ा क गुलामी का कोई अथ नह होता। ले कन इस नया म आ ा क प से जतने लोग गुलाम ह, उतने लोग और कसी प से गुलाम नह ह। उसका कारण है; क जस चौथे शरीर के वकास से आ ा क तं ता क संभावना पैदा होगी, वह चौथा शरीर नह है। उसके कारण ह--वे तीसरे शरीर तक वक सत ह। इस लए अ र देखा जाएगा क एक आदमी हाईकोट का चीफ ज स है, कसी यु नव सटी का वाइसचांसलर है, और कसी नपट गंवार आदमी के पैर पकड़े बैठा आ है। और उसको देखकर हजार गंवार उसके पीछे बैठे ए ह-- क जब हाईकोट का ज स बैठा है, वाइसचांसलर बैठा है यु नव सटी का, तो हम ा ह! ले कन उसे पता नह क यह जो आदमी है, इसका तीसरा शरीर तो ब त वक सत आ है, इसने बु का तो ब त वकास कया था, ले कन चौथे शरीर के मामले म यह बलकुल गंवार है; उसके पास वह शरीर नह है। और इसके पास चूं क तीसरा शरीर है केवल, बु और तक का वचार करते-करते यह थक गया और अब व ाम कर रहा है। और जब बु थककर व ाम करती है तो बड़े अबु पूण काम करती है। कोई भी चीज जब थककर व ाम करती है तो उलटी हो जाती है। इस लए यह बड़ा खतरा है। इस लए आ म म आपको मल जाएं गे, हाईकोट के जजेज़ वहां न त मलगे। वे थक गए ह, वे बु से परे शान हो गए ह, वे इससे छु टकारा चाहते ह। वे कोई भी अबु पूण, इररे शनल, कसी भी चीज म व ास करके आंख बंद करके बैठ जाते ह। वे कहते ह: सोच लया ब त, ववाद कर लया ब त, तक कर लया ब त, कुछ नह मला; अब इसको हम छोड़ते ह। तो वे कसी को भी पकड़ लेते ह। और उनको देखकर, पीछे जो बु हीन वग है, वह कहता है: जब इतने बु मान लोग ह, तो फर हमको भी पकड़ लेना चा हए। ले कन वे जहां तक चौथे शरीर का संबंध है, नपट ना-कुछ ह। इस लए चौथे शरीर का कसी म थोड़ा सा भी वकास आ हो, तो बड़े से बड़ा बु मान उसके चरण को पकड़कर बैठ जाएगा; क उसके पास कुछ है, जसके मामले म यह बलकुल नधन है। तो चूं क चौथा शरीर वक सत नह है, इस लए बाइं डग पैदा होती है। ऐसा मन होता है क कसी को पकड़ लो; जसका वक सत है, उसको पकड़ लो। ले कन उसको पकड़ने से वक सत नह हो जाएगा; उसको समझने से वक सत हो सकता है। और पकड़ना समझने से बचने का उपाय है-- क समझने क ा ज रत है? समझने क ा ज रत है, हम आपके ही चरण पकड़े रहते ह! तो जब आप वैतरणी पार होओगे, हम भी हो जाएं गे। हम आपको ही नाव बनाए लेते ह; हम उसी म सवार रहगे; जब आप प ं चोगे, हम भी प ं च जाएं गे। साधना के म से बचने के लए अंधानुकरण समझने म क है। समझने म अपने को बदलना पड़ेगा। समझना एक यास, एक

साधना है। समझना एक म है, समझना एक ां त है। समझने म एक पांतरण होगा, सब बदलेगा पुराना; नया करना पड़ेगा। इतनी झंझट करनी! जो आदमी जानता है, हम उसको पकड़ लेते ह; हम उसके पीछे चले जाएं गे। ले कन इस जगत म स तक कोई कसी के पीछे नह जा सकता; वहां अकेले ही प ं चना पड़ता है। वह रा ा ही नजन है। वह रा ा ही अकेले का है। इस लए कसी तरह का बंधन वहां बाधा है। तो सीखना, समझना, जहां से जो झलक मले उसे लेना, ले कन कना कह भी मत; कसी भी जगह को तुम मुकाम मत बना लेना और उसका हाथ पकड़ मत लेना क बस अब ठीक, आ गए। हालां क ब त लोग मलगे, जो कहगे: कहां जाते हो? क जाओ मेरे पास! ब त लोग मलगे जनको. यह सरा ह ा है। जैसा क मने कहा, भयभीत आदमी बंधना चाहता है कसी से, तो कुछ भयभीत आदमी बांधना भी चाहते ह कसी को; उनको उससे भी अभय हो जाता है। जस आदमी को लगता है, मेरे साथ हजार अनुयायी ह, उसको लगता है--म ानी हो गया, नह तो हजार अनुयायी कैसे होते! जब हजार आदमी मुझे माननेवाले ह, तो ज र म कुछ जानता ं , नह तो मानगे कैसे! यह बड़े मजे क बात है क गु बनना कई बार तो सफ इसी मान सक हीनता के कारण होता है-- क दस हजार मेरे श ह, बीस हजार! तो गु लगे ह श बढ़ाने म-- क मेरे सात सौ सं ासी ह, मेरे हजार सं ासी ह, मेरे इतने श ह--वे फैलाने म लगे ह। क जतना यह व ार फैलता है, वे आ होते ह क ज र म जानता ं , नह तो हजार आदमी मुझे मानते! यह तक लौटकर उनको व ास दलाता है क म जानता ं । अगर ये हजार श खो जाएं , तो उनको लगेगा क गया। इसका मतलब क म नह जानता। जहां बंधन है, वहां संबंध नह है बड़े मान सक खेल चलते ह। बड़े मान सक खेल चलते ह। उन मान सक खेल से सावधान होने क ज रत है--दोन तरफ से; क दोन तरफ से खेल हो सकता है। श भी बांध सकता है; और जो श आज कसी से बंधेगा, वह कल कसी को बांधेगा, क यह सब ृंखलाब काम है। वह आज श बनेगा तो कल गु भी बनेगा। क श कब तक बना रहेगा! अभी एक को पकड़ेगा, तो कल फर कसी को खुद को भी पकड़ाएगा। ृंखलाब गुला मयां ह। मगर उसका ब त गहरे म कारण वह चौथे शरीर का वक सत न होना है। उसको वक सत करने क चता चले तो तुम तं हो सकोगे। फर बंधन नह होगा। इसका यह मतलब नह है क तुम अमानवीय हो जाओगे, क तु ारा मनु से कोई संबंध न रह जाएगा; ब इसका मतलब ही उलटा है। असल म, जहां बंधन है, वहां संबंध होता ही नह । अगर एक प त और प ी के बीच बंधन है.हम कहते ह न क ववाहबंधन म बंध रहे ह! नमं ण प काएं भेजते ह क मेरा बेटा और मेरी बेटी णय-सू के बंधन म बंध रहे ह! जहां बंधन है, वहां संबंध नह हो सकता। क गुलामी म कैसा संबंध?

कभी भ व म ज र कोई बाप नमं ण प भेजेगा क मेरी बेटी कसी के ेम म तं हो रही है। वह तो समझ म आती है बात क अब कसी का ेम उसको तं कर रहा है जीवन म; अब उसके ऊपर कोई बंधन नह रहेगा; वह मु हो रही है ेम म। और ेम मु करना चा हए। अगर ेम भी बांध लेता है तो फर इस जगत म मु ा करे गा? कौन करे गा? संबंध वही, जो मु करे और जहां बंधन है, वहां सब क हो जाता है, सब नरक हो जाता है। ऊपर से चेहरे और रह जाते ह, भीतर सब गंदगी हो जाती है। वह चाहे गु - श का हो, चाहे बाप-बेटे का हो, चाहे प त-प ी का हो, चाहे दो म का हो--जहां बंधन है, वहां संबंध नह होता। और अगर संबंध है तो बंधन बेमानी है। लगता तो ऐसा ही है क जससे हम बंधे ह, उसी से संबंध है; ले कन सफ उसी से हमारा संबंध होता है, जससे हमारा कोई भी बंधन नह । इस लए कई बार ऐसा हो जाता है क आप अपने बेटे से वह बात नह कह सकते जो एक अजनबी से कह सकते ह। म इधर हैरान आ ं जानकर क प ी अपने प त से नह कह सकती और े न म एक अजनबी आदमी से कह सकती है, जसको वह बलकुल नह जानती, घंटे भर पहले मला है। असल म, कोई बंधन नह है, तो संबंध के लए सरलता मल जाती है। इस लए तुम एक अजनबी से जतने भले ढं ग से पेश आते हो, उतना प र चत से नह आते। वहां कोई भी तो बंधन नह है, तो सफ संबंध ही हो सकता है। ले कन प र चत के साथ तुम उतने भले ढं ग से कभी पेश नह आते, क वहां तो बंधन है। वहां नम ार भी करते हो तो ऐसा मालूम पड़ता है, एक काम है। इस लए गु - श का एक संबंध तो हो सकता है। और संबंध सब मधुर ह। ले कन बंधन नह हो सकता। और संबंध का मतलब ही है क वह मु करता है। न बांधनेवाले अदभुत झेन फक र झेन फक र क एक बात बड़ी क मती है क अगर कसी भी झेन फक र के पास कोई सीखने आएगा, तो जब वह सीख चुका होगा, तब वह उससे कहेगा क अब मेरे वरोधी के पास चले जाओ, अब कुछ दन वहां सीखो। क एक पहलू तुमने जाना, अब तुम सरे पहलू को समझो। और फर साधक अलग-अलग आ म म वष घूमता रहेगा। उनके पास जाकर बैठेगा जो उसके गु के वरोधी ह; उनके चरण म बैठेगा और उनसे भी सीखेगा। क उसका गु कहेगा क हो सकता है वह ठीक हो; तुम उधर भी जाकर सारी बात समझ लो। और कौन ठीक है, इसका ा पता? हो सकता है, हम दोन से मलकर जो बनता हो, वही ठीक हो; या यह भी हो सकता है क हम दोन को काटकर जो बचता हो, वही ठीक हो। इस लए जाओ, उसे खोजो। जब कोई देश म आ ा क तभा वक सत होती है, तो ऐसा होता है; तब बंधन नह बनत चीज। अब यह म चाहता ं , ऐसा इस मु म जस दन हो सकेगा, उस दन ब त प रणाम ह गे-- क कोई कसी को बांधता न हो, भेजता हो लंबी या ा पर, क वह जाए। और कौन

जानता है क ा होगा अं तम! ले कन जो इस भां त भेज देगा, अगर कल तु उसक सब बात भी गलत मालूम पड़, तब भी वह आदमी गलत मालूम नह पड़ेगा। जो इस भां त तु भेज देगा क जाओ कह और खोजो--हो सकता है म गलत होऊं। तो यह हो भी सकता है क कसी दन उसक सारी बात भी तु गलत मालूम पड़, तब भी तुम अनुगृहीत रहोगे; वह आदमी कभी गलत नह हो पाएगा। क उस आदमी ने ही तो भेजा था तु । अभी हालत ऐसी ह क सब रोक रहे ह। एक गु रोकता है, कसी सरे क बात मत सुन लेना! शा म लखता है क सरे के मं दर म मत चले जाना! चाहे पागल हाथी के पैर के नीचे दबकर मर जाना, मगर सरे के मं दर म शरण भी मत लेना; कह ऐसा न हो क वहां कोई चीज कान म पड़ जाए! तो भला ऐसे आदमी क सब बात भी सही ह , तब भी यह आदमी तो गलत ही है। और इसके त अनु ह कभी नह हो सकता; क इसने तु गुलाम बनाया, कुचल डाला और मार डाला है। यह अगर खयाल म आ जाए तो बंधन का कोई सवाल नह है। : ओशो, आपने कहा क अगर श

पात ामा णक व शु तम हो तो बंधन नह होगा।

हां, नह होगा। श पात के नाम पर शोषण : ओशो, श पात के नाम पर साइ कक ए बचे कैसे?

ायटे शन संभव है

ा? कैसे संभव है और उससे साधक

संभव है, श पात के नाम पर ब त आ ा क शोषण संभव है। असल म, जहां भी दावा है, वहां शोषण होगा। और जहां कोई कहता है, म कुछ ं गा, वह लेगा भी कुछ। क देना जो है, वह बना लेने के नह हो सकता। जहां कोई कहेगा, म कुछ देता ं , वह तुमसे वापस भी कुछ लेगा। कॉइन कोई भी हो--वह धन के प म ले, आदर के प म ले, ा के प म ले-- कसी भी प म ले, वह लेगा ज र। जहां देना है--आ हपूवक, दावेपूवक--वहां लेना है। और जो देने का दावा कर रहा है, वह जो देगा, उससे ादा लेगा। नह तो बाजार म च ाने क उसे कोई ज रत न थी। असल म, वह दे इसी तरह रहा है, जैसे कोई मछली मारनेवाला कांटे पर आटा लगाता है; क मछली कांटे नह खाती। हो सकता है, कसी दन मछ लय को समझायाबुझाया जा सके, वे सीधा कांटा खा ल। अभी तक कोई मछली सीधा कांटा नह खाती।

उसके ऊपर आटा लगाना पड़ता है। हां, मछली आटा खा लेती है। और आटे के दावे क वजह से कांटे के पास आ जाती है। आटा मलेगा, इस आशय म कांटे को भी गटक जाती है। गटकने पर पता चलता है क आटा तो थ था, कांटा असली था। ले कन तब तक कांटा छद गया होता है। दावेदार गु ओं से बचो तो जहां दावा है--कोई कहे क म श पात क ं गा, म ान दलवा ं गा, म समा ध म प ं चा ं गा, म ऐसा क ं गा, म वैसा क ं गा--जहां ये दावे ह , वहां सावधान हो जाना। क उस जगत का आदमी दावेदार नह होता। उस जगत के आदमी से अगर तुम कहोगे भी जाकर क आपक वजह से मुझ पर श पात हो गया, तो वह कहेगा, तुम कसी भूल म पड़ गए; मुझे तो पता ही नह , मेरी वजह से कैसे हो सकता है! उस परमा ा क वजह से ही आ होगा। वहां तो तुम ध वाद देने जाओगे तो भी ीकृ त नह होगी क मेरी वजह से आ है। वह तो कहेगा, तु ारी अपनी ही वजह से हो गया होगा। तुम कस भूल म पड़ गए हो, वह परमा ा क कृपा से हो गया होगा। म कहां ं ! म कस क मत म ं ! म कहां आता ं ! जीसस नकल रहे ह एक गांव से, और एक बीमार आदमी को लोग उनके पास लाए ह। उ ने उसे गले से लगा लया और वह ठीक हो गया। और वह आदमी कहता है क म आपको कैसे ध वाद ं , क आपने मुझे ठीक कर दया है। जीसस ने कहा क ऐसी बात मत कर; जसे ध वाद देना है उसे ध वाद दे! म कौन ं ? म कहां आता ं ? उस आदमी ने कहा, आपके सवाय तो यहां कोई भी नह है। तो जीसस ने कहा, हम-तुम दोन नह ह; जो है, वह तुझे दखाई ही नह पड़ रहा; उससे ही सब हो रहा है। ही हैज ही यू! उसी ने तुझे कर दया है! अब यह जो आदमी है, यह कैसे शोषण करे गा? शोषण करने के लए आटा लगाना पड़ता है कांटे पर। यह तो, कांटा तो र, आटा भी मेरा है, यह भी मानने को राजी नह है। इसका कोई उपाय नह है। तो जहां तु दावा दखे--साधक को--वह स ल जाना। जहां कोई कहे क ऐसा म कर ं गा, ऐसा हो जाएगा, वहां वह तु ारे लए तैयार कर रहा है; वह तु ारी मांग को जगा रहा है; वह तु ारी अपे ा को उकसा रहा है; वह तु ारी वासना को रत कर रहा है। और जब तुम वासना हो जाओगे, कहोगे क दो महाराज! तब वह तुमसे मांगना शु कर देगा। ब त शी तु पता चलेगा क आटा ऊपर था, कांटा भीतर है। इस लए जहां दावा हो, वहां स लकर कदम रखना, वह खतरनाक जमीन है। जहां कोई गु बनने को बैठा हो, उस रा े से मत नकलना; क वहां उलझ जाने का डर है। इस लए साधक कैसे बचे? बस वह दावे से बचे तो सबसे बच जाएगा। वह दावे को न खोजे; वह उस आदमी क तलाश न करे जो दे सकता है। नह तो झंझट म पड़ेगा। क वह आदमी भी तु ारी तलाश कर रहा है--जो फंस सकता है। वे सब घूम रहे ह। वह भी घूम रहा है क कौन आदमी को चा हए। तुम मांगना ही मत, तुम दावे को ीकार ही मत करना। और तब. पा बनो, गु मत खोजो

तु जो करना है, वह और बात है। तु जो तैयारी करनी है, वह तु ारे भीतर तु करनी है। और जस दन तुम तैयार होओगे, उस दन वह घटना घट जाएगी; उस दन कसी भी मा म से घट जाएगी। मा म गौण है; खूंटी क तरह है। जस दन तु ारे पास कोट होगा, ा तकलीफ पड़ेगी खूंटी खोजने म? कह भी टांग दोगे। नह भी खूंटी होगी तो दरवाजे पर टांग दोगे। दरवाजा नह होगा, झाड़ क शाखा पर टांग दोगे। कोई भी खूंटी का काम कर देगा। असली सवाल कोट का है। ले कन कोट नह है हमारे पास, खूंटी दावा कर रही है क इधर आओ, म खूंटी यहां ं ! तुम फंसोगे। कोट तो तु ारे पास नह है, खूंटी के पास जाकर भी ा करोगे? खतरा यही है क खूंटी म तु न टं ग जाओ। क कोट तो नह है तु ारे पास। इस लए अपनी पा ता खोजनी है, अपनी यो ता खोजनी है, अपने को उस यो बनाना है क म कसी दन साद को हण करने यो बन सकूं। फर तु चता नह लेनी है, वह तु ारी चता नह है। इस लए कृ जो कहते ह अजुन को, वह ठीक ही कहते ह। उसका मतलब ही इतना है। वे कहते ह: तू कम कर और फल परमा ा पर छोड़ दे; उसक तुझे फकर नह करनी है। उसक तूने फकर क तो कम म बाधा पड़ती है। क उसक फकर क वजह से ऐसा लगता है: कम ा करना, फल क पहले चता करो! उसक वजह से ऐसा लगता है क ा करना है मुझ!े फल ा होगा, इसको देख!ूं और तब गलती सु न त हो जानेवाली है। इस लए कम क फकर ही अकेली फकर है हमारी; हम अपने को पा बनाने यो करते रह। जस दन मता हमारी पूरी होगी--ऐसे ही, जैसे जस दन बीज क मता फूटने क पूरी होती है, उस दन सब मल जाता है। जस दन फूल खलने को पूरा तैयार होता है, कली टूटने को तैयार होती है, सूरज तो नकल ही आता है। उसम कोई अड़चन नह है। सूरज सदा तैयार है। ले कन हमारे पास कली नह है खलने को, सूरज नकल गया है, होगा ा? इस लए सूरज क तलाश मत करो, अपनी कली को गहरा करने क फकर करो; सूरज सदा नकला आ है, वह त ाल उपल हो जाता है। खाली पा भर दया जाता है इस जगत म पा एक ण को भी खाली नह रह जाता है; जस तरह क भी पा ता हो, वह त ाल भर दी जाती है। असल म, पा ता का हो जाना और भर जाना दो घटनाएं नह , एक ही घटना के दो पहलू ह। जैसे हम इस कमरे क हवा बाहर नकाल द, सरी हवा इस कमरे क खाली जगह को त ाल भर देगी। ये दो ह े नह ह। इधर हम नकाल नह पाए क उधर नई हवा ने दौड़ना शु कर दया। ऐसे ही अंतर-जगत के नयम ह: हम इधर तैयार नह ए क वहां से जो हमारी तैयारी क मांग है, वह उतरनी शु हो जाती है। ले कन क ठनाई हमारी है क हम तैयार नह होते और मांग हमारी शु हो जाती है; तब झूठी मांग के लए झूठी स ाई भी हो जाती है। अब इधर म ब त हैरान होता ं ; ऐसे लोग हैरानी म डालते ह। एक आदमी आता है, वह कहता है, मेरा मन बड़ा अशांत है, मुझे शां त चा हए। उससे आधा घंटा म बात करता ं , म कहता ं क सच म ही तु शां त चा हए? तो वह कहता है, शां त तो अभी ा है क मेरे लड़के को पहले नौकरी चा हए, उसी क वजह से अशां त है; नौकरी मल जाए तो सब ठीक हो जाए। तो अब यह आदमी कहता

आ आया था क मुझे शां त चा हए, वह इसक ज रत नह है; इसक असली ज रत सरी है, जसका शां त से कुछ लेना-देना नह है; इसक ज रत है क इसके लड़के को नौकरी चा हए। अब यह मेरे पास, गलत आदमी के पास आ गया। धम के कानदार का रह अब वह जो बाजार म कान लेकर बैठा है, वह कहता है, नौकरी चा हए? इधर आओ! हम नौकरी भी दलवा दगे और शां त भी मल जाएगी। इधर जो भी आते ह, उनको नौकरी मल जाती है; इधर जो आते ह, उनका धन बढ़ जाता है; इधर जो आते ह, उनक कान चलने लगती है। और उस कान के आसपास दस-पांच आदमी आपको मल जाएं गे, जो कहगे, मेरे लड़के को नौकरी मल गई, मेरी प ी मरते से बच गई, मेरा मुकदमा हारते से जीत गया, धन के अंबार लग गए; वे दस आदमी उस कान के आसपास मल जाएं गे। ऐसा नह क वे झूठ बोल रहे ह! ऐसा नह क वे झूठ बोल रहे ह, ऐसा भी नह क वे कराए के आदमी ह, ऐसा भी नह क वे कान के दलाल ह। नह , ऐसा कुछ भी नह है। जब हजार आदमी कसी कान पर नौकरी खोजने आते ह, दस को मल ही जाती है। जनको मल जाती है वे क जाते ह, नौ सौ न ानबे चले जाते ह। वे जो क जाते ह, वे खबर करते रहते ह; धीरे -धीरे उनक भीड़ बड़ी होती जाती है। इस लए हर कान के पास ऑथ टक ह वे दावेदार। वे जो कह रहे ह क मेरे लड़के को नौकरी मली, इसम झूठ नह है कोई; यह कोई खरीदा आ आदमी नह है। यह भी आया था, इसके लड़के को मली है; जनको नह मली है, वे जा चुके ह; वे सरे गु को खोज रहे ह क कहां मले; जहां मले वहां चले गए ह। यहां वे ही रह गए ह जनको मल गई है। वे हर साल लौट आते ह, हर ोहार पर लौट आते ह; उनक भीड़ बढ़ती चली जाती है। और इस आदमी के आसपास एक वग खड़ा हो जाता है, जो सु न त माण बन जाता है क भई मली है इतने लोग को, तो मुझे न मलेगी! यह आटा बन जाता है, और कांटा बीच म है। और ये सारे लोग आटे बन जाते ह। और आदमी फंस जाता है। मांगना ही मत; नह तो फंसना न त है। मांगना ही मत; अपने को तैयार करना। और भगवान पर छोड़ देना क जस दन होता होगा, होगा; नह होगा तो हम समझगे हम पा नह थे। ामा णक श पात के बाद भटकना समा : ओशो, एक साधक का कई य के मा म से श पात लेना उ चत है या हा न द है ? कंड बदलने म ा- ा हा नयां संभव ह और ?



असल बात तो यह है क ब त बार लेने क ज रत तभी पड़ेगी जब क श पात न आ हो। ब त लोग से लेने क भी ज रत तभी पड़ेगी जब क पहले जनसे लया हो वह बेकार गया हो, न आ हो। अगर हो गया, तो बात ख है। ब त बार लेने क ज रत इसी लए पड़ती है क दवा काम नह कर पाई, बीमारी अपनी जगह खड़ी है। भावतः, फर डा र

बदलने पड़ते ह। ले कन जो बीमार ठीक हो गया, वह नह पूछता क डा र बदलू,ं या न बदलू।ं वह जो ठीक नह आ है, वह कहता है क म सरे डा र से दवा लूं या ाकं! दस-बीस डा र बदल लेता है। तो एक तो अगर श पात क करण उपल ई जरा भी, तो बदलने क कोई ज रत नह पड़ती है। वह ही नह है फर उसका। नह उपल ई, तो बदलना ही पड़ता है; और बदलते ही रहते ह आदमी। और अगर उपल ई है कभी एक से, तो फर कसी से भी उपल होती रहे, कोई फक नह पड़ता। वे सब एक ही ोत से आनेवाले मा म ही अलग ह, इससे कोई अंतर नह पड़ता। रोशनी सूरज से आती, क दीये से आती, क बजली के ब से आती, इससे कोई फक नह पड़ता; काश एक का ही है। उससे कोई अंतर नह पड़ता। अगर घटना घटी है तो कोई अंतर नह पड़ता, और कोई हा न नह है। ले कन इसको खोजते मत फरना; वही म कह रहा ं , इसे खोजते मत फरना। यह मल जाए रा े पर चलते, तो ध वाद दे देना और आगे बढ़ जाना। इसे खोजना मत। खोजोगे तो खतरा है। क फर वे जो दावेदार ह, वे ही तो तु मलगे न! वह नह मलेगा जो दे सकता था; वह मलेगा, जो कहता है, देते ह। जो दे सकता है वह तो तु उसी दन मलेगा, जस दन तुम खोज ही नह रहे हो, ले कन तैयार हो गए हो। वह उसी दन मलेगा। इस लए खोजना गलत है, मांगना गलत है। होती रहे घटना, होती रहे। और हजार रा से काश मले तो हज नह है। सब रा े एक ही काश के मूल ोत को मा णत करते चले जाएं गे। सब तरफ से मलकर वही. मूल ोत परमा ा है कल मुझसे कोई कह रहा था. कसी साधु के पास जाकर कहा होगा क ान अपना होना चा हए। तो उन साधु ने कहा, ऐसा कैसे हो सकता है! ान तो सदा पराए का होता है--फलां मु न ने फलां मु न को दया, उन मु न ने उन मु न को दया। खुद कृ गीता म कहते ह क उससे उसको मला, उससे उसको मला, उससे उसको मला। तो कृ के पास भी अपना नह है। तो मने उसको कहा क कृ के पास अपना है। ले कन जब वे कह रहे ह क उससे उसको मला, उससे उसको मला, तो वे यह कह रहे ह क यह जो ान मेरा है, यह जो मुझे घ टत आ है, यह मुझे ही घ टत नह आ है, यह पहले फलां आदमी को भी घ टत आ था; और माण है क उसको घ टत आ था, उसने फलां आदमी को बताया भी था; और फलां आदमी को भी घ टत आ था, उसने उसको भी बताया था। ले कन बताने से घ टत नह आ था, घटने से बताया था। तो मुझको भी घ टत आ है, और अब म तु बता रहा ं --वे अजुन से कह रहे ह। ले कन मेरे बताने से तु घ टत हो जाएगा, ऐसा नह है; तु घ टत होगा तो तुम भी कसी को बता सकोगे, ऐसा है। उसे सरे से मांगते ही मत फरना, वह सरे से मलनेवाली बात नह है। उसक तो तैयारी करना। फर वह ब त जगह से मलेगी, सब जगह से मलेगी। और एक दन जस दन घटना घटती है, उस दन ऐसा लगता है क म कैसा अंधा ं , जो चीज सब तरफ से मल रही थी, वह मुझे दखाई नह पड़ती थी!

एक अंधा आदमी है, वह दीये के पास से भी नकलता है, वह सूरज के पास से भी नकलता है, बजली के पास से भी नकलता है, ले कन काश नह मलता। और एक दन, जब उसक आंख खुलती है, तब वह कहता है: म कैसा अंधा था, कतनी जगह से नकला, सब जगह काश था और मुझे दखाई नह पड़ा! और अब मुझे सब जगह दखाई पड़ रहा है। तो जस दन घटना घटे गी, उस दन तो तु सब तरफ वही दखाई पड़ेगा; और जब तक नह घटी है, तब तक जहां भी दखाई पड़े, वहां उसको णाम कर लेना; जहां भी दखाई पड़े, वहां उसे पी लेना। ले कन मांगते मत जाना, भखारी क तरह मत जाना; कस भखारी को नह मल सकता। उसे मांगना मत। नह तो कोई कानदार बीच म मल जाएगा, जो कहेगा, हम देते ह। और तब एक आ ा क शोषण शु हो जाएगा। तुम चलना अपनी राह--अपने को तैयार करते, अपने को तैयार करते--जहां मल जाए, ले लेना; ध वाद देकर आगे बढ़ जाना। फर जस दन तु पूरा उपल होगा, उस दन तुम ऐसा न कह पाओगे: मुझे फलाने से मला। उस दन तुम यही कहोगे क आ य है! मुझे सबसे मला; जनके करीब म गया, सभी से मला! और तब अं तम ध वाद जो है वह सम के त हो जाता है, वह कसी एक के त नह रह जाता। सरे से आए भाव क सीमा : ओशो, यह इस लए आया था क श

पात का भाव धीरे -धीरे कम भी तो हो सकता है !

हां-हां, वह कम होगा ही। असल म, सरे से कुछ भी मलेगा तो वह कम होता चला जाएगा; वह सफ झलक है। उस पर तु नभर भी नह होना है। उसे तो तु अपने भीतर ही जगाना है कसी दन, तभी वह कम नह होगा। असल म, सब भाव ीण हो जाएं गे, क भाव जो ह वे फारे न ह, वे वजातीय ह, वे बाहरी ह। मने एक प र फका। तो प र क कोई अपनी ताकत नह है। मने फका, मेरे हाथ क ताकत है। तो मेरे हाथ क ताकत जतनी लगी है, प र उतनी र जाकर गर जाएगा। ले कन बीच म जब प र हवा चीरे गा, तो प र को खयाल हो सकता है क अब तो म हवा चीरने लगा, अब तो मुझे गरानेवाला कोई भी नह है। ले कन उसे पता नह क वह भाव से गया है, कसी के ध े से गया है, सरे का हाथ पीछे है। वह एक पचास फ ट र जाकर गर जाएगा। गरे गा ही! असल म, सरे से आए भाव क सदा सीमा होगी। वह गर जाएगा। सरे से आए भाव का एक ही फायदा हो सकता है, और वह यह है क उस भाव क ीण झलक म तुम अपने मूल ोत को खोज सको, तब तो ठीक। यानी मने एक मा चस जलाई, काश आ। पर मेरी मा चस कतनी देर जलेगी? अब तुम दो काम कर सकते हो: तुम यह अंधेरे म खड़े रहो और मेरी मा चस पर नभर हो जाओ-- क हम इस रोशनी म

जीएं गे अब। एक घड़ी, ण भर भी नह बीतेगा, मा चस बुझ जाएगी, फर घु अंधेरा हो जाएगा। यह एक बात ई। मने मा चस जलाई, घु अंधेरे म थोड़ी सी रोशनी ई, तुम एकदम दरवाजा दखाई पड़ा और बाहर भाग गए। तुम मेरी मा चस पर नभर न रहे, तुम बाहर नकल गए; मेरी मा चस बुझे या जले, अब तु कोई मतलब न रहा; ले कन तुम वहां प ं च गए जहां सूरज है। अब कोई चीज थर हो पाएगी। तो ये जतनी घटनाएं ह, इनका एक ही उपयोग है क इससे तुम समझकर कुछ कर लेना अपने भीतर, इसके लए मत क जाना। इसक ती ा करते रहोगे तो यह तो बारबार मा चस जलेगी, बुझेगी। फर धीरे -धीरे कंडीश नग हो जाएगी। फर तुम इसी मा चस के मोहताज हो जाओगे। फर तुम अंधेरे म ती ा करते रहोगे--कब जले! फर जलेगी तो तुम ती ा करोगे--अब बुझनेवाली है, अब बुझनेवाली है, अब गए, अब गए, अब फर अंधेरा हो जाएगा। बस यह एक च र पैदा हो जाएगा। नह , जब मा चस जले, तब मा चस पर मत कना; क मा चस इस लए जली है क तुम रा ा देखो और भागो-नकल जाओ, जतने र अंधेरे के बाहर जा सकते हो। झलक पाकर अपनी राह चल देना सरे से हम इतना ही लाभ ले सकते ह। ले कन सरे से हम ायी लाभ नह ले सकते। पर यह कोई कम लाभ नह है। यह कोई थोड़ा लाभ नह है, ब त बड़ा लाभ है; सरे से इतना भी मल जाता है, यह भी आ य है। इस लए जो सरा अगर समझदार होगा तो तुमसे नह कहेगा क को। तुमसे कहेगा--मा चस चल गई, अब तुम भागो! अब तुम यहां ठहरना मत, नह तो मा चस तो अभी बुझ जाएगी। ले कन अगर सरा तुमसे कहे क अब को, देखो मने मा चस जलाई अंधेरे म! और कसी ने तो नह जलाई न, मने जलाई! अब तुम मुझसे दी ा लो; अब तुम यह ठहरो, अब तुम कह छोड़कर मत जाना, खाओ कसम! अब यह संबंध रहेगा, अब यह टूट नह सकता। मने ही मा चस जलाई! मने ही तु अंधेरे म दखाया! अब तुम कसी और क मा चस के पास तो न जाओगे? अब तुम कोई और काश तो न खोजोगे? अब तुम कसी और गु के पास मत कना, सुनना भी मत, अब तुम मेरे ए! तो फर, तो फर खतरा हो गया। झलक दखाकर बांधनेवाले तथाक थत गु इससे अ ा था यह आदमी मा चस न जलाता। इसने बड़ा नुकसान कया। अंधेरे म तुम खोज भी लेते; कसी तरह टकराते, ध े खाते, कसी दन काश म प ं च जाते; अब इस मा चस को पकड़ने क वजह से बड़ी मु ल हो गई, अब कहां जाओगे? और तब इतना भी प ा है क यह मा चस इस आदमी क अपनी नह है, यह कसी से चुरा लाया है। यह कह से चुराई गई मा चस है। नह तो इसको अब तक पता होता क बाहर भेजने के लए है यह, कसी को रोकने के लए नह है, यहां बठा रखने के लए नह है। यह चोरी क गई मा चस है। इस लए अब यह मा चस क कान कर रहा है; अब यह कह रहा है: जन- जनको हम झलक दखा दगे, उनको यह का रहना पड़ेगा; अब वे कह जा नह सकते। तब तो ह हो गई! अंधेरा रोकता था, अब यह गु रोकने लगा। इससे अंधेरा अ ा था

क कम से कम अंधेरा हाथ फैलाकर तो नह रोक सकता था। अंधेरे का जो रोकना था वह बलकुल ही पै सव था। ले कन यह गु तो ए व रोकेगा; यह तो हाथ पकड़कर रोकेगा, छाती अड़ा देगा बीच म, और कहेगा क धोखा दे रहे हो! दगा कर रहे हो! अभी एक लड़क ने मुझे आकर कहा क उसके गु ने उससे कहा क तुम उनके पास गई? यह तो ऐसे ही है, जैसे कोई प ी अपने प त को छोड़कर चली जाए! गु कह रहा है उससे क यह तो जैसे प ी त और प त त एक के साथ होता है, ऐसा गु को छोड़कर चला जाए कोई सरे के पास, तो यह महान पाप है! यह चुराई ई मा चसवाला अब मा चस से काम चलाएगा। और चुराई जा सकती ह मा चस, इसम कोई क ठनाई नह है; शा म ब त मा चस उपल ह, उनको कोई चुरा सकता है। : ओशो, ा चुराई ई मा चस जल सकती है ?

जल सकने का मतलब यह है क.असल म, अंधेरे म मजा ऐसा है.अंधेरे म मजा ऐसा है, जसने काश देखा ही नह , उसको कौन सी चीज जलती ई बताई जा रही है, यह भी तय करना मु ल है। समझे न? जसने काश देखा ही नह , उसे कौन सी चीज जली ई बताई जा रही है, यह प ा करना ब त मु ल है। यह तो काश के बाद उसको पता चलेगा क तुम ा जला रहे थे, ा नह जला रहे थे! वह जल भी रही थी क नह जल रही थी! क आंख बंद करके समझा रहे थे क जल गई! वह सब तो तु काश दखाई पड़ेगा, तब तु पता चलेगा। जस दन काश दखाई पड़ेगा, उस दन सौ म से न ानबे गु अंधेरे के साथी और काश के न स होते ह! पता चलता है क ये तो ब त न थे; ये सब शैतान के एजसीज थे।

: 14 सात शरीर और सात च : ओशो, कल क चचा म आपने कहा क साधक को पा बनने क पहले फकर करनी चा हए, जगहजगह मांगने नह जाना चा हए। ले कन साधक अथात खोजी का अथ ही है क उसे साधना म बाधाएं ह। उसे पता नह है क कैसे पा बने, कैसे तैयारी करे । तो वह मांगने न जाए तो ा करे ? सही मागदशक से मलना कतना मु ल से हो पाता है !

ले कन खोजना और मांगना दो अलग बात ह। असल म, जो खोजना नह चाहता वही मांगता है। खोजना और मांगना एक तो ह ही नह , वपरीत बात ह। खोजने से जो बचना चाहता है वह मांगता है, खोजी कभी नह मांगता। और खोज और मांगने क या बलकुल अलग है। मांगने म सरे पर ान रखना पड़ेगा-- जससे मलेगा। और खोजने म अपने पर ान रखना पड़ेगा-- जसको मलेगा। यह तो ठीक है क साधक के माग पर बाधाएं ह। ले कन साधक के माग पर बाधाएं ह, अगर हम ठीक से समझ तो इसका मतलब होता है क साधक के भीतर बाधाएं ह; माग भी भीतर है। और अपनी बाधाओं को समझ लेना ब त क ठन नह है। तो इस संबंध म थोड़ी सी व ीण बात करनी पड़ेगी क बाधाएं ा ह और साधक उ कैसे र कर सकेगा। जैसे मने कल सात शरीर क बात कही, उस संबंध म कुछ और बात समझगे तो यह भी समझ म आ सकेगा। मूलाधार च क संभावनाएं जैसे सात शरीर ह, ऐसे ही सात च भी ह। और ेक एक च मनु के एक शरीर से वशेष प से जुड़ा आ है। जैसे सात शरीर म जो हमने कहे--भौ तक शरीर, फ जकल बॉडी, इस शरीर का जो च है, वह मूलाधार है; वह पहला च है। इस मूलाधार च का भौ तक शरीर से क ीय संबंध है; यह भौ तक शरीर का क है। इस मूलाधार च क दो संभावनाएं ह: एक इसक ाकृ तक संभावना है, जो हम ज से मलती है; और एक साधना क संभावना है, जो साधना से उपल होती है। मूलाधार च क ाथ मक ाकृ तक संभावना कामवासना है, जो हम कृ त से मलती है; वह भौ तक शरीर क क ीय वासना है। अब साधक के सामने पहला ही सवाल यह उठे गा क यह जो क ीय त है उसके भौ तक शरीर का, इसके लए ा करे ? और इस च क एक सरी संभावना है, जो साधना से उपल होगी, वह चय है। से

इसक ाकृ तक संभावना है और चय इसका ांसफामशन है, इसका पांतरण है। जतनी मा ा म च कामवासना से क त और सत होगा, उतना ही मूलाधार अपनी अं तम संभावनाओं को उपल नह कर सकेगा। उसक अं तम संभावना चय है। उस च क दो संभावनाएं ह: एक जो हम कृ त से मली, और एक जो हम साधना से मलेगी। न भोग, न दमन--वरन जागरण अब इसका मतलब यह आ क जो हम कृ त से मली है उसके साथ हम दो काम कर सकते ह: या तो जो कृ त से मला है हम उसम जीते रह, तब जीवन म साधना शु नह हो पाएगी; सरा काम जो संभव है वह यह क हम इसे पांत रत कर। पांतरण के पथ पर जो बड़ा खतरा है, वह खतरा यही है क कह हम ाकृ तक क से लड़ने न लग। साधक के माग म खतरा ा है? या तो जो ाकृ तक व ा है वह उसको भोगे, तब वह उठ नह पाता उस तक जो चरम संभावना है--जहां तक उठा जा सकता था; भौ तक शरीर जहां तक उसे प ं चा सकता था वहां तक वह नह प ं च पाता; जहां से शु होता है वह अटक जाता है। तो एक तो भोग है। सरा दमन है, क उससे लड़े। दमन बाधा है साधक के माग पर--पहले क क जो बाधा है। क दमन के ारा कभी ांसफामशन, पांतरण नह होता। दमन बाधा है तो फर साधक ा बनेगा? साधन ा होगा? समझ साधन बनेगी, अंडर डग साधन बनेगी। कामवासना को जो जतना समझ पाएगा उतना ही उसके भीतर पांतरण होने लगेगा। उसका कारण है: कृ त के सभी त हमारे भीतर अंधे और मू त ह। अगर हम उन त के त होशपूण हो जाएं तो उनम पांतरण होना शु हो जाता है। जैसे ही हमारे भीतर कोई चीज जागनी शु होती है वैसे ही कृ त के त बदलने शु हो जाते ह। जागरण क मया है, अवेयरनेस के म ी है उनके बदलने क , पांतरण क । तो अगर कोई अपनी कामवासना के त पूरे भाव और पूरे च , पूरी समझ से जागे, तो उसके भीतर कामवासना क जगह चय का ज शु हो जाएगा। और जब तक कोई पहले शरीर पर चय पर न प ं च जाए तब तक सरे शरीर क संभावनाओं के साथ काम करना ब त क ठन है। ा ध ान च क संभावनाएं सरा शरीर मने कहा था भाव शरीर या आकाश शरीर--ईथ रक बॉडी। सरा शरीर हमारे सरे च से संबं धत है, ा ध ान च से। ा ध ान च क भी दो संभावनाएं ह। मूलतः कृ त से जो संभावना मलती है, वह है भय, घृणा, ोध, हसा। ये सब ा ध ान च क कृ त से मली ई त है। अगर इन पर ही कोई अटक जाता है, तो इसक जो सरी, इससे बलकुल तकूल ांसफामशन क त है-- ेम, क णा, अभय, मै ी, वह संभव नह हो पाता। साधक के माग पर, सरे च पर जो बाधा है, वह घृणा, ोध, हसा, इनके पांतरण का सवाल है। यहां भी वही भूल होगी जो सब त पर होगी। कोई चाहे तो ोध कर सकता है और कोई चाहे तो ोध को दबा सकता है। हम दो ही काम करते ह: कोई भयभीत हो

सकता है और कोई भय को दबाकर थ ही बहा री दखा सकता है। दोन ही बात से पांतरण नह होगा। भय है, इसे ीकार करना पड़ेगा; इसे दबाने, छपाने से कोई योजन नह है। हसा है, इसे अ हसा के बाने पहना लेने से कोई फक पड़नेवाला नह है; अ हसा परम धम है, ऐसा च ाने से इसम कोई फक पड़नेवाला नह है। हसा है, वह हमारे सरे शरीर क कृ त से मली ई संभावना है। उसका भी उपयोग है, जैसे क से का उपयोग है। वह कृ त से मली ई संभावना है, क से के ारा ही सरे भौ तक शरीर को ज दया जा सकेगा। यह भौ तक शरीर मटे , इसके पहले सरे भौ तक शरीर को ज मल सके, इस लए वह कृ त से दी ई संभावना है। भय, हसा, ोध, ये सब भी सरे तल पर अ नवाय ह, अ था मनु बच नह सकता, सुर त नह रह सकता। भय उसे बचाता है; ोध उसे संघष म उतारता है; हसा उसे साधन देती है सरे क हसा से बचने का। वे उसके सरे शरीर क संभावनाएं ह। ले कन साधारणतः हम वह क जाते ह। इ अगर समझा जा सके--अगर कोई भय को समझे, तो अभय को उपल हो जाता है; और अगर कोई हसा को समझे, तो अ हसा को उपल हो जाता है; और अगर कोई ोध को समझे, तो मा को उपल हो जाता है। असल म, ोध एक पहलू है और सरा पहलू मा है; वह उसी के पीछे छपा आ पहलू है; वह स े का सरा ह ा है। ले कन स ा उलटे तब। ले कन स ा उलट जाता है। अगर हम स े के एक पहलू को पूरा समझ ल, तो अपने आप हमारी ज ासा उलटाकर देखने क हो जाती है सरी तरफ। ले कन हम उसे छपा ल और कह, हमारे पास है ही नह ! भय तो हमम है ही नह ! तो हम अभय को कभी भी न देख पाएं गे। जसने भय को ीकार कर लया और कहा, भय है; और जसने भय को पूरा जांचा-पड़ताला, खोजा, वह ज ी ही उस जगह प ं च जाएगा जहां वह जानना चाहेगा: भय के पीछे ा है? ज ासा उसे उलटाने को कहेगी क स े को उलटाकर भी देख लो। और जस दन वह उलटाएगा उस दन वह अभय को उपल हो जाएगा। ऐसे ही हसा क णा म बदल जाएगी। वे सरे शरीर क साधक के लए संभावनाएं ह। इस लए साधक को जो मला है कृ त से, उसको पांतरण करना है। और इसके लए कसी से ब त पूछने जाने क ज रत नह है, अपने ही भीतर नरं तर खोजने और पूछने क ज रत है। हम सब जानते ह क ोध बाधा है; हम सब जानते ह, भय बाधा है। क जो भयभीत है वह स को खोजने कैसे जाएगा? भयभीत मांगने चला जाएगा। वह चाहेगा क बना कसी अ ात, अनजान रा े पर जाए, कोई दे दे तो अ ा। म णपुर च क संभावनाएं तीसरा शरीर मने कहा, ए ल बॉडी है, सू शरीर है। उस सू शरीर के भी दो ह े ह। ाथ मक प से सू शरीर संदेह, वचार, इनके आसपास का रहता है। और अगर ये पांत रत हो जाएं --संदेह अगर पांत रत हो तो ा बन जाता है; और वचार अगर पांत रत हो तो ववेक बन जाता है। संदेह को कसी ने दबाया तो वह कभी ा को उपल नह होगा। हालां क सभी तरफ ऐसा समझाया जाता है क संदेह को दबा डालो, व ास कर लो। जसने संदेह को दबाया

और व ास कया, वह कभी ा को उपल नह होगा; उसके भीतर संदेह मौजूद ही रहेगा--दबा आ; भीतर क ड़े क तरह सरकता रहेगा और काम करता रहेगा। उसका व ास संदेह के भय से ही थोपा आ होगा। न, संदेह को समझना पड़ेगा, संदेह को जीना पड़ेगा, संदेह के साथ चलना पड़ेगा। और संदेह एक दन उस जगह प ं चा देता है, जहां संदेह पर भी संदेह हो जाता है। और जस दन संदेह पर संदेह होता है उसी दन ा क शु आत हो जाती है। वचार को छोड़कर भी कोई ववेक को उपल नह हो सकता। वचार को छोड़नेवाले लोग ह, छु ड़ानेवाले लोग ह; वे कहते ह-- वचार मत करो, वचार छोड़ ही दो। अगर कोई वचार छोड़ेगा, तो व ास और अंधे व ास को उपल होगा। वह ववेक नह है। वचार क सू तम या से गुजरकर ही कोई ववेक को उपल होता है। ववेक का ा मतलब है? वचार म सदा ही संदेह मौजूद है। वचार सदा इन डसी सव है। इस लए ब त वचार करनेवाले लोग कभी कुछ तय नह कर पाते। और जब भी कोई कुछ तय करता है, वह तभी तय कर पाता है जब वचार के च र के बाहर होता है। डसीजन जो है वह हमेशा वचार के बाहर से आता है। अगर कोई वचार म पड़ा रहे तो वह कभी न य नह कर पाता। वचार के साथ न य का कोई संबंध नह है। इस लए अ र ऐसा होता है क वचारहीन बड़े न या क होते ह, और वचारवान बड़े न यहीन होते ह। दोन से खतरा होता है। क वचारहीन ब त डसी सव होते ह। वे जो करते ह, पूरी ताकत से करते ह। क उनम वचार होता ही नह जो जरा भी संदेह पैदा कर दे। नया भर के डा े टक, अंधे जतने लोग ह, फेने टक जतने लोग ह, ये बड़े कमठ होते ह; क इनम शक का तो सवाल ही नह है, ये कभी वचार तो करते नह । अगर इनको ऐसा लगता है क एक हजार आदमी मारने से ग मलेगा, तो एक हजार एक मारकर ही फर कते ह, उसके पहले वे नह कते। एक दफा उनको खयाल नह आता क यह ऐसा--ऐसा होगा? उनम कोई इन डसीजन नह है। वचारवान तो सोचता ही चला जाता है, सोचता ही चला जाता है। तो वचार के भय से अगर कोई वचार का ार ही बंद कर दे, तो सफ अंधे व ास को उपल होगा। अंधा व ास खतरनाक है और साधक के माग म बड़ी बाधा है। चा हए आंखवाला ववेक, चा हए ऐसा वचार जसम डसीजन हो। ववेक का मतलब इतना ही होता है। ववेक का मतलब है क वचार पूरा है, ले कन वचार से हम इतने गुजरे ह क अब वचार क जो भी संदेह क , शक क बात थ , वे वदा हो गई ह; अब धीरे -धीरे न ष म शु न य साथ रह गया है। तो तीसरे शरीर का क है म णपुर, च है म णपुर। उस म णपुर च के ये दो प ह: संदेह और ा। संदेह पांत रत होगा तो ा बनेगी। ले कन ान रख: ा संदेह के वपरीत नह है, श ु नह है; ा संदेह का ही शु तम वकास है, चरम वकास है; वह आ खरी छोर है जहां संदेह का सब खो जाता है, क संदेह यं पर संदेह बन जाता है और ुसाइडल हो जाता है, आ घात कर लेता है और ा उपल होती है।

अनाहत च क संभावनाएं चौथा शरीर है हमारा, मटल बॉडी, मनस शरीर, साइक। इस चौथे शरीर के साथ हमारे चौथे च का संबंध है, अनाहत का। चौथा जो शरीर है, मनस, इस शरीर का जो ाकृ तक प है, वह है क ना--इमे जनेशन, --और ी मग। हमारा मन भावतः यह काम करता रहता है--क ना करता है और सपने देखता है। रात म भी सपने देखता है, दन म भी सपने देखता है और क ना करता रहता है। इसका जो चरम वक सत प है, अगर क ना पूरी तरह से, चरम प से वक सत हो, तो संक बन जाती है, वल बन जाती है; और अगर ी मग पूरी तरह से वक सत हो, तो वज़न बन जाती है, तब वह साइ कक वज़न हो जाती है। अगर कसी क देखने क मता पूरी तरह से वक सत होकर पांत रत हो, तो वह आंख बंद करके भी चीज को देखना शु कर देता है। सपना नह देखता तब वह, तब वह चीज को ही देखना शु कर देता है। वह दीवाल के पार भी देख लेता है। अभी तो दीवाल के पार का सपना ही देख सकता है, ले कन तब दीवाल के पार भी देख सकता है। अभी तो आप ा सोच रहे ह गे, यह सोच सकता है; ले कन तब आप ा सोच रहे ह, यह देख सकता है। वज़न का मतलब यह है क इं य के बना अब उसे चीज दखाई पड़नी और सुनाई पड़नी शु हो जाती ह। टाइम और ेस के, काल और ान के जो फासले ह, उसके लए मट जाते ह। सपने म भी आप जाते ह। सपने म आप बंबई म ह, कलक ा जा सकते ह। और वज़न म भी जा सकते ह। ले कन दोन म फक होगा। सपने म सफ खयाल है क आप कलक ा गए, वज़न म आप चले ही जाएं गे। वह जो चौथी साइ कक बॉडी है, वह मौजूद हो सकती है। इस लए पुराने जगत म जो सपन के संबंध म खयाल था--वह धीरे -धीरे छूट गया और नये समझदार लोग ने उसे इनकार कर दया; क हम चौथे शरीर क चरम संभावना का कोई पता नह रहा--सपने के संबंध म पुराना अनुभव यही था क सपने म आदमी का कोई शरीर नकलकर बाहर चला जाता है या ा पर। ीडनबग एक आदमी था। उसे लोग सपना देखनेवाला आदमी ही समझते थे। क वह ग-नरक क बात भी कहता था; और ग-नरक क बात सपना ही हो सकती ह! ले कन एक दन दोपहर वह सोया था, और उसने दोपहर एकदम उठकर कहा क बचाओ, आग लग गई है! बचाओ, आग लग गई है! घर के लोग आ गए, वहां कोई आग नह लगी थी। तो उसको उ ने जगाया और कहा क तुम न द म हो या सपना देख रहे हो? आग कह भी नह लगी है! उसने कहा, नह , मेरे घर म आग लग गई है। तीन सौ मील र था उसका घर, ले कन उसके घर म उस व आग लग गई थी। सरे -तीसरे दन तक खबर आई क उसका घर जलकर बलकुल राख हो गया। और जब वह सपने म च ाया था तभी आग लगी थी। अब यह सपना न रहा, यह वज़न हो गया। अब तीन सौ मील का जो फासला था वह गर गया और इस आदमी ने तीन सौ मील र जो हो रहा था वह देखा। व ान के सम अत य घटनाएं

अब तो वै ा नक भी इस बात के लए राजी हो गए ह क चौथे शरीर क बड़ी साइ कक संभावनाएं ह। और चूं क ेस े वेल क वजह से उ ब त समझकर काम करना पड़ रहा है; क आज नह कल यह क ठनाई खड़ी हो जाने ही वाली है क जन या य को हम अंत र क या ा पर भेजगे--मशीन कतने ही भरोसे क हो, फर भी भरोसे क नह है-अगर उनके यं जरा भी बगड़ गए, उनके रे डयो यं , तो हमसे उनका संबंध सदा के लए टूट जाएगा; फर वे हम खबर भी न दे पाएं गे क वे कहां गए और उनका ा आ। इस लए वै ा नक इस समय ब त उ ुक ह क यह साइ कक, चौथे शरीर का अगर वज़न का मामला संभव हो सके और टे लीपैथी का मामला संभव हो सके--वह भी चौथे शरीर क आ खरी संभावनाओं का एक ह ा है-- क अगर वे या ी बना रे डयो यं के हम सीधी टे लीपै थक खबर दे सक, तो कुछ बचाव हो सकता है। इस पर काफ काम आ है। आज से कोई तीस साल पहले एक या ी उ र ुव क खोज पर गया था। तो रे डयो यं क व ा थी जनसे वह खबर देता, ले कन एक और व ा थी जो अभी-अभी कट ई है। और वह व ा यह थी क एक साइ कक आदमी को, एक ऐसे आदमी को जसके चौथे शरीर क सरी संभावनाएं काम करती थ , उसको भी नयत कया गया था क वह उसको भी खबर दे। और बड़े मजे क बात यह है क जस दन पानी, हवा, मौसम खराब होता और रे डयो म खबर न मलत , उस दन भी उसे तो खबर मलत । और जब पीछे सब डायरी मलाई ग , तो कम से कम अ ी से पंचानबे तशत के बीच उसने जो साइ कक आदमी ने जो मा म क तरह हण क थ , वे सही थ । और मजा यह है क रे डयो ने जो खबर क थ , वह भी बह र तशत से ादा ऊपर नह गई थ ; क इस बीच कभी कुछ गड़बड़ ई, कभी कुछ ई, तो ब त सी चीज छूट गई थ । और अभी तो स और अमे रका दोन अ त उ ुक ह उस संबंध म। इस लए टे लीपैथी और ेअरवायंस और थॉट री डग और थॉट ोजे न, इन पर ब त काम चलता है। वे हमारे चौथे शरीर क संभावनाएं ह। देखना उसक ाकृ तक संभावना है; स देखना, यथाथ देखना उसक चरम संभावना है। यह अनाहत हमारा चौथा च है। वशु च क संभावनाएं पांचवां च है वशु ; वह कंठ के पास है। और पांचवां शरीर है चुअल बॉडी, आ शरीर। वह उसका च है, वह उस शरीर से संबं धत है। अब तक जो चार शरीर क मने बात क और चार च क , वे त ै म बंटे ए थे। पांचव शरीर से त ै समा हो जाता है। जैसा मने कल कहा था क चार शरीर तक मेल और फ मेल का फक होता है बॉडी म; पांचव शरीर से मेल और फ मेल का, ी और पु ष का फक समा हो जाता है। अगर ब त गौर से देख तो सब त ै ी और पु ष का है; त ै मा , डुआ लटी मा ी-पु ष क है। और जस जगह से ी-पु ष का फासला ख होता है, उसी जगह से सब त ै ख हो जाता है। पांचवां शरीर अ त ै है। उसक दो संभावनाएं नह ह, उसक एक ही संभावना है। इस लए चौथे के बाद साधक के लए बड़ा काम नह है, सारा काम चौथे तक है। चौथे के बाद बड़ा काम नह है। बड़ा इस अथ म क वपरीत कुछ भी नह है वहां। वहां वेश ही करना है। और चौथे तक प ं चते-प ं चते इतनी साम इक ी हो जाती है क पांचव म

सहज वेश हो जाता है। ले कन वेश न हो और हो, तो ा फक होगा? पांचव शरीर म कोई त ै नह है। ले कन कोई साधक जो.एक अभी वेश नह कया है, उसम ा फक है? और जो वेश कर गया है, उसम ा फक है? इनम फक होगा। वह फक इतना होगा क जो पांचव शरीर म वेश करे गा उसक सम तरह क मू ा टूट जाएगी; वह रात भी नह सो सकेगा। सोएगा, शरीर ही सोया रहेगा; भीतर उसके कोई सतत जागता रहेगा। अगर उसने करवट भी बदली है तो वह जानता है, नह बदली है तो जानता है; अगर उसने कंबल ओढ़ा है तो जानता है, नह ओढ़ा है तो जानता है। उसका जानना न ा म भी श थल नह होगा; वह चौबीस घंटे जाग क होगा। जनका नह पांचव शरीर म वेश आ, उनक त बलकुल उलटी होगी: वे न द म तो सोए ए ह गे ही, जसको हम जागना कहते ह, उसम भी एक पत उनक सोई ही रहेगी। आदमी क मू ा और यां कता काम करते ए दखाई पड़ते ह लोग। आप अपने घर आते ह, कार का घूमना बाएं और आपके घर के सामने आकर ेक का लग जाना, तो आप यह मत समझ लेना क आप सब होश म कर रहे ह! यह सब बलकुल आदतन, बेहोशी म होता रहता है। कभी-कभी क ण म हम होश म आते ह, ब त खतरे के ण म! जब खतरा इतना होता है क न द से नह चल सकता-- क एक आदमी आपक छाती पर छु रा रख दे--तब आप एक सेकड को होश म आते ह। एक सेकड को वह छु रे क धार आपको पांचव शरीर तक प ं चा देती है। ले कन बस, ऐसे दो-चार ण जदगी म होते ह, अ था साधारणतः हम सोए-सोए ही जीते ह। न तो प त अपनी प ी का चेहरा देखा है ठीक से, क अगर अभी आंख बंद करके सोचे तो खयाल कर पाए। नह कर पाएगा। रे खाएं थोड़ी देर म ही इधर-उधर हट जाएं गी और प ा नह हो पाएगा क यह मेरी प ी का चेहरा है जसको तीस साल से म देखा ं । देखा ही नह है कभी। क देखने के लए भीतर कोई जागा आ आदमी चा हए। सोया आ आदमी, दखाई पड़ रहा है क देख रहा है, ले कन वह देख नह रहा है। उसके भीतर तो न द चल रही है, और सपने भी चल रहे ह। उस न द म सब चल रहा है। आप ोध करते ह और पीछे कहते ह क पता नह कैसे हो गया! म तो नह करना चाहता था। जैसे क कोई और कर गया हो। आप कहते ह, यह मुंह से मेरे गाली नकल गई, माफ करना, म तो नह देना चाहता था, कोई जबान खसक गई होगी। आपने ही गाली दी, आप ही कहते ह क म नह देना चाहता था। ह ारे ह, जो कहते ह क पता नह , इं सपाइट ऑफ अस, हमारे बावजूद ह ा हो गई; हम तो करना ही नह चाहते थे, बस ऐसा हो गया। तो हम कोई ऑटोमैटा ह? यं वत चल रहे ह? जो नह बोलना है वह बोलते ह, जो नह करना है वह करते ह। सांझ को तय करते ह: सुबह चार बजे उठगे! कसम खा लेते ह। सुबह चार बजे हम खुद ही कहते ह क ा रखा है! अभी सोओ, कल देखगे। सुबह छह बजे उठकर फर पछताते ह और हम ही कहते ह क बड़ी गलती हो गई। ऐसा कभी नह करगे,

अब कल तो उठना ही है, जो कसम खाई थी उसको नभाना था। आ य क बात है, शाम को जस आदमी ने तय कया था, सुबह चार बजे वही आदमी बदल कैसे गया? फर सुबह चार बजे तय कया था तो फर छह बजे कैसे बदल गया? फर सुबह छह बजे जो तय कया है, फर सांझ तक बदल जाता है। सांझ ब त र है, उस बीच प ीस दफे बदल जाता है। न, ये नणय, ये खयाल, हमारी न द म आए ए खयाल ह, सपन क तरह। ब त बबूल क तरह बनते ह और टूट जाते ह। कोई जागा आ आदमी पीछे नह है; कोई होश से भरा आ आदमी पीछे नह है। तो न द आ क शरीर म वेश के पहले क सहज अव ा है--न द; सोया आ होना। और आ शरीर म वेश के बाद क सहज अव ा है जागृ त। इस लए चौथे शरीर के बाद हम को बु कह सकते ह। चौथे शरीर के बाद जागना आ गया। अब आदमी जागा आ है। बु , गौतम स ाथ का नाम नह है, पांचव शरीर क उपल के बाद दया गया वशेषण है--गौतम द बु ा! गौतम जो जाग गया, यह मतलब है उसका। नाम तो गौतम ही है, ले कन वह गौतम सोए ए आदमी का नाम था। इस लए फर धीरे -धीरे उसको गरा दया और बु ही रह गया। सोए ए आद मय क नया यह हमारे पांचव शरीर का फक, उसम वेश के पहले आदमी सोया-सोया है, वह ीपी है। वह जो भी कर रहा है, वे न द म कए गए कृ ह। उसक बात का कोई भरोसा नह ; वह जो कह रहा है, वह व ास के यो नह ; उसक ा मस का कोई मू नह ; उसके दए गए वचन को मानने का कोई अथ नह । वह कहता है क म जीवन भर ेम क ं गा! और अभी दो ण बाद हो सकता है क वह गला घ ट दे। वह कहता है, यह संबंध ज ज तक रहेगा! यह दो ण न टके। उसका कोई कसूर भी नह है, न द म दए गए वचन का ा मू है? रात सपने म म कसी को वचन दे ं क जीवन भर यह संबंध रहेगा, इसका ा मू है? सुबह म कहता ं , सपना था। सोए ए आदमी का कोई भी भरोसा नह है। और हमारी पूरी नया सोए ए आद मय क नया है। इस लए इतना कन ूजन, इतनी कां , इतना ं , इतना झगड़ा, इतना उप व, ये सोए ए आदमी पैदा कर रहे ह। सोए ए आदमी और जागे ए आदमी म एक और फक पड़ेगा, वह भी हम खयाल म ले लेना चा हए। चूं क सोए ए आदमी को यह कभी पता नह चलता क म कौन ं , इस लए वह पूरे व इस को शश म लगा रहता है क म कसी को बता ं क म यह ं ! पूरे व लगा रहता है। उसे खुद ही पता नह क म कौन ं , इस लए पूरे व वह हजार-हजार रा से. कभी राजनी त के कसी पद पर सवार होकर लोग को दखाता है क म यह ं ; कभी एक बड़ा मकान बनाकर दखाता है क म यह ं ; कभी पहाड़ पर चढ़कर दखाता है क म यह ं ; वह सब तरफ से को शश कर रहा है क लोग को बता दे क म यह ं । और इस सब को शश से वह घूमकर अपने को जानने क को शश कर रहा है क म ं कौन? म ं कौन, यह उसे पता नह है। ‘म कौन ं ’ का उ र

चौथे शरीर के पहले इसका कोई पता नह चलेगा। पांचव शरीर को आ शरीर इसी लए कह रहे ह क वहां तु पता चलेगा क तुम कौन हो। इस लए पांचव शरीर के बाद ‘म’ क आवाज एकदम बंद हो जाएं गी। पांचव शरीर के बाद वह समबडी होने का दावा एकदम समा हो जाएगा। उसके बाद अगर तुम उससे कहोगे क तुम यह हो, तो वह हं सेगा। और अपनी तरफ से उसके दावे ख हो जाएं गे; क अब वह जानता है, अब दावे करने क कोई ज रत नह । अब कसी के सामने स करने क कोई ज रत नह ; अपने ही सामने स हो गया है क म कौन ं । इस लए पांचव शरीर के भीतर कोई ं नह है; ले कन पांचव शरीर के बाहर और भीतर गए आदमी म बु नयादी फक है; ं अगर है तो इस भां त है--बाहर और भीतर म। भीतर, पांचव शरीर म गए आदमी म कोई ं नह है। पांचवां शरीर ब त ही तृ दायी ले कन पांचव शरीर का अपना खतरा है क चाहो तो तुम वहां क सकते हो; क तुमने अपने को जान लया। और यह इतनी तृ दायी त है और इतनी आनंदपूण, क शायद तुम आगे क ग त न करो। अब तक जो खतरे थे वे ख के थे, अब जो खतरा शु होता है वह आनंद का है। पांचव शरीर के पहले जतने खतरे थे वे सब ख के थे, अब जो खतरा शु होता है वह आनंद का है। यह इतना आनंदपूण है क अब शायद तुम आगे खोजो ही न। इस लए पांचव शरीर म गए के लए अ ंत सजगता जो रखनी है वह यह क आनंद कह पकड़ न ले, रोकनेवाला न बन जाए। और आनंद परम है। यहां आनंद अपनी पूरी ऊंचाई पर कट होगा; अपनी पूरी गहराई म कट होगा। एक बड़ी ां त घ टत हो गई है: तुम अपने को जान लए हो। ले कन अपने को ही जाने हो। और तुम ही नह हो, और भी सब ह। ले कन ब त बार ऐसा होता है क ख रोकनेवाले स नह होते, सुख रोकनेवाले स हो जाते ह; और आनंद तो ब त रोकनेवाला स हो जाता है। बाजार क भीड़-भाड़ तक को छोड़ने म क ठनाई थी, अब इस मं दर म बजती वीणा को छोड़ने म तो ब त क ठनाई हो जाएगी। इस लए ब त से साधक आ ान पर क जाते ह और ान को उपल नह हो पाते। आनंद म लीन मत हो जाना तो इस आनंद के त भी सजग होना पड़ेगा। यहां भी काम वही है क आनंद म लीन मत हो जाना। आनंद लीन करता है, त ीन करता है, डुबा लेता है। आनंद म लीन मत हो जाना। आनंद के अनुभव को भी जानना क वह भी एक अनुभव है--जैसे सुख के अनुभव थे, ख के अनुभव थे, वैसा आनंद का भी अनुभव है। ले कन तुम अभी भी बाहर खड़े रहना, तुम इसके भी सा ी बन जाना। क जब तक अनुभव है, तब तक उपा ध है; और जब तक अनुभव है, तब तक अं तम छोर नह आया। अं तम छोर पर सब अनुभव समा हो जाएं गे। सुख और ख तो समा होते ही ह, आनंद भी समा हो जाता है। ले कन हमारी भाषा इसके आगे फर नह जा पाती। इस लए हमने परमा ा का प स दानंद कहा है। यह परमा ा का प नह है, यह जहां तक भाषा जाती है वहां तक। आनंद हमारी आ खरी भाषा है।

असल म, पांचव शरीर के आगे फर भाषा नह जाती। तो पांचव शरीर के संबंध म कुछ कहा जा सकता है--आनंद है वहां, पूण जागृ त है वहां, बोध है वहां; यह सब कहा जा सकता है, इसम कोई क ठनाई नह है। आ वाद के बाद रह वाद इस लए जो आ वाद पर क जाते ह उनक बात म म स नह होगा। इस लए आ वाद पर क गए लोग म कोई रह नह होगा; उनक बात बलकुल साइं स जैसी मालूम पड़गी; क म ी क नया तो इसके आगे है, रह तो इसके आगे है। यहां तक तो चीज साफ हो सकती ह। और मेरी समझ है क जो लोग आ वाद पर क जाते ह, आज नह कल, उनके धम को व ान आ सात कर लेगा; क आ तक व ान भी प ं च सकेगा। स का खोजी आ ा पर नह केगा और आमतौर से साधक जब खोज पर नकलता है तो उसक खोज स क नह होती, आमतौर से आनंद क होती है। वह कहता है स क खोज पर नकला ं , ले कन खोज उसक आनंद क होती है। ख से परे शान है, अशां त से परे शान है, वह आनंद खोज रहा है। इस लए जो आनंद खोजने नकला है, वह तो न त ही इस पांचव शरीर पर क जाएगा। इस लए एक बात और कहता ं क खोज आनंद क नह , स क करना। तब फर कना नह होगा। तब एक सवाल नया उठे गा क आनंद है, यह ठीक; म अपने को जान रहा ं , यह भी ठीक; ले कन ये वृ के फूल ह, वृ के प े ह, जड़ कहां ह? म अपने को जान रहा ं , यह भी ठीक; म आनं दत ं , यह भी ठीक; ले कन म कहां से ं ? ॉम ेयर? मेरी जड़ कहां ह? म आया कहां से? मेरे अ क गहराई कहां है? कहां से म आ रहा ं । यह जो मेरी लहर है, यह कस सागर से उठी है? स क अगर ज ासा है, तो पांचव शरीर से आगे जा सकोगे। इस लए ब त ाथ मक प से ही, ारं भ से ही ज ासा स क चा हए, आनंद क नह । नह तो पांचव तक तो बड़ी अ ी या ा होगी, पांचव पर एकदम क जाएगी बात। स क अगर खोज है तो यहां कने का सवाल नह है। तो पांचव शरीर म जो सबसे बड़ी बाधा है, वह उसका अपूव आनंद है। और हम एक ऐसी नया से आते ह, जहां ख और पीड़ा और चता और तनाव के सवाय कुछ भी नह जाना। और जब इस आनंद के मं दर म व होते ह तो मन होता है क अब बलकुल डूब जाओ, अब खो ही जाओ, इस आनंद म नाचो और खो जाओ। खो जाने क यह जगह नह है। खो जाने क जगह भी आएगी, ले कन तब खोना न पड़ेगा, खो ही जाओगे। वह ब त और है--खोना और खो ही जाना। यानी वह जगह आएगी जहां बचाना भी चाहोगे तो नह बच सकोगे। देखोगे खोते ए अपने को, कोई उपाय न रह जाएगा। ले कन यहां खोना हो सकता है, यहां भी खो सकते ह हम। ले कन वह उसम भी हमारा यास, हमारी चे ा.और ब त गहरे म--अहं कार तो मट जाएगा पांचव शरीर म-अ ता नह मटे गी। इस लए अहं कार और अ ता का थोड़ा सा फक समझ लेना ज री है।

आ शरीर म अहं कार नह , अ ता रह जाएगी अहं कार तो मट जाएगा, ‘म’ का भाव तो मट जाएगा। ले कन ‘ ं ’ का भाव नह मटे गा। म ं , इसम दो चीज ह--‘म’ तो अहं कार है, और ‘ ं ’ अ ता है--होने का बोध। ‘म’ तो मट जाएगा पांचव शरीर म, सफ होना रह जाएगा, ‘ ं ’ रह जाएगा; अ ता रह जाएगी। इस लए इस जगह पर खड़े होकर अगर कोई नया के बाबत कुछ कहेगा तो वह कहेगा, अनंत आ ाएं ह, सबक आ ाएं अलग ह; आ ा एक नह है, ेक क आ ा अलग है। इस जगह से आ वादी अनेक आ ाओं को अनुभव करे गा; क अपने को वह अ ता म देख रहा है, अभी भी अलग है। अगर स क खोज मन म हो और आनंद म डूबने क बाधा से बचा जा सके.बचा जा सकता है; क जब सतत आनंद रहता है तो उबानेवाला हो जाता है। आनंद भी उबानेवाला हो जाता है; एक ही र बजता रहे आनंद का तो वह भी उबानेवाला हो जाता है। ब ड रसेल ने कह मजाक म यह कहा है क म मो जाना पसंद नह क ं गा, कम सुनता ं क वहां सफ आनंद है, और कुछ भी नह । तो वह तो ब त मोनोटोनस होगा, क आनंद ही आनंद है; उसम एक ख क रे खा भी बीच म न होगी; उसम कोई चता और तनाव न होगा। तो कतनी देर तक ऐसे आनंद को झेल पाएं गे? आनंद क लीनता बाधा है पांचव शरीर म। फर, अगर आनंद क लीनता से बच सकते हो--जो क क ठन है, और कई बार ज -ज लग जाते ह। पहली चार सी ढ़यां पार करना इतना क ठन नह , पांचव सीढ़ी पार करना ब त क ठन हो जाता है; ब त ज लग सकते ह--आनंद से ऊबने के लए, और यं से ऊबने के लए, आ से ऊबने के लए, वह जो से है उससे ऊबने के लए। तो अभी पांचव शरीर तक जो खोज है, वह ख से छूटने क है--घृणा से छूटने क , हसा से छूटने क , वासना से छूटने क । पांचव के बाद जो खोज है, वह यं से छूटने क है। तो दो बात ह। डम ॉम सम थग-- कसी चीज से मु , यह एक बात है; यह पांचव तक पूरी होगी। फर सरी बात है-- कसी से मु नह , अपने से ही मु । और इस लए पांचव शरीर से एक नया ही जगत शु होता है। आ ा च क संभावना छठवां शरीर शरीर है, का क बॉडी है; और छठवां क आ ा है। अब यहां से कोई त ै नह है। आनंद का अनुभव पांचव शरीर पर गाढ़ होगा, अ का अनुभव छठव शरीर पर गाढ़ होगा--एि झ स का, बीइं ग का। अ ता खो जाएगी छठव शरीर पर। ‘ ं ’, यह भी चला जाएगा--है! म ं --तो ‘म’ चला जाएगा पांचव शरीर पर, ‘ ं ’ चला जाएगा पांचव को पार करते ही। है! इज़नेस का बोध होगा, तथाता का बोध होगा--ऐसा है। उसम म कह भी नह आऊंगा, उसम अ ता कह नह आएगी। जो है, दैट च इज़, बस वही हो जाएगा। तो यहां सत् का बोध होगा, बीइं ग का होगा; चत् का बोध होगा, कांशसनेस का बोध होगा। ले कन यहां चत् मुझसे मु हो गया। ऐसा नह क मेरी चेतना। चेतना! मेरा



--ऐसा नह । अ ! का भी अ त मण करने पर नवाण काया म वेश और कुछ लोग छठव पर क जाएं गे। क का क बॉडी आ गई, हो गया म, अहं ा क हालत आ गई। अब म नह रहा, ही रह गया है। अब और कहां खोज? अब कैसी खोज? अब कसको खोजना है? अब तो खोजने को भी कुछ नह बचा; अब तो सब पा लया; क का मतलब है-- द टोटल; सब। इस जगह से खड़े होकर ज ने कहा है, वे कहगे क अं तम स है, वह ए ो ूट है, उसके आगे फर कुछ भी नह । और इस लए इस पर तो अनंत ज क सकता है कोई आदमी। आमतौर से क जाता है; क इसके आगे तो सूझ म ही नह आता क इसके आगे भी कुछ हो सकता है। तो ानी इस पर अटक जाएगा, इसके आगे वह नह जाएगा। और यह इतना क ठन है इसको पार करना--इस जगह को पार करना-क अब बचती ही नह कोई जगह जहां इसको पार करो। सब तो घेर लया, जगह भी चा हए न! अगर म इस कमरे के बाहर जाऊं, तो बाहर जगह भी तो चा हए! अब यह कमरा इतना वराट हो गया--अंतहीन, अनंत हो गया; असीम, अना द हो गया; अब जाने को भी कोई जगह नह , नो ेयर टु गो। तो अब खोजने भी कहां जाओगे? अब खोजने को भी कुछ नह बचा, सब आ गया। तो यहां अनंत ज तक कना हो सकता है। परम खोज म आ खरी बाधा तो आ खरी बाधा है-- द ला बै रयर। साधक क परम खोज म आ खरी बाधा है। बीइं ग रह गया है अब, ले कन अभी भी नॉन-बीइं ग भी है शेष; ‘अ ’ तो जान ली, ‘है’ तो जान लया, ले कन ‘नह है’, अभी वह जान ने को शेष रह गया। इस लए सातवां शरीर है नवाण काया। उसका च है सह ार। और उसके संबंध म कोई बात नह हो सकती। तक बात जा सकती है--ख चतानकर; गलत हो जाएगी ब त। छठव शरीर म तीसरी आंख का खुलना पांचव शरीर तक बात बड़ी वै ा नक ढं ग से चलती है; सारी बात साफ हो सकती है। छठव शरीर पर बात क सीमाएं खोने लगती ह, श अथहीन होने लगता है, ले कन फर भी इशारे कए जा सकते ह। ले कन अब अंगुली भी टूट जाती है, अब इशारे गर जाते ह; क अब खुद का होना ही गर जाता है। तो ए ो ूट बीइं ग को छठव शरीर तक और छठव क से जाना जा सकता है। इस लए जो लोग क तलाश म ह, आ ा च पर ान करगे। वह उसका च है। इस लए भृकुटी-म म आ ा च पर वे ान करगे; वह उससे संबं धत च है उस शरीर का। और वहां जो उस च पर पूरा काम करगे, तो वहां से उ जो दखाई पड़ना शु होगा व ार अनंत का, उसको वे तृतीय ने और थड आई कहना शु कर दगे। वहां से वह तीसरी आंख उनके पास आई, जहां से वे अनंत को, का क को देखना शु कर देते ह। सह ार च क संभावना

ले कन अभी एक और शेष रह गया--न होना, नॉन-बीइं ग, ना । अ जो है वह आधी बात है, अन भी है; काश जो है वह आधी बात है, अंधकार भी है; जीवन जो है वह आधी बात है, मृ ु भी है। इस लए आ खरी अन को, शू को भी जानने क. क परम स तभी पता चलेगा जब दोन जान लए--अ भी और ना भी; आ कता भी जानी उसक संपूणता म और ना कता भी जानी उसक संपूणता म; होना भी जाना उसक संपूणता म और न होना भी जाना उसक संपूणता म; तभी हम पूरे को जान पाए, अ था यह भी अधूरा है। ान म एक अधूरापन है क वह ‘न होने’ को नह जान पाएगा। इस लए ानी ‘न होने’ को इनकार ही कर देता है; वह कहता है: वह माया है, वह है ही नह । वह कहता है: होना स है, न होना झूठ है, म ा है; वह है ही नह ; उसको जानने का सवाल कहां है! नवाण काया का मतलब है शू काया, जहां हम ‘होने’ से ‘न होने’ म छलांग लगा जाते ह। क वह और जानने को शेष रह गया; उसे भी जान लेना ज री है क न होना ा है? मट जाना ा है? इस लए सातवां शरीर जो है, वह एक अथ म महामृ ु है। और नवाण का, जैसा मने कल अथ कहा, वह दीये का बुझ जाना है। वह जो हमारा होना था, वह जो हमारा ‘म’ था, मट गया; वह जो हमारी अ ता थी, मट गई। ले कन अब हम सव के साथ एक होकर फर हो गए ह, अब हम हो गए ह, अब इसे भी छोड़ देना पड़ेगा। और इतनी जसक छलांग क तैयारी है, वह जो है, उसे तो जान ही लेता; जो नह है, उसे भी जान लेता है। और ये सात शरीर और सात च ह हमारे । और इन सात च के भीतर ही हमारी सारी बाधाएं और साधन ह। कह कसी बाहरी रा े पर कोई बाधा नह है। इस लए कसी से पूछने जाने का उतना सवाल नह है। खोजने नकलो, मांगने नह और अगर कसी से पूछने भी गए हो, और कसी के पास समझने भी गए हो, तो मांगने मत जाना। मांगना और बात है; समझना और बात है; पूछना और बात है। खोज अपनी जारी रखना। और जो समझकर आए हो, उसको भी अपनी खोज ही बनाना, उसको अपना व ास मत बनाना। नह तो वह मांगना हो जाएगा। मुझसे एक बात तुमने क , और मने तु कुछ कहा। अगर तुम मांगने आए थे, तो तुमको जो मने कहा, तुम इसे अपनी थैली म बंद करके स ालकर रख लोगे, इसक संप बना लोगे। तब तुम साधक नह , भखारी ही रह जाते हो। नह , मने तुमसे कुछ कहा, यह तु ारी खोज बना, इसने तु ारी खोज को ग तमान कया, इसने तु ारी ज ासा को दौड़ाया और जगाया, इससे तु और मु ल और बेचैनी ई, इसने तु और नये सवाल खड़े कए, और नई दशाएं खोल , और तुम नई खोज पर नकले, तब तुमने मुझसे मांगा नह , तब तुमने मुझसे समझा। और मुझसे तुमने जो समझा, वह अगर तु यं को समझने म सहयोगी हो गया, तब मांगना नह है। तो समझने नकलो, खोजने नकलो। तुम अकेले नह खोज रहे, और ब त लोग खोज रहे ह। ब त लोग ने खोजा है, ब त लोग ने पाया है। उन सबको ा आ है, ा नह आ है, उस सबको समझो। ले कन उस सबको समझकर तुम अपने को समझना बंद

मत कर देना; उसको समझकर तुम यह मत समझ लेना क यह मेरा ान बन गया। उसको तुम व ास मत बनाना, उस पर तुम भरोसा मत करना, उस सबसे तुम बनाना, उस सबको तुम सम ा बनाना, उसको समाधान मत बनाना, तो फर तु ारी या ा जारी रहेगी। और तब फर मांगना नह है, तब तु ारी खोज है। और तु ारी खोज ही तु अंत तक ले जा सकती है। और जैस-े जैसे तुम भीतर खोजोगे, तो जो मने तुमसे बात कही ह, ेक क पर दो त तुमको दखाई पड़गे--एक जो तु मला है, और एक जो तु खोजना है। ोध तु मला है, मा तु खोजनी है; से तु मला है, चय तु खोजना है; तु मला है, वज़न तु खोजना है, दशन तु खोजना है। चार शरीर तक तु ारी त ै क खोज चलेगी, पांचव शरीर से तु ारी अ त ै क खोज शु होगी। पांचव शरीर म तु जो मल जाए, उससे भ को खोजना जारी रखना। आनंद मल जाए तो तुम खोजना क और आनंद के अ त र ा है? छठव शरीर पर तु मल जाए तो तुम खोज जारी रखना क के अ त र ा है? तब एक दन तुम उस सातव शरीर पर प ं चोगे, जहां होना और न होना, काश और अंधकार, जीवन और मृ ु, दोन एक साथ ही घ टत हो जाते ह। और तब परम, द अ मेट.और उसके बाबत फर कोई उपाय नह कहने का। पांचव शरीर के बाद रह ही रह है इस लए हमारे सब शा या तो पांचव पर पूरे हो जाते ह। जो ब त वै ा नक बु के लोग ह, वे पांचव के आगे बात नह करते; क उसके बाद का क शु होता है, जसका कोई अंत नह है व ार का। पर जो म क क के लोग ह--जो रह वादी ह, सूफ ह, इस तरह के लोग ह--वे उसक भी बात करते ह। हालां क उसक बात करने म उ बड़ी क ठनाई होती है, और उ अपने को ही हर बार कं ा ड करना पड़ता है, खुद को ही वरोध करना पड़ता है। और अगर एक सूफ फक र क या एक म क क पूरी बात सुनो, तो तुम कहोगे क यह आदमी पागल है! क कभी यह यह कहता है, कभी यह यह कहता है! यह कहता है: ई र है भी; और यह कहता है: ई र नह भी है। और यह यह कहता है क मने उसे देखा। और सरे ही वा म कहता है क उसे तुम देख कैसे सकते हो! क वह कोई आंख का वषय है? यह ऐसे सवाल उठाता है क तु हैरानी होगी क कसी सरे से सवाल उठा रहा है क अपने से उठा रहा है! छठव शरीर से म स . इस लए जस धम म म स नह है, समझना वह पांचव पर क गया। ले कन म स भी आ खरी बात नह है, रह आ खरी बात नह है। आ खरी बात शू है; न ह ल है आ खरी बात। तो जो धम रह पर क गया, समझना वह छठव पर क गया। आ खरी बात तो आ खरी है। और उस शू के अ त र आ खरी कोई बात हो नह सकती। राह के प र को भी सीढ़ी बना लेना तो पांचव शरीर से अ त ै क खोज शु होती है, चौथे शरीर तक त ै क खोज ख हो जाती है। और सब बाधाएं तु ारे भीतर ह। और बाधाएं बड़ी अ ी बात है क तु

उपल ह। और ेक बाधा का पांतरण होकर वही तु ारा साधन बन जाती है। रा े पर एक प र पड़ा है; वह, जब तक तुमने समझा नह है उसे, तब तक तु रोक रहा है। जस दन तुमने समझा उसी दन तु ारी सीढ़ी बन जाता है। प र वह पड़ा रहता है। जब तक तुम नह समझे थे, तुम च ा रहे थे क यह प र मुझे रोक रहा है, म आगे कैसे जाऊं! जब तुम इस प र को समझ लए, तुम इस पर चढ़ गए और आगे चले गए। और अब तुम उस प र को ध वाद दे रहे हो क तेरी बड़ी कृपा है, क जस तल पर म चल रहा था, तुझ पर चढ़कर मेरा तल बदल गया, अब म सरे तल पर चल रहा ं । तू साधन था, ले कन म समझ रहा था बाधा है; म सोचता था रा ा क गया, यह प र बीच म आ गया, अब ा होगा! ोध बीच म आ गया। अगर ोध पर चढ़ गए तो मा को उपल हो जाएं गे, जो क ब त सरा तल है। से बीच म आ गया। अगर से पर चढ़ गए तो चय उपल हो जाएगा, जो क बलकुल ही सरा तल है। और तब से को ध वाद दे सकोगे, और तब ोध को भी ध वाद दे सकोगे। जस वृ से लड़गे, उससे ही बंध जाएं गे ेक राह का प र बाधा बन सकता है और साधन बन सकता है। वह तुम पर नभर है क उस प र के साथ ा करते हो। हां, भूलकर भी प र से लड़ना मत, नह तो सर फूट सकता है और वह साधन नह बनेगा। और अगर कोई प र से लड़ने लगा तो वह प र रोक लेगा; क जहां हम लड़ते ह वह हम क जाते ह। क जससे लड़ना है उसके पास कना पड़ता है; जससे हम लड़ते ह उससे र नह जा सकते हम कभी भी। इस लए अगर कोई से से लड़ने लगा, तो वह से के आसपास ही घूमता रहेगा। उतना ही आसपास घूमेगा जतना से म डूबनेवाला घूमता है। ब कई बार उससे भी ादा घूमेगा। क डूबनेवाला ऊब भी जाता है, बाहर भी होता है; यह ऊब भी नह पाता, यह आसपास ही घूमता रहता है। अगर तुम ोध से लड़े तो तुम ोध ही हो जाओगे; तु ारा सारा ोध से भर जाएगा; और तु ारे रग-रग, रे श-े रे शे से ोध क नयां नकलने लगगी; और तु ारे चार तरफ ोध क तरं ग वा हत होने लगगी। इस लए ऋ ष-मु नय क जो हम कहा नयां पढ़ते ह--महा ोधी, उसका कारण है; उसका कारण है वे ोध से लड़नेवाले लोग ह। कोई वासा है, कोई कोई है। उनको सवाय अ भशाप के कुछ सूझता ही नह है। उनका सारा आग हो गया है। वे प र से लड़ गए ह, वे मु ल म पड़ गए ह; वे जससे लड़े ह, वही हो गए ह। तुम ऐसे ऋ ष-मु नय क कहा नयां पढ़ोगे ज क ग से कोई अ रा आकर बड़े त ाल कर देती है। आ य क बात है! यह तभी संभव है जब वे से से लड़े ह , नह तो संभव नह है। वे इतना लड़े ह, इतना लड़े ह, इतना लड़े ह, इतना लड़े ह क लड़-लड़ कर खुद ही कमजोर हो गए ह। और से अपनी जगह खड़ा है; अब वह ती ा कर रहा है; वह कसी भी ार से फूट पड़ेगा। और कम संभावना है क अ रा आई हो, संभावना तो यही है क कोई साधारण ी नकली हो, ले कन इसको अ रा दखाई पड़ी हो। क अ राओं ने कोई ठे का ले रखा है क ऋ ष-मु नय को सताने के लए आती रह। ले कन

अगर से को ब त स ेस कया गया हो, तो साधारण ी भी अ रा हो जाती है; क हमारा च ोजे करने लगता है। रात वही सपने देखता है, दन वही वचार करता है, फर हमारा च पूरा का पूरा उसी से भर जाता है। फर कोई भी चीज.कोई भी चीज अ तमोहक हो जाती है, जो क नह थी। लड़ना नह , समझना तो साधक के लए लड़ने भर से सावधान रहना है, और समझने क को शश करनी है। और समझने क को शश का मतलब ही यह है क तु जो मला है कृ त से उसको समझना। तो तु जो नह मला है, उसी मले ए के माग से तु वह भी मल जाएगा जो नह मला है; वह पहला छोर है। अगर तुम उसी से भाग गए तो तुम सरे छोर पर कभी न प ं च पाओगे। अगर से से ही घबराकर भाग गए तो चय तक कैसे प ं चोगे? से तो ार था जो कृ त से मला था। चय उसी ार से खोज थी जो अंत म तुम खोद पाओगे। तो ऐसा अगर देखोगे तो मांगने जाने क कोई ज रत नह , समझने जाने क तो ब त ज रत है; और पूरी जदगी समझने के लए है-- कसी से भी समझो, सब तरफ से समझो और अंततः अपने भीतर समझो। य को तौलने से बचना : ओशो, अभी आप सात शरीर क चचा करते ह, तो उसम सातव या छठव या पांचव शरीर-- नवाण बॉडी, का क बॉडी और चुअल बॉडी को मशः उपल ए कुछ ाचीन और अवाचीन अथात एन शएं ट और मॉडन य के नाम लेने क कृपा कर।

इस झंझट म न पड़ो तो अ ा है। इसका कोई सार नह है। इसका कोई अथ नह है। और अगर म क ं भी, तो तु ारे पास उसक जांच के लए कोई माण नह होगा। और जहां तक बने य को तौलने से बचना अ ा है। उनसे कोई योजन भी नह है। उनसे कोई योजन नह है। उसका कोई अथ ही नह है। उनको जाने दो। पांचव या छठव शरीर म मृ ु के बाद देव यो नय म ज : ओशो, पांचव शरीर को या उसके बाद के शरीर को उपल शरीर हण करना पड़ता है ?



को अगले ज

म भी



ूल

हां, यह बात ठीक है, पांचव शरीर को उपल करने के बाद का इस शरीर म ज नह होगा। पर और शरीर ह। और शरीर ह। असल म, जनको हम देवता कहते रहे ह, उस तरह के शरीर ह। वे पांचव के बाद उस तरह के शरीर उपल हो सकते ह।

छठव के बाद तो उस तरह के शरीर भी उपल नह ह गे। गॉ स के नह , ब जसको हम गॉड कहते रहे ह, ई र कहते रहे ह, उस तरह का शरीर उपल हो जाएगा। ले कन शरीर उपल होते रहगे; वे कस तरह के ह, यह ब त गौण बात है। सातव के बाद ही शरीर उपल नह ह गे। सातव के बाद ही अशरीरी त होगी। उसके पहले सू से सू शरीर उपल होते रहगे। श पात से साद े तर : ओशो, पछली एक चचा म कहा था आपने क आप पसंद करते ह क श पात जतना ेस के नकट हो सके उतना ही अ ा है । इसका ा यह अथ न आ क श पात क प त म मक सुधार और वकास क संभावना है ? अथात ा श पात क या म ा लटे टव ो ेस भी संभव है ?

ब त संभव है, ब त सी बात संभव ह। असल म, श पात क और साद क , ेस क जो भ ता है, वह भ ता बड़ी है। मूल प से तो साद ही काम का है; बना मा म के मले, तो शु तम होगा, क उसको अशु करनेवाला बीच म कोई भी नह होता। जैसे क म तु अपनी खुली आंख से देख,ूं तो जो म देखूंगा वह शु तम होगा। फर म एक च ा लगा लूं, तो जो होगा वह उतना शु तम नह होगा, एक मा म बीच म आ गया। ले कन फर इस मा म म भी शु और अशु के ब त प हो सकते ह। एक रं गीन च ा हो सकता है, एक साफ-सफेद च ा हो सकता है। और इस कांच क भी ा लटी म ब त फक हो सकते ह। समझ रहे ह न? तो जब हम मा म से लगे तब कुछ न कुछ अशु तो आने ही वाली है। वह मा म क होगी। और इसी लए शु तम साद तो सीधा ही मलता है, शु तम ेस तो सीधी ही मलती है, तब कोई मा म नह होता। अब समझ लो क अगर हम बना आंख के भी देख सक तो और भी शु तम होगा, क आंख भी मा म है। अगर आंख के बना भी देख सक तो और भी शु तम होगा, क फर आंख भी उसम बाधा नह डाल पाएगी। अब कसी क आंख म पी लया है, और कसी क आंख कमजोर है, और कसी क कुछ है, तो क ठनाइयां ह। ले कन अब जसक आंख म कमजोरी है, उसको एक च े का मा म सहयोगी हो सकता है। यानी हो सकता है क खाली आंख से वह जतना शु न देख पाए, उतना एक च ा लगाने से शु देख ले। ऐसे तो च ा एक और मा म हो गया, दो मा म हो गए, ले कन पछले मा म क कमी यह मा म पूरा कर सकता है। ठीक ऐसी ही बात है। जस के मा म से साद कसी सरे तक प ं चेगा, उस का मा म कुछ तो अशु करे गा ही। ले कन, अगर यह अशु ऐसी हो क उस सरे क आंख क अशु के तकूल पड़ती हो और दोन कट जाती ह , तो साद के नकटतम प ं च जाएगी बात। ले कन यह एक-एक त म अलग-अलग तय करना होगा।

मेरी जो समझ है वह यह है क इस लए सीधा साद खोज जाए, के मा म क फकर ही छोड़ दी जाए। हां, कभी-कभी अगर जीवनधारा के लए ज रत पड़ेगी तो के मा म से भी झलक दखला देती है, उसक तु चता, साधक को उसक चता करने क ज रत नह है। लेने नह जाना! क लेने जाओगे, तो मने कल तुमसे जैसा कहा, देनेवाला कोई मल जाएगा। और देनेवाला जतना सघन है, उतनी ही अशु हो जाएगी बात। तो देनेवाला ऐसा चा हए जसे देने का पता ही न चलता हो, तब श पात शु हो सकता है। फर भी वह साद नह बन जाएगा। फर भी एक दन तो वह चा हए जो हम इमी जएट मलता हो, मी डयम के बना मलता हो, सीधा मलता हो; परमा ा और हमारे बीच कोई भी न हो, श और हमारे बीच कोई भी न हो। ान म वही रहे, नजर म वही रहे, खोज उसक रहे। बीच के माग पर ब त सी घटनाएं घट सकती ह, ले कन उन पर कसी पर कना नह है, इतना ही काफ है। और फक तो पड़गे। ा लटी के भी फक पड़गे, ां टटी के भी फक पड़गे। और कई कारण से पड़गे। वह ब त व ार क बात होगी, कई कारण से पड़गे। श पात का शु तम मा म असल म, पांचवां शरीर जसको मल गया है, कसी को भी श पात उसके ारा हो सकता है--पांचव शरीर से। ले कन पांचव शरीरवाले का जो श पात है वह उतना शु नह होगा, जतना छठववाले का होगा; क उसक अ ता कायम है। अहं कार तो मट गया, अ ता कायम है; ‘म’ तो मट गया, ‘ ं ’ कायम है। वह ‘ ं ’ थोड़ा सा रस लेगा। छठव शरीरवाले से भी श पात हो जाएगा। वहां ‘ ं ’ भी नह है अब, वहां ही है। वह और शु हो जाएगा। ले कन अभी भी है। अभी ‘नह है’ क त नह आ गई है, ‘है’ क त है। यह ‘है’ भी ब त बारीक पदा है--ब त बारीक, ब त नाजुक, पारदश , ांसपैरट--ले कन है। यह पदा है। तो छठव शरीरवाले से भी श पात हो जाएगा। पांचव से तो े होगा। साद के बलकुल करीब प ं च जाएगा। ले कन कतने ही करीब हो, जरा सी भी री री है। और जतनी क मती चीज ह , उतनी छोटी सी री बड़ी हो जाती है; जतनी क मती चीज ह , उतनी छोटी सी री बड़ी हो जाती है। इतनी ब मू नया है साद क क वहां इतना सा पदा, क उसको पता है क है, बाधा बनेगा। सातव शरीर को उपल से श पात शु तम हो जाएगा। शु तम हो जाएगा। ेस फर भी नह होगा। श पात क शु तम त सातव शरीर पर प ं च जाएगी-शु तम। जो, श पात जहां तक प ं च सकता है, वहां तक प ं च जाएगी। ले कन उस तरफ से तो कोई पदा नह है अब, सातव शरीर को उपल क तरफ से कोई पदा नह है, उसक तरफ से तो अब वह शू के साथ एक हो गया, ले कन तु ारी तरफ से पदा है। तुम तो उसको ही मानकर जीओगे। अब तु ारा पदा आ खरी बाधा डालेगा। अब उसक तरफ से कोई पदा नह है, ले कन तु ारे लए तो वह है। मा म के त -भाव भी बाधा समझो क म अगर सातव त को उपल हो जाऊं, तो यह मेरी बात है क म जानूं ं , ले कन तुम? तुम तो मुझे जानोगे क एक ं । और तु ारा यह क म शू

ं , आ खरी पदा हो जाएगा। यह पदा तो तु ारा तभी गरे गा जब खयाल क म एक न से तुम पर घटना घटे । यानी तुम कह खोजकर पकड़ ही न पाओ क कससे घटी, कैसे घटी! कोई सोस न मले तु , तभी तु ारा यह खयाल गर पाएगा; सोसलेस हो। अगर सूरज क करण आ रही है तो तुम सूरज को पकड़ लोगे क वह है। ले कन ऐसी करण आए जो कह से नह आ रही और आ गई, और ऐसी वषा हो जो कसी बादल से नह ई और हो गई, तभी तु ारे मन से वह आ खरी पदा जो सरे के होने से पैदा होता है गरे गा। तो बारीक से बारीक फासले होते चले जाएं गे। अं तम घटना तो साद क तभी घटे गी जब कोई भी बीच म नह है। तु ारा यह खयाल भी क कोई है, काफ बाधा है--आ खरी। दो ह, तब तक तो ब त ादा है--तुम भी हो और सरा भी है। हां, सरा मट गया, ले कन तुम हो। और तु ारे होने क वजह से सरा भी तु मालूम हो रहा है। सोसलेस साद जब घ टत होगा, ेस जब उतरे गी, जसका कह कोई उदगम नह है, उस दन वह शु तम होगी। उस उदगम-शू क वजह से तु ारा उसम बह जाएगा, बच नह सकेगा। अगर सरा मौजूद है तो वह तु ारे को बचाने का काम करता है; तु ारे लए ही सफ मौजूद है तो भी काम करता है। ‘म’ और ‘तू’ से तनाव का ज असल म तुमको, अगर तुम समु के कनारे चले जाते हो, तु ादा शां त मलती है; जंगल म चले जाते हो, ादा शां त मलती है; क सामने सरा नह है-- द अदर मौजूद नह है। इस लए तु ारा खुद का भी म जो है, वह ीण हो जाता है। जब तक सरा मौजूद है, तु ारा म भी मजबूत होता है। जब तक सरा मौजूद है.एक कमरे म दो आदमी बैठे ह, तो उस कमरे म तनाव क धाराएं बहती रहती ह। कुछ नह कर रहे--लड़ नह रहे, झगड़ नह रहे, चुपचाप बैठे ह--मगर उस कमरे म तनाव क धाराएं बहती रहती ह। क दो म मौजूद ह और पूरे व काय चल रहा है--सुर ा भी चल रही है, आ मण भी चल रहा है। चुप भी चलता है, कोई ऐसा नह है क झगड़ने क सीधी ज रत है, या कुछ कहने क ज रत है--दो क मौजूदगी, कमरा टस है। और अगर.कभी म बात क ं गा क अगर तु , सारी जो तरं ग हमारे से नकलती ह, उनका बोध हो जाए, तो उस कमरे म तुम बराबर देख सकते हो क वह कमरा दो ह म वभा जत हो गया, और ेक एक सटर बन गया, और दोन क व ुतधाराएं और तरं ग आपस म न क तरह खड़ी ई ह। सरे क मौजूदगी तु ारे म को मजबूत करती है। सरा चला जाए तो कमरा बदल जाता है, तुम रलै हो जाते हो; तु ारा म जो तैयार था क कब ा हो जाए, वह ढीला हो जाता है; वह त कए से टककर आराम करने लगता है; वह ास लेता है क अभी सरा मौजूद नह है। इसी लए एकांत का उपयोग है क तु ारा म श थल हो सके वहां। एक वृ के पास तुम ादा आसानी से खड़े हो पाते हो बजाय एक आदमी के। इस लए जन मु म आदमीआदमी के बीच तनाव ब त गहरे हो जाते ह, वहां आदमी कु े और ब य को भी पालकर उनके साथ जीने लगता है। उनके साथ ादा आसानी है, उनके पास कोई म

नह है। एक कु े के गले म प ा बांधे हम मजे से चले जा रहे ह। ऐसा हम कसी आदमी के गले म प ा बांधकर नह चल सकते। हालां क को शश करते ह! प त प ी के बांधे ए है, प ी प त के प ा बांधे ए है गले म, और चले जा रहे ह! ले कन जरा सू प े ह, दखाई नह पड़ते। ले कन सरा उसम गड़बड़ करता रहता है, पूरे व गदन हलाता रहता है क अलग करो, यह प ा नह चलेगा। ले कन एक कु े को बांधे ए ह, वह बलकुल चला जा रहा है; वह पूंछ हलाता हमारे पीछे आ रहा है। तो कु ा जतना सुख दे पाता है फर, उतना आदमी नह दे पाता; क वह जो आदमी है, वह हमारे म को फौरन खड़ा कर देता है और मु ल म डाल देता है। धीरे -धीरे य से संबंध तोड़कर आदमी व ुओ ं से संबंध बनाने लगता है, क व ुओ ं के साथ सरलता है। तो व ुओ ं के ढे र बढ़ते जाते ह। घर म व ुएं बढ़ती जाती ह, आदमी कम होते चले जाते ह। आदमी घबड़ाहट लाते ह, व ुएं झंझट नह देती ह। कुस जहां रखी है, वहां रखी है, म बैठा ं तो कोई गड़बड़ नह करती। वृ है, नदी है, पहाड़ है, इनसे कोई झंझट नह आती, इस लए हमको बड़ी शां त मलती है इनके पास जाकर। कारण कुल इतना है क सरी तरफ म मजबूती से खड़ा नह है, इस लए हम भी रलै हो पाते ह। हम कहते ह--ठीक है, यहां कोई तू नह है तो मेरे होने क ा ज रत है! ठीक है, म भी नह ं । ले कन जरा सा भी इशारा सरे आदमी का मल जाए क वह है, क हमारा म त ाल त र हो जाता है, वह स ो रटी क फकर करने लगता है क पता नह ा हो जाए, इस लए तैयार होना ज री है। शू के सामने अहं कार क बेचैनी यह तैयारी आ खरी ण तक बनी रहती है। सातव शरीरवाला भी तु मल जाए तो भी तु ारी तैयारी रहेगी। ब कई बार ऐसे से तु ारी तैयारी ादा हो जाएगी। साधारण आदमी से तुम इतने भयभीत नह होते, क वह तु चोट भी अगर प ं चा सकता है तो ब त गहरी नह प ं चा सकता। ले कन ऐसा जो पांचव शरीर के पार चला गया है, तु चोट भी गहरी प ं चा सकता है--उसी शरीर तक प ं चा सकता है, जहां तक वह प ं च गया है। उससे भय भी तु ारा बढ़ जाता है; उससे डर भी तु ारा बढ़ जाता है क पता नह ा हो जाए! उसके भीतर से तु ब त ही अ ात और अनजान श झांकती मालूम पड़ने लगती है। इस लए तुम ब त स लकर खड़े हो जाते हो। उसके आसपास तु ए बस दखाई पड़ने लगती है; अनुभव होने लगता है क कोई ग है इसके भीतर, अगर गए तो कसी ग े म न गर जाएं । इस लए नया म जीसस, कृ या सुकरात जैसे आदमी जब भी पैदा होते ह, तो हम उनक ह ा कर देते ह। उनक वजह से हम म ब त गड़बड़ पैदा हो जाती है। उनके पास जाना, खतरे के पास जाना है। फर मर जाते ह, तब हम उनक पूजा करते ह। अब हमारे लए कोई डर नह रहा। अब हम उनक मू त बनाकर सोने क और हाथ-पैर जोड़कर खड़े हो जाते ह; हम कहते ह: तुम भगवान हो। ले कन जब ये लोग होते ह तब हम इनके साथ ऐसा वहार नह करते, तब हम इनसे ब त डरे रहते ह। और डर अनजान रहता है, क हम प ा पता तो नह रहता क बात ा है। ले कन एक आदमी जतना गहरा होता

जाता है, उतना ही हमारे लए ए बस बन जाता है, खाई बन जाता है। और जैसे खाई के नीचे झांकने से डर लगता है और सर घूमता है, ऐसा ही ऐसे क आंख म झांकने से डर लगने लगेगा और सर घूमने लगेगा। मूसा के संबंध म बड़ी अदभुत कथा है: क हजरत मूसा को जब परमा ा का दशन आ, तो इसके बाद उ ने फर कभी अपना मुंह नह उघाड़ा; वे एक घूंघट डाले रखते थे। वे फर घूंघट डालकर ही जीए, क उनके चेहरे म झांकना खतरनाक हो गया। जो आदमी झांके वह भाग खड़ा हो; फर वहां केगा नह । उसम से ए बस दखाई पड़ने लगी। उनक आंख म अनंत ख हो गया। तो मूसा लोग के बीच जाते तो चेहरे पर एक घूंघट डाले रखते। वह घूंघट डालकर ही बात कर सकते फर। क लोग उनसे घबराने लगे और डरने लगे। ऐसा लगे क कोई चीज चुंबक क तरह ख चती है कसी ग म! और पता नह कहां ले जाएगी, ा होगा! कुछ पता नह ! तो यह जो आ खरी, सातव त म प ं चा आ आदमी है, वह भी है--तु ारे लए। इस लए तुम उससे अपनी सुर ा करोगे और एक पदा बना रह जाएगा; इस लए ेस शु नह हो सकती। ऐसे आदमी के पास हो सकती है शु , अगर तु यह खयाल मट जाए क वह है। ले कन यह खयाल तु तभी मट सकता है, जब क तु यह खयाल मट जाए क म ं । अगर तुम इस हालत म प ं च जाओ क तु खयाल न रहे क म ं , तो फर तु शु वहां से भी मल सकती है। ले कन फर कोई मतलब ही न रहा उससे मलने, न मलने का; वह सोसलेस हो गई; वह साद ही हो गया। जतनी बड़ी भीड़ म हम ह, उतना ादा म हमारा स , सघन और कंड ड हो जाता है। इस लए भीड़ के बाहर, सरे से हटकर अपने म को गराने क सदा को शश क गई है। ले कन कह भी जाओ, अगर ब त देर तुम एक वृ के पास रहोगे, तुम उस वृ से बात करने लगोगे और वृ को तू बना लोगे। अगर तुम ब त देर सागर के पास रह जाओगे, दस-पांच वष, तो तुम सागर से बोलने लगोगे और सागर को तू बना लोगे। वह हमारा म जो है, आ खरी उपाय करे गा, वह तू पैदा कर लेगा, अगर तुम बाहर भी भाग गए कह तो, और वह उनसे भी राग का संबंध बना लेगा, और उनको भी ऐसे देखने लगेगा जैसे क आकार म। भ और भगवान के त ै म अहं कार क सुर ा अगर कोई बलकुल ही आ खरी त म भी प ं च जाता है, तो फर वह ई र को तू बनाकर खड़ा कर लेता है, ता क अपने म को बचा सके। और भ नरं तर कहता रहता है क हम परमा ा के साथ एक कैसे हो सकते ह? वह वह है, हम हम ह! कहां हम उसके चरण म और कहां वह भगवान! वह कुछ और नह कह रहा, वह यह कह रहा है क अगर उससे एक होना है तो इधर म खोना पड़ेगा। तो उसे वह र बनाकर रखता है क वह तू है। और बात वह रे शनलाइज करता है; वह कहता है क हम उसके साथ एक कैसे हो सकते ह! वह महान है, वह परम है; हम ु ह, हम प तत ह; हम कहां एक हो सकते ह! ले कन वह उसके तू को बचाता है क इधर म उसका बच जाए। इस लए भ जो है, वह चौथे शरीर के ऊपर नह जा पाता। वह पांचव शरीर तक भी नह जा पाता, वह चौथे शरीर पर अटक जाता है। हां, चौथे शरीर क क ना क जगह वज़न

आ जाता है उसका। चौथे शरीर म जो े तम संभावना है, वह खोज लेता है। तो भ के जीवन म ऐसी ब त सी घटनाएं होने लगती ह जो मरे कुलस ह; ले कन रह जाता है चौथे पर। के नाम नह ले रहा, इस लए म इस तरह कह रहा ं । चौथे पर रह जाता है भ । भ , हठयोगी और राजयोगी क या ा आ साधक, हठयोगी, और ब त तरह के योग क याओं म लगनेवाला आदमी ादा से ादा पांचव शरीर तक प ं च पाता है; क ब त गहरे म वह यह कह रहा है क मुझे आनंद चा हए; ब त गहरे म वह यह कह रहा है क मुझे मु चा हए; ब त गहरे म वह यह कह रहा है क मुझे ख- नरोध चा हए--ले कन सब चा हए के पीछे म मौजूद है। मुझे मु चा हए! म से मु नह , म क मु ! मुझे मु होना है, मुझे मो चा हए। वह म उसका सघन खड़ा रह जाता है। वह पांचव शरीर तक प ं च पाता है। राजयोगी छठव तक प ं च जाता है। वह कहता है--म का ा रखा है! म कुछ भी नह ; वही है! म नह , वही है; ही सब कुछ है। वह म को खोने क तैयारी दखलाता है, ले कन अ ता को खोने क तैयारी नह दखलाता। वह कहता है--र ं गा म, के साथ एक उसका अंश होकर। र ं गा म, के साथ एक होकर; उसी के साथ म एक ं ; म ही ं ; म तो छोड़ ं गा, ले कन जो असली है मेरे भीतर वह उसके साथ एक होकर रहेगा। वह छठव तक प ं च पाता है। सातव तक बु जैसा साधक प ं च पाता है, क वह खोने को तैयार है-को भी खोने को तैयार है; अपने को भी खोने को तैयार है; वह सब खोने को तैयार है। वह यह कहता है क जो है, वही रह जाए; मेरी कोई अपे ा नह क यह बचे, यह बचे, यह बचे-मेरी कोई अपे ा ही नह । सब खोने को तैयार है। और जो सब खोने को तैयार है, वह सब पाने का हकदार हो जाता है। तो नवाण शरीर तो ऐसी हालत म ही मल सकता है जब शू और न हो जाने क भी हमारी तैयारी है; मृ ु को भी जानने क तैयारी है। जीवन को जानने क तैया रयां तो ब त ह। इस लए जीवन को जाननेवाला छठव शरीर पर क जाएगा। मृ ु को भी जानने क जसक तैयारी है, वह सातव को जान पाएगा। तुम चाहोगे तो नाम तुम खोज सकोगे, उसम ब त क ठनाई नह होगी। चौथे शरीर क वै ा नक संभावनाएं : ओशो, आपने कहा क चौथे शरीर म क ना और क मता का जब पांतरण होता है तो आदमी को द व रउपल होती है । अभी तक पता नह कतने लोग इस चौथे शरीर तक प ं च चुके ह। जैसा आपने कहा क चौथी े ज तक व ान वक सत हो चुका है । अगर ऐसी बात होती तो आज व ान जन चीज क खोज कर रहा है , उन चीज के संबंध म उन लोग ने, जो चौथे शरीर तक गए ह, उनक ा क सूचना नह दी? उनक अ भ नह ं क ? एक छोटी सी बात! आज चांद पर प चा आ आदमी वहां क अ भ कर सकता है , ले कन चौथी े ज पर प ं चा आ कोई भी , कसी दे श म, कह भी उसक सही-सही त का वणन नह कर सका। चांद तो ब त र है , हमारी पृ ी के बारे म भी यह नह बता

सका क पृ ी च

र लगा रही है या सूय इसका च

र लगा रहा है !

समझा! यह बलकुल ठीक सवाल है। इसम तीन-चार बात समझने जैसी ह। पहली बात तो समझने जैसी यह है क ब त सी बात इस चौथे शरीर को उपल लोग ने बताई ह। ब त सी बात इस चौथे शरीर को उपल लोग ने बताई ह। और उनको गना जा सकता है क कतनी बात उ ने बताई ह। अब जैस,े पृ ी कब बनी, इसके संबंध म जो पृ ी क उ चौथे शरीर के लोग ने बताई है, उसम और व ान क उ म थोड़ा सा ही फासला है। और अभी भी यह नह कहा जा सकता क व ान जो कह रहा है वह सही है; अभी भी यह नह कहा जा सकता। अभी व ान भी यह दावा नह कर सकता। फासला ब त थोड़ा है, फासला ब त ादा नह है। सरी बात, पृ ी के संबंध म, पृ ी क गोलाई और पृ ी क गोलाई के माप के संबंध म जो चौथे शरीर के लोग ने खबर दी है, उसम और व ान क खबर म और भी कम फासला है। और यह जो फासला है, ज री नह है क वह जो चौथे शरीर को उपल लोग ने बताई है, वह गलत ही हो; क पृ ी क गोलाई म नरं तर अंतर पड़ता रहा है। आज पृ ी जतनी सूरज से र है, उतनी र सदा नह थी; और आज पृ ी से चांद जतना र है, उतना सदा नह था। आज जहां अ का है, वहां पहले नह था। एक दन अ का ह ान से जुड़ा आ था। हजार घटनाएं बदल गई ह, वे रोज बदल रही ह। उन बदलती ई सारी बात को अगर खयाल म रखा जाए तो बड़ी आ यजनक बात मालूम पड़ेगी क व ान क ब त सी खोज चौथे शरीर के लोग ने ब त पहले खबर दी ह। अत य अनुभव क अ भ म क ठनाई यह भी समझने जैसा मामला है क व ान के और चौथे शरीर तक प ं चे ए लोग क भाषा म बु नयादी फक है, इस वजह से बड़ी क ठनाई होती है। क चौथे शरीर को जो उपल है, उसके पास कोई मैथेमे टकल ल ेज नह होती। उसके पास तो वज़न और प र और सबल क ल ेज होती है; उसके पास तो तीक क ल ेज होती है। सपने म कोई भाषा होती भी नह ; वज़न म भी कोई भाषा नह होती। अगर हम गौर से समझ, तो हम दन म जो कुछ सोचते ह, अगर रात हम उसका ही सपना देखना पड़े, तो हम तीक भाषा चुननी पड़ती है, तीक चुनना पड़ता है; क भाषा तो होती नह । अगर म मह ाकां ी आदमी ं और दन भर आशा करता ं क सबके ऊपर नकल जाऊं, तो रात म जो सपना देखूंगा उसम म प ी हो जाऊंगा और आकाश म उड़ जाऊंगा, और सबके ऊपर हो जाऊंगा। ले कन सपने म म यह नह कह सकता क म मह ाकां ी ं । म इतना ही कर सकता ं क--सपने म सारी भाषा बदल जाएगी--म एक प ी बनकर आकाश म उडूंगा, सबके ऊपर उडूंगा। तो वज़न क भी जो भाषा है, वह श क नह है, प र क है। और जस तरह अभी ीम इं टर टे शन ायड और जुंग और एडलर के बाद वक सत आ क क हम ा ा कर, तभी हम पता लगा पाएं गे क मतलब ा है; इसी तरह चौथे शरीर के लोग ने जो कुछ कहा है, उसका इं टर टे शन, ा ा अभी भी होने को है, वह अभी हो नह गई है। अभी तो ीम क ा ा भी पूरी नह हो पा रही है, अभी वज़न क ा ा तो ब त

सरी बात है-- क वज़न म जन लोग ने जो देखा है, उनका मतलब ा है? वे ा कह रहे ह? ह ओं के अवतार जै वक- वकास म के तीका क प अब जैस,े उदाहरण के लए, डा वन ने जब कहा क आदमी वक सत आ है जानवर से, तो उसने एक वै ा नक भाषा म यह बात लखी। ले कन ह ान म ह ओं के अवतार क अगर हम कहानी पढ़, तो हम पता चलेगा क वह अवतार क कहानी डा वन के ब त पहले बलकुल ठीक तीक कहानी है। पहला अवतार आदमी नह है, पहला अवतार मछली है। और डा वन का भी पहला जो प है मनु का, वह मछली है। अब यह सबा लक ल ेज ई क हम कहते ह जो पहला अवतार पैदा आ, वह मछली था-म ावतार। ले कन यह जो भाषा है, यह वै ा नक नह है। अब कहां अवतार और कहां म ! हम इनकार करते रहे उसको। ले कन जब डा वन ने कहा क मछली जो है जीवन का पहला त है, पृ ी पर पहले मछली ही आई है, इसके बाद ही जीवन क सरी बात आ ! ले कन उसका जो ढं ग है, उसक जो खोज है, वह वै ा नक है। अब ज ने वज़न म देखा होगा, उ ने यह देखा क पहला जो भगवान है वह मछली म ही पैदा आ है। अब यह वज़न जब भाषा बोलेगा, तो वह इस तरह क भाषा बोलेगा जो पैरेबल क होगी। फर कछु आ है। अब कछु आ जो है, वह जमीन और पानी दोन का ाणी है। न त ही, मछली के बाद एकदम से कोई ाणी पृ ी पर नह आ सकता; जो भी ाणी आया होगा, वह अध जल और अध थल का रहा होगा। तो सरा जो वकास आ होगा, वह कछु ए जैसे ाणी का ही हो सकता है, जो जमीन पर भी रहता हो और पानी म भी रहता हो। और फर धीरे -धीरे कछु ओं के कुछ वंशज जमीन पर ही रहने लगे ह गे और कुछ पानी म ही रहने लगे ह गे, और तब वभाजन आ होगा। अगर हम ह ओं के चौबीस अवतार क कहानी पढ़, तो हम इतनी हैरानी होगी इस बात को जानकर क जसको डा वन हजार साल बाद पकड़ पाया, ठीक वही वकास म हमने पकड़ लया! फर जब मनु अवतार पैदा आ उसके पहले आधा मनु और आधा सह का नर सह अवतार है। आ खर जानवर भी एकदम से आदमी नह बन सकते, जानवर को भी आदमी बनने म एक बीच क कड़ी पार करनी पड़ी होगी, जब क कोई आदमी आधा आदमी और आधा जानवर रहा होगा। यह असंभव है क छलांग सीधी लग गई हो-- क एक जानवर को एक ब ा पैदा आ हो जो आदमी का हो। जानवर से आदमी के बीच क एक कड़ी खो गई है, जो नर सह क ही होगी-- जसम आधा जानवर होगा और आधा आदमी होगा। पुराण म छपी वै ा नक संभावनाएं अगर हम यह सारी बात समझ तो हम पता चलेगा क जसको डा वन ब त बाद म व ान क भाषा म कह सका, चौथे शरीर को उपल लोग ने उसे पुराण क भाषा म ब त पहले कहा है। ले कन आज भी, अभी भी पुराण क ठीक-ठीक ा ा नह हो पाती है, उसक वजह यह है क पुराण बलकुल नासमझ लोग के हाथ म पड़ गया है, वह वै ा नक के हाथ म नह है। पृ ी क आयु क पुराण म घोषणा

अ ा सरी क ठनाई यह हो गई है क पुराण को खोलने के जो कोड ह, वे सब खो गए ह, वे नह ह हमारे पास। इस लए बड़ी अड़चन हो गई है। ब त बाद म व ान यह कहता है क आदमी ादा से ादा चार हजार वष तक पृ ी पर और जी सकता है। अब व ान ऐसा कहता है। ले कन इसक भ व वाणी ब त से पुराण म है। और यह व करीबकरीब वही है जो पुराण म है, क चार हजार वष से ादा पृ ी नह टक सकती। हां, व ान और भाषा बोलता है। वह बोलता है क सूय ठं डा होता जा रहा है, उसक करण ीण होती जा रही ह, उसक गम क ऊजा बखरती जा रही है, वह चार हजार वष म ठं डा हो जाएगा। उसके ठं डे होते से ही पृ ी पर जीवन समा हो जाएगा। पुराण और तरह क भाषा बोलते ह। ले कन.और अभी भी यह प ा नह है, क ये चार हजार वष और अगर पुराण कह पांच हजार वष, तो अभी भी यह प ा नह है क व ान जो कहता है वह बलकुल ठीक ही कह रहा है, पांच हजार भी हो सकते ह। और मेरा मानना है क पांच हजार ही ह गे। क व ान के ग णत म भूल-चूक हो सकती है, वज़न म भूलचूक नह होती। और इसी लए व ान रोज सुधरता है--कल कुछ कहता है, परस कुछ कहता है, रोज हम बदलना पड़ता है; ूटन कुछ कहता है, आइं ीन कुछ कहता है। हर पांच वष म व ान को अपनी धारणा बदलनी पड़ती है, क और ए े उसको पता लगता है क और भी ादा ठीक यह होगा। और ब त मु ल है यह बात तय करनी क अं तम जो हम तय करगे, वह चौथे शरीर म देखे गए लोग से ब त भ होगा। और अभी भी जो हम जानते ह, उस जानने से अगर मेल न खाए, तो ब त ज ी नणय लेने क ज रत नह है; क जदगी इतनी गहरी है क ज ी नणय सफ अवै ा नक च ही ले सकता है; जदगी इतनी गहरी है! अब अगर हम वै ा नक के ही सारे स को देख, तो हम पाएं गे क उनम से सौ साल म सब व ान के स पुराण-कथाएं हो जाते ह, उनको फर कोई मानने को तैयार नह रह जाता; क सौ साल म और बात खोज म आ जाती ह। अब जैस,े पुराण के जो स थे, उनका कोड खो गया है; उनको खोलने क जो कुंजी है, वह खो गई है। उदाहरण के लए, समझ ल क कल तीसरा महायु हो जाए। और तीसरा महायु अगर होगा, तो उसके जो प रणाम ह गे, पहला प रणाम तो यह होगा क जतना श त, सुसं ृ त जगत है वह मर जाएगा। यह बड़े आ य क बात है! अ श त और असं ृ त जगत बच जाएगा। कोई आ दवासी, कोई कोल, कोई भील जंगल-पहाड़ पर बच जाएगा। बंबई म नह बच सकगे आप, ूयाक म नह बच सकगे। जब भी कोई महान यु होता है, तो जो उस समाज का े तम वग है, वह सबसे पहले मर जाता है; क चोट उस पर होती है। ब र क रयासत का एक कोल और भील बच जाएगा। वह अपने ब से कह सकेगा क आकाश म हवाई जहाज उड़ते थे। ले कन बता नह सकेगा, कैसे उड़ते थे। तो उसने उड़ते देखे ह, वह झूठ नह बोल रहा। ले कन उसके पास कोई कोड नह है; क जनके पास कोड था वे बंबई म थे, वे मर गए ह। और ब े एकाध-दो पीढ़ी तक तो भरोसा करगे, इसके बाद ब े कहगे क आपने देखा? तो उनके बाप कहगे--नह , हमने सुना; ऐसा हमारे पता कहते थे। और उनके पता से उ ने सुना था क आकाश म हवाई जहाज उड़ते थे, फर यु आ और फर सब ख हो गया। ब े धीरे -धीरे कहगे क कहां

ह वे हवाई जहाज? कहां ह उनके नशान? कहां ह वे चीज? दो हजार साल बाद वे ब े कहगे--सब कपोल-क ना है, कभी कोई नह उड़ा-करा। महाभारत यु तक वक सत े व ान न हो गया ठीक ऐसी घटनाएं घट गई ह। महाभारत ने इस देश के पास साइ कक माइं ड से जो-जो उपल ान था, वह सब न कर दया, सफ कहानी रह गई। सफ कहानी रह गई। अब हम शक आता है क राम जो ह वे हवाई जहाज पर बैठकर लंका से आए ह , हम शक आता है। यह शक क बात है, क एक साइ कल भी तो नह छूट गई उस जमाने क , हवाई जहाज तो ब त र क बात है। और कसी ंथ म कोई एक सू भी तो नह छूट गया। असल म, महाभारत के बाद उसके पहले का सम ान न हो गया; ृ त के ारा जो याद रखा जा सका, वह रखा गया। इस लए पुराने ंथ का नाम ृ त है, वह मेमोरी है। सुनी ई बात है, वह देखी ई बात नह है। इस लए पुराने ंथ को हम कहते ह-- ृ त, ु त--सुनी ई और रण रखी गई; वह देखी ई बात नह है। कसी ने कसी को कही थी, कसी ने कसी को कही थी, कसी ने कसी को कही थी, वह हम बचाकर रख लए ह, ऐसा आ था। ले कन अब हम कुछ भी नह कह सकते क वह आ था; क उस समाज का जो े तम बु मान वग था.और ान रहे, नया क जो बु म ा है, वह दस-प ीस लोग के पास होती है। अगर एक आइं ीन मर जाए तो रले ट वटी क थयरी बतानेवाला सरा आदमी खोजना मु ल हो जाता है। आइं ीन खुद कहता था अपनी जदगी म क दस-बारह आदमी ही ह केवल जो मेरी बात समझ सकते ह--पूरी पृ ी पर। अगर ये बारह आदमी मर जाएं तो हमारे पास कताब तो होगी जसम लखा है क रलेि टवटी क एक थयरी होती है, ले कन एक आदमी समझनेवाला, एक समझानेवाला नह होगा। तो महाभारत ने े तम य को न कर दया; उसके बाद जो बात रह ग वे कहानी क रह ग । ले कन अब माण खोजे जा रहे ह, और अब खोजा जा सकता है। ले कन हम तो अभागे ह; क हम तो कुछ भी नह खोज सकते। परा मड के नमाण म मनस श का उपयोग ऐसी जगह खोजी गई ह, जो इस बात का सबूत देती ह क वे कम से कम तीन हजार या चार हजार या पांच हजार वष पुरानी ह, और कसी व उ ने वायुयान को उतरने के लए एयरपोट का काम कया है। ऐसी जगह खोजी गई ह। अ ा, उतने बड़े ान को बनाने क और कोई ज रत नह थी। ऐसी चीज खोज ली गई ह जो क ब त बड़ी यां क व ा के बना नह बन सकती थ । जैसे परा मड पर चढ़ाए गए प र ह। ये परा मड पर चढ़ाए गए प र आज भी हमारे बड़े से बड़े े न क साम के बाहर पड़ते ह। ले कन ये प र चढ़ाए गए, यह तो साफ है; ये प र चढ़ाकर और रखे गए, यह तो साफ है। और ये आदमी ने चढ़ाए ह। इन आद मय के पास कुछ चा हए। तो या तो मशीन रही हो; और या फर म कहता ं , चौथे शरीर क कोई श रही हो। वह म आपसे कहता ं , उसको आप कभी योग करके देख। एक आदमी को आप लटा ल और चार आदमी चार तरफ खड़े हो जाएं । दो आदमी उसके पैर के घुटने के नीचे दो अंगु लयां लगाएं दोन तरफ और दो आदमी उसके दोन

कंध के नीचे अंगु लयां लगाएं --एक-एक अंगुली ही लगाएं । और चार संक कर क हम एक-एक अंगुली से इसे उठा लगे! और चार ास को ल पांच मनट तक जोर से, इसके बाद ास रोक ल और उठा ल। वह एक-एक अंगुली से आदमी उठ जाएगा। तो परा मड पर जो प र चढ़ाए गए, या तो े न से चढ़ाए गए और या फर साइ कक फोस से चढ़ाए गए-- क चार आद मय ने एक बड़े प र को एक-एक अंगुली से उठा दया। इसके सवाय कोई उपाय नह है। ले कन वे प र चढ़े ह, वे सामने ह; और उनको इनकार नह कया जा सकता, क वे प र चढ़े ए ह। जीवन के अ ात रह क मनस श ारा खोज और सरी बात जो जानने क है वह यह जानने क है क साइ कक फोस क इन फ नट डायमशन ह। एक आदमी जसको चौथा शरीर उपल आ है, वह चांद के संबंध म ही जाने, यह ज री नह है। वह जानना ही न चाहे, चांद के संबंध म जानना ही न चाहे, जानने क उसे कोई ज रत भी नह है। वे जो चौथे शरीर को वक सत करनेवाले लोग थे, वे कुछ और चीज जानना चाहते थे, उनक उ ुकता क और चीज म थी, और ादा क मती चीज म थी। उ ने वे जान । वे ेत को जानना चाहते थे क ेता ा है या नह ? वह उ ने जाना। और अब व ान खबर दे रहा है क ेता ा है। वे जानना चाहते थे क लोग मरने के बाद कहां जाते ह? कैसे जाते ह? क चौथे शरीर म जो प ं च गया है उसक पदाथ के त उ ुकता कम हो जाती है; उसक चता ब त कम रह जाती है क जमीन क गोलाई कतनी है। उसका कारण है क वह जस त म खड़ा होता है. जैसे एक बड़ा आदमी है। छोटे ब े उससे कह क हम तु ानी नह मानते, क तुम कभी नह बताते क यह गु ा कैसे बनता है। हम तु ानी कैसे मान! एक लड़का हमारे पड़ोस म है, वह बताता है क गु ा कैसे बनता है, वह ादा ानी है। उनका कहना ठीक है, उनक उ ुकता का भेद है। एक बड़े आदमी को कोई उ ुकता नह है क गु े के भीतर ा है; ले कन छोटे ब े को है। चौथे शरीर म प ं चे ए आदमी क इं ायरी बदल जाती है; वह कुछ और जानना चाहता है। वह जानना चाहता है क मरने के बाद आदमी का या ापथ ा है? वह कहां जाता है? वह कस या ापथ से या ा करता है? उसक या ा के नयम ा ह? वह कैसे ज ता है, वह कहां ज ता है, कब ज ता है? उसके ज को ा सु नयो जत कया जा सकता है? उसक उ ुकता इसम नह थी क चांद पर आदमी प ं चे, क यह बेमानी है, इसका कोई मतलब नह है। उसक उ ुकता इसम थी क आदमी मु म कैसे प ं चे? और वह ब त मी नगफुल है। उसक फकर थी क जब एक ब ा गभ म आता है तो आ ा कैसे वेश करती है? ा हम गभ चुनने म उसके लए सहयोगी हो सकते ह? कतनी देर लगती है? त त म मृत आ ाओं पर योग अब त त म एक कताब है: तबेतन बुक ऑफ द डेड। तो अब त त का जो भी चौथे शरीर को उपल आदमी था, उसने सारी मेहनत इस बात पर क है क मरने के बाद हम

कसी आदमी को ा सहायता प ं चा सकते ह। आप मर गए, म आपको ेम करता ं , ले कन मरने के बाद म आपको कोई सहायता नह प ं चा सकता। ले कन त त म पूरी व ा है सात स ाह क , क मरने के बाद सात स ाह तक उस आदमी को कैसे सहायता प ं चाई जाए; और उसको कैसे गाइड कया जाए; और उसको कैसे वशेष ज लेने के लए उ े रत कया जाए; और उसे कैसे वशेष गभ म वेश करवा दया जाए। अभी व ान को व लगेगा क वह इन सब बात का पता लगाए; ले कन यह लग जाएगा पता, इसम अड़चन नह है। और फर इसक वै ल डटी के भी सब उ ने उपाय खोजे थे क इसक जांच कैसे हो। धान लामा के चुनाव क व ध अभी फलहाल जो लामा है. त त म लामा जो है, पछला लामा जो मरता है, वह बताकर जाता है क अगला म कस घर म ज लूंगा; और तुम मुझे कैसे पहचान सकोगे, उसके सब दे जाता है। फर उसक खोज होती है पूरे मु म क वह अब ब ा कहां है। और जो ब ा उस सबल का राज बता देता है, वह समझ लया जाता है क वह पुराना लामा है। और वह राज सवाय उस आदमी के कोई बता नह सकता, जो बता गया था। तो यह जो लामा है, ऐसे ही खोजा गया। पछला लामा कहकर गया था। इस ब े क खोज ब त दन करनी पड़ी। ले कन आ खर वह ब ा मल गया। क एक खास सू था जो क हर गांव म जाकर च ाया जाएगा और जो ब ा उसका अथ बता दे, वह समझ लया जाएगा क वह पुराने लामा क आ ा उसम वेश कर गई। क उसका अथ तो कसी और को पता ही नह था; वह तो ब त सी े ट मामला है। तो वह चौथे शरीर के आदमी क ू रआ सटी अलग थी। वह अपनी उस ज ासा.और अनंत है यह जगत, और अनंत ह इसके राज, और अनंत ह इसके रह । अब ये जतनी साइं स को हमने ज दया है, भ व म ये ही साइं स रहगी, यह मत सो चए, और नई हजार साइं स पैदा हो जाएं गी, क और हजार आयाम ह जानने के। और जब वे नई साइं सेस पैदा ह गी, तब वे कहगी क पुराने लोग वै ा नक न रहे, वे यह नह बता पाए? नह , हम कहगे: पुराने लोग भी वै ा नक थे, उनक ज ासा और थी। ज ासा का इतना फक है क जसका कोई हसाब नह । वन तय से बात करनेवाला वै लुकमान अब जैसे क हम कहगे क आज बीमा रय का इलाज हो गया है, पुराने लोग ने इन बीमा रय के इलाज न बता दए! ले कन आप हैरान ह गे जानकर क आयुवद म या यूनानी म इतनी जड़ी-बू टय का हसाब है, और इतना हैरानी का है क जनके पास कोई योगशालाएं न थ वे कैसे जान सके क यह जड़ी-बूटी फलां बीमारी पर इस मा ा म काम करे गी? तो लुकमान के बाबत कहानी है। क कोई योगशाला तो नह थी, पर चौथे शरीर से काम हो सकता था। लुकमान के बाबत कहानी है क वह एक-एक पौधे के पास जाकर पूछेगा क तू कस काम म आ सकता है, यह बता दे। अब यह कहानी बलकुल फजूल हो गई है आज। आज कोई पौधे से. ा मतलब है इस बात का? ले कन अभी पचास साल

पहले तक हम नह मानते थे क पौधे म ाण है। इधर पचास साल म व ान ने ीकार कया क पौधे म ाण है। इधर तीस साल पहले तक हम नह मानते थे क पौधा ास लेता है। इधर तीस साल म हमने ीकार कया क पौधा ास लेता है। अभी पछले पं ह साल तक हम नह मानते थे क पौधा फ ल करता है। अभी पं ह साल म हमने ीकार कया क पौधा अनुभू त भी करता है। और जब आप ोध से पौधे के पास जाते ह तब पौधे क मनोदशा बदल जाती है; और जब आप ेम से जाते ह तो मनोदशा बदल जाती है। कोई आ य नह क आनेवाले पचास साल म हम कह क पौधे से बोला जा सकता है। यह तो मक वकास है। और लुकमान स हो सही क उसने पूछा हो पौध से क कस काम म आएगा, यह बता दे। ले कन यह ऐसी बात नह क हम सामने बोल सक, यह चौथे शरीर पर संभव है। यह चौथे शरीर पर संभव है क पौधे को आ सात कया जा सके, उसी से पूछ लया जाए। और म भी मानता ं , क कोई लेबोरे टरी इतनी बड़ी नह मालूम पड़ती क लुकमान लाख-लाख जड़ी-बू टय का पता बता सके। यह इसका कोई उपाय नह है; क एकएक जड़ी-बूटी क खोज करने म एक-एक लुकमान क जदगी लग जाती है। वह एक लाख-करोड़ जड़ी-बू टय के बाबत कह रहा है क यह इस काम म आएगी। और अब व ान सही कहता है क हां, वह इस काम म आती है। वह आ रही है इस काम म। यह जो सारी क सारी खोजबीन अतीत क है, वह सारी क सारी खोजबीन चौथे शरीर म उपल लोग क ही है। और उ ने ब त बात खोजी थ , जनका हम खयाल ही नह है। अब जैसे क हम हजार बीमा रय का इलाज कर रहे ह जो बलकुल अवै ा नक है। चौथे शरीरवाला आदमी कहेगा: ये तो बीमा रयां ही नह ह, इनका तुम इलाज कर रहे हो? ले कन अब व ान समझ रहा है। अभी एलोपैथी नये योग कर रही है। अभी अमे रका के कुछ हा ट म उ ने. दस मरीज ह एक ही बीमारी के, तो पांच मरीज को वे पानी का इं जे न दे रहे ह, पांच को दवा दे रहे ह। बड़ी हैरानी क बात यह है क दवावाले भी उसी अनुपात म ठीक होते ह और पानीवाले भी उसी अनुपात म ठीक होते ह। इसका अथ यह आ क पानी से ठीक होनेवाले रो गय को वा व म कोई रोग नह था, ब उ बीमार होने का म भर था। अगर ऐसे लोग को, ज क बीमार होने का म है, दवाइयां दी ग तो उसका वषा और वपरीत प रणाम होगा। उनका इलाज करने क कोई ज रत नह है। इलाज करने से नुकसान हो रहा है, और ब त सी बीमा रयां इलाज करने से पैदा हो रही ह, जनको फर ठीक करना मु ल होता चला जाता है। क अगर आपको बीमारी नह है, और आपको फटम बीमारी है, और आपको असली दवाई दे दी गई, तो आप मु ल म पड़े। अब वह असली दवाई कुछ तो करे गी आपके भीतर जाकर; वह पायज़न करे गी, वह आपको द त म डालेगी। अब उसका इलाज चलाना पड़ेगा। आ खर म फटम बीमारी मट जाएगी और असली बीमारी पैदा हो जाएगी। और सौ म से, पुराना व ान तो कहता है, न े तशत बीमा रयां फटम ह। अभी

पचास साल पहले तक एलोपैथी नह मानती थी क फटम बीमारी होती है। ले कन अब एलोपैथी कहती है, पचास परसट तक हम राजी ह। म कहता ं , न े परसट तक चालीस वष म, पचास वष म राजी होना पड़ेगा; न े परसट तक राजी होना पड़ेगा। क अस लयत वही है। व ान क भाषा अलग और पुराण क अलग यह जो.इस चौथे शरीर म जो आदमी ने जाना है, उसक ा ा करनेवाला आदमी नह है, उसक ा ा खोजनेवाला आदमी नह है। उसको ठीक जगह पर, ठीक आज के पसपे व म और आज के व ान क भाषा म रख देनेवाला आदमी नह है। वह तकलीफ हो गई है। और कोई तक लीफ नह हो गई है। और जरा भी तकलीफ नह है। अब होता ा है, जैसा मने कहा क पैरेबल क जो भाषा है वह अलग है। सूरज के सात घोड़े आज व ान कहता है क सूरज क हर करण म से नकलकर सात ह म टूट जाती है, सात रं ग म बंट जाती है। वेद का ऋ ष कहता है क सूरज के सात घोड़े ह, सात रं ग के घोड़े ह। अब यह पैरेबल क भाषा है। सूरज क करण सात रं ग म टूटती है; सूरज के सात घोड़े ह, सात रं ग के घोड़े ह, उन पर सूरज सवार है। अब यह कहानी क भाषा है। इसको कसी दन हम समझना पड़े क यह पुराण क भाषा है, यह व ान क भाषा है। ले कन इन दोन म गलती ा है? इसम क ठनाई ा है? यह ऐसे भी समझी जा सकती है। इसम कोई अड़चन नह है। व ान ब त पीछे समझ पाता है ब त सी बात को। असल म, साइ कक फोस के आदमी ब त पहले े ड कर जाते ह। ले कन जब वे े ड करते ह तब भाषा नह होती। भाषा तो बाद म जब व ान खोजता है तब बनती है; पहले भाषा नह होती। अब जैसे क आप हैरान ह गे, कोई भी ग णत है, ल ेज है, कोई भी दशा म अगर आप खोजबीन कर, तो आप पाएं गे-- व ान तो आज आया है, भाषा तो ब त पहले आई, ग णत ब त पहले आया। जन लोग ने यह सारी खोजबीन क , ज ने यह सारा हसाब लगाया, उ ने कस हसाब से लगाया होगा? उनके पास ा मा म रहे ह गे, उ ने कैसे नापा होगा? उ ने कैसे पता लगाया होगा क एक वष म पृ ी सूरज का एक च र लगा लेती है? एक वष म च र लगाती है, उसी हसाब से वष है। वष तो ब त पुराना है, व ान के ब त पहले का है। वष म तीन सौ पसठ दन होते ह, यह तो व ान के ब त पहले हम पता ह। जब तक क ने यह देखा न हो.ले कन देखने का कोई वै ा नक साधन नह था। तो सवाय साइ कक वज़न के और कोई उपाय नह था। मनस श ारा पृ ी को अंत र से देखना एक ब त अदभुत चीज मली है। अरब म एक आदमी के पास सात सौ वष पुराना नया का न ा मला है--सात सौ वष पुराना नया का न ा है। और वह न ा ऐसा है क बना हवाई जहाज के ऊपर से बनाया नह जा सकता; क वह न ा जमीन पर देखकर बनाया आ नह है। बन नह सकता। आज भी पृ ी हवाई जहाज पर से जैसी दखाई पड़ती है, वह न ा वैसा है। और वह सात सौ वष पुराना है।

तो अब दो ही उपाय ह: या तो सात सौ वष पहले हवाई जहाज हो, जो क नह था। सरा उपाय यही है क कोई आदमी अपने चौथे शरीर से इतना ऊंचा उठकर जमीन को देख सके और न ा ख चे। सात सौ वष पहले हवाई जहाज नह था, यह तो प ा है। इसक कोई क ठनाई नह है। यह तय है। सात सौ वष पहले हवाई जहाज नह था, ले कन यह सात सौ वष पुराना न ा इस तरह है जैसे क ऊपर से देखकर बनाया गया है। तो अब इसका ा. शरीर क सू तम अंतस-रचना का ान अगर हम चरक और सु ुत को समझ तो हम हैरानी हो जाएगी। आज हम आदमी के शरीर को काट-पीटकर जो जान पाते ह, उसका वणन तो है। तो दो ही उपाय ह: या तो सजरी इतनी बारीक हो गई हो। जो क नह दखाई पड़ती; क सजरी का एक इं ू मट नह मलता, सजरी के व ान क कोई कताब नह मलती है। ले कन आदमी के भीतर के बारीक से बारीक ह े का वणन है। और ऐसे ह का भी वणन है जो व ान ब त बाद म पकड़ पाया है; जो अभी पचास साल पहले इनकार करता था, उनका भी वणन है क वे वहां भीतर ह। तो एक ही उपाय है क कसी ने वज़न क हालत म के भीतर वेश करके देखा हो। असल म, आज हम जानते ह क ए रे क करण आदमी के शरीर म प ं च जाती है। सौ साल पहले अगर कोई आदमी कहता क हम आपके भीतर क ह य का च उतार सकते ह, हम मानने को राजी न होते। आज हम मानना पड़ता है, क वह उतार रहा है। ले कन ा आपको पता है क चौथे शरीर क त म आदमी क आंख ए रे से ादा गहरा देख पा सकती है, और आपके शरीर का पूरा-पूरा च बनाया जा सकता है, जो क कभी काट-पीटकर नह कया गया। और ह ान जैसे मु म, जहां क हम मुद को जला देते थे, काटने-पीटने का उपाय नह था। सजरी प म म इस लए वक सत ई क मुद गड़ाए जाते थे, नह तो हो नह सकती थी। और आप जानकर यह हैरान ह गे क यह अ े आद मय क वजह से वक सत नह ई, यह कुछ चोर क वजह से वक सत ई जो मुद को चुरा लाते थे। ह ान म तो वक सत हो नह सकती थी, क हम जला देते ह। और जलाने का हमारा खयाल था, कोई वजह थी, इस लए जलाते थे। यह साइ कक लोग का ही खयाल था क अगर शरीर बना रहे, तो आ ा को नया ज लेने म बाधा पड़ती है; वह उसी के आसपास घूमती रहती है। उसको जला दो, ता क इस झंझट से उसका छु टकारा हो जाए; वह इसके आसपास न घूमे; वह बात ही ख हो गई। और यह अपने सामने ही उस शरीर को जलता आ देख ले, जस शरीर को इसने समझा था क म ं । ता क सरे शरीर म भी इसको शायद ृ त रह जाए क यह शरीर तो जल जानेवाला है। तो हम उसको जलाते थे। इस लए सजरी वक सत न हो सक ; क आदमी को काटना पड़े, पीटना पड़े, टे बल पर रखना पड़े। यूरोप म भी चोर ने लोग क लाश चुरा-चुराकर वै ा नक के घर म प ं चा , मुकदमे चले, अदालत म द त , क वह लाश को लाना गैर-कानूनी था, और मरे ए आदमी को काटना जुम है। ले कन वे काट-काटकर जन बात पर प ं चे ह, उ बना काटे भी आज से तीन हजार

वष पुरानी कताब प ं च ग उन बात पर। तो इसका मतलब सफ इतना ही होता है क बना योग के भी क और दशाओं से भी चीज को जाना जा सका है। कभी इस पर पूरी ही आपसे बात करना चा ं गा। दस-पं ह दन बात करनी पड़े, तब थोड़ा खयाल म आ सकता है।

धम के असीम रह

: 15 सागर म

: ओशो, कल क चचा म आपने कहा क व ान का वेश पांचव शरीर, चुअल बॉडी तक संभव है । बाद म चौथे शरीर म व ान क संभावनाओं पर चचा क । आज कृपया पांचव शरीर म हो सकनेवाली कुछ वै ा नक संभावनाओं पर सं म काश डाल।

एक तो जसे हम शरीर कहते ह और जसे हम आ ा कहते ह, ये ऐसी दो चीज नह ह क जनके बीच सेतु न बनता हो, ज न बनता हो। इनके बीच कोई खाई नह है, इनके बीच जोड़ है। तो सदा से एक खयाल था क शरीर अलग है, आ ा अलग है; और ये दोन इस भां त अलग ह क इन दोन के बीच कोई सेत,ु कोई ज नह बन सकता। न केवल अलग ह, ब वपरीत ह एक- सरे से। इस खयाल ने धम और व ान को अलग कर दया था। धम वह था, जो शरीर के अ त र जो है उसक खोज करे ; और व ान वह था, जो शरीर क खोज करे --आ ा के अ त र जो है, उसक खोज करे । भावतः, दोन तरह क खोज एक को मानती और सरे को इनकार करती रही; क व ान जसे खोजता था, उसे वह कहता था: शरीर है, आ ा कहां! और धम जसे खोजता था, उसे वह मानता था: आ ा है, शरीर कहां! तो धम जब अपनी पूरी ऊंचाइय पर प ं चा तो उसने शरीर को इ ूजन और माया कह दया, क वह है ही नह ; आ ा ही स है, शरीर म है। और व ान जब अपनी ऊंचाइय पर प ं चा तो उसने कह दया क आ ा तो एक झूठ, एक अस है, शरीर ही सब कुछ है। यह ां त आ ा और शरीर को अ नवाय प से वरोधी त क तरह मानने से ई। अब मने सात शरीर क बात कही। ये सात शरीर.अगर पहला शरीर हम भौ तक शरीर मान ल और अं तम शरीर आ क मान ल, और बीच के पांच शरीर को छोड़ द, तो इनके बीच सेतु नह बन सकेगा। ऐसे ही जैसे जन सी ढ़य से चढ़कर आप आए ह, ऊपर क सीढ़ी बचा ल और पहली सीढ़ी बचा ल नीचे क , और बीच क सी ढ़य को छोड़ द, तो आपको लगेगा क पहली सीढ़ी कहां और सरी सीढ़ी कहां! बीच म खाई हो जाएगी। अगर आप सारी सी ढ़य को देख तो पहली सीढ़ी भी आ खरी सीढ़ी से जुड़ी है। और अगर ठीक से देख तो आ खरी सीढ़ी पहली सीढ़ी का ही आ खरी ह ा है; और पहली सीढ़ी आ खरी सीढ़ी का पहला ह ा है।

परमाणु ऊजा से भी सू ईथ रक ऊजा तो जब पूरे सात शरीर को हम समझगे, तब पहले और सरे शरीर म जोड़ बनता है। क पहला शरीर है भौ तक शरीर, फ जकल बॉडी; सरा शरीर है ईथ रक बॉडी, ईथर, भाव शरीर। वह भौ तक का ही सू तम प है। वह अभौ तक नह है, वह भौ तक का ही सू तम प है--इतना सू तम क भौ तक उपाय भी उसे पकड़ने म अभी ठीक से समथ नह हो पाते। ले कन अब भौ तकवादी इस बात को इनकार नह करता है क भौ तक का सू तम प करीब-करीब अभौ तक हो जाता है। अब जैसे आज व ान कहता है क अगर हम पदाथ को तोड़ते चले जाएं तो जो अं तम, पदाथ के व ेषण पर हम मलगे--इले ान, वे अभौ तक हो गए, वे इ ैटी रयल हो गए ह; क वे सफ व ुत के कण ह, उनम पदाथ और स टस जैसा कुछ भी नह बचा, सफ एनज और ऊजा बच रही है। इस लए बड़ी अदभुत घटना घटी है पछले तीस वष म क जो व ान यह बात ीकार करके चला था क पदाथ ही स है, वह व ान इस नतीजे पर प ं चा है क पदाथ तो बलकुल है ही नह , एनज और ऊजा ही स है; और पदाथ जो है वह एनज का, ऊजा का ती घूमता आ प है, इस लए म पैदा हो रहा है। एक पंखा हमारे ऊपर चल रहा है। यह पंखा इतने जोर से चलाया जा सकता है क इसक तीन पंखु ड़यां हम दखाई पड़नी बंद हो जाएं । और जब इसक तीन पंखु ड़यां हम दखाई पड़नी बंद हो जाएं गी, तो पंखा पंखु ड़यां न मालूम होकर, टीन का एक गोल च र घूम रहा है, ऐसा मालूम होगा। और तीन पंखु ड़य के बीच क जो खाली जगह है वह भर जाएगी, वह खाली नह रह जाएगी; क तीन पंखु ड़यां दखाई नह पड़गी। असल म, पंखु ड़यां इतनी तेजी से घूम सकती ह क इसके पहले क एक पंखुड़ी हटे एक जगह से और हमारी आंख से उसका त बब मटे , उसके पहले सरी पंखुड़ी उसक जगह आ जाती है; त बब पहला बना रहता है और सरा उसके ऊपर आ जाता है। इस लए बीच क जो खाली जगह है वह हम दखाई नह पड़ती। यह पंखा इतनी तेजी से भी घुमाया जा सकता है क आप इसके ऊपर मजे से बैठ सक और आपको पता न चले क नीचे कोई चीज बदल रही है। अगर दो पंखु ड़य के बीच क खाली जगह इतनी तेजी से भर जाए क एक पंखुड़ी आपके नीचे से हटे , आप इसके पहले क खाली जगह म से गर, सरी पंखुड़ी आपको स ाल ले, तो आपको दो पंखु ड़य के बीच का अंतर पता नह चलेगा। यह ग त क बात है। अगर ऊजा ती ग त से घूमती है तो हम पदाथ मालूम होती है। इस लए वै ा नक आज जस एटा मक एनज पर सारा का सारा व ार कर रहा है, उस एनज को कसी ने देखा नह है, सफ उसके इफे ् स, उसके प रणाम भर देखे ह। वह मूल अणु क श कसी ने देखी नह है, और कोई कभी देखेगा भी, यह भी अब सवाल नह है। ले कन उसके प रणाम दखाई पड़ते ह। ईथ रक बॉडी को अगर हम यह भी कह क वह मूल एटा मक बॉडी है, तो कोई हज नह है। उसके प रणाम दखाई पड़ते ह। ईथ रक बॉडी को कसी ने देखा नह है, सफ उसके प रणाम दखाई पड़ते ह। ले कन उन प रणाम क वजह से वह है, यह ीकार कर लेने क ज रत पड़ जाती है। यह जो सरा शरीर है, यह पहले भौ तक शरीर का ही सू तम प

है; इस लए इन दोन के बीच कोई सीढ़ी बनाने म क ठनाई नह है। ये दोन एक तरह से जुड़े ही ए ह--एक ूल है जो दखाई पड़ जाता है, सरा सू है इस लए दखाई नह पड़ता। ईथ रक ऊजा से भी सू ए ल ऊजा ईथ रक बॉडी के बाद तीसरा शरीर है, जसे हमने ए ल बॉडी, सू शरीर कहा। वह ईथर का भी सू तम प है। अभी व ान उस पर नह प ं चा है। अभी व ान इस खयाल पर तो प ं च गया है क अगर पदाथ को हम व ेषण कर, एना ल सस कर और तोड़ते चले जाएं , तो अंत म ऊजा बचती है। उस ऊजा को हम ईथर कह रहे ह। अगर ईथर को भी तोड़ा जा सके और उसके भी सू तम अंश बनाए जा सक, तो जो बचेगा वह ए ल है--सू शरीर है वह। वह सू का भी सू प है। अभी व ान वहां नह प ं चा, ले कन प ं च जाएगा। क कल वह भौ तक को ीकार करता था, आण वक को ीकार नह करता था। कल वह कहता था: पदाथ ठोस चीज है; आज वह कहता है: ठोस जैसी कोई चीज ही नह है; जो भी है, सब गैर-ठोस है, नॉन-सा लड हो गया सब। यह दीवाल भी जो हम इतनी ठोस दखाई पड़ रही है, ठोस नह है; यह भी पोरस है, इसम भी छेद ह, और चीज इसके आर-पार जा रही ह। फर भी हम कहगे क छेद के आसपास, जनके बीच छेद ह, वे तो कम से कम ठोस अणु ह गे! वे भी ठोस अणु नह ह। एक-एक अणु भी पोरस है। अगर हम एक अणु को बड़ा कर सक तो जमीन और चांद और तारे और सूरज के बीच जतना फासला है, उतना अणु के कण के बीच फासला है। अगर उसको इतना बड़ा कर सक तो फासला इतना ही हो जाएगा। फर वे जो फासले को भी जोड़नेवाले अणु ह, हम कहगे, कम से कम वे तो ठोस ह! ले कन व ान कहता है, वे भी ठोस नह ह, वे सफ व ुत कण ह। कण भी अब व ान मानने को राजी नह है; क कण के साथ पदाथ का पुराना खयाल जुड़ा आ है। कण का मतलब होता है: पदाथ का टुकड़ा। वे कण भी नह ह, क कण तो एक जैसा रहता है। वे पूरे व बदलते रहते ह। लहर क तरह ह, कण क तरह नह । जैसे पानी म एक लहर उठी, जब तक आपने कहा क लहर उठी, तब तक वह कुछ और हो गई। जब आपने कहा, वह रही लहर! तब तक वह कुछ और हो गई। क लहर का मतलब ही यह है क वह आ रही है, जा रही है। ले कन अगर हम लहर भी कह तो भी पानी क लहर एक भौ तक घटना है। इस लए व ान ने एक नया श खोजा है, जो क कभी था नह आज से तीस साल पहले, वह है ांटा। अभी हदी म उस श के लए कहना मु ल है। इस लए कहना मु ल है, जैसे हदी के पास श है और अं ेजी म कहना मु ल है; क कभी ज रत पड़ गई थी कुछ अनुभव करनेवाले लोग को, तब यह श खोज लया गया था। प म उस जगह नह प ं चा कभी, इस लए इस श क उ कभी ज रत नह पड़ी। इस लए धम क ब त सी भाषा के श प म को सीधे लेना पड़ते ह--जैसे ओम्। उसका कोई अनुवाद नया क कसी भाषा म नह हो सकता। वह कभी क आ ा क गहराइय म अनुभव क गई बात है। उसके लए हमने एक श खोज लया था। ले कन प म के पास उसके लए कोई समांतर श नह है क उसका अनुवाद कया जा सके।

ऐसे ही ‘ ांटा’ प म के व ान क ब त ऊंचाई पर पाया गया श है जसके लए सरी भाषा म कोई श नह है। ांटा का अगर हम मतलब समझना चाह, तो ांटा का मतलब होता है: कण और तरं ग एक साथ। इसको कंसीव करना मु ल हो जाएगा। कोई चीज कण और तरं ग एक साथ! कभी वह तरं ग क तरह वहार करता है और कभी कण क तरह वहार करता है--और कोई भरोसा नह उसका क वह वैसा वहार करे । पदाथ के सू तम ऊजा कण म चेतना के ल ण पदाथ हमेशा भरोसे यो था, पदाथ म एक सट ी थी। ले कन वे जो अणु ऊजा के आ खरी कण मले ह, वे अनसटन ह, उनक कोई न या कता नह है; उनके वहार को प ा तय नह कया जा सकता। इस लए पहले व ान ब त सट ी पर खड़ा था; वह कहता था, हर चीज न त है। अब वै ा नक उतने दावे से नह कह सकता, हर चीज न त है। क वह जहां प ं चा है, वह उसको पता चला है क न त होना ब त ऊपर-ऊपर है, भीतर ब त गहरा अ न य है। और एक बड़े मजे क बात है क अ न य का मतलब ा होता है? जहां अ न य है वहां चेतना होनी चा हए, नह तो अ न य नह हो सकता। अनसट ी जो है वह कांशसनेस का ह ा है; सट ी जो है वह मैटर का ह ा है। अगर हम इस कमरे म एक कुस को छोड़ जाएं , तो लौटकर हमको वह वह मलेगी जहां थी। ले कन एक ब े को हम इस कमरे म छोड़ जाएं , तो वह वह नह मलेगा जहां था। उसके बाबत अनसट ी रहेगी क अब वह कहां है और ा कर रहा है। कुस के बाबत हम सटन हो सकते ह क वह वह है जहां थी। पदाथ के बाबत न त आ जा सकता है, चेतना के बाबत न त नह आ जा सकता। तो व ान ने जस दन यह ीकार कर लया क अणु का जो आ खरी ह ा है, उसके बाबत हम न त नह हो सकते क वह कैसा वहार करे गा, उसी दन-- व ान को अभी पता नह है साफ--उसी दन यह बात ीकृत हो गई क वह पदाथ का जो आ खरी ह ा है, उसम चेतना क संभावना ीकृत हो गई है। अनसट ी चेतना का ल ण है। जड़ पदाथ अ न त नह हो सकता। ऐसा नह है क आग का मन हो तो जलाए, और मन हो तो न जलाए। ऐसा नह है क पानी क तबीयत हो तो नीचे बहे, और पानी क तबीयत हो तो ऊपर बहे। ऐसा नह है क पानी सौ ड ी पर गम होना चाहे तो सौ पर हो, अ ी पर होना चाहे तो अ ी पर हो। नह , पदाथ का वहार सु न त है। ले कन जब हम इन सबके भीतर वेश करते ह, तो वे जो आ खरी ह े मलते ह पदाथ के, वे अ न त ह। इसे हम ऐसा भी समझ सकते ह क समझ ल क हम बंबई के बाबत अगर तय करना चाह क रोज कतने आदमी मरते ह, तो तय हो जाएगा, करीब-करीब तय हो जाएगा। अगर एक करोड़ आदमी ह, तो साल भर का हसाब लगाने से हमको पता चल सकता है क रोज कतने आदमी मरते ह। और वह भ व वाणी करीब-करीब सहीहोगी। थोड़ी-ब त भूल हो सकती है। अगर हम पूरे पचास करोड़ के मु के बाबत वचार कर तो भूल और कम हो जाएगी, सट ी और बढ़ जाएगी। अगर हम सारी नया के बाबत तय कर तो सट ी और बढ़ जाएगी, हम तय कर सकते ह क इतने आदमी रोज मरते ह। ले कन

अगर हम एक आदमी के बाबत तय करने जाएं क यह कब करे गा, तो सट ी ब त कम हो जाएगी। जतनी भीड़ बढ़ती है उतना मैटी रयल हो जाती है चीज, जतना इं ड वजुअल होता है उतनी कांशस हो जाती है। असल म, एक प र का टुकड़ा भीड़ है करोड़ अणुओ ं क , इस लए उसके बाबत हम तय हो सकते ह। और जब हम नीचे वेश करते ह और एक अणु को पकड़ते ह, तो वह इं ड वजुअल है। उसके बाबत तय होना मु ल हो जाता है; उसका वहार वह खुद ही तय करता है। तो पूरे प र के बाबत हम कह सकते ह क यह यह मलेगा। ले कन इस प र के भीतर जो अणुओ ं का जो था, वह वह नह मलेगा। जब हम लौटकर आएं गे, वह सब बदल चुका होगा। उसने सब जगह बदल ली ह गी, वह या ा कर चुका होगा। परमाणुओ ं के सू तर तल पदाथ क गहराई म उतरकर अ न य शु हो गया है। इस लए अब व ान सट ी क बात न करके ोबे ब लटी क बात करने लगा है; वह कहता है, इसक संभावना ादा है बजाय उसके। अब वह ऐसा नह कहता क ऐसा ही होगा। बड़े मजे क बात है क व ान क तो सारी दावेदारी जो थी, वह उसक न या कता पर थी-- क वह जो भी कहता है वह न त है क ऐसा होगा। अब व ान क जो गहरी खोज है, उसने पैर डगमगा दए ह। और उसका कारण है। उसका कारण यह है क वह फ जकल से ईथ रक पर चले गए ह, जसका उनको अंदाज नह है। असल म, वे इस भाषा को ीकार नह करते, इस लए उनको तब तक अंदाज भी नह हो सकता क वे फ जकल से हटकर ईथ रक पर प ं च गए ह; वे पदाथ म भी सरे शरीर पर प ं च गए ह। और सरे शरीर क अपनी संभावनाएं ह। ले कन पहले शरीर और सरे शरीर के बीच कोई खाली जगह नह है। तीसरा जो ए ल शरीर है, वह और भी सू है, वह सू का भी सू है। वह ईथर के भी अगर हम अणु बना सक, जो अभी ब त मु ल है, क अभी-अभी तो हम मु ल से फ ज म अणु पर प ं च पाए ह, अभी हम पदाथ के अणु बना पाए ह, परमाणु बना पाए ह, अभी ईथर के लए ब त व लग सकता है। ले कन जस दन हम ईथर के अणु बना सक, उस दन हम पता चलेगा क वे अणु जो ह, वे उसके पछले आगेवाले शरीर के अणु स ह गे--ए ल के। असल म, फ जकल को जब हमने तोड़ा तो उसके अणु ईथ रक स ए ह, ईथर को हम तोड़गे तो उसके अणु ए ल स ह गे, सू के स ह गे। तब उनके बीच एक जोड़ मल जाएगा। ये तीन शरीर तो ब त जुड़े ए ह। इस लए ेता ाओं के च लए जा सके ह। सू शरीर क श यां ेता ा के पास भौ तक शरीर नह होता, ईथ रक बॉडी से शु होता है उसका पदा जो है। ेता ाओं के च लए जा सके ह, सफ इसी वजह से क ईथर भी अगर ब त कंड ड हो जाए, तो ब त स स टव ेट उसे पकड़ सकती है। और ईथर के साथ एक सु वधा है क वह इतनी सू है इस लए ब त मनस से भा वत होती है। अगर एक ेत यह चाहे क म यहां कट हो जाऊं, तो वह अपनी ईथ रक बॉडी को कंड ड कर लेगा, सघन कर लेगा। वे

अणु जो र- र ह, पास सरक आएं गे, और उसक एक प-रे खा बन जाएगी। उस परे खा का च लया जा सका है, उस प-रे खा का च पकड़ा जा सका है। यह जो सरा हमारा ईथर का बना आ शरीर है, यह हमारे भौ तक शरीर से कह ादा मन से भा वत हो सकता है। भौ तक शरीर भी हमारे मन से भा वत होता है, ले कन उतना नह । जतना सू होगा उतना मन से भा वत होने लगेगा, उतने मन के करीब हो जाएगा। ए ल शरीर तो और भी ादा मन से भा वत होता है। इस लए ए ल े वे लग संभव हो जाती है। एक आदमी इस कमरे म सोकर भी अपनी ए ल बॉडी से नया के कसी भी ह े म हो सकता है। इस लए ये जो कहा नयां ब त बार सुनी ह गी क एक आदमी दो जगह दखाई पड़ गया, तीन जगह दखाई पड़ गया, इसम कोई क ठनाई नह है। उसका भौ तक शरीर एक जगह होगा, उसका ए ल शरीर सरी जगह हो सकता है। इसम अड़चन नह है, यह सफ थोड़े से ही अ ास क बात है और आपका शरीर सरी जगह कट हो सकता है। जतने हम भीतर जाते ह, उतनी मन क श बढ़ती चली जाती है; जतने हम बाहर आते ह, उतनी मन क श कम होती चली जाती है। ऐसा ही जैसे क हम एक दीया जलाएं और उस दीये के ऊपर कांच का एक ढ न ढांक द; अब दीया उतना तेज ी नह मालूम होगा। फर एक सरा ढ न और ढांक द; अब दीया और भी कम तेज ी मालूम होगा। फर हम एक ढ न और ढांक द, और हम सात ढ न ढांक द; तो सातव ढ न के बाद दीये क ब त ही कम रोशनी प ं च पाएगी। पहले ढ न के बाद ादा प ं चती थी, सरे के बाद उससे कम, तीसरे पर और कम, सातव पर ब त धीमी और धू मल हो जाएगी, क सात पद को पार करके आएगी। भौ तक ऊजा का ही सू तम प मनोमय ऊजा तो हमारी जो जीवन-ऊजा क श है, वह शरीर तक आते-आते ब त धू मल हो जाती है। इस लए शरीर पर हमारा उतना काबू नह मालूम होता। ले कन, अगर कोई भीतर वेश करना शु करे , तो शरीर पर उसका काबू बढ़ता चला जाएगा; जस मा ा म भीतर वेश होगा, उस मा ा म शरीर पर भी काबू बढ़ता चला जाएगा। यह जो तीसरा शरीर है ए ल, यह भी.भौ तक का सू तम शरीर है ईथ रक, ईथ रक का सू तम ह ा है ए ल। अब चौथा शरीर है मटल। अब तक हम सबको यही खयाल था क माइं ड कुछ और बात है पदाथ से; माइं ड और मैटर अलग बात है। असल म, ऐसी प रभाषा करने का उपाय ही नह था। अगर कसी से हम पूछ क मैटर ा है? तो कहा जा सकता है: जो माइं ड नह है। और माइं ड ा है? तो कहा जा सकता है: जो मैटर नह है। बाक और कोई प रभाषा है भी नह । इसी तरह हम सोचते रहे ह इन दोन को अलग करके। ले कन अब हम जानते ह क माइं ड जो है, वह भी मैटर का ही सू तम ह ा है--या इससे उलटा भी हम कह सकते ह क जसे हम मैटर कहते ह, वह माइं ड का ही कंड ड, सघन हो गया ह ा है। अलग-अलग वचार क अलग-अलग तरं ग रचना ए ल का भी अगर अणु टूटे गा तो वे माइं ड के थॉट वे स बन जाएं गे। अब ांटा और थॉट वे स म बड़ी नकटता है। वचार, अब तक नह समझा जाता था क वचार भी कोई

भौ तक अ रखता है। ले कन जब आप एक वचार करते ह, तो आपके आसपास क तरं ग बदल जाती ह। अब यह ब त मजे क बात है: न केवल वचार क , ब एक-एक श क भी अपनी वेवलथ है, अपनी तरं ग है। अगर आप एक कांच के ऊपर रे त के कण बछा द, और कांच के नीचे से जोर से एक श आवाज कर, जोर से कह--ओम्! तो उस कांच के ऊपर रे त पर अलग तरह क वे स बन जाएं गी। और आप कह--राम! तो अलग तरह क वे स बनगी। और आप एक भ ी गाली द तो अलग तरह क वे स बनगी। और आप एक बड़ी हैरानी क बात म पड़ जाएं गे क जतना भ ा श होगा, उतनी कु प ऊपर वे स बनगी; और जतना सुंदर श होगा, उतनी सुंदर वे स ह गी, उतना पैटन होगा उनम; जतना भ ा श होगा, उतना पैटन नह होगा, अना कक होगा। श का भी.इस लए ब त हजार वष तक श के लए बड़ी खोजबीन ई क कौन सा श सुंदर तरं ग पैदा करता है, कौन सा श कतना वजन रखता है सरे के दय तक चोट प ं चाने म। ले कन श तो कट हो गया वचार है, अ कट श भी अपनी नयां रखता है-जसको हम वचार कहते ह, थॉट कहते ह। जब आप सोच रहे ह कुछ, तब भी आपके चार तरफ वशेष कार क नयां फैलनी शु हो जाती ह, वशेष कार क तरं ग आपको घेर लेती ह। इस लए ब त बार आपको ऐसा लगता है क कसी आदमी के पास जाकर आप अचानक उदास हो जाते ह। अभी उसने कुछ कहा भी नह ; हो सकता है वह ऐसे हं स ही रहा हो आपको मलकर; ले कन फर भी कोई उदासी आपको भीतर से पकड़ लेती है। कसी आदमी के पास जाकर आप ब त फु त हो जाते ह। कसी कमरे म वेश करते से ही आपको लगता है क आप कुछ भीतर बदल गए; कुछ प व ता पकड़ लेती है, अप व ता पकड़ लेती है। कसी ण म कह कोई शां त पकड़ लेती है और कह कोई अशां त छू लेती है, जसको आपको समझना मु ल हो जाता है क म तो अभी अशांत नह था, अचानक यह अशां त मन म उठ आई! आपके चार तरफ वचार क तरं ग ह, और वे तरं ग चौबीस घंटे आपम वेश कर रही ह। अभी तो एक च वै ा नक ने एक छोटा सा यं बनाया जो वचार क तरं ग को पकड़ने म सफल आ है। उस यं के पास जाते से ही वह बताना शु कर देता है क यह आदमी कस तरह के वचार कर रहा है; उस पर तरं ग पकड़नी शु हो जाती ह। अगर एक ई डयट को, जड़बु आदमी को ले जाया जाए तो उसम ब त कम तरं ग पकड़ती ह, क वह वचार ही नह कर रहा; अगर एक ब त तभाशाली आदमी को ले जाया जाए तो वह पूरा का पूरा यं कंपन लेने लगता है, उसम इतनी तरं ग पकड़ने लगती ह। तो जसको हम मन कहते ह, वह ए ल का सू का भी सू है। नरं तर भीतर हम सू से सू होते चले जाते ह। अभी व ान ईथ रक तक प ं च पाया है। अभी भी उसने उसको ईथ रक नह कहा है, उसको एटा मक कह रहा है, पारमा णक कह रहा है, ऊजा, एनज कह रहा है; ले कन वह सरे शरीर पर उतर गया है--स के सरे शरीर पर वह उतर गया है। तीसरे शरीर पर उतरने म ब त देर नह लगेगी, वह तीसरे शरीर पर उतर

जाएगा; उतरने क ज रत पैदा हो गई ह। चौथे शरीर पर भी ब त सरी दशाओं से काम चल रहा है; क मन को अलग ही समझा जाता था, इस लए कुछ वै ा नक मन पर अलग से ही काम कर रहे ह; वे शरीर से काम ही नह कर रहे। उ ने चौथे शरीर के संबंध म ब त सी बात का अनुभव कर लया है। अब जैसे, हम सब एक अथ म ांसमीटस ह, और हमारे वचार हमारे चार तरफ वक ण हो रहे ह। म आपसे जब नह भी बोल रहा ं , तब भी मेरा वचार आप तक जा रहा है। वचार-सं ेषण पर खोज अभी स म इस संबंध म काफ र तक काम आ है, और एक वै ा नक फयादेव ने एक हजार मील र तक वचार का सं ेषण कया है। वह मा ो म बैठा है और एक हजार मील र सरे आदमी को वचार का सं ेषण कर रहा है। ठीक वैसे ही जैसे रे डयो से ांस मशन होता है, ऐसे ही अगर हम संक पूवक एक दशा म अपने च को क त करके कसी वचार को ती ता से सं े षत कर, तो वह उस दशा म प ं च जाता है; और अगर सरी तरफ भी माइं ड रसीव करने को, ाहक होने को तैयार हो--उसी ण म, उसी दशा म अपने मन को क त करके खुला हो और ीकार करने को राजी हो--तो वचार सं े षत हो जाता है। वचार-सं ेषण का एक घरे लू योग इस पर कभी छोटा-मोटा योग आप घर म करके देख तो अ ा होगा। छोटे ब े ज ी से पकड़ लेते ह, क अभी उनक ाहकता ती होती है। कमरा बंद कर ल; एक छोटे ब े को, कमरे को अंधेरा करके सरे कोने पर बठा द; आप सरे कोने पर बैठ जाएं । और उस ब े से कह क एक पांच मनट के लए तू ान मेरी तरफ रखना, म तुझसे चुपचाप कुछ क ं गा, वह तू सुनने क को शश करना और अगर तुझे सुनाई पड़ जाए तो बोल देना। फर आप एक श पकड़ ल कोई भी--जैसे राम या गुलाब--और इस श को उस ब े क तरफ ान रखकर जोर से अपने भीतर गुंजाने लग, बोल नह , राम-राम ही गुंजाने लग। एक दो-तीन दन म आप पाएं गे क उस ब े ने आपके श को पकड़ना शु कर दया। तब इसका ा मतलब आ? फर इससे उलटा भी हो सकता है: एक दफे ऐसा हो जाए तो आपको आसानी हो जाएगी। फर आप ब े को बठा सकते ह और उससे कह सकते ह क वह एक श अपने भीतर सोचकर आपक तरफ फके। ले कन तब आप ाहक हो सकगे, क आपका डाउट, आपका संदेह गर गया होगा। घटना घट सकती है, तो फर ाहकता बढ़ जाती है। नजरा--कम-मल का झड़ जाना आपके और आपके ब े के बीच तो भौ तक जगत फैला आ है। यह वचार कसी गहरे अथ म भौ तक ही होना चा हए, अ था इस भौ तक मा म को पार न कर पाएगा। यह जानकर आपको हैरानी होगी क महावीर ने कम तक को भौ तक कहा है-- फ जकल कहा है, मैटी रयल कहा है। जब आप ोध करते ह और कसी क ह ा कर देते ह, तो आपने एक कम कया-- ोध का और ह ा करने का। महावीर कहते ह, यह भी सू अणुओ ं म आपम चपक जाता है; कम-मल बन जाता है। यह भी मैटी रयल है। यह भी

कोई इ ैटी रयल चीज नह है, यह भी मैटर क तरह पकड़ लेता है आपको। और इस लए महावीर नजरा जसको कहते ह, वे नजरा कहते ह, इस कम-मल से जस दन छु टकारा हो जाए। यह सारा का सारा जो कम-अणु आपके चार तरफ जुड़ गए ह, ये गर जाएं । जस दन ये गर जाएं गे, उस दन आप शु तम शेष रह जाएं गे; वह नजरा होगी। नजरा का मतलब है: कम के अणुओ ं का झड़ जाना। कम भी.जब आप ोध करते ह तब आप एक कम कर रहे ह। वह ोध भी आण वक होकर ही आपके साथ चलता है। इस लए जब आपका यह शरीर गर जाता है, तब भी उसको गरने क ज रत नह होती; वह सरे ज म भी आपके साथ खड़ा हो जाता है, क वह अ त सू है। तो मटल बॉडी जो है, मनस शरीर जो है, वह ए ल बॉडी का सू तम ह ा है। और इस लए इन चार म कह भी कोई खाली जगह नह है, ये सब एक- सरे के सू होते गए ह े ह। मटल बॉडी पर काफ काम आ है, क अलग से मनस-शा उस पर काम कर रहा है--और वशेषकर पैरा-साइकोलाजी उस पर अलग से काम कर रही है, परामनो व ान अलग से काम कर रहा है। और मन के इतने अदभुत खयाल व ान क पकड़ म आ गए ह--धम क पकड़ म तो ब त समय से थे-- व ान क पकड़ म भी ब त सी बात साफ हो गई ह। वचार तरं ग का भाव पदाथ पर भी अब जैसे एक आदमी है और वह जुआ खेलता है। अब मांटकाल म ऐसे ढे र आदमी ह, जनको जुए म हराना मु ल है; क वे जो पांसा फकते ह, वे जो नंबर फकना चाहते ह वही फक लेते ह। उनके पांसे बदल देने से कोई फक नह पड़ता। पहले तो समझा जाता था क वे पांसे कुछ चालबाजी से बनाए गए ह क वे पांसे वह गर जाते ह जहां वे गराना चाहते ह। ले कन हर तरह के पांसे देकर, वे जो नंबर लाना चाहते ह वही आंकड़ा ले आते ह-आंख बंद करके भी ले आते ह। तब बड़ी मु ल हो गई। तब इसक जांच-पड़ताल करनी ज री हो गई क बात ा है! असल म, उनका वचार का ती संक पांसे को भा वत करता है। वे जो लाना चाहते ह उसके ती संक क धारा से पांस को फकते ह। वचार क वे तरं ग उन पांस को उसी आंकड़े पर ले आती ह। अब इसका मतलब ा आ? अगर वचार क तरं ग एक पांसे को बदलती है तो वचार क तरं ग भी भौ तक है, नह तो पांसे को नह बदल सकती। वचार श क एक योगा क जांच आप एक छोटा सा योग कर तो आपके खयाल म आ जाए। चूं क व ान क बात आप करते ह, इस लए म योग क बात करता ं । एक गलास म पानी भरकर रख ल और सरीन या कोई भी चकना पदाथ उस गलास के पानी के ऊपर थोड़ा सा डाल द क उसक एक पतली धीमी फ पानी के गलास के ऊपर फैल जाए। एक छोटी आलपीन, बलकुल पतली क उस फ पर तैर सके, उसको उसके ऊपर छोड़ द। फर कमरे को सब तरफ से बंद करके दोन हाथ को जमीन पर टे ककर आंख उस छोटी सी आलपीन पर गड़ा ल। एक पांच मनट चुपचाप बैठे रह आंख गड़ाए ए, फर उस आलपीन से कह क बाएं घूम जाओ, तो आलपीन बाएं घूमेगी; फर कह दाएं घूम जाओ, तो दाएं घूमेगी; कह क क जाओ, तो केगी; कह क चलो, तो चलेगी।

अगर आपका वचार एक आलपीन को बाएं घुमा सकता है, दाएं घुमा सकता है, तो फर एक पहाड़ को भी हला सकता है। वह जरा लंबी बात है, बाक फक नह रह गया, बु नयादी फक नह रह गया। आपक साम अगर एक आलपीन को हलाती है तो बु नयादी बात पूरी हो गई है। अब यह सरी बात है क पहाड़ ब त बड़ा पड़ जाए, आप न हला पाएं , ले कन हल सकता है पहाड़। व ुओ ं ारा वचार तरं ग का अपशोषण हमारे वचार क तरं ग पदाथ को छूती और पांत रत करती है। इसी लए अगर आपके कपड़े को दया जा सके.ऐसे लोग ह, जनको आपके हाथ का माल दया जा सके, तो आपके के संबंध म वे करीब-करीब उतनी ही बात बता दगे जतना आपको देखकर बताया जा सकता था; क आपके हाथ का माल आपके वचार क तरं ग को अपशो षत कर जाता है; आपका गहना आपक तरं ग को अपशो षत कर जाता है। और मजा यह है क वे इतनी सू तरं ग ह क एक माल जो सकंदर के हाथ म रहा हो, वह अभी भी सकंदर के क खबर देता है। वे इतनी सू तरं ग ह क उनको फर बाहर नकलने म करोड़ वष लग जाते ह। इसी लए क हमने बनानी शु क थ , समा धयां बनानी शु क थ । द य क तरं ग हजार वष तक भावशील कल मने आपसे कहा था क इस मु म हम मरे ए आदमी को त ाल जला देते ह। ले कन सं ासी को नह जलाते। मरे ए आदमी को इस लए जला देते ह क उसक आ ा उसके आसपास न भटके। सं ासी को इस लए नह जलाते ह क उसक तो जदा म ही आ ा ने आसपास भटकना बंद कर दया था; अब उसके शरीर से उसक आ ा को कोई खतरा नह है क वह भटके। पर उसके शरीर को हम बचा लेना चाहते ह, क जो आदमी अगर तीस वष तक प व ता के वचार म जीया हो, उसका शरीर हजार -लाख वष तक उस तरह क तरं ग को वक ण करता रहेगा। और उसक समा ध अथपूण हो जाएगी; उसक समा ध के आसपास प रणाम ह गे। वह शरीर तो मर गया, ले कन वह शरीर इतने नकट रहा है उस आ ा के क अपशो षत कर गया है ब त कुछ-जो भी वक ण हो रहा था, उसे वह अपशो षत कर गया है। वचार क अनंत संभावनाएं ह, ले कन ह वे सब भौ तक। इस लए जब आप एक वचार सोचते ह तो ब त ान रखकर सोचना चा हए। क उसक तरं ग, आप नह ह गे, तब भी शेष रहगी। यानी आपका मर जाना.आपक उ ब त कम है, ले कन वचार इतना सू है क उसक उ ब त ादा है। इस लए वै ा नक तो अब इस खयाल पर प ं चे ह क अगर जीसस कभी ए ह या कृ कभी ए ह, तो आज नह कल हम उनक वचारतरं ग को पकड़ने म समथ हो जाएं गे, और यह तय हो सकेगा क कृ ने गीता कभी कही है क नह कही है। क वे वचार-तरं ग जो कृ से नकली ह, वे आज भी लोकलोकांतर म कसी ह, कसी उप ह के पास टकरा रही ह गी। ऐसे ही, जैसे हम एक कंकड़ समु म फके, तो जब कंकड़ गरता है तो एक छोटा सा छ , एक छोटा सा वतुल समु के पानी पर बनेगा। फर कंकड़ तो डूब जाएगा, कंकड़ क जदगी पानी क सतह पर ब त ादा नह है; कंकड़ क जदगी तो पानी पर छु आ नह

क गया; ले कन उस वतुल से कंकड़ क चोट से जो तरं ग पैदा , वे फैलनी शु हो जाएं गी; वे बढ़ती जाएं गी; वह अंतहीन है उनका बढ़ाव। आपक आंख से ओझल हो जाएं गी, ले कन न मालूम कन र तट पर वे अभी भी बढ़ रही ह गी। जो वचार कभी भी पैदा ए ह--बोले ही नह गए, जो मन म भी पैदा ए ह--वे वचार भी र इस जगत के आकाश म, क कनार पर अभी भी बढ़ते चले जा रहे ह। उनको पकड़ा जा सकता है। कसी दन अगर मनु क ग त ती हो सक व ान क , और उनसे आगे नकल सके, तो उ सुना जा सकता है। अब जैसे समझ ल क द ी से अगर एक रे डयो पर रे डयो वे स बंबई के लए खबर भेजती ह, तो उसी व थोड़े ही खबर यहां आ जाती है जब द ी से क जाती है! थोड़ा टाइम गैप है; क न क या ा म समय लगता है। द ी म तो वह न मर चुक होती है जब बंबई आती है। वहां से तरं ग आगे नकल गई होती ह। द ी म वे नह ह अब। थोड़े ही ण का फासला पड़ता है, ले कन ण बीच म गरते ह। अगर समझ ल क ूयाक से एक आदमी को टे ली वजन पर हम देख रहे ह। तो जब उसका च ूयाक म बनता है, तभी हम दखाई नह पड़ता। उसके च बनने म और हम तक प ं चने म समय का फासला है। यह भी हो सकता है: इस समय वह आदमी मर गया हो, ले कन हम वह आदमी जदा दखाई पड़ेगा। हमारी पृ ी से भी वचार क , च क तरं ग अनंत लोक तक जा रही ह। अगर हम उन तरं ग के आगे जाकर कभी भी उनको पकड़ सक, तो वे अभी भी जदा ह उस अथ म। आदमी मर जाता है, वचार इतने ज ी नह मरता। आदमी क उ ब त कम है, वचार क उ ब त ादा है। और यह भी खयाल रहे क जो वचार हम कट नह करते, उसक उ और ादा है उस वचार से जो हम कट कर देते ह; क वह और ादा सू है। जो अ कट है, वह और सू है; उसक उ और ादा है। जतना सू , उतनी ादा उ ; जतना ूल, उतनी कम उ । व श संगीत- नय के व श भाव ये जो वचार ह, ये ब त तरह से, जसको हम भौ तक जगत कह रहे ह, उसको भा वत कर रहे ह। हम खयाल म नह है। अभी तो वन त-शा ी इस अनुभव पर प ं च गया क अगर एक पौधे के पास ी तपूण संगीत बजाया जाए, तो पौधा ज ी फल देना शु कर देता है; ज ी उसम फूल आ जाते ह, बेमौसम। अगर उसके पास कु प, भ ा और नॉइजी संगीत बजाया जाए, तो मौसम भी नकल जाता है और उसके फल नह आते और फूल नह आते। वे तरं ग उसको छू रही ह, उसको श कर रही ह। गाएं ादा ध दे देती ह खास संगीत के भाव म; खास संगीत के भाव म ध देना बंद ही कर देती ह। वचार इससे भी सू हवा पैदा कर रहा है; उसके चार तरफ तरं ग क एक छाया है। और हर आदमी अपने वचार का एक जगत अपने साथ लेकर चल रहा है, जससे पूरे व चीज वक ण हो रही ह। न ाकाल म मनोमय जगत क वै ा नक जांच ये जो वक ण होती ई करण ह, ये भी भौ तक ह। हमारा माइं ड जसे हम कहते ह, वह मटल ही नह है; हम जसे मन कहते ह, वह मनस ही नह है, वह भौ तक का ही चार

सी ढ़यां छलांग लगाकर सू प है। इस लए क ठनाई नह है क व ान वहां प ं च जाए। क ठनाई नह है, क उसक तरं ग को पकड़ा-जांचा जा सकता है। जैसे कल तक हम पता नह चलता था क आदमी रात म कतना गहरा सो रहा है, उसका मनस कतनी गहराई म है। अब पता चल जाता है; अब हमारे पास यं ह। जैसा क दय क धड़कन नापने के यं ह, इसी तरह न द क धड़कन नापने के यं तैयार हो गए ह। तो रात भर आपक खोपड़ी पर एक यं लगा रहता है, वह पूरे व ाफ बनाता रहता है क कतनी गहराई म हो। वह ाफ बनता रहता है पूरे व क आदमी इस व ादा गहराई म है, इस व कम गहराई म है। वह पूरे व रात भर का ाफ देता है क यह आदमी कतनी देर सोया, कतनी देर सपने देखे; कतनी देर अ े सपने देख,े कतनी देर बुरे सपने देख;े कतनी देर इसके सपने से ुअल थे, कतनी देर से ुअल नह थे; वह सब ाफ पर दे देता है। अमे रका म इस समय कोई दस लेबोरे टरी ह, जनम हजार लोग रात म पैसा देकर सुलाए जा रहे ह, जनक न द पर बड़ा परी ण चल रहा है। क यह बड़ी हैरानी क बात है क न द से हम अप र चत रह जाएं । क आदमी क एक तहाई जदगी न द म ख होती है; छोटी-मोटी घटना नह है न द। साठ साल आदमी जीता है, तो बीस साल तो सोता है। तो बीस साल के इस बड़े ह े को अनजाना छोड़ देना--आदमी का एक तहाई अप र चत रह जाएगा। और मजा यह है क यह जो एक तहाई, बीस वष है, अगर यह न सोए, तो बाक चालीस वष बच नह सकता। इस लए ब त बे सक है। अ ा, बना जागे सो सकता है आदमी साठ वष, ले कन बना सोए जग नह सकता। तो ादा गहरे म और बु नयादी तो न द है। तो न द म हम कह और होते ह, हमारा मनस कह और होता है। ले कन उस मनस को नापा जा सकता है। अब उसके पता लगने शु हो गए ह क वह कतनी गहरी न द म है। ढे र लोग ह, जो कहते ह क हम सपना नह आता। वे सरासर झूठ कहते ह; उनको पता नह है, इस लए झूठ कहते ह; उ पता नह है। आदमी खोजना मु ल है जसको सपना न आता हो। ब त मु ल मामला है। रात भर सपना आता है। और आपको भी खयाल होगा क कभी एक-आध आता है। वह गलत खयाल है आपका। मशीन कहती है: रात भर आता है। ले कन ृ त नह रह जाती; आप न द म होते ह इस लए याद नह बनती उसक । आपको सपना जो याद रहता है, वह आ खरी रहता है, जब न द टूटने के करीब होती है; तब आपक ृ त बन जाती है। लौटते ह न द से जब आप, तो आ खरी दरवाजे पर न द के जो सपना रहता है, वह आपके खयाल म रह जाता है; क उसक धीमी सी भनक आपके जागने तक चली आती है। ले कन गहरी न द म जो सपना रहता है, उसका आपको पता नह रहता। अब गहरी न द म आदमी ा सपने देखता है, यह जांच करना ज री हो गया है; क वह जो सपने ब त गहराई म देखता है, वे उसका असली ह गे। असल म, जागकर तो हम नकली होते ह। आमतौर से हम सोचते ह क सपने म ा रखा है! ले कन सपना हमारी ादा स ाई को बताता है बजाय हमारे जागरण के; क जागरण म हम झूठे आवरण ओढ़ लेते ह।

अगर कसी दन हम आदमी क खोपड़ी म एक खड़क बना सक, वडो बना सक, और उसके सब सपने देख सक, तो आदमी क आ खरी तं ता चली जाएगी--सपना भी नह देख सकेगा ह त के साथ क जो देखना हो वही देखे। उसम भी डरा रहेगा। वहां भी नै तकता और नयम और कानून और पु लसवाला व हो जाएगा। वह कहेगा: सपना जरा.यह सपना ठीक नह देख रहे हो, यह सपना अनै तक है। अभी वह तं ता है। आदमी न द म अभी तं है। ले कन ब त दन नह रह जाएगा; क अब न द पर एन ोचमट शु हो गया है। न ामब को श त करना जैस,े न द म श ा देनी स म उ ने शु क है। ीप टी चग पर बड़ा काम चल रहा है। क जागने म ब त मेहनत करनी पड़ती है, ब ा रे स करता है। एक लड़के को कुछ सखाना बड़ा उप व का काम है, क वह बु नयादी प से इनकार करता है सीखने से। असल म, हर आदमी सीखने से इनकार करता है, क हर आदमी बु नयादी प से यह मानकर चलता है क म जानता ही ं । ब ा भी इनकार करता है-- क ा सखा रहे ह! वह हजार तरह से इनकार करता है। हमको लोभन देना पड़ते ह, परी ाओं के पुर ार देना पड़ते ह, गो -मेडल बांटने पड़ते ह, तयो गता पैदा करनी पड़ती है, बुखार जगाना पड़ता है, कसी तरह दौड़ा-दौडूकर हम उसे सखा पाते ह। ले कन इस कां म ब त समय य होता है। जो काम दो घंटे म सीख सकता है, उसम दो महीने लग जाते ह। तो वे ीप टी चग क फकर पर चले गए ह। और बात साफ हो गई है क न द म पढ़ाया जा सकता है, और बड़ी अ ी तरह से; क न द म कोई रे स स नह है। एक टे प लगा रहता है, और वह रात भर न द म भीतर डालता रहता है जो भी कहना है--दो और दो चार होते ह, दो और दो चार होते ह, वह दोहरता रहेगा। सुबह उस ब े से क हए, दो और दो कतने होते ह? वह कहेगा, चार होते ह। अब यह जो न द म वचार डाला जा सका, यह वचार तरं ग से भी डाला जा सकता है; क वचार क तरं ग हमारे खयाल म आ गई ह। जैसे क हम कल तक खयाल नह था, जैसा हम अब जानते ह क ामोफोन का रे काड है। उस रे काड पर भाषा रे काड नह है, उस रे काड पर सफ तरं ग के आघात रे काड ह। और जब सूई उन तरं ग पर वापस दोहरती है तो उ तरं ग को फर पैदा कर देती है जन तरं ग से वे आघात पड़े थे। वहां कोई भाषा नह है उस पर, रे काड पर। जैसा मने कहा क अगर आप ओम् बोलगे, तो रे त म एक पैटन बनता है। वह पैटन ओम् नह है। ले कन अगर आपको पता है क ओम् बोलने से यह पैटन बनता है, तो कसी दन इस पैटन को ओम् म कनवट कया जा सकता है। यह पैटन जब बना हो ऊपर, तो इसके नीचे ओम् को पैदा कया जा सकेगा; क यह पैटन उसी से बना है; ये दोन एक चीज ह। तो अब हमने ामोफोन रे काड बना लया; उसम वाणी नह है, उसम सफ वाणी से पड़े ए आघात ह। वे आघात फर से सूई से ट र खाकर फर वाणी बन जाते ह। हम आज नह कल, वचार के रे काड बना सकगे। वचार के आघात पकड़े जाने लगे ह, तो रे काड बनने म ब त देर नह लगेगी। और तब बड़ी अजीब बात हो जाएगी। तब यह

संभव है क आइं ीन मर जाए, ले कन उसके वचार करने क पूरी या मशीन म हो, तो आइं ीन अगर जदा रहता तो आगे जो सोचता, वह वह मशीन सोचकर बता सकेगी; क उसके सारे के सारे .उसके वचार के सारे आघात उस मशीन के पास ह। न द पकड़ी जा सक है, पकड़े जा सके ह, बेहोशी पकड़ी जा सक है--और इस मन के साथ वै ा नक प से ा कया जाए, वह भी पकड़ा जा सका है। इस लए वह भी समझ लेना चा हए। मनोमय जगत म वै ा नक ह ेप क संभावनाएं जैसे क एक आदमी ोध म होता है। तो पुराना हमारा हसाब यही था क हम उसको समझाएं क ोध मत करो, इसके सवाय कोई उपाय नह था; समझाएं क ोध करोगे तो नरक जाओगे, इसके सवाय कोई उपाय नह था। ले कन वह आदमी अगर कहे क हम नरक जाने को राजी ह, तो हम असमथ हो जाते थे; तब उस आदमी के साथ हम कुछ भी नह कर सकते थे। और वह आदमी कहे, हम नरक जाने म ब त मजा आता है, तो हमारी सारी नै तकता एकदम थ हो जाती थी; उस आदमी पर कोई वश ही नह था। वह तो नरक से डरे तभी तक वश था। इस लए नया म जैसे ही नरक का डर गया, वैसे ही हमारी नै तकता चली गई; क अब उससे कोई डर ही नह रहा है। वे कहते ह, ठीक है, कहां है नरक? हम देखना ही चाहते ह एक दफा। तो नै तकता पूरी क पूरी ख हो गई, क वह जस डर पर खड़ी थी वह चला गया। ले कन व ान कहता है, इसक कोई ज रत ही नह है। व ान ने अब सरे सू खोजे ह। वे सू ये ह क ोध के लए शरीर म एक वशेष रासाय नक या होनी ज री है, क ोध एक भौ तक घटना है। और जब ोध होता है तो शरीर म खास तरह के रस पैदा होने ज री ह। वे रस रोके जा सकते ह, ोध को रोकने क ा ज रत है? और अगर वे रस रोके जा सकते ह तो आदमी ोध करने म असमथ हो जाएगा। अब हम चौदह साल के लड़के को समझा रहे ह: चय धारण करो! लड़क को समझा रहे ह: चय धारण करो! वे धारण नह करते। उ ने कभी नह कया। श ा, सब समझाना-बुझाना कोई प रणाम नह लाता। व ान कहता है क अब इसक फकर न करो, क कुछ स ह जनसे से पैदा होता है, हम उन स को ही प ीस साल तक रोके देते ह बढ़ने से। तो से मै ो रटी ही प ीस साल म आएगी, आप चय क चता मत करो। खतरनाक है यह बात! क मन जस दन पूरा का पूरा वै ा नक पकड़ म आ जाए, उस दन हम उसका पयोग भी कर सकते ह। क व ान कहता है क जो आदमी रबे लयस है, उस आदमी का रासाय नक कंपो जशन उस आदमी से अलग होता है जो ऑथ डॉ है। जो आदमी ां त और व ोही च का है, उस आदमी के रासाय नक कंपो जशन म और वह आदमी जो परं परावादी और ढ़वादी है, उसके रासाय नक कंपो जशन म फक होता है। तब तो बड़ा खतरनाक है, क अगर यह कंपो जशन हम पता चल गया है तो हम व ोही को व ोही होने से रोक सकते ह, ढ़वादी को ढ़वादी होने से रोक सकते ह। जेल म कसी आदमी को मारने क ज रत नह रह जाएगी, कसी

को फांसी क सजा देने क ज रत नह --सजा ही देने क ज रत नह है। क जब हम प ा हो गया क एक आदमी चोरी करता है, और उस चोरी के लए ये रासाय नक त अ नवाय ह, अ था वह चोरी नह कर सकता, तो कोई ज रत नह उसको जेल ले जाने क , उसको अ ताल ले जाकर सजरी क जा सकती है; उसका वशेष रस बाहर कया जा सकता है; या सरे रस डालकर उसके पहले रस को दबाया जा सकता है; या एं टीडोट दया जा सकता है। यह सारा काम चल रहा है। यह काम बताता है क चौथे शरीर पर तो वेश म कोई क ठनाई नह रह गई है। क ठनाई सफ एक रह गई है, क ठनाई सफ एक रह गई है क ब त बड़े व ान का ह ा यु के मामले म उलझा आ है, इस लए उस पर पूरे काम नह हो पाते, वह गौण रह जाता है। ले कन फर भी ब त काम चल रहा है, और ब त अनूठे काम चल रहे ह। आ ा क अनुभव के रासाय नक त प अब जैसे क अ ु अस ह ले का दावा यह है क कबीर को जो आ, या मीरा को जो आ, वह इं जे न से हो सकता है। इस दावे म थोड़ी स ाई है। यह बड़ा संघातक दावा है, ले कन इसम स ाई है। अगर महावीर एक महीना उपवास करते ह, और एक महीना उपवास करके उनका मन शांत हो जाता है। उपवास भौ तक घटना है, भौ तक घटना से अगर मन शांत होता है तो मन भी भौ तक है। उपवास से होता ा है? एक महीने के उपवास से शरीर क पूरी रासाय नक व ा बदल जाती है, और तो कुछ होता नह । जो भोजन मलने चा हए, वे नह मल पाते; जो त शरीर म इक े हो गए थे रजवायर म, वे सब ख हो जाते ह; चब कम हो जाती है; कुछ ज री त बचा लए जाते ह, गैर-ज री न हो जाते ह। तो शरीर का पूरा का पूरा जो रासाय नक इं तजाम था महीने भर के पहले, वह बदल जाता है। व ान कहता है क एक महीना परे शान होने क ा ज रत है? यह रासाय नक इं तजाम उसी अनुपात म अभी बदला जा सकता है--इसी व ! तो अगर यह रासाय नक इं तजाम अभी बदल जाएगा, तो महीने भर बाद महावीर को जो शां त अनुभव ई, वह आपको अभी हो जाएगी। उसक बु नयाद तो वही है। अब जैसे म ान म कहता ं क आप जोर से ास ल। मगर एक घंटा ती ास लेने से होनेवाला ा है? सफ आ पके ऑ ीजन का अनुपात बदल जाएगा। ले कन यह ऑ ीजन का अनुपात तो बाहर से बदला जा सकता है, इसको एक घंटा आपसे मेहनत करवाना ज री नह है। यह तो इस कमरे क ऑ ीजन का अनुपात बदलकर भी कया जा सकता है क यहां बैठे ए सारे लोग शांत हो जाएं , फु त हो जाएं । तो व ान चौथे शरीर पर तो कई तरफ से वेश कर गया है, और रोज वेश करता जा रहा है। अब जैसे क तु ान म अनुभू तयां ह गी--सुगंध आएगी, रं ग दखाई पड़गे--ये सब ान म बना जाए भी हो सकता है अब! क व ान ने यह सब पता लगा लया है ठीक से क जब तु भीतर रं ग दखाई पड़ते ह तो तु ारे म का कौन सा ह ा

स य होता है; उसके स य होने क तरं ग कतनी होती ह। समझ ल क मेरे म का पीछे का ह ा जब स य होता है, तब मुझे भीतर रं ग दखाई पड़ते ह--सुंदर रं ग दखाई पड़ते ह। यह जांच बता देती है क इस व जब तु रं ग दखाई पड़ रहे ह, तु ारे म का कौन सा ह ा तरं गत है, और उसम कतने वेवलथ क तरं ग उठ रही ह। अब कोई ज रत नह है आपको ान म जाने क ; उस ह े पर उतनी तरं ग बजली से पैदा कर दी जाएं , आपको रं ग दखाई पड़ने शु हो जाते ह। ये सब पैरेलल ह; क इस तरफ का छोर पकड़ लया जाए, सरी तरफ का छोर त ाल होना शु हो जाता है। े ा मृ ु क भी एक सम ा इसके खतरे ह। कोई भी नई खोज, और मनु के जतने भीतर जाती है, उतने खतरे बढ़ते चले जाते ह। अब जैसे क हम आदमी क कतनी उ बढ़ानी है, हम अब बढ़ा सकते ह। अब कोई उ कृ त क बात नह है, व ान के हाथ म आ गई है। तो आज यूरोप और अमे रका म हजार ऐसे बूढ़े ह जो यह मांग कर रहे ह अथना सया क क हम -मरण का अ धकार चा हए। क उनको लटका दया गया है खाट पर, वे लटके ह और उनको ऑ ीजन दी जा रही है, और वह अंतहीन काल तक उनको जदा रखा जा सकता है। अब एक न े साल का बूढ़ा है, वह कहता है, हम मरना है! ले कन डा र कहता है, हम मरने म सहयोगी नह हो सकते; क कानून उसको ह ा कहता है। अ ा, उसका बेटा भी मन म भी सोचता हो क पता तकलीफ भोग रहा है, तब भी खुले नह कह सकता क पता को मार डाला जाए। और पता को अब जलाया जा सकता है। और एक मशीनरी पैदा हो गई है जो उसको जलाए रखेगी। अब वह बलकुल मरा आ जदा रहेगा। अब यह एक लहाज से खतरनाक है। हमारा पुराना जो कानून है वह तब का है जब हम आदमी को जदा नह रख सकते थे, सफ मार सकते थे। अब कानून बदलने क ज रत है, क अब हम जदा भी रख सकते ह। और इतनी सीमा तक जदा रख सकते ह क वह आदमी च ाकर कहने लगे क मेरे साथ अ ाचार हो रहा है, हसा हो रही है! क अब म जदा नह रहना चाहता ं ; यह ा मेरे साथ हो रहा है? यानी कभी हम एक आदमी को सजा देते थे क इस आदमी ने गुनाह कया है, इसक ह ा कर दो। कोई आ य नह क पचास साल बाद हम एक आदमी को सजा द क इस आदमी ने गुनाह कया है, इसको मरने मत देना। इसम कोई क ठनाई नह है। और यह पहली सजा से ादा बड़ी सजा स होगी; क मर जाना एक ण का मामला है और जदा रहना स दय का हो सकता है। तो जब भी कोई नई खोज होती है, और मनु के भीतर होती है, तो उसके दोहरे प रणाम ह गे: इधर नुकसान का भी खतरा है, फायदा भी हो सकता है। ताकत जब भी आती है तो दोतरफा होती है। बीसव सदी के अंत तक व ान का मनस शरीर पर अ धकार अब मनु के चौथे शरीर पर व ान चला गया, जा रहा है। और आनेवाले पचास वष म--पचास वष नह कहने चा हए, आनेवाले तीस वष म. क यह बात तु शायद खयाल म न हो क हर सदी के अंत पर, उस सदी ने जो कुछ कया है वह ाइमे पर प ं च जाता है--हर सदी के अंत पर; उस सदी म जो भी पैदा होता है, सदी के अंत होते-होते

वह अपनी चरम त म आ जाता है। तो हर सदी अपने काम को अपने अंत तक पूरा करती है। इस सदी ने ब त से काम उठा रखे ह जो क तीस साल म पूरे ह गे। उनम मनु के मनस शरीर पर वेश ब त बड़ा काम है जो पूरा हो जाएगा। आ शरीर म भाषागत बाधाओं का अ त मण पांचवां जो शरीर है, जसको म आ शरीर कह रहा ं , वह चौथे का भी सू तम प है। वचार क ही तरं ग नह ह, मेरे होने क भी तरं ग ह। अगर म बलकुल भी चुप बैठा ं और मेरे भीतर कोई वचार नह चल रहा है, तब भी मेरा होना भी तरं गत हो रहा है। तुम अगर मेरे पास आओ, और मेरे पास कोई वचार नह है, तब भी तुम मेरी तरं ग के े म आओगे। और मजा यह है क मेरे वचार क तरं ग उतनी मजबूत नह ह और उतनी पे न े टग नह ह, जतनी मेरे सफ होने क तरं ग ह। इस लए जस आदमी क न वचार त बन जाती है, वह ब त भावी हो जाता है; उसके भाव का कोई हसाब लगाना मु ल है। उसके भाव का हसाब ही लगाना मु ल है; क उसके भीतर से अ क तरं ग उठनी शु हो जाती ह। वे आदमी क जानकारी म सब से सू तरं ग ह--आ शरीर क । इस लए ब त बार ऐसा आ है, जैसे महावीर के संबंध म जो बात है वह सही है क वे बोले नह , ब त कम बोले; शायद नह ही बोले। वे सफ बैठे रहगे। लोग उनके पास आकर बैठ जाएं गे और समझ लगे, चले जाएं गे। यह उस दन संभव था, यह आज ब त क ठन हो गया है। आज इस लए क ठन हो गया है क अ क जतनी.आ शरीर क जो गहरी तरं ग ह, वे आप भी तभी अनुभव कर पाएं गे, जब आप भी वचार को खोने को तैयार ह । नह तो आप अनुभव.आप अगर ब त नॉइज से भरे ह अपने वचार क , तो वे ब त सू तरं ग चूक जाएं गी; आपके आर-पार नकल जाएं गी, आप उनको पकड़ नह पाएं गे। तो अ क तरं ग अगर पकड़ म आने लग, और दोन तरफ अगर न वचार हो, तो बोलने क कोई ज रत ही नह है। तब हम ादा गहरे म कोई बात कह पाते ह और वह सीधी चली जाती है। उसम तुम ा ा भी नह करते, ा ा का उपाय भी नह होता, उसम डांवाडोल भी नह होते--ऐसा होगा क नह होगा, यह भी नह होता; वह तो सीधा तु ारा अ जानता है क हो गया। इस पांचव शरीर पर जो बात है, इस पांचव शरीर क तरं ग ज री नह है क आदमी को ही मल। इस लए महावीर के जीवन म एक और अदभुत घटना है क उनक सभा म जानवर भी रहते ह। इसको जैन साधु नह समझा पाता अब तक क ा मामला है! वह समझा भी नह पाएगा। उनक सभा म जानवर भी रहते, यह तभी संभव है, क जानवर आदमी क भाषा तो नह समझ सकता, ले कन बीइं ग क , होने क भाषा तो उतनी ही समझता है। उसम कोई फक नह है। अगर म न वचार होकर एक ब ी के पास बैठा ं , तो ब ी तो न वचार है। तुमसे तो मुझे बात ही करनी पड़े, क तु ब ी के न वचार तक ले जाना भी एक लंबी या ा है। तो इसम कोई क ठनाई नह है। अगर आ शरीर से तरं ग नकल रही ह , तो उसको पशु भी समझ सकते ह, पौधे भी समझ सकते ह, प र भी समझ सकते ह। इसम कोई क ठनाई नह है। इस शरीर तक भी वेश हो जाएगा, पर चौथे के बाद ही हो सकेगा। और चौथे म वेश हो

गया है, उसके ार कई जगह से तोड़ लए गए ह। आ शरीर तक व ान क प ं च तो आ त को तो व ान ज ी ीकार कर लेगा, बाद म जरा क ठनाई है। इस लए मने कहा क पांचव शरीर तक चीज बड़ी वै ा नक ढं ग से साफ हो सकती ह, बाद म क ठनाई होनी शु हो जाती है। उसके कारण ह। क व ान को अगर ठीक से हम समझ तो वह ेशलाइजेशन है, वह कसी एक दशा म वशेष ता है, चुनाव है। इस लए व ान उतना ही गहरा होता जाता है जतना वह कसी चीज के संबंध म, कम से कम चीज के संबंध म ादा से ादा जानने लगता है--टु नो अबाउट द ल टल एं ड टु नो मोर। तो दोहरा काम है उसका: ादा जानता है, ले कन और छोटी चीज के संबंध म, और छोटी चीज के संबंध म, और छोटी चीज के संबंध म। छोटी चीज करता जाता है और ान को बढ़ाता जाता है। जैसे पहले एक डा र था, तो पूरे शरीर के संबंध म जानता था। अब कोई डा र पूरे शरीर के संबंध म नह जानता। और अगर वैसा कोई पुराना डा र बच गया है, तो वह सफ रे ल है; वे चले जाएं गे, वे बच नह सकते। वे पुराने खंडहर ह, जनको वदा हो जाना पड़ेगा। क वह डा र अब भरोसे के यो नह रह गया; वह इतनी ादा चीज के संबंध म जानता है क ादा नह जान सकता, कम ही जान सकता है। अब आंख का डा र अलग है, कान का डा र अलग है, वह ादा भरोसे के यो है; क वह इतनी छोटी चीज के संबंध म जानता है क ादा जान सकता है। आज तो आंख पर ही इतना सा ह है क एक आदमी अपनी पूरी जदगी भी जानने म लगाए तो पूरा सा ह नह जान सकता। इस लए आज नह कल, बा आंख और दा आंख का डा र अलग हो सकता है। बांटना पड़ सकता है। कल हम आंख म भी वभाग कर सकते ह क कोई सफेद ह े के संबंध म जानता है, कोई काले ह े के। क वे भी ब त बड़ी घटनाएं ह। और उनम भी अगर व ार म.और व ान का मतलब ही यह है क वह रोज छोटा करता जाता है अपना फोकस। इस लए व ान ब त जान पाता है। उसका फोकस होता है कम, कनसन े टेड हो जाता है। शरीर और नवाण शरीर के रह म व ान का खो जाना तो पांचव शरीर तक, म कहता ं , व ान का वेश हो सकेगा; क पांचव शरीर तक इं ड वजुअल है। इस लए फोकस म, पकड़ म आ जाता है। छठव से का क है; फोकस म, पकड़ म नह आता। छठवां जो है वह का क बॉडी है, शरीर है। शरीर का मतलब है-- द टोटल। वहां व ान वेश नह कर पाएगा; क व ान छोटे , और छोटे , और छोटे पर जा सकता है। तो वह तक पकड़ लेगा। के बाद उसक द त है; का क को पकड़ना उसक द त है। का क को तो धम ही पकड़ेगा। इस लए आ ा तक व ान को क ठनाई नह आएगी, क ठनाई आएगी परमा ा पर। वहां म नह समझ पाता क कसी दन संभव हो पाएगा क व ान पकड़े, क वहां तभी पकड़ सकता है जब वह ेशलाइजेशन छोड़े। और ेशलाइजेशन छोड़े क वह व ान नह रह गया, वह वैसा ही वेग और जनरलाइ हो जाएगा जैसा धम है।

इस लए मने कहा क पांचव तक व ान के साथ सहारा और या ा हो सकेगी; छठव पर वह खो जाएगा; और सातव पर तो बलकुल ही नह जा सकता। क व ान क सारी खोज जीवन क खोज है। असल म, हमारी जो जीवन क आकां ा है, जो जीवेषणा है क हम जीना चाहते ह--कम बीमार, ादा , ादा देर, ादा सुख से, ादा सु वधा से। व ान क मूल ेरणा ही जीवन को गहरा, सुखद, संतु , शांत, बनाने क है। और सातवां शरीर जो है वह मृ ु का अंगीकार है; वह महामृ ु है। वहां साधक जीवन क खोज के पार आ गया; अब वह कहता है: हम मृ ु को भी जानना चाहते ह; हमने होना जान लया, अब हम न होना भी जानना चाहते ह; हमने बीइं ग जान लया, अब हम नॉनबीइं ग भी जानना चाहते ह। वहां व ान का कोई अथ नह है। तो वै ा नक तो वहां कहेगा--जैसा ायड कहता है-- क डेथ वश, यह अ ी बात नह है, यह ुसाइडल है। ायड कहता है, यह अ ी बात नह है; नवाण, मो , ये ठीक बात नह ह; ये आपके मरने क इ ा के सबूत ह! आप मरना चाहते ह; आप बीमार ह। वह इसी लए कह रहा है, क वै ा नक मरने क इ ा को इनकार ही करे गा, क व ान खड़ा ही जीवन क इ ा के व ार पर है। ले कन जो आदमी जीना चाहता है वह है--ले कन एक घड़ी ऐसी आती है, तब मरना चाहना भी इतना ही हो जाता है। हां, बीच म कोई मरना चाहे तो अ है; ले कन एक घड़ी जीवन क ऐसी आ जाती है जब कोई मरना भी चाहता है। कोई कहे क जागना तो है और सोना नह है। ऐसा आ जा रहा है, क हम रात का समय दन को देते जा रहे ह। पहले छह बजे रात हो जाती थी, अब दो बजे होने लगी है। रात का समय दन को दए जा रहे ह। और कुछ वचारक ह जो कहते ह क कसी तरह से आदमी को न द से बचाया जा सके, तो उसक जदगी म ब त समय बच जाएगा। न द क इ ा ही ? इसको छोड़ ही दया जाए कसी तरह से। ले कन जैसे जागने का एक आनंद है, ऐसे ही सोने का एक आनंद है। और जैसे जागने क इ ा भी ाभा वक और है, ऐसे ही एक घड़ी सो जाने क इ ा भी और ाभा वक है। अगर कोई आदमी मरते दम तक भी जीने क आकां ा कए जाता है तो अ है; और अगर कोई आदमी ज से ही मरने क आकां ा करने लगता है, वह भी अ है। एक ब ा अगर मरने क आकां ा करता है तो बीमार है, उसका इलाज होना चा हए। और अगर एक बूढ़ा भी जीना चाहता है तो बीमार है, उसका इलाज होना चा हए। महाशू म परम वसजन परम ा है जीवन और मृ ु दो पैर ह अ के। आप एक को ीकार करते ह तो लंगड़े ही ह गे; सरे को ीकार नह करगे तो लंगड़ापन कभी नह मटे गा। दोन पैर ह--होना भी और न होना भी। और वही आदमी परम है जो दोन को एक सा आ लगन कर लेता है--होने को भी, न होने को भी। जो कहता है, होना भी जाना, अब न होना भी जान ल; जसे न होने म कोई भय नह है। तो सातवां जो शरीर है, वह तो सफ उ साहसी लोग के लए है, ज ने जीवन जान लया और अब जो मृ ु भी जानना चाहते ह। जो कहते ह, इसे भी खोजगे! जो कहते ह, हम इसे भी जानगे! जो कहते ह, हम मट जाने को भी जानना चाहते ह! यह मट जाना

ा है? यह खो जाना ा है? यह न हो जाना ा है? जीने का रस देखा, अब मृ ु का रस भी देखना है। अब तु इस संबंध म यह भी जान लेना उ चत होगा क जो हमारी मृ ु है, वह सातव शरीर से ही आती है। साधारण मृ ु भी, वह हमारे सातव शरीर से आती है; और जो हमारा जीवन है, वह हमारे पहले शरीर से आता है। तो ज जो है, वह भौ तक शरीर से शु होता है। ज का मतलब ही है भौ तक शरीर क शु आत। इस लए मां के पेट म पहले भौ तक शरीर न मत होता है, फर और शरीर वेश करते ह। पहला शरीर हमारा ज क शु आत है; और अं तम शरीर, जसको नवाण शरीर मने कहा, वहां से हमारी मृ ु आती है। और जो इस भौ तक शरीर को जोर से पकड़ लेता है, वह इस लए मौत से ब त डरता है। और जो मौत से डरता है, वह सातव शरीर को नह जान पाएगा कभी। इस लए धीरे -धीरे भौ तक शरीर से पीछे हटते-हटते वह घड़ी आ जाती है, जब हम मौत को भी अंगीकार कर लेते ह; तभी हम जान पाते ह। और जो मौत को जान लेता है, वह प रपूण अथ म मु हो जाता है; क तब जीवन और मृ ु एक ही चीज के दो पहलू हो जाते ह, और वह दोन के बाहर हो जाता है। वै ा नक बु और धा मक दय: एक लभ संयोग यह सातव शरीर तक व ान कभी जाएगा, इसक कोई आशा नह है; छठव शरीर तक जा सकेगा, इसक संभावना नह है। पांचव तक जा सकता है, क चौथे के ार खुल गए ह और पांचव पर जाने म कोई क ठनाई नह रह गई है व ुतः। सफ ऐसे लोग क ज रत है जनके पास वै ा नक बु हो और जनके पास धा मक दय हो--वे अभी वेश कर जाएं । यह मु ल कां बनेशन है थोड़ा; क वै ा नक क जो े नग है, वह उसे धा मक होने से कई दशाओं से रोक देती है; और धा मक क जो े नग है, वह उसे वै ा नक होने से कई दशाओं से रोक देती है। तो इन दोन े नग का कह ओवरलै पग नह हो पाता, इससे बड़ी क ठनाई है। कभी ऐसा होता है। जब भी ऐसा होता है, तब नया म एक नई पीक ान क , एक नया शखर पैदा हो जाता है--जब भी कभी ऐसा होता है। जैसे पतंज ल! अब वह आदमी वै ा नक बु का है और धम म वेश कर गया। तो उसने योग को एक चोटी पर प ं चा दया, जसके बाद फर उस चोटी को पार करना अब तक संभव नह आ है। एक ऊंचाई पर बात चली गई, पतंज ल को मरे ब त व हो गया, ब त काम हो सकता था; ले कन पतंज ल जैसा आदमी नह मल सका, जसके पास एक वै ा नक क बु थी और जसके पास एक धा मक साधना का जगत था। एक ऐसे शखर पर बात प ं च गई क उसके बाद फर योग का कोई शखर सरा उससे ऊंचा नह उठा सका। अर वद ने ब त को शश क , ले कन सफल नह हो सके। अर वद के पास भी एक वै ा नक क बु थी, और शायद पतंज ल से ादा थी; क सारा श ण उनका प म म आ। अर वद का श ण बड़ा मह पूण है। बाप ने अर वद को ह ान से ब त छोटी उ म, पांच-छह वष क उ म भेज दया, और स मनाही क क अब इसे ह ान तब तक वापस नह लौटाना है जब तक यह पूरा मै ोर न हो जाए। यह हालत आ गई क बाप के मरने का व आ गया और लोग ने चाहा क अर वद को वापस भेज

द। उ ने कहा क नह , म मर जाऊं, यह बेहतर; ले कन लड़का पूरी तरह प म को पीकर लौटे ; पूरब क छाया भी न पड़ जाए उस पर; उसे खबर भी न दी जाए क म मर गया। ह तवर बाप था ऐसे। तो अर वद पूरे प म को पीकर लौटे । अगर ह ान म कोई आदमी ठीक अथ म वे न था तो वह अर वद थे। वह अपनी भाषा उनको लौटकर सीखनी पड़ी--मातृभाषा। वे तो सब भूल-भाल गए थे। तो व ान तो पूरा हो गया इस आदमी म, ले कन धम पीछे से आरो पत था, वह ब त गहरा नह जा सका। धम जो था वह ब त बाद म ऊपर से ांटेड था, वह ब त गहरा नह जा सका। नह तो पतंज ल से ऊंचा शखर अर वद छू सकते थे। वह नह हो सका। वह े नग जो थी प म क , वह ब त गहरे अथ म बाधा बन गई। और बाधा इस तरह से बन गई क वे, जैसा वै ा नक सोचता है, उसी तरह से सोचने म लग गए। तो डा वन क सारी एवो ूशन वे धम म ले आए। प म से जो-जो खयाल लाए थे, उन सबको धम म उ ने व कर दया; ले कन धम का उनके पास कोई खयाल नह था, जो वे व ान म वेश कर द। इस लए व ान क बड़ी काया, बड़ा वा ू मनस सा ह उ ने रच डाला; ले कन उसम धम नह है; धम उसम ब त ऊपरी है। जब भी कभी ऐसा आ है क वै ा नक बु और धा मक बु का कह कोई तालमेल हो गया है तो बड़ा शखर छु आ जा सकता है। ऐसा पूरब म हो सकेगा, इसक संभावना कम होती जाती है; क पूरब के पास धम भी खो गया है और व ान तो है ही नह । प म म ही हो सके, इसक संभावना ादा है; क व ान अ तशय हो गया है। और जब भी कोई अ तशय हो जाती है चीज, तो पडुलम सरी तरफ झूलना शु हो जाता है। तो प म का जो ब त बु मान वग है, वह जस रस से अब गीता को पढ़ता है, उस रस से ह ान म कोई नह पढ़ता। जब पहली दफा शापेनहार ने गीता पढ़ी तो सर पर रखकर वह नाचने लगा--नाचता आ घर के बाहर आ गया। और लोग ने कहा, ा हो गया? पागल हो गए हो? उसने कहा क यह ंथ पढ़ने यो नह , सर पर रखकर नाचने यो है। मुझे पता ही नह था क ऐसी बात कहनेवाले लोग भी हो गए ह। यह ा कह दया! यह भाषा म आ सकता है? यह श म बंध सकता है? म तो सोचता था: बंध ही नह सकता। यह तो बंध गया! यह तो कुछ बात कह दी गई! अब ह ान म गीता सर पर रखकर नाचनेवाला आदमी नह मलेगा। हां, ब त लोग मलगे जो गीता क बैलगाड़ी बनाकर और उस पर सवार होकर चल रहे ह। वे लोग मलगे। वह उनसे कोई.उनसे कोई अथ नह होता है। पर इस सदी के पूरे होते-होते एक बड़ा शखर छू लया जा सकेगा, क जब ज रत होती है तो हजार-हजार कारण सारे जगत म स य हो जाते ह। आइं ीन मरते-मरते धा मक आदमी होकर मरा है। जीते जी तो वै ा नक था, मरते-मरते धा मक आदमी होकर मरा है। इस लए जो सरे ब त अ तशय वै ा नक ह, वे कहते ह, आइं ीन क आ खरी बात को गंभीरता से नह लेना चा हए; उसका दमाग खराब हो गया होगा। क आ खरआ खर म उसने जो कहा है, वह ब त अदभुत है।

आइं ीन आ खरी-आ खरी व कहते मरा है क म सोचता था--जगत को जान लूंगा; ले कन जतना जाना, उतना पाया क जानना असंभव है, जानने को अनंत शेष है। और म सोचता था क एक दन व ान जगत के रह को तोड़कर ग णत का सवाल बना देगा, म ी ख हो जाएगी; ले कन ग णत का सवाल बड़ा होता चला गया, जगत क म ी तो कम न ई, ग णत का सवाल ही और बड़ी म ी हो गया; अब उसको भी हल करना मु ल है। आधु नक व ान धम क त न म प म म और भी चोटी के दो-चार वै ा नक धम क प र ध के करीब घूम रहे ह। व ान म ही वैसी संभावनाएं पैदा हो गई ह, क वह जैसे ही तीसरे शरीर के करीब प ं च रहा है-- सरे को वह पार कर गया है--जैसे ही वह तीसरे के करीब प ं च रहा है, धम क त न अ नवाय है; क अब वह अनसट ी के, ोबे ब लटी के, अ न य के, अननोन के जगत म खुद ही वेश कर रहा है। अब उसको कह न कह ीकार करना पड़ेगा: अ ात है! अब उसको ीकार करना पड़ेगा: जो दखाई पड़ता है, उससे अ त र भी है; जो नह दखाई पड़ता, वह भी है; जो नह सुनाई पड़ता, वह भी है। क आज से सौ ही साल पहले हम कह रहे थे--जो नह सुनाई पड़ता, वह नह है; जो नह दखाई पड़ता, वह नह है; जो नह श म आता, वह नह है। अब व ान कहता है--नह , इतना है क श म तो ब त कम आता है; श क तो बड़ी सीमा है, अ श का बड़ा व ार है। इतना है क सुनाई तो ब त कम पड़ता है, न सुनाई पड़नेवाला अनंत है। इतना है क दखाई तो छोटा सा पड़ता है, न दखाई पड़नेवाला अ , अछोर है। असल म, अब हमारी आंख जतना पकड़ती है, वह ब त छोटा सा पकड़ती है। एक खास वेवलथ पर हमारी आंख पकड़ती है; और एक खास वेवलथ पर हमारा कान सुनता है; और उसके नीचे करोड़ वेवलथ ह और उसके ऊपर करोड़ वेवलथ ह। कभी ऐसी भूल हो जाती है। एक आदमी पछली दफा आ पर कह कसी पहाड़ पर चढ़ता था और गर पड़ा। गरने से उसके कान को चोट लगी, और वह जस गांव का रहनेवाला था, उसके रे डयो े शन को उसने पकड़ना शु कर दया--कान से! जब वह अ ताल म भत था तो वह ब त मु ल म पड़ गया। वह दन भर.वहां कोई ऑन-ऑफ करने का उपाय नह है कान म अभी। पहले तो वह समझा क कुछ. ा हो रहा है? मेरा दमाग खराब हो रहा है या ा हो रहा है? ले कन धीरे -धीरे चीज साफ होने लग । और उसने डा र से कहा, यह ा हो रहा है? आसपास कोई रे डयो बजाता है या ा बात है अ ताल म? क मुझे सब सुनाई पड़ता है। उ ने कहा, रे डयो अ ताल म कहां बज रहा है! आपको वहम हो गया होगा। उसने कहा क नह , मुझे ये-ये समाचार सुनाई पड़ रहे ह। डा र भागा, बाहर गया, आ फस म जाकर रे डयो बजाया। उस व उसके गांव के े शन पर समाचार सुनाई पड़ रहे थे; जो उसने बताए थे, वह बताया जा रहा था। फर तो तालमेल बठाया गया; पाया गया क उसका कान स य हो गया है। उसका कान जो है, वेवलथ बदल गई चोट लगने से। आज नह कल--रे डयो ऐसा अलग हो, यह गलत है--आज नह कल, यह इं तजाम हो जाएगा क हम कान क वेवलथ सीधे डाइवट कर सक, कान म एक मशीन ऊपर से लगा

ल, उसक वेवलथ बदल सक, तो वह उस र पर सुन सके। करोड़ आवाज हमारे आसपास से गुजर रही ह। छोटी-मोटी आवाज नह , क हम कुछ अपने कान के नीचे क आवाज भी सुनाई नह पड़ती, उससे बड़ी आवाज भी सुनाई नह पड़ती। अगर एक तारा टूटता है तो उसक भयंकर गजना क आवाज हमारे चार तरफ से नकलती है, ले कन हम सुन नह पाते, नह तो हम बहरे हो जाएं । बड़ी-बड़ी आवाज नकल रही ह, बड़ी छोटी आवाज नकल रही ह। वे हमारी पकड़ म नह ह। बस एक छोटा सा दायरा है हमारा। जैसे क हमारे शरीर क गम का एक दायरा है क अ ानबे ड ी से एक सौ दस ड ी के बीच हम जीते ह। इधर अ ानबे से नीचे गरना शु ए क मरने के करीब प ं चे, उधर एक सौ दस के पार गए क मरे । यह दस-बारह ड ी क हमारी कुल नया है। गम ब त है--आगे भी ब त है, पीछे भी कम ब त है। उससे हमारा कोई संबंध नह है। इसी तरह हर चीज क हमारी एक सीमा है। पर उस सीमा के बाहर जो है उसके बाबत? वह भी है। व ान ने उसक ीकृ त शु कर दी है। ीकृ त होती है, फर धीरे से खोज शु हो जाती है क वह कहां है? कैसी है? ा है? उस सबको जाना जा सकेगा; उस सबको पहचानना जा सकेगा। और इस लए मने कहा था क पांचव तक संभव हो सकता है। : ओशो, नॉन-बीइं ग को कौन जानता है और कस आधार पर जानता है ?

न, यह सवाल नह है, यह सवाल नह उठे गा। यह सवाल न उठे गा, न बन सकता है। क जब हम कहते ह क न होने को कौन जानता है, तो हमने मान लया क अभी कोई बचा। फर न होना नह आ। नवाण शरीर के अनुभव क कोई अ भ नह : रपो टग कैसे होगी?

कोई रपो टग नह होती; कोई रपो टग नह होती। ऐसा होता है.ऐसा होता है, जैसे रात को तुम सोते हो; जब तक तुम जागे होते हो तभी तक का तु पता होता है, जस व तुम सो जाते हो उस व तु पता नह होता; जागते तक का पता होता है। तो रपो टग जागने क करते हो तुम। ले कन आमतौर से तुम कहते उलटा हो--वह रपो टग गलत है--तुम कहते हो, म आठ बजे सो गया। तु कहना चा हए, म आठ बजे तक जागता था। क सोने क तुम रपोट नह कर सकते। क सो गए तो रपोट कौन करे गा? उस तरफ से रपोट होती है क म आठ बजे तक जागता था, यानी आठ बजे तक मुझे पता था क अभी म जाग रहा ं , ले कन आठ बजे के बाद मुझे पता नह । फर म सुबह छह बजे उठ आया,

तब मुझे पता है। बीच म एक गैप छूट गया--आठ बजे और छह बजे के बीच का; उस व म सोया या, यह इनफरस है। यह उदाहरण के लए तुमसे कह रहा ं । उदाहरण के लए तुमसे कह रहा ं क तु छठव शरीर तक का पता होगा। सातव शरीर म तुम डुबक लगाकर छठव म वापस आओगे, तब तुम कहोगे क अरे , म कह और चला गया था, नॉन-बीइं ग हो गया था। यह जो रपो टग है, यह रपो टग छठव शरीर तक है। इस लए सातव शरीर के बाबत कुछ लोग ने बात ही नह क । नह करने का भी कारण था। क जसको नह कहा जा सकता उसको कहना ही ! अभी एक आदमी था वट ग ीन, उसने बड़ी क मती कुछ बात लख । उसम एक बात उसक यह भी है, क दैट च कैन नाट बी सेड, म नाट बी सेड। जो नह कही जा सकती, उसको कहना ही नह चा हए। क ब त लोग ने उसको कह दया, और हमको द त म डाल दया। क वह साथ उनक शत यह भी है क नह कह जा सकती और फर कहा भी है, तो वह कहना जो है वह नगे टव रपो टग है। वह उस त क नह , उस त के पहले तक क , आ खरी पड़ाव तक क खबर है, क यहां तक म था, इसके बाद म नह था; क इसके बाद म, न जाननेवाला था, न कुछ जानने को बचा था; न कोई रपोट लानेवाला था, न कोई रपोट क जगह थी। मगर एक सीमा के बाद यह आ था, उस सीमा के पहले म था। बस, तो वह सीमा-रे खा छठव शरीर क सीमा-रे खा है। अगम, अगोचर, अवणनीय नवाण छठव शरीर तक वेद, उप नषद, गीता, बाइ बल जाते ह। असल म, जो अगोचर और अवणनीय जो है, वह सातवां है। छठव तक कोई अड़चन नह है। पांचव तक तो बड़ी सरलता है। ले कन उसक कोई. क बचता नह कोई जाननेवाला; जानने को भी कुछ नह बचता। असल म, जसको हम बचना कह, वही नह बचता। तो यह जो खाली अंतराल है, यह जो शू है, इसको हम कहगे तो हमारे सब श नषेधा क ह गे। इस लए वेद-उप नषद कहगे--ने त, ने त। वे कहगे क यह मत पूछो, वहां ा था; यह हम बता सकते ह, ा- ा नह था-- दस इज़ नाट, दैट इज़ नाट; यह भी नह था, वह भी नह था। और यह मत पूछो क ा था; वह हम न कहगे। हम इतना ही बता सकते ह क यह भी नह था, यह भी नह था--प ी भी नह थी, पता भी नह था, पदाथ भी नह था, अनुभव भी नह था, ान भी नह था, म भी नह था, अहं कार भी नह था, जगत भी नह था, परमा ा भी नह था--नह था; क यह हमारे छठव क सीमा-रे खा बनती है। ा था? तो एकदम चुप हो जाएं गे; उसको नह कहा जा सकेगा। नवाण शरीर क अ भ के लए बु का सवा धक यास इस लए तक खबर दे दी गई ह। इस लए जन लोग ने के बाद क खबर द .खबर तो नषेधा क होगी, इस लए वह हमको नगे टव लगेगी। जैसे बु ; बु ने बड़ी मेहनत क है उसके बाबत खबर देने क । इस लए सब नकार है, इस लए सब नषेध है। इस लए ह ान के मन को बात नह पकड़ी। ान ह ान को पकड़ता था, वहां तक पा ज टव चलता है। ऐसा है--आनंद है, चत् है, सत् है। यहां तक चलता है। यहां

तक पा ज टव एसशन हो जाता है; हम कह सकते ह--यह है, यह है, यह है। बु ने, जो-जो नह है, उसक बात कही। वह सातव क बात करने क , शायद उस अकेले आदमी ने सातव क बात करने क बड़ी मेहनत क । इस लए बु क जड़ उखड़ ग इस मु से, क वे जस जगह क बात कर रहे थे वहां जड़ नह ह; जस जगह क बात कर रहे थे वहां के लए कोई आकार नह है, प नह है। हम सब सुनते थे, हम लगा क बेकार है, वहां जाकर भी ा करगे जहां कुछ भी नह है! हम तो कुछ ऐसी जगह बताइए जहां हम तो ह गे कम से कम। बु ने कहा, तुम तो होओगे ही नह । तो हम लगा क फर इस खतरे म पड़ना! हम तो अपने को बचाना चाहते ह आ खर तक। इस लए बु और महावीर दोन मौजूद थे, ले कन महावीर क बात लोग को ादा समझ म पड़ी, क महावीर ने पांचव के आगे बात ही नह क , छठव क भी बात नह क। क महावीर के पास एक वै ा नक च था, और उनको छठवां भी लगा क वह भी, श वहां डांवाडोल, सं द हो जाते ह। पांचव तक श बलकुल थर चलता है और एकदम वै ा नक रपो टग संभव है, क हम कह सकते ह: ऐसा है, ऐसा है। क पांचव तक हमारा जो अनुभव है उससे तालमेल खाती ई चीज मल जाती ह। समझ लो क एक आदमी.एक महासागर म एक छोटा सा ीप है; उस ीप पर एक ही तरह के फूल खलते ह। छोटा ीप है, एक ही तरह के फूल खलते ह; दस-पचास लोग उस ीप पर रहते ह। वे कभी बाहर नह गए। तो वहां से कोई या ी जहाज नकल रहा है और एक उनम कोई बु मान आदमी है, वह उसको अपने जहाज पर ले आता है; वह अपने देश म उसे ले आता है। वह यहां हजार तरह के फूल देखता है। फूल का मतलब उसके लए एक ही फूल था। फूल का मतलब वही फूल था जो उसके ीप पर होता था। पहली दफा फूल के मतलब का व ार होना शु होता है। फूल का मतलब वही नह था जो था। अब उसे पता चलता है क फूल तो हजार ह। वह कमल देखता है, वह गुलाब देखता है, वह चंपा देखता है, चमेली देखता है। अब वह बड़ी मु ल म पड़ जाता है क म जाकर लोग को कैसे समझाऊंगा क फूल का मतलब यही फूल नह होता, फूल के नाम होते ह। उसके ीप पर नाम नह ह गे; क जहां एक होता है वहां नाम नह होता। वहां फूल ही नाम होगा। वह काफ है। गुलाब का फूल कहने क कोई ज रत नह , चंपा का फूल कहने क कोई ज रत नह । अब वह कहेगा क म उनको कैसे समझाऊंगा क चंपा ा है। वे कहगे, फूल ही न! तो फूल तो उनका एक साफ है उनके सामने। अब वह आदमी लौटता है। अब वह बड़ी मु ल म पड़ गया है। फर भी कुछ उपाय है, क एक फूल तो कम से कम उस ीप पर है--फूल तो है कम से कम। वह बता सकता है क यह लाल रं ग है, सफेद रं ग का भी फूल होता है। उसको यह नाम कहते ह। यह छोटा फूल है, ब त बड़ा फूल होता है, उसको कमल कहते ह। फर भी उस ीप के नवा सय को वह थोड़ा-ब त क ु नकेट कर पाएगा, क एक फूल उनक भाषा म है। और सरे फूल को भी थोड़ा इशारा कया जा सकता है। ले कन समझ ल क वह आदमी चांद पर चला जाए--वह आदमी जहाज पर बैठकर

कसी ीप पर न आए, ब एक अंत र या ी उसको चांद पर ले जाए--जहां फूल ह ही नह ; जहां पौधे नह ह; जहां हवा का आयतन अलग है, दबाव अलग है--और वह अपने ीप पर वापस लौटे , और उस ीप के लोग पूछ क तुम ा देखकर आए? चांद पर ा पाया? तो खबर देना और मु ल हो जाए, क कोई तालमेल नह बैठता क वह कैसे खबर दे; ा कहे, वहां ा देखा; उसक भाषा म उसे कोई श न मल। ठीक ऐसी त है। पांचव तक हमारी जो भाषा है उसम हम श मल जाते ह, पर वे श ऐसे ही होते ह क हजार फूल और एक फूल का फक होता है। छठव से भाषा गड़बड़ होनी शु हो जाती है। छठव से हम ऐसी जगह प ं चते ह जहां एक और अनेक का भी फक नह है, और मु ल होनी शु हो जाती है। फर भी, नषेध से थोड़ा-ब त काम चलाया जा सकता है; या टोटे लटी क धारणा से थोड़ा-ब त काम चलाया जा सकता है। हम कह सकते ह क वहां कोई सीमा नह है, असीम है। सीमाएं हम जानते ह, असीम हम नह जानते। तो सीमा के आधार पर हम कह सकते ह क वहां सीमाएं नह ह, असीम है वहां। तो भी थोड़ी धारणा मलेगी। हालां क प नह मलेगी; हम शक तो होगा क हम समझ गए, हम समझगे नह । इस लए बड़ी गड़बड़ होती है। हम लगता है क हम समझ गए, ठीक तो कह रहे ह क सीमाएं वहां नह ह। ले कन सीमाएं नह होने का ा मतलब होता है? हमारा सारा अनुभव सीमा का है। यह वैसा ही समझना है, जैसे उस ीप के आदमी कह क अ ा हम समझ गए, फूल ही न! तो वह आदमी कहेगा, नह -नह , उस फूल को मत समझ लेना; क उससे कोई मामला नह है, यह हम ब त सरी बात कर रहे ह। ऐसा फूल तो वहां होता ही नह , वह कहेगा। तो वे लोग कहगे, फर उनको फूल कस लए कहते हो जब ऐसा फूल नह होता? फूल तो यही है। हमको भी शक होता है क हम समझ गए; कहते ह: असीम है परमा ा। हम कहते ह, समझ गए। ले कन हमारा सारा अनुभव सीमा का है; समझे हम कुछ भी नह । सफ सीमा श को समझने क वजह से उसम अ लगाने से हमको लगता है क सीमा वहां नह होगी, हम समझ गए। ले कन सीमा नह होगी, इसको जब कंसीव करने बैठगे क कहां होगा ऐसा जहां सीमा नह होगी, तब आप घबड़ा जाएं गे। क आप कतना ही सोच, सीमा रहेगी। आप और बढ़ जाएं , और बढ़ जाएं , अरब-खरब, सं ा टूट जाए, मील और काश वष समा हो जाएं --जहां भी आप कगे, फौरन सीमा खड़ी हो जाएगी। असीम का मतलब हमारे मन म इतना ही हो सकता है, जसक सीमा ब त र है-ादा से ादा; इतनी र है क हमारी पकड़ म नह आती, ले कन होगी तो। चूक गए, वह नह बात पकड़ म आई। इस लए छठव तक क बात कही जाएगी; लोग समझगे, समझ गए; समझगे नह । सातव क बात तो इतनी भी नह समझगे क समझ गए। सातव क बात का तो कोई सवाल ही नह है। वे तो साफ ही कह दगे, ा ए ड बात कर रहे हो? यह ा कह रहे हो? श ातीत, अथातीत स का तीक--ओम् इस लए सातव के लए फर हमने ए ड श खोजे, जनका कोई अथ नह होता। जैसे

ओम्। इसका कोई अथ नह होता। इसका कोई अथ नह होता, यह अथहीन श है। यह हमने सातव के लए योग कया। जब कोई जद ही करने लगा, छठव तक हमने बात कही और जब वह जद ही करने लगा, हमने कहा--ओम्। इस लए सारे शा सब लखने के बाद आ खर म ओम् शां त! ओम् शां त का मतलब आप समझते ह? सातवां, समा ; अब इसके आगे नह बात-- द सेवथ, द एं ड। वे दोन एक ही मतलब रखते ह। इस लए हर शा के पीछे हम इ त नह लखते, ओम् शां त लख देते ह। वह ओम् सूचक है सातव का क अब कृपा करो, इसके आगे बातचीत नह चलेगी, अब शांत हो जाओ। तो हमने एक ए ड श खोजा, उसका कोई अथ नह है। उसका कोई मतलब नह होता, क उसका कोई मतलब होता हो। मतलब हो तो वह बेकार हो गया; क हमने उस नया के लए खोजा जहां सब मतलब ख हो जाते ह; वह गैर-मतलब श है। इस लए नया क कोई भाषा म वैसा श नह है। योग कए गए ह--जैसे अमीन। पर वह शां त का मतलब है उसका। योग कए गए ह, ले कन ओम् जैसा श नह है। जैसे क ईसाई ाथना करे गा और आ खर म कहेगा--अमीन। वह यह कह रहा है--बस ख ; शां त इसके बाद; अब श नह । ले कन ओम् जैसा श नह है। उसका कोई अनुवाद नह है संभव। वह हमने सातव के लए तीक चुन लया था जसको। इस लए मं दर म उसे खोदा था--सातव क खबर देने के लए क छठव तक मत क जाना। वे ओम् बनाते ह, राम और कृ को उसके बीच म खड़ा कर देते ह। ओम् उनसे ब त बड़ा है। कृ उसम से झांकते ह, ले कन कृ कुछ भी नह ह, ओम् ब त बड़ा है। उसम से सब झांकता है, और सब उसी म खो जाता है। इस लए ओम् से क मत हमने कसी और चीज को कभी ादा नह दी है। वह प व तम है। प व तम इस अथ म है, हो लए इस अथ म है, क वह अं तम है; उसके पार, बयांड, जहां सब खो जाता है, वहां वह है। तो सातव क रपो टग क बात नह होती है। हां, इसी तरह नकार क खबर दी जा सकती ह--यह नह होगा, यह नह होगा। ले कन यह भी छठव तक ही साथक है। सातव के संबंध म इस लए ब त लोग चुप ही रह गए। या ज ने कहा, वे कहकर बड़ी झंझट म पड़े। और कहते ए, बार-बार कहते ए उनको कहना पड़ा क यह कहा नह जा सकता; इसको बार-बार दोहराना पड़ा क हम कह तो ज र रहे ह, ले कन यह कहा नह जा सकता। तब हम पूछते ह उनसे क भई बड़ी मु ल है; जब नह कहा जा सकता, आप कह ही मत। फर वे कहते ह, वह है तो ज र! और उस जैसी कोई चीज नह है जो कहने यो हो; ले कन उस जैसी कोई चीज भी नह है जो कहने म न आती हो। कहने यो तो ब त है, खबर देने यो है ब त, रपोटबल वही है, क उसक कोई खबर दे। ले कन क ठनाई भी यही है क उसक कोई खबर नह हो सकती; उसे जाना जा सकता है, कहा नह जा सकता। और इस लए उस तरफ से आकर जो लोग गूंगे क तरह खड़े हो जाते ह हमारे बीच म-जो बड़े मुखर थे, जनके पास बड़ी वाणी थी, जनके पास बड़े श क साम थी, जो सब कह पाते थे, जब वे भी अचानक गूंगे क तरह खड़े हो जाते ह--तब उनका गूंगापन कुछ कहता है; उनक गूंगी आंख कुछ कहती ह।

जैसा तुम पूछते हो, ऐसा बु ने नयम बना रखा था क वे कहते, यह पूछो ही मत; यह पूछने यो ही नह , यह जानने यो है। तो वे कहते, यह अ ा है, इसक ा ा मत करवाओ; मुझसे गलत काम मत करवाओ। लाओ े कहता है क मुझसे कहो ही मत क म लखूं, क जो भी म लखूंगा वह गलत हो जाएगा। जो मुझे लखना है वह म लख ही न पाऊंगा; और जो मुझे नह लखना है उसको म लख सकता ं , ले कन उससे मतलब ा है! तो जदगी भर टालता रहा--नह लखा, नह लखा, नह लखा। आ खर म मु ने परे शान ही कया तो छोटी सी कताब लखी, पर उसम पहले ही लख दया क स को कहा क वह झूठ हो जाता है। पर यह सेवथ, यह सातव स क बात है, सभी स क बात नह है। छठव तक कहने से झूठ नह हो जाता। छठव तक कहने से सं द होगा, पांचव तक कहने से बलकुल सु न त होगा, सातव पर कहने से झूठ हो जाएगा। जहां हम ही समा हो जाते ह, वहां हमारी वाणी और हमारी भाषा कैसे बचेगी! वह भी समा हो जाती है। ओम् श नह , च है : ओशो, ओम् को तीक

चुना गया? उसक

ा-

ा वशेषताएं ह?

ओम् को चुनने के दो कारण ह। एक तो, एक ऐसे श क तलाश थी जसका अथ न हो, जसका तुम अथ न लगा पाओ; क अगर तुम अथ लगा लो तो वह पांचव के इस तरफ का हो जाएगा। एक ऐसा श चा हए था जो एक अथ म मी नगलेस हो। हमारे सब श मी नगफुल ह। श बनाते ही हम इस लए ह क उसम अथ होना चा हए। अगर अथ न हो तो श क ज रत ा है? उसे हम बोलने के लए बनाते ह। और बोलने का योजन ही यह है क म तु कुछ समझा पाऊं; म जब श बोलू,ं तो तु ारे पास कोई अथ का इशारा हो पाए। जब लोग सातव से लौटे या सातव को जाना, तो उ लगा क इसके लए कोई भी श बनाएं गे, उसम अगर अथ होगा, तो वह पांचव शरीर के पहले का जो जाएगा--त ाल। उसका भाषा-कोश म से अथ लख दया जाएगा; लोग पढ़ लगे और समझ लगे। ले कन सातव का तो कोई अथ नह हो सकता। या तो कहो मी नगलेस, अथहीन; या कहो बयांड मी नग, अथातीत; दोन एक ही बात है। तो उस अथातीत के लए--जहां क सब अथ खो गए ह, कोई अथ ही नह बचा है--कैसा श खोज? और कैसे खोज? और उस श को कैसे बनाएं ? तो श को बनाने म बड़े व ान का योग कया गया। वह श बनाया ब त.ब त ही क नाशील, और बड़े वज़न, और बड़े र से वह श बनाया गया; क वह बनाया जा रहा था और एक ट, एक मौ लक श था जो मूल आधार पर खड़ा करना था। तो कैसे इस श को खोज जसम क कोई अथ न हो; और कस कार से खोज क वह गहरे अथ म मूल आधार का तीक भी हो जाए?

तो हमारी भाषा क जो मूल न ह, वे तीन ह: ए, यू, एम--अ, ऊ, म। हमारा सारा का सारा श का व ार इन तीन नय का व ार है। तो ट नयां तीन ह--अ, ऊ, म। अ ा अ, ऊ और म म कोई अथ नह है; अथ तो इनके संबंध से तय होगा। अ जब ‘अब’ बन जाएगा, तो अथपूण हो जाएगा; म जब कोई श बन जाएगा तो अथपूण हो जाएगा। अभी अथहीन ह। अ, ऊ, म, इनका कोई अथ नह है। और ये तीन मूल ह। फर सारी हमारी वाणी का व ार इन तीन का ही फैलाव है, इन तीन का ही जोड़ है। तो ये तीन मूल नय को पकड़ लया गया--अ, ऊ, म, तीन के जोड़ से ओम् बना दया। तो ओम् लखा जा सकता था, ले कन लखने से फर शक पैदा होता कसी को क इसका कोई अथ होगा; क फर वह श बन जाता। ‘अब’, ‘आज’, ऐसा ही ओम् म भी एक श बन जाता। और लोग उसका अथ नकाल लेते क ओम् यानी वह जो सातव पर है। तो फर श न बनाएं इस लए हमने च बनाया ओम् का, ता क श , अ र का भी उपयोग मत करो उसम। अ, ऊ, म तो है वह, पर वह न है--श नह , अ र नह । इस लए फर हमने ओम् का च बनाया, उसको प ोरइल कर दया, ता क उसम सीधा कोई भाषा-कोश म खोजने न चला जाए उसे-- क ओम् का ा मतलब होता है। तो वह ओम् जो है आपक आंख म गड़ जाए और वाचक बन जाए क ा मतलब? जब भी कोई आदमी सं ृ त पढ़ता है या पुराने ंथ पढ़ने नया के कसी कोने से आता है, तो इस श को बताना मु ल हो जाता है उसे। और श तो सब समझ म आ जाते ह, क सबका अनुवाद हो जाता है। वह बार-बार द त यह आती है क ओम् यानी ा? इसका मतलब ा है? और फर इसको अ र म नह लखते हो? इसको ओम् लखो न! यह च बनाया आ है? उस च को भी अगर तुम गौर से देखोगे, तो उसके भी तीन ह े ह, और वे अ, ऊ और म के तीक ह। वह प र भी बड़ी खोज है, वह च भी साधारण नह है। और उस च क खोज भी चौथे शरीर म क गई है। उस च क खोज भी भौ तक शरीर से नह क गई है, वह चौथे शरीर क खोज है। असल म, जब चौथे शरीर म कोई जाता है और न वचार हो जाता है, तब उसके भीतर अ, ऊ, म, इनक नयां गूंजने लगती ह और उन तीन का जोड़ ओम् बनने लगता है। जब पूण स ाटा हो जाता है वचार का, जब सब वचार खो जाते ह, तब नयां रह जाती ह और ओम् क न गूंजने लगती है। वह जो ओम् क न गूंजने लगती है, वहां चौथे शरीर से उसको पकड़ा गया है क ये जहां वचार खोते ह, भाषा खोती है, वहां जो शेष रह जाता है, वह ओम् क न रह जाती है। न वचार चेतना म ओम् का आ वभाव इधर से तो उस न को पकड़ा गया। और जैसा मने तुमसे कहा क जस तरह हर श का एक पैटन है, हर श का एक पैटन है.जब हम एक श का योग करते ह तो हमारे भीतर एक पैटन बनना शु होता है। तो जब यह ओम् क न रह जाती है भीतर सफ, तब अगर इस न पर एका कया जाए च , तो न--अगर पूरी तरह से च एका हो, जो क चौथे पर हो जाना क ठन नह है, और जब यह ओम् सुनाई पड़ेगा तो हो ही जाएगा। उस चौथे शरीर म ओम् क न गूंजती रहे, गूंजती रहे, गूंजती रहे, और अगर कोई एका इसको सुनता रहे, तो इसका च भी उभरना शु हो जाता है।

इस तरह बीज मं खोजे गए--सारे बीज मं इस लए खोजे गए। एक-एक च पर जो न होती है, उस न पर जब एका च से साधक बैठता है, तो उस च का बीज श उसक पकड़ म आ जाता है। और वे बीज श इस तरह न मत कए गए। ओम् जो है, वह परम बीज है; वह कसी एक च का बीज नह है, वह परम बीज है; वह सातव का तीक है--या अना द का तीक है, या अनंत का तीक है। ओम्--सावभौ मक स इस भां त उस श को खोजा गया। और करोड़ लोग ने जब उसको टै ली कया और ीकृ त दी, तब वह ीकृत आ। एकदम से ीकृत नह हो गया; सहज ीकृत नह कर लया क एक आदमी ने कह दया। करोड़ साधक को जब वही त बार हो गया, और जब वह सु न त हो गया। इस लए ओम् श जो है, वह कसी धम क , कसी सं दाय क बपौती नह है। इस लए बौ भी उसका उपयोग करगे, बना फकर कए; जैन भी उसका उपयोग करगे, बना फकर कए। ह ओं क बपौती नह है वह। उसका कारण है। उसका कारण यह है क वह तो साधक को--अनेक साधक को, अनेक माग से गए साधक को वह मल गया है। सरे मु म भी जो चीज ह, वे भी कसी अथ म उसके ह े ह। अब जैसे क अगर हम अरे बक या लै टन या रोमन, इनम जो खोजबीन साधक क रही है, उसको भी पकड़ने जाएं , तो एक बड़े मजे क बात है क म तो ज र मलेगा; कसी म अ और म मलेगा; म तो अ नवाय मलेगा। उसके कारण ह क वह इतना सू ह ा है क अ र आगे का ह ा छूट जाता है, पकड़ म नह आता और पीछे का ह ा सुनाई पड़ता है। तो ओऽऽऽम् क जब आवाज होनी शु होती है भीतर, तो म सबसे ादा सरलता से पकड़ म आता है। वह आगे का जो ह ा है वह दब जाता है पछले म से। ऐसे भी तुम अगर कसी बंद भवन म बैठकर ओम् क आवाज करो, तो म सबको दबा देगा--अ और ऊ को दबा देगा और म एकदम ापक हो जाएगा। इस लए ब त साधक को ऐसा लगा क म तो है प ा। आगे क कुछ भूल-चूक हो गई, सुनने के कुछ भेद ह। और इस लए नया के सभी, जहां भी.जैसे अमीन, तो उसम म अ नवाय है। जहां-जहां साधक ने उस शरीर पर काम कया है, वहां कुछ तो उनको पकड़ म आया है। ले कन जतना ादा योग हो, जैसे क एक योग को हजार वै ा नक कर, तो उसक वै ल डटी बढ़ जाती है। लाख साधक क स लत खोज--ओम् तो यह मु एक लहाज से सौभा शाली है क यहां हमने हजार साल आ क या ा पर तीत कए ह। इतना कसी मु ने, इतने बड़े पैमाने पर, इतने अ धक लोग ने कभी नह कया। अब बु के साथ दस-दस हजार साधक बैठे ह। महावीर के साथ चालीस हजार भ ु और भ ु णयां थ । छोटा सा बहार, वहां चालीस हजार आदमी एक साथ योग कर रहे ह। नया म कह ऐसा नह आ। जीसस बेचारे बड़े अकेले ह। मोह द का फजूल ही समय जाया हो रहा है नासमझ से लड़ने म। यहां एक त बन गई थी क यहां यह बात अब लड़ने क नह रह गई थी, यह ख हो चुका था व , यहां चीज साफ हो गई थ ।

अब महावीर बैठे ह और चालीस हजार लोग एक साथ साधना कर रहे ह। टै ली करने क बड़ी सु वधा थी। चालीस हजार लोग म ा हो रहा है--चौथे शरीर पर ा हो रहा है, तीसरे पर ा हो रहा है, सरे म ा हो रहा है। एक भूल करे गा, दो भूल करगे, चालीस हजार तो भूल नह कर सकते! चालीस हजार अलग-अलग योग कर रहे ह, फर वह सब सोचा जा रहा है, पकड़ा जा रहा है। इस लए इस मु ने कुछ ब त बीज चीज खोज ल , जो सरे मु नह खोज पाए, क वहां साधक सदा अकेला था। साधक इतने बड़े पैमाने पर कह भी नह था। जैसे आज प म बड़े पैमाने पर व ान क खोज म लगा है, हजार वै ा नक लगे ह; इस भां त इस मु ने कभी अपने हजार तभाशाली लोग एक ही व ान पर लगा दए थे। तो वहां से वे जो लाए ह, वह बड़ा साथक तो है। और फर कभी उसक खबर जाते-जाते या ा म, सरे मु तक प ं चते-प ं चते ब त बदल ग --ब त बदल ग , ब त टूट-फूट ग । ॉस का क और ओम् से संबंध अब जैसे क जीसस का ॉस है, वह क का बचा आ ह ा है। ले कन इतनी या ा करते-करते वह इतना टूट गया है। क ब त व से ओम् जैसा एक तीक था। ओम् सातव का तीक था, क थम का तीक है। इस लए क का जो च है, वह डाइनै मक है, मूव कर रहा है। इस लए उसक शाखा आगे फैल जाती है और मूवमट का खयाल देती है--घूम रहा है वह। संसार का मतलब होता है जो घूम रहा है, जो पूरे व घूम रहा है। तो क हमने थम का तीक बना लया था और ओम् अं तम का तीक था। इस लए ओम् म मूवमट बलकुल नह है; वह बलकुल थर है--डेड साइलट, और सब क गया है वहां, वहां कोई मूवमट नह है। उस च म कोई मूवमट नह है। क म मूवमट है। वह पहला और वह अं तम है। क या ा करते-करते कटकर ॉस रह गया, ए नटी तक प ं चते-प ं चते। वह जब जीसस के व म. क जीसस क ब त संभावना है क वे इ ज भी आए और भारत भी आए; वे नालंदा म भी थे और वे इ ज म भी थे; और वे ब त सी खबर ले गए; उन खबर म क भी एक खबर थी। ले कन वह खबर वैसी ही ई स जैसा क वह आदमी जो ब त फूल को देखकर गया, और उस जगह जाकर उसने खबर दी जहां एक ही फूल होता था। वह कट गई खबर, वह ॉस रह गया। ओम् (ॐ) से उदभूत इ ाम का अधचं ओम् का जो ऊपर का ह ा है वह इ ाम तक प ं च गया। वह चांद का जो आधा टुकड़ा वे ब त आदर कर रहे ह, वह ओम् का टूटा आ ह ा है--ऊपर का ह ा है; वह या ा करते म कट गया। श और तीक या ा करते म बुरी तरह कटते ह, और हजार साल बाद वे इस तरह घस पस जाते ह क अलग मालूम होने लगते ह। फर पहचानना ही मु ल हो जाता है क यह वही श है। पकड़ना ही मु ल हो जाता है क यह वही श कैसे हो सकता है! या ा म नई नयां जुड़ती ह, नये श जुड़ते ह, नये लोग नई जबान से उसका उपयोग करते ह--सब तरह का अंतर होता जाता है। और फर मूल ोत से अगर

व हो जाएं , तो फर कुछ तय करने क जगह नह रह जाती क वह ठीक ा था-कहां से आया? ा आ? सारी नया के आ ा क वाह गहरे म इस मु से संबं धत ह, क उनका मौ लक मूल ोत इसी मु से पैदा आ, और सारी खबर इस मु से फैलनी शु । ले कन खबर ले जानेवाले आदमी के पास सरी भाषा थी। जनको उसने खबर दी जाकर, उनको कुछ भी पता नह था क वह ा खबर दे रहा है। अब कसी ईसाई को, पादरी को यह खयाल नह हो सकता क वह गले म जो लटकाए ए है, वह क का टूटा आ ह ा है; वह ॉस बन गया। कसी मुसलमान को खयाल नह हो सकता क वह उस चांद को, वह जो अधचं को इतना आदर दे रहा है, वह ओम् का आधा ह ा है, ओम् का टूटा आ ह ा है। अब फर कल बात करगे।

ओम् सा

: 16 है , साधन नह

: ओशो, कल सातव शरीर के संदभ म ओम् पर कुछ आपने बात क । इसी संबंध म एक छोटा सा है क अ, ऊ और म के कंपन कन च को भा वत करते ह और उनका साधक के लए उपयोग ा हो सकता है ? इन च के भाव से सातव च का ा संबंध है ?

यह

ओम् के संबंध म थोड़ी सी बात कल मने आपसे कह । उस संबंध म थोड़ी सी और बात जानने जैसी ह। एक तो यह क ओम् सातव अव ा का तीक है, सूचक है; वह उसक खबर देनेवाला है। ओम् तीक है सातव अव ा का। सातव अव ा कसी भी श से नह कही जा सकती। कोई साथक श उस संबंध म उपयोग नह कया जा सकता। इस लए एक नरथक श खोजा गया, जसम कोई अथ नह है। यह मने कल आपसे कहा। इस श क खोज भी चौथे शरीर के अनुभव पर ई है। यह श भी साधारण खोज नह है। असल म, जब च सब भां त शू हो जाता है--कोई वचार नह होते, कोई श नह होते--तब भी शू क न शेष होती है। शू भी बोलता है; शू का भी अपना स ाटा है। अगर कभी बलकुल सूनी जगह म आप खड़े हो गए ह --जहां कोई आवाज नह , कोई न नह --तो वहां शू क भी एक न है; वहां शू का भी एक स ाटा है। उस स ाटे म, जो मूल नयां ह, वे ही केवल शेष रह जाती ह। अ, ऊ, म--ए, यू, एम मूल नयां ह। हमारा सारा न का व ार उन तीन नय के ही नये-नये संबंध और जोड़ से आ है। जब सारे श खो जाते ह, तब न शेष रह जाती है। ओम् के जप से लोक म खोने क संभावना तो ओम् श तो तीक है सातव अव ा का, सातव शरीर का, ले कन ओम् श को पकड़ा गया है चौथे शरीर म। चौथे शरीर क , मनस शरीर क शू ता म--शू ता म जो न होती है, शू क जो न है, वहां ओम् पकड़ा गया है। तो इस ओम् का य द साधक योग करे , तो दो प रणाम हो सकते ह। जैसा क आपको याद होगा, मने कहा क चौथे शरीर क दो संभावनाएं ह, सभी शरीर क दो संभावनाएं ह। य द साधक ओम् का ऐसा योग करे क उस ओम् के ारा तं ा पैदा हो जाए, न ा पैदा हो जाए-- कसी भी श क पुन से पैदा हो जाती है; कसी भी श को अगर बार-बार दोहराया जाए, तो उसका एक सा संघात, एक सी चोट, लयब , जैसे क सर पर कोई ताली थपक रहा हो, ऐसा ही प रणाम करती है और तं ा पैदा कर देती है।

तो चौथे मनस शरीर क जो पहली ाकृ तक त है--क ना, । अगर ओम् का इस भां त योग कया जाए क उससे तं ा आ जाए तो आप एक म खो जाएं गे। वह स ोहन तं ा जैसा होगा, ह ो टक ीप जैसा होगा। उस म जो भी आप देखना चाह, देख सकगे। भगवान के दशन कर सकते ह, ग-नरक क या ा कर सकते ह। ले कन होगा वह सब ; स उसम कुछ भी नह होगा। आनंद का अनुभव कर सकते ह, शां त का अनुभव कर सकते ह। ले कन होगी सब क ना; यथाथ कुछ भी नह होगा। तो एक तो ओम् का इस तरह का योग है जो अ धकतर चलता है। यह सरल बात है; इसम ब त क ठनाई नह है। ओम् क न को जोर से पैदा करके उसम लीन हो जाना ब त ही सरल है; उसक लीनता बड़ी रसपूण है। जैसे सुखद होता है, ऐसी रसपूण है; मनचाहा , ऐसी रसपूण है। और मनस शरीर के दो ही प ह--क ना का, का; और सरा प है संक का और द का, वज़न का। तो अगर ओम् का सफ पुन से वहार कया जाए मन के ऊपर, तो उसके संघात से तं ा पैदा होती है। जसे योग-तं ा कहते ह, वह ओम् के संघात से पैदा हो जाती है। ले कन य द ओम् का उ ारण कया जाए, और पीछे सा ी को भी कायम रखा जाए-दोहरे काम कए जाएं : ओम् क न पैदा क जाए और पीछे जागकर इस न को सुना भी जाए--इसम लीन न आ जाए, इसम डूबा न जाए--यह न एक तल पर चलती रहे और हम सरे तल पर खड़े होकर इसको सुननेवाले, सा ी, ा, ोता हो जाएं ; लीन न ह, ब जाग जाएं इस न म; तो चौथे शरीर क सरी संभावना पर काम शु हो जाता है। तब म नह जाएं गे आप, योग-तं ा म नह जाएं गे, योग-जागृ त म चले जाएं गे। म नरं तर को शश करता ं क आपको श के योग न करने को क ं ; नरं तर कहता ं क कसी मं , कसी श का आप उपयोग न कर; क सौ म न ानबे मौके आपके तं ा म चले जाने के ह। उसके कारण ह। हमारा वह जो चौथा शरीर है, न ा का आदी है; वह सोना ही जानता है। वह जो हमारा चौथा शरीर है, ीम ै क उसका बना ही आ है। वह रोज सपने देखता ही है। तो ऐसे ही, जैसे इस कमरे म हम पानी को बहा द, फर पानी सूख जाए, पानी चला जाए, सूखी रे खा रह जाए। फर हम सरा पानी ढाल, तो वह पुरानी रे खा को पकड़कर ही बह जाएगा। ओम् और ‘म कौन ं ’ म मौ लक भ ता तो श , मं के उपयोग से ब त संभावना यही है क आपका वह जो देखने का आदी मन है, वह अपनी यां क या से त ाल म चला जाएगा। ले कन य द सा ी को जगाया जा सके और पीछे तुम खड़े होकर देखते भी रहो क यह ओम् क न हो रही है--इसम लीन न होओ, इसम डूबो मत--तो ओम् से भी वही काम हो जाएगा जो म ‘म कौन ं ’ के योग से तु करने को कह रहा ं । और अगर ‘म कौन ं ’ को भी तुम न ा क भां त पूछने लगो और पीछे सा ी न रह जाओ, तो जो भूल ओम् से पैदा होने क होती है, वह ‘म कौन ं ’ से भी पैदा हो जाएगी। ले कन ‘म कौन ं ’ से पैदा होने क संभावना थोड़ी कम है ओम् क बजाय। उसका

कारण है क ओम् म कोई नह है, सफ थपक है; ‘म कौन ं ’ म है, सफ थपक नह है। और ‘म कौन ं ’ के पीछे े न माक खड़ा है जो आपको जगाए रखेगा। यह बड़े मजे क बात है क अगर च म हो तो सोना मु ल हो जाता है। अगर दन म भी आपके च म कोई ब त गहरा घूम रहा है, तो रात आपक न द खराब हो जाएगी-आपको सोने न देगा। वह जो े न माक है, अ न ा का बड़ा सहयोगी है। अगर च म कोई खड़ा है, चता खड़ी है, कोई सवाल खड़ा है, कोई ज ासा खड़ी है, तो न द मु ल हो जाएगी। ‘म कौन ं ’ म एक चोट है तो म ओम् क जगह ‘म कौन ं ’ के योग के लए इस लए कह रहा ं क उसम मौ लक प से एक है। और चूं क है, इस लए उ र क ब त गहरी खोज है; और उ र के लए तु जागा ही रहना होगा। वह ओम् म कोई नह है; उसक चोट नुक ली नह है, वह बलकुल गोल है। उसम कह चोट नह है, उसम कह कोई नह है। और उसका नरं तर संघात, उसक चोट, न ा ले आएगी। फर ‘म कौन ं ’ म संगीत नह है। ओम् म ब त संगीत है; वह ब त संगीतपूण है। और जतना ादा संगीत है उतना म ले जाने म समथ है। ‘म कौन ं ’ आड़ा-टे ढ़ा है, पु ष शरीर जैसा है। ओम् जो है, ब त सुडौल, ी शरीर जैसा है; उसक थपक ज ी सुला देगी। श के भी आकार ह। श क भी चोट का भेद है। उनका भी संगीत है। ‘म कौन ं ’ म कोई संगीत नह है। वह सुलाना जरा मु ल है। अगर सोया आदमी भी पड़ा हो, और उसके पास हम बैठकर कहने लग--‘म कौन ं ’, ‘म कौन ं ’, तो सोया आ आदमी भी जग सकता है। ले कन सोए ए आदमी के पास अगर हम बैठकर ओम्, और ओम्, और ओम् क बात दोहराने लग, तो उसक न द और गहरी हो जाएगी। संघात के फक ह। ले कन इसका यह मतलब नह है क ओम् से नह कया जा सकता। संभावना तो है ही। अगर कोई ओम् के पीछे जागकर खड़ा हो सके तो उससे भी यही काम हो जाएगा। ओम्: श और नःश का सीमांत ले कन म ओम् को साधना के बतौर योग नह करवाना चाहता। उसके और भी ब त कारण ह। क ओम् क अगर साधना करगे तो चौथे शरीर से ओम् का अ नवाय एसो सएशन हो जाएगा। ओम् तीक तो है सातव शरीर का, ले कन उसका अनुभव होता है चौथे शरीर म-- न का। अगर एक बार ओम् से साधना शु क तो ओम् और चौथे शरीर म एक एसो सएशन, अ नवाय संबंध हो जाएगा; और वह रोकनेवाला स होगा; वह आगे ले जाने म बाधा डाल सकता है। तो इस श के साथ क ठनाई है। इसक ती त तो होती है चौथे शरीर म, ले कन इसको योग कया गया है सातव शरीर के लए। और सातव शरीर के लए कोई श नह है हमारे पास। और हम जहां तक श का अनुभव करते ह--चौथे शरीर के बाद फर श का अनुभव बंद हो जाता है--तो चौथे शरीर का जो आ खरी श है, उसको हम अं तम अव ा के लए योग कर रहे ह। और कोई उपाय भी नह है। क पांचवां शरीर फर

नःश है; छठवां बलकुल नःश है; सातवां तो बलकुल ही शू है। चौथे शरीर क जो आ खरी श क सीमा है, जहां से हम श को छोड़गे, वहां आ खरी ण म, सीमांत पर ओम् सुनाई पड़ता है। तो भाषा क नया का वह आ खरी श है, और अभाषा क नया का वह पहला; वह दोन क बाउं ी पर है। है तो वह चौथे शरीर का, ले कन हमारे पास उससे ादा सातव शरीर के कोई नकट श नह है। फर और श और र पड़ जाते ह। इस लए उसको सातव के लए योग कया है। तो म पसंद करता ं क उसको चौथे के साथ बांध न। वह अनुभव तो चौथे म होगा, ले कन उसको सबल सातव का ही रहने देना उ चत है। इस लए उसका साधना के लए उपयोग करने क ज रत नह । उसके लए कसी ऐसी चीज का उपयोग करना चा हए जो चौथे पर ही छूट भी जाए। जैस,े ‘म कौन ं ?’ यह चौथे म योग भी होगा, छूट भी जाएगा। ओम् सा है, साधन नह और ओम् का सबा लक अथ ही रहना चा हए। साधन क तरह उसका उपयोग और भी एक कारण से उ चत नह है। क जसे हम अं तम का तीक बना रहे ह, उसे हम अपना साधन नह बनाना चा हए; जसको हम परम, ए ो ूट का तीक बना रहे ह, उसका साधन नह बनाना चा हए; वह सा ही रहना चा हए। ओम् वह है जसे हम पाना है! इस लए ओम् को कसी भी तरह के मी क तरह, साधन क तरह योग करने के म प म नह ं । और उसका योग आ है, उससे ब त नुकसान ए ह। उसका योग करनेवाला साधक ब त बार चौथे शरीर को सातवां समझ बैठा; क ओम् सातव का तीक था और चौथे म अनुभव होता है। और जब चौथे म अनुभव होता है तो साधक को लगता है क ठीक है, अब हम ओम् को उपल हो गए; अब और या ा न रही, अब या ा ख हो गई। इस लए साइ कक बॉडी पर बड़ा नुकसान होता है; वह वह क जाता है। ब त से साधक ह, जो वज़ को, को, रं ग को, नय को, नाद को, इसको उपल मान लेते ह। भावतः, क जसको अं तम तीक कहा है, वह इस सीमा-रे खा पर पता चलने लगता है। फर हम लगता है, आ गई सीमा। इस लए भी म चौथे शरीर म इसके योग के प म नह ं । और इसका अगर योग करगे तो पहले, सरे , तीसरे शरीर पर इसका कोई प रणाम नह होगा; इसका प रणाम चौथे शरीर पर होगा। इस लए पहले, सरे , तीसरे शरीर के लए सरे श खोजे गए ह, जो उन चोट कर सकते ह। जगत और के बीच ओम् का अनाहत नाद ये जो मूल नयां ह--अ, ऊ और म क , इस संबंध म एक बात और खयाल म ले लेनी उ चत है। जैसे बाइ बल है, बाइ बल यह नह कहती क परमा ा ने जगत बनाया; बनाने का कोई काम कया, ऐसा नह कहती। कहती ऐसा है क परमा ा ने कहा-- काश हो! और काश हो गया। बनाने का कोई काम नह कया, बोलने का कोई काम कया। जैसे बाइ बल कहती है क सबसे पहले श था-- द वड। सबसे पहले श था, फर सब आ।

पुराने और ब त से शा इस बात क खबर देते ह क सबसे पहले श था। जैसे क भारत म कहते ह: श है। हालां क इससे बड़ी ां त होती है; इससे कई लोग समझ लेते ह क श से ही मल जाएगा। तो मलेगा नःश से, ले कन ‘श है’ इसका मतलब केवल इतना ही है क हम अपने अनुभव म जतनी नय को जानते ह, उसम सबसे सू तम न श क है। अगर हम जगत को पीछे लौटाएं , पीछे लौटाएं , पीछे लौट जाएं , तो अंततः जब हम शू क क ना कर, जहां से जगत शु आ होगा, तो वहां भी ओम् क न हो रही होगी-उस शू म। क जब हम चौथे शरीर पर शू के करीब प ं चते ह तो ओम् क न सुनाई पड़ती है, और वहां से हम डूबने लगते ह उस नया म जहां क ारं भ म नया रही होगी। चौथे के बाद हम जाते ह आ शरीर म, आ शरीर के बाद जाते ह शरीर म, शरीर के बाद जाते ह नवाण शरीर म, और आ खरी न जो उन दोन के बीच म है, वह ओम्क है। इस तरफ हमारा है चार शरीर वाला, जसको हम कह सकते ह--जगत; और उस तरफ हमारा अ है, जसको हम कह सकते ह-- । और जगत के बीच म जो न सीमा-रे खा पर गूंजती है, वह ओम् क है। इस अनुभव से यह खयाल म आना शु आ क जब जगत बना होगा, तो उस के शू से इस पदाथ के साकार तक आने म बीच म ओम् क न गूंजती रही होगी। और इस लए ‘श था’, ‘वड था’, ‘उस श से ही सब आ’, यह खयाल है। और इस श को अगर हम उसके मूल त म तोड़ द तो वह ए, यू, एम पर रह जाता है; बस तीन नयां मौ लक रह जाती ह। उन तीन का जोड़ ओम् है। तो इस लए ऐसा कहा जा सकता है: ओम् ही पहले था, ओम् ही अंत म होगा। क अंत जो है वह पहले म ही वापस लौट जाना है; वह जो अंत है वह सदा पहले म वापस लौट जाना है--स कल पूरा होता है। ले कन फर भी मेरा यह नरं तर खयाल रहा है क ओम् को तीक क तरह ही योग करना है, साधन क तरह नह । साधन के लए और चीज खोजी जा सकती ह। ओम् जैसे प व तम श को साधन क तरह उपयोग करके अप व नह करना है। इस लए मुझे समझने म कई लोग को भूल हो जाती है। मेरे पास कतने लोग आते ह, वे कहते ह, आप ओम्.अगर हम ओम् जपते ह तो आप मना करते ह? शायद उ लगे क म ओम् का न ं । ले कन म जानता ं क वे ही न ह; क इतने प व तम श का साधन क तरह उपयोग नह होना चा हए। असल म, यह हमारी जीभ से बोलने यो नह । असल म, यह हमारे शरीर से उ ारण यो नह । यह तो उस जगह शु होता है जहां जीभ अथ खो देती है, शरीर थ हो जाता है; वहां इसक गूंज है। और वह गूंज हम नह करते, वह गूंज होती है; वह जानी जाती है, वह क नह जाती। इस लए ओम् को जानना ही है, करना नह है। ओम् क साधना से उसक अनुभू त म बाधा और भी एक खतरा है क अगर आपने ओम् का योग कया, तो जो उसका मूल उ ार है, जो अ से होता है, उसका आपको कभी पता नह चल पाएगा क वह कैसा है;

आपका अपना उ ारण उस पर आरो पत हो जाएगा। तो उसक शु तम जो अनुभू त है, वह आपको नह हो सकेगी। तो जो लोग भी ओम् श का साधना म योग करते ह, उनको व ुतः ओम् का कभी अनुभव नह हो पाता। क वे जो योग कर रहे ह, उसका ही अ ास होने से, जब वह मूल न आनी शु होती है, तो उनको अपनी ही न सुनाई पड़ती है। वे ओम् को नह सुन पाते; शू का सीधा गुंजन उनके ऊपर नह हो पाता, अपना ही श वे त ाल पकड़ लेते ह। भावतः, क जससे हम प र चत ह, वह आरो पत हो जाता है। इस लए म कहता ं , ओम् से प र चत न होना ही अ ा, उसका उपयोग न करना ही अ ा। वह कसी दन कट होगा; चौथे शरीर पर कट होगा। और तब वह कई अथ रखेगा। एक तो यह अथ रखेगा क चौथे शरीर क सीमा आ गई; और अब आप मनस के बाहर जाते ह, श के बाहर जाते ह। आ खरी श आ गया; जहां से श शु ए थे, वह आप खड़े हो गए; जहां पूरा जगत सृ के पहले ण म खड़ा होगा, वहां आप खड़े हो गए ह; उस सीमांत पर खड़े ह। और फर जब उसक अपनी मूल न पैदा होती है तो उसका रस ही और है। उसको कुछ कहने का उपाय नह । हमारा े तम संगीत भी उसक रतम न नह है। हम कतने ही उपाय कर, उस शू के संगीत को हम कभी भी न सुन पाएं गे; वह ू जक ऑफ साइलस को हम कभी भी न सुन पाएं गे। और इस लए अ ा हो क हम उसको कुछ मानकर न चल, कोई प-रं ग देकर न चल। नह तो वही प-रं ग उसम अंततः पकड़ जाएगा, और वह हम बाधा दे सकता है। ी-पु ष शरीर के मौ लक भेद : ओशो, चौथे शरीर तक ी और पु ष का व ुतीय भेद रहता है । अतः चौथे शरीर वाले ी कंड र या पु ष कंड र ारा म हला साधक को और पु ष साधक को होनेवाले श पात का भाव ा भ - भ होता है ? और ?

इसम भी ब त सी बात समझनी पड़गी। जैसा मने कहा, चौथे शरीर तक ी और पु ष का भेद है, चौथे शरीर के बाद कोई भेद नह है। पांचवां शरीर लग-भेद के बाहर है। ले कन चौथे शरीर तक ब त बु नयादी भेद है। और वह बु नयादी भेद ब त तरह के प रणाम लाएगा। तो पहले पु ष शरीर को हम समझ, फर ी शरीर को हम समझ। पु ष शरीर का पहला शरीर पु ष है, सरा शरीर ैण है; तीसरा शरीर फर पु ष है, चौथा शरीर फर ैण है। इससे उलटा ी का है: उसका पहला शरीर ी का, सरा पु ष का, तीसरा ी का, चौथा पु ष का। इसक वजह से बड़े मौ लक भेद पड़ते ह। और ज ने मनु -जा त के पूरे इ तहास और धम को बड़ी गहराई से भा वत कया, और मनु क पूरी सं ृ त को एक तरह क व ा दी। अधनारी र का वै ा नक रह पु ष शरीर क कुछ खू बयां ह; ी शरीर क कुछ खू बयां और वशेषताएं ह। और वे

दोन खू बयां और वशेषताएं एक- सरे क कां ीमटरी, प रपूरक ह। असल म, ी शरीर भी अधूरा शरीर है और पु ष शरीर भी अधूरा शरीर है; इस लए सृजन के म म उन दोन को संयु होना पड़ता है। यह संयु होना दो कार का है। अ नाम के पु ष का शरीर अगर ब नाम क ी से बाहर से संयु हो, तो कृ त का सृजन होता है। अ नाम के पु ष का शरीर अपने ही पीछे छपे ब नाम के ी शरीर से संयु हो, तो क तरफ का ज शु होता है। वह परमा ा क तरफ या ा शु होती है, यह कृ त क तरफ या ा शु होती है। दोन ही तय म संभोग घ टत होता है। पु ष का शरीर बाहर क ी से संबं धत हो तो भी संभोग घ टत होता है, और पु ष का अपना ही शरीर अपने ही पीछे छपे ी शरीर से संयु हो तो भी संभोग घ टत होता है। पहले संभोग म ऊजा बाहर वक ण होती है, सरे संभोग म ऊजा भीतर क तरफ वेश करना शु कर देती है। जसको वीय का ऊ गमन कहा है, उसका या ा-पथ यही है-भीतर क ी से संबं धत होना, और भीतर क ी से संबं धत होना। जो ऊजा है, वह सदा पु ष से ी क तरफ बहती है--चाहे वह बाहर क तरफ बहे और चाहे वह भीतर क तरफ बहे। अगर पु ष के भौ तक शरीर क ऊजा भीतर के ईथ रक ी शरीर के त बहे, तो फर ऊजा बाहर वक ण नह होती-- चय क साधना का यही अथ है--तब वह नरं तर ऊपर चढ़ती जाती है। चौथे शरीर तक उस ऊजा क या ा हो सकती है। चौथे शरीर पर चय पूरा हो जाता है। चौथे शरीर के बाद चय का कोई अथ नह है। चौथे शरीर के बाद चय जैसी कोई चीज नह है; क चौथे शरीर के बाद ी और पु ष जैसी कोई चीज नह है। इस लए चौथे शरीर को पार करने के बाद साधक न पु ष है और न ी है। अब यह जो एक नंबर का शरीर और दो नंबर का शरीर है, इसी को ान म रखकर अधनारी र क क ना कभी हम ने च त क थी। बाक वह तीक बनकर रह गई और हम उसे कभी समझ नह पाए। शंकर अधूरे ह, पावती अधूरी है--वे दोन मलकर एक ह। और तब हमने उन दोन का आधा-आधा च भी बनाया--अधनारी र का-- क आधा अंग पु ष का है, आधा ी का है। यह जो आधा सरा अंग है, यह बाहर कट नह है, यह ेक के भीतर छपा है। तु ारा एक पहलू पु ष का है, तु ारा सरा पहलू ी का है। इस लए एक ब त मजेदार घटना घटती है: कतना ही दबंग पु ष हो, कतना ही बलशाली पु ष हो--जो बाहर क नया म बड़ा भावी हो-- सकंदर हो चाहे, और चाहे नेपो लयन हो, और चाहे हटलर हो, वह दन भर द र म, कान म, बाजार म, पद पर, पु ष क अकड़ से जीता है। ले कन एक साधारण सी ी घर म बैठी है, उसके सामने जाकर उसक अकड़ ख हो जाती है! यह अजीब सी बात है। वह नेपो लयन क भी हो जाती है। वह ा कारण है? असल म, जब वह बारह घंटे, दस घंटे पु ष का उपयोग कर लेता है, तो उसका पहला शरीर थक जाता है। घर लौटते-लौटते वह पहला शरीर व ाम चाहता है। भीतर का ी शरीर मुख हो जाता है, पु ष शरीर गौण हो जाता है। ी दन भर ी रहते-रहते उसका पहला शरीर थक जाता है, उसका सरा शरीर मुख हो जाता है। और इस लए ी पु ष का वहार करने लगती है और पु ष ी का वहार करने लगता है-- रवसन हो जाता

है। एक तो यह खयाल म ले लेना क ऊजा का आंत रक वाह का, ऊ गमन का यह पथ है-- क भीतर क ी से संभोग। अब उसके सारे के सारे अलग माग ह। उसक तो कोई अभी बात नह करनी है। सरी बात, सदा ही श पु ष शरीर से ी शरीर क तरफ बहती है। पु ष शरीर के जो वशेष गुण ह, वह पहला गुण यह है क वह ाहक नह है, रसे व नह है; आ ामक है; दे सकता है, ले नह सकता। ी क तरफ से कोई वाह पु ष क तरफ नह बह सकता। सब वाह पु ष से ी क तरफ ही बहते ह। ी ाहक है, रसे व है; दाता नह है; दे नह सकती, ले सकती है। ी क श पात देने म क ठनाई, लेने म सरलता इसके दो प रणाम होते ह, और दोन प रणाम समझने जैसे ह। पहला प रणाम तो यह होता है क चूं क ी ाहक है, इस लए कभी भी श पात देनेवाली नह हो सकती; उसके ारा श पात नह हो सकता। यही कारण है क ी श क जगत म बड़ी तादाद म पैदा नह हो सके; बु या महावीर या कृ के मुकाबले ी गु पैदा नह हो सके। उसका कारण यह है क उसके मा म से कसी को कोई श मल नह सकती। हां, यां ब त बड़े पैमाने पर महावीर, बु और कृ के आसपास इक ी । ले कन ऐसी कृ क है सयत क एक ी पैदा नह हो सक जसके आसपास लाख पु ष इक े हो जाएं । उसके कारण ह। उसके कारण इसी बात म न हत ह: ी ाहक हो पाती है। पु ष ह धम सारक और यां धम सं ाहक और यह भी बड़े मजे क बात है: कृ जैसा आदमी पैदा हो, तो उसके पास पु ष कम इक े ह गे, यां ादा इक ी ह गी। महावीर के पास भी वही होगा। महावीर के भ ुओ ं म दस हजार तो पु ष ह और चालीस हजार यां ह। यह अनुपात चौगुना है सदा। अगर एक पु ष इक ा होगा, तो चार यां इक ी हो जाएं गी। और यां जतनी भा वत ह गी महावीर से, उतने पु ष भा वत नह ह गे; क दोन पु ष ह। महावीर से जो नकल रहा है, यां उसे अपशो षत कर जाती ह। ले कन पु ष अपशोषक नह है, वह हण नह कर पाता; उसक हण करने क मता ब त कम है। इस लए पु ष ने धम को ज तो दया, ले कन पु ष धम के सं ाहक नह ह। धम को पृ ी पर बचाती ह यां, चलाते ह पु ष। यह बड़े मजे क बात है! चलाते ह पु ष, ज देते ह पु ष, बचाती ह यां, र ा करती ह यां। ी सं ाहक है। उसके शरीर का सं ह गुण है, बायोला जकल वजह से उसके शरीर म सं ाहक का त है। ब े को उसे नौ महीने पेट म रखना है, ब े को बड़ा करना है। उसे हणशील होना चा हए। पु ष को ऐसा कुछ भी कृ त क तरफ से काम नह है। वह एक ण म पता बनकर बाहर हो जाता है, पता के बाहर हो जाता है; उसका इसके बाद कोई संबंध नह है; वह देता है और बाहर हो जाता है। ी लेती है और फर भीतर रह जाती है, वह बाहर नह हो पाती। यह त श पात म भी काम करता है। इस लए श पात म ी क तरफ से पु ष को श पात नह मल सकता। साधारणतः कह रहा ं , कभी रे यर केसेस हो सकते ह, उनक

म बात क ं गा। कभी ऐसी घटनाएं घट सकती ह, पर उसके और कारण ह गे। पु ष के लए श पात देना सरल, लेना क ठन साधारणतया ी शरीर से श पात नह हो सकता; इसे उसक कमजोरी कह सकते ह। ले कन इसको पूरा करनेवाली कां ीमटरी उसक एक ताकत है क वह श पात को ब त ती ता से ले लेती है। पु ष श पात कर सकता है, ले कन हण नह कर पाता। तो इस लए एक पु ष से सरे पु ष पर भी श पात ब त क ठन हो जाता है, ब त क ठन मामला हो जाता है। क वह ाहक है ही नह उसका , जहां से शु होना है, उसका नंबर एक पु ष खड़ा आ है दरवाजे पर जो ाहक नह है। इसको ाहक बनाने के भी उपाय कए गए ह। ऐसे पंथ रहे ह, जनम पु ष भी अपने को ी मानकर ही साधना करगे। वह पु ष को ाहक बनाने का उपाय कया जा रहा है। मगर फर भी पु ष ाहक बन नह पाता। ी बना क ठनाई के ाहक बन जाती है। है ही वह ाहक। तो श पात म ी को सदा ही मा म क ज रत होगी; साद उसको सीधा मलना ब त क ठन है--दो तरह से। सीधा साद उसे इस लए नह मल सकता.अब इसको समझ लेना ठीक से! श पात होता है पहले शरीर से। अगर म श पात क ं तो तु ारे नंबर एक के शरीर पर क ं गा। और मेरे नंबर एक से जाएगी बात और तु ारे नंबर एक पर चोट करे गी। इस लए अगर तुम ी हो तो यह शी ता से हो जाएगा, अगर तुम पु ष हो तो इसम ज ोजहद और संघष होगा। इसम क ठनाई होगी। इसम कसी तरह तु ब त गहरे समपण क त म आना पड़ेगा तो यह हो सकता है, नह तो यह नह हो सकेगा। और पु ष समपक नह है। वह समपण नह कर पाता, वह कतनी ही को शश करे । अगर वह कहे भी क म समपण करता ं , तो भी उसका यह समपण करना आ मण जैसा होता है। यानी यह समपण क भी घोषणा उसका अहं कार करता है क अ ा मने कया समपण! ले कन समपण.वह म जो है, पीछे खड़ा है; वह छूटता नह उससे। ी को समपण करना नह पड़ता, वह सम पत है; समपण उसका भाव है, उसके पहले शरीर का गुण है; वह रसे व है। इस लए श पात पु ष से ब त आसानी से ी पर हो जाता है; पु ष से पु ष पर ब त मु ल है; और ी से पु ष पर तो ब त ही मु ल है। पु ष से पु ष पर मु ल है, हो सकता है; अगर कोई ब त बलशाली पु ष हो, तो वह सरे को करीब-करीब ी क हालत म खड़ा कर सकता है। मु ल है, ले कन हो सकता है। ले कन ी के ारा तो ब त ही मु ल है। क वह श पात करने के ण म भी उसक श पी जाएगी, अपशो षत कर लेगी; उसका जो पहला शरीर है, वह ंज क भां त है, वह चीज को ख च रहा है। पु ष के चौथे शरीर से साद हण करना सरल यह तो श पात के संबंध म बात ई; साद के मामले म भी ऐसी ही हालत है। साद जो है वह चौथे शरीर से मलता है। और पु ष का चौथा शरीर ी का है, इस लए उसे साद तो बड़ी सरलता से मल जाता है। और ी का चौथा शरीर पु ष का है, वह साद म भी मु ल म पड़ जाती है; उसको ेस सीधी नह मल पाती। पु ष का जो चौथा शरीर है, ैण है। इस लए मोह द ह , क मूसा ह , क जीसस ह ,

वे त ाल परमा ा से सीधे संबं धत हो जाते ह। उनके पास चौथा शरीर ी का है, जहां से वे रसीवर ह। और साद उनके ऊपर उतरे तो वे उसको पी जाएं गे। ी के पास चौथा शरीर पु ष का है, वह उस छोर पर पु ष शरीर खड़ा है उसका; इस लए वहां से वह कभी रसीव नह कर पाती। इस लए ी के पास सीधी कोई भी मैसेज नह है। यानी एक ी इस तरह का दावा नह कर सक है क मने को जाना! ऐसा दावा नह है उसका। उसके पास चौथे शरीर पर पु ष खड़ा है जो क वहां अड़चन डाल देता है; उसको वहां से साद नह मल सकता। साद पु ष को मल सकता है; श पात म उसे ब त क ठनाई है कसी से लेने म; उसम वह बाधक है। ले कन ी के लए श पात ब त सरल है; कसी भी मा म से उसे श पात मल सकता है। ब त कमजोर मा म से भी ी को श पात मल सकता है। इस लए बड़े साधारण है सयत के लोग से भी उसे श पात मल सकता है। श पात देनेवाले पर कम, उसक अपशोषक श पर ब त नभर हो जाता है। ले कन सदा उसे एक मा म चा हए। वह मा म के बना उसक बड़ी क ठनाई है। बना मा म के उसको कोई घटना नह घट सकती। यह साधारण त क बात मने कही। इसम वशेष तयां क जा सकती ह। इसी साधारण त क वजह से ी सा धकाएं कम ई ह। ले कन इसका मतलब यह नह है क य ने परमा ा को अनुभव नह कया। उ ने अनुभव कया। ले कन वह कभी इमी जएट नह था, उसम कोई बीच म मा म था--थोड़ा ही सही, ले कन कोई मा म था; मा म से आ उनको। बुढ़ापे म वपरीत लगी का कटीकरण सरी बात, असाधारण तय म भेद पड़ सकता है। अब जैस,े एक जवान ी पर ादा क ठनाई है साद क , एक वृ ी पर सरलता थोड़ी बढ़ जाती है। क बड़े मजे क बात है क हम.पूरी जदगी म हमारा से भी े ब लटी म रहता है। हम पूरी जदगी, एक ही अनुपात म, एक ही से के ह े नह होते--इसम अंतर होता रहता है पूरे व , अनुपात बदलता रहता है। इस लए अ र ऐसा होगा क बूढ़ी होती ी को मूंछ के बाल नकलने लग या दाढ़ी पर बाल आ जाएं ; बूढ़े होते-होते पतालीस और पचास साल के बाद उसक आवाज पु ष जैसी होने लगे, ैण आवाज खो जाए। उसका अनुपात बदल रहा है; उसम पु ष त ऊपर आ रहे ह, ी त पीछे जा रहे ह। असल म, ी का काम पूरा हो चुका। वह पतालीस वष तक बायोला जकल एक बाइं डग थी, वह ख हो गई है। अब वह बाइं डग के बाहर हो रही है। तो बूढ़ी ी पर साद क संभावना बढ़ सकती है; क जैसे ही उसके नंबर एक के शरीर म पु ष त बढ़ते ह, उसके नंबर दो के शरीर म ैण त बढ़ जाते ह; और नंबर चार के पु ष शरीर के त कम हो जाते ह, नंबर तीन म बढ़ जाते ह। तो बूढ़ी ी पर साद क संभावना हो सकती है। अ त वृ ी, कसी त म, कसी जवान ी को मा म भी बन सकती है। और भी अ त वृ ी, जो क सौ को पार कर गई हो, जहां क उसके मन म अब से का

खयाल ही न रह गया हो क वह ी है, उससे पु ष के ऊपर भी श पात के लए वह मा म बन सकती है। ले कन यह फक पड़ेगा। पु ष म भी ऐसे ही फक पड़ता है। जैसे-जैसे पु ष बूढ़ा होता जाता है, उसम ैण त बढ़ते चले जाते ह। बूढ़े पु ष अ र य जैसा वहार करने लगते ह। उनके क ब त सी पु ष जैसी वृ यां ीण हो जाती ह और ी जैसी वृ यां कट होने लगती ह। चौथे शरीर से साद हण करने के कारण म ैणता इस संबंध म यह भी समझ लेना ज री है क जो लोग भी चौथे शरीर से साद को हण करते ह, उनके म भी ैणता आ जाती है। जैसे अगर हम बु या महावीर के शरीर और को देख, तो वह पु ष का कम और ी का ादा मालूम होगा। ी क कोमलता, ी क नमनीयता, ी क ाहकता उनम बढ़ जाएगी। आ मण उनसे चला जाएगा, इस लए अ हसा बढ़ जाएगी, क णा बढ़ जाएगी, ेम बढ़ जाएगा; हसा और ोध वलीन हो जाएं गे। नी शे ने तो बु पर यह आरोप ही लगाया है क बु और जीसस, ये दोन फे म नन थे, ये दोन ैण थे; इनको पु ष क गनती म नह गनना चा हए, क इनम पु ष का कोई भी गुण नह है, और उ ने सारी नया को ैण बना दया है। उसक इस शकायत म अथ है। यह तुम जानकर हैरान होओगे क हमने बु , महावीर, कृ , राम, इनक कसी क दाढ़ी-मूंछ नह बनाई, ये सब दाढ़ी-मूंछ से हीन ह। ऐसा नह क इनको दाढ़ी-मूंछ न रही हो, ले कन जब हमने इनके च बनाए, तब तक यह करीब-करीब इनका सारा ैण-भाव से भर गया था। उसम दाढ़ी-मूंछ बे दी थी, वह हमने अलग कर दी; उसको हमने च त नह कया। उसको च त करना उ चत नह मालूम पड़ा, क उनके का सारा ढं ग जो था, वह ैण हो गया था। रामकृ परमहं स के शरीर का पांतरण रामकृ के साथ ऐसी घटना घटी। रामकृ क हालत तो इतनी अजीब हो गई थी क जो क बड़ी, मे डकल साइं स के लए एक खोज क बात है। बड़ी अदभुत घटना घटी। पीछे उसको छपा-छु पो कर बदलने क को शश क , क उसक कैसे बात कर! उनके न बढ़ गए और उनको मा सक धम शु हो गया! यह तो इतनी अजीब घटना थी क एक मरे कल था! इतना ैण हो गया था। वे चलते भी थे तो य जैसे चलने लगे थे; वे बोलते भी थे तो य जैसे बोलने लगे थे। तो ऐसी वशेष तय म तो ब त फक पड़ सकता है। जैसे रामकृ क इस हालत म वे श पात दे नह सकते कसी को, उनको लेना पड़ेगा; इस हालत म कोई दे नह सकते वे कसी को श पात। उनका बाहर से ैण हो गया। ह ान के म ैणता बु और महावीर ने जस साधना और जस या का उपयोग कया, उससे इस मु म उस जमाने म लाख लोग चौथे शरीर म प ं च गए। चौथे शरीर म प ं चते ही उनका ैण हो गया। ैण का मतलब यह है क उनम जो ैण गुण

ह, कोमल, वे बढ़ गए; हसा- ोध ख हो गया, आ मण वदा हो गया; ममता और ेम और क णा और अ हसा बढ़ गए। पूरे ह ान के के गहरे म ैणता आ गई। मेरी अपनी जानकारी यही है क ह ान पर बाद के सारे आ मण का कारण वही था। क ह ान के आसपास के सारे पु ष ह ान के ैण को दबाने म सफल हो गए। एक अथ म बड़ी क मती घटना घटी क चौथे शरीर पर हमने ब त अदभुत अनुभव कए, ले कन पहले शरीर क नया म हमको मु ल हो गई। मने कहा क सब चीज कंपनसेट होती ह। जो लोग चौथे शरीर का धन छोड़ने को राजी थे, उनको पहले शरीर का धन और रा और सा ा मल सका। और जो लोग चौथे शरीर का रस छोड़ने को राजी नह थे, उनको यहां से ब त कुछ छोड़ देना पड़ा। बु और महावीर के बाद ह ान क आ ामक वृ खो गई और वह रसे व हो गया। तो जो भी आया उसको हम आ सात करने क फ म लग गए; उसे अलग करने का भी सवाल नह उठा हमारे मन म क उसको अलग कर द। और सरे पर जाकर हम हमला कर द और सरे को हम जीत ल, वह तो सवाल ही खो गया। ैण हो गया। भारत जो है एक वूंब बन गया, एक गभ बन गया--पूरा का पूरा भारत; और जो भी आया उसको हम आ सात करते चले गए। हमने उसको कभी इनकार नह कया, हटाने क हमने कोई फ नह क । और लड़ भी नह सके; क लड़ने के लए जो बात चा हए थी, वह खो गई थी; े तम बु जो थी मु क , उससे वह बात खो गई थी। और जो साधारणजन है, वह े के पीछे चलता है; वह बेचारा दबकर खड़ा था। वह यह कह रहा था क क णा-अ हसा क बात सुन रहा था और उसे लग रही थ क ये बात ठीक ह। और े तम आदमी उनम जी रहा था, वह छोटा साधारण आदमी उनके पीछे खड़ा था। वह लड़ सकता था, ले कन उसके पास नेता नह था जो उसको लड़ा सकता। आ ा क मु म ैण क अ धकता यह कभी जब नया का इ तहास आ ा क ढं ग से लखा जाएगा, और जब हम सफ भौ तक घटनाओं को इ तहास नह समझगे, ब चेतना म घटी घटनाओं को इ तहास समझगे--असली इ तहास वही है--तब हम इस बात को समझ पाएं गे क जब भी कोई मु आ ा क होगा, तो ैण हो जाएगा; और जब भी ैण होगा, तब अपने से ब त साधारण स ताएं उसको हरा दगी। अब यह बड़े मजे क बात है क ह ान को जन लोग ने हराया, वे ह ान से ब त पछड़ी ई स ताएं थ ; एक अथ म बलकुल ही जंगली और बबर स ताएं थ । चाहे तुक ह , चाहे मुगल ह और चाहे मंगोल ह --कोई भी ह ; उनके पास कोई स ता ही न थी। ले कन एक अथ म वे पु ष थे, जंगली पु ष थे बलकुल; और हम रसे व हो गए थे; हम उनको आ सात ही कर सके, लड़ने का कोई उपाय न था। तो ी शरीर आ सात कर सकता है, मा म चा हए; पु ष शरीर दे सकता है और सीधे साद भी हण कर सकता है। इसी वजह से महावीर जैसे को तो यह भी कहना पड़ा क ी को परम उपल के लए पहले एक दफे पु ष शरीर लेना पड़ेगा, पु ष पयाय म आना पड़ेगा। और ब त कारण म एक कारण यह भी था क वह सीधा

साद हण नह कर सकती। ज री नह है क वह मरकर पु ष हो। ऐसी याएं ह क इसी हालत म का पांतरण कया जा सकता है--जो तु ारा नंबर दो का शरीर है, वह तु ारे नंबर एक का शरीर हो सकता है; और जो तु ारे नंबर एक का शरीर है, वह तु ारे नंबर दो का शरीर हो सकता है। इसके लए गाढ़ संक क साधनाएं ह, जनसे तु ारा इसी जीवन म भी शरीर पांत रत हो सकता है। गहन साधना से शारी रक प रवतन अब जैन के एक तीथकर के बाबत ऐसी ही मजेदार घटना घट गई है। जैन के एक तीथकर ी ह--म ीबाई। ेतांबर उनको म ीबाई ही कहते ह, ले कन दगंबर उनको म ीनाथ कहते ह; वे उनको पु ष ही मानते ह। क दगंबर जैन का खयाल है क ी को तो मो हो नह सकता; तो ी तीथकर तो हो ही नह सकती। इस लए वे म ीनाथ ह; वे उनको पु ष ही मानते ह। और ेतांबर उनको ी ही माने जाते ह। अब एक आदमी के बाबत इस तरह का ववाद मनु -जा त के पूरे इ तहास म सरी जगह नह है। यानी और सब चीज के बाबत ववाद हो सकता है क भई, उसक ऊंचाई पांच फुट छह इं च थी क पांच इं च थी; क वह आदमी कब पैदा आ। ले कन इस बाबत म ववाद क वह ी था क पु ष! बड़ा अदभुत ववाद है। और एक वग मानता है क वह पु ष था; एक वग मानता है, वह ी था। मेरी अपनी समझ यह है क म ीबाई ने जब साधना शु क होगी तो वे ी ही ह गी। ले कन ऐसी याएं ह जनसे पु ष नंबर एक का शरीर बन सकता है। वह बन जाने के बाद ही वे तीथकर ए। और जो सरा वग उनको पु ष मानता है, वह उनक अं तम त को ही मान रहा है; और जो पहला वग उनको ी मानता है, वह उनक पहली त को मान रहा है। दोन बात मानी जा सकती ह, कोई क ठनाई नह है। वे ी थे, ले कन वे पु ष हो गए ह गे। और महावीर क साधना ऐसी है क उसम कोई भी ी गुजरे गी तो पु ष हो जाएगी। क पूरी क पूरी साधना जो है, वह भ क नह है; पूरी क पूरी साधना जो है, वह ान क है; पूरी क पूरी साधना जो है, वह आ ामक है, ए े सव है-साधना जो है; वह रसे व नह है साधना। अगर कोई पु ष भी मीरा क तरह भजन करे और नाचे, और नाचता रहे वष , और जब रात सोए तो ब र पर कृ क मू त अपनी छाती से लगाकर सोए, और कृ क अपने को सखी माने--अगर यह वष तक चले, तो नाम मा को ही वह पु ष रह जाएगा; आमूल पांतरण हो जाएगा। उसक चेतना म जो नंबर एक शरीर था, वह नंबर दो हो जाएगा; नंबर दो जो था, वह नंबर एक हो जाएगा। अगर यह ब त गहरा प रवतन हो, तो उससे शरीर पर ल गक अंतर भी पड़ जाएगा। अगर यह ब त गहरा न हो, तो शरीर पुराना रहा आएगा, ले कन मनस पुराना नह रह जाएगा; च ैण हो जाएगा। तो इन वशेष तय म तो बात हो सकती है; वशेष त म यह घटना घट सकती है, इसम कोई क ठनाई नह है। ले कन सामा नयम नह यह हो सकता। ी और पु ष एक- सरे के प रपूरक पु ष से श पात हो सकता है, पु ष को साद मल सकता है; ी को साद सीधा मलना मु ल है, उसे श पात से ही साद का ार

खुल सकता है। और यह त क बात है, इसम कोई मू ांकन नह है; इसम कोई आगे-पीछे, नीचा-ऊंचा नह है। ऐसा त है। यह वैसे ही त है, जैसा क पु ष वीय क ऊजा देगा और ी उसको संगृहीत करे गी। और अगर कोई पूछे क ा ी भी वीय क ऊजा पु ष को दे सकती है? तो हम कहगे क नह , नह दे सकती। वह त नह है। इसम वह नीचे है या ऊपर है, यह सवाल नह है। ले कन इस वजह से ही वै ुएशन पैदा आ, और ी नीचे मालूम होने लगी लोग को, क वह ाहक है; और दाता बड़ा हो गया। सारी नया म ी-पु ष क जो नीचाईऊंचाई क धारणा पैदा ई, वह इस वजह से पैदा ई क पु ष को लगता है--म देनेवाला ं , और ी को लगता है--म लेनेवाली ं । ले कन लेनेवाला अ नवाय प से नीचा है, यह कसने कहा? और अगर लेनेवाला न मले तो देनेवाला ा अथ रखता है? या देनेवाला न मले तो लेनेवाले का ा अथ है? असल म, ये कां ीमटरी ह, ये नीचे-ऊंचे नह ह। असल म, ये एक- सरे के प रपूरक ह; और दोन पर रतं ता म बंधे ह, इं डपडट नह ह। ये दो इकाइयां नह ह, ये एक ही इकाई के दो पहलू ह। उसम एक ाहक है और एक दाता है। ले कन भावतः, हमारे मन म अगर हम दाता श .का भी योग कर, तो भी खयाल आता है क जो देनेवाला है वह बड़ा होना चा हए। कोई वजह नह है। जो लेनेवाला है वह छोटा होना चा हए। कोई वजह नह है। कोई कारण नह है। ले कन इससे ब त सी चीज जुड़ और ी का नंबर दो का ीकृत हो गया। ी ने भी मान लया क उसका नंबर दो का है, पु ष ने भी मान लया क उसका नंबर दो का है। उन दोन का ही नंबर एक का है; उसका नंबर एक का ी क तरह है, इसका नंबर एक का पु ष क तरह है; नंबर दो इसम कोई भी नह है, और दोन प रपूरक ह। स ता ी के कारण पैदा ई अब इसके कतने ापक, छोटी से छोटी, बड़ी से बड़ी चीज म प रणाम ए। सारी चीज म इसके--पूरी सं ृ त और पूरी स ता म यह बात वेश कर गई। इस लए पु ष शकार करने गया, क वह आ ामक था; ी घर म बैठी ती ा करती रही। भावतः उसने शकार कया, वह खेत पर काम करने गया, उसने गे ं बोया, उसने फसल काटी, वह कान करने गया, वह नया म उड़ा, वह चांद तक प ं चा, वह सब काम करने गया--वह आ ामक है इस लए जा सका; ी घर बैठकर ती ा करती है। घर म उसने भी ब त कुछ कया, ले कन वह आ ामक नह था, वह हण करनेवाला था। उसने घर बसाया, सं ह कया, चीज को जगह पर रखा। सारी स ता का जो र त है, वह ी ने बनाया। अगर ी न हो तो पु ष आवारा ही होगा, घुम ड़ ही होगा, घर नह बसा सकता। यहां से वहां जाता रहेगा। अभी वह ी एक खूंटी क तरह उस पर काम करती है; वह घूम-घामकर उस खूंटी पर वापस लौटना पड़ता है उसे। अ था वह चला जाए एकदम। नगर न पैदा होते। नगर जो ह, वे ी क वजह से पैदा ए। नगर क स ता ी क वजह से पैदा ई। क ी एक जगह कना चाहती है, ठहरना चाहती है। वह आ ह करती है, बस यह क जाओ, यह ठहर

जाओ; थोड़ी मुसीबत म गुजार लगे, ले कन यह ; कह और नह जाना। वह जमीन को पकड़ती है, वह जमीन म जड़ गड़ा देती है, वह जमीन पर ककर खड़ी हो जाती है। पु ष को उसके आसपास फर नया बसानी पड़ती है। इस लए नगर बसे, इस लए गांव बसे, इस लए स ता बसी, घर बना। और घर को उसने सजाया, बनाया; पु ष ने जो बाहर क नया म कमाया, इक ा कया, उसको बचाया। नह तो पु ष को बचाने म उ ुकता नह है; वह कमाकर एक बार ले आया और बेकार हो गया। उसक उ ुकता तभी तक थी जब तक वह कमा रहा था, लड़ रहा था, जीत रहा था। अब उसक इ ा और सरी जगह जीतने पर चली गई। अब वह वहां जीतने चला गया है। ले कन वह जो जीत लाया था, उसको कोई बचा रहा है, स ाल रहा है। उसका अपना मू है, अपनी जगह है; वह प रपूरक है सारी त। ले कन भावतः, इसक वजह से--चूं क वह लाती नह , जाती नह , कमाती नह , इक ा नह करती, नमाण नह करती--उसको लगा क वह पछड़ गई है। छोटी-छोटी चीज तक म वह बात वेश कर गई; और वह सब जगह उसको एक हीनता का बोध पकड़ गया। कोई हीनता का सवाल नह है। अ ा, अब उस हीनता से एक सरा रणाम होना शु आ क जब तक ी सु श त नह थी, तब तक उसने हीनता को बरदा कया; अब हीनता तो उसको बरदा नह होती, तो वह हीनता को तोड़ने क से, पु ष जो कर रहा है वही करने म लगी है। उससे और घातक प रणाम होनेवाले ह, क वह अपने मूल को तोड़ ले सकती है। और उसको ब त संघातक, उसके च क गहराइय तक नुकसान प ं च सकते ह। अब वह बराबर होने क को शश म लगी है। और बराबर वह पु ष क तरह होकर बराबर हो ही नह सकती। तब तो वह नंबर दो क ही पु ष होगी, नंबर एक क नह हो सकती। हां, नंबर एक क वह ी क तरह ही हो सकती है। तो यहां मेरा कोई वै ुएशन नह है; बाक त ऐसा है, इन चार शरीर का, वह म आपसे कहता ं । ी और पु ष क च -दशा म फक : ओशो, तब तो

ी और पु ष क साधना म भी फक होगा?

फक होगा। फक साधना म कम, च क दशा म ादा होगा। जैसे पु ष क वही साधना, एक ही साधना प त हो, तो भी पु ष उस पर आ ामक क तरह जाएगा, और ी उस पर ाहक क तरह जाएगी; पु ष उस पर हमला करे गा, ी उस पर समपण करे गी। एक ही साधना होगी, तो भी उनके ढं ग, उनका ए ट ूड अलग-अलग होगा। पु ष जब जाएगा तो वह साधना क गदन पकड़ लेगा; और ी जब जाएगी, उसके चरण पर सर रख देगी--साधना के। वह उन दोन के ढं ग म, ए ट ूड म फक होगा। और उतना फक ाभा वक है। इससे ादा फक का कोई सवाल नह है। बस समपण उसका

भाव होगा। और जब अं तम उपल उसे होगी, तो उसे ऐसा नह लगेगा क ई र मुझे मल गया, उसे ऐसा ही लगेगा क म ई र को मल गई। और जब अं तम उपल पु ष को होगी, तो उसे ऐसा नह लगेगा क म ई र को मल गया, उसको ऐसा ही लगेगा क ई र मुझे मल गया। वह उनक पकड़ के भेद ह गे। वह तो फक रहेगा। : यह चौथी भू मका तक ही न!

बस चौथे तक ही। इसके बाद तो कोई नह उठता, इसके बाद तो कोई ी-पु ष का नह है। चौथे तक क ही बात कर रहा ं , बस चौथे शरीर तक ये फासले ह गे। सू अनुभव के साथ सा ी क सू ता : आपने कहा क ओम् क साधना से नाद उप होते ह?

त होते ह।

ा ऑटोमै टक भी नाद उप



ऑटोमै टक उप त ह , वे ादा क मती ह; अपने आप उप त ह , वे ादा क मती ह। ओम् के योग से उप त ह तो वे क त भी हो सकते ह। अपने आप ही होने चा हए। वही क मती ह, वही स े ह। : ऑटोमै टक होने पर उनके सा ी बनना चा हए और साधना कं ट

ू रखनी चा हए?

हां, उनके सा ी बनना चा हए। सा ी बनना चा हए, लीन नह होना चा हए। क लीन होने क अव ा तो सातवां ही शरीर है; उसके पहले लीन नह होना है। उसके पहले जहां लीन हो जाएं गे, वह क जाएं गे; वह ेक हो जाएगा। : वे सू

से सू

होते चले जाते ह।

हां, वे सू हो रहे ह, उसका मतलब यह है क वे खो रहे ह। तो हमको भी उतनी सू ता म सा ी होना पड़ेगा। जतने वे सू होते जाएं गे, उतने हमको भी सू सा ी बनना पड़ेगा। हम उ आ खरी तक देखना है, जब तक क वे खो ही न जाएं । थम तीन शरीर क तैयारी श पात के लए सहयोगी :

ओशो, साधक के कस शरीर म श पात क घटना और कस शरीर म ेस क घटना घ टत होती है ? य द साधक का पहला, सरा और तीसरा शरीर पूरा वक सत न आ हो, तो उस पर कुंड लनी जागरण और श पात का ा भाव पड़े गा?

पहली बात तो मने कह दी है क श पात पहले शरीर पर होता है और ेस, साद चौथे शरीर पर होता है। अगर पहले शरीर पर श पात हो और कुंड लनी जा त न ई हो, तो कुंड लनी जा त होगी। और बड़ी ती ता से होगी, और बड़ी स ालने क ज रत पड़ जाएगी। क श पात म, वह जो काम महीन म होता है, वह ण म हो जाएगा। इस लए श पात करने के पहले उस साधक के कम से कम तीन शरीर क थोड़ी सी तैयारी क ज रत है। एकदम गैर-तैयार साधक पर, सड़क चलते आदमी पर पकड़कर अगर श पात हो, तो उसे लाभ क जगह नुकसान ही ादा ह गे। इस लए पहले उसक थोड़ी सी तैयारी ज री है। हां, ब त ादा तैयारी क ज रत नह है। थोड़ी सी तैयारी ज री है क उसके तीन शरीर एक फोकस म आ जाएं , पहली बात। तीन शरीर के बीच एक सू ब ता आ जाए, क जब श पात हो तो वह एक पर न अटक जाए श पात। एक पर अटक गया तो नुकसान होगा। वह तीन पर फैल जाए तो कोई नुकसान नह होगा। अगर एक पर क गया तो ब त नुकसान होगा। वह नुकसान उसी तरह का है, जैसे क आप खड़े ह और बजली का शॉक लग जाए। अगर बजली का शॉक लग जाए आपको, और नीचे जमीन हो, और जमीन शॉक को पी जाए पूरा, तो नुकसान प ं चेगा। ले कन अगर आप लकड़ी के चौखटे पर खड़े ह और बजली का शॉक लगे, तो नुकसान नह होगा, क शॉक आपके पूरे शरीर म घूमकर वतुल बन जाएगा, स कल बन जाएगा। स कल बन गया, फर कोई नुकसान नह होता; स कल टूट जाए कह से तो नुकसान होता है। सम ऊजा का नयम यही है क वह स कल म चलती है। और अगर कह से भी बीच से स कट टूट जाए, तो ही ध ा और शॉक लग सकता है। इस लए अगर लकड़ी क टे बल पर खड़े ह , तो शॉक नह लगेगा। देह- व ुत के संर ण के उपाय यह जानकर तु हैरानी होगी क लकड़ी के त पर बैठकर ान करने का और कोई योजन नह था। और यह भी जानकर तु हैरानी होगी क मृग-चम पर और शेर क चमड़ी पर बैठकर ान करने का भी--वे सब नॉन-कंड र ह; सब। मृग-चम ब त नॉनकंड र है। अगर उस व शरीर म ऊजा पैदा हो तो वह नीचे जमीन म नह जुड़ जाएगी। नह तो शॉक लग जाएगा; आदमी मर भी सकता है। या लकड़ी पर। इस लए खड़ाऊं साधक पहनता रहा; लकड़ी के त पर सोता रहा। भले उसे पता न हो क वह कस लए सो रहा है, ा कर रहा है। लखा है शा म, वह सो रहा है लकड़ी के त पर। शायद सोच रहा है क क देने के लए सो रहे ह; शरीर को आराम न द, इस लए सो रहे ह। वह कारण नह है, खतरे सरे ह। साधक पर कसी भी ण घटना घट सकती है, कसी भी अनजान ोत से। उसको तैयार होना चा हए। तो अगर उसके तीन शरीर क तैयारी पूरी है--पहले, सरे , तीसरे क --तो वह जो श

उसको मलेगी, वह चौथे तक जाकर स कट बना लेगी, वतुल बना लेगी। अगर यह तैयारी नह हो और पहले ही शरीर पर उसक श का अवधान हो गया, क गई, अव हो गई, तो ब त नुकसान प ं च जाएं गे, ब त तरह के नुकसान प ं च सकते ह। इस लए थोड़ी सी, इतनी भर तैयारी ज री है क वह श को वतुल बनाने म समथ हो गया हो। यह ब त बड़ी तैयारी नह है, यह ब त आसानी से, सरलता से हो जाती है। इसम कोई ब त क ठनाई नह है। मु म कुछ भी नह मलता कुंड लनी जागेगी इस श पात से, वह ती ता से जागेगी। ले कन बस चौथे क तक ही जा सकेगी, उसके बाद क या ा फर नजी है। मगर उतने तक प ं च जाने क झलक भी ब त अदभुत है। और उतना रा ा भी दख जाए अंधकार म, अमावस म--मुझे दो मील का रा ा भी दख जाए, बजली चमक जाए--तो भी कुछ कम नह है। एक दफा रा ा भी दख जाए थोड़ा सा, तो भी सब कुछ बदल गया। म वही आदमी नह रह जाऊंगा जो कल तक था। इस लए श पात का थोड़ी र तक दशन के लए उपयोग कया जा सकता है; पर उसक ाथ मक तैयारी हो जानी चा हए। सीधे सामा जन पर नुकसानदायक है ही। और मजा यह है क सामा जन ही ादा श पात इ ा द पाने के लए उ ुक रहता है; वह चाहता है, मु म कुछ मल जाए। ले कन मु म कुछ भी नह मलता। और कई दफे मु क चीज ब त महं गी पड़ती है, बाद म पता चलता है। मु क चीज से बचने क को शश करनी चा हए। असल म, हम सदा क मत चुकाने को तैयार होना चा हए। जतनी हम क मत चुकाने क तैयारी दखलाते ह, उतना ही हम पा होते चले जाते ह। और बड़ी क मत हम अपनी साधना से ही चुकाते ह। अब ब त क ठन है न! अभी एक म हला आई दो दन पहले। उसने कहा, अब तो म मरने के करीब ं , उ हो गई; अब मुझे कब होगा, अब ज ी करवा द! ज ी करवा द, नह तो मर जाऊंगी, मट जाऊंगी, समा हो जाऊंगी। तो मुझे ज ी करवा द! तो मने उससे कहा क तुम ान के लए आ जाओ, दो-चार दन ान करो। फर देखगे ान म तु ारी ा ग त होती है, फर आगे क बात सोचगे। उसने कहा क नह , ान- ान म मुझे मत उलझाइए, मुझे तो ज ी हो जाए। अब यह हम. बलकुल बना क मत चुकाए कुछ चीज क खोज चलती है। ऐसी खोज खतरनाक स होती है। इससे कुछ मलता तो नह , कुछ टूट सकता है। ऐसी आकां ा भी साधक म नह होनी चा हए। जतनी हमारी तैयारी है उतना हम सदा मल जाएगा, इसका भरोसा होना चा हए। यह मल ही जाता है। असल म, जो आदमी जतनी चीज का पा है उससे कम उसे कभी नह मलता; वह जगत का ाय है, वह जगत का धम है। हम जतनी र तक तैयार होते ह उतनी र तक हम मल जाता है। और अगर न मलता हो तो हम सदा जानना चा हए क कोई अ ाय नह हो रहा, हमारी तैयारी कम होगी। ले कन हमारा मन सदा यह कहता है क कोई अ ाय हो रहा है; म यो तो इतना ं , ले कन मुझे यह नह मल रहा। ऐसा होता ही नह , हम जतने यो होते ह उतना हम सदा ही मलता है। यो ता और

मलना एक ही चीज के दो नाम ह। ले कन मन हमारा आकां ा ब त क करता है और म ब त कम के लए करता है; हमारी आकां ा और हमारे म म बड़ा फासला होता है। वह फासला ब त आ घाती है। वह कभी नुकसान प ं चा सकता है। उसक वजह से हम दीवाने क तरह घूमते ह क कह कुछ मल जाए, कह कुछ मल जाए। और फर जब ब त लोग इस तरह मु म खोजने घूमते ह, तब न त ही कुछ लोग इनका शोषण कर सकते ह जो इनको मु म देने क तैयारी दखलाएं । इनके पास ब त कुछ नह हो सकता, ले कन अगर इ कुछ सू भी कह से पता चल गए ह जनसे ये थोड़ा-ब त कुछ कर सकते ह , जो ब त गहरा नह होगा, ले कन उतना नुकसान तो ये प ं चा ही दगे। उतना नुकसान प ं चा सकते ह। श पात का भुलावा जैसे एक आदमी, जसको क श पात का कोई भी पता नह है, वह भी अगर चाहे तो सफ बॉडी मै े ट से थोड़ा-ब त श पात कर सकता है-- जसे और भीतरी शरीर का, छह शरीर का कोई भी पता नह । शरीर के पास अपनी मै े टक फोस है, शरीर के पास अपना चुंबक य त है। अगर उसक थोड़ी व ा से इं तजाम कया जाए तो तु शॉक प ं चाए जा सकते ह, उसी से। इस लए पुराना साधक जो है, वह दशा देखकर सोएगा--इस दशा म सर नह करे गा, उस दशा म पैर नह करे गा; क जमीन का एक मै ेट है, और वह सदा उस मै ेट क सीध म रहना चाहता है। उस मै ेट से वह मै ेटाइज होता रहता है। अगर तुम उससे आड़े सोते हो तो तु ारे बॉडी का मै े ट कम होता चला जाता है। अगर तुम उस मै ेट क धारा म सोते हो, तो वह मै ेट जो जमीन का मै ेट है, जस पर क जमीन पूरी क पूरी धुरी बनाए ए है, वह मै ेट तु ारे मै ेट को मै ेटाइज करता है; वह तु ारे शरीर को भर देता है। जैसे क एक मै ेट के पास तुम लोहा रख दो, तो वह लोहा भी थोड़ा सा मै ेटाइज हो जाएगा और छोटी-मोटी सुई को वह भी ख च सकेगा। थोड़ी-ब त देर तक तो ख च ही सकेगा। चुंबक य श के व भ योग तो बॉडी क अपनी चुंबक य श है, उसको अगर पृ ी क चुंबक य श के साथ रखा जा सके.। फर तार क चुंबक य श यां ह। वशेष तारे , वशेष मु त म, वशेष प से चुंबक य होते ह। अगर उसका कसी को पता है--और उसका पता होने म कोई क ठनाई नह है, वह सारी क सारी व ा है--तो उन वशेष तार से, वशेष घड़ी म, वशेष त म, वशेष आसन म खड़े होने से तु ारा शरीर ब त चुंबक य हो जाता है। और तब तुम कसी भी आदमी को चुंबक य शॉक दे सकते हो, जो उसे श पात मालूम पड़ेगा, जो क श पात नह है। शरीर क अपनी व ुत है, शरीर क अपनी इलेि सटी है। उस इलेि सटी को अगर ठीक से पैदा कया जाए तो छोटा-मोटा पांच-दस कडल का ब तो हाथ म रखकर जलाया जा सकता है। उसके योग ए ह और सफल ए ह। कुछ लोग ने वह ब जलाकर हाथ से.सीधा हाथ म ब लेकर जला दया। पांच-दस कडल का ब तो हाथ से ही जल सकता है। श तो उससे भी ब त ादा है। श तो उससे भी ब त ादा है।

एक ी बे यम म, कोई बीस वष पहले, आक क प से इलेि फाइड हो गई। उसको कोई छू नह सकता था, क जो भी छु ए उसे शॉक लग जाए। उसके प त ने उसे तलाक दया। उसका कारण तलाक का यह था क उसको शॉक लगता उसको छूकर। तलाक क वजह से वह सारी नया म पता चला, और तब उसके शरीर क जांचपड़ताल ई तो पता चला क उसका शरीर व ुत पैदा कर रहा है ब त जोर से। शरीर के पास बड़ी बैटरीज ह। अगर वे व त काम कर रही ह तो हम पता नह चलता, अगर वे अ व त हो जाएं तो उनसे ब त श पैदा होती है। तुम पूरे व कैलोरीज ले जाकर भीतर उन सब बैटरीज को पूरा कर रहे हो। इस लए कई दफे तुमको ही लगता है क जैसे चाज खो गया, र-चाज होने क ज रत है। थका आ आदमी, ड े ड आदमी, सांझ को थका-मांदा, टूटा आदमी, ऐसा लगता है जैसे उसक बैटरी धीमी पड़ गई, उसने चाज खो दया, अब वह र-चाज होना चाहता है। रात सोकर वह र-चाज होता है। उसे पता नह क सोने म कौन सी बात है जससे वह सुबह र-चा होकर उठता है। उसक बैटरी वापस चा हो गई है। न द म कुछ भाव उस पर काम कर रहे ह। उनका सब पता चल चुका है क वे कौन से भाव काम करते ह। कोई आदमी चाहे तो उन भाव का जागते ए अपने शरीर म फायदा ले सकता है। और तब वह तु ारे शरीर को शॉक दे सकता है, जो मै े टक के भी नह ह, इलेि क के ह--बॉडी इलेि क के ह। ले कन उससे तुमको श पात का म हो सकता है। इसके अलावा भी और रा े ह जो सब फा ह, जनसे कोई संबंध नह है असली बात का। अगर उस आदमी को अपने शरीर के मै ेट का भी कोई पता नह है, अपने शरीर क व ुत का भी कोई पता नह है, ले कन तु ारे शरीर के व ुत के स कट को तोड़ने का उसे कोई रा ा पता है, तो भी तु शॉक लग जाएगा। अब इसको कई तरह से कया जा सकता है और कई तरह के इं तजाम कए जा सकते ह क तु ारा ही जो वतुल है तु ारे भीतर व ुत का, वह अगर तोड़ दया जाए तो तुमको शॉक लगेगा। उसम सरे आदमी का कुछ भी नह आ रहा है तु ारी तरफ, ले कन तुमको ही शॉक लग रहा है। वह तोड़ा जा सकता है। उसको तोड़ने क भी व ाएं ह, उसको तोड़ने के भी उपाय ह। मा कुतूहल से साधना म खतरे ये सारी क सारी बात तु म पूरी न बता सकूं, क वे पूरी बतानी कभी भी उ चत नह । और जतनी बात म कह रहा ं , उनम से कुछ भी पूरी बात नह है। यह जो फा मेथ स क जो म बात कर रहा ं , इसम कोई भी बात पूरी नह है; क इसम पूरी कहना सदा खतरनाक है। क उसको कोई भी करने का मन होता है। हमारी ू रआ सटी ऐसी है क एक ब त अदभुत फक र ने तो ू रआ सटी को ही सफ सन कहा है। पाप एक ही है आदमी म, वह है उसका कुतूहल; और बाक कोई पाप नह है। क वह कुतूहलवश कतने पाप कर लेता है, हम पता नह चलता। कुतूहल ही उसको न मालूम कतने पाप करा देता है। बाइ बल क कथा क अदम को ई र ने कहा है क तू इस वृ का फल मत चखना। बस यह कुतूहल द त म डाल दया उसे। ओ र जनल सन जो है, वह ू रआ सटी का था। उसको यह द त पड़ गई। उसने कहा क यह मामला बड़ा गड़बड़ है! इतने बड़े

जंगल म और इतने सुंदर फल म यह एक साधारण सा वृ , इसका फल खाने क मनाही है! बात ा है? सारे वृ बेकार हो गए, वह एक ही वृ साथक हो गया। च वह डोलने लगा उसका। वह बना फल चखे नह रह सका, वह फल उसे चखना पड़ा। कुतूहल उसे उस वृ के पास ले गया, जसे ईसाइयत कहती है क ओ र जनल सन, मूल पाप हो गया। अब मूल पाप फल के चखने म ा हो सकता है? नह ले कन, मूल पाप उसके कुतूहल का हो गया। और हमारे मन म बड़ा कुतूहल होता है। शायद ही कभी हमारे मन म ज ासा हो। ज ासा सफ उसी म होती है जसम कुतूहल नह होता। और ान रखना, ू रआ सटी और इं ायरी म बड़ा बु नयादी फक है। ूरइस आदमी इं ाय रग नह होता। वह जो आदमी कुतूहल से भरा रहता है क यह भी देख ल, यह भी देख ल, वह कसी चीज को कभी पूरी नह देखता; क जब तक वह इसको देख नह पाता क प ीस और चीज उसे बुलाने लगती ह क यह भी जान ल, यह भी देख ल। और तब वह कभी भी अ ेषण नह कर पाता है। तो ये फा मेथ स क जो म बात कह रहा ं , यह पूरी नह है। इसम कुछ खास बात छोड़ दी गई ह। उनका छोड़ देना ज री है, क हमारा मन होता है क हम इनको करके देख। ले कन यह सब हो जाता है, इसम जरा भी क ठनाई नह है। और इस सबक वजह से जो झूठे आकां ी खोजते फरते ह क हम श मल जाए, परमा ा मल जाए, कोई दे दे, इनको कोई देनेवाला भी मल जाता है। और तब अंधे अंध का मागदशन करते ह। और फर अंधे तो गरते ही ह, उनके पीछे अंध क बड़ी कतार गरती है। और यह नुकसान साधारण नह होता, कई बार ज के लए हो जाता है; क कसी चीज को तोड़ लेना ब त आसान है, फर से बनाना ब त मु ल है। इस लए कुतूहलवश कभी इस संबंध म कुछ खोजबीन करना ही नह । इस संबंध म अपनी तैयारी पहले करना, फर जो ज री है वह अपने आप तु ारे पास आ जाएगा--आ जाता है।

मनस से महाशू कुंड लनी जागरण के लए थम तीन शरीर म सामंज

आव

: 17 तक



: ओशो, कल क चचा म आपने अ वक सत थम तीन शरीर के ऊपर होनेवाले श पात या कुंड लनी जागरण के भाव क बात क । सरे और तीसरे शरीर के अ वक सत होने पर कैसा भाव होगा, इस पर कुछ और काश डालने क कृपा कर। साथ ही यह भी बताएं क थम तीन शरीर-फ जकल, ईथ रक और ए ल बॉडी को वक सत करने के लए साधक ा तैयारी करे ?

इस संबंध म पहली बात तो यह समझने क है क पहले, सरे और तीसरे शरीर म सामंज , हामनी होनी ज री है। ये तीन शरीर अगर आपस म एक मै ीपूण संबंध म नह ह, तो कुंड लनी जागरण हा नकर हो सकता है। और इन तीन के सामंज म, संगीत म होने के लए दो-तीन बात आव क ह। थम शरीर के त बोधपूण होना पहली बात तो यह क हमारा पहला शरीर, जब तक हम इस शरीर के त मू त ह, तब तक यह शरीर हमारे सरे शरीर के साथ सामंज ा पत नह कर पाता, हाम नयस नह हो पाता। मू त का मेरा मतलब यह है क हम अपने शरीर के त बोधपूण नह ह। चलते ह तो हम पता नह होता क हम चल रहे ह, उठते ह तो हम पता नह होता क हम उठ रहे ह, खाना खाते ह तो हम पता नह होता क हम खाना खा रहे ह। शरीर से हम जो काम लेते ह वह अ ंत मू ा और न ा म लेते ह। अगर इस शरीर के त मू ा है, तो सरे शरीर के त तो और भी मू ा होगी, क वे तो ब त सू ह। अगर इस ूल दखाई पड़नेवाले शरीर के त भी हमारा कोई होश और अवेयरनेस नह है, तो जो शरीर नह दखाई पड़ते, अ ह, उनका तो कोई सवाल नह उठता, उनके त तो हम कभी होश नह हो सकता। और बना होश के सामंज नह है। सब सामंज होश म होता है। न द म सब सामंज टूट जाता है। तो पहली बात तो इस शरीर के त अवेयरनेस जगानी ज री है। यह शरीर छोटा सा भी काम करे तो उसम एक रमब रग, उसम एक रण होना आव क है। जैसा बु कहते थे क तुम राह पर चलो तो तुम जानो क चल रहे हो। और जब तु ारा बायां पैर उठे , तो तु ारे च को पता हो क बायां पैर उठा; और जब तुम रात करवट लो तो तुम जानो क तुमने करवट ली है।

एक गांव से वे नकल रहे ह--यह उनक साधक अव ा क घटना है--और एक साधक उनके साथ है। वे दोन बात कर रहे ह और एक म ी उनके गले पर आकर बैठ गई है। तो वे बात करते रहे और हाथ से उ ने म ी को उड़ा दया। म ी उड़ गई, तब अचानक वे ककर खड़े हो गए और उ ने उस साधक से कहा क बड़ी भूल हो गई, और उ ने फर से म ी उड़ाई जो क अब थी ही नह ; फर उस जगह हाथ ले गए जहां म ी थी तब ले गए थे। उस साधक ने कहा, साथी ने कहा, अब आप ा कर रहे ह? अब तो म ी नह है! बु ने कहा, अब म वैसे उड़ा रहा ं जैसे मुझे उड़ानी चा हए थी। अब म होशपूवक उड़ा रहा ं ; अब यह हाथ मेरा उठ रहा है तो मेरी चेतना म म जान रहा ं क यह हाथ जा रहा है म ी को उड़ाने। उस व म तुमसे बात करता रहा और यं वत मने म ी उड़ा दी। मेरे शरीर के त एक पाप हो गया। थम ूल शरीर के त जागने पर भाव शरीर का बोध ारं भ य द हम अपने शरीर के ेक काम को होश से करने लग, तो हमारा यह शरीर पारदश हो जाएगा, ांसपैरट हो जाएगा। कभी इस हाथ को नीचे से ऊपर तक होशपूवक उठाएं । और तब आप एहसास करगे क आप हाथ से अलग ह, क उठानेवाला ब त भ है। वह जो भ ता का बोध होगा, वह आपक ईथ रक बॉडी का बोध शु हो गया। फर जैसे मने कहा क इस शरीर के त बोध है--अब जैसे समझ ल क यहां एक आक ा बजता हो, ब त तरह के वा बजते ह । जस आदमी ने संगीत कभी नह सुना है उसे भी हम यहां ले आएं । तो जो र सबसे ादा बजते ह गे, जो ढोल सबसे ादा पीटा जा रहा होगा, उसे वही सुनाई पड़ेगा; ब त धीमे र वाले, मंदे रवाले, पीछे से, पृ भू म से बजनेवाले वा र उसे सुनाई नह पड़गे। ले कन उसका होश बढ़ता जाए, तो फर उसे पीछेवाले र भी सुनाई पड़ने शु ह गे। उसका होश और बढ़ता चला जाए, तो उसे और पीछेवाले र सुनाई पड़ने शु ह गे। और जस दन उसका होश पूरा होगा, उस दन वह ब त ही बारीक और नाजुक जो र ह, वे भी वह पकड़ने लगेगा। और जस दन उसका होश और भी बढ़ जाएगा, उस दन वह केवल र ही नह पकड़ेगा, दो र के बीच म जो अंतराल है, जो गैप है, जो साइलस है, वह भी पकड़ेगा। तभी वह संगीत को पूरा पकड़ पाया। अं तम तो उसको गैप पकड़ना है, तब समझगे क उसक संगीत क पकड़ पूरी हो पाई। जब दो र के बीच म जगह खाली छूट जाती है और कोई र नह होता, स ाटा होता है; उस स ाटे का भी अपना अथ है। असल म, संगीत के सब र उसी स ाटे को उभारने के लए ह। वह कतना उभरता है और कट होता है, यही असली बात है। अगर आपने कभी कोई जापानी या चाइनीज प टग देखी है, तो ब त हैरान ह गे यह बात देखकर क प टग एक कोने पर होगी छोटी सी, और कैनवस ब त बड़ा खाली ही होगा। ऐसा नया म कह नह होता, क नया म कह भी च कार ने ान के साथ च नह बनाए। असल म, ानी ने नया म कह भी प टग नह क है सवाय चीन और जापान को छोड़कर। अगर आप इस च कार से पूछगे क यह ा मामला है? इतना बड़ा कैनवस लया है, उसम इतना सा छोटा सा कोने म च बनाया है! यह तो कैनवस के आठव ह े म भी बन सकता था, बाक कैनवस क ा ज रत थी? तो वह कहेगा क

वह जो बाक पृ पर जो खाली आकाश है, उसको उभारने के लए ही यह नीचे कोने पर थोड़ी सी मेहनत क है, ता क वह खाली आकाश तु दखाई पड़ सके। क अनुपात यही है, खाली आकाश अनंत है। अब एक वृ खड़ा है खाली आकाश म। जब हम च बनाते ह तो पूरे कैनवस पर वृ हो जाता है। व ुतः तो आकाश होना चा हए पूरे कैनवस पर, वृ तो एक कहां कोने म, उसका पता नह चलता, उतना छोटा है। अनुपात वा वक यही है। और वृ अपने पूरे अनुपात म आकाश क पृ भू म म जब खड़ा होगा, तभी जीवंत होगा। इस लए हमारी सारी प टग अनुपातहीन है। अगर ानी कभी संगीत पैदा करे गा तो उसम र कम ह गे, शू ता ादा होगी; क र तो बड़ी छोटी बात है, शू ब त बड़ी बात है। और र क एक ही साथकता है क वह शू को इं गत कर जाए और वदा हो जाए। ले कन जतना बोध बढ़ेगा र का, उतना! तो हमारा यह जो ूल शरीर है, इसक साथकता ही यही है क यह हम और सू शरीर का बोध करा जाए। ले कन हम इसी को पकड़कर बैठ जाते ह। और पकड़कर बैठने क जो तरक ब है, वह यह है क हम इस शरीर के त मू त तादा कर लेते ह; एक ी पग आइड टटी है, हम सो गए ह और शरीर को हम बलकुल मू ा क तरह जी रहे ह। इस शरीर क एक-एक या के त जागोगे तो तु फौरन सरे शरीर का बोध शु हो जाएगा। फर सरे शरीर क भी अपनी याएं ह। ले कन उनम तुम तब तक नह जाग सकोगे जब तक इस शरीर क याओं के त नह जागे, क वे सू ह। अगर तुम इस शरीर क याओं के त जाग गए तो तु सरे शरीर क याओं का भी हलन-चलन पता पड़ने लगेगा। अब सरे शरीर क हलन-चलन पर जस दन तुम जागोगे, तुम ब त हैरान हो जाओगे क यह तो हम पता ही नह था क हमारे भीतर ईथ रक वे स भी ह, और वे पूरे व काम कर रही ह। भाव शरीर म उठनेवाले भाव के त होश एक आदमी ने ोध कया। ोध का ज सरे शरीर म होता है, अ भ पहले शरीर म होती है। ोध मूलतः सरे शरीर क या है; पहले शरीर का तो साधन क तरह उपयोग होता है। इस लए तुम चाहो तो पहले शरीर तक ोध को आने से रोक सकते हो। दमन म यही करते हो। मेरा मन आ है, ोध से भर गया ं , और तु उठाकर लकड़ी मार ं । लकड़ी मारने से म रोक सकता ं , क यह पहले शरीर क या है। यह मूलतः ोध नह है, यह ोध क अ भ भर है। लकड़ी मारने से रोक सकता ं , चा ं तो तु देखकर मु ु राता भी रह सकता ं , ले कन भीतर मेरे सरे शरीर पर ोध फैल जाएगा। तो दमन म इतना ही होता है क हम अ भ के तल पर उसको कट नह होने देते, ले कन मूल ोत के तल पर तो वह कट हो जाता है। जब तु पहले शरीर क याओं का पता चलना शु होगा, तब तुम अपने भीतर उठनेवाले ेम, अपने भीतर उठनेवाले ोध, अपने भीतर उठनेवाली घृणा, अपने भीतर उठनेवाले भय के मूवम स को भी समझने लगोगे। वे भी तु पता चलने लगगे क

उनक ग तयां ह। और जब तक तुम सरे शरीर पर उठनेवाले इन सब भाव क ग त को नह पकड़ पाते हो, तब तक ादा से ादा दमन ही कर सकते हो, मु नह हो सकते। क तुमको पता ही तब चलता है जब वह इस शरीर तक आ जाता है; तुमको खुद भी तभी पता चलता है। कई बार तो तब भी पता नह चलता; पता चलता है जब तक सरे के शरीर तक न प ं च जाए। हम इतने मू त होते ह क जब तक मेरा चांटा तु ारे ऊपर न पड़ जाए, तब तक भी मुझे पता नह चलता क म चांटा मारने वाला था। जब चांटा लग ही जाता है, तब मुझे पता चलता है क कोई घटना घट गई। ले कन यह उठता है ईथ रक बॉडी म; वहां से पैदा होता है--सम भाव। इस लए मने सरे शरीर को भाव शरीर कहा। ईथ रक बॉडी जो है, वह भाव शरीर है। उसक अपनी ग तयां ह। ोध म, ेम म, घृणा म, अशां त म, भय म उसके अपने मूवमट हो रहे ह। उसक ग तय को तुम पहचानने लगोगे। भय के ईथ रक कंपन का बा पर भाव जब तुम भयभीत होओगे तब तु ारी ईथ रक बॉडी एकदम सकुड़ जाती है। तो भय म जो संकोच मालूम पड़ता है, वह पहले शरीर का नह है; क पहला शरीर तो उतना ही रहता है, उसम कोई फक नह पड़ता। पहले शरीर के आयतन म कोई फक नह पड़ता, ले कन ईथ रक बॉडी सकुड़ जाती है भय म। इस लए जो आदमी भयभीत रहता है, उसके पहले शरीर पर भी संकोच के भाव दखाई पड़ने लगते ह। उसके चलने म, उसके बैठने म वह पूरे व दबा-दबा मालूम पड़ता है, जैसे चार तरफ से कोई उसे दबाए ए है। वह खड़ा होगा तो सीधा खड़ा न होगा, झुककर खड़ा होगा; वह बोलेगा तो लड़खड़ाएगा; चलेगा तो उसके पैर म कंपन ह गे; द खत करे गा तो उसके अ र कंपे ए और हले ए ह गे। अब ी और पु ष के ह ा र, बना कसी क ठनाई के कोई भी पहचान सकता है क ये पु ष के ह ा र ह क ी के। ी सीधे अ र बना ही नह पाती। कतने ही सुडौल बनाए तब भी उसके अ र म एक कंपन होता है जो ैण होता है। वह उसके ईथ रक शरीर से आता है। वह पूरे व भयभीत है। उसका ही भय हो गया है। इस लए बलकुल बना फकर के देखकर कहा जा सकता है क यह ी का लखा आ अ र है क पु ष का लखा आ अ र है। फर पु ष म भी कौन आदमी कतना भयभीत है, वह अ र से देखकर जाना जा सकता है। हमारी अंगु लय म और ी क अंगु लय म कोई फक नह है। हमारे कलम के पकड़ने म, उसके कलम के पकड़ने म फक नह है। जहां तक पहले शरीर का वा ा है, लखने म कोई फक नह पड़ता। ले कन जहां तक सरे शरीर का वा ा है, ी भयभीत है। आज तक भी वह भीतर से अभय क त नह हो पाई--न समाज क , न सं ृ त क , न हमारे च क -- क ी को हम अभय दे पाएं । वह भयभीत है पूरे व । और उसके भय का कंपन उसके सारे म उतरे गा। पु ष म भी जांचा जा सकता है क कौन भयभीत है, कौन नभय है। वह उनके ह ा र बता सकगे। ले कन भय क जो त है, वह ईथ रक है। भाव शरीर का भय म सकुड़ना और ेम म फैलना

यह म तु पहचानने के लए कह रहा ं क भीतर तुम जब इस शरीर क याओं को पहचान जाओ तो तु ईथ रक शरीर क याओं को भी पहचानना पड़ेगा क वहां ा हो रहा है। जब तुम ेम म होते हो तो तु लगता है तुम फैल गए। असल म, ेम म इतनी मु इसी लए मालूम होती है क हम एकदम फैल जाते ह--कोई है जससे अब भय क कोई ज रत नह है। जस को म ेम करता ं उसके पास मुझे भय का कोई कारण नह है। असल म, ेम का मतलब ही यह है क जससे मुझे भय नह है; जसके सामने, म जैसा ं उतना पूरा खल सकता ं ; जतना ं उतना फैल सकता ं । इस लए ेम के ण म ए पशन का बोध होता है। तु ारा यह शरीर इतना ही रहता है, इसम कोई फक नह पड़ता, ले कन तु ारे भीतर का शरीर खल जाता है और फूल जाता है, फैल जाता है। ान म नरं तर लोग को अनुभव होता है. कसी को अनुभव होता है क उसका शरीर ब त बड़ा हो गया! यह शरीर इतना ही रहता है। यह शरीर इतना ही रहता है। ान म उसे लगता है क यह ा हो रहा है! मेरा शरीर फैलता जा रहा है, पूरे कमरे को भर लया! आंख जब वह खोलता है तो हैरान होता है क शरीर तो उतना ही है, ले कन वह फ लग भी उसक पीछा करती है क वह भी झूठ नह था जो मने जाना; अनुभव इतना साफ आ था क म पूरे कमरे म भर गया ं । वह ईथ रक शरीर है। उसके आयतन का कोई अंत नह है। वह भाव से फैलता और सकुड़ता है। वह इतना फैल सकता है क सारे जगत म भर जाए; वह इतना सकुड़ सकता है क एक छोटे अणु म भी उसके लए जगह मल जाए। वह भाव शरीर है। फैला आ होना भाव शरीर क ता तो उसक याएं तु दखाई पड़नी शु ह गी--उसका फैलना, उसका सकुड़ना; वह कन तय म फैलता है, कन म सकुड़ता है। जनम वह फैलता है, अगर साधक उन याओं म जीने लगे तो सामंज पैदा होगा; जनम वह सकुड़ता है, अगर उनम जीने लगे तो इस शरीर म और सरे शरीर म सामंज टूट जाएगा। क उसका फैलाव ही उसक सहजता है। जब वह पूरा फैला होता है, पूरा फु त होता है, तब वह इस शरीर के साथ एक सेतु म बंध जाता है; और जब वह भयभीत होता है, सकुड़ा आ होता है, तो इस शरीर से उसके संबंध छ - भ हो जाते ह; वह अलग एक कोने म पड़ जाता है। ती भावना क आघात से भाव शरीर का बोध उस शरीर क और भी तरह क याएं ह जनको क और तरह से जाना जा सकता है। जैसे क.अगर एक आदमी अभी दखाई पड़ रहा था बलकुल , सब तरह से ठीक; और कसी ने आकर उसको खबर दी क उसको फांसी क सजा हो गई है; तो उसके चेहरे का रं ग फौरन उड़ जाएगा। उसके इस शरीर म कोई फक नह पड़ रहा है, क इस शरीर म जतना खून है उतना है। ले कन उसक ईथ रक बॉडी म एकदम फक पड़ गया। उसक ईथ रक बॉडी इस शरीर को छोड़ने को तैयार हो गई। उसक ईथ रक बॉडी, उसका भाव शरीर इस शरीर को छोड़ने को तैयार हो गया। और हालत वैसी ही हो गई, जैसे क इस घर के मा लक को अचानक पता चले क अब यह मकान खाली कर देना है, तो सब रौनक चली जाए, सब अ हो जाए। उस सरे शरीर ने इससे संबंध एक अथ म तोड़ ही दया। फांसी तो थोड़ी देर बाद होगी, नह भी होगी, ले कन उसका इस शरीर से

संबंध टूट गया। एक आदमी तु ारी छाती पर बं क लेकर खड़ा हो गया, एक शेर ने तु ारे ऊपर हमला कर दया, तो तु ारे इस शरीर पर अभी कुछ भी नह आ है, कसी ने छु आ भी नह है, ले कन तु ारा ईथ रक शरीर तैयारी कर लया है छोड़ने क । उसके बीच, इसके बीच फासला बड़ा हो गया। तो उसक ग तय को फर तु सू ता से देखना पड़ेगा। वे भी देखी जा सकती ह, उनम कोई क ठनाई नह है। क ठनाई है तो यही क हम इसी शरीर क ग तय को नह देख पाते। इस शरीर क ग तय को हम देख तो हम उसक ग तयां भी दखाई पड़ने लगगी। और जैसे ही दोन क ग तय का बोध तु होगा, तु ारा बोध ही दोन के बीच सामंज बन जाएगा। भाव शरीर म जागने पर सू शरीर का बोध फर तीसरा शरीर है, जसे सू शरीर मने कहा, ए ल बॉडी कहा। उसक ग त न त ही और भी सू है। और तु ारे भय और ोध और ेम और घृणा, इनसे भी ादा सू है। उसक ग त को पकड़ने के लए तो सरे शरीर म जब तक पूरी सफलता न मल जाए तब तक ब त क ठनाई है। समझना भी थोड़ी क ठनाई है, क अब गैप ब त बड़ा हो गया। हम पहले शरीर पर मू त ह। इस लए पहले शरीर से सरा शरीर नकट है, थोड़ी-ब त बात समझ म आती है। तीसरे शरीर के साथ ब त गैप हो गया। यानी ऐसा फक पड़ गया क सरा शरीर तो हमारे बगल का नेबर था, पड़ोसी था; कभी-कभी उसक आवाज, उसके चौके म बतन के गरने क आवाज, कभी उसके ब े के रोने क आवाज सुनाई पड़ जाती थी। ले कन तीसरा शरीर पड़ोसी के बाद का पड़ोसी है। उसके चौके क भी आवाज कभी नह आती, उसके ब े के रोने का भी कभी पता नह चलता। तीसरे शरीर क या ा और भी सू है। और उसे तभी पकड़ा जा सकता है जब हम सरे म भाव को पकड़ने लग, तब तीसरे म हम तरं ग को पकड़ सकते ह। तरं ग भाव के भी पूव ह। तरं ग का ही सघन प भाव है। और भाव का सघन प या है। तो मुझे तो पता नह चलेगा क तुम ोध म हो, जब तक तुम मेरे ऊपर ोध कट न करो; क जब वह या बन जाए, तब म देख पाऊंगा। ले कन तुम या के पहले ही उसको देख सकते हो-भाव शरीर म, क ोध उठ आया। ले कन जो ोध उठा है, उसके भी अणु ह जो सू शरीर से आते ह। और वे अणु अगर न आएं तो भाव शरीर म ोध नह उठ सकता। अब वह जो सू शरीर है, ए ल जो बॉडी है, वह कहना चा हए, सफ तरं ग का समूह है। और हमारी सब तयां. एक उदाहरण से हम समझने क को शश कर। कभी पानी अलग दखाई पड़ता है, हाइ ोजन अलग दखाई पड़ती है, ऑ ीजन अलग दखाई पड़ती है। ऑ ीजन म पानी का कोई पता नह चलता, पानी म ऑ ीजन कह दखाई नह पड़ती। पानी का कोई गुण ऑ ीजन म नह है, कोई गुण हाइ ोजन म नह है, ले कन दोन के मलने से पानी बन जाता है, दोन म कुछ छपे ए गुण ह जो मलकर कट हो जाते ह। ए ल बॉडी म कभी ोध नह दखाई पड़ता, कभी ेम नह दखाई पड़ता, कभी घृणा नह दखाई पड़ती, कभी भय नह दखाई पड़ता। ले कन तरं ग उसके पास ह, जो सरे

शरीर, भाव शरीर से जुड़कर त ाल कुछ बन जाती ह। तो जब तुम सरे शरीर म पूरी तरह जागोगे, और जब तुम ोध के त पूरी तरह जागोगे, तब तुम पाओगे क ोध के पहले भी कोई घटना घट रही है। यानी ोध जो है वह शु आत नह है, वह भी कह प ं च गई बात है। ऐसा समझो क पानी से एक बबूला उठ रहा है, रे त से एक बबूला उठा है और पानी म चल पड़ा है। जब वह रे त से छूटता है तब तो दखाई नह पड़ता, आधे पानी तक आ जाता है तब भी दखाई नह पड़ता, जब बलकुल पानी से बीता, दो बीता नीचे रह जाता है, जहां तक हमारी आंख जाती है, तब हम दखाई पड़ता है। ले कन तब भी ब त छोटा दखाई पड़ता है। फर वह पानी क सतह के पास आने लगता है। जैसे पास आने लगता है, वैसे बड़ा होने लगता है। क हम दखाई पड़ने लगता है--एक; ादा साफ दखाई पड़ने लगता है--दो; और पानी का जो दबाव और वजन है, वह उस पर कम होने लगता है, इस लए वह बड़ा होने लगता है। जतना नीचे था उतना पानी क सतह का ादा दबाव था, वह उसको दबाए ए थी। जैस-े जैसे सतह का दबाव कम होने लगा, वह ऊपर आने लगा, वह बड़ा होने लगा। और जब वह सतह पर आता है तो वह पूरा बड़ा हो जाता है। ले कन जहां वह पूरा बड़ा होता है, वह वह फूट भी जाता है। तो उसने बड़ी या ा क । उसने बड़ी या ा क । कुछ ह े थे जहां वह हम दखाई नह पड़ता था। ले कन वहां भी वह था; वह रे त म दबा था। फर वह वहां से नकला, तब भी हम दखाई नह पड़ता था, वह पानी म दबा था। फर वह पानी क सतह के पास आया तब हम दखाई पड़ा, ले कन ब त छोटा मालूम पड़ रहा था। फर वह पानी क सतह पर आया और तब वह पूरा आ, और तब वह फूटा। ोध क तरं ग क या ा तो हमारे शरीर तक आते-आते ोध का बबूला पूरी तरह फूटता है; वह सतह पर आकर कट होता है। चाहो तो तुम इस शरीर पर आने के पहले उसको भाव शरीर म रोक सकते हो; वह दमन होगा। ले कन अगर तुम भाव शरीर म उसको गौर से देखो तो तुम ब त हैरान होओगे क उसक या ा भाव शरीर के और भी पहले से हो रही है--ले कन वहां वह ोध नह है, वहां वह सफ तरं ग है। जैसे मने कहा क.जगत म, असल म, अलग-अलग पदाथ नह ह, अलग-अलग तरं ग के संघात ह। कोयला भी वही है, हीरा भी वही है; सफ तरं ग के संघात म फक पड़ गया है। और अगर हम कसी भी पदाथ को तोड़ते चले जाएं तो नीचे जाकर व ुत ही रह जाती है, और उसके अलग-अलग संघात और अलग-अलग संघट अलग-अलग त को बना देते ह। ऊपर वे सब भ ह, ले कन ब त गहरे म जाकर एक ह। तो अगर तुम भाव शरीर के त जागकर उसका पीछा करोगे, तो तुम अचानक सू शरीर म वेश कर जाओगे। और वहां तुम पाओगे-- ोध ोध नह है, मा मा नह है, ब दोन क तरं ग एक ही ह; ेम और घृणा क तरं ग एक ही ह, सफ संघात का भेद है। और इस लए तु बड़ी हैरानी होती है क तु ारा ेम कभी घृणा म बदल जाता है, कभी घृणा ेम म बदल जाती है! जनको हम बलकुल वपरीत चीज समझते ह, ये बदल कैसे जाती ह! जसको म कल म कहता था, वह आज श ु हो गया। तो म कहता ं क शायद

म धोखा खा गया, वह म था ही नह । क हम मानते ह क म श ु कैसे हो सकता है! म ता और श ुता क तरं ग एक ही ह--संघात का फक है, सघनता का फक है, चोट का फक है--तरं ग म कोई फक नह है। जसे हम ेम कहते ह--सुबह ेम है, दोपहर को घृणा हो जाता है; दोपहर को घृणा है, सांझ को ेम हो जाता है। बड़ी क ठनाई होती है क हम एक ही को ेम करते ह, उसी को घृणा भी करते ह ा? घृणा और ेम का संबंध ायड को यही खयाल था क जसको हम घृणा करते ह उसी को हम ेम भी करते ह; जसको हम ेम करते ह उसको घृणा भी करते ह। उसने जो कारण खोजा वह थोड़ी र तक सही था। ले कन चूं क उसे मनु के और शरीर का कोई बोध नह है, इस लए वह ब त र तक खोज नह सका; उसने जो कारण खोजा वह ब त सतह पर था। उसने कारण यह खोजा क ब ा जब मां के पास बड़ा होता है तो एक ही आ े को--मां को--वह कभी ेम भी करता है, जब मां उसको ेम देती है; और जब मां उसको डांटती-डपटती, ोध करती है, मौके होते ह जब वह नाराज होती है, तब वह उसको घृणा करने लगता है। तो एक ही आ े के त, एक ही मां के त दोन बात एक साथ उसके मन म भर जाती ह--घृणा भी करता है, ेम भी करता है। कभी सोचता है मार डालूं, कभी सोचता है इसके बना कैसे जी सकता ं , यही मेरा ाण है--वह दोन बात सोचने लगता है। इन दोन बात को सोचने क वजह से, मां उसके ेम का पहला आ े है, इस लए सदा के लए सब ेम के आ े , जब भी क ◌ोई ेम कसी से वह करे गा, तो वह एसो सएशन के कारण उसको घृणा भी करे गा और ेम भी करे गा। ले कन यह ब त सतह पर पकड़ी गई बात है। यह बबूला वहां पकड़ा गया है जहां फूटने के करीब है। यह ब त गहरे म नह पकड़ी गई है बात। गहरे म, अगर एक मां को भी ब ा अगर घृणा और ेम दोन कर पाता है, तो इसका मतलब यह है क घृणा और ेम म जो अंतर होगा वह ब त गहरे म ां टटी का होगा, ा लटी का नह हो सकता। वह जो अंतर होगा वह प रमाण का होगा, वह गुण का नह हो सकता। क ेम और घृणा एक ही च म एक साथ अ म नह हो सकते। अगर हो सकते ह, तो एक ही आधार पर हो सकते ह क वे कनव टबल ह , उनक तरं ग यहां से वहां डोल जाती ह । च के सम ं क जड़ सू शरीर म तो यह तीसरे शरीर म ही साधक को पता चलता है जाकर क हमारे सारे च म ं है। एक आदमी जो सुबह मेरे पैर छू गया और कह गया क आप भगवान हो, वह शाम को जाकर गाली देता है और कहता है, वह आदमी शैतान है। वह कल सुबह आकर फर पैर छूता है और कहता है, आप भगवान हो। कोई आकर मुझे कहता है क उस आदमी क बात पर भरोसा मत करना, वह कभी आपको भगवान कहता है, कभी शैतान कहता है। म कहता ं , उसी पर भरोसा करने यो है; क वह जो आदमी कह रहा है, उसका कोई कसूर नह है, वह कोई एक- सरे के वपरीत बात नह कह रहा है। ये एक ही े म क बात ह; ये एक ही सीढ़ी क बात ह। और इन सी ढ़य म प रमाण का अंतर है।

असल म, जैसे ही वह भगवान कहता है, वैसे ही वह एक बात को पकड़ लेता है। और च जो है, वह ं है। सरा पहलू कहां जाएगा? वह उसके नीचे दबा बैठा रहता है; और ती ा करता है क जब तु ारा पहला भाव थक जाए तो मुझे मौका देना। थक जाता है थोड़ी देर म. कतनी देर तक भगवान कहता रहेगा! थोड़ी देर म थक जाता है, तो फर कहता है--शैतान है प ा वह आदमी। और ये दोन दो चीज नह ह, ये दोन बलकुल एक चीज ह। और जब तक मनु -जा त यह न समझ पाएगी ठीक से क हमारे तीसरे शरीर म हमारे सारे ं एक ही तरं ग के प ह, तब तक हम मनु क सम ाओं को हल न कर पाएं गे। क सबसे बड़ी सम ा यही है क जसे हम ेम करते ह, उसे हम घृणा भी करते ह; जसके बना हम नह जी सकते, उसक हम ह ा भी कर सकते ह; जो हमारा म है, वह गहरे म हमारा श ु भी है। यह बड़ी से बड़ी सम ा है; क जीवन के लए जहां संबंध ह हमारे , वहां यही सबसे बड़ा मामला है। ले कन अगर एक बार समझ म आ जाए क इनके संघात एक जैसे ह, इनम कोई फक नह है. आमतौर से हम अंधेरे और काश को दो वरोधी चीज मानते ह। जो गलत है। वै ा नक अथ म तो अंधेरा जो है वह काश क कम से कम, कम से कम, ूनतम अव ा है। और अगर हम खोज सक तो अंधेरे म भी काश मल जाएगा। ऐसा अंधेरा नह खोजा जा सकता जहां काश अनुप त हो। यह सरी बात है क हमारे खोज के साधन थक जाएं , हमारी आंख न देख पाती हो, हमारे यं न देख पाते ह , ले कन काश जो है--वह, और अंधकार जो है, वे एक ही या ा-पथ पर, एक ही चीज के तरं ग के व भ आघात ह। जैसे इसको और सरी तरह से समझ तो ादा आसान होगा, क काश और अंधकार म हमने ादा बड़ा, ए ो ूट वरोध मान रखा है। ले कन ठं ड और गम को हम समझ तो आसानी हो जाएगी; उसम हमने इतना ए ो ूट वरोध नह मान रखा है। और कभी एक छोटा सा योग करने जैसा मजेदार होता है-- क एक हाथ को थोड़ा सगड़ी पर तपा ल और एक हाथ को बफ पर रखकर ठं डा कर ल, और फर दोन हाथ को एक ही तापमान के पानी म डाल द। और तब आप बड़ी मु ल म पड़ जाएं गे क उस पानी को ठं डा कह क गम कह! क एक हाथ खबर देगा क वह गम है और एक हाथ खबर देगा क वह ठं डा है। तब आप बड़ी मु ल म पड़ जाएं गे क इस पानी को हम ा कह--ठं डा कह क गम कह! क आपके दो हाथ दो खबर दे रहे ह। असल म, ठं ड और गम दो चीज नह ह, एक सापे अनुभव है। जस चीज को हम ठं डा कह रहे ह, उसका मतलब केवल इतना है क हम उससे ादा गम ह; जस चीज को हम गम कह रहे ह, उसका कुल मतलब इतना है क हम उससे ादा ठं डे ह। हमारे और उसके बीच हम प रमाण का अंतर बता रहे ह, और कुछ भी नह कह रहे ह। कोई चीज ठं डी नह है, कोई चीज गम नह है। या जो भी चीज ठं डी है वह साथ ही गम है। असल म, गम और ठं डक बड़े बेमानी श ह। कहना चा हए: तापमान; वह ठीक श है। इस लए वै ा नक ठं डे और गम का योग नह करता; वह कहता है, कतने ड ी का तापमान है। क ठं डे और गम का के श ह, क वता के श ह; खतरनाक ह व ान म, उससे कुछ पता नह चलता। एक आदमी कहे क यह कमरा ठं डा है, उससे

कुछ पता नह चलता क मतलब ा है उसका। हो सकता है उस आदमी को बुखार चढ़ा हो और कमरा ठं डा मालूम पड़ रहा हो, और कमरा ठं डा बलकुल न हो। इस लए जब तक इस आदमी का पता न चल जाए क इस आदमी क बुखार क ा त है, तब तक कमरे के बाबत इसके व का कोई मतलब नह है। तो इस लए इससे हम पूछते ह: तुम यह मत बताओ क कमरा ठं डा है या गम, तुम यह बताओ ड ी कतनी है? तो ड ी जो है वह ठं डक और गम का पता नह देती, ड ी सफ इस बात का पता देती है क तापमान इतना है। अगर उससे आपक ड ी ादा है तो वह ठं डा मालूम पड़ेगा, अगर आपक ड ी कम है तो वह गम मालूम पड़ेगा। ठीक ऐसा ही काश और अंधकार के बाबत सच है-- क हमारे देखने क मता कतनी है। रात हम अंधेरी मालूम पड़ती है, उ ू को नह मालूम पड़ती होगी; उ ू को दन ब त अंधकारपूण है। और उ ू ज र समझता होगा क ये आदमी जो ह, बड़े अजीब लोग ह, रात म जागते ह! भावतः, आदमी उ ू को बड़ा उ ू इसी लए समझता है न, उसको नाम ही इसी लए दया आ है। ले कन उ ू ा सोचते ह आद मय के बाबत, यह हम कुछ पता नह है। न त ही, उसके लए तो दन जो है वह रात है और रात जो है वह दन है। और वह सोचता होगा, आदमी भी कैसा नासमझ है! अब इसम इतने-इतने बड़े ानी होते ह, ले कन फर भी ये जागते ह रात म ही! और जब दन होता है तब सो जाते ह! जब असली व आता है जागने का, तब ये बेचारे सो जाते ह। उ ू को रात म दखाई पड़ता है; उसक आंख स म है तो उसके लए रात अंधकार नह है। अंधकार और काश, ऐसे ही ेम और घृणा क तरं ग ह जनम अनुपात है। सू शरीर म जागने से ं -मु तो तीसरे तल पर जब तुम जागना शु होओगे, तो तुम एक ब त अजीब तम प ं चोगे। और वह अजीब त यह होगी क तु ारे पास चुनाव न रह जाएगा क हम ेम को चुन क घृणा को। क तब तुम जानते हो: ये दोन एक ही चीज के नाम ह; और तुमने एक को भी चुना तो सरा भी चुन लया गया; सरे से तुम बच नह सकते। इस लए तीसरे शरीर पर खड़े ए आदमी से अगर तुम कहोगे क हम ेम करो, तो वह पूछेगा क घृणा क भी तैयारी है? घृणा सह सकोगे? नह , तुम कहोगे, हम तो ेम चाहते ह, आप हम ेम द। तो वह कहेगा, यह ब त मु ल है क म तु ेम दे सकूं, क ेम जो है वह घृणा के संघात का ही एक प है--असल म, ऐसा प जो तु ारे ी तकर लगता है। और घृणा ऐसा प है, उ करण का, उ तरं ग का, जो तु अ ी तकर लगता है। तो तीसरे तल पर खड़ा आ ं से मु होने लगेगा; क पहली दफा उसे पता चलेगा क ं , जन दो चीज को उसने दो माना था, वे दो नह थ , वे एक ही थ ; जो दो शाखाएं दखाई पड़ती थ , वे पीड़ पर आकर एक ही वृ क शाखाएं थ । और बड़ा पागल था वह क वह एक को बचाने के लए सरे को काटता रहा था। ले कन उससे कुछ कटना नह हो सकता था, क वृ गहरे म एक ही था। पर सरे पर जागकर ही तु तीसरे का बोध हो सकता है, क तीसरे क बड़ी सू तरं ग ह; वहां भाव भी नह बनता, सीधी तरं ग होती है।

सू शरीर म जागने पर आभामंडल का दशन और अगर तीसरे क तरं ग का तु पता चलने लगा तो तु एक अनूठा अनुभव होना शु होगा: तब तुम कसी को देखकर ही कह सकोगे क वह कन तरं ग से तरं गा यत है। क तु अपनी तरं ग का पता नह है, इस लए तुम सरे को नह पहचान पा रहे हो। नह तो ेक के चेहरे के पास उसके तीसरे शरीर से नकलनेवाली तरं ग का पुंज होता है। जो हम बु और महावीर, राम और कृ के आसपास जो ऑरा बनाते रहे ह, एक तभा-मंडल बनाते रहे ह सर के आसपास, वह देखा गया मंडल है। उसके रं ग पकड़े गए ह; और उसके वशेष रं ग ह। तीसरे शरीर का ठीक अनुभव हो तो वे रं ग तु दखाई पड़ने शु हो जाते ह। और वे रं ग जब तु दखाई पड़ने शु हो जाते ह तो अपने ही नह दखाई पड़ते, सरे के भी दखाई पड़ने शु हो जाते ह। असल म, जतने र तक हम अपने गहरे शरीर को देखते ह, उतने ही र तक हम सरे के शरीर को भी देखने लगते ह। चूं क हम अपनी फ जकल बॉडी को ही जानते ह, इस लए हम सरे क भी फ जकल बॉडी को ही जानते ह। जस दन हम अपने ईथ रक शरीर को जानगे, उसी दन हम सरे के ईथ रक शरीर का पता चलना शु हो जाएगा। इसके पहले क तुम ोध करो, जाना जा सकता है क अब तुम ोध करोगे; इसके पहले क तुम ेम कट करो, कहा जा सकता है क तुम अब ेम कट करने क तैयारी कर रहे हो। तो जसको हम सरे के भाव को समझ लेना कहते ह, उसम कुछ और बड़ी बात नह है, अपने ही भाव शरीर के त जागने से सरे के भाव को पकड़ना एकदम आसान हो जाता है; क उसक सारी तयां दखाई पड़ने लगती ह। और तीसरे शरीर पर जागने पर तो चीज बड़ी साफ हो जाती ह, क फर तो रं ग भी दखाई पड़ने लगते ह उसके के। व भ शरीर के आभामंडल सं ा सय के, साधु के कपड़ का चुनाव, उनके रं ग का चुनाव तीसरे शरीर के रं ग को देखकर कया गया। चुनाव अलग-अलग ए, क अलग-अलग शरीर पर जोर था। जैसे बु ने पीला रं ग चुना, क सातव शरीर पर जोर था उनका। सातव शरीर को उपल के आसपास जो ऑरा बनता है, वह पीला है। इस लए बु ने पीत व चुने अपने भ ुओ ं के लए। ले कन पीत व चुने तो ज र, ले कन पीत व के कारण ही बौ भ ु को ह ान म टकना मु ल आ। क पीला रं ग जो है, वह हमारे मन म मृ ु से संबं धत है। वह है भी, क सातवां शरीर जो है, वह मृ ु--महामृ ु है। तो पीला रं ग जो है, वह हमारे मन म ब त गहरे म मृ ु का बोध देता है। लाल रं ग जीवन का बोध देता है। इस लए गे ए व वाला सं ासी ादा आकषक स आ बजाय पीत व सं ा सय के। वह जीवंत मालूम पड़ा। वह खून का रं ग है, और छठव शरीर का रं ग है-का, का क बॉडी का रं ग है। तो जैसा सूय दय होता है सुबह, वैसा रं ग है। छठव शरीर पर वैसे रं ग का ऑरा बनना शु होता है। जैन ने सफेद व चुने, वह पांचव शरीर का रं ग है; वह आ शरीर से संबं धत है। जैन का आ ह ई र क फकर छोड़ देने का है, नवाण क फ

कर छोड़ देने का है; क आ ा तक ही वै ा नक चचा हो सकती है। और महावीर ब त ही वै ा नक बु के आदमी ह; वे उतनी ही र तक बात करगे जतनी र तक ग णत जाता है। उससे आगे वे कहगे, अब हम बात नह करगे, अब तुम जाकर देखना; वह सरी बात है, हम बात नह करगे। क कोई भूल-चूक क बात नह करना चाहते वे। कुछ म क बात नह करना चाहते। तो जसको म स से बचना है, वह पांचव शरीर के आगे इं च भर नह बात करे गा। तो महावीर ने सफेद रं ग चुन लया, वह पांचव शरीर का रं ग था। और भी मजे क बात है: तीसरे शरीर से यह बोध होना शु हो जाएगा; तीसरे शरीर से तु रं ग दखाई पड़ने शु हो जाएं गे। ये रं ग भी तु ारे भीतर होनेवाले सू तरं ग के ंदन का भाव ह। आज नह कल, इनके च लए जा सकगे। क जब आंख से इ देखा जा सकता है तो ब त दन तक कैमरे क आंख नह देखेगी, ऐसा कहना मु ल है। इनके च आज नह कल लए जा सकगे। और तब हम को पहचानने के लए एक बड़ी अदभुत मता को उपल हो जाएं गे। रं ग का मनु के से गहरा संबंध वह तुम ूशर का टे देखे? एक जमन वचारक है, जसने लाख लोग पर रं ग का अ यन कया है। और अब तो यूरोप और अमे रका म ब त से अ ताल भी उसका योग कर रहे ह। क आप कौन सा रं ग पसंद करते ह, यह आपके ब त गहरे क खबर देता है। एक खास बीमारी का मरीज एक खास तरह के रं ग को पसंद करता है, आदमी सरे तरह के रं ग को पसंद करता है। शांत आदमी सरे तरह के रं ग को पसंद करता है, मह ाकां ी आदमी सरे तरह के रं ग को पसंद करता है, मह ाकां ाहीन आदमी बलकुल सरे तरह के रं ग को पसंद करता है। और इन रं ग क पसंद से तुम अपने तीसरे शरीर पर तु ारे ा कट हो रहा है, उसक खबर देते हो। अब यह बड़े मजे क बात है क तु ारे तीसरे शरीर पर जो रं ग कट हो रहे ह तु ारे चार तरफ, अगर उनको पकड़ा जाए, और तुमसे रं ग क जांच करवाई जाए, तो यह बड़े मजे क बात है क वे रं ग दोन बराबर एक से होते ह--जो रं ग तु ारे चार तरफ फैलता है, वही रं ग तुम पसंद करते हो। रं ग का मनो व ान रं ग का अदभुत अथ और उपयोग है। अब जैसे, कभी यह खयाल म नह था क रं ग इतना अथपूण हो सकता है और क बाहर तक खबर दे सकता है। और बाहर से भी रं ग के भाव भीतर के तक छूते ह; उनसे बचा नह जा सकता। जैसे कसी रं ग को देखकर तुम ो धत हो जाओगे। जैसे लाल रं ग है, वह सदा से ां त का रं ग इसी लए समझा गया। इस लए ां तवादी जो है वह लाल झंडा बना लेगा। इसम बचाव ब त मु ल है। क वह ोध का रं ग है। और ोधी च के आसपास गहरे लाल रं ग का वतुल बनता है--खून का रं ग है वह, ह ा का रं ग है, ोध का रं ग है, मटाने का रं ग है। अब यह बड़े मजे क बात है क अगर इस कमरे क सारी चीज को लाल रं ग दया जाए, तो आपका ड- ेशर बढ़ जाएगा; जतने लोग यहां बैठे ह, सभी का र चाप बढ़ जाएगा। और अगर कोई नरं तर लाल रं ग म रहे, तो कोई भी हालत म उसका

र चाप नह रह सकता, वह अ हो जाएगा। नीला रं ग र चाप को नीचे गरा देता है, वह आकाश का रं ग है और परम शां त का रं ग है। अगर सब तरफ नीला कर दया जाए तो तु ारे र चाप म कमी पड़ती है रं ग च क ा आदमी क बात हम छोड़ द, अगर एक नीली बोतल म पानी भरकर हम उसे सूरज क करण म रख द, तो वह जो पानी है वह र चाप को कम करता है। उस पानी का के मकल कंपो जशन बदल जाता है। वह नीले रं ग को पीकर उसक आंत रक व ा बदल जाती है। अगर उसको हम पीले रं ग क बोतल म रख द, तो उसका सरा हो जाता है। अगर तुम पीले रं ग क बोतल म वही पानी रखो और नीले रं ग क बोतल म वही पानी रखो, और दोन को धूप म रख दो, तो नीले रं ग का पानी सड़ने म असमथ हो जाएगा और पीले रं ग का पानी त ाल सड़ जाएगा। नीली बोतल का पानी ब त दन तक शु बना रहेगा, सड़ेगा नह ; पीले रं ग का पानी एकदम सड़ जाएगा। वह पीला रं ग जो है मृ ु का रं ग है, और चीज को एकदम बखरा देता है। इस सबके वतुल तु ारे के आसपास तु खुद भी दखाई पड़ने शु हो जाएं गे। यह तीसरे शरीर पर होगा। और जब इन तीन शरीर पर तुम जागकर देख पाओगे, तो तु ारा वह जागकर जो देखना है, वह हामनी होगी। और तब तु ारे ऊपर कसी भी तरह के श पात से कोई संघातक प रणाम नह हो सकता; क यही तु ारा जो बोधपथ है, श पात क ऊजा इसी बोधपथ से तु ारे चौथे शरीर म वेश कर जाएगी; यह रा ा बन जाएगा। अगर यह रा ा नह है तो खतरा पूरा है। इस लए मने कहा क हमारे तीन शरीर स म होने चा हए तभी ग त हो सकती है। जै वक वकास म थम तीन शरीर क मक स यता : ओशो, चौथे, पांचव, छठव या सातव च म त मृ ु के बाद पुनज ले तो उसक मशः च य त ा होगी? अशरीरी उ यो नयां कन शरीर वाले य को मलती ह? अं तम उपल के लए ा अशरीरी यो न के ाणी को पुनः मनु शरीर लेना पड़ता है ?

अब इसम कुछ और बात र से समझनी शु करना पड़गी। सात शरीर क मने बात कही। सात शरीर को ान म रखकर हम पूरे अ को भी सात वभाग म बांट द। सभी अ म सात शरीर सदा मौजूद ह--जागे ए या सोए ए; स य या न य; वकृत या प त--ले कन मौजूद ह। एक धातु का टुकड़ा पड़ा है, एक लोहे का टुकड़ा पड़ा है, इसम भी सात शरीर मौजूद ह; ले कन सात ही सोए ए ह; सात ही न य ह। इस लए लोहे का टुकड़ा मरा आ मालूम पड़ता है। एक पौधा है। उसका पहला शरीर स य हो गया है; उसका भौ तक शरीर स य हो गया है। इस लए पौधे म जीवन क पहली झलक हम मलनी शु हो जाती है क वह जी वत है। एक पशु है, उसका सरा शरीर स य हो गया है। इस लए पशु म

मूवम स शु हो जाते ह, जो पौधे म नह ह। पौधा एक जगह जड़ जमाकर खड़ा है, ग तमान नह है; क ग त के लए सरा शरीर जगना ज री है, ईथ रक बॉडी जगना ज री है। सारी ग त उससे आती है। अगर सफ एक शरीर जगा आ है तो अग त म होगा, ठहरा आ होगा, खड़ा आ होगा। पौधा खड़ा आ पशु है। कुछ पौधे ह जो थोड़ी ग त करते ह। वे पशु और पौधे के बीच क अव ा म ह; उ ने या ा क है थोड़ी। जैसे अ का के दलदल म कुछ पौधे ह, जनक जड़ से वे पकड़ने-छोड़ने का काम करते ह, थोड़ा हटते ह इधर-उधर। वह पशु और पौधे के बीच क सं मण कड़ी है। पशु म सरा शरीर भी स य हो गया है। स य का मतलब सजग नह , स य का मतलब याशील हो गया है; पशु को कोई पता नह है। उसके सरे ईथ रक शरीर के स य हो जाने क वजह से उसम ोध भी आता है, भय भी आता है, ेम भी कट करता है, भागता भी है, बचता भी है, डरता भी है, छपता भी है, हमला भी करता है--और ग तमान है। आदमी म तीसरा शरीर स य हो गया है--ए ल बॉडी। इस लए न केवल वह शरीर से ग त करता है, ब च से भी ग त करता है, मन से भी या ा करता है--भ व क भी या ा करता है, अतीत क भी या ा करता है। पशुओ ं के लए कोई भ व नह है। इस लए पशु कभी च तत और तनाव नह दखाई पड़ते; क सब चता भ व क चता है--कल ा होगा, वही गहरी चता है। ले कन पशु के लए कल नह है, आज ही सब कुछ है। आज भी नह है--उसके अथ म तो; क जसको कल नह है, उसको आज का ा मतलब है? जो है, वह है। मनु म और भी सू ग त आई है। वह ग त उसके मन क ग त है। वह तीसरे ए ल बॉडी से आई है। वह अब मन से भ व क भी क ना करता है। मृ ु के बाद भी ा होगा, इसक भी चता करता है; मरने के बाद कहां जाऊंगा, नह जाऊंगा, उसक भी चता करता है; ज के पहले कहां था, नह था, उसक भी फकर करता है। अशरीरी उ यो नयां चौथा शरीर थोड़े से मनु म स य होता है, सभी मनु म नह । और जन मनु म चौथा शरीर स य हो जाता है--मनस शरीर--अगर वे मर, तो वे देवयो न, जसको हम कोई भी नाम दे द, उस तरह क यो न म वेश कर जाते ह, जहां चौथे शरीर क स यता क ब त सु वधा है। तीन शरीर तक आदमी आदमी रहता है, स य रहे तो। चौथे शरीर से आदमी के ऊपर क यो नयां शु होती ह। ले कन चौथे शरीर से एक फक समझ लेना ज री होगा। अगर चौथा शरीर स य हो जाए, तो आदमी को शरीर लेने क संभावना कम और अशरीरी अ क संभावना बढ़ जाती है। ले कन जैसा मने कहा क स य और सचेतन का फक याद रखना। अगर सफ स य हो और सचेतन न हो, तो उसे हम ेतयो न कहगे; और अगर स य हो और सचेतन भी हो, तो देवयो न कहगे। ेत म और देव म उतना ही फक है। उन दोन का चौथा शरीर स य हो गया है; ले कन ेत के चौथे शरीर क स यता का उसे कोई बोध नह , वह अवेयर नह है उसके त; और देव को

उस चौथे शरीर क स यता का बोध है, वह अवेयर है। इस लए ेत अपने चौथे शरीर क स यता से हजार तरह के नुकसान करता रहेगा--खुद को भी, सर को भी; क मू ा सफ नुकसान ही कर सकती है। और देव ब त तरह के लाभ प ं चाता रहेगा--अपने को भी और सर को भी; क सजगता सफ लाभ ही प ं चा सकती है। पांचवां शरीर जसका स य हो गया, वह देवयो न के भी पार चला जाता है। पांचवां शरीर आ शरीर है। और पांचव शरीर पर स यता और सजगता एक ही अथ रखती ह; क पांचव शरीर पर बना सजगता के कोई भी नह जा सकता। इस लए वहां स यता और सजगता साइम े नयस, युगपत घ टत होती ह। चौथे शरीर तक या ा हो सकती है कसी क सोए-सोए भी। अगर जाग जाए तो या ा बदल जाएगी, देवयो न क तरफ हो जाएगी; और अगर सोया रहे तो या ा ेतयो न क तरफ हो जाएगी। पांचव शरीर के साथ स यता और सजगता का एक ही अथ है, क वह आ शरीर है; वहां बेहोश होकर आ ा का तो कुछ अथ ही नह होता। आ ा का मतलब ही होश है। इस लए आ ा का सरा नाम चेतना है, सरा नाम कांशसनेस है। वहां बेहोशी का कोई मतलब नह होता। तो पांचव शरीर से तो दोन एक ही बात ह, ले कन पांचव शरीर के पहले दोन रा े अलग ह। चौथे शरीर तक ही ी-पु ष का फासला है, और चौथे शरीर तक ही न ा और जागरण का फासला है। असल म, चौथे शरीर तक ही सब तरह के त ै और ं का फासला है। पांचव शरीर से सब तरह का अ त ै और अ ं शु होता है। पांचव शरीर से यू नटी शु होती है। उसके पहले एक डाइव सटी थी, एक भेद था। मनु यो न एक चौराहा है पांचव शरीर क जो संभावना है, वह देवयो न से नह है, न ेतयो न से है। यह थोड़ी बात खयाल ले लेने जैसी है। पांचव शरीर क संभावना ेतयो न से इस लए नह है क ेतयो न मू त यो न है; और सजगता के लए जो शरीर अ नवाय है, वह उसके पास नह है; पहला शरीर उसके पास नह है, फ जकल बॉडी उसके पास नह है, जससे सजगता शु होती है; पहली सीढ़ी उसके पास नह है, जससे सजगता शु होती है। वह सीढ़ी न होने क वजह से ेत को वापस लौटना पड़े मनु यो न म। इस लए मनु यो न एक तरह के ास रोड पर है। देवयो न ऊपर है, ले कन आगे नह । इस फक को ठीक से समझ लेना! मनु यो न से देवयो न ऊपर है, ले कन आगे नह ; क आगे जाने के लए तो मनु यो न पर वापस लौट आना पड़ता है। ेत को इस लए लौटना पड़ता है क वह मू त है और मू ा तोड़ने के लए भौ तक शरीर एकदम ज री है; देव को इस लए लौटना पड़ता है क देवयो न म कसी तरह का ख नह है। असल म, जा त यो न है, जागृ त म ख नह हो सकता। और जहां ख नह है वहां साधना क कोई तड़फ नह पैदा होती; जहां ख नह है वहां मटाने का कोई खयाल नह है; जहां ख नह है वहां पाने का कोई खयाल नह है। तो देवयो न एक ै टक यो न है, जसम ग त नह है आगे। और सुख क एक खूबी है क अगर सुख तु मल जाए तो आगे कोई ग त नह रह जाती। ख हो तो सदा ग त होती है; क ख से हटने को, ख से मु होने को तुम कुछ खोजते हो। सुख मल

जाए तो खोज बंद हो जाती है। इस लए एक बड़ी अजीब बात है जो क समझ म नह आती लोग को। महावीर और बु के जीवन म इस उ ेख का बड़ा मू है क देवता उनसे श ा लेने आते ह। और जब कोई बु को, महावीर को पूछता है क ा मजा है क मनु के पास और देवता आएं ! देवयो न तो ऊपर है, तो मनु के पास वे आएं , यह अजीब मामला मालूम होता है। ले कन यह अजीब नह है। यो न तो ऊपर है, ले कन ै टक यो न है; मूवमट ख हो गया वहां; वहां से आगे कोई ग त नह है। और अगर आगे ग त करनी हो तो जैसे लंबी छलांग लगाने के लए थोड़ा पीछे लौटना पड़ता है, फर छलांग लगानी पड़ती है, ऐसा देवयो न से वापस लौटकर मनु यो न पर खड़े होकर ही छलांग लगती है। सुख से ऊबकर ही देवयो न से लौटना संभव सुख क एक खूबी यह है क उसम आगे ग त नह है और सरी खूबी यह है क सुख उबानेवाला है, बो रग है। सुख से ादा उबानेवाला त नया म सरा नह है। ख भी इतना नह उबाता; ख म बोडम ब त कम है--है ही नह ; सुख म ब त बोडम है। खी च कभी नह ऊबता। इस लए खी समाज असंतु समाज नह होता और खी आदमी असंतु आदमी नह होता; सफ सुखी आदमी असंतु होता है और सुखी आदमी का समाज असंतु समाज होता है। अमे रका जतना असंतु है, उतना भारत नह है। उसका कारण कुल इतना है क हम खी ह और वे सुखी ह; आगे ग त नह रह गई, और ख नह है जो ग त देता था, और सुख क पुन है--वही सुख, वही सुख रोज-रोज, रोज-रोज दोहरकर बेमानी हो जाता है। तो देवयो न जो है वह एक.बोडम क चरम शखर है वह; उससे ादा ऊबनेवाला कोई ान नह जगत म। वहां जाकर जैसी ऊब पैदा होती है.। ले कन व लगता है ऊब पैदा होने म। और फर संवेदना के ऊपर नभर करता है: जतना संवेदनशील होगा उतनी ज ी ऊब जाएगा; जतना संवेदनहीन होगा उतनी देर तक ऊबेगा। नह भी ऊबे! भस एक ही घास को रोज चरती रहती है और जदगी भर म नह ऊबती। संवेदना जैसी चीज ब त कम है। जतनी संवेदना होगी, जतनी स स ट वटी होगी, उतनी ऊब ज ी पैदा हो जाएगी। क संवेदनशीलता जो है वह नये क तलाश करती है--और नया चा हए। संवेदना एक तरह क चंचलता है, और चंचलता एक तरह का जीवन है। तो देवयो न एक अथ म डेड यो न है। ेतयो न भी मरी यो न है, ले कन फर भी देवयो न ेत से भी ादा मरी यो न है; क ेत क नया म एक अथ म ऊब बलकुल नह है। क ख काफ है और ख देने क सु वधा काफ है; सरे को सताने का भी रस ब त है, और खुद भी सताए जाने क ब त सु वधा है। उप व क ब त गुंजाइश है। देवयो न बलकुल शांत यो न है जहां उप व बलकुल नह है। तो देवयो न से जो लौटना होता है, वह लौटना होता है ऊब के कारण। अंततः जो लौटना है वहां से, वह बोडम क वजह से। और ान रहे, इस लहाज से वह मनु यो न से ऊपर

है क वहां संवेदनशीलता ब त बढ़ जाती है; और हम जन सुख से वष म नह ऊबते, उन सुख से उस यो न म एक बार भी भोगने से ऊब पैदा हो जाती है। इस लए तुमने पढ़ा होगा पुराण म क देवता पृ ी पर ज लेने को तरसते ह। अब यह हैरानी क बात है, उनके तरसने का कोई कारण नह है। क यहां पृ ी पर सब देवयो न म जाने को तरस रहे ह। और ऐसी भी कथाएं ह क कोई देवता उतरे गा और पृ ी पर कसी ी को ेम करने आएगा। ये कथाएं सूचक ह। कोई अ रा उतरे गी पृ ी पर और कसी पु ष से ेम करे गी। ये कथाएं सूचक ह; ये च क सूचक ह। ये यह कह रही ह क उस यो न म सुख तो ब त है, ले कन सुख नीरस हो जाता है--सुख, सुख, सुख! उसके बीच म अगर ख के ण न ह , तो उबानेवाला हो जाता है। और अगर कभी हमारे सामने दोन वक रखे जाएं क अनंत सुख चुन लो--सुख ही सुख रहेगा, कभी ऐसा ण न आएगा क तु लगे क ख है; और अनंत ख चुन लो, ख ही ख रहेगा; तो बु मान आदमी ख को चुन लेगा। तो यह जो देवयो न है, वहां से वापस लौटना पड़े; ेतयो न है, वहां से वापस लौटना पड़े। पांचव शरीर म मृत अयो नज मनु यो न चौराहे पर है, वहां से सब या ाएं संभव ह। मनु यो न पर जो आदमी पांचव शरीर को उपल हो जाए, उसको फर कह भी नह जाना पड़ता, फर वह अयो न म वेश करता है, वह यो न-मु होता है। यो न का मतलब खयाल म है न? कसी मां क यो न म वेश से मतलब है यो न का। वह कसी वग क मां हो! गभ- वेश से मतलब है यो न का। तो वह कोई गभ- वेश नह करता। जो अपने को उपल हो गया, उसक या ा एक अथ म समा हो गई। यह जो पांचव शरीर का है, इसी को हम कहते ह--मु , मो । ले कन अगर यह अपने पर तृ हो जाए, क जाए, तो क सकता है--अनंतकाल तक क सकता है; क यहां न ख है, न सुख है; न बंधन है, न पीड़ा है; यहां कुछ भी नह है। ले कन सफ यं का होना है यहां, सव का होना नह है। तो अनंत समय तक भी कोई इस त म पड़ा रह सकता है, जब तक क उसम सव को जानने क ज ासा न उठ जाए। है वह ज ासा का बीज हमारे भीतर, इस लए वह उठ आती है। ज ासा परम होनी चा हए और इस लए साधक अगर पहले से ही सव को जानने क ज ासा रखे, तो पांचव यो न म कने क असु वधा से बच जाता है। इस लए अगर पूरी क पूरी साइं स को तुम समझोगे, तो पहले से ही ज ासा परम होनी चा हए। कह बीच के कसी ठहराव को अगर तुम मं जल समझकर चले, तो जब वह तु मल जाएगी मं जल तो तु ारा मन होगा क बात ख हो गई। पांचव शरीर म अहं कार से मु , अ ता से बंधन तो पांचव शरीर के को कोई यो न नह लेनी पड़ती। ले कन वह यं म बंधा रह जाता है--सबसे छूट जाता है, यं म बंधा रह जाता है; अ ता से नह छूटता, अहं कार से छूट जाता है। क अहं कार जो था, वह सदा सरे के खलाफ दावा था। इसको ठीक से

समझ लेना! जब म कहता ं --‘म’, तो म कसी ‘तू’ को दबाने के लए कहता ं । इस लए जब म कसी ‘तू’ को दबा लेता ं तो मेरा ‘म’ ब त अकड़कर कट होता है और जब कोई ‘तू’ मुझे दबा देता है तो मेरा ‘म’ ब त र रयाता, रोता आ कट होता है। वह ‘म’ जो है, वह ‘तू’ को दबाने का यास है। तो अहं कार जो है वह सदा सरे क अपे ा म है। सरा तो ख हो गया, सरे से अब कोई लेना-देना नह है, उससे कोई अपे ा न रही। अ ता जो है वह अपनी अपे ा म है। अहं कार और अ ता म इतना ही फक है--तू से कोई मतलब नह है मुझे, ले कन फर भी म तो ं । यह दावा नह है म का अब, ले कन मेरा होना तो है ही। अब म कसी तू के खलाफ नह कह रहा ं ‘म’, ले कन म ं , बना कसी तू क अपे ा के। इस लए मने कहा--अहं कार कहेगा ‘म’, और अ ता कहेगी ‘ ं ’। उतना फक होगा। ‘म ं ’ म दोन बात ह। ‘म’ अहं कार है और ‘ ं ’ अ ता है-- द फ लग ऑफ आईनेस! तू के खलाफ नह , अपने प म--‘म ं !’ नया म कोई भी आदमी न रह जाए--तीसरा महायु हो और सब लोग मर जाएं , और म रह जाऊं। तो मेरे भीतर अहं कार नह रह जाएगा, ले कन अ ता होगी। म जानूंगा क म ं । हालां क म कसी से न कह सकूंगा क ‘म’, क कोई ‘तू’ नह बचा जससे म कह सकूं। तो जब बलकुल तुम अकेले हो और कोई भी सरा नह है, तब भी तुम हो--होने के अथ म। तो पांचव शरीर पर अहं कार तो वदा हो जाता है, इस लए सबसे बड़ी कड़ी जो बंधन क है वह गर जाती है, ले कन अ ता रह जाती है, ं का भाव रह जाता है--मु , तं , कोई बंधन नह , कोई सीमा नह । ले कन अ ता क अपनी सीमा है-- सरे क कोई सीमा नह रही, ले कन अ ता क अपनी सीमा है। छठव शरीर पर अ ता टूटती है, या छोड़ी जाती है। और छठवां शरीर जो है वह का क बॉडी है। ज अथात ानी पांचव शरीर के बाद यो न का सवाल समा हो गया, ले कन ज अभी बाक ह। इस फक को भी खयाल म ले लेना! एक ज तो यो न से होता है, कसी के गभ से होता है, और एक ज अपने ही गभ से होता है। इस लए इस मु म हम ा ण को ज कहते ह। असल म, ानी को कहते थे कभी; ा ण को कहने क कोई ज रत नह है; ानी को ज कहते थे। उसम एक और तरह का ज है-- वाइस बॉन। एक ज तो वह है जो गभ से मलता है, वह सरे से मलता है; और एक ऐसा ज भी है, जो फर अपने से ही! क जब आ शरीर उपल हो गया, अब तु सरे से ज कभी नह मलेगा; अब तो तु अपने ही आ शरीर को ज ाना होगा का क बॉडी म। और यह तु ारी अंतया ा है: अब तु ारा अंतगभ है और अंतर-यो न है। अब इसका बा यो न से और बा गभ से कोई संबंध नह है। अब तु ारे कोई माता- पता न ह गे, अब तु पता और तु माता और तु पु बनोगे। अब यह बलकुल नपट अकेली या ा है। तो इस त को, पांचव शरीर से छठव शरीर म जब वेश हो, तब कहना चा हए कोई

ज आ, उसके पहले नह । उसका सरा ज आ जो अयो नज है, जसम यो न नह है; और जसम पर-गभ नह है, जो आ गभ है। उप नषद का ऋ ष कहता है क उस गभ के ढ न को खोल, वह जो तूने ण-पा से ढं क रखा है! उस गभ के ढ न को खोल, वह जो तूने ण के पद से ढं क रखा है! पद ज र वहां ण के ह। यानी पद ऐसे ह क उ तोड़ने का मन न होगा; पद ऐसे ह क बचाने क तबीयत होगी। अ ता सबसे ादा क मती पदा है जो हमारे ऊपर है, उसे हम ही न छोड़ना चाहगे। कोई सरा बाधा देनेवाला नह होगा; कोई कहेगा नह क रोको, कोई रोकनेवाला नह होगा। ले कन पदा ही इतना ी तकर है अपने होने का क उसे छोड़ न पाओगे। इस लए ऋ ष कहता है, ण के पद को हटा और उस गभ को खोल, जससे ज हो सके। तो ानी को ज. ानी का मतलब छठव शरीर पानेवाले को.पांचव शरीर से छठव शरीर क या ा वाइस बॉन, ज होने क या ा है। और गभ बदला, यो न बदली, अब सब अयो नज आ, और गभ अपना आ, आ गभा ए हम। पांचव से छठव म ज है, और छठव से सातव म मृ ु है। इस लए उसको ज नह कहा; उसको ज कहने का कोई मतलब नह है; क अब.मेरा मतलब समझे तुम? अब समझना आसान हो जाएगा। पांचव से छठव को हम कहते ह--ज अपने से। छठव से सातव को हम कहते ह--मृ ु अपने से। सर से ज लए थे-- सर क यो नय से, सर के शरीर से; वह मृ ु भी सर क थी। पर-यो न से ज े क मृ ु भी परायी इसे थोड़ा समझना पड़ेगा। जब ज सरे से था, तो मृ ु तु ारी कैसे हो सकती है? ज तो म लूंगा अपने माता- पता से, और म ं गा म? यह कैसे हो सकता है? ये दोन छोर असंगत हो जाएं गे। ये दोन छोर असंगत हो जाएं गे। जब ज पराया है, तो मृ ु मेरी नह हो सकती; जब ज सरे से मला है, तो मृ ु भी सरे क है। फक इस लए है क उस बार म एक यो न से कट आ था, इस बार सरी यो न म वेश क ं गा, इस लए पता नह चल रहा। उस व आया था तो दखाई पड़ गया था, अब जा रहा ं तो दखाई नह पड़ रहा। समझ रहे हो न तुम? ज जो है उसके पहले मृ ु है। कह तुम मरे थे, कह तुम ज े हो। ज दखाई पड़ता है, तु ारी मृ ु का हम पता नह । अब तु एक ज मला एक मां-बाप से--एक शरीर मला, एक देह मली, एक स र साल, सौ साल दौड़नेवाला एक यं मला। यह यं सौ साल बाद गरे गा। इसका गरना उसी दन से सु न त हो गया, जस दन तुम ज े-- गरना! कब गरे गा, नह उतना मह पूण है-- गरना! ज के साथ ही तय हो गया है क तुम मरोगे। जस यो न से तुम ज लाए, उसी यो न से तुम मृ ु भी ले आए--साथ ही ले आए। असल म, ज देनेवाली यो न म मृ ु छपी ही है, सफ फासला पड़ेगा सौ साल का। इस सौ साल म तुम एक छोर से सरे छोर क या ा पूरी करोगे। और जस जगह से तुम

आए थे, ठीक उसी जगह वापस लौट जाओगे। तो जो ज सरे क यो न से आ है, वह मृ ु भी सरे क ही यो न से ज े शरीर क है; वह मृ ु भी परायी है। तो न तो तुम ज े हो अभी, और न तुम अभी मरे हो कभी; ज म भी सरा मा म था, मृ ु म भी सरा ही मा म होने को है। पांचव शरीर से जब तुम छठव शरीर म, शरीर म वेश करोगे आ शरीर से, तो तुम पहली दफा ज ोगे, आ गभा बनोगे, अयो नज तु ारा ज होगा। ले कन तब एक अयो नज मौत भी आगे ती ा करे गी। और यह ज जहां तु ले जाएगा, मृ ु तु वहां से भी आगे ले जाएगी; क ज तु म ले जाएगा, मृ ु तु नवाण म ले जाएगी। छठव शरीर क चेतनाएं अवतार, ई र-पु व तीथकर यह ज ब त लंबा हो सकता है, यह जीवन अंतहीन हो सकता है। जनको हम ई र कह, ऐसा अगर टका रहेगा तो ई र बन जाएगा; ऐसी चेतना अगर कह क रह जाएगी तो अरब लोग उसे पूजगे, उसके त ाथनाएं े षत क जाएं गी। जनको हम अवतार कहते, ई र कहते, ई र-पु कहते, वे पांचव शरीर से छठव शरीर म गए ए लोग ह; तीथकर कहते, वे सब छठव शरीर म गए ए लोग ह। य द ये चाह तो इस छठव शरीर म ये अनंत काल तक क सकते ह। इस जगह से ये बड़ा उपकार भी कर सकते ह। हा न का तो अब कोई उपाय नह है, कोई सवाल भी नह है। इस जगह से ये बड़े गहरे सूचक बन सकते ह। और इस तरह के लोग ह, इस छठव शरीर म, जो नरं तर यास करते रहते ह पीछे के या य के लए, ब त तरह के यास करते रहते ह। इस छठव शरीर से चेतनाएं ब त तरह के संदेश भी भेजती रहती ह। और इस छठव शरीर के लोग को, जनको इनका थोड़ा सा बोध हो जाएगा, वे इनको भगवान से नीचे तो रखने का कोई उपाय नह है। भगवान वे ह ही। उनके भगवान होने म कोई कमी नह रह गई, शरीर उ उपल है। जीते जी भी इसम कोई वेश कर जाता है; जीते जी भी कोई पांचव से छठव म वेश कर जाता है। यह शरीर भी मौजूद है। और जब जीते जी कोई पांचव से छठव म वेश कर जाता है, तो हम उसे बु , महावीर, राम और कृ और ाइ बना लेते ह। जनको दखाई पड़ जाता है, वे ही बना लेते ह; जनको नह दखाई पड़ता, उनका तो कोई सवाल नह है। बु के लए, गांव म एक आदमी को दखाई पड़ता है क वे ई र हो गए, और सरे आदमी को दखाई पड़ता है--कुछ भी नह , साधारण तो आदमी ह। हमारे जैसे उनको सद जुकाम भी होता है; हमारे जैसे वे बीमार भी पड़ते ह; हमारे जैसे भोजन भी करते ह; हमारे जैसे चलते-सोते भी ह; हमारे जैसे मरते भी ह; तो हमम-उनम फक ा है? फर जनको दखाई पड़ता है, जनको नह दखाई पड़ता--उनक भीड़ सदा बड़ी है जनको नह दखाई पड़ता। जनको दखाई पड़ता है, वे पागल मालूम पड़ते ह। और बेचारे पागल दखते भी ह, क उनके पास कोई इ वडस भी तो नह । असल म, दखाई पड़ने के लए कोई इ वडस नह होता। अब यह माइक मुझे दखाई पड़ रहा है, और अगर आपको यहां कसी को दखाई न पड़े, तो म और ा इ वडस ं गा क यह दखाई पड़ रहा है! म क ं गा, दखाई पड़ रहा है। और म पागल हो जाऊंगा; क

जब सबको नह दखाई पड़ रहा है और आपको दखाई पड़ रहा है, तो आपका दमाग खराब है। तीथकर को पहचानना मु ल ान को भी हम ब त गहरे अथ म गणना से नापते ह। उसका भी मतदान है, वो टग है उसका भी। तो बु कसी को दखाई पड़ते ह--भगवान ह; कसी को दखाई पड़ते ह--नह ह। जसको दखाई पड़ते ह--नह ; वह कहता है: ा पागलपन कर रहे हो! यह बु वही है जो शु ोधन का बेटा है, फलाने का लड़का है; फलानी इसक मां थी; फलानी इसक ब है; वही तो है, यह कोई और तो नह है। बु के बाप तक को नह दखाई पड़ता क यह आदमी कुछ और हो गया है। वे भी यही समझते ह क मेरा बेटा है, और वे भी कहते ह क तू कहां क नासमझी म पड़ा है, घर वापस लौट आ! यह सब तू ा कर रहा है? रा सब बबाद हो रहा है, म बूढ़ा आ जा रहा ं , अब तू वापस लौट आ, अब स ाल ले सब। उनको भी नह दखाई पड़ता क अब यह कस रा का मा लक हो गया। पर जसको दखाई पड़ता है उसके लए यह तीथकर हो जाएगा, भगवान हो जाएगा, ई र का बेटा हो जाएगा--कुछ भी हो जाएगा। वह कोई नाम चुनेगा, जो छठव शरीर के आदमी के लए इस त म भी दखाई पड़ने लगेगा। छठव शरीर के सीमांत पर नवाण क झलक सातवां शरीर जो है, वह इस शरीर म कभी उपल नह होता। इस शरीर म सातवां शरीर कभी उपल नह होता। इस शरीर म हम छठव शरीर के सीमांत पर भर खड़े हो सकते ह-- ादा से ादा; जहां से सातवां शरीर दखाई पड़ने लगता है; वह छलांग, वह ग , वह ए बस, वह इटर नटी दखाई पड़ने लगती है; वहां हम खड़े हो सकते ह। इस लए बु के जीवन म दो नवाण क बात कही जाती है जो बड़ी क मत क है। एक नवाण तो वह, जो उ बो धवृ के नीचे, नरं जना के तीर पर आ--चालीस साल मरने के पहले। इसे कहा जाता है नवाण। इस दन वे उस सीमांत पर खड़े हो गए। और इस सीमांत पर वे चालीस साल खड़े ही रहे--इसी सीमांत पर। सरा, जस दन उनक मृ ु ई, उस दन कहा जाता है, वह आ महाप र नवाण! उस दन वे उस सातव म वेश कर गए। इस लए मरने के पहले उनसे कोई पूछता है क तथागत का मृ ु के बाद ा होगा? तो बु कहते ह, तथागत नह ह गे। ले कन यह मन को भरता नह हमारे । फर- फर उनके भ उनसे पूछते ह क जब महा नवाण होता है बु का, तो फर ा होता है? तो बु कहते ह, जहां सब होना बंद हो जाता है उसी का नाम महाप र नवाण है। जब तक कुछ होता रहता है, तब तक छठवां; जब तक कुछ होता रहता है, तब तक छठवां, तब तक अ ; फर अन । तो बु अब नह ह गे। अब कुछ भी नह बचेगा। अब तुम समझना क वे कभी थे ही नह । वे ऐसे ही वदा हो जाएं गे जैसे वदा हो जाता है। वे ऐसे ही वदा हो जाएं गे, जैसे रे त पर खची रे खा हवा के झ के म साफ हो जाती है; जैसे पानी पर लक र ख चते ह, और ख च भी नह पाते और वदा हो जाती है; ऐसे ही वे खो जाएं गे; अब कुछ भी नह होगा।

मगर यह मन को भरता नह । हमारा मन करता है--कह , कह , कह . कसी तल पर, कह कसी कोने म. र, कतने ही र, ले कन ह -- कसी प म ह , अ प हो जाएगा; आकार म ह , नराकार हो जाएगा; श म ह , नःश हो जाएगा; स म ह , शू हो जाएगा। सातव शरीर के बाद क फर कोई खबर देने का उपाय नह है। सीमांत पर खड़े ए लोग ह जो सातव शरीर को देखते ह, उस ग को देखते ह, ले कन उस ग म जाकर खबर देने का कोई उपाय नह है। इस लए सातव शरीर के संबंध म सब खबर सीमा के कनारे खड़े ए लोग क खबर ह; गए ए क कोई खबर नह है, क कोई उपाय नह । जैसे क हम पा क ान क सीमा पर खड़े होकर देख और कह क वहां एक मकान है, और एक कान है, और एक आदमी खड़ा है, और एक वृ है, और सूरज नकल रहा है। ले कन यह खड़ा है आदमी ह ान क सीमा म। सातव शरीर म महामृ ु छठव से सातव म महामृ ु है। और तुम बड़े हैरान होओगे जानकर क ब त ाचीन समय म आचाय का मतलब यह होता था क जो मृ ु सखाए, जो महामृ ु सखाए। ऐसे सू ह, जो कहते ह--आचाय यानी मृ ु। इस लए न चकेता जब प ं च गया है यम के पास, तो वह ठीक आचाय के पास प ं च गया है। वह मृ ु ही सखा सकता है यम, और कुछ सखा सकता नह । जहां मटना सखाया जाए, जहां टूटना और समा होना सखाया जाए। पर इसके पहले एक ज आव क है, क अभी तो तुम हो ही नह । और जसे तुमने समझा है क तुम हो, वह तो बलकुल उधार है, वह बारोड है, वह तु ारा अ नह । इसे तुम अगर खोओगे भी तो तुम इसके मा लक न थे। यानी मामला ऐसा है क जैसे म कोई चीज चुरा लूं और फर म उसका दान कर ं । वह चीज मेरी थी नह , तो दान मेरा कैसे होगा? तो जो मेरा नह है उसे तो म दे भी नह सकता। इस लए यहां इस जगत म जसको हम ागी कहते ह वह ागी नह है; क वह वह छोड़ रहा है जो उसका था नह । और जो था नह उसके छोड़नेवाले तुम कैसे हो सकते हो? और जो तु ारा था नह , उसको तुमने छोड़ा, यह दावा पागलपन का है। ाग घ टत होता है छठव शरीर से सातव म वेश से; रन एशन वहां है, क वहां तुम वही छोड़ते हो जो तुम हो। और कुछ तो तु ारे पास बचता नह , तु हो, उसी को तुम छोड़ते हो। इस लए ाग क घटना तो सफ एक ही है, वह है छठव से सातव शरीर म वेश क । उसके पहले तो हम ब क बात कर रहे ह। जो आदमी कह रहा है मेरा है, वह पागलपन क बात कर रहा है; जो कह रहा है क जो भी मेरा था वह मने छोड़ दया है, वह भी पागलपन क बात कर रहा है। क दावेदार वह अब भी है क वह मेरा था और म मानता था क मेरा था; और अब मने कसी और को दे दया, और अब वह उसका हो गया है। हमारे तो सफ हम ह। ले कन उसका हम कोई पता नह है। इस लए पांचव से छठव म तु पता चलेगा क तुम कौन हो, और छठव से सातव म तुम ाग कर सकोगे उसका जो तुम हो। और जस दन कोई उसका ाग कर पाता है जो वह है, उसके बाद फर कुछ पाने को

शेष नह रह जाता, कुछ खोने को शेष नह रह जाता। उसके बाद तो कोई सवाल ही नह है। उसके बाद अनंत स ाटा और चु ी है। उसके बाद हमारे पास यह भी हम नह कह सकते क आनंद है, यह भी नह कह सकते क शां त है, यह भी नह कह सकते क स है, अस है, काश है--कुछ भी नह कह सकते। यह सात शरीर क त होगी। पांचव शरीर का मलना और जागना एक ही बात : ओशो, ूल शरीर के जी वत रहते अगर पांचवां शरीर उपल कौन से शरीर म ज लेगा?

आ, तो मृ ु के बाद वह

फर

पांचव शरीर के बाद, अगर पांचवां शरीर मनु शरीर म उपल आ, और पांचवां शरीर बना जा त ए उपल नह होता, अगर तुम जाग गए पांचव शरीर म, जागे बना उपल नह होता, तो पांचव शरीर का मलना और जागना एक ही बात है। फर तु पहले शरीर क कोई ज रत नह , अब तो तुम पांचव शरीर से ही काम कर सकते हो। तुम जागे ए आदमी हो, अब कोई क ठनाई नह है। अब तु पहले शरीर क कोई ज रत नह है। यह तो चौथे शरीर तक सवाल बना रहेगा सदा। अगर चौथे शरीर म देवता हो गया एक आदमी--चौथा शरीर स य हो गया और जाग गया। चौथा शरीर न य रहा, सोया रहा, तो ेत हो गया। यह दोन तय म तु वापस लौटना पड़ेगा, क तु अभी अपने प का कोई पता नह चला, अभी तो तु प का पता लगाने के लए भी पर क ज रत है। उस पर के ही आधार पर तुम अभी का पता लगा पाओगे। अभी तो अपने को पहचानने के लए तु सरे क ज रत है। अभी सरे के बना तुम अपने को भी न पहचान पाओगे। अभी तो सरा ही तु ारी सीमा बनाएगा और तु पहचानने का कारण बनेगा। तो इस लए चौथे शरीर तक तो कोई भी त म ज लेना पड़ेगा। पांचव शरीर के बाद ज क कोई ज रत नह है; अथ भी नह है। पांचव शरीर के बाद तु ारा होना इन सब चार शरीर के बना हो जाएगा। ले कन पांचव शरीर से भी अभी एक और नये तरह के ज क बात शु होती है, वह छठव शरीर म वेश क । वह सरी बात है, उसके लए इन शरीर क कोई भी ज रत नह है। : ओशो, पांचव शरीर म जसका वेश हो गया, वह अपनी मृ ु के बाद

नह ! तीथकर को वासना बांधनी पड़ती है

ूल शरीर नह पा सकता?

: ओशो, तीथकर य द ज

लेना चाहे तो

ूल शरीर म लगे न?

अब यह जो मामला है, यह ब त सरी बात ई। यह जो बात है न, यह बलकुल सरी बात है। थोड़ी सी बात कर ल। अगर तीथकर को ज लेना हो, जैसा क तीथकर ज लेता है, तो एक बड़ी मजे क बात है और वह यह है क मरने के पहले उसे चौथे शरीर को छोड़ना नह पड़ता। और न छोड़ने का एक उपाय है और उसक व ध है। और वह है तीथकर होने क वासना। तो चौथा शरीर जब छूट रहा हो तब एक वासना बचा लेनी पड़ती है, ता क चौथा न छूटे । चौथे के छूटने के बाद तो ज ले नह सकते, फर तो तु ारा सेतु टूट गया जससे तुम आ सकते थे। तो चौथे शरीर के पहले तीथकर होने क वासना को बचाना पड़ता है। इस लए सभी लोग, तीथकर होने के यो लोग तीथकर नह होते। ब त से तीथकर होने यो लोग सीधे या ा पर नकल जाते ह। थोड़े से लोग.और इस लए उनक सं ा भी तय कर रखी है। वह सं ा तय करने का कारण है क उतने से काम चल जाता है, उतने से ादा लोग को वैसी वासना रखने क कोई ज रत नह । इस लए सं ा तय कर रखी है क इतने युग के लए इतने तीथकर काफ हो जाएं गे; इतने आदमी के लए इतने तीथकर काफ पड़गे। तो तीथकर क वासना बांधनी पड़ती है। और उस वासना को बड़ी ती ता से बांधना पड़ता है, क वह आ खरी वासना है, और जरा छूट जाए हाथ से तो बात गई। तो सर को म सखाऊंगा, सर को म बताऊंगा, सर को म समझाऊंगा, सर के लए मुझे आना है--वह चौथे शरीर म उतनी एक वासना का बीज बल होना चा हए। अगर वह बल है तो उतरना हो जाएगा। पर उसका मतलब यही आ क अभी चौथे शरीर को छोड़ा नह है; पांचव शरीर पर पैर रख लया है, ले कन चौथे शरीर पर एक खूंटी गाड़ रखी है। वह इतनी शी ता से उखड़ती है क अ र मु ल मामला है ब त। तीथकर बनाने क या इस लए तीथकर बनाने क ोसेस है। और इस लए तीथकर ू म बनते ह, वे इं ड वजुअ नह ह। जैसे क एक ू ल साधना कर रहा है, कुछ साधक लोग साधना कर रहे ह। और उनम वे एक आदमी को पाते ह जसम क श क होने क पूरी यो ता है--जो, जो जानता है उसे कह सकता है; जो, जो जानता है उसे बता सकता है; जो, जो जानता है उसे सरे तक क ु नकेट कर सकता है--तो वह ू ल उसके चौथे शरीर पर खूं टयां गाड़ना शु कर देगा और उसको कहेगा क तुम चौथे शरीर क फकर करो, यह चौथा शरीर ख न हो जाए; क तु ारा यह चौथा शरीर काम पड़ेगा, इसको बचा लो। और इसको बचाने के उपाय सखाए जाएं गे। तीथकर का क णावश पुनज लेना और इसको बचाने के लए उतनी मेहनत करनी पड़ती है, जतनी छोड़ने के लए नह

करनी पड़ती। क छोड़ना तो एकदम सरलता से हो जाता है। और जब सब नाव क खूं टयां उखड़ गई ह , और पाल खच गया हो और हवा भर गई हो, और र का सागर पुकार रहा हो, और आनंद ही आनंद हो, तब वह जो एक खूंटी है, उसको रोकना कतना क ठन है, उसका हसाब लगाना मु ल है। इस लए तीथकर को हम कहते ह--तुम महा क णावान हो। उसका और कोई कारण नह है; क उसक क णा का बड़ा ह ा तो यही है क जब उसे जाना था, जब जाने क सब तैयारी पूरी हो गई थी, तब उनके लए वह क गया है जो तट पर अभी ह और जनक नाव अभी तैयार नह ह। उसक नाव बलकुल तैयार थी। अब वह उस तट के क झेल रहा है, उस तट क धूल भी झेल रहा है, उस तट क गा लयां भी झेल रहा है, उस तट के प र भी झेल रहा है--और उसक नाव बलकुल तैयार थी, और वह कभी भी जा सकता था। वह नाहक क गया है इन सबके बीच। और ये सब उसे मार भी सकते ह, ह ा भी कर सकते ह। तो उसक क णा का कोई अंत नह । ले कन उस क णा क वासना ू ल म पैदा होती है। इस लए इं ड वजुअल साधक तो कभी तीथकर नह हो पाते। वह तो बाद म.उनको पता ही नह चलता, कब खूंटी उखड़ जाती है। जब नाव चल पड़ती है तब उनको पता चलता है क यह तो गया मामला; वह तट र छूटा जा रहा है। इस लए खूंटी के लए ब त और तरह का. तीथकर के अवतरण म अ जा त लोग का योगदान और इस सबक सहायता के लए, जैसा मने कहा क छठव शरीर को जो लोग उपल ह-- जनको हम ई र कह--छठव शरीर को जो लोग उपल ह, वे भी कभी इसम सहयोगी होते ह। कसी को इस यो पाकर, क इसको अभी इस तट से नह छूटने देना है, वे हजार तरह के यास करते ह। इसके लए देवता भी सहयोगी होते ह--जैसा मने कहा क वे शुभ म सहयोगी ह गे--वे हजार यास करते ह, इस आदमी को ेरणा देते ह क यह खूंटी एक बचा लेना। यह खूंटी हम दखाई पड़ती है, तु दखाई नह पड़ती, ले कन इसको तुम बचा लेना। तो जगत एकदम अना कक नह है, अ व ा नह है; उसम बड़ी गहरी व ाएं ह; और व ाओं के भीतर व ाएं ह। और कई दफा ब त तरह क को शश क जाती है, फर भी गड़बड़ हो जाती है। जैसे कृ मू त के संबंध म खूंटी गाड़ने क ब त को शश क गई, वह नह हो सका। एक पूरा ू ल ब त मेहनत कया, वह खूंटी गाड़ने क को शश थी, वह नह हो सका। वह यास असफल चला गया। उसम पीछे से भी लोग का हाथ था। उसम रगामी आ ाओं का हाथ भी था। उसम छठव शरीर के लोग का हाथ भी था, पांचव शरीर के लोग का हाथ भी था, उसम चौथे शरीर के जा त लोग का भी हाथ था। और उसम हजार लोग का हाथ था। और यह को शश थी.और कृ मू त को चुना गया था, और दो-चार ब े चुने गए थे जनसे संभावना थी क जनको तीथकर बनाया जा सके। चूक गई वह बात, नह हो सक ; वह खूंटी नह गाड़ी जा सक । इस लए कृ मू त से तीथकर का जो फायदा मल सकता था जगत को, वह नह मल सका। मगर वह सरी बात है, उससे कोई, उससे कोई यहां मतलब नह है। फर कल बात करगे।

तं के गु

: 18 आयाम म

: ओशो, कल क चचा के अं तम ह े म आपने कहा क बु सातव शरीर म महाप र नवाण को उपल ए। ले कन अपने एक वचन म आपने कहा है क बु का एक और पुनज मनु शरीर म मै ेय के नाम से होनेवाला है । तो नवाण काया म चले जाने के बाद पुनः मनु शरीर लेना कैसे संभव होगा, इसे सं म करने क कृपा कर।

इसको छोड़ो, पीछे लेना, तु ारे पूरे नह हो पाएं गे नह तो। : ओशो, आपने कहा है क पांचव शरीर म प ं चने पर साधक के लए ी और पु ष का भेद समा हो जाता है । यह उसके थम चार शरीर के पा ज टव और नगे टव व ुत के कस समायोजन से घ टत होता है ?

ी और पु ष के शरीर के संबंध म, पहला शरीर ी का ैण है, ले कन सरा उसका शरीर भी पु ष का ही है। और ठीक इससे उलटा पु ष के साथ है। तीसरा शरीर फर ी का है, चौथा शरीर फर पु ष का है। मने पीछे कहा क ी का शरीर भी आधा शरीर है और पु ष का शरीर भी आधा शरीर है; इन दोन को मलकर ही पूरा शरीर बनता है। यह मलन दो दशाओं म संभव है। पु ष का शरीर--पहला शरीर--अपने से बाहर ी के पहले शरीर से मले तो एक यू नट, एक इकाई पैदा होती है। इस इकाई से कृ त क संत त का, कृ त के ज का काम चलता है। य द अंतमुखी हो सके पु ष या ी, तो उनके भीतर के पु ष या ी से मलन होता है और एक सरी या ा शु होती है जो परमा ा क दशा म है। बाहर के शरीर- मलन से जो या ा होती है वह कृ त क दशा म है; भीतर के शरीर के मलन से जो या ा होती है, वह परमा ा क दशा म है। पु ष का पहला शरीर जब अपने ही भीतर के ईथ रक बॉडी के ी शरीर से मलता है, तो एक यू नट बनता है; ी का पहला शरीर जब अपने ही ईथ रक शरीर के पु ष त से मलता है, तो एक यू नट बनता है। यह यू नट ब त अदभुत है, यह इकाई ब त अदभुत है। क अपने से बाहर के ी या पु ष से मलना ण भर के लए ही हो सकता है। सुख

ण भर का होगा और फर छूटने का ख ब त लंबा होगा। इस लए उस ख म से फर मलने क आकां ा पैदा होती है। ले कन मलना फर ण भर का होता है और फर छूटना फर लंबे ख का कारण बन जाता है। तो बाहर के शरीर से जो मलन है वह ण भर को ही घ टत हो पाता है, ले कन भीतर के शरीर से जो मलन है वह चर ायी हो जाता है--वह एक बार मल गया तो सरी बार टूटता नह । इस लए भीतर के शरीर पर जब तक मलन नह आ है तभी तक ख है। जैसे ही मलन आ तो सुख क एक अंतरधारा बहनी शु हो जाती है। वह सुख क अंतरधारा वैसे ही है, जैसे ण भर के लए बाहर के शरीर से मलने पर संभोग म घ टत होती है। ले कन वह इतनी णक है क वह आ भी नह पाती क चली जाती है। ब त बार तो उस सुख का भी कोई अनुभव नह हो पाता, क वह इतनी रा, इतनी तेजी म घटना घटती है क उसका कोई अनुभव भी नह हो पाता। ान: आ र त क या योग क से अगर अंत मलन संभव हो जाए, तो बाहर संभोग क वृ त ाल वलीन हो जाती है; क जस आकां ा के लए वह क जा रही थी, वह आकां ा तृ हो गई। मैथुन के जो च मं दर क दीवाल पर खुदे ह, वे अंतमथुन क ही दशा म इं गत करनेवाले च ह। अंतमथुन ान क या है। और इस लए ब हमथुन और अंतमथुन म एक वरोध खयाल म आ गया। और वह वरोध इसी लए खयाल म आ गया क जो भी अंतमथुन म वेश करे गा उसका बाहर के जगत से यौन का सारा संबंध व हो जाएगा। ी जब अपने पहले शरीर से सरे शरीर से मलेगी.तो यह भी समझ लेने जैसा है क जब ी अपने पहले शरीर से सरे शरीर से मलेगी, तो जो यू नट बनेगा दोन के मलने पर वह फर ैण होगा--पूरा यू नट; और पु ष का पहला शरीर जब सरे शरीर से मलेगा तो जो इकाई बनेगी वह फर पु ष क होगी--पूरा शरीर। क जो थम है वह तीय को आ सात कर लेता है। जो थम है वह तीय को आ सात कर लेता है; सरा उसम समा व हो जाता है। ले कन अब ये ी और पु ष भी ब त सरे अथ म ह; उस अथ म नह जैसा क हम बाहर ी-पु ष को देखते ह। क बाहर जो पु ष है वह अधूरा है, इस लए सदा अतृ है; बाहर जो ी है वह अधूरी है, इस लए सदा अतृ है। अगर हम जै वक वकास को खोजने जाएं तो यह पता चलेगा क जो ाथ मक ाणी ह जगत म, उनम ी और पु ष के शरीर अलग-अलग नह ह। जैसे अमीबा है, जो क ाथ मक जीव है। अमीबा के शरीर म दोन एक साथ मौजूद ह ी और पु ष। उसका आधा ह ा पु ष का है, आधा ी का। इस लए अमीबा से तृ ाणी खोजना ब त क ठन है। उसम कोई अतृ नह है। उसम डसकंटट जैसी चीज पैदा नह होती। इस लए वह वकास भी नह कर पाया; वह अमीबा अमीबा ही बना आ है। तो बलकुल जो ाथ मक क ड़यां ह बायोला जकल वकास क , वहां भी शरीर दो नह ह, वहां एक ही शरीर है और दोन ह े एक ही शरीर म समा व ह। आ र त से पूण ी और पूण पु ष ा

ी का पहला शरीर जब सरे से मलेगा तो फर एक नये अथ म ी-- जसको हम पूण ी कह--पैदा होगी। और पूण ी के का हम कोई अंदाज नह , क हम जस ी को भी जानते ह वे सभी अपूण ह; पूण पु ष का भी हम कोई अंदाज नह है, क जतने पु ष हम जानते ह वे सब अपूण ह, वे सब आधे-आधे ह। जैसे ही यह इकाई पूरी होगी, एक परम तृ इसम वेश कर जाएगी-- जसम असंतोष जैसी चीज ीण होगी, वदा हो जाएगी। यह जो पूण पु ष होगा या पूण ी होगी, पहले और सरे शरीर के मलने से, अब इनके लए बाहर से तो कोई भी संबंध जोड़ना मु ल हो जाएगा। इनके लए बाहर से संबंध जोड़ना बलकुल मु ल हो जाएगा, क बाहर अधूरे पु ष और अधूरी यां ह गी जनसे इनका कोई तालमेल नह बैठ सकता। ले कन अगर एक पूण पु ष, भीतर जसके दोन शरीर मल गए ह , और एक ी, जसके दोन शरीर मल गए ह--इनके बीच संबंध हो सकता है। पूण पु ष और पूण ी के बीच ब हसभोग का तां क योग और तं ने इसी संबंध के लए बड़े योग कए। इस लए तं ब त परे शानी म पड़ा और ब त बदनाम भी आ। क हम नह समझ सके क वे ा कर रहे ह। हमारी समझ के बाहर था। हमारी समझ के बाहर होना बलकुल ाभा वक था। क अगर एक ी और एक पु ष, तं क दशा म, जब क उनके भीतर के दोन शरीर एक हो गए ह, संभोग कर रहे ह, तो हमारे लए वह संभोग ही है। और हम सोच भी नह सकते क यह ा हो रहा है। ले कन यह ब त ही और घटना थी। और यह घटना बड़ी सहयोगी थी साधक के लए। इसके बड़े क मती अथ थे। क एक पूण पु ष, एक पूण ी का बाहर जो मलन था, वह एक नये मलन का सू पात था, एक नये मलन क या ा थी। क अभी एक तरह से या ा ख हो गई--अधूरे पु ष, अधूरी ी पूरे हो गए; एक जगह पर जाकर चीज खड़ी हो गई और पठार आ जाएगा। क अब हम और कोई आकां ा का खयाल नह है। अगर एक पूण पु ष और पूण ी इस अथ म मलते, तो उनके भीतर पहली दफा अधूरे से बाहर एक पूण ी और पूण पु ष के मलन का ा रस और आनंद हो सकता है, वह उनके खयाल म आता। और उनको सरी बात भी खयाल म आती क अगर ऐसा ही पूण मलन भीतर घ टत हो सके, तब तो अपार आनंद क वषा हो जाएगी! क आधे पु ष ने आधी ी को भोगा था। फर उसने अपने भीतर क आधी ी से अपने को जोड़ा, तब उसने पाया क अपार आनंद मला। फर पूरे पु ष ने पूरी ी को भोगा और तब भावतः बलकुल तकसंगत उसको खयाल आएगा क अगर मेरे भीतर भी एक पूण ी मुझे मल सके! तो अपने भीतर वह पूण ी क खोज म तीसरे और चौथे शरीर का मलन घ टत होता है। उनके बीच संभोग म ऊजा का लन नह तीसरा शरीर पु ष का फर पु ष है और चौथा ी है; ी का तीसरा शरीर ी का है और चौथा शरीर पु ष का है। तं ने इस व ा को क कह आदमी क न जाए एक शरीर क पूणता पर. क ब त तरह क पूणताएं ह। अपूणता कभी नह रोकती, ले कन

ब त तरह क पूणताएं ह जो कसी आगे क पूणता क से अपूण ह गी, ले कन पीछे क अपूणता क से बड़ी पूरी मालूम पड़ती ह। पीछे क अपूणता मट गई है, आगे क पूणता का हम, और बड़ी पूणता का कोई पता नह है-- काव हो सकता है। इस लए तं ने ब त तरह क याएं वक सत क , जो बड़ी हैरानी क थ --और जनको हम समझ भी नह सकते ह एकदम से। जैसे अगर पूण पु ष और पूण ी का संभोग होगा, तो उसम कसी क ऊजा का पात नह होगा। वह हो नह सकता; क वे दोन अपने भीतर कं ीट स कल ह; उनसे कोई ऊजा का लन नह होनेवाला। ले कन बना ऊजालन के पहली दफा सुख का अनुभव होगा। और मजे क बात यह है क जब भी ऊजा- लन से सुख का अनुभव होगा, तो पीछे ख का अनुभव अ नवाय है; क ऊजा- लन से जो वषाद, और जो े शन, और जो ख, और जो पीड़ा, और जो संताप पैदा होगा, वह होगा। सुख तो ण भर म चला जाएगा, ले कन जो ऊजा खोई है, उसको पूरा करने म चौबीस घंटे, अड़तालीस घंटे, और ादा व भी लग सकता है। उतनी देर तक च उस अभाव के त खी रहेगा। अगर बना ऊजा- लन के संभोग हो सके.इसके लए तं ने बड़ी आ यजनक दशा म काम कया, और बड़ी ह तवर दशा म काम कया। उस पर तो पीछे कभी अलग बात करनी पड़े, क उनका सारा या का जाल है पूरा का पूरा। और वह जाल चूं क टूट गया, और वह पूरा का पूरा व ान धीरे -धीरे इसोटे रक हो गया, फर उसको सामने बात करना मु ल हो गई, क हमारी नै तक मा ताओं ने हम बड़ी क ठनाई म डाल दया, और हमारे नासमझ समझदार ने-- जनको क कुछ भी पता नह होता, ले कन जो कुछ भी कहने म समथ होते ह--उ ने ब त सी क मती बात को जदा रहना मु ल कर दया। उनको वदा कर देना पड़ा, या वे छु प ग और अंडर ाउं ड हो ग , और भीतर छु पकर चलने लग , ले कन उनक धाराएं जीवन म नह रह ग । दोन क नकटता से दोन क श का बढ़ना यह पूण ी और पु ष के संभोग क संभावना.और यह संभोग ब त और तरह का है; इसम ऊजा का लन नह है, ब एक नई घटना घटती है जसको क इशारे म कहा जा सकता है। अधूरी ी और अधूरे पु ष का जब भी मलन होगा, तो दोन क श ीण होगी; मलने के पहले उनक जतनी श थी, मलने के बाद उन दोन क श कम होगी। और पूरे पु ष और पूरी ी के मलन म इससे उलटी घटना घटे गी: मलने के पहले जतनी उनक श थी, मलने के बाद दोन क ादा होगी। ठीक इससे उलटी घटना घटे गी: दोन के पास ादा श होगी। यह श उ के भीतर पड़ी है जो क सरे के नकट आने से सजग और जाग क और स य हो जाएगी। उनक ही श है। पहले म भी उनक ही श सरे के नकट आने से लत होती थी; सरी घटना म उनक ही श सरे के नकट आने से स य और सजग हो जाएगी, और जो उनके भीतर छपा है वह पूरा का पूरा उनको कट होगा। इस घटना से इं गत मलेगा क भीतर भी ा पूण पु ष और पूण ी का मलन हो सकता है? क पहला मलन भीतर भी अधूरे पु ष और अधूरी ी का मलन है।

तीसरे और चौथे शरीर के अंतमथुन से ं -मु इस लए सरे यू नट पर काम शु होता है क तीसरे और चौथे शरीर को.तीसरा और चौथा शरीर जब मलेगा, तो तीसरा शरीर पु ष का फर पु ष है और चौथा शरीर फर ी है; ी का तीसरा शरीर ी है, चौथा पु ष है। इन दोन के मलन पर पु ष के भीतर पु ष ही बचेगा-- फर तीसरा शरीर मुख हो जाएगा--और ी के भीतर फर ी बचेगी। और ये दो पूण यां फर लीन हो जाएं गी एक म, क इनके बीच अब कोई सीमा-रे खा नह रह जाएगी जहां से ये अलग हो सक। इनके अलग होने के लए बीच-बीच म पु ष के शरीर का होना ज री था--या पु ष के बीच-बीच म ी का शरीर होना ज री था, जनसे यह फासला होता था। पहले और सरे शरीर क मली ई ी, और तीसरे -चौथे शरीर क मली ई ी--दोन के मलने क घटना के साथ ही एक हो जाएं गी। और तब दोहरे चरण म ी के पास और भी पूण ैणता पैदा होगी। इससे बड़ी ैणता नह संभव है, क इसके बाद फर कोई ैणता क सीमा नह । बस यह पूरी ैण त होगी; यह पूण ी होगी। यह पूण ी होगी जसको अब पूण से भी मलने क कोई आकां ा नह रह जाएगी। पहली पूणता म भी सरे पूण से मलने का रस था और उसके मलने से श जगती थी, अब वह भी बात समा हो जाएगी। अब इसको परमा ा भी मलता हो तो उस अथ म मलने का कोई अथ नह रह जाएगा। न पु ष को। पु ष के भीतर भी दो पु ष मलकर पूण हो जाएं गे। चार शरीर को मलकर पु ष के पास पु ष बचेगा, ी के पास ी बचेगी। और इसके बाद कोई पु ष- ी नह है पांचव शरीर से। इस लए ी और पु ष के इस चौथे शरीर के बाद जो घटना घटे गी, वह दोन क फर भ होगी-- भ होनेवाली है। घटना एक ही होगी, ले कन दोन क समझ भ होगी। पु ष अब भी आ ामक होगा, ी अब भी समपक होगी। ी सरडर कर देगी; ी अपने को, चौथे शरीर को पूरा पा लेने के बाद संपूण प से छोड़ सकेगी; अब उसके छोड़ने म इं च भर क भी कमी नह रहेगी। और यह जो छोड़ना है, यह जो लेट गो है, यह जो समपण है, यह उसे आगे क या ा पर प ं चा देगा पांचव शरीर म--जहां फर ी ी नह रह जाती। क ी होने के लए भी अपने को थोड़ा सा बचाना ज री था। असल म हम जो ह, वह अपने को थोड़ा सा बचाकर ह। अगर हम अपने को पूरा छोड़ सक तो हम त ाल और हो जाएं गे, जो हम कभी भी नह थे। हमारे होने म हमारा बचाव है पूरे व । अगर एक ी एक साधारण पु ष के लए भी पूरा छोड़ सके, तो उसके भीतर एक लाइजेशन घ टत हो जाएगा; वह चौथे शरीर को पार कर जाएगी। सती श का गु अथ इस लए कई बार य ने साधारण पु ष के ेम म भी चौथा शरीर पार कर लया। जनको हम सती कहते ह, उनका कोई और सरा मतलब नह है--इसोटे रक अथ म। उनका और कोई मतलब नह । उनका यह मतलब नह है क जनक सरे पु ष पर नह उठती। सती का मतलब यह है क जनके पास सर पर उठाने को बची नह । सती का मतलब यह नह है क जनक सरे पु ष पर नह उठती है। सती का मतलब यह है क जनके पास अब ी ही नह बची जो सरे पर उठाए।

अगर साधारण पु ष के ेम म भी कोई ी इतनी सम पत हो जाए, तो उसको यह या ा करने क ज रत नह , उसके चार शरीर इक े होकर पांचव के ार पर वह खड़ी हो जाएगी। इसी वजह से, ज ने यह अनुभव कया था, उ ने कहा क प त परमा ा है। उनके प त को परमा ा कहने का मतलब पु ष को कोई परमा ा बनाने का नह था, ले कन उनके लए प त के मा म से ही पांचव का दरवाजा खुल गया था। इस लए उनके कहने म कोई भूल न थी; उनका कहना बलकुल उ चत था। क जो साधक को बड़ी मेहनत से उपल होता है, वह उनको ेम से ही उपल हो गया था; और एक के ेम म ही वे उस जगह प ं च गई थ । सीता जैसी पूण ी क तेज ता अब जैसे सीता है। सीता को हम उन य म गनते ह जनको क सती कहा जा सके। अब सीता का समपण ब त अनूठा है; समपण क से पूण है; और टोटल सरडर है। रावण सीता को ले जाकर भी सीता का श भी नह कर सका। असल म, रावण अधूरा पु ष है और सीता पूरी ी है। पूरी ी क तेज ता इतनी है क अधूरा पु ष उसे छू भी नह सकता, उसक तरफ आंख उठाकर भी जोर से नह देख सकता। वह तो अधूरी ी को ही देखा जा सकता है। और जब एक पु ष एक ी को छूता है, तो सफ पु ष ज ेवार नह होता, ी का अधूरा होना अ नवाय प से भागीदार होता है। और जब कोई रा े पर कसी ी को ध ा देता है, तो ध ा देनेवाला आधा ही ज ेवार होता है, ध ा बुलानेवाली ी भी आधी ज ेवार होती है; वह ध ा बुलाती है, नमं ण देती है। चूं क वह पै सव है, इस लए उसका हमला हम दखाई नह पड़ता। पु ष चूं क ए व है, इस लए उसका हमला दखाई पड़ता है। दखाई पड़ता है क इसने ध ा मारा; यह हम दखाई नह पड़ता क कसी ने ध ा बुलाया। रावण सीता को आंख उठाकर भी नह देख सका। और सीता के लए रावण का कोई अथ नह था। ले कन, जीत जाने पर राम ने सीता क परी ा लेनी चाही, अ -परी ा लेनी चाही। सीता ने उसको भी इनकार नह कया। अगर वह इनकार भी कर देती तो सती क है सयत खो जाती। सीता कह सकती थी क आप भी अकेले थे, और परी ा मेरी अकेली ही हो, हम दोन ही अ -परी ा से गुजर जाएं ! क अगर म अकेली थी कसी सरे पु ष के पास, तो आप भी अकेले थे और मुझे पता नह क कौन यां आपके पास रही ह । तो हम दोन ही अ -परी ा से गुजर जाएं ! ले कन सीता के मन म यह सवाल ही नह उठा; सीता अ -परी ा से गुजर गई। अगर उसने एक बार भी सवाल उठाया होता तो सीता सती क है सयत से खो जाती--समपण पूरा नह था, इं च भर फासला उसने रखा था। और अगर सीता एक बार भी सवाल उठा लेती और फर अ से गुजरती, तो जल जाती; फर नह बच सकती थी अ से। ले कन समपण पूरा था; सरा कोई पु ष नह था सीता के लए। इस लए यह हम चम ार मालूम पड़ता है क वह आग से गुजरी और जली नह ! ले कन कोई भी , जो अंतर-समा हत है.साधारण भी कसी अंतर-समा हत त म आग पर से नकले तो नह जलेगा। ह ो सस क हालत म एक साधारण से आदमी को कह दया जाए क अब तुम आग पर नह जलोगे, तो वह आग पर से नकल

जाएगा और नह जलेगा। बना जले आग पर से गुजर जाने का राज साधारण सा फक र आग पर से गुजर सकता है एक वशेष भावदशा म, जब वह भीतर उसका स कल पूरा होता है। स कल टूटता है संदेह से। अगर उसे एक बार भी यह खयाल आ जाए क कह म जल न जाऊं, तो भीतर का वतुल टूट गया, अब यह जल जाएगा। अगर भीतर का वतुल न टूटे तो दो फक र अगर कूद रहे ह कह आग पर, और आप भी पीछे खड़े ह , और दो को कूदते देखकर आपको लगे क जब दो कूद रहे ह और नह जलते तो म जलूंगा, और आप भी कूद जाएं , तो आप भी नह जलगे। पूरी कतार, भीड़ गुजर जाए आग से, नह जलेगी। और उसका कारण है, क जसको जरा भी शक होगा, वह उतरे गा नह ; वह बाहर खड़ा रह जाएगा; वह कहेगा, पता नह म न जल जाऊं। ले कन जसको खयाल आ गया है, जो देख रहा है क कोई नह जल रहा है तो म जलूंगा, वह गुजर जाएगा, उसको कोई आग नह छु एगी। अगर हमारे भीतर का वतुल पूरा है तो हमारे भीतर आग तक के वेश क गुंजाइश नह है। तो सीता को आग न छु ई हो, इसम कोई क ठनाई नह । आग से गुजरने के बाद भी जब राम उसको छु ड़वा दए, तब भी वह यह नह कह रही है क मेरी परी ा भी हो गई, अ परी ा म भी सही उतर गई, फर भी मुझे छोड़ा जा रहा है! नह , उसक तरफ से समपण पूरा है। इस लए छोड़ने क कोई बात ही नह उठती, इस लए सवाल का कोई सवाल नह है। पूण समपण से चार शरीर का अ त मण पूरी ी अगर एक के ेम म भी पूरी हो जाए, तो वे जो सी ढ़यां ह साधना क उनम चार को तो छलांग लगा जाएगी। पु ष के लए यह संभावना क ठन है। पु ष के लए यह संभावना ब त क ठन है, क समपक च नह है उसके पास। यह बड़े मजे क बात है क आ मण भी पूरा हो सकता है, ले कन आ मण पूरा होने म सदा और ब त सी चीज ज ेवार ह गी, आप अकेले नह । ले कन समपण के पूरे होने म आप अकेले ज ेवार ह गे, और ब त सी चीज का कोई सवाल नह है। अगर मुझे समपण करना है कसी के त तो म उससे बना पूछे पूरा कर सकता ं । ले कन अगर आ मण करना है कसी के त, तब तो आ मण का अं तम जो प रणाम होगा उसम म अकेला नह , वह सरा भी ज ेवार होगा। इस लए जहां श पात क चचा मने क , तो वहां ऐसा तीत आ होगा क ी म थोड़ी सी कमी है, उसको थोड़ी सी क ठनाई है। पर मने कहा था, कंपनसेशन के नयम ह जीवन म। वह कमी उसके समपण क श से पूरी हो जाती है। पु ष कभी भी कसी को कतना ही ेम करे , पूरा नह कर पाता। उसके न करने का कारण है। वह आ ामक है, समपक नह है। और आ मण का पूरा होना असंभव मामला है। आ मण भी तभी पूरा हो सकता है जब कोई पूरा समपण कर दे, तो उस पर पूरा आ मण हो सकता है, अ था वह नह हो सकता। तो ी के चार शरीर पूरे हो जाएं , एक हो जाए इकाई, तो पांचव पर बड़ी सरलता से वह

समपण कर पाती है। और इस चौथी अव ा म, जब ी इन दोहरी सी ढ़य को पार करके पूरी होती है, तब नया क कोई श उसको रोक नह सकती, और उसके लए सवाय परमा ा के फर कोई बचता नह । असल म, चार शरीर म रहते ए जसको उसने ेम कया था वह भी परमा ा हो गया था। और अब तो जो भी है वह परमा ा है। मीरा के जीवन म ब त मीठी घटना है क वह गई है वृंदावन। और वहां उस बड़े मं दर म कृ के जो पुजारी है, वह य का दशन नह करता है, य को देखता नह है। इस लए उस मं दर म य के लए वेश न ष है। ले कन मीरा तो अपना मंजीरा बजाती ई भीतर वेश ही कर गई है। उसे लोग ने रोका और कहा क ी का जाना भीतर मना है, क वह जो पुरो हत है मं दर का, वह ी नह देखता है। तो मीरा ने कहा, बड़ी अदभुत घटना है! म तो सोचती थी क एक ही पु ष है जगत म, कृ ! सरा पु ष कौन है, उसे म ज री देखना चाहती ं । वह मुझे भला देखने म डरता हो, ले कन म उसे देखना चाहती ं -- सरा पु ष कौन है? सरा पु ष भी है? उस पुरो हत को खबर प ं चाई गई क एक ी दरवाजे पर वेश कर गई है और वह कहती है क म उस सरे पु ष को देखना चाहती ं । क म तो देखती ं क एक ही पु ष है, कृ ! वह सरा पु ष कहां है? उसके म दशन करना चाहती ं । वह जो मं दर का पुरो हत था, पुजारी था, वह आया और भागा और मीरा के पैर म गरा। और उसने कहा क जसके लए एक ही पु ष बचा है, अब उसको ी कहना बेमानी है; अब उसका कोई मतलब ही नह रहा; अब बात ही ख हो गई। और म तेरे पैर छूने आया ं । और भूल हो गई मुझसे, मने साधारण य को देखकर अपने को पु ष समझ रखा था, ले कन तेरी जैसी ी के लए तो मेरे पु ष होने का कोई अथ नह है। समपण भ बन जाती है और आ मण योग पु ष अगर चौथे शरीर पर प ं चेगा, तो वह पूण पु ष हो जाएगा--दोहरी सी ढ़यां पार करके पूण पु ष हो जाएगा। उस दन के बाद उसके लए कोई ी नह है; उस दन के बाद उसके लए ी का कोई अथ नह है। अब वह सफ आ मण क ऊजा है। जैसे ी चौथे शरीर को पार करके सफ समपण क ऊजा है, सफ श जो सम पत हो सकती है; और पु ष सफ श है जो आ ामक हो सकती है। अब सफ श यां बच गई ह, अब इनका ी-पु ष नाम नह है, अब ये सफ ऊजाएं ह। पु ष का जो आ मण है, वही योग क ब त सी याओं म वक सत आ; ी का जो समपण है, वही भ क ब त सी याओं म वक सत आ। समपण भ बन जाता है, आ मण योग बन जाता है। ले कन बात एक ही है; उन दोन म कुछ भेद नह है अब। यह सफ ी और पु ष क तरफ से भेद है। अब बूंद सागर म गरती है क सागर बूंद म गरता है, इससे अं तम प रणाम म कोई भेद नह है। पु ष क जो बूंद है, वह सागर म गरे गी; वह छलांग लगाएगा और सागर म गर जाएगा। ी क बूंद जो है, वह खाई बन जाएगी और पूरे सागर को अपने म पुकार लेगी; वह सम पत हो जाएगी और पूरा सागर उसम गरे गा। अब भी वह नगे टव होगी, नगे ट वटी होगी उसक पूरी क पूरी। वह गभ रह जाएगी और सारे सागर को अपने म ले लेगी; सम व क ऊजा उसम वेश कर जाएगी। पु ष अब भी गभ नह बन सकता; पु ष अब भी वीय ही होगा--और एक छलांग

लगाएगा और सागर म डूब जाएगा। पांचव शरीर से ी-पु ष का भेद समा ब त गहरे म उनके इस सीमा तक, आ खरी सीमा तक पीछा करगे--चौथे शरीर के आ खरी तक। पांचव शरीर क नया अलग हो जाएगी; तब आ ा ही शेष रह जाती है। और आ ा का कोई ल गक भेद नह है। इस लए उसके बाद या ा म कोई फक नह पड़ता। चौथे तक फक पड़ेगा और फक ऐसा ही होगा क बूंद सागर म गरे गी क सागर बूंद म गरे गा। अं तम प रणाम एक ही हो जाएगा--बूंद सागर म गरे क सागर बूंद म गरे , कोई फक पड़नेवाला नह है। ले कन चौथे शरीर क आ खरी सीमा तक फक रहेगा। अगर ी ने छलांग लगाना चाही तो वह मु ल म पड़ जाएगी और अगर पु ष ने समपण करना चाहा तो वह मु ल म पड़ जाएगा। ब त सी यां छलांग लगाने क मु ल म पड़ती ह, ब त से पु ष समपण करने क मु ल म पड़ जाते ह। उस भूल से सावधान रहना ज री है। लंबे संभोग म ी और पु ष के बीच व ुत-वलय : ओशो, आपने एक वचन म कहा है क लंबे संभोग म ी और पु ष के बीच एक काश-वलय न मत होता है । यह ा है , कैसे न मत होता है , और इसका ा उपयोग है ? थम चार शरीर क व ुतीय व भ ता के आधार पर इन का उ र दे ने क कृपा कर। अकेले ान म उपरो घटना का ा प होगा?

हां, जैसा मने कहा क ी आधी है, पु ष आधा है; दोन ऊजाएं ह, दोन व ुत ह; ी नगे टव पोल है, पु ष पा ज टव पोल है। और जहां कह भी व ुत क ऋणा क और धना क ऊजाएं एक वतुल बनाती ह, वहां काश-पुंज पैदा हो जाता है। काश-पुंज ऐसा हो सकता है जो दखाई न पड़े; ऐसा हो सकता है जो कभी दखाई पड़ जाए; ऐसा हो सकता है जो कसी को दखाई पड़े, कसी को दखाई न पड़े। ले कन वतुल न मत होता है। पर वतुल.पु ष और ी का मलन इतना णक है क वतुल न मत हो ही नह पाता और टूट जाता है। इस लए संभोग को लंबाने क याएं ह, और संभोग को लंबाने क प तयां ह। अगर आधे घंटे के पार संभोग चला जाए तो वलय, वह व ुत का वतुल, काश-पुंज, ी और पु ष को घेरे ए दखाई पड़ सकता है। उसके च भी लए गए ह। और कुछ आ दवासी कौम अब भी इतने लंबे संभोग म गुजर सकती ह। और इस लए उनके वतुल बन जाते ह। तनाव के बढ़ने पर संभोग क अव ध का घटना साधारणतः स समाज म वतुल खोजना ब त मु ल है; क जतना तनाव च होगा, संभोग उतना ही णक होगा। असल म, जतना टस माइं ड होगा, उतना ज ी लन होगा उसका; जतना तनाव से भरा च है, उतना लन रत होगा। क तनाव से भरा च असल म संभोग नह खोज रहा है, रलीज खोज रहा है।

प म म से का जो उपयोग है, वह छ क से ादा नह रह गया--एक तनाव है जो फक जाता है; एक बोझ है सर पर जो नकल जाता है। ऊजा कम हो जाती है तो आप श थल हो जाते ह। रलै होना सरी बात है, श थल होना सरी बात है। रलै होने का मतलब है, व ाम का मतलब है: ऊजा भीतर है और आप व ाम म ह। और श थल होने का मतलब है: ऊजा फक गई और अब आप नढाल पड़े रह गए ह; अब ऊजा नह है तो आप श थल हो गए ह, इस लए सोच रहे ह क व ाम हो रहा है। तो प म म जतना तनाव बढ़ा है, उतना से जो है वह एक रलीज, एक तनाव से छु टकारा, एक भीतरी श के दबाव से मु , ऐसी हालत हो गई है। इस लए प म म ऐसे वचारक ह जो से को छ क से ादा मू देने को तैयार नह ह। जैसे नाक म एक खुजलाहट ई है और छ क दी है तो मन हलका हो गया है, बस इससे ादा मू देने को प म म लोग राजी नह ह कुछ। और उनका कहना ठीक भी है, क वे जो कर रहे ह, वह इतना ही है; वह इससे ादा मू का है भी नह । और पूरब म भी लोग उनसे धीरे धीरे राजी होते चले जा रहे ह, क पूरब भी तनाव होता चला जा रहा है। कह कसी र कसी पहाड़-पवत क कंदरा म कोई मल सकता है जो तनाव न हो, जसको स ता ने अभी न छु आ हो और जो वहां जी रहा हो जहां वृ और पौध और प य और पहाड़ क नया है, तो वहां अभी भी संभोग म वह वतुल बनता है। और या फर तं क याएं ह जनसे कोई भी वतुल बना सकता है। लंबे संभोग से दीघकालीन तृ उस वतुल के अनुभव बड़े अदभुत ह; क जब वह वतुल बनता है, तभी तु ठीक अथ म यह पता चलता है क तुम एक ए। ी और पु ष एक ए, इसका अनुभव तु वतुल बनने के पहले पता नह चलता। उसके बनते ही मैथुन म रत दो दो नह रह जाते; उस वतुल के बनते ही वे एक ही ऊजा के, एक ही श के वाह बन जाते ह; कोई चीज जाती और आती और घूमती ई मालूम पड़ने लगती है और दो मट जाते ह। यह वतुल जस मा ा म बनेगा, उसी मा ा म संभोग क आकां ा कम और री पर हो जाएगी। यह हो सकता है क एक दफा वतुल बन जाए तो वष भर के लए भी फर कोई इ ा न रह जाए, कोई कामना न रह जाए; क एक तृ क घटना घट जाए। इसे ऐसे ही समझ सकते हो क एक आदमी खाना खाए और वॉ मट कर दे, खाना खाए और उलटी कर दे, तो कोई तृ तो नह होगी! खाना खाने से तृ नह होती, खाना पचने से तृ होती है। आमतौर से हम सोचते ह--खाना खाने से तृ होती है। खाना खाने से कोई तृ नह होती, तृ तो पचने से होती है। संभोग के भी दो प ह: एक सफ खाना खाने का और एक पचने का। तो जसे हम आमतौर से संभोग कह रहे ह, वह सफ खाना खाना और उलटी कर देने जैसा है; उसम कह कुछ पच नह पाता। अगर पच जाए तो उसक तृ लंबी और गहरी है। और जो पचना है वह इस व ुत के वतुल बनने पर ही होता है। यह सफ सूचक है उसका क दोन क च -वृ यां एक- सरे म समा हत और लीन हो ग ; दोन अब दो न रहे, एक हो गए; दोन अब दो शरीर ही रहे, ले कन भीतर बहती ई ऊजा एक ही हो गई और छलांग लगाकर एक- सरे म वाह करने लगी।

गृह के लए गहरी काम-तृ ही काम-मु है यह जो त है, यह त बड़ी गहरी तृ दे जाती है। यह इस अथ म मने कहा था। इसका योग के लए तो ब त उपयोग है, साधक के लए इसका ब त उपयोग है। क साधक को अगर ऐसा मैथुन उपल हो सके, तो मैथुन क ज रत ब त कम हो जाती है। और जतने दन मैथुन क ज रत नह होती, उतने दन तक उसक अंतया ा आसान हो जाती है। और एक दफा अंतया ा शु हो जाए और भीतर क ी से संभोग होने लगे, तब तो बाहर क ी बेकार हो जाएगी, बाहर का पु ष बेकार हो जाएगा। गृह के लए चय का जो अथ है, वह यही हो सकता है। आप खयाल लेते ह? गृह के लए जो चय का अथ है, वह यही हो सकता है क उसका संभोग इतना तृ दायी हो क वष के लए बीच म चय का ण छूट जाए। और एक दफा यह ण छूट जाए और भीतर क या ा शु हो जाए तो फर बाहर क आव कता ही वलीन हो जाती है। गृह के लए कह रहा ं । सं ासी को ान ारा अंतमथुन क उपल सं के लए, जसने गृह ी को ीकार नह कया, उसके लए चय का अथ.उसके लए चय का अथ अंतरमण है, उसके लए अंतमथुन है। उसे सीधे ही अंतमथुन के योग खोजने पड़गे। अ था वह सफ बाहर क ी से नाम-मा को बचा आ दखाई पड़ेगा, उसका च तो दौड़ता ही रहेगा, भागता ही रहेगा। और जतनी ऊजा ी से मलने म य नह होती, उससे ादा ऊजा ी से मलने और कने क चे ा म य हो जाती है। तो सं ासी के लए थोड़ा सा अलग माग है। और वह थोड़े से माग म जो फक है वह इतना ही है क गृह के लए बाहर क ी से मलना ाथ मक होगा, तीय चरण पर अंतर क ी से मलना होगा; सं के लए अंतर क ी से सीधा मलना होगा, पहला चरण नह है। इस लए हर कसी को सं ासी बना देना नासमझी क हद है। असल म, सं ास देने का मतलब ही यह है क हम उसके अंतर म झांक सक और समझ सक क उसका पहला पु ष उसक अपनी ही ी से मलने क मता और पा ता म है या नह । अगर है, तो ही चय क दी ा दी जा सकती है, अ था पागलपन पैदा करगे और कुछ फायदा नह हो सकता है। ले कन लोग ह क दी ाएं दए चले जा रहे ह। कोई हजार सं ा सय का गु है, कोई दो हजार सं ा सय का गु है। उ कुछ पता नह क वे ा कर रहे ह! वे जस आदमी को दी ा दे रहे ह, वह अंतमथुन के यो है? यह तो र क बात है, यह भी पता नह क अंतमथुन भी कोई मैथुन है। इस लए मुझे जब भी सं ासी मलता है तो उसक गहरी तकलीफ से क होती है। गृह तो मुझे मल जाते ह जनक और तकलीफ भी ह, ले कन सं ासी मुझे नह मलता जसक और कोई तकलीफ हो; उसक तकलीफ से ही है। गृह क और तकलीफ भी ह, हजार तकलीफ ह, उनम से एक तकलीफ है। ले कन सं ासी क एक ही तकलीफ है। और इस लए सारा का सारा च उसका इसी एक ब पर अटका रह जाता है। तो बाहर क ी से बचने के तो उपाय बता रहे ह उसके गु , ले कन भीतर क ी से

मलने का कोई उपाय नह है उनके खयाल म। इस लए बाहर क ी से बचा नह जा सकता, सफ दखाया जा सकता है क बच रहे ह। बचना ब त मु ल है। वह तो वै ु तक ऊजा है, उसके लए जगह चा हए। अगर वह भीतर जाए तो बाहर जाने से केगी, अगर भीतर नह जा रही है तो बाहर जाएगी। कोई फकर नह क ी क ना क होगी, उससे भी काम चलेगा; वह क ना क ी के साथ भी बाहर बह जाएगी, वह भीतर नह जा सकती। ठीक ी के लए भी यही होगा। कुंवारी ी के लए अंतमथुन सरल ले कन ी और पु ष के मामले म यहां भी थोड़ा सा भेद है जो खयाल म ले लेना चा हए। इस लए अ र यह होगा क साधु के लए जतना से ा म बनेगा, उतना सा ी के लए नह बनता। इधर म ब त सी सा य से प र चत ं । सा ी के लए से इतना ा म नह बनता। उसका कारण है क पै सव है उसका से । अगर एक दफा उठाया जाए तो ा म बनता है, अगर बलकुल न उठाया गया हो तो उसे पता ही नह चलता क ा म है। ी को इनी शएशन चा हए से म भी। कोई पु ष एक दफा ी को ले जाए से म, इसके बाद उसम ती ऊजा उठनी शु होती है। ले कन अगर न ले जाई जाए, तो वह जीवन भर कुंवारी रह सकती है। उसके कुंवारे रहने क ब त सु वधा है, क पै सव है। वह खुद तो आ ामक नह है उसका च ; वह ती ा करती रहेगी, वह ती ा करती रहेगी। इस लए मेरा मानना है क ववा हत ी को दी ा देना खतरनाक है, जब तक क उसको अंतपु ष से मलना न सखाया जाए। कुंवारी लड़क दी ा ले सकती है, कुंवारे लड़के से वह ादा ठीक हालत म है। उसको जब तक एक दफा दी ा नह मली काम क , यौन क , तब तक वह ती ा कर सकती है। आ ामक नह है, इस लए। और अगर आ मण न हो बाहर से, तो अपने आप धीरे -धीरे उसके भीतर का पु ष उसक बाहर क ी से मलना शु कर देता है; क उसके नंबर दो का जो शरीर है, वह पु ष का है, वह आ ामक है। तो अंतमथुन ी के लए पु ष क बजाय ब त सरल है। मेरा मतलब समझ रहे हो न तुम? उसका जो सरा पु ष का शरीर है, वह आ ामक है। इस लए अगर बाहर से ी को पु ष न मले, न मले, न मले; उसे पता ही न हो बाहर के पु ष के ारा यौन म जाने का; तो उसके भीतर का पु ष उस पर हमला करना शु कर देगा, उसक ईथ रक बॉडी उस पर हमला करने लगेगी, और उसका मुख भीतर क तरफ मुड़ जाएगा, वह अंतमथुन म लीन हो जाएगी। पु ष के लए अंतमथुन जरा क ठन बात है, क पु ष का आ ामक शरीर नंबर एक का है, नंबर दो का शरीर उसका ी का है। नंबर दो का शरीर उस पर आ मण करके नह बुला सकता; जब वह जाएगा तभी नंबर दो का शरीर उसको ीकार करे गा। ये सारे भेद ह। और ये भेद अगर खयाल म ह तो सारी व ा इस सबके संबंध म सरी होनी चा हए। यह जो संभोग म व ुत-वतुल पैदा हो सके तो गृह के लए बड़ा सहयोगी है। और ऐसा ही वतुल, जब तु ारा अंतमथुन होगा तब भी पैदा होगा। इस लए जो साधारण

को संभोग म जो व ुत क ऊजा उसको घेर लेगी, वैसी ऊजा उस को जो भीतर के शरीर से संबं धत आ है, चौबीस घंटे घेरे रहेगी। इस लए तु ारे ेक शरीर पर तु ारा वतुल बढ़ता चला जाएगा। बु -पु ष: एक ऊजा पुंज इस लए ब त बार ऐसा हो सकता है, जैसे क बु के मर जाने के बाद कोई पांच सौ वष तक बु क कोई तमा नह बनाई गई और तमा क जगह बो धवृ क पूजा चली। तमा नह थी, सफ वृ ही था। मं दर भी बनाते थे तो उसम एक वृ , प र का वृ बनाते थे--या प र पर वृ को खोद देते थे--और नीचे वह जगह खाली रहती, जहां बु के बैठने क जगह थी। अब जो लोग पुरात या इ तहास क खोज करते ह, वे बड़ी मु ल म ह क बु क तमा न बनाई, बु का वृ बनाया? फर पांच सौ साल के बाद तमा बनाई? और पांच सौ साल तक वृ के नीचे जगह खाली छोड़ी? अब यह बड़े राज क बात है और पुरात वद को और इ तहास को कभी पता नह चल सकता, क इ तहास और पुरात से इसका कोई लेना-देना नह है। असल म, जन लोग ने बु को गौर से देखा था, उनका कहना था क जब गौर से देखो तो बु दखाई नह पड़ते, सफ वृ ही रह जाता है, सफ व ुत क ऊजा रह जाती है। गौर से अगर देखो तो बु वदा हो जाते ह, वहां सफ व ुत क ऊजा ही रह जाती है, वहां आदमी समा हो जाता है। जैसे म यहां बैठा ं और गौर से देखा जाऊं, सफ कुस दखाई पड़े और म वदा हो जाऊं। तो बु को ज ने गौर से देखा, वे कहते थे क बु दखाई नह पड़ते थे, वृ ही दखाई पड़ता था; और ज ने गौर से नह देखा, वे कहते थे, बु दखाई पड़ते थे। इस लए ऑथ टक उनका ही कहना था ज ने गौर से देखा था। पांच सौ साल तक उनक बात मानी गई। पांच सौ साल तक उनक बात मानी गई ज ने कहा था क नह , बु कभी नह दखाई पड़े; जब गौर से देखा तो वे नह थे, जगह खाली थी; वृ ही रह गया था पीछे। ले कन यह तब तक चल सका जब तक क गौर से देखनेवाले लोग थे; और गैर-गौर से देखनेवाल ने माना क भई, हमने तो कभी गौर से देखा नह , इस लए हमको तो दखाई पड़ते थे। ले कन जब यह वग खोता चला गया, तब यह बात मु ल हो गई क वृ अकेला हो, नीचे बु होने चा हए। फर पांच सौ साल बाद उनक तमा बनाई गई। यह ब त मजेदार बात है! ज ने जीसस को भी गौर से देखा उनको जीसस नह दखाई पड़े; ज ने महावीर को गौर से देखा उनको महावीर दखाई नह पड़े; ज ने कृ को गौर से देखा उनको कृ दखाई नह पड़े। अगर पूरी अटशन से इस तरह के लोग देखे जाएं तो वहां सफ व ुत क ऊजा ही दखाई पड़ेगी; वहां कोई दखाई नह पड़ेगा। यह.तु ारे ेक दो शरीर के बाद यह ऊजा बड़ी होती जाएगी। और चौथे शरीर के बाद यह ऊजा पूण हो जाएगी। पांचव शरीर पर ऊजा ही रह जाएगी। छठव शरीर पर यह ऊजा अलग दखाई नह पड़ेगी, यह ऊजा चांद-तार से, आकाश से, सबसे जुड़ जाएगी। सातव शरीर पर ऊजा भी दखाई नह पड़ेगी, पहले मैटर खो जाएगा, फर एनज भी खो जाएगी; पहले पदाथ खो जाएगा, फर श भी खो जाएगी।

तो इस लहाज से वह सोचने जैसी बात है। न वचार क पूरी उपल पांचव शरीर म : ओशो, न वचार क ायी उपल साधक को कस शरीर म होती है ? तादा के बना भी वचार आ सकते ह या वचार के लए तादा

ा चेतना और वषय के आव क है ?

न वचार क पूरी उपल पांचव शरीर म होती है, ले कन अधूरी झलक चौथे शरीर से शु हो जाती ह। चौथे शरीर म वचार चलते ह, ले कन बीच म दो वचार के जो खाली जगह होती है वह दखाई पड़ने लगती है। चौथे शरीर के पहले वह दखाई नह पड़ती। चौथे शरीर के पहले हम लगता है क वचार ही वचार ह, और वचार के बीच म जो गैप है, वह हम दखाई नह पड़ता। चौथे शरीर म गैप दखाई पड़ने लगता है और ए फे सस एकदम बदल जाती है। अगर तुमने कभी गे ा के कोई च देखे ह तो यह खयाल म आ सकेगा। समझ ल क एक सी ढ़य का च बनाया जा सकता है। वह च ऐसा बनाया जा सकता है क उसे अगर आप गौर से देखते रह तो एक बार ऐसा लगे क सी ढ़यां नीचे क तरफ आ रही ह और एक बार ऐसा लगे क सी ढ़यां ऊपर क तरफ जा रही ह। ले कन यह बड़े मजे क बात है क दोन चीज एक साथ नह देखी जा सकत , इसम एक को ही तुम देख सकते हो। दोबारा जब तु सरी चीज दखाई पड़ने लगेगी, तो पहली नदारद हो जाएगी। एक ऐसा च बनाया जा सकता है क दो आद मय के चेहरे आमने-सामने दखाई पड़--उनक नाक, उनक आंख, उनक दाढ़ी, वह सब दखाई पड़े। एक दफा ऐसा दखाई पड़े क दो आदमी आमने-सामने चेहरे करके बैठे ह। इनको काला पोत दया है चेहर को; बीच म जो जगह खाली है वह सफेद है। और एक दफा ऐसा दखाई पड़े क बीच म एक गमला रखा आ है। तो गमले क कगार दखाई पड़--वह नाक और मुंह, वे गमले क कगार हो जाएं । ले कन ये दोन बात एक साथ दखाई नह पड़ सकती ह। जब तु दो चेहरे दखाई पड़गे तो गमला नह दखाई पड़ेगा, और जब तु गमला दखाई पड़ेगा तो तुम पाओगे क वे दो चेहरे कहां गए! वे दो चेहरे नह दखाई पड़गे। इसक तुम लाख को शश करो, तो भी गे ा म ए फे सस बदल जाएगी, तब तुम दोन न देख पाओगे। जब तु ारी ए फे सस चेहरे पर जाएगी तो गमला नदारद हो जाएगा, जब तु ारी ए फे सस गमले पर जाएगी तो चेहरे नदारद हो जाएं गे। तीसरे शरीर तक हमारा जो माइं ड का गे ा है, उसक ए फे सस वचार के ऊपर है। ‘राम आया’.तो राम दखाई पड़ता है, आया दखाई पड़ता है। राम और आया के बीच म जो खाली जगह है, और राम के पहले जो खाली जगह है, और आया के बाद म जो खाली जगह है, वह नह दखाई पड़ती। ए फे सस ‘राम आया’ पर है। तो वचार दखाई पड़ता है, बीच का अंतराल नह दखाई पड़ता।

चौथे शरीर म फक होना शु होता है। अचानक तु ऐसा लगता है क राम आया, यह मह पूण नह है। जब राम नह आया था, तब खाली जगह थी; और जब राम आया, तब खाली जगह थी; और जब राम चला गया, तब खाली जगह थी। वह खाली जगह तु दखाई पड़नी शु हो जाती है। चेहरे वदा होते ह और गमला दखाई पड़ने लगता है। और जब तु खाली जगह दखाई पड़ती है, तब तुम वचार नह कर सकते। दो म से एक ही कर सकते हो: जब तक तुम वचार देखोगे तो वचार कर सकते हो, जब तुम खाली जगह देखोगे तो खाली हो जाओगे। ले कन यह बदलता रहेगा चौथे शरीर म: कभी गमला दखाई पड़ने लगेगा, कभी दो चेहरे दखाई पड़ने लगगे। यह चलता रहेगा--कभी वचार दखाई पड़गे, कभी खाली जगह दखाई पड़ेगी। तो मौन भी आएगा और वचार भी चलगे। मौन और शू म फक मौन म और शू म फक यही है। मौन का मतलब यह है क अभी वचार समा नह हो गए, ले कन ए फे सस बदल गई है। अब वाणी से च हट गया है और चुप होने को रसपूण पा रहा है; ले कन अभी वाणी नह हट गई है। वाणी से च हट गया है, वाणी से ान हट गया है, वाणी से अटशन हट गई है, अटशन चली गई है मौन पर, ले कन वाणी अभी आती है; और कभी-कभी जब पकड़ लेती है ान को तो मौन खो जाता है और वाणी चलने लगती है। तो चौथे शरीर क आ खरी घ ड़य म इन दोन पर च बदलता रहेगा। पांचव शरीर पर वचार एकदम खो जाएं गे और शू रह जाएगा। इसको मौन नह कह सकते; क मौन जो है वह मुखरता क ही अपे ा म है, बोलने क ही अपे ा म है। मौन का मतलब है--न बोलना। शू का मतलब है--न बोलना और न न-बोलना, दोन नह ह वहां। वहां न गमला रहा, न दो चेहरे रहे, कागज खाली हो गया। अब अगर कोई पूछे क चेहरा है क गमला? तो तुम कहोगे, दोन नह ह। पांचव शरीर पर तो न वचार पूरी तरह घ टत होगा। चौथे शरीर पर उसक झलक आनी शु हो जाएगी--कभी दखाई पड़ेगा। ले कन न वचार भी सदा दो वचार के बीच म ही दखाई पड़ेगा। पांचव शरीर पर न वचार दखाई पड़ेगा, वचार नह दखाई पड़ेगा। तीसरे शरीर म वचार के साथ पूरा तादा अब सरा सवाल तु ारा जो है क ा वचार के साथ आइड टटी, तादा होना ज री है तभी वचार आते ह? या ऐसा भी हो सकता है क कोई वचार से तादा न हो और वचार आएं ? तीसरे शरीर तक तो आइड टटी और वचार का आना सदा साथ होता है। तु ारा तादा होता है और वचार आते ह। इनम कभी फासले का पता ही नह चलेगा। तु ारा वचार और तुम एक ही चीज हो, दो नह हो। जब तुम ोध करते हो तो यह कहना गलत है क तुम ोध करते हो, यही कहना उ चत है क तुम ोध हो जाते हो; क ‘ ोध करते हो’ यह तभी कहा जा सकता है जब तुम न भी कर सको; क करने का मतलब ही यह होता है. अगर म क ं क म हाथ हलाता ं , और फर तुम मुझसे कहो क अ ा, जरा रोककर दखाइए। म क ं , वह तो नह हो सकता; हाथ तो हलता ही रहेगा। तो फर तुम कहोगे क फर आप हलाते ह, इसका ा मतलब रहा? क हए, हाथ हलता है। अगर आप हलाते ह,

तो रोककर दखाइए, फर हलाकर दखाइए। तो अगर म रोक न सकूं तो हलाने क माल कयत बेकार है; उसका कोई मतलब नह है। चूं क तुम वचार को रोक नह सकते तीसरे शरीर तक, इस लए तु ारी आइड टटी पूरी है, तुम ही वचार हो। इस लए तीसरे शरीर तक आदमी के वचार पर अगर चोट करो तो उस पर ही चोट हो जाती है। अगर कह दो क आपक बात गलत है, तो उसको ऐसा नह लगता क मेरी बात गलत है; उसको लगता है, म गलत ं । झगड़ा जो शु होता है, वह बात के लए नह होता, फर वह म के लए झगड़ा शु होता है; क आइड टटी पूरी है; तु ारे वचार को चोट प ं चाना, मतलब तु चोट प ं चाना हो जाता है। भला तुम कहो क कोई बात नह है, आप मेरे वचार के खलाफ ह। ले कन भीतर तुम जानते हो क आपक खलाफत हो गई है। और कई बार तो ऐसा होता है क वचार से कोई मतलब नह होता, चूं क वह आपका है, इस लए झगड़ा करना पड़ता है; और कोई मतलब नह होता उससे। क आप कह चुके क मेरी इससे आइड टटी है--यह मेरा मत है, यह मेरी कताब है, यह मेरा शा है, यह मेरा स ांत है, यह मेरा वाद है, तो अब झगड़ा शु होगा। तीसरे शरीर तक तु ारे और वचार के बीच कोई फासला नह होता, तुम ही वचार होते हो। चौथे शरीर म डगमगाहट शु होती है, तु ऐसी झलक मलने लगती ह क म अलग ं और वचार अलग है। ले कन, फर भी तुम अपने को असमथ पाते हो क वचार को रोक सको। क ब त गहरी जड़ म संबंध रह जाता है, ऊपर से संबंध अलग मालूम होने लगता है; शाखाओं पर अलग हो जाता है, एक शाखा पर तुम बैठ जाते हो, सरे पर वचार बैठ जाता है। तु दखाई तो पड़ता है अलग है, ले कन नीचे जड़ म तुम और वचार एक होते हो। इस लए लगता भी है क अलग है; लगता भी है क अगर मेरा संबंध टूट जाए, तो बंद हो जाएगा; ले कन बंद भी नह होता, संबंध भी कसी गहरे तल पर बना चला जाता है। चौथे शरीर पर फक पड़ना शु होता है। तु यह झलक मलने लगती है क वचार कुछ अलग, म कुछ अलग; वचार कुछ अलग, म कुछ अलग। ले कन अभी भी तुम इसक घोषणा नह कर सकते। और अभी भी वचार का आना यां क होता है--न तो तुम रोक सकते हो, न तुम ला सकते हो। जैसे मने यह बात कही क ोध को रोको, तो पता चलेगा क तुम मा लक हो। इससे उलटा भी कहा जा सकता है क अभी ोध को लाकर बताओ, तब समझगे क मा लक हो। तो ला भी नह सकते। कहोगे क कैसे ले आएं ! लाएं कैसे? और अगर तुम ले आओ, तो बस उसी दन से तुम मा लक हो जाओगे, उसी दन से तुम रोक भी सकते हो-- कसी भी ण। माल कयत जो है वह लाने, ले जाने म अलग-अलग नह है; अगर तुम ले आए तो तुम रोक भी सकते हो। और यह बड़े मजे क बात है क रोकना जरा क ठन है, लाना जरा सरल है। इस लए अगर माल कयत लानी हो तो लाने से शु करना सदा आसान है, बजाय रोकने के। क लाती हालत म तुम शांत होते हो न! रोकती हालत म तुम ोध म होते ही हो, तो इस लए तुम अपने होश म भी नह होते, रोकोगे उसे कैसे? इस लए लाने के यास से

शु आत करना सदा आसान पड़ता है, बजाय रोकने के यास के। जैसे तु हं सी आ रही है और तुम नह रोक पा रहे, यह जरा क ठन है; ले कन नह आ रही है और हं सना शु करो, तो तुम दो-चार मनट म हं सी ले आओगे। और जब वह आ जाएगी तब तु सी े ट भी पता चल जाएगा क आ सकती है--कहां से आती? कैसे आती? तब तुम रोकने का भी रह जान सकते हो कसी दन, रोका भी जा सकता है। न वचार क झलक से तादा का टूटना चौथे शरीर म तु फक तो दखाई पड़ने लगेगा क म अलग ं और वचार कह से आते ह, म ही नह ं । इस लए चौथे शरीर म जहां-जहां न वचार होगा, जो मने पहले कहा, वह वह तु ारा सा ी भी आ जाएगा; और जहां-जहां वचार होगा, वहां-वहां सा ी खो जाएगा। वे जो न वचार के गै ह, अंतराल ह, वहां-वहां तुम पाओगे क ये वचार तो अलग ह, म अलग ं , तादा नह है। ले कन अभी भी तुम अवश इसको जानोगे भर, अभी ब त कुछ कर न पाओगे। ले कन करने क सारी चे ा चौथे शरीर म ही करनी पड़ती है। इस लए चौथे शरीर क मने दो संभावनाएं कह : एक जो सहज है वह, और एक जो साधना से उपल होगी। उन दोन के बीच तुम डोलते रहोगे। और जस दन साधना से तुम ववेक को, चौथे शरीर क सरी संभावना को--पहली संभावना वचार, सरी संभावना ववेक-- सरी संभावना को उपल हो जाओगे, उसी दन चौथा शरीर भी छूटे गा और तादा भी छूटे गा। पांचव शरीर म एक साथ ही.जब तुम पांचव शरीर म जाओगे तो दो बात छूटगी: चौथा शरीर छूटे गा और तादा छूटे गा। पांचव शरीर म च -वृ य पर पूण माल कयत पांचव शरीर म तुम वचार को चाहोगे तो लाओगे, नह चाहोगे तो नह लाओगे। वचार पहली दफा साधन बनेगा और आइड टटी पर नभर नह रह जाएगा। तुम चाहोगे क ोध लाना है तो तुम ोध ला सकोगे, और तुम चाहोगे क ेम लाना है तो तुम ेम ला सकोगे, और तुम चाहोगे क कुछ नह लाना है तो तुम कुछ नह ला सकोगे, और तुम चाहो क आधे ोध को वह कह दो को, तो वह वह क जाएगा। और तुम जस वचार को लाना चाहोगे वह आएगा और जसको नह लाना चाहोगे उसक कोई साम नह रह जाएगी। गुर जएफ क जदगी म इस तरह क ब त घटनाएं ह, इस लए लोग ने तो उसको समझा क वह आदमी कैसा आदमी है! अ र तो वह ऐसा करता क अगर उसके आसपास दो आदमी बैठे ह, तो एक क तरफ इस तरह से देखता क भारी ोध म है और सरे क तरफ इस तरह से देखता क भारी ेम म है--इतने ज ी बदल लेता! और वे दो आदमी दो रपोट लेकर जाते। दोन साथ मलने आए थे और एक आदमी कहता क बड़ा खतरनाक अजीब आदमी है; सरा कहता, कतना ेमी आदमी है! यह बलकुल संभव है, पांचव शरीर पर बलकुल आसान है। इस लए गुर जएफ बलकुल समझ के बाहर हो गया लोग को क वह ा कर रहा है! वह चेहरे पर हजार तरह के भाव त ाल ला सकता था। उसम कोई क ठनाई न थी उसको। और लाने का कुल कारण इतना था क पांचव शरीर म तुम पहली दफा मा लक होते हो, तुम जो चाहो! तब ोध और ेम और घृणा और मा.और सब.और तु ारे सारे वचार तु ारा खेल हो

जाते ह। इसके पहले तु ारी जदगी थे, इसके बाद तु ारा खेल ह। और इस लए तुम जब चाहो तब व ाम पा सकते हो। खेल से व ाम आसान है, जदगी से व ाम ब त मु ल है। अगर म खेल म ही ोध कर रहा ं , तो तु ारे चले जाने के बाद इस कमरे म ोध म नह बैठा र ं गा। और अगर म खेल म ही बोल रहा ं , तो तु ारे चले जाने के बाद इस कमरे म बोलता नह र ं गा। ले कन अगर बोलना मेरी जदगी है, तो तुम चले जाओगे तो म बोलता र ं गा। कोई नह सुनेगा तो म ही सुनूंगा, म ही बोलूंगा; क वह मेरी जदगी है; वह कोई खेल नह है जससे व ाम हो जाए, वह मेरी जदगी है जो चौबीस घंटे मुझे पकड़े ए है। तो वह आदमी रात म भी बोलेगा, सपने म भी बोलेगा, सपने म भी सभा इक ी कर लेगा, वहां भी बोलता रहेगा। सपने म भी लड़ेगा, झगड़ेगा; वही करे गा जो दन म कया है; वह चौबीस घंटे करे गा; क वह जदगी है, वह उसका ाण है। वचार: अपने या पराए? पांचव शरीर पर तु ारी आइड टटी टूट जाती है। इस लए पांचव शरीर पर पहली दफा तुम अपने वश से मौन होते हो, शू होते हो, और जब ज रत होती है तो तुम वचार करते हो। तो पांचव शरीर से वचार का पहली दफा उपयोग शु होता है। अगर हम इसको ऐसा कह तो ादा ठीक होगा क पांचव शरीर के पहले वचार तु करता है और पांचव शरीर से तुम वचार को करते हो। उसके पहले तो तु कहना ठीक नह है क हम वचार करते ह। और पांचव शरीर पर एक बात और पता चलती है क वचार केवल हमारा ही होता है, ऐसा भी नह है, सरे के वचार भी हमम वेश करते रहते ह। ऐसा नह है क हमारा वचार हमारा ही है, उसम ब त चार तरफ के वचार हमम वेश करते रहते ह। और हम अ र खयाल म नह होते क हम कस वचार को अपना कह रहे ह! वह कसी और का हो सकता है। श शाली वचार क उ लंबी एक हटलर पैदा होता है, तो पूरे जमनी को अपना वचार दे देता है; और पूरे जमनी का आदमी समझता है क ये मेरे वचार ह। ये उसके वचार नह ह। एक ब त डाइने मक आदमी अपने वचार को वक ण कर रहा है और लोग म डाल रहा है, और लोग उसके वचार क सफ त नयां ह। और यह डाइना म इतना गंभीर और इतना गहरा है, क मोह द को मरे हजार साल हो गए, जीसस को मरे दो हजार साल हो गए, यन सोचता है क म अपने वचार कर रहा ं । वह दो हजार साल पहले जो आदमी छोड़ गया है तरं ग, वे अब तक पकड़ रही ह। महावीर या बु या कृ या ाइ --अ े या बुरे कोई भी तरह के डाइने मक लोग--जो छोड़ गए ह वह तु पकड़ लेता है। तैमूरलंग ने अभी भी पीछा नह छोड़ दया है मनु ता का, और न चंगीजखां ने छोड़ा है; न कृ ने छोड़ा है, न राम ने छोड़ा है। पीछा वे नह छोड़ते। उनक तरं ग पूरे व डोल रही ह। तुम जस तरं ग को पकड़ने क हालत म होते हो, उसको पकड़ लेते हो। वचार के सागर से घरा इस लए अ र ऐसा हो जाता है क सुबह एक आदमी ब त भला था और दोपहर होते-

होते बुरा हो गया। सुबह वे राम क तरं ग म रहे ह , दोपहर चंगीजखां क तरं ग म ह! रसे वटी है, और समय से फक पड़ जाता है। सुबह भखमंगा तु ारे दरवाजे पर भीख मांगने आता है, क सुबह सूरज के उगने के साथ बुरी तरं ग का भाव सवा धक कम होता है पृ ी पर। सूरज के थकते-थकते भाव बढ़ना शु हो जाता है। सांझ को भखारी भीख मांगने नह आता, क सांझ को आशा नह है दया क कसी से भी। सुबह थोड़ी आशा है, क अगर सुबह उठे आदमी से हम कहगे क दो पैसा दे दे, तो वह एकदम से इनकार न कर पाएगा; सांझ को हां भरना जरा मु ल हो जाएगा। दन भर म उसका सब हां थक गया है बुरी तरह से, अब वह इनकार करने क हालत म है। अब उसक सारी च - दशा और है, सारी पृ ी का वातावरण भी और है। तो जो वचार हम लगते ह हमारे ह, वे भी हमारे नह ह। यह तु पांचव शरीर म ही पता चलेगा जाकर क ा आ यजनक है-- वचार भी बाहर से आता और जाता है! तुम पर वचार भी आता और जाता है; और तु पकड़ता है और छोड़ता है। और हजार तरह के वचार, और ब त कं ा ड री, आपस म वरोधी वचार आदमी को पकड़े ए ह। इतने वरोधी वचार पकड़े ए ह, इसी लए इतना कन ूजन है, एक-एक आदमी इतना कन ू है। अगर तु ारे ही वचार ह , तो कन ूजन क कोई ज रत नह है। ले कन एक हाथ चंगीजखां पकड़े ए ह, सरा हाथ कृ पकड़े ए ह, अब कन ूजन होनेवाला है; क दोन के वचार ती ा कर रहे ह क तुम कब तैयारी दखाओ, वे तु ारे भीतर वेश कर जाएं । वे सब मौजूद ह चार तरफ। पांचव शरीर म वचार-मु यह पांचव शरीर म तु पता चलेगा, तु ारी आइड टटी पूरी टूट जाएगी। ले कन तब, जैसा मने कहा क जो बड़ा भारी फक होगा वह यह होगा क इसके पहले तु ारे पास थॉ स थे, वचार थे, इसके बाद तु ारे पास थ कग होगी, वचारणा होगी। और इनम भी फक है। वचार आण वक, एटा मक चीज ह। तुम पर आते ह, पराए होते ह सदा। ऐसा अगर हम कह क वचार सदा पराए होते ह, तो हजा नह है। वचारणा अपनी होती है, वचार सदा पराए होते ह; थ कग अपनी होती है, थॉट हमेशा पराया होता है। तो पांचव शरीर से तुम म थ कग पैदा होगी, तुम वचार कर सकोगे। तुम सफ वचार को पकड़कर संगृहीत कए ए नह बैठे रहोगे। और इस लए पांचव शरीर क जो वचारणा है, उसका कोई बोझ तुम पर नह होगा, वह तु ारी अपनी है। और पांचव शरीर पर चूं क वचारणा का ज हो जाएगा, उसको ा कहो--जो भी नाम देना चाह, हम द--पांचव शरीर पर चूं क तु ारी अपनी इन ूशन, अपनी ा, अपनी बु , अपनी मेधा जग जाएगी, इस पांचव शरीर के बाद तुम पर सर के वचार का सम भाव ीण हो जाएगा। इस अथ म भी तुम आ वान बनोगे, इस अथ म भी तुम आ ा को उपल हो जाओगे, तुम यं हो जाओगे; क तु ारे पास अब अपनी वचारणा है, अपनी वचारश है; और तु ारे पास देखने क अपनी आंख है, अपना दशन है। इसके बाद तुम जो चाहोगे, वह आ जाएगा; तुम जो चाहोगे, वह नह आएगा; तुम जो सोचोगे, सोच सकोगे; तुम जो नह सोचोगे, नह सोच सकोगे। तुम मा लक हो। और यहां से आइड टटी का कोई

सवाल नह रह जाता है। छठव शरीर म वचारणा भी अनाव



: और छठव शरीर म?

छठव शरीर म वचारणा क भी कोई ज रत नह रह जाती है। चौथे शरीर तक वचार क ज रत है; पांचव शरीर पर वचारणा, थ कग, ा; छठव शरीर पर वह भी समा हो जाती है। क छठव शरीर पर तुम वहां होते हो जहां कोई ज रत ही नह होती, तुम का क हो जाते हो; तुम के साथ एक हो जाते हो; अब कोई सरा बचता नह । असल म, सब वचार सरे के साथ संबंध है। चौथे शरीर के पहले का जो वचार है, वह मू त संबंध है-- सरे के साथ। पांचव शरीर पर जो वचार है वह अमू त संबंध है, ले कन सरे के ही साथ। आ खर वचार क ज रत ा है? वचार क ज रत है क सरे से संबं धत होना है। चौथे तक मू त संबंध है, पांचव पर जा त संबंध है, छठव पर संबंध के लए कोई नह बचता-- रलेटेड नह बचते, का क हो गए, तुम और म एक ही हो गए। तो अब तो कोई सवाल नह बचता, वचार क अब कोई जगह नह बचती जहां वचार खड़ा हो। छठव शरीर म केवल ान शेष इस लए शरीर है छठवां, वहां कोई वचार नह है। म वचार नह है। इस लए अगर ठीक से कह तो हम इसको ऐसा कह सकते ह क म ान है। असल म, वचार जो है--चौथे शरीर तक मू त वचार--गहन अ ान है; क वह इस बात क खबर है क हम वचार क ज रत है अ ान से लड़ने के लए। पांचव शरीर म भीतर तो ान है, ले कन बाहर जो हमसे अ है, उसके बाबत अब भी अ ान है, अभी भी वह अ दखाई पड़ रहा है। इस लए पांचव शरीर म वचार करने क ज रत है। छठव शरीर म बाहर और भीतर कोई भी नह रहा--बाहर-भीतर न रहा, म-तू न रहा, यह-वह न रहा--अब कोई फासला न रहा जहां वचार क ज रत है; अब तो जो है सो है। इस लए छठव शरीर म ान है, वचार नह है। सातवां शरीर ानातीत है सातव म ान भी नह है; क जो जानता था, अब वह भी नह है; जो जाना जा सकता था, वह भी नह है। इस लए सातव म ान भी नह है। अ ान नह , ानातीत है सातव अव ा-- बयांड नालेज है। कोई चाहे तो उसको अ ान भी कह सकता है। इस लए अ र ऐसा होता है क परम ानी और परम अ ानी कभी-कभी बलकुल एक से मालूम पड़ते ह। जो परम ानी है उसम और परम अ ानी म कई बार बड़ा एक सा वहार होगा। इस लए छोटे ब े म और ान को उपल बूढ़े म बड़ी समानता हो जाएगी; व ुतः नह , ले कन बड़ा ऊपर से एक सा दखाई पड़ने लगेगा। कभी-कभी परम संत का वहार बलकुल ब े जैसा हो जाएगा; कभी-कभी ब े के वहार म परम संतता क झलक दखाई पड़ेगी। और कभी-कभी परम ानी जो है वह परम अ ानी हो

जाएगा, बलकुल जड़भरत हो जाएगा। वह ऐसा मालूम पड़ने लगेगा क इससे अ ानी और कौन होगा! क वह भी बयांड नालेज है और यह बलो नालेज है। एक ान के आगे चला गया, एक ान के अभी पीछे खड़ा है; इन दोन म एक समानता है क ान के बाहर ह; दोन ान के बाहर ह, इतनी समानता है। समा ध के तीन कार : ओशो, जसे आप समा ध कहते ह, वह कस शरीर क उपल

है ?

असल म, ब त तरह क समा ध ह। इस लए एक समा ध तो चौथे शरीर और पांचव शरीर के बीच म घटे गी। और यह भी ान रहे क समा ध जो है, वह सदा दो शरीर के बीच म घटती है; वह सं ाकाल है। समा ध जो है वह कसी एक शरीर क घटना नह है, दो शरीर के बीच क घटना है; वह सं ाकाल है। जैसे अगर कोई पूछे क सं ा, सांझ दन क घटना है क रात क ? तो हम कहगे क सांझ न दन क घटना है, न रात क ; रात और दन के बीच क घटना है। ऐसे ही समा ध जो है, एक समा ध, पहली समा ध चौथे और पांचव शरीर के बीच म घटती है। चौथे-पांचव शरीर के बीच म जो समा ध घटती है, उसी से आ ान उपल होता है। एक समा ध पांचव और छठव शरीर के बीच म घटती है। पांचव और छठव शरीर के बीच म जो समा ध घटती है, उससे ान उपल होता है। एक समा ध छठव और सातव के बीच म घटती है। छठव और सातव के बीच म जो घटती है, उससे नवाण उपल होता है। तो तीन समा धयां ह साधारणतः। तो ये तीन समा धयां तीन शरीर के बीच म घटती ह। चौथे शरीर म समा ध क मान सक झलक और एक फा समा ध को भी समझ लेना चा हए, जो समा ध नह है, ले कन चौथे शरीर म घटती है; ले कन समा ध जैसी तीत होती है। जसको जापान म झेन सतोरी कहते ह, वह सतोरी इसी तरह क समा ध है। वह व ुतः समा ध नह है। जैसे एक च कार को घट जाता है कभी, एक मू तकार को घटता है, एक संगीत को घटता है-- क कभी वह लीन हो जाता है पूरी तरह और बड़े आनंद का अनुभव करता है। ले कन वह चौथे, साइ कक शरीर क घटनाएं ह। अगर चौथे शरीर म च बलकुल समा हत और लीन हो जाए कसी भी बात को लेकर--सुबह सूरज को उगता देखकर, एक संगीत क धुन सुनकर, एक नृ को देखकर, एक फूल को खलते देखकर--अगर च बलकुल लीन हो जाए, तो एक फा समा ध, एक म ा समा ध घ टत होती है। ऐसी म ा समा ध ह ो सस से पैदा हो सकती है। ऐसी म ा समा ध म ा श पात से घ टत हो सकती है। ऐसी म ा समा ध शराब से, गांजे से, चरस से, मे लीन से, मा रजुआना से, एल एस डी से पैदा हो सकती है। तो चार तरह क समा धयां , अगर ऐसा समझ तो। तीन समा धयां जो ऑथ टक,

ामा णक समा धयां ह, उनम भी तारत ता है। और एक चौथी झूठी समा ध, जो बलकुल समा ध जैसी मालूम पड़ती है, ले कन सफ समा ध का खयाल होती है, घटना नह होती। और धोखे म डाल सकती है। और अनेक लोग को धोखे म डाला आ है। और कस शरीर म घटती है? सफ फा समा ध चौथे शरीर म घटती है। सफ झूठी समा ध जो है, वह सं ा नह है; वह कसी शरीर म घटती है; वह चौथे शरीर म घटती है। बाक तीन समा धयां शरीर के बाहर घटती ह, सं मण काल म, जब एक शरीर से तुम सरे म जा रहे होते हो--तब। समा ध एक ार है, पैसेज है। चौथे से पांचव के बीच म एक समा ध है, जससे आ ान उपल होता है। पहली समा ध पर आदमी क सकता है। पहली तो ब त बड़ी बात है, आमतौर से तो चौथे क फा समा ध पर क जाता है। क वह सरल है ब त; खच कम पड़ता, मेहनत नह होती; और ऐसे ही पैदा हो सकती है। उसम क जाता है। पहली समा ध ब त क ठन बात हो जाती है--चौथे से पांचव क या ा। सरी समा ध और क ठन हो जाती है--आ ा से परमा ा क या ा। और तीसरी तो सवा धक क ठन हो जाती है। तो उसके लए जो श खोजे गए, वे सब क ठन ह--व -भेद! वह सवा धक क ठन है--होने से न होने क या ा, जीवन से मृ ु म छलांग, अ से अन म डूब जाना। तो वे तीन समा धयां ह। : उनके कोई नाम ह?

पहली को आ समा ध कहो, सरी को समा ध कहो, तीसरी को नवाण समा ध कहो; और पहली को.और भी पहली को, म ा समा ध कहो। और उससे सबसे ादा बचने क ज रत है, क वह ज ी से उपल हो सकती है, चौथे शरीर म घटती है। और इसको भी एक शत और कसौटी समझ लेना क अगर कसी शरीर म घटे तो फा होगी। दो शरीर के बीच म ही घटनी चा हए। वह ार है। उसको बीच कमरे म होने क कोई ज रत नह है। उसको कमरे के बाहर होना चा हए और सरे कमरे के जोड़ पर होना चा हए। वह पैसेज है, माग है। कुंड लनी श और सप म समानताएं : ओशो, कुंड लनी श का तीक सांप को माना गया है ? कृपया उसके सभी कारण का उ ेख कर। थयोसाफ के एं बलम, तीक म एक वृ ाकार सांप है जसक पूंछ मुंह के अंदर है । रामकृ मशन के तीक म सांप के फन को श करती ई उसक पूंछ है । कृपया इनका अथ भी कर।

कुंड लनी के लए सप का तीक बड़ा मौजूं है। शायद उससे अ ा कोई तीक नह है। इस लए कुंड लनी म ही नह , सप ने ब त-ब त या ाएं क ह, उसके तीक ने। और

नया के कसी कोने म भी ऐसा नह है क सप कभी न कभी उस कोने के धम म वेश न कर गया हो। क सप म कई खू बयां ह जो कुंड लनी से तालमेल खाती ह। पहली तो बात यह क सप का खयाल करते ही सरकने का खयाल आता है। और कुंड लनी का पहला अनुभव कसी चीज के सरकने का अनुभव है, कोई चीज जैसे सरक गई--जैसे सप सरक गया। सप का खयाल करते ही एक सरी चीज खयाल म आती है क सप के कोई पैर नह ह, ले कन ग त करता है; ग त का कोई साधन नह है उसके पास, कोई पैर नह ह, ले कन ग त करता है। कुंड लनी के पास भी कोई पैर नह ह, कोई साधन नह है, नपट ऊजा है, फर भी या ा करती है। तीसरी बात जो खयाल म आती है क सप जब बैठा हो, व ाम कर रहा हो, तो कुंडल मारकर बैठ जाता है। जब कुंड लनी बैठी हालत म होती है, हमारे शरीर क ऊजा जब जगी नह है, तो वह भी कुंडल मारे ही बैठी रहती है। असल म, एक ही जगह पर ब त लंबी चीज को बैठना हो तो कुंडल मारकर ही बैठ सकती है, और तो कोई उपाय भी नह है उसके बैठने का। वह कुंडल लगाकर बैठ जाए तो ब त लंबी चीज भी ब त छोटी जगह म बन जाए। और ब त बड़ी श ब त छोटे से ब पर बैठी है, तो कुंडल मारकर ही बैठ सकती है। फर सप जब उठता है, तो एक-एक कुंडल टूटते ह उसके--जैस-े जैसे वह उठता है उसके कुंडल टूटते ह। ऐसा ही एक-एक कुंडल कुंड लनी का भी टूटता आ मालूम पड़ता है, जब कुंड लनी का सप उठना शु होता है। सप कभी खलवाड़ म अपनी पूंछ भी पकड़ लेता है। सप का पूंछ पकड़ने का तीक भी क मती है। और अनेक लोग को वह खयाल म आया क वह पकड़ने का, पूंछ को पकड़ लेने का तीक बड़ा क मती है। वह क मती इस लए है क जब कुंड लनी पूरी जागेगी, तो वह वतुलाकार हो जाएगी और भीतर उसका वतुल बनना शु हो जाएगा--उसका फन अपनी ही पूंछ पकड़ लेगा; सांप एक वतुल बन जाता। अब कोई तीक ऐसा हो सकता है क सांप के मुंह ने उसक पूंछ को पकड़ा। अगर पु ष साधना क से तीक बनाया गया होगा तो मुंह पूंछ को पकड़ेगा--आ ामक होगा। और अगर ी साधना के ान से तीक बनाया गया होगा तो पूंछ मुंह को छूती ई मालूम पड़ेगी--सम पत पूंछ है वह; मुंह ने पकड़ी नह है। यह फक पड़ेगा तीक म, और कोई फक पड़नेवाला नह है। सह ार म कुंड लनी का पूरा व ार यह जो सप का जो फन है, यह भी साथक मालूम पड़ा। क पूंछ तो उसक पतली होती है, ले कन उसका फन बड़ा होता है। और जब कुंड लनी पूरी क पूरी जागती है, तो सह ार म जाकर फन क भां त फैल जाती है। उसम ब त फूल खलते ह, वह ब त व ार ले लेती है; पूंछ तब उसक ब त छोटी रह जाती है। सप जब कभी खड़ा होता है तो बड़ा आ यजनक है: वह पूंछ के बल पूरा खड़ा हो जाता है। वह भी एक मरे कल है, एक चम ार है। सप म ह ी नह होती, वह बना ह ी का जानवर है, ले कन वह पूंछ के बल खड़ा हो सकता है। और जब बना ह ी का जानवर, कोई रगता आ पशु--सप जैसा-- बना ह य के, पूंछ के बल पूरा खड़ा हो जाता है, तो वह

नपट ऊजा के सहारे खड़ा है। और कोई उपाय नह ; उसके पास और ठोस साधन नह ह खड़े होने के-- सफ श के बल, सफ संक के बल खड़ा है। खड़ा होने म कोई ब त मैटी रयल ताकत नह है उसके पास। समझ रहे ह मेरा मतलब? तो जब हमारी कुंड लनी पूरी जागकर खड़ी होती है तो उसके पास कोई मैटी रयल सहारा नह होता, एकदम इ ैटी रयल फोस.इस लए सप तीक क तरह लगा। और भी कई कारण थे जो सप म लगे साथक। जैस,े एक अथ म सप ब त इनोसट है, बड़ा भोला है। इस लए भोलेशंकर उसको सर पर रखे ए ह। वह ब त भोला है; एकदम भोला है। ऐसे अपनी तरफ से कसी को सताने नह जाता। ले कन अगर कोई छेड़ दे तो खतरनाक स हो सकता है। तो यह खयाल भी कुंड लनी म है क कुंड लनी ऐसे ब त इनोसट श है, अपनी तरफ से तु परे शान नह करती। ले कन अगर तुम गलत ढं ग से छेड़ दो तो खतरे म पड़ सकते हो, भारी खतरा हो सकता है। इस लए गलत ढं ग से छेड़ना खतरनाक है, वह बोध भी खयाल म है। ये सारी बात को ान म रखकर वह तीक.उससे बेहतर कोई तीक दखाई नह पड़ा-सप से बेहतर। और सारी नया म सप जो है वह वज़डम का तीक भी है, ा का तीक भी है। जीसस का वचन है: सप जैसे बु मान, चालाक और कबूतर जैसे भोले-ऐसे बनो। सप ब त ही बु मान ाणी है--ब त सजग, ब त जाग क, ब त तेज, ब त ग तमान, वे सब उसक खू बयां ह। कुंड लनी भी वैसी चीज है। बु म ा का चरम शखर उससे छु आ जाएगा। उतनी ही चपल और ग तमान भी है। उतनी ही श शाली भी है। कुंड लनी का आधु नक तीक-- व ुत व राकेट तो पुराने दन म जब यह तीक खोजा गया कुंड लनी के लए, तब शायद सप से बेहतर कोई तीक नह था। अब भी नह है; ले कन शायद भ व म और तीक हो जाएं --राकेट क तरह। कभी भ व का कोई खयाल राकेट क तरह कुंड लनी को पकड़ सकता है; वैसी उसक या ा है--एक अंत र से सरे अंत र , एक ह से सरे ह म, बीच म शू क पत है। वह कभी तीक बन सकता है। तीक तो युग खोजता है। यह तीक तो उस दन खोजा गया जब आदमी और पशु बड़े नकट थे। उस व सारे तीक हमने पशुओ ं से खोजे, क हमारे पास वही तो जानकारी थी, उ से हम खोजते थे। सप उस समय हमारी नजर म सबसे नकटतम तीक था। जैसे व ुत--उस दन हम नह कह सकते थे। आज जब म बात करता ं तो कुंड लनी के साथ इलेि सटी क बात कर सकता ं । आज से पांच हजार साल पहले कुंड लनी के साथ व ुत क बात नह क जा सकती थी, क व ुत का कोई तीक नह था। ले कन सप म व ुत जैसी ा लटी भी है। हम अब क ठन मालूम होता है, क हमम से ब त के जीवन म सप का कोई अनुभव ही नह है। हमारी बड़ी क ठनाई है, क हमारे लए सप का कोई अनुभव नह है। कुंड लनी का तो है ही नह , सप का भी ब त अनुभव नह है। सप हमारे लए जैसे एक मथ है। आधु नक युग म सप से अप रचय और कुंड लनी से भी अभी पछली दफा लंदन म ब का एक सव कया गया, तो लंदन म सात लाख ऐसे ब े ह ज ने गाय नह देखी। तो जन ब ने गाय न देखी हो, उ ने सप देखा हो,

यह जरा मु ल मामला है। अब जन ब ने गाय नह देखी है, अब इनका चतन, इनका सोचना, इनके तीक ब त भ हो जाएं गे। सप बाहर हो गया नया से; वह हमारी नया का अब ह ा नह है ब त। कभी वह हमारा ब त नकट पड़ोसी था; चौबीस घंटे साथ था, स ंग था। और तब आदमी ने उसक सब चपलताएं देखी ह, उसक बु मानी देखी है, उसक ग त देखी है; उसक सरलता भी देखी है, उसका खतरा भी देखा है; वह सब देखा है। ऐसी घटनाएं ह जब क कोई सप एक ब े को बचा ले। एक नरीह ब ा पड़ा है, और सप उस पर फन मारकर बैठ जाए और उसको बचा ले। वह इतना भोला भी है। और ऐसी भी घटनाएं ह क वह खतरनाक से खतरनाक आदमी को एक दं श मार दे और समा कर दे। वे दोन उसक संभावनाएं ह। तो जब आदमी सप के ब त नकट रहा होगा, तब उसको पहचाना था वह। उसी व कुंड लनी क बात भी चली थी, वे दोन तालमेल खा गए। वह ब त पुराना तीक बन गया। ले कन सब तीक अथपूण ह। क जब बनाए गए ह हजार साल म, तो उनके पीछे कोई तालमेल है। ले कन अब टूट जाएगा, ब त दन सप का तीक नह चलेगा। अब ब त दन तक हम कुंड लनी को सरपट पावर नह कह सकगे। क सप बेचारा अब कहां है! अब उसम उतनी श भी कहां है! अब वह जदगी के रा े पर कह दखाई नह पड़ता। वह कह हमारा पड़ोसी भी नह रहा, हमारे पास भी नह रहता। उससे हमारे कोई संबंध नह रह गए ह। इस लए यह सवाल उठता है, नह तो पहले यह कभी सवाल नह उठ सकता था, क सप एकमा तीक था। शारी रक संरचना म पांतरण : ओशो, ऐसा कहा गया है क कुंड लनी जब जागती है तो वह खून पी जाती है , मांस खा जाती है । इसका ा अथ है ?

हां, इसका अथ होता है, इसका अथ होता है। इसका अथ.और बलकुल वैसा ही होता है, जैसा कहा गया है; तीक अथ नह होता। असल म, कुंड लनी जागे तो शरीर म बड़े पांतरण होते ह; बड़े पांतरण होते ह। कोई भी ऊजा शरीर म जागेगी नई, तो शरीर का पुराना पूरा का पूरा कंपो जशन बदलता है। बदलेगा ही। जैस,े हमारा शरीर कई तरह के वहार कर रहा है जनका हम पता नह है, जो अनजाने और अनकांशस ह। जैसे कंजूस आदमी है। अब कंजूसी तो मन क बात है, ले कन शरीर भी उसका कंजूस हो जाएगा। और शरीर उन त को डपॉ जट करने लगेगा जनक भ व म ज रत है। अकारण इक े कर लेगा, इतने इक े कर लेगा क उनके इक े होने से परे शानी म पड़ जाएगा। वे बो झल हो जाएं गे। अब एक आदमी ब त भयभीत है। तो शरीर उन त को ब त इक े करके रखेगा जनसे भय पैदा कया जा सकता है। नह तो कभी भय का त न रहे पास, और तु

भयभीत होना है, तो शरीर ा करे गा? तुम उससे मांग करोगे--मुझे भयभीत होना है! और शरीर के पास भय क ं थयां नह ह, भय का रस नह है, तो ा करे गा? तो वह इक ा करता है। भयभीत आदमी का शरीर भय क ं थयां इक ी कर लेता है, भय इक ा कर लेता है। अब जस आदमी को भय म पसीना छूटता है, उसके शरीर म पसीने क ं थयां ब त मजबूत हो जाती ह और ब त पसीना वह इक ा करके रखता है। कभी भी, रोज दन म दस दफे ज रत पड़ जाती है। तो हमारा शरीर जो है, वह हमारे च के अनुकूल ब त कुछ इक ा करता रहता है। जब हमारा च बदलेगा तो शरीर बदलेगा। और जब हमारा च बदलेगा और कुंड लनी जागेगी तो पूरा पांतरण होगा। उस पांतरण म ब त कुछ बदलाहट होगी। उसम तु ारा मांस कम हो सकता है, तु ारा खून कम हो सकता है, ले कन उतना ही कम हो सकता है जतने क तु ारे लए ज रत रह जाए। शरीर एकदम पांत रत होगा। शरीर के लए जतना नपट आव क है, वह रह जाएगा, शेष सब जलकर खाक हो जाएगा--तभी तुम हलके हो पाओगे, तभी उड़ने यो हो पाओगे। वह होगा फक। इस लए वह ठीक है खयाल उनका। इस लए साधक को एक वशेष कार का भोजन, एक वशेष कार क जीवन व ा, वह सब ज री है। अ था वह ब त मु ल म पड़ सकता है। कुंड लनी क आग म सब कचरा भ फर कुंड लनी जब जागेगी, तु ारे भीतर ब त गम पैदा होगी; क वह तो इलेि क फोस है; वह तो ब त ताप ऊजा है। जैसा क मने तुमसे कहा क सप एक तीक है, कुछ जगह कुंड लनी को अ ही तीक समझा गया है। वह भी अ ा तीक था। तो वह आग क तरह ही जलेगी तु ारे भीतर और लपट क तरह ऊपर उठे गी। उसम तु ारा ब त कुछ जलेगा। तो अ ंत खापन भीतर पैदा हो सकता है कुंड लनी के जगने से। इस लए चा हए और म थोड़े रस- ोत चा हए। अब जैसे ोधी आदमी है। अगर ोधी आदमी क कुंड लनी जग जाए तो वह मु ल म पड़ेगा; क वह वैसे ही खा आदमी है, और एक आग जग जाए उसके भीतर तो क ठनाई हो जाएगी। ेमी आदमी है, वह है; उसके भीतर रस क ता है। कुंड लनी जगेगी तो क ठनाई नह होगी। इन सब बात को ान म रखकर वह बात कही गई है। ले कन वह ब त ू ड ढं ग से कही गई है। और पुराना ढं ग सभी ू ड था। वह ब त वक सत नह है कहने का ढं ग। पर ठीक कहा है क मांस जलेगा, खून जलेगा, म ा जलेगी। क तुम बदलोगे पूरे के पूरे; तुम सरे आदमी होनेवाले हो, तु ारी सारी क सारी व ा, सारी कंपो जशन बदलने को है। इस लए साधक क तैयारी म वह भी ान म रखना अ ंत ज री है। अब फर कल बात करगे।

: 19 अ ात अप र चत गहराइय म : ओशो, नारगोल श वर म आपने कहा क योग के आसन, ाणायाम, मु ा और बंध का आ व ार ान क अव ाओं म आ तथा ान क व भ अव ाओं म व भ आसन व मु ाएं बन जाती ह ज दे खकर साधक क त बताई जा सकती है । इसके उलटे य द वे आसन व मु ाएं सीधे क जाएं तो ान क वही भावदशा बन सकती है । तब ा आसन, ाणायाम, मु ा और बंध के अ ास से ान उपल हो सकता है ? ान साधना म उनका ा मह और उपयोग है ?

ारं भक प से ान ही उपल आ। ले कन ान के अनुभव से ात आ क शरीर ब त सी आकृ तयां लेना शु करता है। असल म, जब भी मन क एक दशा होती है तो उसके अनुकूल शरीर भी एक आकृ त लेता है। जैसे जब आप ेम म होते ह तो आपका चेहरा और ढं ग का हो जाता है, जब ोध म होते ह तो और ढं ग का हो जाता है। जब आप ोध म होते ह तब आपके दांत भच जाते ह, मु यां बंध जाती ह, शरीर लड़ने को या भागने को तैयार हो जाता है। ऐसे ही, जब आप मा म होते ह तब मु ी कभी नह बंधती, हाथ खुला आ हो जाता है। मा का भाव अगर कोई आदमी म हो तो वह ोध क भां त मु ी बांधकर नह रह सकता। जैसे मु ी बांधना हमला करने क तैयारी है, ऐसा मु ी खोलकर खुला हाथ कर देना हमले से मु करने क सूचना है--वह सरे को अभय देना है; मु ी बांधना सरे को भय देना है। शरीर एक त लेता है, क शरीर का उपयोग ही यही है क मन जस अव ा म हो, शरीर त ाल उस अव ा के यो तैयार हो जाए। शरीर जो है, अनुगामी है; वह पीछे अनुगमन करता है। तो साधारण त म.यह तो हम पता है क एक आदमी ोध म ा करे गा; यह भी पता है क ेम म ा करे गा; यह भी पता है क ाम ा करे गा। ले कन और गहरी तय का हम कोई पता नह है। जब भीतरी च म वे गहरी तयां पैदा होती ह, तब भी शरीर म ब त कुछ होता है। मु ाएं बनती ह, जो क बड़ी सूचक ह; जो भीतर क खबर लाती ह। आसन भी बनते ह; जो क प रवतन के सूचक ह। असल म, भीतर क तय क तैयारी के समय तो बनते ह आसन और भीतर क तय क खबर देने के समय बनती ह मु ाएं । भीतर जब एक प रवतन चलता है तो

शरीर को भी उस नये प रवतन के यो एडज मट खोजना पड़ता है। अब भीतर य द कुंड लनी जाग रही है तो उस कुंड लनी के लए माग देने के लए शरीर आड़ा- तरछा, न मालूम कतने प लेगा। वह माग कुंड लनी को भीतर मल सके, इस लए शरीर क रीढ़ ब त तरह के तोड़ करे गी। जब कुंड लनी जाग रही है तो सर भी वशेष तयां लेगा। जब कुंड लनी जाग रही है तो शरीर को कुछ ऐसी तयां लेनी पड़गी जो उसने कभी नह ल । अब जैस,े जब हम जागते ह तो शरीर खड़ा होता है या बैठता है; जब हम सोते ह तब खड़ा और बैठा नह रह जाता, उसे लेटना पड़ता है। समझ ल एक आदमी ऐसा पैदा हो जो सोना न जानता हो ज के साथ, तो वह कभी लेटेगा नह । तीस वष क उ म उसको पहली दफे न द आए, तो वह पहली दफे लेटेगा, क उसके भीतर क च -दशा बदल रही है और वह न द म जा रहा है। तो उसको बड़ी हैरानी होगी क यह लेटना अब तक तो कभी घ टत नह आ, आज वह पहली दफा लेट रहा है! अब तक वह बैठता था, चलता था, उठता था, सब करता था, लेटता भर नह था। अब न द क त बन सके भीतर, इसके लए लेटना बड़ा सहयोगी है। क लेटने के साथ ही मन को एक व ा म जाने म सरलता हो जाती है। लेटने म भी अलग-अलग य क अलग-अलग तयां होती ह, एक सी नह होत ; क अलग-अलग य के च भ होते ह। जैसे जंगली आदमी त कया नह रखता है, ले कन स आदमी बना त कए के नह सो सकता। जंगली आदमी इतना कम सोचता है क उसके सर क तरफ खून का वाह ब त कम होता है। और न द के लए ज री है क सर क तरफ खून का वाह कम हो जाए। अगर वाह ादा है तो न द नह आएगी, क सर के ायु श थल नह हो पाएं गे, व ाम म नह जा पाएं गे, उनम खून दौड़ता रहेगा। इस लए आप त कए पर त कए रखते चले जाते ह। जैसे आदमी श त होता है, सुसं ृ त, त कए ादा होते जाते ह; क गदन इतनी ऊंची होनी चा हए क खून भीतर न चला जाए सर के। जंगली आदमी बना इसके सो सकता है। ये हमारे शरीर क तयां हमारे भीतर क तय के अनुकूल खड़ी होती ह। तो आसन बनने शु होते ह तु ारे भीतर क ऊजा के जागरण और व भ प म गत करने से। व भ च भी शरीर को व भ आसन म ले जाते ह। और मु ाएं पैदा होती ह जब तु ारे भीतर एक त बनने लगती है--तब भी तु ारे हाथ, तु ारे चेहरे , तु ारे आंख क पलक, सबक मु ाएं बदल जाती ह। यह ान म होता है। ले कन इससे उलटी बात भी ाभा वक खयाल म आई क य द हम इन याओं को कर तो ा ान हो जाएगा? इसे थोड़ा समझना ज री है। आसन से च म प रवतन अ नवाय नह ान म ये याएं होती ह, ले कन फर भी अ नवाय नह ह। यानी ऐसा नह है क सभी साधक को एक सी या हो। एक कंडीशन खयाल म रखनी ज री है, क ेक साधक क त अलग है, और ेक साधक क च क और शरीर क त भी भ है। तो सभी साधक को ऐसा होगा, ऐसा नह है। अब जैसे कसी साधक के च म, म म अगर खून क ग त ब त कम है और

कुंड लनी जागरण के लए सर म खून क ग त क ादा ज रत है उसके शरीर को, तो वह त ाल शीषासन म चला जाएगा--अनजाने। ले कन सभी नह चले जाएं गे; क सभी के सर म खून क त और अनुपात अलग-अलग है; सबक अपनी ज रत अलग-अलग है। तो ेक साधक क त के अनुकूल बनना शु होगा। और सबक त एक जैसी नह है। तो एक तो यह फक पड़ेगा क जब ऊपर से कोई आसन करे गा तो हम कुछ भी पता नह है क वह उसक ज रत है या नह है। कभी सहायता भी प ं चा सकता है, कभी नुकसान भी प ं चा सकता है। अगर वह उसक ज रत नह है तो नुकसान पड़ेगा, अगर उसक ज रत है तो फायदा पड़ जाएगा। ले कन वह अंधेरे म रा ा होगा--एक क ठनाई। सरी क ठनाई और है, और वह यह है क हम जो भीतर होता है, उसके साथ जब बाहर कुछ होता है, तब-तब भीतर से ऊजा बाहर क तरफ स य होती है; जब हम बाहर कुछ करते ह तब वह केवल अ भनय होकर भी रह जा सकता है। जैसे क मने कहा क जब हम ोध म होते ह तो मु यां बंध जाती ह। ले कन मु यां बंध जाने से ोध नह आ जाता। हम मु यां बांधकर बलकुल अ भनय कर सकते ह और भीतर ोध बलकुल न आए। फर भी, अगर भीतर ोध लाना हो तो मु यां बांधना सहयोगी स हो सकता है। अ नवायतः भीतर ोध पैदा होगा, यह नह कहा जा सकता। ले कन मु ी न बांधने और बांधने म अगर चुनाव करना हो तो बांधने म ोध के पैदा होने क संभावना बढ़ जाएगी बजाय मु ी खुली होने के। तो इतनी थोड़ी सी सहायता मल सकती है। अब जैसे एक आदमी शांत त म आ गया तो उसके हाथ क शांत मु ाएं बनगी, ले कन एक आदमी हाथ क शांत मु ाएं बनाता रहे, तो च अ नवाय प से शांत होगा, यह नह है। हां, फर भी च को शांत होने म सहायता मलेगी, क शरीर तो अपनी अनुकूलता जा हर कर देगा क हम तैयार ह, अगर च को बदलना हो तो वह बदल जाए। ले कन फर भी सफ शरीर क अनुकूलता से च नह बदल जाएगा। और उसका कारण यह है क च तो आगे है, शरीर सदा अनुगामी है। इस लए च बदलता है, तब तो शरीर बदलता ही है; ले कन शरीर के बदलने से सफ च के बदलने क संभावना भर पैदा होती है, बदलाहट नह हो जाती। भीतर से या ा शु करो तो इस लए ां त का डर है क कोई आदमी आसन ही करता रहे, मु ाएं ही सीखता रहे और समझ ले क बात पूरी हो गई। ऐसा आ है, हजार वष तक ऐसा आ है क कुछ लोग आसन-मु ाएं ही करते रहे ह और समझते ह क योग साध रहे ह। धीरे -धीरे योग से ान तो खयाल से उतर गया। अगर कह तुम कसी से कहो क वहां योग क साधना होती है, तो जो खयाल आता है वह यह है क आसन, ाणायाम इ ा द होता होगा। तो इस लए म ज र यह कहता ं क अगर साधक क ज रत समझी जाए तो उसके शरीर क कुछ तयां उसके लए सहयोगी बनाई जा सकती ह, ले कन इनका कोई अ नवाय प रणाम नह है। और इस लए काम सदा भीतर से ही शु करने के म प म ं , बाहर से शु करने के प म नह ं । भीतर से शु होना चा हए।

फर अगर भीतर से शु होता हो तो समझा जा सकता है। अब जैसे क मुझे लगता है.एक साधक ान म बैठा है और मुझे लगता है क उसका रोना फूटना चाहता है, ले कन वह रोक रहा है। अब यह मुझे दखाई पड़ रहा है क अगर वह रो ले दस मनट तो उसक ग त हो जाए--एक कैथा सस हो जाए, एक रे चन हो जाए उसका। ले कन वह रोक रहा है, वह स ाल रहा है अपने को क कह रोना न नकल जाए। इस साधक को अगर हम कह क अब तुम रोको मत, तुम अपनी तरफ से ही रो लो--तुम रोओ! तो यह दो मनट तक तो अ भनय क तरह रोएगा, तीसरे मनट से इसका रोना सही और ठीक हो जाएगा, ऑथ टक हो जाएगा; क रोना तो भीतर से फूटना ही चाह रहा था, यह रोक रहा था। इसके रोने क या रोने को नह ले आएगी, इसके रोने क या रोकने को तोड़ देगी और जो भीतर से बह रहा था वह बह जाएगा। अब जैसे एक साधक नाचने क त म है, ले कन अपने को अकड़कर खड़ा कए ए है। अगर हम उससे कह द क नाचो! तो ाथ मक चरण म तो वह अ भनय ही शु करे गा, क अभी वह नाच नकला नह है। वह नाचना शु करे गा, ले कन भीतर से नाच फूटने क तैयारी कर रहा है, और इसने नाचना शु कर दया--इन दोन का त ाल मेल हो जाएगा। ले कन जसके भीतर नाचने क कोई बात ही नह उसको हम कह--नाचो! तो वह नाचता रहेगा, ले कन भीतर कुछ भी नह होगा। इस लए हजार बात ान म रखनी ज री ह। तो जो भी म कहता ं , उसम ब त सी शत ह। उन सारी शत को खयाल म रखोगे तो बात खयाल म आ सकती है। और अगर इनको खयाल म न रखनी ह तो सबसे सरल यह है क भीतर से या ा शु करो; और बाहर से जो भी होता हो उसे रोको मत। बस इतना पया है--भीतर से काम शु करो; बाहर जो होता हो उसको रोको मत, उससे लड़ो मत, तो सब अपने से हो जाएगा। खड़े होकर ान करने से होश रखना सदा आसान : ओशो, आजकल आप जस योग क बात कर रहे ह उसम बैठकर योग करने म और खड़े होकर योग करने म ा फ जकल और साइ कक अंतर पड़ता है ?

ब त अंतर पड़ता है। जो मने अभी कहा क हमारे शरीर क ेक त हमारे मन क ेक त से कह गहरे म जुड़ी है और कह समानांतर, पैरेलल है। अगर हम कसी आदमी को लटाकर कह क होश रखो, तो रखना मु ल हो जाएगा; अगर खड़े होकर कह क होश रखो, तो आसान हो जाएगा। अगर खड़े होकर हम कह क सो जाओ, तो मु ल हो जाएगा; अगर लेटकर हम कह क सो जाओ, तो आसान हो जाएगा। तो इस योग म दोहरी याएं ह। योग का आधा ह ा स ोहन का है, जसम क न ा का डर है। योग क या ह ो सस क है। स ोहन का योग सफ न ा और बेहोशी के लए कया जाता है। इस लए डर है क साधक सो न जाए, तं ा म न चला जाए। खड़ा रहे तो इस डर को थोड़ा सा तोड़ने म सहायता मलती है। संभावना कम हो गई

उसके सोने क । इस योग का सरा ह ा सा ी-भाव का है--जागरण का, अवेयरनेस का है। लेटने म अवेयरनेस ाथ मक प से रखनी क ठन है, अं तम प से रखनी आसान है। खड़े होकर होश रखना सदा आसान है। तो होश रह सकेगा खड़े होकर, सा ी-भाव रह सकेगा; और सरी बात: स ोहन क जो या है ाथ मक, वह न ा म ले जाए, इसक संभावना कम हो जाएगी। त याओं म ती ता और दो-तीन बात ह। जैस,े जब तुम खड़े हो, तब शरीर म जो मूवमट होने ह, वे मु भाव से हो सकगे। लेटकर उतने मु भाव से न हो सकगे; बैठकर भी आधा शरीर तो कर ही न पाएगा। समझ लो, पैर को नाचना है और तुम बैठे हो, तब पैर नाच न पाएं गे। और तु पता भी नह चलेगा, क पैर के पास भाषा नह है साफ क तुमसे कह द क अब हम नाचना है। ब त सू इशारे ह, जनको हम पकड़ नह पाते। अगर तुम खड़े हो तो पैर उठने लगगे और तु सूचना मल जाएगी क पैर नाचना चाहते ह। ले कन अगर तुम बैठे हो तो यह सूचना नह मलेगी। असल म, बैठी ई हालत म ान करने का योग ही शरीर म होनेवाली इन ग तय को रोकने के लए था। इस लए ान के पहले स ासन या प ासन या सुखासन, ऐसे आसन का अ ास करना पड़ता था जसम शरीर डोल न सके। तो शरीर म जो ऊजा जगेगी उसक संभावना ब त पहले से है क उसम ब त कुछ होगा--नाचोगे, गाओगे, रोओगे, कूदोगे, दौड़ोगे। तो ये तयां सदा से पागल क समझी जाती रही ह। कोई दौड़ रहा है, नाच रहा है, रो रहा है, च ा रहा है--ये तयां पागल क समझी जाती रही ह। साधक भी यह करे गा तो पागल मालूम पड़ेगा। तो समाज के सामने वह पागल न मालूम पड़े इस लए पहले वह सुखासन, स ासन या प ासन का कठोर अ ास करे गा, जसम क शरीर के रं च मा हलने का डर न रह जाए। और जो बैठक है प ासन क या स ासन क , वह ऐसी है क उसम तु ारे पैर जकड़ जाते ह, जमीन पर तु ारा आयतन ादा हो जाता है, ऊपर तु ारा आयतन कम होता जाता है। तुम एक मं दर क भां त हो जाते हो, जो नीचे चौड़ा है--एक परा मड क भां त--और ऊपर संकरा है। मूवमट क संभावना सबसे कम हो जाती है। मूवमट क सवा धक संभावना तु ारे खड़े होने म है, जब क नीचे कोई जड़ बनाकर चीज नह बैठ गई है। तो तु ारी जो पालथी है, वह नीचे जड़ बनाने का काम करती है। जमीन के े वटे शन पर तु ारा ब त बड़ा ह ा शरीर का हो जाता है; वह उसे पकड़ लेता है। फर हाथ भी तुम इस भां त से रखते हो क उनम डोलने क संभावना कम रह जाती है। फर रीढ़ को भी सीधा और थर रखना है। और पहले इस आसन का अ ास करना है काफ , जब इसका अ ास हो जाए तब ान म जाना है। ूल शरीर से रे चन करना सरल मेरी म इससे उलटी बात है। और मेरी म बात यह है क पागल और हमम कोई बु नयादी फक नह है। हम सब दबे ए पागल ह; स े ड इनसे नटी है हमारी। या कहना चा हए हम जरा नामल ढं ग के पागल ह। या कहना चा हए क हम औसत पागल ह; एवरे ज पागल ह। हमारा सब पागल से तालमेल खाता है। हमारे भीतर जो पागल थोड़े

आगे नकल जाते ह वे जरा द त म पड़ जाते ह। ले कन हम सबके भीतर पागलपन है। और हम सबका पागलपन भी अपना नकास खोजता है। जब तुम ोध म होते हो तब एक अथ म तुम मोमटरी मैडनेस म होते हो। उस व तुम वे काम करते हो जो तुमने होश म कभी न कए होते। तुम गा लयां बकते हो, प र फकते हो, सामान तोड़ सकते हो, छत से कूद सकते हो, कुछ भी कर सकते हो। यह पागल करता तो हम समझ लेत।े ले कन ोध म भी एक आदमी करता है तो हम कहते ह, वह ोध म था। ले कन था तो वही। ये चीज उसके भीतर अगर नह थ तो आ नह सकत ; ये उसके भीतर ह। ले कन हम इन सबको स ाले ए ह। मेरी अपनी समझ यह है क ान के पहले इन सबका नकास हो जाना ज री है। जतना इनका नकास हो जाएगा, उतना तु ारा च हलका हो जाएगा। और इस लए पुरानी जो साधना क या थी, जसम तुम स ासन लगाकर बैठते, उसम जस काम म वष लग जाते, वह इस या म महीन म पूरी हो जाएगी। उसम जसम ज लग जाते, इसम दन म हो सकती है। क इसका न ासन तो उस या म भी करना पड़ता था, ले कन उस या म जो मूवमट थे, वे फ जकल बॉडी के बंद करके और ईथ रक बॉडी के करने पड़ते थे। अब वह जरा सरी बात है। करने तो पड़ते ही थे, रोना तो पड़ता ही था, क अगर रोना भीतर है तो उसका नकालना ज री है; और अगर हं सना भीतर है तो उसका भी नकालना ज री है; और अगर नाचना भीतर है तो उसका भी नकालना ज री है; और अगर च ाने क इ ा है तो वह भी नकलनी चा हए। ले कन अगर फ जकल बॉडी का तुमने गहरा अ ास कया है और तुम उसे थर रख सकते हो, घंट के लए, तो फर इन सबका नकास तुम ईथ रक बॉडी से कर सकते हो; वह तु ारे सरे शरीर से इनका नकास हो सकता है। तब कसी को दखाई नह पड़ेगा, सफ तुमको दखाई पड़ेगा। तब तुमने समाज से एक सुर ा कर ली। अब कसी को पता नह चल रहा है क तुम नाच रहे हो, और भीतर तुम नाच रहे हो। यह नाच वैसा ही होगा जैसा तुम म नाचते हो; यह नाच वैसा ही होगा। भीतर तुम नाचोगे, भीतर तुम रोओगे, भीतर तुम हं सोगे, ले कन तु ारा भौ तक शरीर इसक कोई खबर बाहर नह देगा; वह जड़वत बैठा रहेगा; उस पर इसके कोई कंपन नह आएं गे। भौ तक शरीर के दमन से पागलपन क संभावना मेरी अपनी मा ता है क इतनी परे शानी इतनी सी बात के लए उठानी बेमानी है। और वष कसी आदमी को आसन का अ ास कराकर फर ान म ले जाने का कोई योजन नह है। इसम सरी और भी संभावनाएं ह। इसम ब त संभावना यह है क फ जकल बॉडी का अगर ब त गहरा सटर हो, तो वह आदमी अगर अपने भौ तक शरीर को दमन कर दे, तो हो सकता है ईथ रक शरीर म भी कंपन न हो सक और वह सफ जड़ क भां त बैठा रहे। और उस हालत म भीतर तो गहरी या न हो, बस बाहर से बैठने का अ ास हो जाए। और यह भी डर है क उस हालत म चूं क ये सारी ग तयां न हो पाएं , ये सब स े ड इक ी रह, तो वह कभी भी पागल हो सकता है। पुराना साधक अनेक बार पागल होता देखा गया है; उसम उ ाद आता था। जस

या को म कह रहा ं इसको अगर पागल भी करे गा, तो महीने, दो महीने के भीतर पागलपन के बाहर हो जाएगा। साधारण आदमी इस या म कभी भी पागल नह हो सकता, क हम पागलपन को दबाने क को शश ही नह कर रहे ह, हम उसको नकालने क को शश कर रहे ह। पुरानी साधना ने हजार लोग को पागल कया है। हम उसको नाम अ े देते थे--कभी कहते थे उ ाद, कभी हष ाद, कभी ए टे सी। हम नाम कुछ भी देते थे; हम कहते थे: आदमी म हो गया, औ लया हो गया, यह हो गया, वह हो गया। ले कन वह हो गया पागल; उसने कसी चीज को इस बुरी तरह से दबाया क अब वह उसके वश के बाहर हो गई। इस या म पहला काम रे चन का इस या म दोहरा काम है। इसम पहला काम कैथा सस का है, इसम पहला काम नकास का है; तु ारे भीतर जो दबा आ कचरा है, वह बाहर फक जाए; पहले तुम हलके हो जाओ, तुम इतने हलके हो जाओ क तु ारे भीतर पागलपन क सारी संभावना ीण हो जाए, फर तुम भीतर या ा करो। तो इस या म, जसम कट पागलपन दखाई पड़ता है, यह बड़े गहरे म पागलपन से मु क या है। और म पसंद करता ं क जो है हमारे भीतर वह नकल जाए। उसका बोझ, उसका तनाव, उसक चता छूट जानी चा हए। और यह बड़े मजे क बात है क अगर पागलपन तुम पर आए, तब तुम उसके मा लक नह होते; ले कन जस पागलपन को तुम लाए हो, तुम उसके सदा मा लक हो। और एक बार तु पागलपन क माल कयत का पता चल जाए, तो तुम पर वह पागलपन कभी नह आ सकता जो तु ारा मा लक हो जाए। अब एक आदमी अपनी मौज से नाच रहा है, गा रहा है, च ा रहा है, रो रहा है, हं स रहा है--वह सब कर रहा है जो पागल करता है; ले कन सफ एक फक है: क पागल पर ये घटनाएं होती ह, वह कर रहा है; उसके कोआपरे शन के बना ये नह हो रही ह। वह एक सेकड म चाहे क बस, तो वह सब बंद हो जाता है। इस पर अब पागलपन कभी उतर नह सकता, क पागलपन को इसने जीया है, देखा है, प र चत आ है। यह उसक वालटरी, े ा क चीज हो गई; पागल होना भी उसक े ा के अंतगत आ गया। हमारी स ता ने हम जो भी सखाया है, उसम पागलपन हमारी े ा के बाहर हो गया है; वह नॉन-वालटरी हो गया है। तो जब आता है तब हम कुछ भी नह कर सकते। आनेवाली स ता के पागलपन का ान ारा नकास ज री तो इस या को आनेवाली स ता के लए म ब त क मती मानता ं , क आनेवाली पूरी स ता रोज पागलपन क तरफ बढ़ती चली जाती है। और ेक को पागलपन के नकास क ज रत है। और कोई उपाय भी नह है। अगर वह एक घंटा ान म इसको नकालता है तो लोग उसके लए धीरे -धीरे राजी हो जाते ह; वे जानते ह क वह ान कर रहा है। अगर इसको वह सड़क पर नकालता है तो पु लस उसको पकड़कर ले जाएगी। अगर इसको ोध म नकालता है तो संबंध बगड़ते ह और कु प होते ह। इसे कसी से झगड़े म नकालता है. नकालता तो है ही, नकालेगा नह तो मु ल म पड़ जाएगा। नकालता रहेगा, तरक ब खोजता रहेगा--कभी शराब पीकर

नकाल लेगा, कभी जाकर व करके नकाल लेगा। ले कन उतना उप व लेना? उतना उप व लेना? अब व है या और तरह के नाच ह, वे सब आक क नह ह। मनु का शरीर भीतर से मूव करना चाहता है, हमारे पास मूवमट क कोई जगह नह रह गई। तो वह इं तजाम करता है। फर इं तजाम म और जाल बनते ह। बना इं तजाम के नकाल ले। तो ान जो है वह बना इं तजाम के नकालना है। हम कोई इं तजाम नह कर रहे ह, उसको हम सफ नकाल रहे ह। और हम मानते ह क वह भीतर है और नकल जाना चा हए। अगर हम एक-एक ब े को श ा के साथ इस कैथा सस को भी सखा सक, तो नया म पागल क सं ा एकदम गराई जा सकती है; पागल होने क बात ही ख क जा सकती है। ले कन वह रोज बढ़ती जा रही है। और जतनी स ता बढ़ेगी, उतनी बढ़ेगी; क स ता उतना ही सखाएगी--रोको! स ता न तो जोर से हं सने देती, न जोर से रोने देती, न नाचने देती, न च ाने देती; स ता सब तरफ से दबा डालती है। और तु ारे भीतर जो-जो होना चा हए वह कता जाता है, कता जाता है-- फर फूटता है; और जब वह फूटता है, तब तु ारे वश के बाहर हो जाता है। तो कैथा सस इसका पहला ह ा है, जसम इसको नकालना है। इस लए म शरीर के खड़े होने के प म ं ; क तब शरीर क जरा सी भी ग त तु पता चलेगी और तुम ग त कर पाओगे, तुम पूरे मु हो जाओगे। इस लए म साधक के प म ं क जब वह अपने कमरे म योग करता हो तो कमरा बंद रखे--न केवल खड़ा हो, ब न भी हो, क व भी उसको न रोकनेवाले बन; वह सब तरह से तं हो ग त करने को। जरा सी ग त, और उसके सारे म कह कोई अवरोध न हो जो उसे रोक रहा है। तो ब त शी ता से ान म ग त हो जाएगी। और जो हठयोग और सरे योग ने ज म कया था, वष म कया था, वह इस ान के योग से दन म हो सकता है। ती साधना क ज रत और अब नया म वष और ज वाले योग नह टक सकते। अब लोग के पास दन और घंटे भी नह ह। और अब ऐसी या चा हए जो त ाल फलदायी मालूम होने लगे क एक आदमी अगर सात दन का संक कर ले तो फर सात दन म ही उसे पता चल जाए क आ है ब त कुछ, वह आदमी सरा हो गया है। अगर सात ज म पता चले, तो अब कोई योग नह करे गा। पुराने दावे ज के थे। वे कहते थे: इस ज म करो, अगले ज म फल मलगे। वे बड़े ती ावाले धैयवान लोग थे। वे अगले ज क ती ा म इस ज म भी साधना करते थे। अब कोई नह मलेगा। फल आज न मलता हो तो कल तक के लए ती ा करने क तैयारी नह है। कल का कोई भरोसा भी नह है। जस दन से हरो शमा और नागासाक पर एटम बम गरा है, उस दन से कल ख हो गया है। अमे रका के हजार -लाख लड़के और लड़ कयां कालेज म पढ़ने जाने को तैयार नह ह। वे कहते ह: हम पढ़- लखकर नकलगे तब तक नया बचेगी? कल का कोई भरोसा नह है! तो वे कहते ह: हमारा समय जाया मत करो। जतने दन हमारे पास ह, हम जी ल। हाई ू ल से लड़के और लड़ कयां ू ल छोड़कर भागे जा रहे ह। वे कहते ह: यु नव सटी

भी नह जाएं गे। क छह साल म यु नव सटी से नकलना.छह साल म नया बचेगी? अब बेटा बाप से पूछ रहा है क छह साल नया का आ ासन है? तो हम ये छह साल जो थोड़े-ब त हमारी जदगी म ह, हम न उनका उपयोग कर ल। जहां कल इतना सं द हो गया है वहां तुम ज क बात करोगे, बेमानी है; कोई सुनने को राजी नह ; न कोई सुन रहा है। इस लए म कह रहा ं , आज योग हो और आज प रणाम होना चा हए। और अगर एक घंटा कोई मुझे आज देने को राजी है, तो आज ही, उसी घंटे के बाद ही उसको प रणाम का बोध होना चा हए, तभी वह कल घंटा दे सकेगा। नह तो कल के घंटे का कोई भरोसा नह है। तो युग क ज रत बदल गई है। बैलगाड़ी क नया थी, उस व सब धीरे -धीरे चल रहा था; साधना भी धीरे -धीरे चल रही थी। जेट क नया है, साधना भी धीरे -धीरे नह चल सकती; उसे भी ती , ग तमान, ीडी होना पड़ेगा। : ओशो, साधना करते समय मन म ब त से वचार आएं तो उनको

ा करना चा हए?

आप सुबह आ जाएं साधना के व , तब बात करगे। ऊजा के वाह को हण करने के लए झुकना ज री : ओशो, सा ांग दं डवत णाम करना, द पु ष के चरण पर माथा रखना या हाथ से चरण- श करना, प व ान म माथा टे कना, द पु ष का अपने हाथ से साधक के सर अथवा पीठ को छूकर आशीवाद दे ना, स व मुसलमान का सर ढांककर गु ारे व म द जाना, इन सब थाओं का कुंड लनी ऊजा के संदभ म आक व चुअल अथ व मह समझाने क कृपा कर।

अथ तो है, अथ ब त है। जैसा मने कहा, जब हम ोध से भरते ह तो कसी को मारने का मन होता है। जब हम ब त ोध से भरते ह तो ऐसा मन होता है क उसके सर पर पैर रख द। चूं क पैर रखना ब त अड़चन क बात होगी, इस लए लोग जूता मार देते ह। पैर रखना, एक पांच-छह फ ट के आदमी के सर पर पैर रखना ब त मु ल क बात है, इस लए सबा लक, उतारकर जूता उसके सर पर मार देते ह। ले कन कोई नह पूछता नया म क सरे के सर म जूता मारने का ा अथ है? सारी नया म! ऐसा नह है क कोई एक कौम, कोई एक देश.यह बड़ा यु नवसल त है क ोध म सरे के सर पर पैर रखने का मन होता है। और कभी जब आदमी नपट जंगली रहा होगा, तो जूता तो नह था उसके पास, वह सर पर पैर रखकर ही मानता था। ठीक इससे उलटी तयां भी ह च क । जैसे ोध क त है, तब कसी के सर

पर पैर रखने का मन होता है; और ाक त है, तब कसी के पैर म सर रखने का मन होता है। उसके अथ ह उतने ही, जतने पहले के। कोई ण है जब तुम कसी के सामने पूरी तरह झुक जाना चाहते हो; और झुकने के ण वही ह, जब तु सरे के पास से अपनी तरफ ऊजा का वाह मालूम पड़ता है। असल म, जब भी कोई वाह लेना हो तब झुक जाना पड़ता है। नदी से भी पानी भरना हो तो झुकना पड़ता है। झुकना जो है, वह कसी भी वाह को लेने के लए अ नवाय है। असल म, सब वाह नीचे क तरफ बहते ह। तो ऐसे कसी के पास अगर लगे कसी को क कुछ बह रहा है उसके भीतर--और कभी लगता है--तो उस ण म उसका सर जतना झुका हो उतना साथक है। शरीर के नुक ले ह से ऊजा का वाह फर शरीर से जो ऊजा बहती है वह उसके उन अंग से बहती है जो ाइं टेड ह--जैसे हाथ क अंगु लयां या पैर क अंगु लयां। सब जगह से ऊजा नह बहती। शरीर क जो व ुतऊजा है, या शरीर से जो श पात है, या शरीर से जो भी श य का वाह है, वह हाथ क अंगु लय या पैर क अंगु लय से होता है, पूरे शरीर से नह होता। असल म, वह से होता है जहां नुक ले ह े ह; वहां से श और ऊजा बहती है। तो जसे लेना है ऊजा, वह तो पैर क अंगु लय पर सर रख देगा; और जसे देना है ऊजा, वह हाथ क अंगु लय को सरे के सर पर रख देगा। ये बड़ी आक और बड़ी गहरी व ान क बात थ । भावतः, ब त से लोग नकल म उ करगे। हजार लोग सर पर पैर रखगे ज कोई योजन नह है; हजार लोग कसी के सर पर हाथ रख दगे ज कोई योजन नह है। और तब जो एक ब त गहरा सू था, धीरे -धीरे औपचा रक बन जाएगा। और जब लंबे अरसे तक वह औपचा रक और फामल होगा तो उसक बगावत भी शु होगी। कोई कहेगा क यह सब ा बकवास है! पैर पर रखने से सर ा होगा? सर पर हाथ रखने से ा होगा? सौ म न ानबे मौके पर बकवास है। हो गई है बकवास। क.सौ म एक मौके पर अब भी साथक है। और कभी तो सौ म सौ मौके पर ही साथक थी; क कभी वह ांटेनइस ए था। ऐसा नह था क तु औपचा रक प से लगे तो कसी के पैर छु ओ। नह , कसी ण म तुम न क पाओ और पैर म गरना पड़े तो कना मत, गर जाना। और ऐसा नह था क कसी को आशीवाद देना है तो उसके सर पर हाथ रखो ही। यह उसी ण रखना था, जब तु ारा हाथ बो झल हो जाए और बरसने को तैयार हो जाए और उससे कुछ बहने को राजी हो, और सरा लेने को तैयार हो, तभी रखने क बात थी। मगर सभी चीज धीरे -धीरे तीक हो जाती ह। और जब तीक हो जाती ह तो बेमानी हो जाती ह। और जब बेमानी हो जाती ह तो उनके खलाफ बात चलने लगती ह। और वे बात बड़ी अपील करती ह। क जो बात बेमानी हो गई ह उनके पीछे का व ान तो खो गया होता है। है तो ब त साथक। ऊजा पाने के लए खाली और खुला आ होना ज री और फर, जैसा मने पीछे तु कहा, यह तो जदा आदमी क बात ई। यह जदा आदमी क बात ई। एक महावीर, एक बु , एक जीसस के चरण म कोई सर रखकर पड़ गया है

और उसने अपूव आनंद का अनुभव कया है, उसने एक वषा अनुभव क है जो उसके भीतर हो गई है। इसे कोई बाहर नह देख पाएगा, यह घटना बलकुल आंत रक है। उसने जो जाना है वह उसक बात है। और सरे अगर उससे माण भी मांगगे तो उसके पास माण भी नह है। असल म, सभी आक फना मनन के साथ यह क ठनाई है क के पास अनुभव होता है, ले कन समूह को देने के लए माण नह होता। और इस लए वह ऐसा मालूम पड़ने लगता है क अंध व ास ही होगा। क वह आदमी कहता है क भई, बता नह सकते क ा होता है, ले कन कुछ होता है। जसको नह आ है, वह कहता है क हम कैसे मान सकते ह! हम नह आ है। तुम कसी म म पड़ गए हो, कसी भूल म पड़ गए हो। और फर हो सकता है, जसको खयाल है क नह होता है, वह भी जाकर जीसस के चरण म सर रखे। उसे नह होगा। तो वह लौटकर कहेगा क गलत कहते हो! मने भी उन चरण पर सर रखकर देख लया। वह ऐसा ही है क एक घड़ा जसका मुंह खुला है वह पानी म झुके और लौटकर घड़ से कहे क म झुका और भर गया। और एक बंद मुंह का घड़ा कहे क म भी जाकर योग करता ं । और वह बंद मुंह का घड़ा भी पानी म झुके, और ब त गहरी डुबक लगाए, ले कन खाली वापस लौट आए। और वह कहे क झुका भी, डुबक भी लगाई, कुछ नह भरता है, गलत कहते हो! घटना दोहरी है। कसी से श का बहना ही काफ नह है, तु ारी ओप नग, तु ारा खुला होना भी उतना ही ज री है। और कई बार तो ऐसा मामला है क सरे से ऊजा का बहना उतना ज री नह है, जतना तु ारा खुला होना ज री है। अगर तुम ब त खुले हो तो सरे म जो श नह है, वह भी उसके ऊपर क , और ऊपर क श य से वा हत होकर तु मल जाएगी। इस लए बड़े मजे क बात है क जनके पास नह है श , अगर उनके पास भी कोई पूरे खुले दय से अपने को छोड़ दे, तो उनसे भी उसे श मल जाती है। उनसे नह आती वह श , वे सफ मा म क तरह योग म हो जाते ह; उनको भी पता नह चलता, ले कन यह घटना भी घट सकती है। सर पर कपड़ा बांधने का रह सरी जो बात है: सर म कुछ बांधकर गु ारा या कसी मं दर या कसी प व जगह म वेश क बात है। ान म भी ब त फक र ने सर म कुछ बांधकर ही योग करने क को शश क है। उसका उपयोग है। क जब तु ारे भीतर ऊजा जगती है तो तु ारे सर पर ब त भारी बोझ क संभावना हो जाती है। और अगर तुमने कुछ बांधा है तो उस ऊजा के वक ण होने क संभावना नह होती, उस ऊजा के वापस आ सात हो जाने क संभावना होती है। तो बांधना उपयोगी स आ है; ब त उपयोगी स आ है। अगर तुम ान, कपड़ा बांधकर सर पर करोगे, तो तुम फक अनुभव करोगे फौरन; क जस काम म तु पं ह दन लगते, उसम पांच दन लगगे। क तु ारी ऊजा जब सर म प ं चती है तो उसके वक ण होने क संभावना है, उसके बखर जाने क संभावना है। अगर वह बंध सके और एक वतुल बन सके तो उसका अनुभव गाढ़ और गहरा हो जाएगा। ले कन अब तो वह औपचा रक है, मं दर म कसी का जाना या गु ारे म कसी का सर

पर कपड़ा बांधकर जाना बलकुल औपचा रक है। उसका अब कोई अथ नह रह गया है। ले कन कह उसम अथ है। और के चरण म सर रखकर तो कोई ऊजा पाई जा सके, के हाथ से भी कोई ऊजा आशीवाद म मल सकती है, ले कन एक आदमी एक मं दर म, एक वेदी पर, एक समा ध पर, एक मू त के सामने सर झुकाता है, इसम ा हो सकता है? तो इसम भी ब त सी बात ह; एक दो-तीन बात समझ लेने जैसी ह। मं दर, क --अशरीरी आ ाओं से संबं धत होने के उपाय पहली बात तो यह है क ये सारी क सारी मू तयां एक ब त ही वै ा नक व ा से कभी न मत क गई थ । जैसे समझ क म मरने लगूं और दस आदमी मुझे ेम करनेवाले ह, ज ने मेरे भीतर कुछ पाया और खोजा और देखा था, और मरते व वे मुझसे पूछते ह क पीछे भी हम आपको याद करना चाह तो कैसे कर? तो एक तीक तय कया जा सकता है मेरे और उनके बीच, जो मेरे शरीर के गर जाने के बाद उनके काम आ सके; एक तीक तय कया जा सकता है। वह कोई भी तीक हो सकता है--वह एक मू त हो सकती है, एक प र हो सकता है, एक वृ हो सकता है, एक चबूतरा हो सकता है; मेरी समा ध हो सकती है, क हो सकती है, मेरा कपड़ा हो सकता है, मेरी खड़ाऊं हो सकती है--कुछ भी हो सकता है। ले कन वह मेरे और उनके, दोन के बीच तय होना चा हए। वह एक समझौता है। वह उनके अकेले से तय नह होगा; उसम मेरी गवाही और मेरी ीकृ त और मेरे ह ा र होने चा हए-- क म उनसे क ं क अगर तुम इस चीज को सामने रखकर रण करोगे, तो म अभौ तक त म भी मौजूद हो जाऊंगा। यह मेरा वायदा होना चा हए। तो इस वायदे के अनुकूल काम होता है, बलकुल होता है। इस लए ऐसे मं दर ह जो जी वत ह, और ऐसे मं दर ह जो मृत ह। मृत मं दर वे ह जो इकतरफा बनाए गए ह, जनम सरी तरफ का कोई आ ासन नह है। हमारा दल है, हम एक बु का मं दर बना ल। वह मृत मं दर होगा; क सरी तरफ से कोई आ ासन नह है। जी वत मं दर भी ह, जनम सरी तरफ से आ ासन भी है; और उस आ ासन के आधार पर उस आदमी का वचन है। बु -पु ष का मरने के बाद वायद को पूरा करना त त म एक.अब तो जगह मु ल म पड़ गई, ले कन त त म एक जगह थी जहां बु का आ ासन पछले प ीस सौ वष से नरं तर पूरा हो रहा है। पांच सौ आद मय क , पांच सौ लामाओं क एक छोटी स म त है। उन पांच सौ लामाओं म से जब एक लामा मरता है तब बामु ल से सरे को वेश मलता है। उसक पांच सौ से ादा सं ा नह हो सकती, कम नह हो सकती। जब एक मरे गा तभी एक जगह खाली होगी। और जब एक मरे गा और एक को वेश मलेगा, तो शेष सबक सवस त से ही वेश मल सकता है। यानी एक आदमी भी इनकार करनेवाला हो तो वेश नह मल सकेगा। वह जो पांच सौ लोग क स म त है, वह बु -पू णमा के दन एक वशेष पवत पर इक ी होती है। और ठीक समय पर, न त समय पर--जो समझौते का ह ा है-- न त समय पर बु क वाणी सुनाई पड़नी शु हो जाती है।

पर यह हर कसी पहाड़ पर नह होगा और हर कसी के सामने नह होगा; एक न त समझौते के हसाब से यह बात होगी। यह वैसा ही है, जैसे क तुम सांझ को सोओ और तुम संक करके सोओ क म सुबह ठीक पांच बजे उठ आऊं! तब तु घड़ी क और अलाम क कोई ज रत नह होगी--तुम अचानक पांच बजे पाओगे क न द टूट गई है। और यह मामला इतना अदभुत है क इस व तुम घड़ी मला सकते हो अपने उठने से। इस व घड़ी गलत हो सकती है, तुम गलत नह हो सकते। तु ारे संक का जो प ा नणय हो तो तुम पांच बजे उठ जाओगे। अगर तुमने संक प ा कर लया क मुझे फलां वष म फलां दन मर जाना है, तो नया क कोई ताकत तु नह रोक सकेगी, तुम उस ण चले जाओगे। मरने के बाद भी, अगर तु ारे संक क नया ब त गाढ़ है, तो तुम मरने के बाद भी अपने वायदे पूरे कर सकते हो। जैसे जीसस का मरने के बाद दखाई पड़ना। वह वायदे क बात थी जो पूरी क गई। और इस लए ईसाइयत बड़ी मु ल म है उसके पीछे-- क फर ा आ, ा नह आ? जीसस दखाई पड़े या नह पड़े? रसरे ए क नह ? वह एक वायदा था जो पूरा कया गया और जनके लए था उनके लए पूरा कर दया गया। तो ऐसे ान ह.असल म, ऐसे ान का नाम ही धीरे -धीरे तीथ बन गया जहां कोई जी वत वायदा हजार साल से पूरा कया जा रहा था। फर लोग वायदे को भी भूल गए और जी वत बात को भी भूल गए, समझौते को भी भूल गए, एक बात खयाल रही क वहां आना-जाना है, और वे आते-जाते रहे, और अब भी आ-जा रहे ह! मोह द के भी वायदे ह, और शंकर के भी वायदे ह, और कृ के भी वायदे ह, बु महावीर के भी वायदे ह। वे सब वायदे ह खास जगह से बंधे ए; खास समय, खास घड़ी और खास मु त म उनसे संबंध फर भी जोड़ा जा सकता है। तो उन ान पर फर सर टे क देना पड़ेगा, और उन ान पर फर तु अपने को पूरा सम पत कर देना होगा, तभी तुम संबं धत हो पाओगे। तो उनका भी उपयोग तो है। ले कन सभी उपयोगी बात अंततः औपचा रक हो जाती ह और सभी उपयोगी बात अंततः परं परा बन जाती ह, और मृत हो जाती ह, और थ हो जाती ह। तब सबको तोड़ डालना पड़ता है, ता क फर से नये वायदे कए जा सक और फर से नये तीथ बन सक और नई मू त और नया मं दर बन सके। वह सब तोड़ना पड़ता है, क अब वह सब मृत हो जाता है, उसका हम कुछ पता नह होता क उसके पीछे कौन सी लंबी या काम कर रही है। एक योगी था द ण म। एक अं ेज या ी उसके पास आया। और उस अं ेज या ी ने कहा क म तो लौट रहा ं और अब बारा ह ान नह आऊंगा, ले कन आपके अगर दशन करना चा ं तो ा क ं ? तो उस योगी ने अपना एक च उसे दे दया और कहा, जब भी तुम ार बंद करके अंधेरे म इस च पर पांच मनट एकटक आंख क पलक झपे बना देखोगे, तो म मौजूद हो जाऊंगा। वह तो बेचारा मु ल से अपने घर तक प ं चा। एक ही काम था उसके मन म क कैसे घर जाकर.भरोसा भी नह था क यह संभव हो सकता है। ले कन यह संभव आ। और जो

आदमी था, वह एक वै ा नक डा र था, वह बड़ी मु ल म पड़ गया। यह संभव हो गया। एक वायदा था जो ए ली पूरा कया जा सकता है, जो सू शरीर से पूरा हो सकता है। इसम कोई क ठनाई नह है। जदा आदमी भी पूरा कर सकता है, मरा आ आदमी भी पूरा कर सकता है। मू त व मकबर का गु रह इस लए च भी मह पूण हो गए, मू तयां भी मह पूण हो ग । उनके मह पूण होने का कारण था क उ ने कुछ वायदे पूरे कए। मू तय ने भी वायदे पूरे कए। इस लए मू त बनाने क पूरी एक साइं स थी। हर कसी तरह क मू त नह बनाई जा सकती। मू त बनाने क एक पूरी व ा थी क वह कैसी होनी चा हए। अब जैसे अगर तुम जैन तीथकर क , चौबीस तीथकर क मू तयां देखो, तुम मु ल म पड़ जाओगे। उनम कोई फक नह है, वे बलकुल एक जैसी ह। सफ उनके च अलगअलग ह, महावीर का एक च है, पा नाथ का एक च है, नेमीनाथ का एक च है। ले कन मू तय के अगर च मटा दए जाएं नीचे से तो वे बलकुल एक जैसी ह। तुम उनम कोई पता नह लगा सकते क यह महावीर क है, क पा क है, क नेमी क है, क कसक है--पता नह लगा सकते। न त ही, ये सारे लोग तो एक सी श -सूरत के नह रहे ह गे। यह तो असंभव है। ये चौबीस आदमी एक ही श -सूरत के नह ह। ले कन जो पहली तीथकर क मू त थी, उसी मू त को सबने अपनी मू त क तरह, तीक क तरह समझौता कया। अलग मू त बनाने क ा ज रत थी? एक मू त चलती थी, वह मू त काम करती थी, उसी मू त के मा म से हम भी काम कर लगे; एक सील-मुहर थी, वह काम करती थी। उसका मने भी उपयोग कया, तुमने भी उपयोग कया, तीसरे ने भी उपयोग कया। ले कन फर भी भ का मन! जो महावीर को ेम करते थे, उ ने कहा, कोई एक च तो अलग हो। तो सफ च भर अलग कर लए गए। कसी का सह च है, कसी का कुछ है, कसी का कुछ है, वह अलग कर लया गया, ले कन मू त एक रही। और वे चौबीस मू तयां बलकुल एक सी मू तयां ह; उनम कोई फक नह है, सफ च का फक है। ले कन वह च भी समझौते का अंग है; उस च क मू त से उस च से संबं धत का ही उ र उपल होगा। वह च एक समझौता है जो अपना काम करे गा। मोह द ने कोई ूल तीक नह छोड़ा जैसे जीसस का च ॉस है, वह काम करे गा। जैसे मोह द ने इनकार कया क मेरी मू त मत बनाना। मेरी मू त मत बनाना! असल म, मोह द के व तक इतनी मू तयां बन गई थ क मोह द एक बलकुल ही सरा तीक देकर जा रहे थे अपने म को क मेरी मू त मत बनाना, म बना ही मू त के, अमू त म तुमसे संबंध बना लूंगा। तुम मेरी मू त बनाना ही मत; तुम मेरा च ही मत बनाना; म तुमसे बना च , बना मू त के संबं धत हो जाऊंगा। यह भी एक गहरा योग था, और बड़ा ह तवर योग था, ब त ह तवर योग था। ले कन साधारणजन को बड़ी क ठनाई पड़ी मोह द से संबंध बनाने म। इस लए मोह द के बाद हजार फक र क क और मकबरे और समा धयां उ ने बना ल । क मोह द से संबंध बनाने का तो उनक समझ म नह आया क कैसे

बनाएं । तब फर उ ने कोई और आदमी क क बनाकर उससे संबंध बनाया, फर मकबरे बनाए। और जतनी मकबर और क क पूजा मुसलमान म चली, उतनी नया म कसी म नह चली। उसका कुल कारण इतना था क मोह द क कोई पकड़ नह थी उनके पास जससे वे सीधे संबं धत हो जाते, कोई प नह बना पाते थे। तो उनको सरा प त ाल बनाना पड़ा। और उस सरे प से उ ने संबंध जोड़ने शु कए। यह सारी क सारी एक वै ा नक या है। अगर व ान क तरह उसे समझा जाए तो उसके अदभुत फायदे ह; और अंध व ास क तरह उसे समझा जाए तो ब त आ घाती है। मू त क ाण- त ा का रह : ओशो, ाण- त ा का

ा मह

है ?

हां, ब त मह है। असल म, ाण- त ा का मतलब ही यह है। उसका मतलब ही यह है क हम एक नई मू त तो बना रहे ह, ले कन पुराने समझौते के अनुसार बना रहे ह। और पुराना समझौता पूरा आ क नह , इसके इं गत मलने चा हए। हम अपनी तरफ से जो पुरानी व ा थी, वह पूरी दोहराएं गे। हम उस मू त को अब मृत न मानगे, अब से हम उसे जी वत मानगे। हम अपनी तरफ से पूरी व ा कर दगे जो जी वत मू त के लए क जानी थी। और अब सबा लक तीक मलने चा हए क वह ाण- त ा ीकार ई क नह । वह सरा ह ा है, जो क हमारे खयाल म नह रह गया। अगर वह न मले, तो ाण- त ा हमने तो क , ले कन ई नह । उसके सबूत मलने चा हए। तो उसके सबूत के लए च खोजे गए थे क वे सबूत मल जाएं तो ही समझा जाए क वह मू त स य हो गई। मू त एक रसी वग ाइं ट ऐसा ही समझ ल क आप घर म एक नया रे डयो इं ाल करते ह। तो पहले तो वह रे डयो ठीक होना चा हए, उसक सारी यं व ा ठीक होनी चा हए। उसको आप घर लाकर रखते ह, बजली से उसका संबंध जोड़ते ह। फर भी आप पाते ह क वह े शंस नह पकड़ता, तो ाण- त ा नह ई, वह जदा नह है, अभी मुदा ही है। अभी उसको फर जांच-पड़ताल करवानी पड़े; सरा रे डयो लाना पड़े या उसे ठीक करवाना पड़े। मू त भी एक तरह का रसी वग ाइं ट है, जसके साथ, मरे ए आदमी ने कुछ वायदा कया है वह पूरा करता है। ले कन आपने मू त रख ली, वह पूरा करता है क नह करता है, यह अगर आपको पता नह है और आपके पास कोई उपाय नह है इसको जानने का, तो मू त है भी जदा क मुदा है, आप पता नह लगा पाते। तो ाण- त ा के दो ह े ह। एक ह ा तो पुरो हत पूरा कर देता है-- क कतना मं पढ़ना है, कतने धागे बांधने ह, कतना ा करना है, कतना सामान चढ़ाना है, कतना य -हवन, कतनी आग--सब कर देता है। यह अधूरा है और पहला ह ा है। सरा

ह ा--जो क पांचव शरीर को उपल ही कर सकता है, उसके पहले नह कर सकता-- सरा ह ा है क वह कह सके क हां, मू त जी वत हो गई। वह नह हो पाता। इस लए हमारे अ धक मं दर मरे ए मं दर ह, जदा मं दर नह ह। और नये मं दर तो सब मरे ए ही बनते ह; नया मं दर तो जदा होता ही नह । सोमनाथ का मं दर मृत था अगर एक जी वत मं दर है तो उसका न होना कसी भी तरह संभव नह है, क वह साधारण घटना नह है। वह साधारण घटना नह है। और अगर वह न होता है, तो उसका कुल मतलब इतना है क जसे आपने जी वत समझा था, वह जी वत नह था। जैसे सोमनाथ का मं दर न आ। सोमनाथ के मं दर के न होने क कहानी बड़ी अदभुत है और सारे मं दर के व ान के लए ब त सूचक है। मं दर के पांच सौ पुजारी थे। पुजा रय को भरोसा था क मं दर जी वत है। इस लए मू त न नह क जा सकती। पुजा रय ने अपना काम सदा पूरा कया था। एकतरफा था वह काम, क कोई नह था जो खबर देता क जदा मू त है क मृत। तो जब बड़े-बड़े राजाओं और राजपूत सरदार ने उ खबर भेजी क हम र ा के लए आ जाएं , गजनवी आता है, तो उ ने भावतः उ र दया क तु ारे आने क कोई ज रत नह है, क जो मू त सबक र ा करती है, उसक र ा तुम कैसे करोगे? उ ने मा मांगी, सरदार ने। ले कन वह भूल हो गई। भूल यह हो गई क वह मू त जदा न थी। पुजारी इस आशा म रहे क मू त जदा है और जदा मू त क र ा क बात ही सोचनी गलत है। उसके पीछे हमसे ादा वराट श का संबंध है, उसको बचाने का हम ा सोचगे! ले कन गजनवी आया और उसने एक गदा मारी और वह चार टुकड़े हो गई मू त। फर भी अब तक यह खयाल नह आया क वह मू त मुदा थी। फर भी अब तक.अब तक यह खयाल नह आया क वह मू त मुदा थी, इस लए टूट सक । नह , मं दर क ट नह गर सकती है, अगर वह जी वत है। वह जी वत है तो उसका कुछ बगड़ नह सकता। मं दर के जी वत होने का गहन व ान ले कन अ र मं दर जी वत नह ह। और उसके जी वत होने क बड़ी क ठनाइयां ह। मं दर का जी वत होना बड़ा भारी चम ार है और एक ब त गहरे व ान का ह ा है। जस व ान को जाननेवाले लोग भी नह ह, पूरा करनेवाले लोग भी नह ह, और जसम इतनी क ठनाइयां हो गई ह खड़ी; क पुरो हत और कानदार का इतना बड़ा वग मं दर के पीछे है क अगर कोई जाननेवाला हो तो उसको मं दर म वेश नह हो सकता। उसक ब त क ठनाई हो गई है। और वह एक धंधा बन गया है जसम क पुरो हत के लए हतकर है क मं दर मुदा हो। जदा मं दर पुरो हत के लए हतकर नह है। वह चाहता है क एक मरा आ भगवान भीतर हो, जसको वह ताला-चाबी म बंद रखे और काम चला ले। अगर उस मं दर से कुछ और वराट श य का संबंध है तो पुरो हत का टकना वहां मु ल हो जाएगा; उसका जीना वहां मु ल हो जाएगा। इस लए पुरो हत ने ब त मुदा मं दर बना लए ह और वह रोज बनाए चला जा रहा है। मं दर तो रोज बन जाते ह, उनक कोई क ठनाई नह है। ले कन व ुतः जो जी वत मं दर ह वे ब त कम होते जाते ह।

जी वत मं दर को बचाने क इतनी चे ा क गई, ले कन पुरो हत का जाल इतना बड़ा है हर मं दर के साथ, हर धम के साथ क ब त मु ल है उसको बचाना। और इस लए सदा फर आ खर म यही होता है.इस लए इतने मं दर बने; नह तो इतने मं दर बनने क कोई ज रत न पड़ती। अगर महावीर के व म उप नषद के समय म बनाए गए मं दर जी वत होते और तीथ जी वत होते, तो महावीर को अलग बनाने क कोई ज रत न पड़ती। ले कन वे मर गए थे। और उन मरे मं दर और पुरो हत का एक जाल था, जसको तोड़कर वेश करना असंभव था। इस लए नये बनाने के सवाय कोई उपाय नह था। आज महावीर का मं दर भी मर गया है; उसके पास भी उसी तरह का जाल है। शत पूरी न करने पर वायदे का टूट जाना नया म इतने धम न बनते, अगर जो जीवंत त है वह बच सके। ले कन वह बच नह पाता। उसके आसपास सब उप व इक ा हो जाता है। और वह जो उप व है, वह धीरे -धीरे , धीरे -धीरे सारी संभावनाएं तोड़ देता है। और जब एक तरफ से संभावना टूट जाती है तो सरी तरफ से समझौता भी टूट जाता है। वह समझौता कया गया समझौता है। उसे हम नभाना है। अगर हम नभाते ह तो सरी तरफ से नभता है, नह तो वदा हो जाता है, बात ख हो जाती है। जैसे क म कहकर जाऊं क कभी आप मुझे याद करना तो म मौजूद हो जाऊंगा। ले कन आप कभी याद ही करना बंद कर दो या मेरे च को एक कचरे घर म डाल दो और फर उसका खयाल ही भूल जाओ, तो यह समझौता कब तक चलेगा! यह समझौता टूट गया आपक तरफ से; इसे मेरी तरफ से भी रखने क अब कोई ज रत नह रह जाती। ऐसे समझौते टूटते गए ह। ले कन ाण- त ा का अथ है। और ाण- त ा का सरा ह ा ही मह पूण है क ाण- त ा ई या नह , उसक कसौटी और परख है। वह परख भी पूरी होती है। : ओशो, कुछ मं दर म मू त के ऊपर पानी आप ही आप झरता रहता है । होने का सूचक है ?

ा यह उस मं दर के जी वत

नह , पानी वगैरह से तो कुछ लेना-देना नह है। पानी तो बना मू त क त ा कए भी झरता रहता है; मू त भी रख तो भी झर सकता है। उसक कोई बड़ी क ठनाई नह है; वह कोई बड़ा सवाल नह है। ये सब झूठे माण ह जनके आधार पर हम सोच लेते ह क त ा हो गई। ये सब झूठे माण ह जनके आधार पर हम सोच लेते ह क त ा हो गई। पानी-वानी झरने से कोई लेना-देना नह है। जहां बलकुल पानी नह गरता, वहां भी जी वत मं दर ह; वहां भी हो सकते ह। दी ा दी नह जाती--घ टत होती है :

ओशो, आ ा क साधना म दी ा का ब त ही मह पूण ान है । उसक वशेष व धयां वशेष तय म होती ह। बु और महावीर भी दी ा दे ते थे। अतः कृपया बताएं क दी ा का ा सू अथ है ? दी ा कतने कार क संभव है ? उसका मह और उसक उपयो गता ा है ? और उसक आव कता है ?

दी ा के संबंध म थोड़ी सी बात उपयोगी है। एक तो यह क दी ा दी नह जाती; दी ा दी भी नह जा सकती। दी ा घ टत होती है; वह एक हैप नग है। कोई महावीर के पास है। कभी-कभी वष लग जाते ह दी ा होने म। क महावीर कहते ह-- को, साथ रहो, चलो, उठो, बैठो, इस तरह जीओ, इस तरह ान म वेश करो, इस तरह उठो, इस तरह बैठो, ऐसा जीओ। एक घड़ी है ऐसी जब वह तैयार हो जाता है, और तब महावीर सफ मा म रह जाते ह। ब मा म कहना भी शायद ठीक नह , ब त गहरे म सफ सा ी, एक वटनेस रह जाते ह, एक गवाह रह जाते ह--उनके सामने दी ा घ टत होती है। दी ा सदा परमा ा से घ टत होती है दी ा सदा परमा ा से है। महावीर के सम घ टत होती है। ले कन न त ही, जस पर घ टत होती है, उसको तो महावीर दखाई पड़ते ह, परमा ा दखाई नह पड़ता। उसे तो सामने महावीर दखाई पड़ते ह, और महावीर के साथ म ही उस पर घ टत होती है। भावतः वह महावीर के त अनुगृहीत होता है। यह उ चत है। ले कन महावीर उसके अनु ह को ीकार नह करते। क वे तो तभी ीकार कर सकते ह जब क वे मानते ह क मने दी ा दी है। इस लए दो तरह क दी ाएं ह। एक दी ा तो वह जो घ टत होती है-- जसे म दी ा कहता ं --वह इनी शएशन है, जसम तुम परमा ा से संबं धत ए, तु ारी जीवन-या ा बदली। तुम और हो गए। तुम अब वही नह हो जो थे। तु ारा सब पांत रत हो गया, तु कुछ नया दखा, तुमम कुछ नया घ टत आ, तुमम कुछ नई करण आई, तु ारा सब कुछ और हो गया है। एक तो यह दी ा है, जसम जसको हम गु कहते ह, वह सफ वटनेस क तरह, गवाह क तरह खड़ा होता है। और वह सफ इतना ही बता सकेगा क हां, दी ा हो गई; क वह पूरा देख रहा है, तुम आधा ही देख रहे हो। तु , तुम पर जो हो रहा है, वह दखाई पड़ रहा है। उसे वह भी दखाई पड़ रहा है, जससे हो रहा है। इस लए तुम प े गवाह नह हो सकते क ई घटना क नह ई; तुम इतना ही कह सकते हो क ब त कुछ पांतरण आ। ले कन दी ा ई क नह ? म ीकृत आ या नह ? दी ा का मतलब है: हैव आई बीन ए े े ड? ा म चुन लया गया? ा म ीकृत हो गया उस परमा ा को? ा अब म मानूं क म उसका हो गया? अपनी तरफ से तो मने छोड़ा, उसक तरफ से भी म ले लया गया ं या नह ? ले कन इसका तु एकदम से पता नह चल सकता। तु थोड़े अंतर तो पता चलगे, ले कन पता नह ये अंतर काफ ह या नह ? तो वह जो सरा आदमी है, जसको हम गु कहते रहे ह, वह इतना जान सकता है; उसे दोन घटनाएं दखाई पड़ रही ह। गु --मा गवाह

स क दी ा दी नह जाती, ली भी नह जाती, परमा ा से घ टत होती है; तुम सफ ाहक होते हो। और जसे तुम गु कहते हो, वह सफ सा ी और गवाह होता है। सरी दी ा, जसको हम फा इनी शएशन कह, झूठी दी ा कह, वह दी जाती है और ली जाती है। उसम ई र बलकुल नह होता; उसम गु और श ही होते ह--गु देता है और श लेता है--ले कन तीसरा और असली मौजूद नह होता। जहां दो मौजूद ह सफ-गु और श --वहां दी ा झूठी होगी; जहां तीन मौजूद ह--गु , श और वह भी, जससे दी ा घ टत होगी, वहां सब बात बदल जाएगी। तो यह जो दी ा देने का उप म है, यह अनु चत है। अनु चत ही नह , खतरनाक है, घातक है; क इस दी ा के म म वह दी ा कभी घ टत न हो पाएगी अब। अब तुम तो इस म म जीओगे क दी ा हो गई। अब एक साधु मेरे पास आए। अब वे दी त ह कसी के; कहते ह, फलां गु का दी त ं और ान सीखने आपके पास आया ं । तो मने कहा, दी ा कस लए ली? और जब दी ा म ान भी नह आया, तो और ा मला है दी ा म? व मल गए ह! नाम मल गया है! और जब ान अभी खोजना पड़ रहा है, तो दी ा कैसे हो गई? क सच तो यह है क ान के बाद ही दी ा हो सकती है, दी ा के बाद ान का कोई मतलब नह है। एक आदमी कहता है, म हो गया ं ; और डा र के दरवाज पर घूम रहा है और कहता है क मुझे दवा चा हए। दी ा तो ान के बाद मली ई ीकृ त है; वह स न है क तुम ीकृत कर लए गए, अंगीकार कर लए गए, परमा ा तक तु ारी खबर प ं च गई, उस नया म भी तु ारा वेश हो गया है, इस बात क ीकृ त भर दी ा है। स क दी ा को पुनज वत करना पड़ेगा ले कन ऐसी दी ा खो गई है। और म चाहता ं क ऐसी दी ा पुन ी वत हो, जसम गु देनेवाला न हो, जसम श लेनेवाला न हो; जसम गु गवाह हो, श ाहक हो, और देनेवाला परमा ा हो। और यह हो सकता है। और यह होना चा हए। उस दन तु ारा मेरे त.अगर म कसी का गवाह ं दी ा म, तो म उसका गु नह हो जाता, गु तो उसका परमा ा ही आ फर। और वह अगर अनुगृहीत है, तो यह उसक बात है। ले कन अनु ह मांगना बेमानी है; ीकार करने का भी कोई अथ नह है। गु डम पैदा ई दी ा को एक नई श देने से। कान फंू के जा रहे ह! मं दए जा रहे ह! कोई भी आदमी कसी को भी दी त कर रहा है। वह खुद भी दी त है, यह भी प ा नह है। परमा ा तक वह भी ीकृत आ है, इसका भी कोई प ा नह है। वह भी इसी तरह दी त है। कसी ने उसके कान फंू के ह, वह कसी सरे के फंू क रहा है! वह सरा कल कसी और के फंू कने लगेगा! झूठी दी ा आ ा क अपराध आदमी हर चीज म झूठ और डसे शन पैदा कर लेता है। और जतनी रह पूण बात ह, वहां तो वंचना ब त संभव है, क वहां तो कोई पकड़कर हाथ म दखानेवाली चीज नह है। अब म चाहता ं , इस योग को भी करना चाहता ं , इस योग को भी करना चाहता ं , दस-बीस लोग तैयार हो रहे ह, वे दी ा ल परमा ा से। बाक लोग जो मौजूद

ह , वे गवाह ह । बस वे इतना कह सक, इतना भर बता सक क ऊपर तक ीकृत बात हो गई क नह हो गई। उतना काम है। अनुभव तो तु भी होगा, ले कन तुम एकदम से पहचान न पाओगे। इतना अप र चत जगत है वह, तुम रक ाइज कैसे करोगे क हो गया? बस उतनी बात का मू है। इस लए परम गु तो परमा ा ही है। अगर बीच के गु हट जाएं तो आसानी हो जाती है। ले कन बीच के गु ब त पैर जमाकर खड़े होते ह; क खुद को परमा ा बनाने और दखलाने का मजा अहं कार के लए ब त है। इस अहं कार के आसपास ब त तरह क दी ाएं दी जाती ह। उनका कोई भी मू नह है। और आ ा क अथ म वह सब मनल ए है। और कसी दन अगर हम आ ा क अपरा धय को सजा द तो उनको सजा मलनी चा हए। क वह एक आदमी को इस धोखे म रखना है क उसक दी ा हो गई। और वह आदमी अकड़कर चलने लगता है क म दी त ं --मुझे दी ा मल गई, मं मल गया, यह हो गया, वह हो गया--वह यह सब मानकर चलता है। और इस लए वह जो उसका होनेवाला था, जसक वह खोज करता, वह खोज बंद कर देता है। बौ धम के शरण का वा वक अथ बु के पास कोई भी आता, तो कभी एकदम से दी ा नह होती थी; वष कभी लग जाते। उस आदमी को कहते क को, अभी ठहरो, अभी इतना करो, अभी इतना करो, इतना करो, फर कसी दन, फर कसी दन--उसको टालते चले जाते। जस दन वह घड़ी आ जाती, उस दन वे खुद कह देते क अब तुम खड़े हो जाओ और दी त हो जाओ। ले कन वह जो दी ा थी, उसके तीन ह े थे। जस दन वह दी ा होती--बु क जो दी ा थी उसके तीन ह े थे। वह जो दी त होता, वह तीन तरह क शरण जाता; ी टाइ ऑफ सरडर थे वे। वह तीन तरह क शरण करता। बु ं शरणं ग ा म वह कहता, बु क शरण जाता ं । और ान रहे, बु क शरण जाने का मतलब गौतम बु क शरण जाना नह था; बु क शरण जाने का मतलब है--जागे ए क शरण जाता ं । इसका मतलब गौतम बु क शरण कभी भी नह था। इस लए बु से एक दफा कसी ने पूछा क आप सामने बैठे ह और एक आदमी आकर कहता है--बु ं शरणं ग ा म। और आप सुन रहे ह! तो बु ने कहा क वह मेरी शरण नह जा रहा, वह जागे ए क शरण जा रहा है। म तो महज बहाना ं । मेरी जगह और बु होते रहगे, मेरी जगह और बु ए ह; म तो सफ एक बहाना ं , एक खूंटी ं । वह जागे ए क शरण जा रहा है; म कौन ं जो बाधा ं ? वह मेरी शरण जाए तो म रोक ं ; वह कहता है, बु क शरण। तो तीन बार वह जागे ए क शरण जा रहा है। वह जागे ए के सामने अपने को सम पत कर रहा है। संघं शरणं ग ा म फर सरी शरण और अदभुत है! वह है: संघं शरणं ग ा म। वह तीन बार संघ क शरण जा रहा है। संघ का मतलब? आमतौर से बु को माननेवाले भी समझते ह: संघ का मतलब बु का संघ। नह , वह संघ का मतलब नह है। संघ का मतलब है जागे ओं का

संघ। एक ही बु थोड़े ही है जागा आ! ब त बु हो चुके ह जो जाग गए, ब त बु ह गे जो जागगे--उन सबका संघ है एक, उन सबक एक क ु नटी है, एक कले वटी है। तो कोई बु के संघ क शरण जा रहा ं , वह तो बौ क समझ है क वह कह रहा है क अब बु का जो यह सं दाय है, इसक म शरण जा रहा ं । नह , जब पहले सू से ही साफ हो जाता है, जब बु कहते ह, वह मेरी शरण नह जा रहा है, जागे ए क शरण जाता है, तो सरा सू और भी साफ हो जाता है क वह जागे ओं के संघ क शरण जाता है। पहले वह एक को जो सामने मौजूद है, उस पर अपने को सम पत कर रहा है। क यह है; आसान है इससे बात करनी। फर वह उस बड़ी दर ड, उस बड़े संघ के लए समपण कर रहा है, जो जागे ह कभी, जनका उसे पता नह ; जो कभी जागगे भ व म, उनका भी उसे कोई पता नह ; जो अभी भी जागे ए ह गे कह , उनका भी उसे कोई पता नह ; वह उनको भी समपण कर रहा है क म तु ारी भी शरण जाता ं । वह एक कदम आगे बढ़ा सू क तरफ। ध ं शरणं ग ा म तीसरी शरण है: ध ं शरणं ग ा म। तीसरी बार वह कह रहा है: म धम क शरण जाता ं । पहला, जो जागे ए बु ह, उनक । सरा, जो बु का जागा आ संघ है, उनक । और तीसरा, जो जागरण क परम अव ा है--धम, भाव, जहां न रह जाता है, जहां न संघ रह जाता है, जहां सफ नयम, द लॉ, सफ धम रह जाता है--म उस धम क शरण जाता ं । ये तीन शरण जब वह पूरी कर दे--और यह सफ कहने क बात न थी--यह जब पूरी हो जाए और बु को दखाई पड़े क ये तीन शरण इसक पूरी हो गई ह, तब दी त होता वह आदमी; और बु सफ गवाह होते। इस लए बु उसको दी ा के बाद भी कहते क म जो क ं तू उसे इस लए मत मान लेना क म बु -पु ष ं ; म जो क ं उसे इस लए मत मान लेना क एक महान ने कहा; म जो क ं उसे इस लए मत मान लेना क जसने कहा उसे ब त लोग मानते ह; म जो क ं उसे इस लए मत मान लेना क शा म वही लखा है। नह , तेरी बु जो कहे, अब तू उसी को मानना। वे गु बन नह रहे ह। इस लए मरते व जो आ खरी संदेश है बु का, वह है: अ दीपो भव! आ खरी व जब उनसे कहा है क कुछ और संदेश द! तो वे आ खरी संदेश देते ह क तुम अपने दीपक खुद ही बनना, तुम कसी के पीछे मत जाना, अनुसरण मत करना। बी ए लाइट अनटू योरसे ! अ दीपो भव! अपने दीये खुद बन जाना, बस यह मेरा आ खरी.यह आ खरी संदेश है। दी ा देकर बांधनेवाले गु ओं से सावधान तो ऐसा गु नह बनता; ऐसा सा ी है, गवाह है। जीसस ने ब त जगह यह बात कही है क जस दन नणय होगा, म तु ारी गवाही र ं गा। जीसस ब त जगह यह बात कहे ह क जस दन अं तम नणय होगा, म तु ारी गवाही र ं गा। अं तम नणय के व म क ं गा क हां, यह आदमी जागने क आकां ा कया था; यह आदमी परमा ा के लए समपण क आकां ा कया था। यह तो तीक म कहना है, ले कन ाइ यह कह रहे ह क म गवाही ं , म तु ारा गु नह ं ।

गु कोई भी नह है। इस लए जस दी ा म कोई आदमी गु बन जाता हो, उस दी ा से सावधान होना ज री है। और जस दी ा म परमा ा ही सीधा, इमी जएट और डायरे संबंध म आता हो, वह दी ा बड़ी अनूठी है। और ान रहे क इस सरी दी ा म न तो कसी को घर छोड़कर भागने क ज रत है; न इस सरी दी ा म कसी को ह , मुसलमान, ईसाई होने क ज रत है; न इस सरी दी ा म कसी से बंधने क कोई ज रत है। इसम तुम अपनी प रपूण तं ता म जैसे हो, जहां हो, वैसे ही रह सकते हो, सफ भीतर तु ारी बदलाहट शु हो जाएगी। ले कन वह जो पहली झूठी दी ा है, उसम तुम कसी धम से बंधोगे-- ह बनोगे, मुसलमान बनोगे, ईसाई बनोगे; कसी सं दाय के ह े बनोगे; कोई पंथ, कोई मा ता, कोई डा े ट तु पकड़ेगा; कोई आदमी, कोई गु , वे सब तु पकड़ लगे, वे तु ारी तं ता क ह ा कर दगे। जो दी ा तं ता न लाती हो, वह दी ा नह है; जो दी ा परम तं ता लाती हो, वही दी ा है। बु के पुनज का रह : ओशो, आपने कहा क बु सातव शरीर म महाप र नवाण को उपल ए, ले कन अ एक वचन म आपने कहा है क बु का एक और ज मनु शरीर म मै ेय के नाम से होनेवाला है । तो नवाण काया म चले जाने के बाद पुनः मनु शरीर लेना कैसे संभव होगा, इसे सं ेप म करने क कृपा कर।

हां, यह जरा क ठन बात है, इस लए मने कल छोड़ दी थी, क इसक लंबी ही बात करनी पड़े। ले कन फर भी थोड़े म समझ ल। सातव शरीर के बाद वापस लौटना संभव नह है। सातव शरीर क उपल के बाद पुनरागमन नह है; वह ाइं ट ऑफ नो रटन है। वहां से वापस नह आया जा सकता। ले कन सरी बात सही है जो मने कही है क बु कहते ह क म एक बार और आऊंगा, मै ेय के शरीर म; मै ेय नाम से एक बार और वापस लौटूंगा। अब ये दोन ही बात तु वरोधी दखाई पड़गी। क म कहता ं , सातव शरीर के बाद कोई वापस नह लौट सकता; और बु का यह वचन है क वे वापस लौटगे और बु सातव शरीर को उपल होकर महा नवाण म समा हत हो गए ह। तब यह कैसे संभव होगा? इसका सरा ही रा ा है। असल म, सातव शरीर म वेश के पहले.अब तु थोड़ी सी बात समझनी पड़े। जब हमारी मृ ु होती है तो भौ तक शरीर गर जाता है, ले कन बाक कोई शरीर नह गरता। मृ ु जब हमारी होती है तो भौ तक शरीर गरता है, बाक छह शरीर हमारे हमारे साथ रहते ह। जब कोई पांचव शरीर को उपल होता है, तो शेष चार शरीर गर जाते ह और तीन शरीर शेष रह जाते ह--पांचवां, छठवां और सातवां। पांचव शरीर क हालत म, य द कोई चाहे.य द कोई चाहे पांचव शरीर क हालत म, तो ऐसा संक कर सकता है क उसके बाक सरे और तीसरे और चौथे, तीन शरीर शेष रह

जाएं । और अगर यह संक गहरा कया जाए--और बु जैसे आदमी को यह संक गहरा करने म कोई क ठनाई नह है--तो वह अपने सरे , तीसरे और चौथे शरीर को सदा के लए छोड़ जा सकता है। ये शरीर श पुंज क तरह अंत र म मण करते रहगे। सरा ईथ रक, जो भाव शरीर है, तो बु क भावनाएं , बु ने अपने अनंत ज म जो भावनाएं अ जत क ह, वे इस शरीर क संप ह। उसक सब सू तरं ग इस शरीर म समा हत ह। फर ए ल बॉडी, सू शरीर है। इस सू शरीर म बु के जीवन क जतनी सू तम कम क उपल यां ह, उन सबके सं ार इसम शेष ह। और चौथा मनस शरीर, मटल बॉडी है। बु के मनस क सारी उपल यां! और बु ने जो मनस के बाहर उपल यां क ह, वे भी कही तो मन से ही ह, उनको अ भ तो मन से ही देनी पड़ती है। कोई आदमी पांचव शरीर से भी कुछ पाए, सातव शरीर से भी कुछ पाए, जब भी कहेगा तो उसको चौथे शरीर का ही उपयोग करना पड़ेगा, कहने का वाहन तो चौथा शरीर ही होगा। तो बु क जतनी वाणी सरे लोग ने सुनी है, वह तो ब त कम है, सबसे ादा वाणी तो बु क बु के ही चौथे शरीर ने सुनी है। जो बु ने सोचा भी है, जीया भी है, देखा भी है, समझा भी है, वह सब चौथे शरीर म संगृहीत है। ये तीन शरीर सहज तो न हो जाते ह--पांचव शरीर म व ए के तीन शरीर न हो जाते ह; सातव शरीर म व ए के बाक छह शरीर न हो जाते ह, सभी कुछ न हो जाता है--ले कन पांचव शरीर वाला य द चाहे तो इन तीन शरीर के संघट को, संघात को अंत र म छोड़ सकता है। ये ऐसे ही अंत र म छूट जाएं गे जैसे अब हम अंत र म कुछ े शंस बना रहे ह; वे अंत र म या ा करते रहगे। और मै ेय नाम के म वे कट ह गे। सू शरीर का परकाया वेश तो कभी जो मै ेय नाम क त का कोई पैदा होगा, उस त का जसम बु के ये तीन शरीर वेश कर सक, तो ये तीन शरीर तब तक ती ा करगे और उस म वेश कर जाएं गे। और उस म वेश करते ही उस क है सयत ठीक वैसी हो जाएगी जैसी बु क ; क बु के सारे अनुभव, बु के सारे भाव, बु क सारी कमव ा का यह पूरा इं तजाम है। ऐसा समझ लो क मेरे शरीर को म छोड़ जा सकूं इस घर म, सुर त कर जा सकूं. जैसे अभी अमे रका म एक आदमी मरा, कोई तीन साल पहले, चार साल पहले, तो वह कोई करोड़ डालर का कर गया है, और कह गया है क मेरे शरीर को तब तक बचाया जाए जब तक साइं स इस हालत म न आ जाए क उसको पुन ी वत कर सके। तो उसके शरीर पर लाख पया खच हो रहा है। उसको बलकुल वैसे ही सुर त रखना है। उसम जरा भी खराबी न हो जाए। उस समय तक.आशा है क इस सदी के पूरे होते-होते तक शरीर को पुन ी वत करने क संभावना कट हो जाएगी। तो इधर तीस-चालीस साल उसको, उसके शरीर को ऐसा सुर त रखना है जैसा क वह मरते व था। उसम जरा भी डटो रएशन न हो जाए। तो यह शरीर बचाया जा रहा है। यह वै ा नक या है। और अगर इस सदी के पूरे होते-होते तक हम शरीर को पुन ी वत कर सक, तो वह

शरीर पुन ी वत हो जाएगा। न त ही, उस शरीर को सरी आ ा उपल होगी, वही आ ा उपल नह हो सकती है। ले कन शरीर यह रहेगा, उसक आंख ये रहगी, उसके चलने का ढं ग यह रहेगा, उसका रं ग यह रहेगा, उसका नाक-न ा यह रहेगा, इस शरीर क आदत उसके साथ रहगी। एक अथ म वह उस आदमी को र ेजट करे गा, इस शरीर से। और अगर वह आदमी सफ भौ तक शरीर पर ही क त था--जैसा क होना चा हए, नह तो भौ तक शरीर को बचाने क इतनी आकां ा नह हो सकती--तो अगर वह सफ भौ तक शरीर ही था, बाक शरीर का उसे कुछ पता भी नह था, तो कोई भी सरी आ ा बलकुल ए कर पाएगी। वह बलकुल वही हो जाएगी। और वै ा नक दावा भी करगे क यह वही आदमी हो गया है, इसम कोई फक नह है। उस आदमी क सारी ृ तयां, जो इसके भौ तक ेन म संर त होती ह, वे सब जग जाएं गी। वह फोटो पहचानकर बता सकेगा क यह मेरी मां क फोटो है; वह बता सकेगा क यह मेरे बेटे क फोटो है। ये सब मर चुके ह तब तक, ले कन वह फोटो पहचान लेगा। वह अपना गांव पहचानकर बता सकेगा क यह रहा मेरा गांव जहां म पैदा आ था; और यह रहा मेरा गांव जहां म मरा था। और ये-ये लोग थे जब म मरा था तो जदा थे। ले कन यह आ ा सरी है। ले कन ेन के पास जो मेमोरी कंटट है वह सरा है। ृ त का पुनरारोपण अभी वै ा नक कहते ह क हम ब त ज ी ृ त को ांस ांट कर पाएं गे। यह संभव हो जाएगा। इसम क ठनाई नह मालूम होती। अगर म म ं , तो मेरी अपनी एक ृ त है। और बड़ी संप खोती है नया क ; क म मरता ं तो मेरी सारी ृ त खो जाती है। अगर मेरी सारी ृ त क पूरी क पूरी टे प, पूरा मेरा यं मेरे मरने के साथ बचा लया जाए.जैसे हम आंख बचा लेते ह अब; कल तक आंख ांस ांट नह होती थी, अब हो जाती है। तो कल मेरी आंख से कोई देख सकेगा; सदा म ही देखूं, अब यह बात गलत है; अब मेरी आंख से कल कोई सरा भी देख सकेगा। और सदा मेरे दय से म ही ेम क ं , यह भी गलत है; कल मेरे दय से कोई सरा भी ेम कर सकेगा। अब दय के संबंध म ब त वायदा नह कया जा सकता क मेरा दय सदा तु ारा रहेगा। वैसा वायदा करना ब त मु ल है। क यह दय कसी और के भीतर से कसी और को वायदा कर सकेगा। इसम अब कोई क ठनाई नह रह गई। ठीक ऐसे ही, कल ृ त भी ांस ांट हो जाएगी। वह सू है, ब त डे लकेट है, इस लए देर लग रही है, और देर लगेगी। ले कन कल म म ं , तो जैसे म आज अपनी आंख दे जाता ं आई बक को, ऐसे म मेमोरी बक को अपनी ृ त दे जाऊं, और क ं क मरने के पहले मेरी सारी ृ त बचा ली जाए और कसी छोटे ब े पर ांस ांट कर दी जाए। तो जस छोटे ब े को मेरी ृ त दे दी जाएगी, मुझे जो ब त कुछ जानना पड़ा, वह उस ब े को जानना नह पड़ेगा, वह जानता आ बड़ा होगा; वह उसक ृ त का ह ा हो जाएगा; वह उसको ए ाब कर जाएगा। इतनी बात वह जानेगा ही। और तब बड़ी मु ल हो जाएगी, क मेरी ृ तयां उसक ृ तयां हो जाएं गी। और वह कई मामल म ठीक मेरे जैसे उ र देगा और कई मामल म ठीक वह मेरी जैसी पहचान

दखलाएगा; क उसके पास, ेन के पास मेरा ेन है। मेरा मतलब समझ रहे हो न तुम? तो बु ने एक सरी दशा म योग कया है--और भी लोग ने योग कए ह, और वे वै ा नक नह ह, वे आक ह--उसम सरे , तीसरे और चौथे शरीर को संर त करने क को शश क गई है। बु तो वलीन हो गए; वह जो आ ा थी, वह जो चेतना थी, जो इन शरीर के भीतर जीती थी, वह तो खो गई सातव शरीर से, ले कन खोने के पहले वह यह इं तजाम कर गई है क ये तीन शरीर न मर; वह इनको संक क एक ग त दे गई है। समझ लो क म एक प र फकूं जोर से; इतने जोर से फकूं क वह प र पचास मील जा सके। म मर जाऊं, ले कन इससे प र नह गर जाएगा। जो ताकत मने उसको दी है, वह पचास मील तक चलेगी। प र यह नह कह सकता क वह आदमी मर गया जसने मुझे ताकत दी थी, तो अब म कैसे चलू!ं प र को जो ताकत दी गई थी पचास मील चलने क , वह पचास मील चलेगा। अब मेरे मरने-जीने से कोई संबंध नह , मेरी ताकत उस प र को लग गई, वह अब काम करे गा। मेरा मतलब समझे न? कृ मू त म बु के अवतरण का असफल योग बु जो ताकत दे गए ह उन तीन शरीर को जी वत रहने क , वे तीन शरीर जीएं गे। और, वे समय भी बता गए ह क वे कतनी देर तक.यानी वह व करीब है जब मै ेय को ज लेना चा हए। कृ मू त पर वही योग कया गया था क इनक तैयारी क जाए, वे तीन शरीर इनको मल जाएं । कृ मू त के एक छोटे भाई थे, न ानंद। पहले उन पर भी वह योग कया गया, ले कन न ानंद क मृ ु हो गई। वह मृ ु इसी म ई। क यह ब त अनूठा योग था और इस योग को आ सात करना एकदम आसान बात नह थी। को शश यह क गई क न ानंद के तीन शरीर खुद के तो अलग हो जाएं और मै ेय के तीन शरीर उनम वेश कर जाएं । न ानंद तो मर गया। फर कृ मू त पर भी वही को शश चली। वह भी को शश यही थी क इनके तीन शरीर हटा दए जाएं और र ेस कर दए जाएं । वह भी नह हो सका। फर और एक-दो लोग पर--जाज अरं डेल पर भी वही को शश क गई। क कुछ लोग को इस बात का.जैसे ावट इस सदी म आक के संबंध म जाननेवाली शायद सबसे गहरी समझदार औरत थी। उसके बाद एनीबीसट के पास ब त समझ थी, और लीडबीटर के पास ब त समझ थी। इन लोग के पास कुछ समझ थी जो इस सदी म ब त कम लोग के पास है। इनक बड़ी चे ा यह थी क वह तीन शरीर को जो श दी गई थी उसके ीण होने का समय आ रहा है। अगर मै ेय ज नह लेता, तो वे शरीर बखर सकते ह अब। उनको जतने जोर से फका गया था, वह पूरा हो जाएगा, और कसी को अब तैयार होना चा हए क वह उन तीन शरीर को आ सात कर ले। जो भी उनको तीन को आ सात कर लेगा, वह ठीक एक अथ म बु का पुनज होगा--एक अथ म! मेरा मतलब समझे? बु क आ ा नह लौटे गी, इस क आ ा बु के शरीर हण करके बु का काम करने लगेगी, एकदम बु के काम म संल . इस लए हर कोई नह हो सकता इस त म। जो होगा भी, वह भी करीब-करीब

बु के पास प ं चनेवाली चेतना होनी चा हए, तभी उन तीन शरीर को आ सात कर पाएगी, नह तो मर जाएगी। तो जो असफल आ सारा का सारा मामला, वह इसी लए असफल आ क उसम ब त क ठनाई है। ले कन फर भी, अभी भी चे ा चलती है। अभी भी कुछ छोटे से इसोटे रकस कल इसक को शश म लगे ए ह क कसी ब े को वे तीन शरीर मल जाएं । ले कन अब उतना ापक चार नह चलता, चार से नुकसान आ। कृ मू त के साथ संभावना थी क शायद वे तीन शरीर कृ मू त म वेश कर जाते। उनके पास उतनी पा ता थी। ले कन इतना ापक चार कया गया। चार शुभ से ही कया गया था क जब बु का आगमन हो तो वे फर से रक ाइज हो सक। और यह चार इस लए भी कया गया था क ब त से लोग ह जो बु के व म जी वत थे, उनक ृ त जगाई जा सके तो वे पहचान सक क यह आदमी वही है क नह है। इस ान से चार कया गया। ले कन वह चार घातक स आ। और उस चार ने कृ मू त के मन म एक रए न और त या को ज दे दया। वे संकोची और छु ई-मुई ह। ऐसा सामने मंच पर होने म उनको क ठनाई पड़ गई। अगर वह चुपचाप और कसी एकांत ान म यह योग कया गया होता और कसी को न बताया गया होता जब तक क घटना न घट जाती, तो शायद संभव था क यह घटना घट जाती। वह नह घट पाई। वह बात चूक गई। कृ मू त ने अपने शरीर छोड़ने से इनकार कर दया और इस लए सरे के शरीर के लए जगह नह बन सक । इस लए वह घटना नह हो सक । और इस लए एक बड़ी भारी असफलता इस सदी म आक साइं स को मली। इतना बड़ा ए पे रमट भी कभी नह कया गया था-- त त को छोड़कर कह भी नह कया गया था। त त म ब त दन से उस योग को करते रहे ह, और ब त सी आ ाएं वापस सरे शरीर से काम करती रही ह। तो मेरी बात तु ारे खयाल म आ गई? उसम वरोध नह है। और मेरी बात म कह भी वरोध दखे तो समझना क वरोध होगा नह । हां, कुछ और रा े से बात होगी, इस लए वरोध दखाई पड़ सकता है।

ओशो--एक प रचय

हम कौन ह, इसे समझने क दशा म ओशो ने जो अ तीय योगदान दया है उसे कसी ेणी म नह बांधा। वे एक रह वादी, अंतर-जगत के वै ा नक और व ोही चेतना ह। उनक संपूण च इस बात म है क मानवता को त ाल एक नई जीवन-शैली खोज नकालने क आव कता के त कैसे सजग कया जाए। अतीत का अनुसरण कए जाना इस अ तीय और अ त सुंदर ह के अ को ही संकट म डाल देने के लए आमं ण देना है। ओशो क बात का सार- नचोड़ यह है क केवल यं को बदलने, एक-एक के बदलने, के प रणाम प हमारा संपूण ‘‘ ’’--हमारा समाज, हमारी सं ृ त, हमारे व ास, हमारा संसार--सभी कुछ बदल जाता है। और इस बदलाव का ार है-- ान। ओशो ने एक वै ा नक क तरह अतीत के सारे कोण पर समी ा और योग कए ह और आधु नक मनु पर उनके भाव का परी ण कया है, तथा उनक क मय को र करते ए इ सव सदी के अ त याशील मन के लए एक नवीन ारं भ ब : ‘ओशो स य ान ’ का आ व ार कया है। OSHO Active Meditations उनके अनूठे ओशो स य ान इस तरह रचे गए ह क वे पहले शरीर और मन म एक त तनाव को रे चन हो सके, जसम रोजमरा के जीवन म सहज रता फ लत हो व वचारर हत व ां त अनुभव क जा सके। एक बार जब आधु नक जीवन क आपाधापी थमना शु ई, तो ‘‘स यता’’ ‘‘ न यता’’ म प रव तत होने लगती है, यही वा वक ान क शु आत का ारं भ ब है। इसे सहयोग देने के लए, अगले कदम के प म ओशो ने ाचीन ‘सुनने क कला’ को सू समकालीन व ध के प म पांत रत कया है, वह ह ‘ओशो- वचन।’ यहां श संगीत हो जाते ह, और ोता खोज पाता है उसे जो सुन रहा है, और का ान जो सुना जा रहा है उसके साथ-साथ सुनने वाले पर भी बना रहता है। जैस-जैसे

मौन उतरता है, वैस-े वैसे जो भी सुनने यो है वह जैसे कसी जा ई ढं ग से सीधे-सीधे समझ लया जाता है, मन के बना कसी अवरोध के जो क इस सू या म केवल ह ेप और बाधा भर डाल सकता है। यह हजार वचन अथव ा क गत तलाश से लेकर आज समाज के सम उप त सवा धक लंत सामा जक व राजनै तक सम ाओं तक सब-कुछ पर काश डालते ह। ओशो क पु क लखी नह गई ह, अ पतु अंतरा ीय ोताओं के सम उनक त ण दी गई नमु त ऑ डयो/वी डयो वाताओं के संकलन ह। जैसा क वे कहते ह: ‘‘तो याद रहे, म जो भी कह रहा ं वह केवल तु ारे लए ही नह ... म भ व क पी ढ़य के लए भी बोल रहा ं ।’’ ओशो को लंदन के दॅ संडे टाइ ने ‘‘बीसव सदी के 1000 नमाताओं’’ म से एक कह कर व णत कया है। Tom Robbins सु स अमरीक लेखक टॉम रा ब ने लखा है क ओशो ‘‘जीसस ाइ के बाद सवा धक खतरनाक ह।’’ भारत के संडे मड-डे ने ओशो को गांधी, नेह और बु के साथ उन दस लोग म चुना है ज ने भारत का भा बदल दया। अपने काय के बारे म ओशो ने कहा है क वे एक नये मनु के ज के लए प र तयां तैयार कर रहे ह। इस नये मनु को वे ‘ज़ोरबा द बु ा’ कहते ह--जो ‘ज़ोरबा द ीक’ क तरह पृ ी के सम सुख को भोगने क मता रखता हो और गौतम बु क तरह मौन रता म जीता हो। ओशो के हर आयाम म एक धारा क तरह बहता आ वह जीवन-दशन है जो पूरब क समयातीत ा और प म के व ान और तकनीक क सव संभावनाओं को एक साथ समा हत करता है। ओशो आंत रक पांतरण के व ान म अपने ां तकारी योगदान के लए जाने जाते ह और ान क उन व धय के ोता ह जो आज के ग तशील जीवन को ान म रख कर रची गई ह। Osho's talks ओशो क दो आ कथा क कृ तयां: ऑटोबायो ाफ ऑफ ए चुअली इनकरे म क, (सट मा टस ेस, यू एस ए) (बुक एं ड ई-बुक) Autobiography of a Spiritually Incorrect Mystic , ेस ऑफ ए गो न चाइ ड, ( हदी पु क: णम बचपन) (ओशो मी डया इं टरनेशनल, पुणे, भारत) (बुक एं ड ई-बुक) Glimpses of a Golden Childhood

ओशो इं टरनेशनल मे डटे शन रज़ॉट OSHO International Meditation Resort

हर वष मे डटे शन रज़ॉट 100 से भी अ धक देश से आने वाले हजार म का ागत करता है। ऱजॉट का अनूठा प रसर अ धक होशपूण, व ांत, उ वमय व सृजना क जीवन जीने के एक नये ढं ग का अनुभव करने के लए अवसर दान करता है। चौबीस घंटे और पूरे वष चलने वाले काय म का भ , व वधतापूण चुनाव उपल है-कुछ भी न करना व केवल व ाम उनम से एक है! यहां के सभी काय म ओशो क ज़ोरबा द बु ा’ क अंत पर आधा रत ह। ज़ोरबा एक गुणा क प से नये ढं ग का मनु जो दैनं दन जीवन को सृजना क ढं ग से जीने के साथ ही मौन और ान म ठहर जाने क मता रखता है। ान - Location मुंबई से सौ मील द णपूव म फलते-फूलते आधु नक शहर पुणे म त ओशो इं टरनेशनल मे डटे शन ऱजॉट छु यां बताने का एक ऐसा ल है जो और से सवथा भ है। वृ क कतार से घरे आवासीय े म मे डटे शन ऱजॉट 28 एकड़ के दशनीय बगीच म फैला आ है।

ओशो ान हर तरह के के अनु प दन भर चलने वाले ान-काय म म स य और न य, परं परागत और ां तकारी, तथा खासकर ओशो डाइनै मक मे डटे शन जैसी

ान- व धयां उपल ह। OSHO Active Meditations . ये सभी ान- व धयां व के संभवतः सवा धक भ व वशाल ान-सभागार ‘ओशो ऑ डटो रयम’ म होती ह। OSHO Auditorium . ओशो म ीव सटी यहां होने वाले व भ गत सेशन, कोस और वकशॉप अपने आप म सृजना क कला से लेकर सम ा तक, गत पांतरण, मानवीय र े एवं जीवनप रवतन, काय- ान, गु - व ान, तथा खेल व मनोरं जन म ‘‘झेन’’ ढं ग तक सब-कुछ समा हत करते ह। OSHO Multiversity’s म ीव सटी क सफलता का राज इस त म है क इसके सम काय म ान से जुड़े होते ह, जो इस समझ को बढ़ावा देता है क मनु केवल अंग का जोड़ मा नह है, वरन उससे बढ़ कर ब त कुछ है। ओशो बाशो ा - OSHO Basho Spa वैभवमय बाशो ा म उपल है हरे -भरे पेड़ व ह रयाली भरे वातावरण के बीच खुली हवा म तैरने का आनंद वशालकाय मग-पूल म। अनूठे ढं ग से बनी वशाल ज़कूजी, सौना, जम, टे नस कोट... मनमोहक सुंदर पृ भू म म उभर-उभर आते ह।

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